डीप फोकस : दूरदर्शन का धारावाहिक रामायण अबतक के सबसे हिट धारावाहिकों में से एक है
निस्संदेह जिंदगी चैनल ने भारतीय टेलीविजन की दुनिया में एक बड़ी चुनौती खड़ी की है। इस बात का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनदिनों दूरदर्शन को दोबारा से १९८० के दशक की तरह चमकाने की तयारी हो रही है. हालांकि इसमें कितनी सफलता मिलती है। यह तो वक़्त आने पर ही पता चलेगा। लेकिन शुरुआत तो हुई है। सरकार ने निर्देश दिया है कि क्रिएटिव आधार पर बदलाव किये जाएं। छोटे परदे ने निस्संदेह एक बड़ी इंडस्ट्री का रूप लिया है। लोगों को आदत लगाई गयी और अब दर्शक वैसी ही शोज को देखने के आदि हुए। मगर आज भी दूरदर्शन की जब भी बात। लोग हमलोग , ब्योमकेश बक्शी और उस दौर के अन्य धारावाहिकों को देखना चाहते हैं। स्पष्ट है कि अब भी दर्शकों का जुड़ाव है। प्राइवेट चैनलों ने कुछ नयापन नहीं दिया। ऐसी बात नहीं। हाँ मगर अब एक स्थिरता आ गई है और एक चैनल के लिए यह सही नहीं। इन दिनों एक नये चैनल ईपिक चैनल की भी शुरुआत हुई है। एपिक चैनल का प्रोमो प्रस्तुतीकरण सबकुछ भव्य है। लेकिन हिंदुस्तानी चैनल यही चूक कर बैठते हैं कि वे कंटेंट पर विशेष काम नहीं कर पाते। जबकि पाकिस्तानी धारावाहिकों ने अपने कंटेंट को ही अपनी यूएसपी बना रखी है। हिंदुस्तानी मनोरंजन चैनल पर इनदिनों एक धारावाहिक पूरी तरह से जिंदगी की नक़ल कर रहा है। लेकिन अफ़सोस नक़ल कभी खूबसूरत नजर नहीं आता। इस शो में जिस तरह से उर्दू शब्दों का इस्तेमाल हो रहा। वह स्वाभाविक सा नजर नहीं आता। और यही वजह है कि उसका बनावटीपन आकर्षित नहीं करता। जबकि जिंदगी के शोज स्वाभाविक हैं। इसलिए लोकप्रिय हैं। हम किसी भी मुल्क में हो। दिल हमारा वही देखना और सुनना चाहता है जो उसे अच्छा लगे। उस पर कोई बंदिश नहीं। सो सरकार अगर वाकई दूरदर्शन को दोबारा लोगों के दिलों में जिन्दा करना चाहती है तो कंटेंट पर काम अहम होगा। तभी दर्शक इससे जुड़ पाएंगे। वरना रेस्त्रां का स्वाद चख चुके दर्शकों को दाल रोटी खिलाना मुश्किल काम है। हाँ मगर दाल रोटी में स्वाद हो तो वे उसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार लेंगे
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