20141216

डीडीएलजे देखा तो जाना सनम...दर्शक भी दीवाने होते है ं सनम


दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे को हिंदी सिनेमा में एक रामराज्य माना जाये तो अतिश्योक्ति न होगी. यह फिल्म भले ही आज से कई सालों पहले रिलीज हुई हो. लेकिन आज भी ये सिने प्रेमियो और आम लोगों के सबसे करीब हैं. दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ने अपने किस कदर लोगों को प्रभावित किया है, इस बात का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मुंबई के मराठा मंदिर में अब तक यह फिल्म प्रदर्शित हो रही है. वह भी हाउसफुल. और 12 दिसंबर को फिल्म 1000वें हफ्ते में प्रवेश कर जायेगी. पेश है प्रेम व पारिवारिक मिसाल बन चुकी इस फिल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलुओं पर अनुप्रिया व उर्मिला की रिपोर्ट

एक दर्शक की दीवानगी किसे कहते हैं, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण आप तभी लगा सकते हैं, जब आप स्वयं मुंबई के मराठा मंदिर में एक दर्शक के रूप में मौजूद हों. उस दौर में जब मल्टीप्लेक्स के सॉफिशटिकेटेडे दर्शक नहीं हुआ करते थे.उस वक्त की रिलीज हुई फिल्म  इस दौर में भी यह फिल्म जबकि मल्टीप्लेक्स वाले सॉफिशटिकेटेड दर्शकों वाले दौर में भी फं्रर्ट सीट और हर डायलॉग पर सिटियां बजाने वाले दर्शकों के बीच देखी जा रही है. आज के बुद्धिजीवी समीक्षकों व दर्शकों को भले ही दिलवाले...एक औसतन फिल्म माने. कितने बुद्धिजीवियों ने इसे प्रेमियों को उकसाने व प्रेम विवाह को बढ़ावा देने के इल्जाम लगाये हो. लेकिन हकीकत यह है कि इस फिल्म ने आम लोगों को ही नहीं सिने प्रेमियों को भी प्रभावित किया. हिंदी फिल्मों में इस फिल्म के बाद जितनी प्रेम कहानियां बनीं लगभग सभी प्रेमियों में दर्शकों ने राज और सिमर को तलाशा. कई प्रेम कहानियां इससे ही प्रेरित हुई. हर प्रेम कहानी इस फिल्म की झलक दिखी. हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया के निर्देशक शशांक खेतान यह स्वीकारते हैं कि उन्होंने दिलवाले से प्रेरित होकर ही अपनी कहानी गढ़ी. फिल्म का संवाद बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी बातें होती रहती हैं...आम आशिकों के दिल की जुबां बनीं. फिल्म का अंतिम दृश्य जब राज और सिमरन भाग रहे हैं. वह ट्रेन वाले दृश्य सिने प्रेमियों के लिए स्थापित तसवीर बनी. न जाने कितने सिने प्रेमियो ने इस अंदाज में अपने घर में लगे फ्रेम सजाये हैं.यह इस फिल्म का ही जादू है, जिसने तुझे देखा तो ये जाना सनम गीत को लव एंथम में बदल दिया. लोग दो प्रेमियों की दुआएं लेते और कहते एकदम राज सिमरन सी जोड़ी है. कई गांवों में लोगों ने कबूतरों को दाना देना शुरू किया. मेहंदी पर सेहरा सजा के रखना गीत न हो तो दुल्हन अपनी शादी को पूरी नहीं समझती.  यह फिल्म केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि एक परिवार, एक बेटी के सरोकार, एक पिता व पुत्री के रिश्ते व पारिवारिक रिश्तों की समझ पर आधारित महत्वपूर्ण फिल्म थी और शायद यही वजह है कि आज  भी यह प्रासंगिक है और आगे भी रहेगी.
बॉक्स में
 1. गौरतलब है कि यह फिल्म सबसे पहले सैफ अली खान को आॅफर हुई थी. लेकिन सैफ अली खान ने आॅफर ठुकराया तो यह आॅफर फिर शाहरुख को दिया गया.
2. सैफ अली के अलावा आदित्य ने जब फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी थी तो उनके दिमाग में था कि वे किसी हॉलीवुड के एक्टर को कास्ट करेंगे. उनके जेहन में उस वक्त टॉम क्रूज का भी नाम आया था.
3. इस फिल्म के दौरान करन जौहर, काजोल और शाहरुख खान पक्के दोस्त बने और उनकी फिल्म कुछ कुछ होता है की नींव भी इसी फिल्म के दौरान पड़ी थी.
4. यह फिल्म यश चोपड़ा के बैनर यशराज बैनर के 25 साल पूरे होने के शुभ अवसर पर प्रदर्शित हुई थी. यश चोपड़ा मानते थे कि उनकी पहली फिल्म दाग से लेकर दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में उन्होंने अपने सपने को जिया. और इस सपने को जीते जीते उन्हें 25 साल हुए.
5. दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे का शीर्षक आदित्य चोपड़ा को अनुपम खेरे की पत् नी व अभिनेत्री किरण खेर ने सुझाया था.
6. यश चोपड़ा को पहली बार फिल्म कभी कभी की शूटिंग के दौरान यह एहसास हुआ था कि उनके बेटे आदित्य चोपड़ा को फिल्मों में कितनी दिलचस्पी है. चूंकि फिल्म की शूटिंग के दौरान हर वक्त व्यूफाइनडर से कुछ न कुछ देखा करते थे और शशि कपूर व अमिताभ उन्हें छोटा डायरेक्टर बुलाते थे और यह भी कहा करते थे कि डायरेक्टर बनने पर हमें याद रखना. बाद में आदित्य ने एक दिन शबाना और जावेद अख्तर को 6 साल की उम्र में एक कहानी सुनायी जिसे सुन कर दोनों ने ऐलान कर दिया था कि आदित्य निर्देशक ही बनेंगे.
मेरे लिए लांचिंग पैड : शाहरुख खान
भले ही मैंने दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे से पहले कई फिल्मों में काम कर लिया था. लेकिन मेरे लिए यह फिल्म लांचिंग पैड की तरह थी. जैसे सलमान की मैंने प्यार किया और आमिर की कयामत से कयामत थी. मैंने 15 फिल्में कर ली थी उस वक्त तक़ . लेकिन जो संतुष्टि इस फिल्म से मुझे मिली थी. वह एक एक्टर की भूख को शांत करनेवाली थी. लोग आदित्य चोपड़ा को नजदीक से नहीं जानते. कई लोगों ने उन्हें देखा नहीं है. लेकिन मैं बस यही कहूंगा कि राज बिल्कुल आदित्य की तरह है. उतना ही रोमांटिक, उतना ही फनी और उतना ही अपने परिवार को प्यार करने वाला. इस फिल्म की एक और खासियत यह थी कि इससे पहले तक फिल्मंो में लड़के लड़कियों को भगाते हुए दिखाया जाता था. लेकिन इस फिल्म के बाद से वे परिवार को महत्व देने लगे. मुझे याद है शुरुआत में  इस फिल्म के बारे में सिर्फ सलमान ने कहा था कि फिल्म मैंने प्यार किया से अच्छा बिजनेस करेगी.
फेवरिट गीत : मेरे ख्वाबों में जो आये...
मैं सिमरन बिल्कुल नहीं : काजोल
मुझे आज भी आश्चर्य होता है कि कैसे मैंने मजाक मजाक में सिमरन का किरदार निभा दिया. मैं लेकिन उसकी तरह बिल्कुल नहीं थी. लेकिन वह आदित्य चोपड़ा ही थे. जिन्होंने मुझे सिमरन बनाया. मुझसे ज्यादा आदि सिमरन को जानते थे. फेवरिट गीत : फिल्म का मेरा पसंदीदा गीत तुझे देखा तो जाना सनम है. मुझे लगता है कि मेरे लिए प्यार क्या है. इसे ध्यान में रख कर वह गीत लिखा गया था.
फेवरिट सीन : जब मैं अमरीश पुरी जी से अंतिम दृश्य में राज के साथ जाने की इजाजत मांगती हूं.
टिपिकल मां का किरदार नहीं था : फरीदा जलाल
इस फिल्म में मुझे मां का जो किरदार मिला था. वह आमतौर पर हीरोइन की मां वाला किरदार नहीं था. मुझे इसमें अपने बाल जबरन सफेद नहीं करने पड़े थे. मैं सिमरन की दोस्त जैसी थी. इससे पहले शायद फिल्मों में मां और बेटी के रिश्ते में प्यार को लेकर इतनी सहजता कम दिखाई गयी थी. तो यह फिल्म एक बेटी और मां के रिश्ते को भी अलग तरीके से स्थापित करती है. फिल्म में कई परत हैं. जो आपको आकर्षित करते हैं.
ँजंगली घोड़ा था वह : परमजीत
फिल्म में  जिस घोड़े पर मैं सवार था वह जंगली घोड़ा था. लेकिन वह मेरा पहला शॉट था फिल्म का तो. मैं खुद को साबित करना चाहता था. सो, मैं अपने बेस्ट देने की कोशिश करता रहा. घोड़ा चूंकि जंगली था तो डर तो लग ही रहा था. चूंकि घोड़ा एक खेत से दूसरे खेत चले जा रहा था.जब वह घोड़ा थमा तब जाकर सांस में सांस आयी.

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