20140623

आवारी प्राची देसाई


्रप्राची देसाई को अब तक लोग गुडी गुडी गर्ल के रूप में जानते हैं.लेकिन फिल्म एक विलेन में वह आवारी आयटम नंबर कर रही हैं और अचानक से इस गाने से वह काफी चर्चा में आ गयी हैं. 
टेलीविजन से शुुरुआत
प्राची देसाई ने टेलीविजन से शुुरुआत की थी. एकता कपूर के शो कसम से में वह राम कपूर के अपोजिट थीं. धीरे धीरे उन्होंने अपने कदम बढ़ाये और रॉक आॅन फिल्म से उन्हें सफलता भी मिली. बाद में उन्हें कई फिल्में मिलीं. उनकी फिल्में वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई और बोल बच्चन सुपरहिट फिल्में रही हैं.
स्वीट चेहरे से हुई दिक्कत
प्राची खुद मानती हैं कि उन्हें बॉलीवुड में एक्सपेरिमेंटल रोल नहीं मिल पाते. चूंकि उनका चेहरा स्वीट है तो निर्देशक उन्हें स्वीट फिल्में ही देना चाहते हैं. जबकि उनकी इच्छा है कि वह विद्या बालन की तरह के किरदार प्रमुख किरदार निभायें.हालांकि उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी है.
आवारी है खास
प्राची देसाई की हमेशा से इच्छा थी कि उन्हें मोहित सूरी के साथ काम करने का मौका मिले. चूंकि मोंिहत सूरी अपनी फिल्मों को लेकर अलग सोच रखते हैं. सो, दो साल पहले जब उन्हें आवारी गाने का आॅफर आया तो वह मान चुकी थीं कि वह आयटम नंबर आम आयटम नंबर से बिल्कुल अलग ही होगा और ऐसा ही हुआ भी है. इस आयटम नंबर में प्राची बिल्कुल अलग नजर आ रही हैं. वे काफी सेंसुअस नजर आ रही हैं और उन्हें इस गाने की वजह से काफी लोकप्रियता भी मिल रही है.उन्हें उम्मीद है कि अब इस गाने के बाद लोग उन्हें अलग तरह के किरदार भी आॅफर करेंगे.
आउटसाइर्ट्स के लिए संघर्ष
प्राची मानती हैं कि बॉलीवुड में आउटसाइडर्स के लिए काफी संघर्ष होता है. लोग माने या माने लेकिन एक आउटसाइडर को अपनी पहचान बनाने के लिए हर बार खुद को प्रूव करना होता है. एक फिल्म नाकामयाब हो जाये तो दोबारा काम मिलने में काफी परेशानी होती है. इंडस्ट्री का रवैया भी बदल जाता है. सो, बॉलीवुड में जगह बनाने के लिए एक आउटसाइडर्स के एक्सट्रा आउटस्टैडिंग होना बेहद जरूरी है. 

किरदारों की भूखी हूं मैं : विद्या बालन


विद्या बालन को रिस्क लेना पसंद है. वह अपने किरदारों के लिए प्रयोग करती हैं. चूंकि उन्हें भूख है. भूख अभिनय की.भूख हर बार कुछ नया करने की. हिंदी सिनेमा की सबसे सशक्त अभिनेत्रियों में से एक विद्या एक बार फिर से एक नये अवतार में आ रही हैं. इस बार उन्होंने जासूस का रूप धारण किया है. 

 हिंदी सिनेमा की पहली महिला जासूस बनने का अनुभव कैसा रहा. फिल्म जब आॅफर हुई तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
मुझे विश्वास नहीं हुआ. मुझे लगा कि वो लोग बोलेंगे कि बॉबी जासूस एक मेल डिटेक्टीव है.और उसमें या तो मुझे बीवी का रोल निभाना है.या फिर मंगेतर का रोल निभाना है.लेकिन जब उन्होंने मुझे बताया कि बॉबी लड़की है. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं उस दिन पांडिचेरी के लिए निकल रही थी.मैं स्क्रिप्ट लेकर गयी और मैंने स्क्रिप्ट पढ़ना शुरू किया तो स्क्रिप्ट को नीचे रख ही नहीं पायी. एक झटके में पढ़ ली. फिर मैंने आकर कहा कि मुझे निर्देशक से मिलना है. चूंकि वह फर्स्ट टाइम डायरेक्टर हैं.तो किसी भी डायरेक्टर को अच्छी तरह जान लेना बहुत जरूरी होता है मेरे लिए.क्योंकि सेट पर अपने आप को मैं उनके हवाले सौंप देती हूं. तो वो अगर तभी होता है. जब पूरी तरह से विश्वास का माहौल होता है. मैं संयुक्ता और समर दोनों से मिली. मेरी हां, कहने की वजह यह भी है कि यह सिर्फ एक डिटेक्टीव स्टोरी नहीं है.यह एक लड़की की कहानी है.एक छोटे शहर की आम लड़की की कहानी है. जिसका सपना कुछ अलग करने का है. और बॉबी जिस तरह अपने सपने को साकार कराती है. मुझे बॉबी जासूस की खास बात यही लगी कि यह जासूस जासूसों से कपड़े नहीं पहनतीं. वह आम लोगों के बीच  से जासूस बनने की कोशिश करती है.
विद्या, आपकी वजह से हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को लेकर धारणा अब बदली है. तो क्या आप इसका श्रेय लेना चाहेंगी?
ये सुन कर तो वाकई बेहद अच्छा लगता है . और हां इसका श्रेय लेना भी चाहती हूं. लेकिन मैं अकेले नहीं लेना चाहती. हां, यह आप कह सकते हैं कि मैं इस बदलाव का चेहरा बन गयी हूं क्योंकि विजुअल मीडियम में एक्टर सबसे ज्यादा दिखता है और उसे क्रेडिट भी मिलता है अच्छी चीजों का. तो मेरा मानना है कि ये दौर ऐसा है कि ये चेंजेज हो रहे हैं. यह चेंजेज रातों रात नहीं होते.काफी वक्त से धीरे धीरे होता चला आ रहा है. लेकिन जब ये बदलाव का बम फूटा तो मैं वहां थी.और ये मेरी खुशनसीबी है.क्योंकि मैंने कुछ ऐसे डिसीजन लिये. कुछ ऐसी फिल्में की. लेकिन इसमें बहुत लोगों का हाथ है.
इस फिल्म में आपके कई लुक्स हैं तो उन लुक्स के बारे में बतायें?
हां, शायद जितने लुक् स मैंने इस फिल्म में बदले हैं. शायद ही किसी और फिल्म में बदले होंगे. सो बहुत मजा भी आया. मेरा पहला दिन ही था शूट का. और मैं नामपल्ली स्टेशन के बाहर बैठी थी. भिखारियों की वेशभूषा में. वहां मैंने  महसूस किया कि एक भिखारी की जिंदगी क्या होती है. किसी ने मुझे पहचाना नहीं.एक महिला स्टेशन की तरफ जा रही थी. लेकिन मैंने उनका हाथ पकड़ लिया क्योंकि मुझे ऐसे निर्देश मिले थे. उस महिला ने मुझे कहा कि हट्टे कट्ठे हो तो कोई काम क्यों नहीं करते. भीख क्यों मांग रहे हो. एकबारगी मेरा दिमाग ठनका, कि कोई मुझसे ऐसे बात कर रहा है. लेकिन बाद में ख्याल आया कि मैं किरदार में हूं, इस फिल्म में कई लुक्स बदले हैं. लेकिन सबसे तकलीफ मौलवी के किरदार को निभान ेमें हुई चूंकि वो लोग नाक में कुछ अलग सा पहनते हैं और उसे पहन कर मुझे काफी तकलीफ हुई.
हैदराबाद में शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
बेहतरीन रहा. वहां मैंने डर्टी पिक्चर्स भी शूट की थी. लेकिन उस वक्त और इस वक्त में काफी अंतर था. चूंकि उस फिल्म में हम हैदराबाद शहर में शूट कर रहे थे. जबकि इस बार हम हैदराबाद के बिल्कुल पुराने अंदाज वाले जगह पर शूट कर रहे थे. चारमिनार के आस पास के इलाके में. वहां के लोगों ने बेहद प्यार दिया. सभी ने कहा कि आपके लिए हैदराबाद लकी है. क्योंकि उन्हें पता था कि उनके शहर की फिल्मायी गयी फिल्म द डर्टी पिक्चर्स हिट हुई है.
विद्या आपके पास इतनी हिम्मत जिसे हम अंगरेजी में कहें तो गट्स कहां से आता है इस तरह के किरदार निभाने के लिए. आमतौर पर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों को तो सिर्फ सुंदर दिखना है परदे पर?
जी हां, सच यह है कि मैं बेहद भूखी हूं. मुझे अच्छा काम चाहिए. मैं जिंदगी में कभी अभिनय के सिवा कुछ सोचा ही नहीं. मैं कुछ नया किये बगैर नहीं रह पाती. और मेरा परिवार भी ऐसा मिला मुझे जिसने मेरे ऐसे निर्णय में हमेशा मेरा साथ दिया. तो मुझे हिम्मती बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. मुझे हर बार अच्छे किरदार चाहिए, क्योंकि मैं मेहनती हूं और काम नया करना मुझे अच्छा लगता है. वो लोग कहते हैं कि प्यास है बड़ी. मैं कहती हूं भूख है बड़ी. जितना अच्छा काम मिलेगा. मैं करती जाऊंगी. 

सफलता से चहक रही हूं मैं : श्रद्धा


उनकी पहले भी दो फिल्में रिलीज हो चुकी थीं. लेकिन सफलता का स्वाद चखने का मौका उन्हें फिल्म आशिकी 2 से मिला. इस फिल्म से न सिर्फ उन्होंने लोकप्रियता हासिल की, बल्कि अब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में निर्देशकों को भी उनमें काफी संभावना नजर आ रही है. बात हो रही है श्रद्धा कपूर की, जिनकी अगली फिल्म है एक विलेन. 

फिल्म आशिकी 2 से आपको बड़ी सफलता मिली है तो इसका श्रेय किसे देना चाहेंगी. एक विलेन में आपका क्या किरदार है?
मैं इसका श्रेय मोहित सूरी को देना चाहूंगी. चूंकि उन्होंने आरोही को काफी लोकप्रिय किरदार बना दिया है. और मैं फिर से एक विलेन उनके साथ ही कर रही हूं तो मुझे पूरा यकीन है कि लोग आरोही को जितना प्यार करते हैं आयशा को भी करेंगे. एक विलेन में मेरा किरदार आयशा का किरदार है, जो कि काफी बोलनेवाली है. वह आरोही की तरह शांत शांत नहीं रहती. जोक्स क्रैक करती रहती है. खुद को बहुत फनी समझती है. बहुत ही एनजेर्टिक लड़की है. दूसरों की हेल्प करना चाहती है और इसके लिए वह अपने गुरु की मदद लेती है और फिर कैसे दोनों में प्यार हो जाता है. यह है आयशा का किरदार. गुरु का किरदार बिल्कुल शांत रहता है. फिल्म में गुरु के संवाद ही नहीं हैं और मेरे 90 पेज के डायलॉग हैं. अब तक इस फिल्म के लिए जितने संवाद याद किये हैं. शायद तीनों फिल्मों को मिला कर भी नहीं किया होगा.

इस फिल्म में आपको बाइक चलाया है. स्कूवा डाइविंग की है तो यह आपके लिए कितना टफ था?
 मैं स्कूवा डाइविंग की सर्टिफाइड स्टूडेंट हूं और मैं फन लविंग हूं. एंडवेंचर करना पसंद हैं तो मुझे ये सब करने में काफी मजा आ रहा था, हां मैं बाइक चलाना नहीं जानती थी. मैं हाइट में कम हूं और मुझे बुलेट चलाने को दे दिया गया था इस फिल्म में. बुलेट के साथ परेशानी ये थी कि बुलेट चलती है तो काफी स्टेबल रहती है. लेकिन रुकती है तो गिर जाती है. तो उसे बैलेंस करने में तकलीफ आयी. लोगों को लग रहा था कि मैं नहीं कर पाऊंगी. मुझसे बाइक नहीं चलेगी. लेकिन मुझे लगता  है कि जो लोग छोटे होते हैं न उनके पास ज्यादा पॉवर होता है. तभी तो मैंने कर लिया. और इस फिल्म की वजह से मुझे बाइक से प्यार हो गया है और मेरा मन है कि मैं बाइक खरीदूं. खुद के लिए.

आशिकी 2 की सफलता पर आपके पिता की क्या प्रतिक्रिया थी. 
मेरे लिए यह फिल्म इस लिहाज से खास रही कि इसे मेरी सोलो पहली हिट फिल्म रही. लोग अब पहचानने लगे हैं. कार में जाओ तो लोग पहचानते हैं तो अच्छा लगता है कि लोग पहचान रहे हैं. अब अच्छे आॅफर आ रहे हैं. निर्देशकों का विश्वास बढ़ा है. मेरे डैड मुझसे ज्यादा खुश हैं कि मुझे आशिकी 2 से इतनी बड़ी सफलता मिली है. अपने पेरेंट्स को अपने प्राउड करूं. मैं यही चाहती थी. तो अच्छा लगता है. अब अलग तरह की फिल्में आॅफर हो रही हैं. मैं अपने पिता की एक खास बात हमेशा याद रखना चाहूंगी कि वह हमेशा मुझे कहते हैं कि मैं बहुत हार्ड वर्किंग हूं और वह मेरी बहुत कद्र करते हैं. मेरी छोटी छोटी सफलता से वह जिस तरह से खुश हो रहे हैं. मुझे अच्छा लगता है. डैड हमेशा कहते हैं कि मुझमें कहीं एक लड़का छुपा हुआ है. मतलब जो काम लड़के करते हैं. मैं वह सब आसानी से कर लेती हूं. उनके अनुसार मैं बहुत टफ लड़की हूं. बाहर के  लोगों को भले ही लगे कि मैं छुई मुई सी हूं मेरी फेस की वजह से लेकिन पापा जानते हंै कि मैं कितनी टफ लड़की हूं.वो मुझे क्रिटिसाइज नहीं करते. मेरी मासी( पदमिनी कोल्हापुरे) मुझे बताती हैं कि अगर मेरी एक्टिंग में कहीं कोई गलती या कमी हो तो. पापा कभी नहीं बताते.

बॉलीवुड में नये चेहरे काफी नजर आ रहे हैं. तो क्या लगता है आपको क्या यह सुनहरा मौका है आपके लिए?
जी हां, बिल्कुल. मुझे लगता है कि यंग बिग्रेड  का दौर आ चुका है. अभी लोगों को हमारे चेहरे देखने हैं. नये चेहरे देखने हैं. आॅडियंस का माइंडसेट बदला है. अब सिर्फ सुपरस्टार्स को नहीं देखना चाहते. मेरा मानना है कि नये चेहरों के माध्यम से अच्छी स्क्रिप्ट लोगों को दिखाये जा रहे हैं तो यह सबसे बेहतरीन दौर है मेरे लिए,. मुझे खुशी है कि भले ही इससे पहले मेरी दो फिल्में हिट नहीं हुई. लेकिन आशिकी 2 बिल्कुल सही समय पर हिट हुई है और मुझे इसके बाद बेहतरीन फिल्में मिल रही हैं.

आपकी आनेवाली फिल्में कौन कौन सी हैं?
 मैं हैदर और उंगली में खास किरदार निभा रही हूं और ये सभी किरदार एक दूसरे से जुदा हैं. इसलिए इन्हें लेकर बहुत उत्साहित हूं.

मैं और मेरे स्टार्स -


इस बार विश्वजीत और चंचल पूछ रहे हैं सिद्धार्थ मल्होत्रा से उनके पसंदीदा सवाल

विश्वजीत : आप कभी मॉडलिंग भी किया करते थे क्या?
सिद्धार्थ : नहीं मॉडलिंग नहीं करता था. मैंने करन जौहर को अस्टिट किया है फिल्म माइ नेम इज खान में
चंचल : फिल्म विलेन के बारे में कैसे सोचा कि आपको नेगेटिव किरदार करना चाहिए?
सिद्धार्थ : मैं लकी हूं कि मुझे अपनी तीसरी फिल्म में कुछ ऐसा किरदार निभाने का मौका मिला है जो कि बिल्कुल जुदा है. मैं इस बात से भी खुश हूं कि मोहित सूरी जो थोड़े अलग किस्म के निर्देशक हैं. उनके साथ काम करने का मौका मिल रहा है. मेरे मम्मी पापा भी हैरान हैं कि मैं इस तरह नजर आ सकता हूं क्या?
चंचल : आप अपने दोस्त आलिया और वरुण से मिलते रहते हैं या नहीं?
जी हां, बिल्कुल वे सभी मेरे क्लोज फ्रेंड्स हैं और हमारी कोशिश होती है कि हम मिलें. और फिल्मों के बारे में सबसे कम बातें करें. क्योंकि यह बेहद जरूरी है कि दोस्तों के साथ काम की बातें न हों.
चंचल : इंडस्ट्री में आपके परिवार से कोई भी है या नहीं
सिद्धार्थ : मेरे परिवार से दूर दूर तक कोई इस इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं हैं और इसलिए मुझे इस इंडस्ट्री को समझने में काफी वक्त लगा है.धीरे धीरे सीख रहा हूं.
चंचल : आप अपना मेंटर किसे मानते हैं?
सिद्धार्थ : करन जौहर को. उन्होंने मुझे पहला ब्रेक दिया और अब भी जरूरत होती है तो मैं ुउनको कॉल कर लेता हूं और वह मुझे काफी मदद करते हैं. मैं लकी हूं कि मुझे उनका साथ मिला है.

सफलता का एहसास


 कपिल शर्मा के  शो कॉमेडी नाइट्स विद कपिल के सितंबर में बंद होने की खबर लगातार मीडिया में छाई हुई है. लोगों को इस खबर पर विश्वास उस वक्त हुआ जब कपिल ने टिष्ट्वटर पर लिखा कि मैं सोच रहा हूं कि अपने शो को लेकर चैनल से बात करूं. और ब्रेक लूं. कपिल ने स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा था. लेकिन सबने ये अनुमान लगा लिया कि ये शो बंद हो जायेगा. कई लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि कपिल के दिमाग पर कामयाबी का भूत सवार हो गया है और चूंकि उन्हें फिल्म मिल गयी है. वह भी यशराज बैनर की. सो, वे अब अपना शो बंद कर रहे हैं. कई लोगों ने तूलना कर दी है  कि राजू श्रीवास्तव से लेकर हास्य की दुनिया के सारे दिग्गज बड़े परदे पर नाकामयाब रहे हैं. अगर कपिल अपना शो बंद करने का निर्णय ले रहे हैं तब भी यह एक उम्दा निर्णय है. चूंकि जिंदगी में संतुष्टि भी बेहद जरूरी है. वे जिस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं. वहां कई लोग बासी खीर परोस कर लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. ऐसे में कपिल को अगर ऐसा लग रहा कि उनके शो में अब ढलान आ रहा और वह एक अच्छे नोट के साथ शो को खत्म करना चाहते हैं तो कपिल की सराहना होनी चाहिए कि वे अपनी सफलता को संजोने में विश्वास कर रहे हैं. साथ ही अगर वह अन्य विधाओं में अपना हाथ आजमाना चाहते तो इस लिहाज से भी यह कपिल की सफलता है कि सफल होने के बाद भी वह अपने अंदर के कलाकार को शांत नहीं कर रहे. अगर वाकई कपिल संतुष्ट होते तो वह थम जाते और अक्सर व्यक्ति कंफर्ट जोन में जाकर थम जाता है. कपिल ने कॉमेडी सर्कस छोड़ कर अकेले यह सफर शुरू किया. कामयाब हुए. और अगर कपिल शो बंद नहीं करते और उसमें बदलाव के बारे में सोच रहे हैं तब भी यह दर्शाता है कि वह क्रियेटिव रूप से खुद को विकसित करते रहें. और यह सराहनीय है.

टिवटर पर रणबीर


 रणबीर कपूर उन चुनिंदा सुपरस्टार्स में से हैं, जो अब तक टिष्ट्वटर या किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट पर नहीं हैं. लेकिन खबर है कि अब उन्होंने भी इसमें दिलचस्पी दिखानी शुरू की है. वे अपने प्रिय दोस्त करन जौहर से हाल ही में इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि क्या उन्हें इस तरह के सोशल नेटवर्किंग साइट पर आना चाहिए या नहीं. रणबीर की इस दिलचस्पी की खास वजह यह है कि वे अपने और कैट के रिश्ते को लेकर हो रही बातों पर अपना टेक रखना चाहते हैं. हालांकि अब तक यह तय नहीं है कि रणबीर वाकई आयेंगे या नहीं. रणबीर अब तक कई बार इस बात को दोहराते रहे हैं कि उन्हें अपनी निजी जिंदगी में किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं.वे चाहते हैं कि जिस तरह दिलीप साहब ने खुद को मिस्ट्री बना कर रखा. वह भी रखें. लेकिन शायद धीरे धीरे वे भी इस बात को समझ चुके हैं कि वर्तमान में सोशल नेटवर्किंग साइट किस तरह जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. हालांकि अब तक कपूर परिवार से किसी ने भी यह अगुवाही नहीं की है. करीना, करिश्मा ने भी टिष्ट्वटर से दूरी ही बना कर रखी है. लेकिन हो सकता है कि धीरे धीरे वे भी ट्विटर पर आ जायें. रणबीर इस बात से तो वाकिफ हैं ही किस तरह टिष्ट्वटर के माध्यम से वह अपनी बात बिना किसी पीआर के सहारे, बिना किसी लाग लपेट के रख सकते हैं. रणबीर अगर टिष्ट्वटर पर आते भी हैं तो इतना तो तय है कि वह कभी अपने पल पल की खबर नहीं देंगे. अर्जुन कपूर ने भी कुछ दिनों पहले यही कहा था कि वह टिष्ट्वटर पर नहीं आयेंगे. लेकिन अब वह भी अपना मन बना रहे हैं. दरअसल, तकनीक के पीछे भाग रही इस दुनिया में ये युवा कलाकारों के मन में कहीं न कहीं यह लालसा जरूर होती होगी कि क्यों सोशल नेटवर्किंग साइट्स इतने पॉपुलर हैं. और क्यों इसके साथ कदम ताल जरूरी है.

बॉलीवुड में शादियां


 विद्या बालन  से हाल ही में मुलाकात हुई. विद्या ने फिल्मों के अलावा कई मुद्दों पर भी बातचीत की. विद्या ने बताया कि जब उनकी शादी हुई तो उन्हें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की थी कि अब उन्हें अपने माता पिता को छोड़ कर किसी और के साथ रहना होगा. वे कभी हॉस्टल में नहीं रहीं और शादी से पहले कभी बिना काम के वह कभी अपने माता पिता को छोड़ कर नहीं रहीं. तो शादी के बाद किसी के साथ रूम शेयर करना उन्हें यह सोच कर काफी चिंता थी. लेकिन शादी के बाद वे काफी खुश हैं कि उनके पति के साथ मिल कर वह न सिर्फ यह तय करती हैं कि आज घर में खाने में क्या बनेगा. बल्कि अब उनके पूरे दिन की प्लानिंग एक दूसरे से पूछ कर सामंजस्य से तय होती है. विद्या मानती हैं कि उन्हें शादी के बाद भी वह आजादी मिली है और इसलिए वे खुद को सुरक्षित मानती हैं. करीना कपूर खान ने शादी के बाद खुद में बस यही बदलाव किया है कि अब वह थोड़ा बहुत नॉन वेजीटेरियन खाना खाने लगी हैं. वरना, खाना पकाना उन्हें आज भी पसंद नहीं हैं. और वह सैफ के लिए कभी कुछ भी पकाने की कोशिश नहीं करती हैं. आमतौर पर यह अवधारणा है कि महिलाओं की जिंदगी शादी के बाद बदल जाती हैं और लड़कियां आजाद नहीं रह जातीं. लेकिन हिंदी सिनेमा की सुपरस्टार्स के ख्यालात बिल्कुल अलग हैं. वे शादी से खुश हैं. वे इत्तमिनान से हैं. लेकिन दूसरी तरफ फिल्म इंडस्ट्री में पुरुष वर्ग के लिए ही शादी एक बंधन की तरह है. हाल ही में एक निर्देशक ने स्वीकारा है कि उनके लिए शादी किसी कैद के समान थी और इसलिए उन्होंने शादी तोड़ दी. दरअसल, हकीकत यही है कि यह दोषारोपण करना कि केवल महिलाओं को स्वछंद होना पसंद है. ऐसा सही नहीं. दरअसल, आजादी हर किसी को चाहिए और हर किसी के लिए आजादी के मायने अलग हैं

श्रीलंका में सिनेमा


 फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप की बिग बजट फिल्म बांबे वेल्वेट की पूरी शूटिंग श्रीलंका में हुई हंै. खबर है कि यह अनुराग की ही नहीं बल्कि बॉलीवुड की भी बिग बजट फिल्मों में से एक है. इसकी वजह यह है कि इस फिल्म में मुंबई का पुराना स्वरूप फिर से क्रियेट किया गया है. अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीस फिल्म किक के माध्यम से फिर से चर्चा में हैं. और जब भी जैकलीन की बात होती है तो श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री की भी चर्चा हो जाती है. खुद जैकलीन ने कभी श्रीलंका की फिल्म इंडस्ट्री पर खास बातचीत नहीं की है. श्रीलंका भारत के रिश्ते पर मद्रास कैफे जैसी भी महत्वपूर्ण फिल्म बनी.कुछ सालों पहले वहां आइफा अवार्ड समारोह हुआ था. मसलन बॉलीवुड का इंटरनेशनल अवार्ड. इन सभी श्रीलंका कनेक् शन से आम लोग यह अनुमान लगा सकते हैं कि शायद श्रीलंका में सिनेमा को लेकर बहुत जिज्ञासा है.लोग वहां बेहद सजग हैं. मैं भी कुछ ऐसा ही सोचती थी. लेकिन हाल ही में डियर सिनेमा डॉट कॉम पर नंदिता दत्ता का एक चौकानेवाला आलेख पढ़ा. श्रीलंका में सिनेमा को लेकर वही स्थिति है, जो भारत में स्थानीय भाषाओं( मराठी, बांग्ला, पंजाबी अपवाद हैं) की फिल्मों को लेकर है. इस आलेख से यह जानकारी मिलती है कि किस तरह वहां 2009 के सिविल वार के खत्म होने के बावजूद वहां सिनेमा थियेटर की संख्या नहीं बढ़ पायी है. जिस तरह यहां स्थानीय फिल्मों को रिलीज में तकलीफ होती है. वहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. यहां भी स्थानीय फिल्मों को लेकर अब तक सही तरीके से कोई फिल्म पॉलिसी नहीं बन पायी है. श्रीलंका में भी कमोबेश वही स्थिति है. यहां हर वर्ष केवल 20 फिल्में ही बन पा रही हैं. यहां फिल्मों की रिलीज के लिए भारत की तरह कोई बड़े प्रोडक् शन या कॉरपोरेट हाउस नहीं आते. यह बेहद निराशाजनक है.

द वर्ल्ड बिफोर हर


अनुराग कश्यप ने एक फिल्म को प्रेजेंट किया है. द वर्ल्ड बिफोर हर. यह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है.  इस फिल्म में उन हर तबके की महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने कुछ नया करने का साहस किया और हमेशा दुनिया उनके आड़े आयी. इसमें मिस इंडिया रह चुकीं पूजा चोपड़ा की मां की कहानी, एक कोठे का धंधा करनेवाली महिला की कहानी जो कि खुद भी शिक्षित होना चाहती हैं और अपने साथ काम कर रहीं तमाम लड़कियों को भी शिक्षित होने की प्रेरणा देती हैं. वे लड़कियां, जिन्हें हम ब्यूटी पेंजेंट में देखते हैं. उन्हें भी किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. इस फिल्म के माध्यम से वाकई पहली बार किसी निर्देशिका ने कुछ ऐसी सच्चाईयों को लोगों के सामने लाने की कोशिश की है, जिसे देख कर शायद हम यह अनुमान लगा पायें कि किस तरह ब्यूटी पेंजेंट में हिस्सा लेने वाली लड़कियों को हम ग्लैमरस लुक में देखते हैं. लगभग 20 लड़कियों को बड़े मौके भी मिलते हैं. लेकिन बाकी सारी लड़कियां किस प्रताड़ना और सामाजिक दबाव से अपने भविष्य में गुजरती हैं. इनके अलावा दुर्गा वाहिनी किस गु्रप किस तरह महिलाओं की मिल्ट्री टीम तैयार कर रही हैं. निर्देशिका निशा पाहुजा ने इसे बखूबी इस फिल्म के माध्यम से दर्शाया है. अभिनेत्री पूजा चोपड़ा की मां ने किन परेशानियों से जूझ कर पूजा को पहचान दिलायी. पूजा चोपड़ा की मां की कहानी भी इस डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा है. दरअसल, निशा ने एक साथ भारत की उन तमाम महिलाओं की जिंदगी को महसूस करने की कोशिश की है, जिनके लिए वाकई जिंदगी आसान नहीं हैं और वे लगातार खुद को साबित करने की कोशिश में जुटी हुई हैं. भारत की असली तसवीर यही है. सतही तौर पर जो हम देखते हैं या सोचते हैं, वह अर्ध सत्य है. महिलाओं की जिंदगी में संघर्ष की मात्रा जितनी ज्यादा है. उतना ही उनके पास जज्बा और जूनून है.

कपूर खानदान की स्तंभ


हाल ही में अरमान जैन की फिल्म लेकर हम दीवाना दिल के म्यूजिक लांच में समस्त कपूर खानदान उपस्थित हुए. वजह थी कि राज कपूर की बेटी रीमा जैन के बेटे अरमान जैन की लेकर हम दीवाना दिल फिल्म से लांचिंग हो रही है. इस समारोह की खास बात यह थी कि इस समारोह में कृष्णा राज कपूर ने भी शिरकत की. आमतौर पर कृष्णा ऐसे समारोह में जाना पसंद नहीं करतीं. सो, उनका समारोह में होना समारोह की रौनक बढ़ा रहा था. कृष्णा किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थीं. शायद वह अगर फिल्मों में अभिनेत्री के रूप में आना चाहतीं तो वे उस जमाने की तमाम अभिनेत्रियों में खास स्थान बना लेतीं. वह इस समारोह में बेहद सादगी से शामिल हुईं, लेकिन उनके चेहरे की चमक आज भी बरकरार है. खास बात यह थी कि कपूर खानदान का हर शख्स उनका खास ख्याल रख रहा था. इससे यह प्रतीत होता है कि आज भी यह परिवार भले ही अलग अलग अपनी पीढ़ियों के साथ अलग जीवनशैली जी रहा है. लेकिन कृष्णा राज कपूर वह सूत्र हैं, जो पूरे परिवार को बांध रखने में आज भी कामयाब हैं. रणबीर अपनी दादी से बेहद प्यार करते हैं और उनसे मिलने जाते रहते हैं. दादी के हाथों का जंगली मटन उन्हें बेहद पसंद है. करीना हमेशा यह बात कहती हंै कि उनकी दादी कहती हैं कि हर दिन कम से कम एक चम्मच घी जरूर खाना चाहिए. अरमान भी यह बात दोहराते नजर आये. दरअसल, यह हकीकत भी है कि परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखने की जिम्मेदारी घर की पुरानी पीढ़ी ही कर सकती हैं. चूंकि जैसे जैसे पीढ़ियां बढ़ती हैं और बदलती हैं. उनमें दरारें भी आती हैं. मुश्किलें भी आती हैं. ऐसे में हर बुजुर्ग की जिम्मेदारी है कि वह कैसे परिवार को एक परिवार का दर्जा देने में कामयाब हो सकें. कृष्णा राजकपूर कपूर खानदान की मजबूत स्तंभ हैं.

कास्टिंग स्टूडियो की शुरुआत


मुकेश छाबड़ा कास्टिंग निर्देशक हैं. और उन्होंने अपने एक नये वेंचर की शुरुआत की है. मुकेश छाबड़ा कास्टिंग स्टूडियो शुरू किया है. यह बॉलीवुड में अपने तरीके का पहला ऐसा स्टूडियो है. जहां एक्टर्स जब आॅडिशन के लिए आयेंगे तो उन्हें क्रियेटिव स्पेस दिया जायेगा. आमतौर पर अब भी बॉलीवुड में कास्टिंग प्रोडक् शन हाउस के आॅफिस में किये जाते हैं. लेकिन मुकेश मानते हैं कि कई नये कलाकार यह मान बैठते हैं कि किसी कास्टिंग निर्देशक से मिलना एक कठिन काम है और वह पहुंच से बाहर होते हैं. इसलिए उन्होंने कास्टिंग स्टूडियो की परिकल्पना की है, ताकि वहां स्टार्स आये और वह सही तरीके से कास्टिंग की प्रक्रिया में शामिल हों. इस स्टूडियो में आॅडिशन के लिए सारे उपक्रम  हैं, जो आॅडिशन के लिए जरूरी होते हैं. साथ ही उन्हें माहौल भी दिया जायेगा. इस स्टूडियो में वे एक्टिंग के वर्कशॉप भी आयोजित करें. निस्संदेह कास्टिंग हिंदी सिनेमा में वर्तमान दौर का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है. यह कास्टिंग का ही कमाल है कि अब भारत के किसी गांव कस्बे से आये प्रतिभाओं को भी बड़े मौके मिल रहे हैं और उन्हें पहचान मिल रही है. ऐसे में कास्टिंग को यह स्वरूप देना काबिलेतारीफ है. चूंकि हिंदी सिनेमा को ऐसे प्रोफेशनल्स की सख्त जरूरत है, जो सिनेमा को बेहतरीन एक्टर्स दे पायें. नये कलाकार दे पाये. ऐसे में यह मुकेश की यह सोच सराहनीय है. चूंकि वर्तमान दौर में अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं और यही वह दौर है जब सिटीलाइट्स जैसी फिल्में भी दर्शकों तक पहुंच पा रही है. स्टारविहीन फिल्मों के लिए कास्टिंग निर्देशक की बहुत जरूरत है. चूंकि इन दिनों छोटे किरदार भी अहम किरदार निभा जाते हैं. सो, कास्टिंग निर्देशन को भी एक प्रयोगात्मक और व्यवहारिक सोच देना बेहद अनिवार्य है और यह बॉलीवुड के विकास का ही संकेत है.

आॅटोबायोग्राफी का सच


हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार अध्याय हैं. और इस अध्याय की गाथा कहनी इतना आसान नहीं था. शायद यही वजह है कि पिछले कई सालों से दिलीप साहब की पत् नी सायरा बानो इस अध्याय को सहेजने की कोशिश कर रही थी. सोमवार को सायरा बानो ने दिलीप साहब की आॅटो बायोग्राफी की लांचिंग की. हिंदी सिनेमा में यह लांचिंग याद रखी जायेगी. चूंकि सायरा ने इसे भव्य तरीके से लांच किया. सायरा का मानना है कि दिलीप साहब की जिंदगी में ऐसे कई हिस्से थे, जो अब तक उन पर जितनी भी बायोग्राफी लिखी गयी है. उसमें तथ्य के रूप में शामिल नहीं किये गये हैं. इसलिए उन्हें महसूस हुआ कि उन पर तथ्यपूर्ण बायोग्राफी लिखी जाये. हाल ही में प्रेम चोपड़ा की बेटी ने प्रेम चोपड़ा की आॅटो बायोग्राफी की लांचिंग की. प्रेम चोपड़ा का दावा है कि उन्होंने इस बायोग्राफी में जितनी भी बातें की हैं. वह सच है. कई सालों पहले देव आनंद ने अपनी आॅटो बायोग्राफी की लांचिंग पर मीडिया को आमंत्रित किया था. उन्होंने इसकी लांचिंग केतनव में की थी. उन्होंने मीडिया से लंबी बातचीत की थी. लगभग 4-5 घंटे तक वह सेसन चला. देव आनंद का मानना था कि अगर आप आॅटोबायोग्राफी लिख रहे हैं. इसका मतलब है आप अपनी जिंदगी की किताब खोल रहे हैं तो फिर जिसे जो भी पूछना है. पूछें. और वह जवाब देने से भी नहीं कतराये. उस लांचिंग में जो भी पत्रकार शामिल हुए थे.वे स्वीकारते हैं कि देव आनंद जो थे, किताब में वही स्वभाविकता नजर आती है. उन्होंने कभी खुद को विशेष बनने के लिए छुप छुपाई का खेल नहीं खेला.सो, पूरी निष्ठता से सच लोगों के सामने आना चाहिए. लेकिन हकीकत यही है कि अब भी कई सितारें हैं, जो खुद की बनी बनाई इमेज से इतर होकर ईमानदार कोशिश के साथ आॅटो बायोग्राफी नहीं लिखना चाहते.

डिब्बा बंद फिल्मों के कलाकार

 आमिर खान ने हाल ही में अपनी फिल्म chale chalo ko एक एंटरटेनमेंट चैनल पर रिलीज किया. आमिर खान की यह एकमात्र फिल्म थी, जो रिलीज नहीं हो पायी थी.जाहिर सी बात है इस बात का आमिर को बेहद अफसोस रहा होगा. चूंकि आमिर अब सुपरस्टार हैं. सो, उनके लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं रहा होगा. बल्कि खुद चैनल आमिर से इस फिल्म को रिलीज करने की गुजारिश लेकर आये होंगे. लेकिन हिंदी सिनेमा में ऐसे कई कलाकार हैं, जिन्हें अपनी पहली फिल्म की रिलीज न हो पाने की वजह से कभी लांच होने का मौका ही नहीं मिल पाया. याद हो कि अनुराग कश्यप की पहली फिल्म पांच बनी थी. लेकिन अनुराग उस वक्त फिल्म को रिलीज नहीं करा पाये. उस वक्त पीवीआर रेयर जैसे विकल्प भी मौजूद नहीं थे. हो सकता है कि अब अनुराग शायद ब्रांड बन चुके हैं तो वे इस बारे में कभी सोचें. या भी न भी सोचें. लेकिन इस फिल्म से सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी का हुआ तो वह तेजीस्वनी कोल्हापुरे का. इस फिल्म की वजह से उन्हें डिब्बा बंद अभिनेत्री कहा जाने लगा और किसी भी निर्माता ने उन्हें लांच करने के बारे में नहीं सोचा. उस लिहाज से वर्तमान दौर बेहद अच्छा है. चूंकि अब कलाकारों की पहली फिल्म रिलीज हो न हो. उनके पास खुद को प्रोमोट करने के कई विकल्प हैं. किसी दौर में विद्या बालन को भी मनहूस अभिनेत्री के टैग से नवाजा गया था. लेकिन फिर भी विद्या उस चंगूल से बाहर आयीं. लेकिन यह अपवाद ही हैं. वरना कुछ सालों पहले किसी अभिनेत्री या अभिनेता के लिए यह बेहद कठिन काम था. गोविंदा की बेटी नर्मदा पिछले लंबे समय से लांच होने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन अब तक उनके सिर पर किसी ने हाथ नहीं फेरा है और न उनके पीठ पर खड़े होने के लिए हामी भरी है. फिल्म इंडस्ट्री के इस चेहरे से वाकिफ होना भी बेहद जरूरी है.

आशुतोष ऋतिक की जोड़ी


 आखिरकार आशुतोष ग्वारिकर ने घोषणा कर दी है कि बहुत जल्द वे अपनी फिल्म मोहनजोदड़ो की शूटिंग शुरू करने जा रहे हैं. ऋतिक रोशन फिल्म में लीड किरदार निभा रहे हैं. गौरतलब है कि इससे पहले ऋतिक रोशन ने करन जौहर की फिल्म शुद्धि को करने इनकार कर दिया है. लेकिन मोहनजोदाड़ो के लिए उन्होंने पूरी स्वीकृति दे दी है. पिछले कई सालों से ये कयास लगाये जा रहे थे कि संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी में ऋतिक रोशन मुख्य भूमिका निभायेंगे. लेकिन ऋतिक ने उस फिल्म से भी अपने पांव खींच लिये. स्पष्ट है कि ऋतिक रोशन के अंदर जो अभिनेता हैं, उसमें एक कुलबुलाहट है कि वे पीरियड फिल्म में मुख्य अभिनय करें. चूंकि खुद ऋतिक भी इस बात से अवगत हैं कि फिल्म जोधा अकबर से उन्हें दर्शकों का भरपूर प्यार मिला था. और वे ऐसी भूमिकाएं निभाने में सार्थक भी नजर आते हैं. सो, ऋतिक की यह हार्दिक इच्छा होगी कि वे ऐसे किरदार निभायें. सो, वह एक के बाद एक फिल्में छोड़ भी रहे हैं. लेकिन आखिरकार मोहनजोदड़ो पर आकर वे ठहरे हैं. और उनका यह निर्णय वाकई फिर से एक नया अध्याय जोड़ेगा. आशुतोष इस तरह की फिल्में बनाने में माहिर हैं. उन्होंने लगान और जोधा अकबर जैसी सार्थक फिल्में देकर यह साबित कर दिया था कि योद्धाओं वाली फिल्में और भीड़ संयोजन वाली फिल्में बनाना हर किसी के वश की बात नहीं है. आशुतोष मेहनत करते हैं और वे चुनिंदा दौर में ईमानदार निर्देशकों में से एक हैं, जो भारत की फिल्में बनाने में यकीन रखते हैं. कभी उनकी परिकल्पना में भगवान बुद्ध भी थे. मोहनजोदड़ो पर वह कई वर्षों से काम कर रहे हैं और अंतत: उनकी मेहनत रंग ला रही है. आशुतोष की खासियत रही है कि वे प्रेम पीरियड फिल्मों में भी प्रेम कहानी को अहमियत देते हैं और उनका यही अंदाज उन्हें औरों से जुदा बनाता है.

बिंदास सोच की अभिनेत्रियां

हाल ही में सनी लियॉन से बातचीत हुई. उनकी एक छवि है। जिसके बारे में लोग जानते हैं. और केवल उन्हीं बातों की चर्चा करते हैं। सनी खुद जानती हैं कि उनकी उसी छवि के कारण फिलवक्त उन्हें काम मिल रहा है।  लेकिन वह इससे विपरीत अपनी छवि को सुधारने की न सिर्फ कोशिश कर रही हैं।  बल्कि वह अभिनय को भी गंभीरता से ले रही हैं. उन्होंने अपनी हिंदी भाषा पर परिश्रम किया और वे इसमें सफल भी दिख रही हैं।  सनी की एक खास बात जो और आपको प्रभावित करेंगी कि वह अपने जवाब में पोलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश नहीं करती हैं।  सिर्फ सनी ही नहीं , हिंदी मूल से ताल्लुक न रखने वाली उन हर अभिनेत्रियों में यह बात सामान्य है कि वे सभी दिल खोल कर बातें करती हैं। हर मुद्दे पे बात करती हैं।  वे किसी भी सवाल पर भड़कती नहीं हैं।  इससे पहले नर्गिस फाकरी से भी कई बार मुलाकात होती रही हैं. वे जिस तरह बिंदास दोस्तों की तरह बात करती हैं वह उन्हें ख़ास होते हुए भी हमारे बीच का बना देता है। विदेशी मूल की ही जिसेल से भी बातचीत करने के बाद यही महसूस किया कि वे अपनी इमेज को लेकर बहुत ज्यादा परेशान नहीं रहतीं। हिंदी सिनेमा की किसी  अभिनेत्री से अगर फिल्म से इतर कोई प्रश्न पूछा जाये तो वह नाराज हो जाती हैं और वे सवालों का सही तरीके से जवाब नहीं देती।  चूंकि हकीकत भी यही है कि भारत में एक अभिनेता या अभिनेत्री  के चरित्र के आधार पर ही उनकी प्रतिभा को भी आंका जाता है। इसलिए हर कलाकार इस बात से डरता है कि उसकी नकारात्मक बातें लोगों के सामने न आये। इन दिनों स्टार्स अपने पीआर का पूरा सहारा लेते हैं ताकि अगर उनके बारे में कोई बात लोगों के सामने आ भी जाती है तो वह कोशिश करते हैं कि उसे सुधारा जा सके।  चूंकि उसी आधार पर उन्हें फिल्में भी मिलती हैं। लेकिन यहाँ के कलाकारों को विदेशी मूल की अभिनेत्रियों से जरूर सीख लेनी चाहिए। उनका बिंदासपन हमें लुभा जाता है और उनकी इमेज भी हमारे सामने अच्छी और ईमानदार बन जाती है. जबकि जो दिखावटी बातें करते हैं उनके बारे में हम गलत अवधारणा ही बनाते हैं। आज जिस तरह रियल फिल्में आ रही हैं यह जरूरी है कि अभिनेता भी अपनी वास्तविक छवि प्रस्तुत करें

जैकी चैन से मिली सीख


निर्देशक नीतिन चंद्रा के फेसबुक वॉल पर एक वीडियो देखा. वीडियो में कमल हसन अपनी किसी फिल्म का म्यूजिक लांच कर रहे हैं. उस म्यूजिक लांच के दौरान अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी व कई नामचीन हस्तियां शामिल थीं. ऐशिया के सबसे लोकप्रिय सुपरस्टार जैकी चैन इस लांचिंग के मुख्य अतिथि थे. उस वीडियो में जैकी चैन चंद मिनटों में ही काफी अच्छी बात सीखा गये हैं, जो उनके पूरे व्यक्तित्व का वर्णन कर देती है. आमतौर पर किसी समारोह में शायद  ही हमारा ध्यान इन बातों पर जाता है.जैकी चैन वहां गंदगी को साफ करते हैं. और इसमें उन्हें कोई शर्म नहीं आती. अमिताभ बच्चन व हेमा मालिनी भी जैकी का यह अंदाज देख कर हतप्रभ रह जाते हंै. दरअसल, हकीकत यही है कि जैकी चैन उन सुपरस्टार में से एक हैं, जो अपनी लोकप्रियता और अपने स्टारडम को अपनी जिंदगी पर हावी नहीं होने देते. वे जिस तरह अपने घर पर होते हैं. वैसे ही वह बाहर भी होते हैं. उनके लिए सफाई रखना उनका स्वभाव है. जबकि भारत में हम किसी सुपरस्टार को यह करते देख ही नहीं सकते. चूंकि यहां सेलिब्रिटीज का पूरा ध्यान उनकी लिपस्टिक और उनके कपड़ों पर  होता है. वे इन बातों का ख्याल अधिक रखते हैं कि उनकी तसवीरें कैमरे में किस तरह आ रही होगी. न कि यह कि ये छोटी छोटी बातें भी उन्हें कितनी खास बना सकती है. जैकी चैन ने अपनी जिंदगी में कुछ उसूल बना कर रखे हैं और वे उसका निर्वाह भी करते हैं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शायद अगर उनकी तरह लोग  उसूल बना कर चलें. तो उन्हें आउटडेटेड व्यक्ति की संज्ञा दी जायेगी. लेकिन चैन के लिए इसमें कोई शर्म की बात नहीं, शायद यही वजह है कि उनके बाकी गुणों के साथ साथ उन्हें लोगों से जुदा बनाती हैं. चूंकि वे मानते हैं कि व्यक्ति का अच्छा व्यक्ति होना सबसे अहम है. और वे इस पर खरे भी उतरते हैं.

नये सितारों का आगमन


सलमान खान जल्द ही वैभव आनंद, अली मुराद और रिंगजिंग डेंजोंग्पा को एक फिल्म से लांच करने जा रहे हैं. वैभव आनंद विजय आनंद के बेटे हैं. रिंगजिंग डैनी के बेटे हैं और अली मुराद रजा मुराद के बेटे हैं. रजा मुराद की यह तीसरी पीढ़ी होगी जो फिल्मों में सक्रिय होगी. चूंकि रजा मुराद के पिता मुराद भी हिंदी फिल्मों में काफी सक्रिय रहे. उन्होंने कई ुफिल्मों में जज और पुलिस आॅफिस की भूमिकाएं निभाई हैं. मुराद कभी लीड किरदारों में नजर नहीं आये थे. रजा मुराद की भी कभी यह मनसा नहीं रही कि वह फिल्मों में मुख्य किरदार में नजर आये. लेकिन उन्होंने नकारात्मक किरदारों के माध्यम से अपनी पहचान बना ली. यह पहली बार होगा कि तीन पीढ़ियों में उनके बेटे को लीड किरदार निभाने का मौका मिल रहा है. सलमान खान बॉलीवुड के लांचिंग पैड रहे हैं. हाल ही में उन्होंने कमाल अमरोही के पोते बिलाल को भी लांच किया, हर साल सलमान नयी अभिनेत्रियों को मौके देते हैं और नये एक्टर्स को भी. सलमान की पारखी नजर पर गौर करें तो वे अभिनेत्रियां फिल्मी बैकग्राउंड से इतर तलाशते हैं. सोनाक्षी व अथिया अपवाद हैं. वही नवोदित अभिनेताओं में वे अपने जिगरी दोस्तों के बेटे व पोतों को मौके देते हैं. यह वाकई दिलचस्प फिल्म होगी, जब हम तीन स्थापित कलाकारों के बच्चों को एक साथ एक ही फिल्म से लांच होते देखेंगे. डैनी बॉलीवुड की बड़ी हस्तियों में से एक हैं. लेकिन डैनी और रजा मुराद जैसे स्थापित कलाकार भी यह बात जानते हैं कि उनके बच्चों की लांचिंग इंडस्ट्री में करना इतना आसान नहीं. चूंकि अब सिर्फ पैसों से लांचिंग नहीं होती. नाम से होती है और सलमान एक बड़े नाम हैं. सलमान इसी बहाने ही सही लेकिन बॉलीवुड में नये कलाकारों को लाकर योगदान ही दे रहे हैं. लांचिंग के बाद खुद को निखारना यह तो कलाकारों की मेहनत पर निर्भर करता है

अकबर बनाम अकबर


जीटीवी पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक जोधा अकबर में अकबर के रुमानी स्वभाव को परिभाषित किया जा रहा है. इस धारावाहिक के माध्यम से दर्शकों को अकबर के सौम्य स्वभाव की जानकारी मिलती है. तो वही दूसरी तरफ चैनल बदलते ही रुमानी अकबर अचानक कुरुर व्यवहार धारण कर लेते हैं. सोनी टीवी पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक महाराणा प्रताप में चूंकि महाराणा प्रताप नायक हैं. इसलिए अकबर खलनायक की भूमिका में हैं. इस धारावाहिक में अकबर एक शासक के रूप में दर्शकों के सामने अवतरित हो रहे हैं. वही फिर से चैनल बदलते हुए आपकी नजर जब बिग मैजिक पर जाती है तो आप अकबर को देखते ही मुस्कुराने लगते हैं. चूंकि धारावाहिक अकबर बीरबल में वे अकबर का चुटीला अंदाज दर्शकों के सामने आता है. यह स्पष्ट है कि तीनों ही धारावाहिक में दिखाये जा रहे अकबर की छवि पूरी तरह से वास्तविक अकबर की छवि से मेल नहीं खाती. आप तीनों में से किसी भी धारावाहिक के आधार पर अकबर के स्वभाव की कल्पना नहीं कर सकते. लेकिन इतना स्पष्ट जरूर है कि आज भी अकबर प्रासंगिक हैं. और दर्शक उनके बारे में देखना सुनना पसंद करते हैं. फिर चाहे वह शासक के रूप में हो, कॉमेडियन के रूप में हो या प्रेमी के रूप में. दरअसल, हकीकत भी यह है कि हर व्यक्ति की तरह अकबर भी एक स्वभाव वाले शासक नहीं थे. फिल्में मुगलएआजम और जोधा अकबर में भी हम अकबर के दो भिन्न रूप देख चुके हैं. जहां एक तरफ अकबर जोधा के प्रेम में पागल हैं तो दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के अकबर इस बात की तैयारी में जुटे हैं कि किस तरह उन्हें पूरे हिंदुस्तान पर राज करना है. वाकई किसी एक व्यक्ति के विभिन्न स्वरूप देखना दिलचस्प है. अकबर उन नायकों की तरह ही हैं, जिनमें कई विभिन्नताएं होती हैं. 

भोजपुरी कलाकारों का सम्मान

कुछ दिनों पहले एक  मल्टीस्टारर फिल्म की शूटिंग के सेट पर गयी. वहां उस फिल्म के आयटम सांग की शूटिंग चल रही थी. इस गाने में कई आयटम गर्ल नजर आनेवाली हैं और उनमें भोजपुरी सिनेमा की भी दो अभिनेत्रियां नजर आयेंगी. फिल्म में सुपरस्टार हैं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री या कलाकार की क्या इज्जत है. इसका सजीव चित्रण उस दिन नजर आया. ब्रेक के दौरान वह सुपरस्टार अपनी वैनिटी वैन में जाने लगे और उनके सामने से वे दो अभिनेत्रियां गुजरीं जिन्हें इस बात का गुमान है कि वे बेहद लोकप्रिय हैं. उस सुपरस्टार ने उनका खिल्ली उड़ाते हुए कुछ बातें कही. वहां खड़े सेक्योरिटी गार्ड ने भी बातों बातों में बताया कि किस तरह वैनिटी वैन को खड़े रखने के लिए भी स्टारडम का ख्याल रखा जाता है. एक सुपरस्टार की वैनिटी वैन हमेशा शूटिंग स्थल से नजदीक रखी जायेगी. ताकि उसे ज्यादा चलना न हो और वे स्टार्स जो छोटे किरदारों में होते हैं उनके वैनिटी वैन कोसो दूर लगाये जाते हैं. कुछ दिनों पहले ही भोजपुरी के जाने माने स्टार से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे मुंबई के सबसे महंगे इलाके में आलिशान फ्लैट में रहते हैं. लेकिन आस पास के लोग उनका मजाक बनाते हैं और उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं. चूंकि वह भोजपुरी सिनेमा का हिस्सा हैं. दरअसल, इन दो अलग अलग घटनाओं से यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि भोजुपरी सिनेमा की क्या छवि है. भले ही भोजपुरी सिनेमा के कलाकार इस भ्रम में रहें कि वे सुपरस्टार हैं. लेकिन उन्हें वह सम्मान हासिल नहीं जो किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा के कलाकारों को हासिल है. इसकी बड़ी वजह है कि भोजपुरी सिनेमा जगत में स्तरीय फिल्में नहीं बन रहीं. सो, लोगों ने भोजपुरी सिनेमा का ही सम्मान करना छोड़ दिया है. सो, यह बेहद जरूरी है कि भोजपुरी सिनेमा की स्थिति सुधरे.