हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए वर्ष 1935 में एक कानून तय किया गया था, जिसके अंतगर्त महिलाएं फिल्मों में बतौर मेकअप आर्टिस्ट काम नहीं करेंगी. उन्हें हेयर स्टाइलिस्ट, हेयर डिजाइनर का काम मिलेगा. लेकिन वे मेकअप आर्टिस्ट नहीं बन सकती. सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून से प्रतिबंध हटा दिया है. यह कमाल चारु खुराना का है. चारु मेकअप आर्टिस्ट हैं. लेकिन उन्हें बॉलीवुड में मेकअप के मौके ही नहीं मिलते थे. उन्होंने इस पर तब बवाल खड़ा किया जब उन्हें मेकअप आर्टिस्ट की बजाय हेयर ड्रेसर का लाइसेंस मिला और उनके द्वारा उठाये गये इस कदम का नतीजा आज सामने है. वाकई चारु ने एक ठोस कदम उठाया है. यह वाकई एक अहम कदम था. यह मान्यता कि लड़कियां अच्छा मेकअप नहीं कर सकतीं. सरासर गलत है. ऐसी कई लड़कियां हैं, जो वर्तमान में इसे ही करियर बनाना चाहती हैं. लेकिन बॉलीवुड उनके लिए जहां एक बेहतरीन विकल्प था. उनके पास काम करने के मौके ही नहीं थे. 1935 में किन कारणों से ऐसा कानून बना. इसकी ठोस जानकारी नहीं. लेकिन निश्चित तौर पर यह स्त्री विरोधी कानून है. चूंकि इससे एक महिला को जीविकोपार्जन व साथ ही साथ अपनी क्रियेटिविटी दिखाने के विकल्प से दूर रखा जा रहा था. अभिनेत्री व अभिनेताओं को खूबसूरत बनाने में मेकअप आर्टिस्ट की अहम भूमिका होती है और निश्चित तौर पर इस पर किसी का भी विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए. यह मानसिकता गलत है कि महिलाएं अच्छा मेकअप नहीं कर सकतीं. महिलाओं और मेकअप का रिश्ता तो सदियों पुराना है. महिलाएं सजाना संवारना बखूबी कर सकती हैं. पूनम ढिल्लन ने सबसे पहले भारत में वैनिटी वैन के व्यवसाय की शुरुआत की, क्योंकि वह मेकअप के संदर्भ में महिलाओं की जरूरत से अवगत थीं. चारु खुराना की जीत संपूर्ण महिला वर्ग की जीत है. उन्हें बधाई
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