20141203

ंहम आपके हैं कौन और हमारा परिवार

फिल्म हम आपके हैं कौन 20 साल पुरानी हो गयी( हाल ही में इस फिल्म ने अपने 20 साल पूरे किये) लेकिन आज भी यह फिल्म पुरानी नहीं लगती. आज भी हिंदी सिनेमा के दर्शकों में जिस शिद्दत से यह फिल्म जिंदा और तरोताजा है. शायद ही ऐसा प्रभाव हिंदी सिनेमा की अन्य पारिवारिक फिल्में स्थापित कर पायीं. इस फिल्म ने न सिर्फ परिवारों में प्रेम बढ़ाया, बल्कि उन रिश्तों को भी जिन्हें आमतौर पर हम याद नहीं रखते मसलन मामा, मौसी, चाचा चाची जैसे रिश्तों की भी अहमियत बढ़ाई है. इस फिल्म ने रश्मों रिवाजों को जिस अंदाज में बड़े परदे पर जीवंत रखा है. वह आज भी बरकरार है. इस फिल्म ने समाज को परिवार की नयी परिभाषा दी है. फिल्म के 20 साल पूरे होने के बहाने अनुप्रिया अनंत बता रही हैं कि किस तरह पारिवारिक मूल्यों का झरोखा दिखाती है यह फिल्म और क्यों आज भी पुरानी नहीं हुई हम आपके हैं कौन

 फिल्म में बड़ी बेटी पूजा की विदाई हो रही है...और बैकग्राउंड में गीत सुनाई दे रहा...बाबूल जो तुम्हे सिखाया... विदाई वहां पूजा की हो रही. और थियेटर में बैठे सभी दर्शक रो रहे हैं. दरअसल, आज भी यह फिल्म दर्शकों के दिलों में इसलिए जिंदा है, कि इस फिल्म में परिवार का हर सदस्य महत्वपूर्ण नजर आता है. परिवार रिश्तों से ही बनता है. इस बात को यह फिल्म सार्थक करती है. हिंदी सिनेमा में जिस तरह इस फिल्म में शादी की एक एक रस्मों को दर्शाया गया है. इससे पहले किसी अन्य फिल्म में इसे खूबसूरती से दर्शाया गया हो.
निस्संदेह यह फिल्म गोविंद मुनिस की फिल्म नदिया के पार का रीमेक थी. लेकिन निर्देशक सूरज बड़जात्या ने फिल्म की मूल कहानी के अलावा फिल्म में अपना एक नजरिया प्रस्तुत किया. सूरज खुद पारिवारिक व्यक्ति हैं. हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री के ग्लैमराइज होने के बावजूद सूरज अब भी इससे अछूते हैं. वे आज भी परिवार नामक संस्थान में विश्वास रखते हैं. हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में वर्तमान में शायद बड़जात्या परिवार ही एकमात्र ऐसा परिवार है, जहां परिवार में अपने चचरे भाई बहन सभी अब भी एक ही छत के नीचे हैं. और सभी मिल कर काम कर रहे हैं. सूरज की यही सोच है, जिसका परिणाम हम आपके हैं कौन के रूप में दर्शकों के सामने आया. और दर्शकों में परिवार की एकजुटता को लेकर सोच सकारात्मक हुई.
तिलक समेत तमाम रस्में
फिल्म की शुरुआत में ही पूजा और राजेश के  रिश्ते की बात चलती है. दुल्हा दुल्हन को छोड़ कर बाकी सभी को यह जानकारी होती है कि दोनों परिवार एक दूसरे का व्याह करना चाहते हैं. दोनों एक दूसरे से मंदिर में मिलते हंै. आमतौर पर भी आज भी कई परिवारों में लड़का लड़की पहली बार एक दूसरे से मंदिर में ही मिलते हैं और वही दोनों परिवार एक होते हैं. फिल्म में सगाई के रस्म पर बेहतरीन गीत का फिल्मांकन किया गया है. इसी फिल्म के बाद सगाई के मौके को भी भारतीय परिवार के लोगों ने खास मौके की तरह सेलिब्रेट करना शुरू किया. झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश में वधू पक्ष के लोगों की तरफ से वर पक्ष का तिलक किये जाने कीर रस्म वर्षों से चली आ रही थी. लेकिन इस फिल्म में तिलक को खूबसूरती से दर्शाया गया. फिल्म का गीत आज हमारे दिल अजब से चाहत है...संबंधी और संबंधन के बीच फिल्माया सबसे बेहतरीन गीत है. यह भारतीय परिवार की रिवाज वर्षों से है कि लोकप्रिय व्याह के गीतों से वर और वधू एक दूसरे का स्वागत करते हैं.
नयी दुल्हन खुशियों का खजाना
बकौल सूरज इस फिल्म में मेरे लिए सबसे इमोशनल मोमेंट फिल्म का गीत धिक ताना भाभी तुम खुशियों का खजाना को फिल्माना था. चूंकि जिस तरह इस फिल्म में एक लड़की जब किसी अनजान से परिवार से आती है. जैसा कि हमारे यहां अरेंज मैरेज में होता है. वह अपने ससुराल को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहती है.ऐसे में अगर उसे हम आपके हैं कौन जैसा परिवार मिलता, जहां उसे खुशियों का खजाना समझा जा रहा है, तो जाहिर सी बात है. एक नयी दुल्हन के लिए जिंदगी आसान हो जाती है. यह फिल्म इस बात की सीख देती है कि एक बहू का उसके ससुराल में किस तरह स्वागत किया जाना चाहिए. प्रत्यक्ष नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ही सही सूरज इस फिल्म के माध्यम से दहेज प्रथा और नारी शोषण के विरोध की बात करते हंै. कि अगर वाकई किसी नयी नवेली दुल्हन को उसके ससुराल में प्रेम मिले तो लड़की शादी करने से कभी नहीं कतरायेगी. सूरज बताते हैं कि कैसे उनके पास उस वक्त चिट्ठियां आया करती थीं. कि कई लोगों ने इस फिल्म को देखने के बाद अपनी सोच बदली.
अन्य रिश्तों की अहमियत
आमतौर पर किसी फिल्म में परिवार के अन्य रिश्ते जिसमें मामी मामा, काका काकी. मौसी, और उनके दोस्त को इतनी अहमियत नहीं मिली, जितनी इस फिल्म में दिखाई गयी है. झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात में आज भी परिवार का मतलब केवल खून के रिश्ते नहीं माने जाते. उनकी जिंदगी में उनके घर के अन्य सदस्य भी आते हैं. इस फिल्म सीख देती है कि कैसे हमें उन रिश्तों में भी एकजुटता बरकरार रखनी चाहिए. वर्तमान में यह कांसेप्ट हम सभी पर हावी है कि परिवार का मतलब बीवी, बच्चे और ज्यादा से ज्यादा माता पिता होते हैं. जबकि हकीकत यही है कि असली मजा सबके के साथ आता है. जिस तरह इस फिल्म में परिवार के हर सदस्य को अहमियत दी गयी है. पूरा परिवार एक साथ खाता है, मस्ती करता है, सेलिब्रेशन करता है. असली खुशी जिंदगी की यही है. और यह परंपरा हमारे यहां वर्षों से चली भी आ रही है. लेकिन धीरे धीरे यह खोने लगी है. सो, यह फिल्म उन रिश्तों की अहमियत को दोबारा दोहराती है. आनेवाले जेनरेशन भी अगर यह फिल्म देखें तो उन्हें मामा मामी, चाचा चाची जैसे रिश्तों की अहमियत समझाने में कठिनाईयां नहीं होंगी. यह फिल्म पारिवारिक मूल्यों का एक अध्ययन व शोध की फिल्म है.
शादी का जश्न
पिछले कई सालों से भारत में थीम पर आधारित शादियां हो रही हैं. अब घर में नहीं रिसोर्ट बुक किये जा रहे हैं. गार्डन बेस्ड शादियां हो रही हैं. बोट पर, आसमानों में शादी हो रही है. लेकिन इस फिल्म में जिस तरह पूरे परिवार के साथ बारात लेकर लड़की के घर जाना, और वहां एक एक रिश्तों को बारीकी से दर्शाने का काम किया है. वह आज भी तमाम बिग फैट वेडिंग पर हावी है. और इसी फिल्म से यह प्रेरणा मिलती है कि जगह महत्व नहीं रखता. शादी व्याह में सेलिब्रेशन महत्व रखता है. जिस तरह इस फिल्म में दीदी के देवर और जीजा की साली के बीच प्यार भरे तकरार होते हैं. आज भी भारतीय परिवारों में शादी का असली मजा तभी आता है. जब यह नोक झोंक जारी रहे. इसी फिल्म की देन है कि आज पूरे भारत में  सालियों द्वारा जूते चुराने की रस्म बरकरार है. गौर करें तो ऐसी छोटी छोटी चीजें जो इस फिल्म में दिखाई गयी है, वह परिवार के लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाती है. परिवार को खुशी दे जाती है. और यही वजह है कि यह फिल्म आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा है.इस फिल्म में सगाई से जो सिलसिला शुरू होता है, बच्चे की गोदभराई और फिर सभी का मिल कर तकिया वाला खेल खेलना. झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी तो वर्षों से शादी व्याह निबटाने के बाद परिवार के सभी सदस्य गाना बजाना करते हैं और उत्साह मनाते हैं. शादी का यही जश्न परिवार से ही है. यह फिल्म यही दर्शाती है. फिल्म में कोई भी न तो हेवी ज्वेलरी, और न ही शादी का कोई भव्य सेट दिखाया गया है. सभी लोगों को पारंपरिक पोषाक में दर्शाया गया है. हालांकि इस फिल्म में माधुरी द्वारा पहने लहंगे उस दौर में खूब लोकप्रिय हुए. फिल्म में हंसी मजाक के बाद एक लम्हा आता है, जहां निशा अपने जीजाजी के जूते अपने दुपट्टे से साफ करके उन्हें पहनाती है. यह हमारे यहां आये मेहमान को दी जानेवाले वाले आदर को दर्शाती है.
भाभी और देवर, साली और जीजा का रिश्ता
फिल्म में जिस तरह भाभी और देवर के बीच प्यार दिखाया गया है. भाभी को मां का स्थान लेते हुए दिखाया गया है. वास्तविक जिंदगी में भी तो परिवारों में भाभी को मां का ही दर्जा दिया गया है. यह फिल्म महिलाओं की इज्जत करना सिखाता है. फिल्म में जब भाभी की मृत्यु हो जाती है तो निशा अपने जीजा से सिर्फ इसलिए शादी करने को तैयार हो जाती है, क्योंकि उसे उस बच्चे की चिंता होती है. परिवार में आप कैसे एक दूसरे के लिए समर्पण करते हैं. यह फिल्म इसे बखूबी दिखाती है. फिल्म में यह भी खूबसूरती से दिखाया गया है कि जब पूजा(रेंणुका सहाय) की मौत होती है तो कैसे घर के सभी सदस्य गम में डूब जाते हैं. यहां तक कि घर के नौकर और कुत्ता भी.
नौकर नहीं परिवार के सदस्य
इस फिल्म से एक और महत्वपूर्ण प्रेरणा यह मिलती है कि इस फिल्म में नौकर को नौकर नहीं, परिवार के सदस्य की तरह दर्शाया गया है. फिल्म में लल्लू और बसंती भी परिवार के अन्य लोगों की तरह सबके साथ हंसते बोलते हैं. यह फिल्म सीख देती है कि आपको अपने नौकरों के साथ किस तरह दोस्ताना और आदर का भाव रखना चाहिए, न कि उन्हें डांट फटकारना चाहिए. आप उन्हें जितनी इज्जत देंगे. वे भी आपको बदले में उससे ज्यादा इज्जत देंगे.फिल्म लल्लू पूजा को अपनी भाभी की तरह ही मान सम्मान देता है. वास्तविक जिंदगी में भी वे नौकर जिन्हें आप प्यार देते हैं. वह आपको अपने परिवार का हिस्सा ही मानता है और काकी, दादी और कई नौकर तो मां कह कर भी बुलाते हैं.
जानवर भी परिवार का हिस्सा
इस फिल्म में टफ्फी ( यानी फिल्म में नायक के परिवार के साथ रहनेवाला कुत्ता) को नयी नवेली दुल्हन और फिल्म की नायिका से इस तरह मिलवाया जाता है, जैसे वह भी घर का सदस्य हो. आप अपने घर में रह रहे जानवर के साथ भी किस तरह बर्ताव कर सकते हैं और उन्हें किस तरह प्यार भाव से रख सकते हैं और जिस तरह टफ्फी वफादारी निभाता है. आपके घर के जानवर भी निभा सकते हैं. यह दर्शाता है.
बॉक्स में
1.हम आपके हैं कौन वह पहली फिल्म थी, जिसने बॉक्स आॅफिस पर 1 बिलियन की कमाई की थी. फिल्म भारतीय मूल्यों, परंपराओं, आपसी प्रेम को बेहतरीन तरीके से दर्शाती है.
2. हम आपके हैं कौन नदिया के पार की रीमेक फिल्म थी. नदिया के पार भी राजश्री प्रोडक् शन द्वारा ही बनाई गयी थी.
3.एमएफ हुसैन ने यह फिल्म माधुरी की वजह से लगभग 85 बार देखी थी. लेकिन फिर भी उन्हें यह फिल्म पुरानी नहीं लगी.
4.माधुरी को इस फिल्म के लिए  फीस के रूप में 27,535,729 रुपये मिले थे.
5. फिल्म का गीत दीदी तेरा देवर दीवाना नुसरत फतेह अली खान के गीत सारे नाबियां से प्रेरित गीत था.
6. सलीम खान के कहने पर सूरज ने फिल्म से चॉकलेट लैमजूस गीत हटा दिया था. बाद में यह गीत फिल्म में जोड़ा गया.
7. सूरज ने जब स्क्रीनिंग रखी थी तो इंडस्ट्री के सभी लोगों ने कह दिया था कि सूरज कोई बात गलतियां हो जाती हैं. फिल्म नहीं चलेगी. लेकिन फिल्म भारत की अब तक की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक है.
8. अनुपम खेर जब इस फिल्म के गीत माइ नी माइ की शूटिंग कर रहे थे. उनके चेहरे पर पारलाइसिस का अटैक हुआ था. लेकिन अपनी अनुबंधता के कारण उन्होंने शूटिंग पूरी की. आप गाने को गौर से देखें तो इसमें अनुपम खेर ने चेहरे पर दुपट्टा डाल रखा है. इसकी वजह यही थी.

कोटेशन
मैं अपनी फैमिली, अपने फ्रेंड्स और फैन्स से बहुत प्यार करता हूं. और इस फिल्म ने मुझे यह तीनों दिया. मैं वापस सूरज के साथ इसलिए काम करना चाहता हूं कि मैं लार्जर देन लाइफ वाले किरदार करके बोर हो चुका हूं. मैं हम आपके हैं कौन वाले पारिवारिक प्रेम की तलाश में हूं जो कि काफी मासूम है. वास्तविक जिंदगी में भी मैं अपने परिवार से बेहद करीब हूं और हम आपके हैं कौन ने मेरा वही व्यक्तित्व झलकाया था और मुझे लगता है कि भारत की जनता ने उसे इसलिए इतना प्यार दिया है कि फिल्म के सारे किरदार कहीं न कहीं आपके परिवार से मेल खाते हैं.
माधुरी दीक्षित
फिल्म के सेट पर पूरी तरह से पिकनिक का माहौल था. हम फिल्मीस्तान में घंटों शूटिंग करते थे.लेकिन वक्त का पता नहीं चलता था.  जितना मजा मुझे इस फिल्म की शूटिंग में आया था. उतना और किसी में नहीं आया. मुझे रेणुका के साथ वाले सारे सीन करने में बहुत मजा आया था. चूंकि इसी बहाने मुझे बड़ी बहन का प्यार पाने का मौका मिला था. सलमान सेट पर बिल्कुल फिल्म के प्रेम की तरह ही शरारत किया करते थे.इस फिल्म के गीत की खासियत यही थी कि इसमें गाने नहीं फिल्म की कहानी थी. फिल्म के सीन थे. उसमें भी फन था.
रेणुका सहाणे
मुझे इस बात की सबसे ज्यादा खुशी है कि हमारे हिंदी सिनेमा में कोई ऐसी फिल्म बनी जिसे मैं आज 20 साल बाद भी गर्व से अपने बच्चों को दिखा पा रही हूं और वह उस फिल्म को एंजॉय कर रहे हैं और मेरे बच्चे मुझसे कहते हैं कि उन्हें ऐसा परिवार चाहिए. जो हंसता गाता हो. इसलिए यह पारिवारिक धरोहर की तरह है.शूटिंग के आखिरी दिन सूरज बाबू फिल्म का गीत तुझसे जुदा होकर मुझे दूर जाना है...बजाते थे और सबको स्टैंडिंग ओवियेशन मिलता था. हम सभी कलाकार बहुत इमोशनल हो गये थे. मुझे याद है हम धिक ताना की शूटिंग कर रहे थे. फिल्म में बिंदू जी ने विग लगा रखा था. और अचानक आतिशबाजी का शॉट होता है और बिंदू जी के विग में आग लग जाती है. बिंदूजी डरने और घबराने की बजाय खूब हंस रही थीं. मैं जिन सीढ़ियों से गिरती हुई दिखाई देती हूं. वह स्पंज की बनाई गयी थी. ताकि मुझे चोट न लगे. क्योंकि इस शॉट का बार बार रीटेक हो रहा था.

No comments:

Post a Comment