20121208

सफल अभिनेता सफल व्यवसायी


किसी दौर में अभिनेता भरत भूषण का कद सुपरस्टार का था. लेकिन बाद के दौर में परिस्थिति ऐसी आ गयी कि उन्हें अपने मकान को बेच कर खुद की जीविका के लिए पैसे एकत्रित किये. राजेंद्र कुमार ने भी एक दौर में आसमान छुआ. लेकिन बाद के दौर में जाकर उन्होंने भी बुरी आर्थिक स्थिति से गुजरना पड़ा था. अमिताभ बच्चन का भी एक दौर ऐसा आया, जब नौबत दीवालिया होने तक आ गयी थी. लेकिन अमिताभ ने परिस्थिति का सामना करते न सिर्फ खुद को फिर से खड़ा किया, बल्कि अपनी कंपनी एबीसीएल को भी दोबारा पूरी तरह स्थापित किया. राज कपूर कभी अपनी महत्वकांक्षी फिल्म मेरा नाम जोकर की वजह से खस्ता हालात में पहुंच गये थे. गुरुदत्त ने भी बाद के दौर में मुफलिसी देखी. दरअसल, उस दौर में  हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग व्यवसायिक रूप से सोच कर फिल्म निर्माण में निवेश नहीं करते थे. उस दौर में अपने बैनर की फिल्मों का निर्माण करना सिर्फ शान की बात मानी जाती थी. जबकि बाद के दौर में जितने अभिनेताओं ने भी अपने प्रोडक् शन कंपनी की शुरुआत की, वे कामयाब रहे. उस दौर में अभिनेता शौक से फिल्में निर्माण करते थे. अपने बैनर से केवल अपने परिवार के लोगों को लांच करने की परंपरा थी. जबकि बाद के दौर में शाहरुख खान, आमिर खान, अजय देवगन और अब अक्षय कुमार जैसे अभिनेताओं ने सोच समझ कर नीति के साथ प्रोडक् शन हाउस को स्थापित किया. आमिर खान फिलवक्त अभिनेता व बतौर निर्माता सबसे सफल व्यवसासियों में से एक हैं. चूंकि उन्होंने एक नीति के तहत बाहरी प्रतिभाओं को भी मौके दिये. जरूरत न हो तो अपने प्रोडक् शन की फिल्मों में काम भी नहीं किया. शाहरुख ने रेड चिल्ली नामक बड़ी कंपनी स्थापित की. अक्षय और सलमान भी इसी राह में है. चूंकि अब ये सभी बुद्धिमानी के साथ निवेश कर रहे हैं, सो वे कामयाब बी रो रहे हैं

टीम की अहमियत समझते स्टार्स



अजय देवगन की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म सन आॅफ सरदार ने कुछ दिनों पहले ही 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया. इससे पहले भी अजय की कई फिल्में 100 करोड़ क्लब में शामिल हुई हैं. लेकिन इस बार चूंकि वे जब तक हैं जान के साथ प्रतियोगिता कर रहे थे. सो, वे इसे अपनी बड़ी जीत मानते हैं और इस जीत की खुशी में उन्होंने जश्न के रूप में सक्सेस पार्टी रखने की बजाय अपने क्रू व टीम मेंबर को एक नायाब तोहफा दिया है. हाल ही में एक अखबार में उन्होंने पूरे एक पन्ने के विज्ञापन की जगह अपने टीम के एक एक सदस्य फिर चाहे वह स्पॉट ब्वॉय ही क्यों न हो. सभी का नाम उस विज्ञापन में शामिल कर. थैंक्यू नोट लिख कर सभी के प्रति अपना आभार प्रकट किया है. आज के दौर में जहां विज्ञापनों के स्पेस की कीमत सबसे अधिक है. ऐसे में अजय ने अपने टीम को यह आभार देकर दर्शाया है कि वे व्यवसायिक होने के साथ साथ अपने टीम मेंबर्स का कितना ख्याल रखते हैं. शायद यही वजह है कि अजय की टीम के कई लोग उनसे फूल और कांटे से लेकर अब त क जुड़े हैं. सलमान खान के साथ काम कर रहे कितने सेक्योरिटी गार्ड को बॉडीगार्ड बनाने की ट्रेनिंग के लिए सलमान ने प्रेरित किया. उनके खास बॉडीगार्ड शेरा ने सलमान की मदद से ही अपनी कंपनी शुरू कर दी है. अक्षय कुमार ने भी हाल ही में अपनी फिल्म खिलाड़ी 786 की तकनीशियन टीम को लगभग 12 लाख का बोनस दिया है. चूंकि वे उनके काम से बेहद खुश हैं. शाहरुख खान के साथ काम करनेवाले कई लोग बताते हैं कि शाहरुख किसी भी फिल्म की शूटिंग के आखिरी दिन टीम के एक एक मेंबर्स को गले लगाते हैं और उन्हें आगे के लिए बेस्ट आॅफ लक कहते हैं. दरअसल, स्टार्स की ऐसी सोच दर्शाती है कि वे भी जानते हैं कि फिल्म टीम वर्क है, सो वे टीम को खास अहमियत देते हैं.

बड़ी हो गयी बेबो



बबीता की तरह उनकी बेटियां भी शादी नहीं निभा पायेंगी.लोगों की यह मानसिकता बन चुकी है. लेकिन कपूर खानदान की बेटी और सैफ अली खान की नयी नवेली दुल्हन करीना कपूर ने इसे गलत साबित कर दिया है. शादी के बाद न वह अब और अधिक आत्मविश्वासी नजर आ रही हैं, बल्कि वे लगातार चुनौतीपूर्ण किरदारों में भी नजर आ रही हैं. फिल्म हीरोइन में सशक्त भूमिका निभाने के बाद तलाश में भी उन्होंने चुनौतीपूर्ण और लीक से हट कर किरदार निभा कर खुद को साबित कर दिया.जल्द ही प्रकाश झा की फिल्म सत्याग्रह में नजर आयेंगी. दरअसल, इन दिनों दौर करीना का ही है. करीना न केवल फिल्मों में बल्कि पब्लिक अपीयरेंस में भी खूब उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. यह वही बेबो हैं, जो कभी दीदी करिश्मा और मां बबीता का आंचल पकड़ कर इस इंडस्ट्री में आयी थीं.बार बार ठेस खाने के बाद अब वह परिपक्व हो चुकी हैं. वे सोच समझ कर किरदार निभा रही हैं.जरूरत होने पर वे आयटम सांग का भी हिस्सा बन रही हैं. कुछ दिनों पहले करीना से फिल्म सिटी में मुलाकात हुई थी. करीना प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया से बातचीत करने में व्यस्त थीं. जाहिर है वे मेकअप में ही होंगी. लेकिन एक बात गौर करनेवाली थीं कि करीना को हाइ हिल्स से काफी परेशानी है. वह चैनल को शॉट देने के बाद प्रिंट से बात करते वक्त अपने हिल्स उतार कर बात कर रही थीं. अपने अस्टिट को उन्होंने आदेश दिया कि उनके हिल्स को साफ कर गाड़ी में रखें. यह दर्शाता है कि करीना के मन में भी एक आम लड़की की तरह ही अपने श्र्ृांगार की वस्तुओं को संभाल कर रखनेवाले भी गुण हैं. कई लोगों को आशंका थी कि करीना लापरवाह हैं और अपनी शादीशुदा जिंदगी में वे सफल नहीं हो पायेंगी. लेकिन जिस अंदाज में बेबो सबकुछ सुव्यवस्थित तरीके से कर रही हैंं. दर्शा रहा है कि बेबो अब बड़ी हो गयी हैं

डांस की एबीसीडी



पिछले कुछ सालों में रियलिटी शोज ने डांस को परफॉरमेंस का एक अहम जरिया बना दिया है. डांस के नये स्वरूप, नये कलाकार और नये गुरु सभी लोकप्रिय हैं. फिल्मों में भी अब केवल सरसो के खेत में या किसी पेड़ के पीछे आम डांस नहीं हो रहे. हर फिल्म में आयटम या अभिनेत्री या अभिनेता अपने लिए खास गीत फिल्मा रहे हैं, जिनमें उन्हें अपनी डांसिंग प्रतिभा को दिखाने का मौका मिले. और शायद इसी जुनून ने कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा को भी फिल्म एनी बडी कैन डांस जैसी फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया है. भारत में एबीसीडी पहली फिल्म होगी, जो पूरी तरह से डांस पर आधारित होगी और जिसमें हिंदी सिनेमा जगत के सारे महारथी कोरियोग्राफर एक साथ नजर आयेंगे. यह फिल्म 3डी में बन रही है. फिल्म का प्रोमो ही दर्शा रहा है कि फिल्म किस स्तर की है. पिछले कुछ सालों में रियलिटी शोज ने निकली जितनी प्रतिभाओं को डांस फॉर्म में हुनर दिखाने का मौका मिला है. शायद किसी और टैलेंट में मिला हो. फिर चाहे वह सलमान हो, शक्ति मोहन, धर्मेश, या फिर झलक दिखला जा के सारे कोरियोग्राफर. दरअसल, हिंदी फिल्मों को आज ऐसे हुनर की जरूरत है. रेमो  डांस को जीते हैं और यह उनकी फितुर का ही नतीजा है कि उन्होंने अपनी ही शैली में जैक आॅफ आॅल बनने की बजाय मास्टर आॅफ वन बन कर खुद को साबित करने की कोशिश की है. वर्ष 2006 में हॉलीवुड निर्देशक एने फ्लेचर ने स्टेप अप नामक कुछ ऐसी फिल्म बनाई थी, जिसका केंद्र विषय भी डांस ही था. किसी दौर में वी शांताराम की फिल्म गीत गाया पत्थरों ने, नवरंग जैसी फिल्मों में डांस का वह जुनून और खूबसूरती नजर आती थी.मुमकिन हो कि भविष्य में भी ऐसे विषयों के साथ फिल्मों में प्रयोग किये जायेंगे.विदेशों में तो ऐसी कई फिल्में बनती रही हैं.

आयटम सांग का बदलता स्वरूप


उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री ने हाल ही में एक पत्रिका को दिये अपने इंटरव्यू में यह बात दोहराई कि उन्होंने उस दौर में कुछ ऐसे सीन करने से मना कर दिया था. जिसमें उन्हें कैमरे के साथ लो एंगल में कुछ डांस मूव्स करने थे और वे लो एंगल के साथ काफी अश्लील नजर आ रहे थे. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वे फिल्मों के कैबरे सांग के गानों में इन बातों का खास ख्याल रखती थी कि उनके किसी भी कैमरे एंगल से अश्लीलता न झलके. अरुणा ईरानी ने भी कुछ इसी वाक्या सुनाते हुए कहा था कि वह जब भी कैबरे के लिए तैयार होती थी, वे हमेशा इस बात का ख्याल रखती थीं कि वे अपनी शरीर को ढंक कर रखें. वे कभी उत्तेजित करनेवाले मूव्स नहीं देना चाहती थीं. डांसिंग क्वीन हेलेन ने भी इस बात का जिक्र किया है कि उस दौर में भी निर्देशकों की चाहत होती थी कि वे आयटम सांग (जो कि उस वक्त फिल्मों में कैबरे या डिस्को गाने का रूप माना जाता था.)वे इस तरह से फिल्माये जाये कि वह ज्यादा से ज्यादा दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर सकें. लेकिन उस दौर की अभिनेत्रियां जो विशेष कर ऐसे गाने व डांसिंग की क्वीन मानी जाती थी. इन बातों को खास परहेज करती थीं. खुद बिंदू मानती हैं कि दौर कोई भी हो. इस इंडस्ट्री के कुछ पुरुष महिलाओं को केवल अंग प्रदर्शन का ही एक जरिया मानते थे. लेकिन यह अभिनेत्रियों के हाथ में होता था कि वह खुद को किस तरह परदे पर उतारें. जबकि इसके विपरीत वर्तमान में जितने भी आयटम सांग फिल्माये जा रहे हैं. उनमें सुपरसितारा हैसियत रखनेवाली अभिनेत्रियां भी जम कर अंग प्रदर्शन करती हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस तरह के कैमरे एंगल में वे किस तरह नजर आयेंगी. बल्कि निर्देशकों के साथ साथ उनकी खुद की चाहत होती है कि वह अधिक अंग प्रदर्शन कर सकें. चूंकि आज यहां भी प्रतियोगिता का ही दौर है.

खानदान आपकी पहचान नहीं बन सकता : तुलसी


फिल्म ‘वंस अपॉन अ टाइम’ के गीत ‘तुम जो आये जिंदगी..’ से उन्होंने सबको प्रभावित किया. अब वह सलमान खान की भी फेवरिट गायिका बन गयी हैं और राहत फतेह अली खान साहब की भी. तुलसी ने कम उम्र में ही खास पहचान बना ली है. गुलशन कुमार की यह बिटिया अपने खानदान की परंपरा को बखूबी आगे बढ़ा रही हैं. जल्द ही ‘दबंग 2’ के एक खास गाने में आप उनकी आवाज सुनेंगे.

फिल्मी घराने से ताल्लुक रखने के बाद भी तुलसी कुमार को अपने कैरियर की शुरुआत में लोगों के तानों का सामना करना पड़ा. मगर तुलसी ने लोगों की बेफिजूल की बातों पर ध्यान न देते हुए सिर्फ काम पर ध्यान दिया और आज आलम यह है कि वह संगीतकारों की ही नहीं, बल्कि अभिनेताओं की भी पसंदीदा गायिका बन चुकी हैं. इन दिनों रोमांटिक गीतों के लिए उन्हें विशेष रूप से मौके मिल रहे हैं. तुलसी खुश हैं कि उन्होंने कम उम्र में पहचान बना ली है. ‘हमको दीवाना कर गये’, ‘चुपके चुपके’ जैसी फिल्मों से अपने संगीत कैरियर की शुरुआत करनेवाली तुलसी अब इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बना चुकी हैं. पेश है, तुलसी से खास बातचीत..
बेपरवाह तुलसी
बकौल तुलसी, मुझे भी बाकी लोगों की तरह ही ये बातें सुनने को मिलती थीं कि मुझे काम आसानी से मिल जायेगा. मेरा परिवार संगीत निर्माता का रहा है, लेकिन मैं मानती हूं कि आज का वक्त टैलेंट का है. अगर आप अपने हुनर को साबित नहीं कर पाते हैं, तो लोग आपको कभी काम नहीं देंगे. खासतौर से संगीत के क्षेत्र में तो अगर फिट आवाज न हो, तो तुरंत आपको आउट कर दिया जायेगा. मुझे लगातार गाने के मौके मिल रहे हैं और अच्छे संगीतकारों के साथ काम करने का मौका भी मिल रहा है. अब मैं किसी की बातों की परवाह नहीं करती.
तुम जो आये ने बदली तसवीर
ऐसा नहीं था कि इससे पहले मैंने गाने नहीं गाये थे, लेकिन मुझे असली पहचान ‘वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ के गीत ‘तुम जो आये जिंदगी..’ से मिली. यह मेरा अपना भी काफी पसंदीदा गाना है. इसी गाने को सुन कर सलमान खान ने मुझे ‘बॉडीगार्ड’ का खास रोमांटिक सांग गाने का मौका दिया.
दबंग 2 का ‘सांसों से..’
फिल्म ‘रेडी’ के गीत ‘हमको प्यार हुआ..’ सलमान को पसंद आया था और इस बार ‘दबंग 2’ में उन्होंने मुझे ‘सांसों से..’ गाने का मौका दिया है. इसमें मैं सोनू निगम के साथ डुयेट कर रही हूं और साजिद वाजिद का संगीत है. ‘दबंग 2’ का यह एकमात्र रोमांटिक गाना है. मुझे उम्मीद है कि गीत के जैसे बोल हैं. वे लोगों को बेहद पसंद आयेंगे. इस गाने की रिकॉर्डिग के बाद खुद सलमान और अरबाज ने आकर मुझसे कहा कि मैंने बहुत अच्छा गाया है. सलमान को फिल्म का यह गाना सबसे ज्यादा पसंद है.
रोमांटिक गानों में फिट
मुझे लगता है कि मेरी आवाज रोमांटिक गानों के लिए बिल्कुल फिट बैठती है. मैं जिस तरह के गीत गाती हूं और मेरी जैसी आवाज है, वह रोमांटिक गानों के लिए बिल्कुल परफेक्ट है. इसलिए मुझे ऐसे मौके मिल रहे हैं. मुझे व्यक्तिगत रूप से रोमांटिक गाने सुनना पसंद है और मुझे लगता है कि यह सबसे कठिन, लेकिन बेहद इमोशनल जॉनर है. अगर आप गाने में अपने इमोशन के साथ गीत गाएंगे, तो आप खुद गाने में डूब जायेंगे. मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि अब फिल्मों का दौर बदल रहा है. इसके बावजूद कई ऐसी फिल्में हैं, जिनके रोमांटिक गीत आपको हमेशा याद रहेंगे. ‘वंस अपॉन..’ का ‘तुम जो आये..’ उन गानों में से एक है.
सबको मिल रहे हैं मौके
हां, यह सच है कि अब पहले की तरह एक ही गायक को पूरी फिल्म में गाने का मौका नहीं मिलता. ऐसे में कई गायकों का नाम लोग जान भी नहीं पाते, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि नये लोगों को मौके मिल रहे हैं और वह लोग कमाल का काम कर रहे हैं. मैं मानती हूं कि जितने भी रियलिटी शोज हैं, उनसे अच्छे टैलेंट्स निकल रहे हैं. लोगों को हर तरह की प्रतिभाओं को देखने और सुनने का मौका मिल रहा है. जहां तक मैं अपनी बात कहूं तो मुझे लगता है कि मेरे गीत जितने भी अच्छे रहे हों, लोगों ने मुझे पहचाना है और वही मेरी उपलब्धि है. मुझे लगता है कि इस नये ट्रेंड की वजह से कई नये लोगों को मौके मिल रहे हैं. यही सही भी है. आखिर फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग करने का तो सबका सपना रहता ही है.
आनेवाली फिल्में
‘दबंग 2’ के बाद मैं ‘नौटंकी साला’, ‘यारियां’, ‘आइ लव न्यूयॉर्क’, ‘आशिकी 2’ और ‘जिला गाजियाबाद’ के गानों में भी आवाज दे रही हूं. इन फिल्मों में भी मुझे रोमांटिक गाने ही मिले हैं, जिन्हें गाकर मैं बहुत संतुष्ट हूं.
एक्टिंग का कोई इरादा नहीं
मुझे कई लोगों ने यह बात कही है कि मुझे एक्टिंग में कोशिश करनी चाहिए, लेकिन मैं अपने काम से बेहद खुश हूं और गायिकी पर ही फोकस करना चाहती हूं. खुद गायिकी अपने आप में एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी है. इसमें काफी वक्त देना होना होता है, इसलिए मैं अपने कैरियर से खुश हूं.
एलबम भी पसंद किये गये
फिल्मों के अलावा मुझे एलबम के लिए गाना भी बेहद पसंद है. मेरा एलबम ‘लव हो जाये’ भी रोमांटिक गानों पर आधारित था और उसके गानों को लोगों ने बेहद पसंद किया था. साथ ही मैंने फिल्म ‘बिल्लू बारबर’ के लिए आयटम सांग ‘लव हिट हिट’ किया था. वह भी लोगों को काफी पसंद आया था. मैं गायिकी के साथ और भी कई नये प्रयोग करते रहना चाहती हूं.
मिला भाइयों का सपोर्ट
मैं खुशनसीब हूं कि मेरे भाइयों ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है. वे मुझे अच्छे गाने और हमेशा रियाज करने के लिए प्रेरित करते हैं. यही वजह है कि हमेशा से ही मेरा गायिकी की तरफ झुकाव रहा और मेरी रुचि भी इसमें रही

20121203

रानी मुखर्जी कर रही हैं सुकून की तलाश



रानी मुखर्जी की पिछली फिल्म ‘अय्या’ कामयाब नहीं रही, लेकिन फिल्म में उनकी नृत्य शैली और अभिनय की काफी तारीफ हुई. आज उनकी अगली फिल्म ‘तलाश’ रिलीज हो रही है, जिसमें वे अब तक के अपने सारे किरदारों से बिल्कुल अलग नजर आनेवाली हैं. अपनी इस थ्रिलर फिल्म के बारे में और यश चोपड़ा से उनकी स्पेशल बॉन्डिंग के बारे में रानी ने खुल कर बातचीत की..

रानी मुखर्जी भावपूर्ण किरदारों के लिए जानी जाती रही हैं. यह पहली बार होगा जब रानी किसी थ्रिलर फिल्म का हिस्सा बन रही हैं. हाल में रानी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
रानी आपने इससे पहले कभी किसी थ्रिलर फिल्म में काम नहीं किया? पहले क्या आपके पास ऐसे ऑफर आये नहीं या थ्रिलर फिल्म में आपकी खास दिलचस्पी नहीं थी. ‘तलाश’ की कहानी की क्या खास बातें थीं, जिसकी वजह से आपने फिल्म को हां कहा?

मैं हमेशा ही अलग करने की फिराक में रहती हूं. बस जहां भी मौका मिलता है कूद पड़ती हूं. हां, यह सच है कि इससे पहले भी मुझे कई फिल्में ऑफर हुई थीं, लेकिन वे उतनी एक्साइटिंग नहीं थीं. मैं मानती हूं कि किसी भी थ्रिलर फिल्म में स्क्रिप्ट पढ़ते ही थ्रील आना चाहिए.
इस फिल्म के साथ ऐसा ही हुआ. रीमा ने जब मुझे कहानी सुनायी, तो मैं बस कहानी में रोमांचित होती जा रही थी कि अरे अब क्या होगा, अरे अब क्या होगा. इसलिए मुझे ‘तलाश’ की कहानी पसंद आयी. वैसे, फिल्म के किरदार और कहानी के बारे में मैं ज्यादा नहीं बताऊंगी. आप खुद देखेंगे, तो ज्यादा मजा आयेगा.

आज के दौर में थ्रिलर फिल्में बनाना कितना मुश्किल होता जा रहा है. अगर एक भी सीन किसी हॉलीवुड फिल्म से मेल खाता-सा नजर आ जाता है, तो मान लिया जाता है कि पूरी की पूरी फिल्म कॉपी है.
फिलहाल ‘तलाश’ के बारे में इतना ही कहूंगी कि अच्छी कहानी है, ओरिजिनल है. मैं भी हॉलीवुड की थ्रिलर फिल्में देखती हूं. अब तक यह फिल्म किसी से मेल तो नहीं खा रही.

पहले की थ्रिलर फिल्मों का कुछ अलग लब्बोलुआब होता था. दर्शक बार-बार उन कहानियों को देखना पसंद करते थे. आज भी दर्शक पुरानी थ्रिलर फिल्में देख कर रोमांचित हो जाते हैं. आपकी नजर में वे कौन से तत्व होते हैं, जो फिल्मों से दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब होते होंगे.
(हंसते हुए) मैं इसका पूरा श्रेय उस वक्त के म्यूजिक को देना चाहूंगी. आप गौर करें शम्मी
कपूर साहब की फिल्म ‘तीसरी मंजिल’, क्या कमाल का म्यूजिक था उसमें. ‘मधुमती’, ‘वो कौन थी’ ये सारी फिल्में थ्रिलर थीं और इन सभी फिल्मों के रोमांच को बरकरार रखने में
मुख्य भूमिका निभाता था इनका संगीत.
संगीत सीन को सपोर्ट करता था और
दर्शक फिल्म के साथ गानों को भी याद रखते थे. ‘ज्वेल थीफ’ भी मेरी
पसंदीदा थ्रिलर फिल्मों में से एक है. ‘मधुमती’ तो.. क्या कहना है उस फिल्म का. कोई क्लू, कोई संकेत, सोचा ही नहीं जा सकता और उस वक्त इस तरह सीन को ट्रीटमेंट भी दिया जाता था कि दर्शक हैरत में पड़ जाते थे. मैं तो आज भी वे सारी फिल्में बार-बार देख सकती हूं.

इस फिल्म में तीन बड़े सितारे रानी, आमिर और करीना हैं. वर्तमान में करीना शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक हैं और आमिर की फिल्मों में सिर्फ और सिर्फ आमिर होते हैं. ऐसे में इस फिल्म में आपको अपने लिए कितना स्पेस मिल पाया?
मैं इस बारे में बस इतना कहना चाहूंगी कि किरदार महत्वपूर्ण था, तो मैंने हां कह दिया. जहां तक बात है आमिर की, तो मैंने उनके साथ ‘गुलाम’ में भी काम किया है. तब से लेकर अब तक आमिर अच्छे दोस्त हैं और वे भी अपने दोस्तों के काम की इज्जत करते हैं. उन्हें मौके देते हैं. जहां तक बात है करीना की, तो वे बेहतरीन अभिनेत्री हैं. हमारी अच्छी बातचीत होती है. वे मुझे अपनी सीनियर की तरह ट्रीट करती हैं. दूसरी बात जब फिल्म की कहानी ही हीरो हो, तो आपका ध्यान बाकी बातों पर नहीं जाता.
अगर व्यक्तिगत रूप से आपकी बात की जाये, तो आपको अपने जीवन में किस चीज की तलाश है?
सुकून की तलाश है. शांति चाहिए मुझे.
मतलब बेचैन हैं आप?
हां, थोड़ी तो हूं. मीडिया और लोगों को मेरी इतनी फिक्र है. वे हर बार मुझसे पूछते रहते हैं कि मैं कम फिल्में क्यों कर रही हूं. मेरी शादी कब होगी, वगैरह वगैरह. अब मैं इन झंझावतों से दूर थोड़े सुकून की तलाश कर रही हूं. अगर वह मिल जाये तो फिर से अपने काम पर पूरा ध्यान दे पाऊंगी.

यश चोपड़ा के आप हमेशा करीब रहीं. वे आपके लिए फादर फिगर थे, उनसे जुड़ी कुछ यादें शेयर करना चाहेंगी?
यश अंकल मुझे बंगाल टाइगरेस कह कर बुलाते थे. मेरे पिता की तरह ही वह मुझे स्नेह देते थे. वे एक पिता की तरह ही कहते रहते थे कि खाने-पीने पर ध्यान दो. खाओ, फिगर की चिंता मत करो और मेरी फिल्मों पर उनकी विशेष टिप्पणी होती थी.
‘नो वन किल्ड जेसिका’ देखने के बाद उन्होंने कहा था कि फॉर्म में वापसी कर ली है तुमने. इसे बरकरार रखना. यश अंकल का जाना मेरे लिए एक भारी क्षति है

जानवर-इंसान के बीच बोते रिश्ते


 
निर्देशक एंग ली की लाइफ आॅफ पाइ एक ऐसे लड़के की जिंदगी पर आधारित है. जो तूफान की वजह से अपने परिवार से बिछुड़ चुका है. लेकिन वह एक लाइफ बोट और अपनी उम्मीदों व कोशिशों के कारण जिंदा है. साथ ही उस विरान जिंदगी में उसका एक साथी है. टाइगर. जो कि उसी तरह खुद को बचाने के प्रयत् न में जुटा रहता है. पाइ जो इस फिल्म का मुख्य किरदार है. फिल्म में उसके साथ ही साथ उस टाइगर को भी मुख्य केंद्र में रख कर फिल्म की कहानी बुनी गयी है. एक इंसान के एक जानवर से डर फिर उससे प्रेम और फिर अलगाव पर विलाप करने की यह कहानी दिल को छूती है. कुछ इसी तरह निर्देशक एस एस राजोबली की फिल्म मक्खी में भी मक्खी मुख्य किरदार में है. एस एस राजोबली ने फिल्म में अपनी परिकल्पना को उड़ान देकर इतनी खूबसूरती से मक्खी को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया है. दरअसल, हकीकत यह है कि यह सारी फिल्में कोई एनिमेटेड या बच्चों की फिल्में नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद निर्देशक ऐसे जीव जन्तुओं के साथ भी ह्मुन स्टोरी दिखा रहे हैं.  जो लाजवाब है. किसी दौर में फिल्मों में जब जानवरों का प्रयोग होता था. तो वे केवल अपने नायक या नायिका के लिए सिर हिलाने वाले जानवर या नौकर की तरह ही दिखाये जाते थे. राजेश खन्ना की हाथी मेरे साथी, तेरी मेहरबानियां का जैकी श्राफ का कुत्ते से प्यार हो. उन फिल्मों में जानवरों की उपस्थिति मूक होती थी. लेकिन अब निर्देशकों ने अपनी परिकल्पना को इतनी ऊंचाई और नवीनता प्रदान कर दी है कि लोग मक्खी जैसी फिल्में भी सोच सकते हैं. यह दर्शाता है कि अब इस तरह की फिल्में केवल डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का विषय नहीं है. फीचर फिल्मों में भी ऐसे विषयों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया जाये तो भाषा कोई भी हो. हर वर्ग के दर्शक को यह फिल्म प्रभावित करती है.

केंद्र में आते सहयोगी कलाकार


 फिल्म ओह माइ गॉड में मुख्य किरदार में हैं परेश रावल. परेश रावल हिंदी फिल्मों के चरित्र प्रधान फिल्मों के मुख्य नायकों में से एक हैं. वे लंबे अरसे से हिंदी फिल्मों में सक्रिय हैं. उन्होंने अब तक लगभग हर तरह के किरदार निभाये हैं. नकारात्मक, हास्य. गंभीर. सभी तरह के. हेरा फेरी  में वे बाबू भईया के रूप में प्रसिद्ध हुए तो तमन्ना जैसी फिल्मों में उन्होंने मार्मिक किरदार निभाये. फिल्म रोड टू संगम में भी उन्होंने जिस तरह का किरदार निभाया. वह बेहद भावनात्मक था. लेकिन परेश को हाल में जो लोकप्रियता फिल्म ओह माइ गॉड से मिली है. बतौर केंद्र किरदार. वह अब से पहले कभी नहीं मिली थी. फिल्म सुपरहिट रही है. और हर तरफ परेश के अभिनय की चर्चा हुई. फिल्म में अक्षय की भी भूमिका में है. लेकिन लोग इस फिल्म को परेश की वजह से ही याद रखेंगे. कुछ इसी तरह एंग ली की फिल्म लाइफ आॅफ पाइ में भारत में हर तरफ चर्चा होती रही इरफान खान और तब्बू की. लेकिन फिल्म के मुख्य किरदार जिन्होंने पाइ का किरदार निभाया है. उन्हें लेकर रिलीज से पहले कोई चर्चा नहीं थी. लेकिन रिलीज के साथ ही सूरज ने पूरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. फिल्म को कामयाबी मिल रही है और सूरज जैसे किरदार को दर्शकों का प्यार भी. फिल्म चिट्टगांव में भी झूनकू के किरदार निभानेवाले डेलनाज की काफी चर्चा हुई. दरअसल, हिंदी सिनेमा में जहां एक तरफ गिने चुने पांच सुपरसितारा किरदारों ने अपनी धाक जमा रखी है. उनसे ठीक चल रहे समांतर में कुछ ऐसे चरित्र कलाकार भी हैं जो नायकों पर हावी हो रहे हैं. पंकज कपूर भी मटरू की बिजली का मंडोला में सबसे प्रभावशाली नजर आ रहे हैं. हिंदी सिनेमा के बदलते इस बयार का यह भी एक उल्लेखनीय बात है. धीरे धीरे ऐसी ही फिल्मों से नये किरदारों व कलाकारों को मौके मिलेंगे.

बेसुरे संसार में सुरीले गीत


 फिल्म अछूत कन्या के एक गीत में देविका रानी और अशोक कुमार ने गीत मैं बन का पंक्षी बन बन डोलू रे...का पूरा गीत एक पेड़ के सामने ही गाया है. चूंकि उस दौर में म्यूजिक के कोई इंस्ट्रूमेंट नहीं हुआ करते थे. उस वक्त बेसुरों को सुर में लाना बेहद कठिन था. उस दौर के अधिकतर गाने पेड़ों के इर्द गिर्द ही हुआ करते थे. हुनर की असली पहचान तो उस वक्त ही होती थी. अभी हाल ही में मोहम्मद रफी साहब पर आधारित एक किताब की लांचिंग में अमिताभ बच्चन ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि किस तरह उस दौर में सभी गायकों व संगीतकारों को मेहनत करनी पड़ती थी. गाने की रिकॉर्डिंग में सभी इक्ट्ठे होते थे. खुद अमिताभ अपने घर पर कितनी बार रिहर्सल किया करते थे. राजकपूर भी शंकर जयकिशन और शैलेंद्र के साथ बैठ कर अपने घर पर मजलिश जमाया करते थे. उस दौर में निर्देशकों की उनके संगीतकारों से व गीतकारों से घनिष्ठ मित्रता भी इसलिए हो जाया करती थी, क्योंकि सभी एक दूसरे के साथ काफी वक्त बिताते थे. लेकिन आज के दौर में न तो वह माहौल है और न ही हो पाना संभव है. खुद अमिताभ मानते हैं कि आज बेसुरी आवाजों को भी सुर दिया जा सकता है. सब तकनीक का कमाल हो चुका है. लेकिन उस दौर में ऐसा नहीं होता था. अमिताभ खुद उस माहौल को मिस करते हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि किसी जमाने में हिंदी सिनेमा को खास पहचान दिलाने में हिंदी फिल्मों के संगीत की अहम भूमिका रही. क्योंकि उस दौर में गीत बनते भी सबकी आत्मा से थे. अब की तरह नहीं, कि सभी गायक सिर्फ अपने अपने हिस्से के गाने गाकर चले जाते हैं और अगर संगीतकार को गायक की आवाज पसंद न आये तो वह उसी गायक के नाम पर किसी और की आवाज ले लेता है. संगीत उस वक्त पूजा थी. आज सिर्फ भोग की वस्तु है.