परिणीति चोपड़ा : क्रियेटिविटी दिखाने का होता था मौका
मैं मुंबई में रहती हूं और वह भी अकेले तो मुझे दीवाली के दौरान तो अपने घर की बहुत ज्यादा याद आती है. मैं दीवाली को इसलिए भी ज्यादा मिस करती हूं क्योंकि यह मेरे फेवरिट पर्व होता था. मेरा अंबाला में काफी बड़ा सा घर है और दीवाली में पूरे घर में ट्यूनिंग बल्ब लगाने का काम मेरा ही होता था. मैं ही पूरे घर को अलग अलग तरह के चाइनिज बल्ब से सजाती थी. मां लड्डू बनाने में व्यस्त रहती थी और मैं और पापा घर को सजाने में. जब मैं बाहर पढ़ने भी गयी थी तो मेरी यही कोशिश होती थी मैं इस दिन घर पर ही रहूं. मैं दोपहर में ही सारे कैंडल लगा दिया करती थी. फिर शाम होने के साथ उसे जलाती और हमारा पूरा घर जगमगा उठता था और मुझे वह देखना बहुत अच्छा लगता था. मैं बाहर जाकर अपने पूरे घर को निहारती थी. मुझे अलग ही अनुभूति होती थी. बचपन में मां मुझे कहती रहती कि खाना खा लो खा लो. लेकिन मजाल है कि दीवाली की रंगोली बनाये बगैर मैं कोई और काम कर लूं. मेरा पूरा ध्यान इसी बात पर होता था कि किस तरह मैं अपना घर बेस्ट से बेस्ट सजाऊं. इस दिन मैं अपने अंदर के क्रियेटिव पर्सन को जगा लेती थी और कई इनोवेटिव आइडियाज से घर को डेकोरेट करती थी. वे सारे दिन अब बहुत मिस करती हूं.
अर्जुन कपूर : दादी मां के हाथों का खाना
मैं जब छोटा था तो इस दिन का बेसब्री से इंतजार इसलिए करता था, क्योंकि मेरी दादी बहुत ही अच्छा खाना बनाती थी इस दिन और मेरे दिमाग में हमेशा यह बात होती थी. मैं अपना पेट सुबह से ही खाली रखता था.ताकि शाम में ज्यादा से ज्यादा खा पाऊं. और फिर मैं दादी और मां के साथ मिठाईयां बनाने में उनका साथ भी देता था. और उनके साथ पूजा पर भी बैठता था. मेरे दादाजी घर की पूजा करते थे. इस दिन पापा घर में पूजा में जरूर शामिल होते थे और पूरा परिवार एक साथ होता था. हम सारे कजिन्स मिल कर बहुत एंजॉय करते थे. पटाखे मैं बचपन में बहुत जलाता था. लेकिन अब नहीं जलाता. लेकिन मेरे लिए दीवाली दादी मां के हाथों के खाने की वजह से खास रही. सारी बहने मिल कर रंगोली बनाती थी. तो उन्हें मैं बहुत तंग भी करता था. लेकिन वे सारी यादें बेहद खास हैं और उन्हें आज भी याद करके खुशी मिलती है.
सेकेंड स्टोरी
दृश्यों के दिल में दीवाली
हिंदी सिनेमा में निर्देशकों ने दीवाली को अलग अलग रूपों में प्रस्तुत किया है. कभी फिल्म में इस पर गाने फिल्माये गये हैं तो कभी कुछ दृश्य. दीवाली के दृश्य आम दृश्यों की तूलना में अलग तरीके से कैसे फिल्माये जाते रहे हैं और उन दृश्यों से जुड़ी कुछ यादें निर्देशकों ने सांझा की अनुप्रिया के साथ.
बिंदू जी के विग में लगी थी आग : सूरज बड़जात्या
फिल्म : हम आपके हैं कौन
यूं तो परदे पर दीवाली के दृश्य देखने में बेहद सुंदर लगते हैं, क्योंकि जगमगाहट किसे पसंद नहीं हैं. लेकिन दीवाली के सीन फिल्माने में काफी दिक्कतें भी आती हैं. पहली दिक्कत तो यह आती है कि अगर टेक ढंग से न मिला हो तो आपको दोबारा से शूटिंग करनी पड़ती है. इसमें बहुत पटाखे जल जाते हैं. दूसरा आपको सावधानी का ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाये. चूंकि मेरे साथ यह हो चुका है. फिल्म हम आपके हैं कौन की शूटिंग के दौरान फिल्म में धिक ताना गाने के दृश्य में दीवाली दिखाना था. फिल्म में बिंदू जी ने विग पहना है. हम लोग सभी शूट कर रहे थे. उस सीन में मोहनिश आते हैं और पूरा परिवार उनके आवभगत में है. उस दौरान बहुत पटाखे जल रहे हैं. इसी दौरान एक रॉकेट उड़ कर बिंदूजी के विग में लग गया था. शोर था. सो, हम लोग ध्यान नहीं दे पाये थे. फिर किसी क्रू के लोगों ने देखा और फौरन आग बुझायी. बाद में सभी उस दृश्य को सोच कर हंसते हैं. लेकिन उस वक्त मैं डर गया था कि कहीं कोई घटना न घट जाये. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि दीवाली हमारे परंपरा का हिस्सा है और किसी फिल्म में इसकी शोभा और बढ़ जाती है.
मेरा पसंदीदा दृश्य है फिल्म में : करन जौहर
फिल्म : कभी खुशी कभी गम
फिल्म कभी खुशी कभी गम में दीवाली का दृश्य फिल्म का सबसे अहम दृश्य है, चूंकि उसी वक्त हीरो की एंट्री होती है. हमारे यहां दीवाली की मान्यता भी है कि यह परिवार को एक करने की पूजा है. जब मैं फिल्म की स्क्रिप्ट लिख रहा था. उस वक्त मेरे दिमाग में यह बात बिल्कुल स्पष्ट थी कि हीरो की एंट्री कैसे होगी और मैं इसे बड़े पैमाने पर शूट भी करना चाहता था.जिस तरह इस दिन लोग लक्ष्मी जी के आगमन की तैयारी करते हैं. फिल्म में मां राहुल के आगमन की तैयारी कर रही है. इस फिल्म में मैंने जितनी ग्रैंड दीवाली फिल्माई है. शायद ही किसी अन्य फिल्म में फिल्मायी हो. दूसरी वजह यह भी थी कि दीवाली मेरे पिता का पसंदीदा त्योहार था और इस दौरान हमने घर में जो जो देखा था. बस उसे ही फिल्म में दिखाने की कोशिश की है और दर्शकों ने इसे बेहद पसंद भी किया. मैंने फिल्म का टाइटिल ट्रैक भी दीवाली पर ही फिल्माया.यह सीन मेरे लिए इसलिए भी खास थी क्योंकि इसमें पहले वहीदा जी भी थीं. लेकिन बाद में उन्होंने फिल्म से खुद को अलग कर लिया था. लेकिन फिर भी मेरे पास उनकी शूटिंग की क्लीपिंग हैं जो मेरे लिए बेहद खास है.
मोहब्बत की मोहब्बत वाली दीवाली
फिल्म मोहब्बते में दीवाली को खास तरीके से फिल्माया गया है. फिल्म के गीत पैरों में बंधन हैं...दीवाली के अवसर पर ही फिल्माया गया गीत है. इस गाने के दृश्य में हर तरफ रोशनी है और ढोल के साथ गाना बजाना हो रहा है. फिल्म के निर्देशक आदित्य का यह पसंदीदा गीत रहा है. खासतौर से नदी में तैर रहे दीये को सजाने के लिए आदित्य ने खास तैयारी करवाई थी और कई हजार दीये नदी में तैराये गये थे. आदित्य का मानना है कि फिल्म में इस गीत का खास महत्व इसलिए भी था कि जिस तरह दीवाली में सभी परिवार का एक होना और त्योहार साथ साथ मनाना परंपरा है. ठीक उसी तरह फिल्म में इस गाने में फिल्म के सभी कपल इस गाने में एक हो जाते हैं. सभी एक दूसरे से प्यार का इजहार करते हैं. और दीवाली का त्योहार एक साथ मनाते हैं.
वास्तव की मिलन वाली दीवाली
फिल्म वास्तव में संजय दत्त की दीवाली के दौरान ही अपने घर पर वापसी होती है.और वह तोहफे के रूप में अपनी मां को सोने के गहने देते हैं. वास्तविक जिंदगी में भी दीवाली को हम अपने परिवार के लोगों के वापस आने और साथ में मिल कर खुशियां बांटने वाला त्योहार ही मानते हैं. सो, दीवाली को फिल्म का यह दृश्य भी सार्थक करता है.
दोस्तों वाली दीवाली (जो जीता वही सिकंदर)
फिल्म जो जीता वही सिकंदर में एक गीत दीवाली के बैकड्रॉप पर फिल्माया गया है, जहां मोहल्ले के सभी लड़के लड़कियां मिल कर आपस में गाना बजाना करते हैं. यह दीवाली का ही त्योहार होता है, जिसमें लड़के व लड़की की टीम बनती है और सभी मस्ती करते हैं. दीवाली दोस्तों से मिलने जुलने का ही त्योहार मानी जाती है, सो उस लिहाज से भी फिल्म में यह गीत एक सार्थक गीत है.
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