20160711

इसी बहाने संस्कृत भाषा का ज्ञान तो हुआ : शक्ति अरोड़ा


शक्ति अरोड़ा ने कलर्स के शो मेरी आशिकी तुमसे ही से काफी लोकप्रियता हासिल की. शक्ति की यह खासियत रही है कि वे सकारात्मक व नकारात्मक किरदार हमेशा ही निभाते आये हैं. इन दिनों वह होस्ट की भूमिका में हैं. सोनी के शो मन में है विश्वास में. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश
ेमन में है विश्वास को हां कहने की क्या वजह थी. आपकी यूथ फैन फॉलोइंग है. ऐसे में क्या आपके फैन्स इस तरह के शोज को गंभीरता से लेंगे?
मैं स्प्रीच्युअल हूं और मुझे नहीं लगता कि स्प्रीच्युअल होने का मतलब अंधविश्वास है. मुझे यह शो काफी इंस्पायरिंग लगता है. मुझे इस बात पर विश्वास है कि अगर आप अच्छा काम करते हैं तो भगवान आपके साथ होते हैं और आपका भाग्य भी साथ देता. मैं इस शो से बस इन्हीं कारणों से जुड़ा. मुझे लगता है. अच्छा करोगे तो अच्छा मिलता ही है. हम लोग इस शो में किसी धर्म का प्रचार नहीं कर रहे. बस लोगों के विश्वास को  दर्शा रहे. मेरा मानना है कि अगर आप अच्छा करते हैं तो आपके साथ अच्छा ही होता. जहां तक बात है कि मेरे युवा फैन फॉलोइंग की तो मैं उन्हें फोर्स नहीं कर सकता. मेरा मानना है कि इस शो से अगर पांच प्रतिशत लोग भी इंस्पायर हों तो यह सफल शो है.
आपने इससे पहले भी शो होस्ट की है. यह अनुभव अलग कैसे है?
मुझे लगता है कि शो की होस्टिंग भी एक अलग तरह की कला है. इससे भी आप काफी कुछ सीखते हैं. एक अलग ही विधा है. लोगों से अलग तरीके से जुड़ने का मौका मिलता है. यहां इमोशन अलग तरह का होता है और आॅडियंस से अलग तरीके से जुड़ना होता है. डेली सोप में आप डायलॉग्स को  इंप्रोवाइज भी कर लेते हैं.यहां यह सब मुमकिन नहीं है. 
हमने सुना, आपने इस शो के लिए संस्कृत भाषा की ट्रेनिंग लेनी शुरू की है.
हां, यह सच है. इस शो में श्लोक और दोहों का काफी इस्तेमाल करना होता है. संस्कृत के शब्दों को बोलना मेरे लिए चुनौती थी, क्योंकि  मुझे नहीं पता था कि उन्हें ठीक तरह से कैसे बोला जाता है. इसलिऐ मैंने संस्कृत की क्लासेज ले ली. खास बात यह रही कि मुझे इसमें काफी मजा आया. मेरे हर शोज या प्रोजेक्ट्स से मैंने कुछ न कुछ नया सीखा है. इस शो की वजह से मैंने संस्कृत सीख ली. इन दिनों मैं संस्कृत की किताबें खूब पढ़ रहा हूं. और संस्कृत भाषा पर आधारित वीडियोज भी देखे हैं. यह भाषा मुझे काफी रोचक लग रही.
आपका शो मेरी आशिकी काफी लोकप्रिय शो रहा. लेकिन इसके तुरंत बाद आप फिर से काम पर लौट आये? कोई खास वजह?
मुझे लंबे ब्रेक्स पसंद नहीं. मैं फिलहाल काम करना चाहता हूं. आराम नहीं करना चाहता. हालांकि मैं चाहता था कि छोटा ब्रेक लूं. लेकिन फिर इस शो का आॅफर आया. अच्छी बात यह है कि यह डेली सोप नहीं है तो हफ्ते में तीन दिन की शूटिंग करता हूं .बाकी दिन निजी जिंदगी गुजारता हूं. 
अपने हर प्रोजेक्ट्स से कितना निखारते हैं खुद को?
मुझे नया सीखना पसंद है और मेरी कोशिश होती है कि हर प्रोजेक्ट्स से कुछ न कुछ लूं. एक तरह के किरदार में या छवि में न बंधू. हर तरह के किरदार निभाऊं. हर विधा सीखूं. 
शाहरुख खान इंटरव्यू -01
गौरव नहीं बनता तो नहीं स्वीकारता यह फिल्म : शाहरुख खान
शाहरुख खान की आगामी फिल्म फैन में शाहरुख सुपरस्टार और फैन दोनों ही भूमिकाओं में हैं. इस फिल्म ने उनसे बतौर कलाकार सिर्फ अभिनय नहीं कराया, बल्कि तकनीकी रूप से भी यह फिल्म काफी अलग है. हॉलीवुड की फिल्मों में जो तकनीक कुछ सेकेंड्स के लिए इस्तेमाल किये गये हैं. उस तकनीक का इस फिल्म में दो घंटे इस्तेमाल किया गया है. शाहरुख मानते हैं कि अगर वे गौरव नहीं बनते तो वे यह फिल्म नहीं स्वीकारते. अपनी 25 साल के सफर से वे बेहद संतुष्ट हैं. बेटे का नाम आर्यन ही फिल्म में उनके किरदार का भी ंनाम है, मगर मानते हैं कि गौरव का किरदार नहीं निभा पाता उनका बेटा...शाहरुख खान की यह खासियत है कि वे अच्छे वक्ता है, क्योंकि वे अच्छे श्रोता हैं. वे आपके सवालों को ध्यान से सुनने के बाद ही स्पष्ट रूप से जवाब देते हैं. बॉलीवुड के युवा कलाकारों को शाहरुख से इस कला की ट्रेनिंग तो लेनी ही चाहिए कि जब सवाल पूछे जायें, तो किस तरह उनका टालने वाला व्यवहार न हो. अपनी फिल्म फैन और जिंदगी के कई दिलचस्प पहलुओं से शाहरुख ने अनुप्रिया अनंत और उर्मिला कोरी को अवगत कराया. उन्होंने प्रभात खबर डॉट कॉम से खास बातचीत की. इस लंबी बातचीत के प्रमुख अंश हम प्रभातखबर डॉट कॉम के पाठकों के लिए  किस्तों में लेकर आयेंगे. प्रस्तुत है पहली किस्त 

इस फिल्म में वास्तविक जीवन की छवि को रील लाइफ में दर्शाया है आपने कैसा अनुभव रहा आपका?
मुझे अगर गौरव का किरदार निभाने का मौका इस फिल्म में नहीं दिया जा रहा होता. मतलब अगर फिल्म में मुझे सिर्फ कहा जाता कि मैं स्टार की भूमिका निभाऊं. और गौरव का किरदार कोई और निभायेगा, तो शायद मैं यह फिल्म हरगिज नहीं करता. क्योंकि फिर वह बेमजा हो सकता था.  फिल्म की कहानी फिर प्री रिक्विसिट हो जाती.स्टार का किरदार मुझे लगता है कि कोई भी कर सकता था. फिर दूसरी बात है कि मैंंने चूंकि 25 साल इंडस्ट्री को दिये हैं तो लोग भी फिल्म देखेंगे तो महसूस करेंगे कि हां आर्यन खन्ना स्टार है. वह स्टैबलिश करने में दिक्कत नहीं होगी. आप देखें तो फिल्म में मेरे ही जन्मदिन के सीन लिये गये हैं. जैसे काजोल और मेरी फिल्म में लोगों को यह नहीं बताना होता है कि प्यार होगा इसमें. तो मैं मानता हूं कि आर्यन खन्ना को देख कर लोगों को लगेगा चूंकि मेरा चेहरा उन्हें नजर आयेगा तो वे महसूस करेंगे कि हां किसी सुपरस्टार की कहानी कही जा रही है. मुझे लगता है कि जैसे मेरा किरदार है, वह हिंदी सिनेमा का वह कोई भी स्टार जिसने कम से कम 10 साल 15 साल या फिर लंबी सदी दी है इस इंडस्ट्री को. वह यह किरदार निभा सकते. जैसे अमितजी, सलमान, आमिर, अक्षय, अजय कोई भी. ताकि लोग उनको समझ सकें.  तो हमने इस फिल्म में मेरी ही फिल्में बाजीगर, दिलवाले वगैरह के फुटेज लिये हैं. इस फिल्म की जरूरत थी कि शक्ल मिलती-जुलती होनी चाहिए थी. फिल्म में मेरा एंट्री सीक्वेंस ही है कि मैं लोगों को वेब कर रहा हूं. यह सब मेरी जिंदगी के वास्तविक फुटेज हैं. 
कोटेशन : जिन्होंने लंबी पारी खेली है इस इंडस्ट्री में वही बन सकते थे फिल्म में आर्यन खन्ना. मेरी जिंदगी के कई वास्तविक फुटेज हैं फिल्मों में.

आपके बेटे आर्यन का नाम आपने इस फिल्म में लिया कोई खास वजह, क्या आपको लगता है कि वह आपके साथ इस फिल्म में किरदार निभा सकते थे?
मुझे नहीं लगता कि अभी उसे इतनी एक्टिंग आती है. ये जो गौरव का रोल है. इसमें थोड़ा एक्सपीरियंस ज्यादा चाहिए. मुझे लगता है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति गौरव का किरदार नहीं निभा सकता, जिसके पास अनुभव न हो फैनडम का. स्टारडम का. मैं यह नहीं कह रहा कि मैं ही कर सकता था या मैंने बहुत अच्छा किया है. लेकिन जो भी एक्टर करे, उसके पास अनुभव जरूरी है, क्योंकि इसमें बहुत सारे क्राफ्ट और तकनीक भी है. कैमरा के साथ.  ऐसे भी डबल रोल करना काफी कठिन होता है. मैंने जब डुप्लीकेट में किया था. काफी कठिनाई आयी थी. इसमें होता है कि हाथ नहीं आना चाहिए, कोई होता नहीं है. आपको सोच कर अभिनय करना पड़ता है, तो इसके लिए फिल्मों का अभिनय जरूरी है. और मुझे लगता है कि  मेरा बेटा यह किरदार निभाने के लिए टू हैंडसम हो जायेगा. 
कोटेशन : गौरव का किरदार निभाने के लिए फिल्मों का अनुभव जरूरी 
अब भी अभिनय करते वक्त नर्वस होते हैं. चुनौती लगती है हर फिल्म?
मैं मानता हूं कि हर फिल्म एक चैलेंज की तरह ही होती है. हर फिल्म में चुनौती होती है.हां, मगर जब आप पांच-छह सालों तक एक ही काम करते रहते हैं तो थोड़ा आत्मविश्वास तो आता ही है. मुझे लगता है कि अभिनय करना आसान है, लेकिन अभिनय के बारे में बातें करना मेरे लिए बोरिंग जॉब हो जाता है. मैं अभिनय को सीरियस लेता हूं. लेकिन उसके बारे में बातें करना सीरियस नहीं लेता. लेकिन आप जब कमर्शियल जोन के एक्टर होते हैं, जैसा कि मैं हूं तो खुद को लॉजिक देकर समझाना कि ये ठीक है या नहीं. खुद को कनविंस करना कठिन होता है. जैसे फिल्म दिलवाले का संवाद कि हम शरीफ क्या हुआ सारी दुनिया ही बदमाश हो गयी. यह हीरो टाइप साउंड करता है. और ऐसी फिल्में जब करता हूं, सो कॉल्ड हीरो टाइप तो खुद ही कनविंस करना पड़ता है कि जो दिखाया जा रहा है. सच है. अब जैसे हैप्पी न्यू ईयर उसमें मेरी एंट्री बॉक्सर की तरह हुई है. और मैं अपनी ही लाइन्स का मजाक उड़ा रहा हूं. अगले  सीन के अंदर मैं बैंक रॉबरी की प्लानिंग कर रहा. जीनियस की तरह. तीसरे सीन के अंदर मैं लड़की के साथ रोमांस भी कर रहा हूं. और दूसरे लोगों का टीचर बन गया हूं. तो यह कमर्शियल फिल्म की स्टोरीलाइन होती है. लेकिन कभी कभी खुद को कनविंस करना पड़ता है. अब आप देखें तो फिल्म में मुझे बॉक्सर क्यों दिखाया. पूरी फिल्म में तो मैंने कहीं बॉक्सिंग की ही नहीं है. हीरो टाइप कमर्शियल फिल्म अधिक कठिन होता है मेरे लिए. लेकिन जब मैं रीयल जोन में जाता हंू जैसे चक दे, फैन, स्वेदस मुझे लगता है कि सारी दुनिया मदद करती है. लाइन्स हेल्प करती है. वातावरण मदद करती है. अब जैसे इस फिल्म में गाना नहीं है. तो इसलिए नहीं है, क्योंकि हम चाहते हैं कि जब आप यह फिल्म देख कर जायें तो आपको लगे कि गौरव रियल था. रीयल लोग ऐसे गाना नहीं गाते हैं. तो लोगों को यह लगे कि वह शाहरुख नहीं था, कोई असली आदमी था. और आप घर गौरव को लेकर जायें. यही वजह है कि ऐसी फिल्में करते हुए मुझे मेरे कॉस्टयूम, मेरा लुक, सबकुछ मदद करते हैं. को स्टार्स मदद करते हैं. मेरे डायलॉग मदद करते हैं. मुझे लगता है कि यह कम चैलेंजिंग होता है. रीयल लाइफ किरदार निभाना. जैसे वीर-जारा कमर्शियल फिल्म थी तो अधिक कठिन थी. रानी से मैं इस बात का जिक्र कर रहा था. कि हमने 10 टेक लिया था.हमलोग हंस रहे थे. और यशजी गुस्सा भी हो गये थे कि जाओ पैकअप नहीं करेंगे शूट. यह कनविंस करना खुद को कि मैंं 60 साल का हूं. काफी कठिन था. यह अगर कमर्शियल फिल्म नहीं होती तो हो सकता है कि वहां रानी नहीं आती. सुहानी की तरह कोई छोटी लड़की आतीं. तो उसको बेटी कहना आसान होता. इस लिहाज से रईस भी रियलिस्टिक फिल्म है. अगर हम गाना भी कर रहे हैं रईस में,  तो कोरियोग्राफी भी इस तरह कर रहे हैं कि मैं अचानक से उसमें बेस्ट न दिखने लगूं. गैंगस्टर किस तरह अपने मोहल्ले में डांस करेगा.तो गैंगस्टर कैसे नाचेगा. मैंने उसी तरह डांस किया है. 
कोटेशन: कमर्शियल किरदार हैं अधिक कठिन. रियलिस्टिक किरदार रियल होते तो सारी दुनिया, माहौल, वातावरण से मदद मिल जाती है.
आपकी अब तक के 25 साल के सफर को किस तरह देखते हैं आप और क्या आपको लगता है कि आपकी क्षमता का अब भी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया गया है?
मेरे निर्देशक करन जौहर, संजय लीला भंसाली, आदित्य चोपड़ा, मनीष, अजीज मिर्जा जो कि मुझे जानते हैं. वे मुझे कहते हैं कि मेरे पोंटेंशियल का सही इस्तेमाल नहीं किया गया है. लेकिन वे मेरे लिए सिर्फ फिल्में तो लिखेंगे नहीं( हंसते हुए) हां मगर कुछ फिल्मों को देख कर मुझे लगा कि मेरी क्षमता का सही से इस्तेमाल नहीं हुआ है. रब ने बना दी जोड़ी में आदी ने कोशिश की कि वह थोड़ा अलग टच दे, नकली उसका बेस है. मगर सूरी को रीयल टच देने की कोशिश की है. और मुझे लगता है कि आदी की वजह से ही मुझे रोमांटिक इमेज मिली. आदी ने ही कहा कि मुझे फैन करनी चाहिए.  मुझे नहीं पता कि मुझे किस तरह की फिल्में करनी चाहिए. लेकिन खुशी मिलती है, जब संजय लीला भंसाली ने मुझे कहा था कि अगर मैं देवदास नहीं करता, तो वह यह फिल्म नहीं बनाते. उन्होंने कहा था कि मुझे तुम्हारी आंखें देख कर देवदास की आंखें याद आती हैं. ऐसा कहा था उन्होंने. उस वक्त मैं बहुत बड़ा सुपरस्टार था भी नहीं.तो जब कोई निर्देशक इतना विश्वास दिखाता है तो मैं भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता हूं कि विश्वास जीत सकूं. फिर मैं अपने क्राफ्ट पर काम करता हूं. और जब कभी मेरे मन मुताबिक मुझे फिल्म नहीं मिलती, तो भी मैं उसमें अवसर तलाशने की कोशिश करता हूं कि चलो कहानी के आधार पर नहीं तो तकनीकी रूप से फिल्म अलग होगी. जैसे मुझे वह फिल्म की कहानी बहुत अच्छी लगी थी. जॉली एलएलबी. अरशद वाली. लेकिन उस वक्त मेरे पास वक्त नहीं था तो मुझे यह गलत लगा था कि मैं उन्हें इंतजार कराऊं. तो उस तरह की फिल्म शायद मेरे लिए कुछ अलग होती. लेकिन मंै कर नहीं सका था. चकदे के लिए आदी ने किसी और को कास्ट किया था. उसने किसी के साथ ट्रायल भी किया.लेकिन उस वक्त आदी ने कहा कि चलो हम इंतजार करेंगे एक साल. लेकिन तेरे साथ ही करेंगे. और मेरी वजह से सारी लड़कियों की कास्टिंग दोबारा से हुई थी. तो मुझे जब कोई ऐसी फिल्म मिलती है, जिसका किरदार मुझे खुशी देता है. जैसे आनंद अभी द्वारफ का किरदार लिख रहे हैं तो यह इंटरेस्टिंग है कि वह एक बिग स्टार को ले रहे हैं और फिर उसे उस किरदार में ढालेंगे तो  काफी दिलचस्प लगी मुझे. तो ऐसे में जब मुझे मौके मिलते हैं तो मैं अपना पोटेंशियल दिखाता हूं. और अगर न मिले  तो जो रहता है खुश रहता हूं. 
कोटेशन : 1.संजय लीला ने कहा था, देवदास की आंखें और तुम्हारी आंखें एक सी हैं. 
2.जॉली एलएलबी की कहानी बेहद पसंद आयी थी. मगर अफसोस नहीं कर सका था
3. आदी ने चकदे के लिए किसी और को कास्ट किया था. लेकिन बाद में उन्होंने फिर एक साल इंतजार किया. सारी लड़कियों की भी री कास्टिंग हुई थी.
आपको युवा दिखाने के लिए जो तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. वह क्या है?
 पहले तो प्रोस्थेटिक लगता है. जो कि आंख के नीचे से लगता है.इसमें चार-पांच घंटे लगते हैं. आंख बड़ी की गयी है. मेरी आइब्रोज का शेप ऐसा है, तो हमने इसको सीधा किया है. नाक छोटी की है. होंठ और दांत को इनहांस नहीं किया है. एक्टिंग करते वक्त बस ध्यान दिया है. थोड़ा वजन कम किया है. इसकी शूटिंग के बाद इसी मेकअप के साथ सारे के सारे सीन एक ही लाइट में शूट करना पड़ता है और यह लाइट लॉस एंजिल्स में ही उपलब्ध है. वहां बड़ा सा बॉल होता है. तो वहां जाकर जो चीजें यहां की होती हैं. वहां जैसे 200 एक्सप्रेशन हैं. उसे कवर करते हैं. और वहां जब कैमरा रोल होता है तो एक सेकेंड के अंदर कई तसवीरें खींचती हैं.एचडी होती है. फिल्म को जब टच अप करते हैं तो उन्हीं तसवीरों को देख कर कि वह सेम एक्सप्रेशन लगे. प्लास्ट होता है. पहली बार यह पूरा प्रोसेस देखने के लिए सात या आठ सेकेंड लगते हैं. 300 लोगों को 24 घंटे काम करना पड़ता था. तो हमने सीन कैसा किया यह हमें तीन साढ़े तीन महीने बाद देखने को मिलता था. पिछले 10 दिन में हमने ज्यादातर सीन देखे.यही वजह है कि हॉलीवुड में भी दो तीन मिनट के लिए इस्तेमाल किया है इस तकनीक का. जैसे कैप्टन अमेरिका है. एंटमैन में. लेकिन वह बेसिक है. लेकिन इस फिल्म में पूरे दो घंटे के लिए किया है और वह काफी कठिन रहा. 12-12काम करते थे और 7-8 सेकेंड का सीन होता था.
आप किसके फैन हैं?
ैम्मैं अपने बच्चों का फैन हूं. क्योंकि वह जब मेरे पास नहीं होते.तब भी मैं उन्हें याद करता हूं और उनके बारे में सोच कर खुश होता हूं. मैंने अपनी वैनिटी में भी उनकी तसवीरें लगा रखी हैं तो मैं यही कहूंगा कि मैं उनका ही फैन हूं.




फैन्स का प्यार होता है अनकंडीशनल : शाहरुख खान 
शाहरुख खान फिल्म फैन में अलग ही अवतार में नजर आ रहे हैं. वे इसे अपने करियर की खास फिल्मों में से एक मानते हैं. एक सुपरस्टार की जिंदगी में फैन क्या अहमियत रखते हैं...इसी विषय को लेकर मनीष शर्मा ने इस फिल्म का निर्माण किया है. शाहरुख की व्यक्तिगत राय है कि फैन नहीं तो सुपरस्टार्स नहीं. लेकिन फिल्म की कहानी कुछ और ही बयां करती है. फिल्म व कई अन्य पहलुओं पर शाहरुख खान ने उर्मिला कोरी व अनुप्रिया अनंत से खास बातचीत की.

 फैन के ट्रेलर में लगातार फैन के ओबसेशन और कनेक् शन की बात की गयी है. तो क्या आप मानते हैं कि एक फैन का ओबसेशन और कनेक् शन के बीच कुछ रिश्ता है.
फैन की परिभाषा दरअसल, जो हमने सोच रखी है, वह यही है कि जो बेइतहां प्यार करें. एक फैन जो दूर है. वह साउंड ओबसेसिव करता है. लेकिन उसका प्यार अनकंडिशनल वाला ही प्यार है. दूर करने वाले लोग दरअसल, मुझे लगता है कि ज्यादा प्यार करते हैं. नजदीक वाले लोग अधिक कंडिशन लगाने लगते हैं. गर्लफ्रेंड के साथ. या परिवार के साथ कि ये मत करो. वो करो. फैन का प्यार वैसा होता है कि आप जो भी करेंगे मैं आपको प्यार करता रहूंगा. बिना किसी जजमेंट के.बुरा करोगे तो मैं डिफेंड करूंगा. अच्छा करोगे तो अच्छा. मुझे लगता है कि ओबसेशन नहीं है.अनकंडिशनल लव है. कभी-कभी नॉर्मल प्यार भी ऐसा लगने लगता हंै. तो मैं नहीं मानता कि कनेक् शन और आॅबसेशन सेमथिंग है.
इस फिल्म में आपका फैन आपका लुकअलाइक है. तो इसकी कहानी के अनुसार कितनी जरूरत थी और आप जब निजी जिंदगी में अपने लुकअलाइक को देखते हैं तो क्या महसूस करते हैं?
पहले जब हमने यह फिल्म सोची तो एक बात तय कर ली थी कि डबल रोल नहीं लगनी चाहिए कहीं से. मकसद यह जरूर था कि जरूर लगना चाहिए कि दो किरदार है. अगर मेरे साथ मनीष फिल्म बनाना चाहते थे. और शायद ऐसा इसलिए था, क्योंकि रियल में ऐसा कोई एक्टर चाहिए था जिसने 10-15 साल काम किया हो, उसका बॉडी आॅफ वर्क हो. जैसे जो हमने अर्काइव फोटोज इस्तेमाल किये हैं, वह वास्तविक हैं. अगर ऐसा नहीं होता, तो आपको फिर उसको शूट करना पड़ता. स्टार को समझाना पड़ता कि वह स्टार की तरह बिहेव करे. तो अभी क्या है कि मेरी अपनी एक जर्नी रही है 20-25 साल की. तो मनीष कोशिश थी कि हम शाहरुख की तरह लुकलाइक लायें, लेकिन वह शाहरुख न हो. बस कि उस फैन में  झलक हो आर्यन खन्ना की.फिल्म में कभी कभी ऐसा लगे कि फैन स्टार जैसा है और कभी-कभी न भी लगे कि वह स्टार जैसा है. और मैं जब निजी जिंदगी में किसी लुकअलाइक देखता हूं तो मुझे लगता है कि मैं ही ज्यादा हैंडसम हूं(हंसते हुए).
गौरव के किरदार में आप अपनी उम्र से कम उम्र के नजर आ रहे हैं. बतौर एक्टर अपने उम्र से कम उम्र का किरदार निभाना कठिना होता है या अधिक उम्र का किरदार?
गौरव का जो इस फिल्म में मेकअप है, शायद बॉलीवुड में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी को जवान दिखाने के लिए पॉसथेटिक मेकअप का इस्तेमाल किया गया है. जैसे कपूर एंड सन्स में ऋषि कपूर साहब को बड़ी उम्र का दिखाने के लिए इस मेकअप का इस्तेमाल किया गया था.यह जब लगता है तो लाइन्स बहुत खींच जाती है. थोड़ी सी भी गड़बड़ी हो तो नजर आने लगती है. मुझे लगता है कि यह एक्सपेरिमेंट पहली बार हुआ है. जहां तक बात है परफॉरमेंस की तो मुझे खुद से अधिक  उम्र का किरदार निभाना कठिन लगता है.चूंकि मेरी जो फिजिकैलिटी है. वह एक लड़के की तरह है. मैं मर्द सा नहीं लगता हूं. एल्फा मैं लगता ही नहीं हूं. कितने भी मशल्स बना लूं. मैं ब्वॉय जैसा ही दिखूंगा. तो मेरे लिए कम उम्र का किरदार आसान होता है. वही दूसरी तरफ जब मैं वीर जारा में बुजुर्ग का किरदार निभाया था तो वह काफी कठिन था. एक तो उस वक्त मुझे रानी मुखर्जी को बेटी कहने में भी काफी दिक्कतें आ रही थीं. यश अंकल नाराज भी हो रहे थे. मेरा माइंडसेट भी वैसा ही युवाओं वाला है. खासतौर से मैं जब काम न करूं तो अपने बच्चों से ही घिरा रहता हूं तो मेरा माइंडसेट यंग है. चुलबुला है. भले ही मैं 50 की उम्र पार कर चुका हूं फिर भी. मेरे बच्चे को भी ब्वॉय जैसा लुक ही पसंद है.
आपके किसी फैन ने कभी ऐसा कुछ किया हो, जिसने आपको चौका दिया हो?
नहीं, मैं दरअसल ज्यादा लोगों से मिलता ही नहीं हूं.मुझे मालूम नहीं. लेकिन हां, मैं कुछ सुना है कि अमेरिका में किसी महिला ने मेरे लिए चांद पर जमीन खरीद कर रखी है.एक हैं जो स्केच बनाते हैं.मुझे लगता है कि यह जमाने की और उम्र की भी बात होती है. आप देखें तो फैन्स अधिकतर युवा उम्र में अधिक बनते हैं. चूंकि वह जवां उम्र होती है और किसी काम के लिए उनमें जोश होता है. और वे वह कर जाते हैं जो शायद एक मैच्योर न करे. हां, बस यह जरूर कहूंगा कि कोई मुझे खुश करने के लिए खुद को नुकसान पहुंचाये तो वह मुझे पसंद नहीं है. मेरी एक फैन ने मुझे फोन किया था. वे बार-बार कर रही थीं. उनका कहना था कि उन्होंने सपना देखा है कि मेरी डेथ हो गयी है. मैं उस वक्त सर्जरी के लिए जा रहा था. मैं जब लंदन पहुंचा और मैंने पेपर साइन किये तो मैं उस वक्त काफी डर गया था.
आपको क्या लगता है कि एक फैन की क्या सीमाएं होनी चाहिए. किस हद तक उन्हें किसी सुपरस्टार्स की जिंदगी में झांकना चाहिए?
मैं पर्सनली इन बातों पर विश्वास नहीं करता कि मैं फैन को कहूं कि तुम ये करो. ये मत करो, क्योंकि जो फैनडम बनता है. वह सोच कर नहीं होता. सोच कर किया तो वह फैन नहीं होता.मैं जरूर कहूंगा कि खुद को चोटिल मत करो. लखनऊ में मुझे याद है डर के वक्त लोगों ने चाकू से अपने सीने को काट लिया था. जबकि मैंने फिल्म में असल में ऐसा नहीं किया था.तो ऐसे में दुख होता है. मैं बस उन्हें नजदीक नहीं आने देना चाहूंगा. बाकी लोग आते हैं. कई लोग गालियां भी देते हैं तो हम स्टार हैं. हमें उन्हें सुनना ही होगा.प्यार भी करते हैं. खासतौर से मुझे लड़कियों के लिए अच्छा नहीं लगता कि वह भीड़भाड़ में आती हैं और उन्हें धक्के लगे तो.और जब आप तय कर लेते हैं कि आप स्टार हैं तो आप पब्लिक फिगर बन चुके हैं. जब से मैं इस इंडस्ट्री का हिस्सा बना. उसे 8-10 सालों के बाद से ही मेरे परिवार वालों ने यह बात समझ ली थी कि मेरा वक्त अब सिर्फ मेरा या परिवार का नहीं है.ऐसे में जब मैं काम से 3 बजे लौट कर जाता हूं और कहता हूं कि तुमलोगों के साथ इस वक्त बैठना चाहता हूं तो उनका कभी यह कहना नहीं होता कि अभी नहीं. वे मेरे वक्त को समझ चुक ेहैं. वह कभी शिकायत नहीं करते. यही वजह है कि वे मुझे कई जगहों पर साथ जाने के लिए जिद्द नहीं करते. एयरपोर्ट पर भी व ेकहते हैं कि हम पहले निकलते हैं. आपको वक्त लगेगा. हां, मगर उन्हें सिर्फ ये बातें बुरी लगती हैं कि जब मैं नहीं रहता, िफर भी कैमरा उनका पीछे करे तो. किसी पार्टी में उनसे कोई पूछे कि शाहरुख के बेटे हो या बेटी हो तो वे न कह देते. ताकि एंजॉय कर सकें वे.

एक एक्टर के लिए ड्रीम रोल है रजनी : रिद्धिमा पंडित


रिद्धिमा पंडित को देख कर इन दिनों सास की चाहत यही है कि काश, हमारी बहू भी रजनीकांत बन जाये. अपने पहले ही शो से उन्होंने धमाल मचा दिया है. खासतौर से बच्चों को उन्होंने अपना प्रशंसक बना लिया है. लाइफ ओके के शो बहू हमारी रजनीकांत के लीक से हट कर विषय होने की वजह से इन दिनों दर्शकों को यह शो बेहद पसंद आ रहा है.रिद्धिमा रोबोट का किरदार निभा रही हैं. लेकिन वह अपने किरदार में रोबोटिक एकरसता नहीं ला रहीं. यही उनके किरदार की खूबी है. पेश है अनुप्रिया अनंत से रिद्धिमा की बातचीत के मुख्य अंश

आपके शो को काफी लोकप्रियता मिली है. आप इस सफर को किस तरह देखती हैं?
मैं बहुत खुश हूं कि एक अलग तरह का किरदार निभाने का मौका मिला है. सफर बहुत अच्छा रहा है. मैं पहले टीवी करने से डरती थी, कि पता नहीं कैसे करूंगी. इतना हार्ड वर्क है. मैं क्योंकि एड बैकग्राउंड से आती हूं. उसमें कभी काम मिल गया तो मिल गया. कुछ घंटों का काम होता. यहां पर जॉब जैसा है. लेकिन पहले डरती थी. अब तो इतनी सराहना मिल रही है कि मुझे काफी मजा आ रहा है. मेरे फैन्स बन गये हैं. यहां हर दिन कुछ नया करने को मिल रहा है. एक बड़ा प्लैटफॉर्म मिला है.

आपके किरदार रजनीकांत को देखें तो हर दिन उसमें भिन्नता दिखाई देती है.तो हर दिन अलग तरह से तैयारी करना कितना कठिन होता?
जो एक्टर चैलेंज लेने को तैयार हो. उसके लिए तो यह ड्रीम रोल है. जो एक्टर कतराता है. उसके लिए यह मुश्किल होगा. मेरे लिए भी कठिन है. इसमें व्वॉयस मॉडयूलेशन करना बहुत जरूरी है. और जब आप अंदर से महसूस करो कि अपने किरदार को बेस्ट देना है तो आप अच्छा ही काम करेंगी.  मुझे इस किरदार को निभाने में मेरे निर्देशक मदद करते हैं.मेरे को-एक्टर में पल्लवी और करन बहुत मदद करते हैं. को एक्टर्स भी मदद करते हैं. हम सभी एक दूसरे को इंप्रोवाइज करते हैं. 
एक्टिंग का सपना हमेशा से देखा था?
हां, मैं बचपन से ही एक्ट्रेस बनना चाहती थीं. और पता नहीं मैं खुद में यह मान बैठी थी कि मेरे परिवार को शायद इस बात से हर्ज होगा. मैंने कभी उनसे चर्चा ही नहीं की.मैंने इसलिए जॉब किया था पहले. मैं आर्टिस्ट मैनेजर रह चुकी हूं. इवेंट्स मैनेज किये हैं मैंने. फिर एक दिन मैं अपने पिताजी के पास गयी और उनको बोला कि नादिरा बब्बर जी का एक थियेटर वर्कशॉप आ रहा है. और वह मैं करना चाहती हूं.तो पापा ने सपोर्ट किया. मां ने भी.मैंने वह वर्कशॉप ज्वाइन किया. फिर मैं उनके थियेटर गु्रप में काम करने लगी. फिर मैंने कुछ दिनों के लिए एक्टिंग छोड़ी भी थी. लेकिन एक्टिंग में ही मुझे जाना था. तो कुछ दिनों के बाद एड फिल्मों में काम शुरू किया और फिर बस मिलते गये अवसर.
आपका पहला प्रोजेक्ट कौन सा था?
एक डियोडरेंट का विज्ञापन किया था. और उसके बाद से लगातार मुझे आॅफर्स मिलने लगे थे और मैं फिर लगातार काम करती रही. टीवी के लिए हमेशा से मुझे  आॅफर आते थे. लेकिन मैंने तय कर रखा था कि कुछ भी नहीं कर लेना है. अच्छे अवसर मिलेंगे और अच्छा किरदार कुछ हट के तभी करूंगी. मुझे कुछ अलग करके ही यहां आना है. और मुझे यह शो मिल गया. 
जब शो की शुरुआत हुई थी तो कभी  मन में संदेह था कि यह प्रयोगात्मक शो अगर कामयाब न हुआ तो क्या होगा?
नहीं मैं कभी शो को लेकर संदेह में नहीं रही. चूंकि शो का कांसेप्ट अलग है. बतौर आॅडियंस मैं इस तरह के शो जरूर देखना पसंद करूंगी. और अगर शो नहीं भी हिट होता तो मैं खुश होती कि जब लोग कुछ नये की बात करेंगे तो लोग मुझे रजनी के नाम से याद तो जरूर करेंगे. लेकिन खुशनसीब हूं कि लोगों को शो पसंद आ रहा है. खासतौर से बच्चे मेरे फैन्स बने हैं. इस बात की खुशी है. वे जब मुझसे मिलने आते हैं तो गौर से देखते हैं कि मैं किस तरह से बर्ताव कर रही हूं. मैं भी इनसानों की तरह ही हूं. लेकिन टीवी में तो अलग हूं तो उनकी दिलचस्पी देख कर अच्छा लगता.
रिद्धिमा में रजनी के कौन से फीचर्स हैं ही नहीं?
रिद्धिमा को दुख होता है. वह सेंसटिव है. रिद्धिमा को तो बहुत रोना आता है. रजनी की तरह उसके पास हर बात का सॉल्यूशन नहीं और रजनी डिप्लोमेटिक नहीं हो सकती. चूंकि मशीन है. इनसान नहीं हो सकता.
जब एक्टिंग नहीं कर रही होतीं तो क्या करना पसंद है?
परिवार के साथ वक्त बिताना और छुट्टियां अगर लंबी मिले तो ट्रैवलिंग करना पसंद है. 

आराध्या को पता है मेरे किरदार का नाम : ऐश्वर्य राय बच्चन



ऐेश्वर्य राय बच्चन फिल्म सरबजीत में दलबीर कौर की भूमिका में हैं. वे बताती हैं कि वे इस किरदार से काफी प्रभावित हुईं और वे दलबीर कौर को सलाम करती हैं. हाल ही में वे कान महोत्सव से भी लौट आयी हैं. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश

 दलबीर का किरदार
मैंने इस फिल्म को हां इस वजह से ही की, क्योंकि मैंने सुनी थी पूरी कहानी. फिर मैं इस बारे में अच्छी तरह से वाकिफ थी कि उस वक्त क्या हुआ था. यह कहानी दिल दहलाने वाली है. आपको चौकाती है यह फिल्म. सरबजीत  तो जेल काट रहे थे. लेकिन लंबे अरसे तक किस तरह उनके परिवार ने उनका साथ दिया और संघर्ष किया. उन्हें सलाम है. किस तरह उनकी बहन ने खुद की पूरी जिंदगी भाई की रिहाई के संघर्ष में लगा दी. यह काफी प्रेरणा देती हैं. ऐसी महिलाएं भी हमारी आदर्श बननी चाहिए. इस वजह से इस कहानी ने मुझे प्रभावित किया.
आराध्या को पता है मेरे किरदार का नाम
आराध्या को अब धीरे धीरे मेरे काम की समझ होने लगी है. खास बात यह है कि उसे इस फिल्म में मेरे किरदार का नाम पता था. जब फिल्म के प्रीमियर पर जाने से पहले हम बातें कर रहे थे तो उसने तुरंत बोला सरबजीत नाम है न फिल्म का और आप दलबीर कौर का किरदार कर रहे हो.यह सुन कर मैं भी चौक गयी थी. आराध्या ेजानती है कि मैं अपने काम की वजह से उसे नजरअंदाज बिल्कुल नहीं करती.इसलिए मुझे कभी कोई परेशानी नहीं होती. वह जिद्दी बच्ची नहीं है. काफी एंजॉय करने वालों में से है.
कान में लिपस्टिक को लेकर चर्चा
मेरा मानना है कि मैं अभिनेत्री हूं और हमेशा कुछ नया करना मुझे अच्छा लगता है.मुझे यह करने में बहुत मजा आया और मुझे इसके लिए मिक्सड रिस्पांस मिले. मेरा मानना है कि सिर्फ इस बार ही नहीं, जब भी मैं रेड कार्पेट पर होती हूं, कान में. मेरी कोशिश होती है कि मैं कुछ नया करूं. फिर वह वाउ हो या नो हो. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. दरअसल, मुझे लोगों की बातों का बुरा ही नहीं लगता.
नहीं हूं प्रेगनेट
इस बात को लेकर बेवजह अफवाह उड़ाये जा रहे हैं. मेरे मजाक को भी लोग गंभीरता से लेते हैं. मैं प्रेगनेट नहीं हूं. और यही हकीकत है.
अभिषेक के साथ फिल्म
हमें कोई वैसी फिल्म मिले तो हम जरूर करना चाहेंगे. हमारी पिछली फिल्में आज जब हम देखते हैं तो महसूस करते हैं कि इससे बेहतर काम हम कर सकते थे. उन्हें देख कर महसूस भी करते हैं कि अभी और भी बहुत कुछ हमें सीखना है. 
ऐ दिल है मुश्किल
ऐ दिल है मुश्किल में मैं एक ऐसा किरदार निभा रही हूं, जिसे लेकर मैं खुद बहुत उत्साहित हूं. करन के साथ हमेशा से काम करना चाहती थी. हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं. लेकिन हमारी बात ही नहीं बन पा रही थी. इस बार जो किरदार निभा रही. वह काफी मजेदार है. लोगों को मजा आयेगा. 

आया ही इसलिए था कि अपनी तरह की फिल्में करूं : इरफान खान


इरफान खान जब किसी फिल्म के साथ जुड़ते हैं तो वह फिल्म ब्रांड बन जाती है. इस बार वह मदारी बन कर आ रहे हैं. वे मानते हैं कि युवाओं को अपना आदर्श किसी फिल्म स्टार को नहीं, बल्कि वैसे लोगों को बनाना चाहिए, जो छोटे शहरों व गांवों में कुछ नया कर रहे हैं. उन्होंने स्वीकारा है कि लोगों का विश्वास उनकी सरीकी फिल्मों पर बढ़ा है. अपनी आगामी फिल्म के अलावा उन्होंने कई पहलुओं पर  बातचीत की.

मदारी सिस्टम के खिलाफ खड़ी है?
नहीं, सिर्फ सिस्टम के खिलाफ खड़ी है. ऐसा ही नहीं है. यह फिल्म इमोशनल थ्रीलर भी है.सिस्टम उसमें एक एलिमेंट है. लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या मुझे सिस्टम से शिकायत है तो मैं कहना चाहूंगा कि ऐसा नहीं होता कि सिस्टम से शिकायत हो जाये.सोसाइटी बदलेगा तो सिस्टम भी बदलेगा.मेरा मानना है कि वह कौन बदलेगा. आम आदमी ही बदलेगा न. वह आवाज उठायेगा तभी बदलेगा.फिल्म में और बहुत सारी चीजें हैं. 
इरफान का नाम जब किसी प्रोडक्ट से अब जुड़ता है तो वह ब्रांड बन जाता है. इस मुकाम पर पहुंच कर आप क्या महसूस करते हैं?
यह सब हमारा ही कियाधरा है. हमारे ही कर्मों का फल है. चूंकि आप चाह रहे थे कि इंडस्ट्री एक तरह से चल रही है, तो ऐसे में कैसे जगह बनायें. तो वहां आपको लग रहा था कि आपको अपने तरीके का काम करना है और जगह बनानी है. ऐसे में धीरे-धीरे आपको काम मिले और लोगों ने देखा.चूंकि  लोगों को वह एंटरटेनमेंट मिला है जो अलग है. जो आपके साथ रहता है.वह कहानी आपसे अगले दिन भी बात करती है. इसलिए लोगों ने आपकी फिल्मों को हिट कराया है. शुक्रवार का जो बिजनेस है.वह आपको सोमवार को तय हो रहा है. लोगों ने जब ऐसी फिल्मों को देखना शुरू किया तो सोमवार को फिल्म के बिजनेस ने नया आकार लिया. वह बात लोगों को समझ आती है. कोई फिल्म अगर सोमवार को हिट मतलब वह अच्छी ही है. मैं आया ही यहां इसलिए था कि यहां पर अपनी तरह की फिल्में कर सकूं और जगह बना सकूं.अपनी कहानियों को रिडिफाइन कर सकें. फिर चाहे वह विषय कोई भी हो. मेरी कोशिश है कि मैं नयापन ला सकूं. मेरी यह जरूरत थी और अब मेरी यह पहचान बन गयी है.
इस फिल्म से निर्माता बनने का ख्याल कैसे आया?
यह कहानी ही ऐसी थी कि हम सबको लग  रहा था कि हम अगर जाकर कॉरपोरेट में यह कहानी सुनायेंगे तो जो इंपैक्ट है. वह समझ नहीं पायेंगे. उन्हें लगेगा कि इतना पैसे कैसे डालें.तो बेहतर यही है कि हम खुद पैसे लगायें और बनायें. चूंकि यह रेगुलर स्ट्रक्चर वाली फिल्म नहीं है. फिल्म कहीं और से शुरू होती है और कहीं और जाती है. कई फिल्में होती है, जो पेपर पर एक्साइट नहीं करती. लेकिन होती कमाल की है. पीकू को ही देख लें. उसमें तो कोई कहानी ही नहीं थी.शूजीत सरकार बड़ा नाम था. लेकिन एक्टर हैं तो हम समझ पाते हैं कि हम कहानी में क्या भाव क्रियेट कर सकते हैं. इस फिल्म के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. इस फिल्म में ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करेंगे.
इस फिल्म के माध्यम से क्या आपकी कोशिश है कि आप आम आदमी को यह बता पायें कि उनके अधिकार क्या क्या हैं?
फिल्म में वह एक एलिमेंट है कि आम आदमी की भी जिम्मेदारी है. सिर्फ वोट देना आम आदमी की जिम्मेवारी है. आम लोगों को भी सचेत रहना जरूरी है. राइट्स मांगना अधिकार है तो डयूटी निभाना भी जरूरी है.सिस्टम आपके लिए काम नहीं करेगा. अगर आप वोट देकर निश्ंिचत हो जायेंगे तो सिस्टम आपके लिए काम नहीं करेगा.सिस्टम जैसे चाहेगा. आपको नचायेगा. जब तक कि आपमें कुबत नहीं है.दरअसल, हम हमेशा वैसे ही समाज में जिये हैं. जहां फ्यूडल राजा  राज करता आया. अभी भी ऐसा ही लगता है कि हमने राजा चुन लिया और हम ढोल पटाखे बजा कर तमाशे का जश्न करते हैं. और फिर हमें लगता है कि हमारा राजा ही सबकुछ बदल देगा. इतने भुलावे में रहना तो ठीक नहीं है.
आप मानते हैं कि सिनेमा सोच बदलती है किसी भी लिहाज से?
सिनेमा का योगदान होता है अपना. आपको एंटरटेन करने का भी होता है. आपके मन में सवाल जागृत करने का भी होता है. सिनेमा आपके लिए कुछ ऐसा एक्सपीरियंस छोड़ जाता है. जो बाकी चीजें आपको नहीं देती हैं. कई नयी चीजों के बारे में बता देता है. लेकिन अकेली फिल्म कुछ नहीं कर सकती. 
कोई ऐसी फिल्म जिसने आपको बदला हो किसी भी लिहाज से?
बहुत सारी फिल्में हैं. लिटरेचर है. कई चीजें हैं, जैसे अगर आपने कहीं का सिनेमा देखा है, वह मुल्क नहीं देखा. लेकिन पढ़ा है. फिल्मों में देखा है तो यह सब आपके जीवन पर असर डालती है. सोसाइटी के बारे में अंदाजा मिलता है. जैसे ईरान नहीं गया हूं. लेकिन वहां के सिनेमा से वहां के समाज का अनुमान लगा पाता हूं. सोसाइटी का आभास होता है.लेकिन  हमारे यहां का सिनेमा उतना रियलिटी को डील नहीं कर पाता. लेकिन अब जो सिनेमा आ रहा है. वह रियल भी है. एंटरटेन भी कर रहा. यह जो सिनेमा है वह ज्यादा यूनिवर्सल होगा. नयी आॅडियंस तैयार हो रही है. 

छोटा शहर बड़ा शहर नहीं, काम मायने रखता है : ईशानी शर्मा


ईशानी शर्मा हिमाचल प्रदेश से हैं और वे कई सपने लेकर मुंबई आयी हैं. यह एक बड़ी कामयाबी है कि उन्होंने कभी मॉडलिंग नहीं की है. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने स्टार प्लस के शो हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें में लीड किरदार निभाने का मौका मिला है. पेश है अनुप्रिया अनंत से बातचीत के मुख्य अंश


 इस शो से आपको बड़ा ब्रेक मिला है. शो से जुड़ना कैसे हुआ?
मैंने इस शो के लिए आॅडिशन दिया था. चंडीगढ़ में और फिर मुझे बाद में कॉल आया कि मुझे शो के लिए चुना गया है. मेरे लिए बड़ी बात थी. एक छोटे शहर से आकर यहां इतने बड़े चैनल के बड़े शो का चेहरा बनना मेरे लिए किसी सपने को पूरा होने जैसा ही था. हां, सपना देखा करती थी कि हीरोइन बनूंगी. लेकिन पहला ही मौका इतना बड़ा मौका होगा, यह पता नहीं था. 
हमने सुना, आप कंगना को अपनी प्रेरणा मानती हैं?
हां, बिल्कुल कंगना ने हम सभी को सपने देखने के मौके दिये हैं. कंगना हिमाचल से हैं और मैं भी हिमाचल से हूं तो एक वह कनेक् शन तो है ही. साथ ही मुझे लगता है कि उनका भी कोई बैकग्राउंड नहीं था. वह आउटसाइडर ही थीं. लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी जगह बनायी. वह आम बात नहीं है. मैं उन्हें इसलिए भी प्रेरणा मानती हूं, क्योंकि वह बिंदास रहती हैं. और मैं भी अपनी जिंदगी में बिंदास रहती हूं. मैं सॉल्यूशन तलाशने में विश्वास करती हूं.
अनोखी के किरदार से वास्तविक जिंदगी में कितना राबतां रखती हैं?
सच कहूं तो अनोखी का किरदार बिल्कुल मेरी वास्तविक जिंदगी से मेल खाता है. मैं अनोखी की तरह ही हूं. खूब बोलती हूं और जिंदगी में बहुत ज्यादा रूल्स नहीं रखती. मैं तो अनोखी ही हूं. मेरे परिवार में भी मेरी बातूनी आदत से सब परेशान रहते हैं. लेकिन मैं ज्यादा लॉजिक लगा कर जिंदगी नहीं जीती .मैं बेबाकी से सारी बातें रखती हूं और मैं नेगेटिव सोच बिल्कुल नहीं रखती. काफी सकारात्मक सोच की हूं और पारिवारिक हूं और यह सारे गुण अनोखी के भी हैं. इसलिए भी जब मुझे पता चला कि मुझे कोई ऐसा किरदार निभाना है. मैं काफी खुश हो गयी थी.
सेलिब्रिटी की जिंदगी जीने का मौका आपको पहली बार मिल रहा है. अब तक आपको वह फैन मोमेंट मिला या नहीं?
हां, अभी हाल ही में मैं शूटिंग कर रही थी. फिर जब मैं वैनिटी में गयी तो वहां एक लड़की आयीं और वे बार-बार कह रही थी कि मुझे अनोखी से मिलना है. फिर जब वह मिलीं और उन्होंने बोला कि उन्हें मेरे शो के प्रोमो से ही प्यार हो गया है. यह सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा. मुझे लगा कि मैंने पहली सीढ़ी पार कर ली है. और मैं खुशी से झूम उठी. उम्मीद करती हूं कि मेरी जिंदगी यों ही बदलेगी?
छोटे शहर से इस क्षेत्र में जब भी लड़कियां आती हैं. उनके और उनके पेरेंट्स के दिमाग में बहुत सारी बातें होती हैं. बहुत सारे अनुमान. संदेह होते हैं. ऐसे में आप उन्हें क्या राय देना चाहेंगी?
सच कहूं तो दूर से मैं भी देखती थी, तो मैं भी डरती थी. लेकिन अब जब करीब से जाना है तो एक बात तो समझ ली है मैंने कि यह इंडस्ट्री मेहनतकश लोगों को सलाम करती है. मैंने इससे पहले कभी इतने देर के लिए काम नहीं किया है. लेकिन अब कर रही हूं तो सीख रही हूं. मैं मानती हूं कि काम करते रहना जरूरी है. तभी आप इस इंडस्ट्री में टिक सकते हैं. साथ ही मैं मानती हूं कि छोटा शहर बड़ा शहर कुछ नहीं होता. सब सोच की बात है. आपकी सोच अच्छी होगी तो आप अच्छा ही सोचेंगे और अच्छा ही करेंगे. मैं यहां काम करने आयी हूं और मैं वह पूरी मेहनत से करूंगी. फिर मेरे लिए बाकी बातें मायने नहीं रखतीं. 
आपके परिवार वालों की प्रतिक्रिया क्या थी, जब पहली बार उन्होंने आपको परदे पर देखा तो?
वे काफी खुश हैं और उनका काफी सपोर्ट रहा है. तभी यहां पहुंची हूं. अच्छा लगता है. जब अपने शहर के लोगों के बीच आपको पहचान मिले तो. 
हमने सुना, आपने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है?
हां, मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. और इस वजह से भी अलग तरह की दुनिया देखने के मौके मिलते रहे हैं. मैंने काफी दुनिया भी देखी है. 
शूट का पहला दिन कैसा रहा?
मैं बहुत नर्वस थी. सच कहूं तो.लेकिन सुधीर पांडे सर जैसे सीनियर कलाकार और भी बाकी सभी कलाकारों ने बहुत कंफर्ट जोन दिया मुझे. सेट का माहौल काफी अच्छा है. इसलिए मुझे काम करने में मजा आ रहा है. अभी 12 घंटे कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता.

मैंने भी बढ़ाया है अपना दायरा : रितेश देशमुख


रितेश देशमुख फिल्म हाउसफुल 3 में एक बार फिर धमाल मचाने वाले हैं. वे इस सीरिज की तीसरी फिल्म से जुड़ कर बेहद खुश हैं. पेश है अनुप्रिया से हुई बातचीत के मुख्य अंश

हाउसफुल 3 में फिर से क्या धमाल होने वाला है?
हाउसफुल 1 और हाउसफुल 2 दोनों ही दर्शकों को काफी पसंद आयी थी. यही वजह है कि हमलोग इसकी आगे की सीरिज लेकर आये हैं. मुझे लगता है कि कॉमेडी फिल्मों की सीरिज में दर्शकों को हाउसफुल की सीरिज पसंद आती रही है. कॉमेडी में यह नये जोन की फिल्म है. 
लगातार कॉमेडी फिल्में करके आप बोर नहीं होते?
नहीं मैं ऐसा नहीं कह सकता कि बोर हो जाता हूं. मेरी कोशिश होती है कि मैं कॉमेडी में भी हर बार नया करूं. हुमर को एक्सप्लेन नहीं किया जा सकता है. लेकिन अब मैंने भी अपना दायरा बढ़ाया है. मैंने हाल ही में बैंजो फिल्म की शूटिंग पूरी की है.यशराज के साथ भी मैंने फिल्म पूरी की है, जिसका नाम है बैंकचोर.  यह सारी कॉमेडी फिल्में हैं. 
इस फिल्म में आपने मस्ती खूब की है?
यह फिल्म हमने मस्ती करने के लिए ही की है. हमने जब सुनी कहानी तो हमने सोचा कि हां हम यह फिल्म कर रहे हैं, हम सारे ब्वॉयज ने काफी मस्ती की है. इस फिल्म से अभिषेक, अक्षय से जुड़ने का और मौका मिला. लेकिन ऐसा नहीं है कि लड़कियों ने मस्ती नहीं की है. उन लोगों ने काफी मस्ती की है. हम लोगों की अच्छी टीम बन गयी थी. जैकलीन को काफी सालों से मैं जानता हूं. लीजा से इस बार मिला. नरगिस से इस बार मिला. मजा आया.
आपको लगता है कि वास्तविक जिंदगी में आप जितने गंभीर हैं. दर्शक इसके बारे में नहीं जानते. उनके सामने अलग ही छवि है आपकी तो आप कभी सीरियस किरदार निभाना चाहेंगे?
 फिल्म बने और कामयाब हो तो आपको हौसला मिलता है. लय भारी और एक विलेन में काम किया. और दोनों ही एक्सपेरिमेंट को पसंद किया गया है. बैंजो भी सीरियस फिल्म है. यह एक म्यूजिकल ड्रामा है. उस फिल्म को हां मैंने इसलिए किया क्योंकि अलग तरह का किरदार है.
एंटरटेनमेंट को  लेकर आपकी क्या सोच है?
कई तरह से एंटरटेनमेंट होते हैं. एक तरह से यह स्क्रैच कार्ड की तरह है. मुझे लगता है कि शिफ्ट होता है हुमर में भी. लोग अब इन बातों को समझने लगे हैं. तो मुझे लगता है कि एंटरटेनमेंट वही है. करन जौहर ने कभी खुशी कभी गम बनायी. वह फैमिली ड्रामा थी.लेकिन आज की फैमिली ड्रामा में भी तो बदला है. आज तो लोकेशन में भी शिफ्ट हुआ है. तो आपका जोन अगर सही हो तो लोग उन फिल्मों को एंजॉय कर रहे हैं, जिसमें स्क्रिप्ट है. मुझे लगता है कि दर्शकों की वजह से बदलाव आया है. इतने सारी चीजें आयी हैं. सात साल पहले मोबाइल पर शॉपिंग नहीं करते थे. हर चीज बदल रहा है. 
बतौर एक्टर किस तरह से आप खुद को मांझते हैं?
मैं खुद की तैयारी करता हूं. निर्देशकों पर भी निर्भर करता है. मैं उनसे भी काफी कुछ सीखता हूं. मैं अपने को स्टार्स से भी बहुत कुछ सीखता रहता हूं. अब वक्त के साथ साथ हमें भी बदलना होगा. तभी टिक पायेंगे.
इंडस्ट्री में कई ब्रेकअप्स हुए हैं. ऐसे में खुशहाल दांपत्य जीवन जीने के राज क्या है?
मुझे लगता है कि आपको खुश रहना बहुत जरूरी है. जरूरत सामान्य हो तो आप ज्यादा खुश रह सकते हैं. आप कपल हैं तो अपने अपने विजन को इज्जत देना आना चाहिए.  मैं अपने बारे में कह सकता कि एक दूसरे के विजन को समझना जरूरी है.

आज का तोहफा मेरी तरफ से...


बॉलीवुड व टेलीवुड में कई ऐेसे स्टार्स भी हैं, जिन्हें अपने कास्ट और क्रू की अहमियत समझ में आती है. वे जब फिल्म की शूटिंग कर रहे होते हैं, तो वे जानते हैं कि सारी तैयारियां उनके क्रू मेंबर्स करते हैं. फिर चाहे वह लाइटमैन हो या फिर स्पोट दादा. ऐसे में कई बार वे उन्हें अपनी तरफ से कोई तोहफा देकर अपना आभार प्रकट करते हैं. अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट
 अमृता राव ने किया फैन गिफ्ट
अमृता राव इन दिनों टीवी शो में काम कर रही हैं. मेरी आवाज ही पहचान है में वे लीड किरदार निभा रही हैं और अभी हाल ही में उन्होंने अपने शो के सेट पर  सभी को मोटोराइज्ड फैन गिफ्ट किया है. बकौल अमृता मैंने महसूस किया कि उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है. सेट पर बहुत अधिक गरमी रहती है और हम कई घंटे काम करते हैं. ऐसे में हम तो एसी में बैठ जाते हैं. लेकिन ये लोग नहीं बैठ पाते हैं. इसलिए मैंने सभी को यह गिफ्ट देने का निर्णय लिया. अमृता फिल्मी सेट्स पर भी सबको तोहफे देती आयी हैं.
शाहरुख खान के घर की बिरयानी
शाहरुख खान भी उन चूनिंदा फिल्म स्टार्स में से एक हैं, जो अपने क्रू मेंबर्स का बहुत ख्याल रखते हैं. वे भी सेट पर कई बार तोहफे देते हैं. खासतौर से हर फिल्म की शूटिंग के दौरान, अगर फिल्म की शूटिंग मुंबई में हो रही है तो शाहरुख खान के घर से बिरयानी जरूर आती है और लोग इसका जम कर आनंद उठाते हैं. शाहरुख हर फिल्म के पैकअप होने पर सभी से व्यक्तिगत तौर पर मिलते हैं और उनका आभार प्रकट करते हैं.
दीपिका का तोहफा
हाल ही में दीपिका ने एक विदेशी फिल्म की शूटिंग की है.दीपिका ने इस दौरान फिल्म की पूरी यूनिट को भारतीय तोहफा दिया. उन्होंने सभी को भारतीय परिधान और जूते तोहफे के रूप में दिया. उनका यह तोहफा पाकर सभी बेहद खुश भी थे.
 दीपिका पादुकोण ने बहुत सारे इंडियन मेड, इंडियन आउटफिट, एसेसरी खरीदे. उिनकी गिफ्टिंग लिस्ट पूरी ट्रिपल एक्स की टीम शामिल थी, जिनको वो अपनी यादों  के तौर पर इंडियन गिफ्ट देना चाहती थीं. दीपिकी के करीबियों ने बताया कि करीब 4 महीने घर से बाहर रहने के दौरान यहां के क्रू के द्वारा उन्हें घर जैसा प्यार मिल. वो सबकी फेवरेट भी थीं , जिसकी झलक लोगों ने उनके सोशल मीडिया के स्टेटस और फोटो शेयर्स में देखी है. जैसे ही दीपिका को एहसास हुआ कि उनके जाने का समय नजदीक आ गया है तो उन्होंने सभी को सोविनियर के तौर अपनी पहचान यानी इंडियन कल्चर से सम्भंदित चीजे देने की ठानी. दीपिका ने नेहरू कोट, फूल-पत्ती प्रिंट वाले टिपिकल कुर्ती, सिल्क की टाई, पशमीना शॉल और क्लच पर्स जो इंडिया में ही बने हैं जैसे कई चीजों की भारी तादाद में शॉपिंग की . और सभी को तोहफे दिये.
सलमान खान के घर का खाना
सलमान खान के घर का खाना भी हर फिल्मी सेट की जान है. फिल्म की यूनिट उसे भी मजे लेकर खाती है. सलमान की मां सलमा इस बात का खास ख्याल रखती हैं कि मुंबई शूट के दौरान वे अपने घर का खाना जरूर पहुंचाये. हाल ही में सलमान खान ने सुल्तान के क्रू मेंबर्स को स्पेशल कस्टमाइज्ड हुडिज गिफ्ट किया है. उन्होंने इसे खासतौर से बनवाया और भाई का स्पेशल प्रेजेंट कह कर सबको गिफ्ट किया.
बोमन ईरानी की दान साक
बोमन ईरानी भी सेट पर स्पेशल ईरानी डिश दान साक ले जाना नहीं भूलते. सेट पर उनके घर की दान साक बेहद लोकप्रिय है. फराह खान भी यकनी पुलाव सेट पर लोगों को खूब खिलाती हैं और लोग जम कर इसका स्वाद लेते हैं.
रोहित शेट्ठी की घड़ी
रोहित शेट्ठी अपने क्रू को अपनी टीम मानते हैं और हर फिल्म के पैकअप के बाद वे उन्हें जरूर तोहफे देते हैं. रोहित शेट्ठी के बारे में यह बातें लोकप्रिय हैं कि वे घड़ियां बहुत बांटते हैं.
करीना कपूर
करीना कपूर ने अपने स्टाफ को आइपैड और आइफोन गिफ्ट किया था.
कट्रीना कैफ
फिल्म मेरे ब्रदर्स की दुल्हन की शूटिंग के दौरान कट्रीना ने सभी क्रू को गिफ्ट्स दिये थे. उन्होंने परफ्यूम्स, शॉल, घड़ी और भी कई सारी चीजें तोहफें में बांटी थी. 

डियर डैड


 हिंदी सिनेमा की ऐसी कई हस्तियां हैं, जिन्होंने अपने पिता से विरासत में कई गुण लिये हैं और वे मानते हैं कि अगर उनके पिता न होते तो वे अपनी जिंदगी में इन चीजों को कभी दुरुस्त नहीं कर पाते. ऐसा कई बार हुआ, जो पिता के किसी शब्द और किसी नसीहत या उस लम्हे की वजह से उनके लिये वे सबक बन गये.फादर्स डे के बहाने अनुप्रिया अनंत के साथ कुछ ऐसी ही यादों को सांझा कर रहे हैं स्टार्स

पापा ने कहा था फेल हुआ तो अच्छा हुआ : अनुपम खेर
मुझे अच्छी तरह याद है, जब मैं दसवीं में फेल हुआ था तो मेरे पिताजी मुझे लेकर रेस्टोरेंट गये थे. मैंने पूछा पिताजी हम यहां क्यों आये हैं तो उन्होंने कि हम यहां सेलिब्रेशन के लिए आये हैं. और मैं आश्चर्य में पड़ गया था कि भला कोई असफलता का भी जश्न मनाता है. लेकिन पिताजी ने उस दिन मुझे कहा था कि असफलता का सेलिब्रेशन मनाना सीखोगे,तभी जिंदगी में नया नजरिया दे पाओगे और असफलता से भी घबराओगे नहीं. उसका डट कर सामना करोगे, जैसे कि वह भी जिंदगी का हिस्सा ही हो. और वाकई फिर मैं कभी नहीं घबराया.


 पिताजी ने कहा जाओ और काम करो : अमिताभ बच्चन
उस दिन मैं घर की बालकनी में खड़ा बहुत परेशान था. वह दौर कठिन था. फिल्में नहीं थीं मेरे पास. मैं अभिनय छोड़ कर अन्य कामों में लीन था. पिताजी आये. पूछा क्या हुआ है तुम्हें. कहा पता नहीं, समझ नहीं आ रहा कि कहां चूक हो रही. लेकिन असफल हो रहा हूं. पिताजी ने कहा कि तुम जो सबसे अच्छा कर सकते हो. उस पर ध्यान नहीं दे रहे. तुम अभिनेता हो. कलाकार हो. काम करो. और कुछ मत सोचो. फिर मैंने कहा लेकिन अभी कोई काम नहीं है पास में. उन्होंने कहा कि संकोच मत करो, सामने से काम मांगो. लोग देंगे. क्योंकि तुम खुद को साबित कर चुके हो. मैंने उसी पल यश चोपड़ा को फोन लगाया कहा कि फीस नहीं काम चाहिए. और यूं मैं फिर से उस काम से जुड़ गया, जहां मैं खुद का सर्वश्रेष्ठ दे सकता था. 
 पापा ने कहा, खुद से पहचान बनाओगे तो लंबे टिकोगे : शाहिद कपूर
कुछ दिनों पहले किसी अखबार में पढ़ रहा था पापा का इंटरव्यू. पापा ने उसमें कहा कि मैंने कभी शाहिद के करियर में उसकी मदद नहीं की. मैंने किसी प्रोडयूसर को फोन नहीं किया. और इस बात से खुशी है कि शाहिद ने धीरे-धीरे अपनी पहचान बनायी. मैंने जब यह पढ़ा तो मेरी आंखों में आंसू थे. चूंकि यह बात सच है कि मैंने कभी पापा का नाम इस्तेमाल नहीं किया. पापा ने हमेशा यही राय दी थी कि खुद से पहचान बनाओगे तो लंबी पारी खेलोगे. वरना, वैसाखी की बने रहोगे. मैंने शुरुआत बैक डांसर से की थी. फिर एक वीडियो एल्बम में काम करने का मौका मिला.फिर वहां से हैदर के लिए फिल्मफेयर मिला तो यह एहसास हुआ कि पापा सही कहते थे. उनकी यही सीख मेरी जिंदगी की अहम सीख बन गयी.
ँपापा ने ही बढ़ाया हौसला : विद्या बालन
वह दौर था, जब मैंने तय किया कि मैं एक्ट्रेस बनूंगी और मैंने फिल्म भी साइन कर दी. लेकिन वह फिल्म डिब्बा बंद हुई और उसके बाद मैंने जितनी भी फिल्में साइन की. सारी फिल्में डिब्बा बंद हो गयी. उस दौर में मैं बहुत निराश हुई थी और पूरी तरह से डिप्रेशन में चली गयी थी. मैंने मान लिया था कि यह क्षेत्र मेरे लिए नहीं है. उस हताशा में मेरा साथ मेरे पापा ने सबसे ज्यादा दिया था. उन्हें विश्वास था कि मेरी टैलेंट को रोशनी जरूरी मिलेगी. उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया और जब मैं सफल हुई तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें इस बात का डर बहुत सताता था कि कहीं निराशा में मैं कोई गलत कदम न उठा लूं. इसलिए वे हरदम मेरे साथ रहते थे और यही वजह है कि आज भी मैं असफलता से कभी नहीं घबराती. मेरी पापा से आज भी घंटों बातचीत होती है. 
लेकिन वे मेरे लिए तो बेस्ट पापा हैं : श्रद्धा कपूर
मैं जब स्कूल में पढ़ती थी. वह दौर मेरे पापा का था. उस वक्त उनकी काफी फिल्में रिलीज होती थीं और वे नेगेटिव किरदार निभाते थे. स्कूल में मुझे सभी बहुत चिढ़ाते थे इन बातों से कि मेरे पिताजी नेगेटिव किरदार निभाते हैं और वह विलेन हैं. लेकिन मेरे पापा की यह खासियत थी कि मैं जब भी घर आती तो वह मुझे हमेशा प्यार से समझा देते थे. आज मेरी कामयाबी को देख कर वह कहते हैं कि मैंने उनकी भी जिंदगी जी ली है और वे हमेशा कहते हैं कि सफलता को सिर पर मत चढ़ाना. जल्दी ही उतर जाता है. चूंकि उन्होंने सफलता और असफलता का वह दौर देखा है.मैंने अपने पापा को जब अपनी कमाई से कार गिफ्ट की थी तो वे बेहद खुश हुए थे और मैं उनके लिए कोई भी तोहफा ले जाऊं. तो वह बहुत खुश होते हैं. 

हां, स्टारडम खोने से डर किसे नहीं लगता : सलमान खान


सलमान खान फिल्म सुल्तान को अपनी कठिन फिल्मों में से एक इसलिए मानते हैं क्योंकि इस फिल्म में उन्हें शारीरिक रूप से काफी मेहनत तो करनी ही पड़ी है,पहली बार उन्होंने धोबी पछाड़ सीखी है. पेश है अनुप्रिया अनंत से बातचीत के मुख्य अंश

फिल्म को हां कहने की खास वजह क्या रही?
मैं किसी भी फिल्म को हां तभी कहता हूं, अगर मुझे फिल्म का पहला नैरेशन सुन कर मुझे बहुत मजा आता हो. मुझे लगता है कि ऐसी फिल्म करो कि सेट पे जाने का मन करे. यह नहीं कि सेट पर जाऊं और बाद में वहां हर किसी से पूछता रहूं कि पैक अप कब होगा तो वैसी फिल्म में मजा नहीं आता. इस बार फिल्म में मुझसे काफी मेहनत करायी गयी है. इतनी मेहनत मैंने कभी भी नहीं की थी. इस फिल्म में मैं शूटिंग से पहले वर्कआउट करता था. फिर फिल्म की शूटिंग होती थी और फिर लगातार हमलोग रिटेक प्रैक्टिस करते रहते थे. दरअसल, जब अली फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर आये थे, मुझे सुल्तान की एक लाईन में कहानी पसंद आ गयी थी. दबंग में भी कहानी थी. घर की कहानी होगी तब भी हां नहीं करूंगा. जब तक कहानी पसंद न आये. अरबाज को तो मैं हमेशा कहता रहता कि दुरुस्त करो और दुरुस्त करो. मैं अरबाज की फिल्म दबंग 3 का भी हिस्सा रहूंगा.इसलिए मैंने तय किया कि मैं यह फिल्म जरूर करूंगा.
इस उम्र में आप और कौन-कौन सी चीजें सीखना चाहते हैं?
मेरी दुनिया थोड़ी उल्टी चलती है. मैं पहले चीजें कर लेता हूं और फिर सीखता हूं. जैसे मैंने पहले स्विमिंग की और फिर सीखा. मुझे याद है, सात-आठ साल का था. मुझे मेरे कजिन्स ने एक कुएं में फेंक दिया था और फिर मुझे  कहा तैर कर दिखाओ. मैंने कहा स्विमिंग नहीं आती तो सबने कहा. अब सीख जाओगे. मुझे  याद है, वहां एक सांप था,जिसे देख कर मुझे बहुत डर लग रहा था. लेकिन तैरते-तैरते सीख गया. अभी मैं गाना गाना सीखना चाहता हूं. लेकिन गाना सीखने से पहले तो मैं गा चुका हूं. और फिर गाना सीखना चाहता हूं. और मैं सीखूंगा. लोग मुझसे पूछते हैं कि इस फिल्म के लिए हरियाणवी सीखी क्या. मैं साफ कहता हूं कि इतना आसान नहीं है यह सब. मुझसे नहीं होता. आमिर कर लेता है. मेरी तो शूटिंग के बाद ही बैंड बज जाती थी. मैं टूटी फूटी काम चलाऊ, जितनी फिल्म को जरूरत है. उतना ही सीख पाया हूं. मैं फोक्सड काम नहीं कर पाता बहुत ज्यादा.
आपको कभी स्टारडम खोने का डर सताता है?
किस एक्टर को नहीं सताता. हर एक्टर इस बात से तनाव में रहता है. एक दिन उठो और अचानक तुम्हें कोई प्यार करने वाला न मिले. कोई तुम्हें देखना पसंद न करे. डर लगता है कि क्या होगा. मेरे पिताजी हमेशा कहते हैं कि अपना ख्याल रखना जरूरी है, इसलिए उन्होंने कहा कि मुझे अपना ख्याल रखना जरूरी है. मैंने फिर अपनी बॉडी, अपनी फिटनेस पर ध्यान देना शुरू किया. आखिर लोग हॉल में मुझे देखने आते हैं. पैसे खर्च करके. तो वे मेरी भद्दी शक्ल या बॉडी नहीं देखेंगे न, मैं चाहता हूं कि लोग बोले कि अरे देखो 50 का है. लेकिन लगता नहीं है. इसलिए खुद पर मेहनत करता हूं. स्मोकिंग छोड़ी. अल्कोहल छोड़ी. अपना ख्याल रखा है. वरना, अपना तो पत्ता साफ था न.
रईस आपके साथ रिलीज होने वाली थी. लेकिन उसकी रिलीज तारीख आगे बढ़ गयी. इस पर क्या कहना है आपका? 
मेरा मानना है कि इसे इस तरह न लें कि शाहरुख पीछे हटा या सलमान ने शाहरुख को पीछे हटा दिया. दोनों बड़े स्टार हैं और मुझे लगता है कि दो बड़े स्टार्स की फिल्में एक साथ रिलीज नहीं होनी चाहिए. इससे नुकसान होता है. चूंकि दोनों को जितने थियेटर्स चाहिए. उतने थियेटर्स नहीं हैं हमारे यहां. मैं तो बोलता हूं कि थियेटर बनाना बेहद जरूरी है. जितनी फिल्में रिलीज होती हैं. थियेटर्स नहीं होते. फिर निर्माता बेवजह पैसे बढ़ाता है टिकट के. यह सब झोल लगता. दिलवाले और बाजीराव के साथ यही हुआ. सो, सब अलग अलग टाइम पर आयें और सभी की फिल्में कमाई करें. मेरा यही मानना है. 
हॉलीवुड की फिल्मों ने एक के बाद एक हिंदी फिल्मों को पछाड़ा है. इस पर आपकी क्या राय है?
मेरी यही राय है कि हां, यह सोचनीय मुद्दा है. हमें डरना चाहिए. हम सब तो हॉलीवुड की तरह फिल्में बनाना चाहते हैं. लेकिन बना नहीं पाते तो कहीं के नहीं रह जाते. अपने जड़ों और हिंदुस्तानी फिल्में बनाना जरूरी है. हालांकि प्रेम रतन धन पायो जैसी फिल्मों को लोग यही कहते हैं कि वह आउटडेटेड फिल्में हैं. देखी सी लगती है. लेकिन असली सिनेमा वही है, क्योंकि हिंदुस्तानी है. इस फिल्म को विदेशी भारतीयों के बच्चों को पसंद आयी. फैन्स मेल से पता चलता है. इससे पता चलता है कि भारतीय फिल्मों को भारतीय रहना जरूरी है. वरना, हॉलीवुड ने पूरी तरह से धावा बोला है और यह संकेत है. हमारी इंडस्ट्री के लिए दुख की बात है. 
सुल्तान की जिंदगी से खुद कितने प्रभावित हुए हैं?
बहुत प्रभावित हुआ. खास बात यह आकर्षित करती है कि कैसे कोई व्यक्ति बिना किसी सुख सुविधा के आगे बढ़ने का जज्बा रखता है. फिर खुद को खोकर दोबारा अपनी शान को तलाशने और हासिल करने की सोच रखता है. साथ ही फिल्म में अभिनेत्री का जो किरदार, रियल जिंदगी में वैसी महिलाएं होती हैं, क्या जज्बा होता है उनमें, फोक्सड होते. जिंदगी में सिर्फ एक चीज हासिल करना होता. लालची नहीं होते. इन लोगों को देख कर आप आम सोचना शुरू करते हैं. रियलिस्टिक बनते हैं. 

किरदार ऐसे हों कि पांच साल भी याद रखें लोग मुझे : अनुष्का शर्मा


अनुष्का शर्मा पहली बार महिला पहलवान के किरदार में हैं. वे अपने इस नये अवतार से बेहद खुश हैं. फिल्म सुल्तान को लेकर वे चर्चे में हंै. पेश है अनुप्रिया से हुई बातचीत के मुख्य अंश

इस फिल्म में अपने किरदार की तैयारी आपने कैसे की?
मुश्किल तो था. चूंकि रेस्टलिंग में आप सामने से लड़ते हो. आपका चेहरा कभी किसी की आर्मफिट पर है. कभी कही हैं. कभी कमर में है.तो इन चीजों से आपको असहजता होती है. लेकिन मैंने इस असहजता को तुरंत दूर किया. अगर नहीं करती तो मैं फिर यह किरदार सही तरीके से नहीं निभा पाती. फिर मेरे मन में भी यह बात आयी कि मैं लड़की हूं और जो किरदार निभा रही. वह तो बहुत जोशिली है. सो, मैंने तय किया. जो भी अच्छे से परफॉर्म करूंगी ही. और फिर मैंने यह सब किया. तो मैंने अच्छे से यह सीख लिया. बाद में फिर मैंने भाषा सीखनी शुरू की. हरियाणवी सीखी. डायलॉग को मैं फोनेटिकिली लिखती थी. ताकि मैं जब उसे सीखूं तो वैसे ही सीखूं. मेरे लिए यह कठिन इसलिए भी हो गया था. चूंकि मुझे बहुत कम वक्त में सबकुछ सीख लेना था.मुझे छह हफ्ते से कम समय मिला इसके लिए.लेकिन जब फिल्म का पहला टीजर आया और लोगों ने कहा कि मैं किरदार में फिट दिख रही हूं तो मुझे लगा मेरी मेहनत सफल हो गयी.
यशराज फिल्म्स से ही आपने अपने करियर की शुरुआत की थी. फिर से यशराज की एक और फिल्म आप कर रही हैं. जब इस बैनर की फिल्म करती हैं तो क्या महसूस करती हैं?
मेरा सफर बहुत अच्छा रहा है.मेरे लिए यशराज घर जैसा है. मुझे यशराज ने अपने बैनर की सारी अच्छी फिल्में करने का मौका दिया है हमेशा. उनकी वजह से ही आज मैं यहां हूं. आदित्य ने उस वक्त मुझमें विश्वास जताया जब मुझ पर कोई विश्वास नहीं कर रहा था. खुद करन जौहर कहते आये हैं कि उन्होंने आदित्य को मना किया था कि वह मुझे कास्ट न करें बैंड बाजा में. लेकिन उन्होंने मुझे मौका दिया और बाद में धीरे-धीरे लोगों का यकीन मुझ पर जगा.
जो किरदार निभा रही हैं. उनसे वास्तविक जिंदगी में आप खुद कितनी प्रभावित हुई.
मैं काफी प्रभावित हुई. चूंकि यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसकी दुनिया गोल्ड मेडल पर आधारित है. वह ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीतना चाहती है. उसे बहुत कुछ नहीं करना. तो ऐसे किरदार आपको प्रभावित करते हैं. आप फोक्स्ड होने की कला सीख पाते हैं. मैंने काफी कुछ सीखा है. साथ ही इसे महिला होने के नाते हर लिहाज से आपका मनोबल बढ़ता है. लड़की होने के बावजूद यह लड़की शादी व्याह के साथ अपना परिवार भी चलाती है और अपना काम भी भलिभांति संभालती है. यह सारी बातें मेरे लिए काफी मायने रखती है.यह एक सिंपल लेकिन बहुत प्यारी सी किरदार है.
सिनेमा कितना बदला है?
राइटर्स की भूमिका बढ़ी है. मेरा मानना है. अच्छी कहानियां अब लोगों को पसंद आने लगी है और अब प्रोडयूर्स भी चाहते हैं कि वे अच्छी कहानियां लेकर आयें. अच्छे स्टूडियोज लेकर आयें.बॉक्स आॅफिस पर भी अच्छी फिल्में बन रही हैं. बतौर एक्ट्रेस मुझे खुशी है कि मैं अच्छी फिल्में कर रही हूं. मुझे हर जगह दिखने में दिलचस्पी नहीं है. मेरे लिए एक्टिंग करना बहुत बड़ी बात है. मैं अच्छे किरदार निभा रही हूं. मैं  अपने किरदारों को दोहराना नहीं चाहती. मैं चाहती हूं कि पांच सालों के बाद अपनी फिल्मों को देखूं तो यह महसूस होना चाहिए कि हां, मैं कुछ ठोस काम किया और ठोस काम इसलिए कर रही, क्योंकि अच्छे आॅफर मिल रहे हैं.
क्या आप मानती हैं कि अभिनेत्रियों का करियर अच्छे काम करने के बावजूद एक वक्त के बाद थम जाता है. इसकी वजह आप क्या मानती हैं?
मुझे हमेशा इस बात से निराशा होती है कि लोग इस तरह की बातें क्यों करते हैं. कमबैक जैसी बातें क्यों करते हैं. कई बार तो हीरो भी ब्रेक पर जाते हैं. साल में उनकी फिल्में नहीं आती हैं. लेकिन फिर भी वे कामयाबी हासिल करते हैं. उनसे कोई नहीं पूछता. उनको कोई नहीं कहता कि यह उनकी कमबैक फिल्म है. मुझे याद है एक साल शाहरुख की कोई फिल्म नहीं आयी थी. लेकिन लोगों ने उन्हें भी कुछ नहीं कहा. अभिनेत्रियां किसी से कम मेहनत थोड़ी करती हैं और उन्हें उनका सम्मान मिलना ही चाहिए.
लड़कियों के लिए आपको क्या लगता  है रेस्टलिंग में कितनी संभावना है?
मेरा मानना है कि हरियाणा तो इसमें अग्रणिय रहा है. वहां काफी मौके मिलते हैं. लेकिन मैं चाहती हूं कि उन्हें और सुविधाएं मिले. स्कोप खुले. एक्पोजर मिले. तभी हम बेहतर काम कर सकते  हैं. लड़कियां तभी इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित होगी.
आपकी और कौन सी फिल्में आने वाली है?
मैं शाहरुख के साथ इम्तियाज की फिल्म कर रही हूं और ऐ दिल है मुश्किल करन की फिल्म है. और भी कई फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़ रही हूं.
अब प्रोडयूर बनने के बाद प्रोडयूसर बनने के कितने गुण आ गये हैं?
मैंने अब थोड़ा बॉक्स आॅफिस, बजट का गणित समझना शुरू किया है. बाकी तो भाई देखते हैं. संभालते हैं. क्रियेटिव स्तर पर काफी नया करने की कोशिश जारी रहती है.

स्वतंत्र सिनेमा बनाना कठिन तो है लेकिन सफर मजेदार है : अशोक यादव


कैरी आॅन कुत्तों... फिल्म के शीर्षक ने ही बॉलीवुड में इस फिल्म को चर्चित बना दिया था. फिल्म के निर्देशक अशोक यादव मनोरंजन के साथ फिल्म में व्यंग्यात्मक तरीके से अपनी बात रख रहे हैं.  अशोक की यह फिल्म स्वतंत्र फिल्म के रूप में उभरी है. वे इस सफर को बेहद रोचक तरीके से तय करते आये हैं.फिल्म के बारे में विस्तार से उन्होंने अनुप्रिया अनंत से बातचीत की.

 शुरुआत कैसे हुई
मैं मध्य प्रदेश के छोटे से शहर दतिया से हूं, जहां से मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा हासिल की, इसके बाद मैं ग्वालियर, इंदौर और दिल्ली में रहा. जहां मैंने आगे की पढ़ाई पूरी की. फिर अंतत: मुंबई आया. आखिर यह मेरी मंजिल जो थी. चूंकि मैं फिल्म मेकिंग को लेकर बहुत ज्यादा क्रेजी था. हर भारतीय दर्शक की तरह मैं भी हिंदी फिल्म का दर्शक रहा हूं. और जब मैं कॉलेज में था. उसी दौरान मैंने अपने एक दोस्त की शॉर्ट फिल्म देखी थी. वह फिल्म ब्लैक एंड वहइट में थी. वही से मेरा प्यार जागा. वहां से मैंने कैमरा खरीदा और काम शुरू किया. मैंने अपनी मां की सोने की चेन बेंच दी थी. जो उन्होंने मुझे गिफ्ट की थी. मैंने शॉर्ट फिल्मों से ही एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया. मैंने मोबाइल से फिल्में बनायी, मेरी मोबाइल से बनी फिल्म एडवेंचर्स आॅफ मिस्टर आइ को बेस्ट फिल्म अवार्ड मिला इंटरनेशनल सेलफोन सिनेमा प्रतियोगिता में.
 मुंबई का सफर
यहां से मेरा नया सफर शुरू हुआ. मैं मुंबई आया. मेरा कोई कनेक्शन नहीं है फिल्म इंडस्ट्री में. मुझे अशोक मेहता सर के साथ काम करने का मौका मिला, जो कि लीजेंडरी सिनेमेटोग्राफर माने जाते हैं. उन्होंने शूटिंग के आखिरी दिन कहा कि किसी को अस्टिट मत करो. बस काम शुरू करो. और फिर वहां से मैंने अपनी जर्नी की शुरुआत की. 
कैरी आॅन कुत्तों की कहानी
कैरी आॅन कुत्तों ऐसे टीनएजर्स की कहानी है, जो काफी क्रांतिकारी हैं. बलिया की कहानी है. फिल्म के को राइटर हिमांशु ओंकार त्रिपाठी हैं. वे खुद बलिया से हैं तो उन्हें वहां के बारे में काफी जानकारी है. याह जगह अपने क्राइम में रिबेलियस नेचर के लिऐ बहुत जानी जाती है. मेरा गांव भी इस वजह से जाना जाता है. और बचपन से यह सारी बातें सुनता आ रहा था. तो मुझे लगा कि इस पर फिल्म बननी चाहिए.और मैं चूंकि इससे वाकिफ हूं तो अच्छी तरह से अपनी कहानी कह पाऊंगा.
स्वतंत्र फिल्म बनाना एक चुनौती
हां, यह सच है कि  स्वतंत्र फिल्म बनाना एक चुनौती होती है. आपको फिनांशियल ही नहीं कई परेशानियों से जूझना होता है. फिल्म का पूरा प्रोसेस अलग होता है. लेकिन आपके पास सर्पोटिव टीम हो तो काम आसान हो जाता है. फिर काफी मजा आता है. हर दिन आप पोजिटिव एनर्जी के साथ काम करते हैं. लेकिन यह है कि ऐसी फिल्में बनाते हुए आप सबकुछ सीख जाते हैं. यह लर्निंग प्रोसेस मैंने एंजॉय किया है.  
फिल्म का अंदाज
चूंकि मैं और मेरे को राइटर रत्ती से हैं तो हम जानते हैं कि वहां किस तरह की बोली बोली जाती है. तो हमारे लिए यह गढ़ना बहुत कठिन नहीं था. हमारी कोशिश रही कि हमारे एक्टर्स एक्चुअल डायलेक्ट में ही बात करें. एंबीयंस भी सही रहे. सबकुछ स्वभाविक लगे. बनावटी न लगे. ताकि छोटे शहर का वह माहौल बड़े परदे पर सच नजर आये. 
कैरी आॅन कुत्तों शीर्षक क्यों
फिल्म में कैरी मेरे किरदार का नाम है और कांदिबरी दूसरा किरदार है जो अपनी ड्रीम को पूरा करने के कोशिश में लगा रहता है. वह मिलिनेयर बना चाहता है. इस तरह कैरेक्टर्स को लेकर फिल्म का शीर्षक सोचा. टीनएजर्स को भी ध्यान में रख कर लिखा है शीर्षक़.
नये कलाकार क्यों
चूंकि फिल्म का थीम ऐसा है. मुझे लगा कि सभी नये लोग ही परदे पर इसकी फ्रेशनेस को बरकरार रख सकते हैं. साथ ही मेरी भी पहली फिल्म है. तो तर्जुब करने का मौका अधिक होगा. इसलिए मैंने तय किया कि मैं अपने सात साथ नये कलाकारों के साथ काम करूंगा. नये लोग ज्यादा पैशन के साथ काम करते हैं और वे भी चाहते हैं कि उन्हें अधिक एक्सपोजर मिले. स्वाभाविक है काम बेहतर ही होगा इससे.
नये लोगों को टिप्स
मैं नये लोगों को यहीकहूंगा कि मेरा भी फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था. लेकिन फिर भी मेरी पहली फिल्म रिलीज हो रही है. तो सपने देखें और जुनून के साथ उसे पूरा करने की कोशिश में जुटें.  हर मेहनत करने वालों को सफलता मिलती ही है.

लड़के की मैनरिज्म समझने में वक्त लगा : अदिति भाटिया


 अदिति भाटिया स्टार प्लस के नंबर वन शो ये हैं मोहब्बते में कमाल दिखा रही हैं. उनका रुही का किरदार बेहद पसंद किया जा रहा है. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश

 अब तक आपका अनुभव कैसा रहा है?
 अब तक का अनुभव अच्छा रहा है.जो काम आप करते हैं, उसमें अगर आपको मजा आ रहा होता है, तो अनुभव हमेशा शानदार ही होता है. अपने साथी कलाकारों से मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है. हम शो में बहुत मस्ती करते हैं.मैं दूसरे प्रोजेक्ट के लिए 10 दिनों तक कश्मीर में थी और मुझे ये है मोहब्बते की बहुत याद आयी.मुझमें और कृष्णा में बहुत बनती है. हम साथ में शॉपिंग के लिए बहुत जाते हैं.शो में बहुत से दिलचस्प मोड़ आने वाले हैं. दर्शकों की प्रतिक्रिया को लेकर उत्सुक हूं.
इस शो में कई दिग्गज वरिष्ठ कलाकार हैं. उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
 सबसे काफी कुछ सीखा है. मैं उनके साथ स्क्रीन पर न दिखूं. फिर भी सभी से बातें करती हूं. सेट पर ज्यादातर वरिष्ठ कलाकारों की कहानियां और उनके अनुभवों को सुनते हुए वक्त बीतता है. हम बहुत मस्ती करते हैं और हर इंसान से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. कुल मिला कर ये हैं मोहब्बते के लिए काम करना मेरी जिंदगी के खुशनुमा दिनों में से एक है.
 शो में किस तरह के मोड़ आने वाले हैं?
 मैं बताना चाहूंगी कि इस बात की खुशी है कि दर्शकों को शो का ट्रैक पसंद आ रहा है. अभी कई तरह के मोड़ आयेंगे और दिलचस्प मोड़ आने वाले हैं.
 शो से जुड़ने से पहले कभी यह शो देखती थीं?
 मैं इसे नियमित रूप से देखती थी और सोचती भी थी कि काश किसी दिन इस शो का हिस्सा बन पाती. यह इतना लोकप्रिय शो है कि कोई भी कलाकार इसका हिस्सा बनना चाहेगा. मुझे याद है जब बालाजी से मुझे कॉल आया था कि  मुझे चुन लिया गया है तो मेरी खुशी और रोमांच की सीमा नहीं थी.जब मैंने शूटिंग शुरू की तो यह सब एक सपने के सच होने जैसा लग रहा था. मैंने बहुत सारे शोज किये हैं, लेकिन मेरे प्रिय शोज में से एक है. एक तो मुझे इतने शानदार कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला. और इसमें मैं लड़के की चुनौतीपूर्ण भूमिका भी निभा पायी.
 मन में यह डर था कि पता नहीं दर्शक बड़ी रुही को पसंद करेंगे या नहीं?
 हां, मन में डर तो था ही, क्योंकि नन्ही रुही ने काफी अच्छे तरीके से अपना किरदार निभाया था. तभी तो वह आज भी अलग रूप में शो का हिस्सा बनी हुई है. और जब भी लीप आता है.दर्शकों की दिलचस्पी को लेकर प्रश्न चिन्ह लगते ही हैं.लेकिन खुशी इस बात की है कि दर्शकों ने मुझे भी स्वीकार किया.
 लड़के की भूमिका निभाने को लेकर मन में क्या बात थी?
 मैं काफी कम उम्र से काम करने लगी थी. यह शो मैंने दिव्यांका त्रिपाठी जी की वजह से की थी.लड़के की भूमिका निभाना मजेदार अनुभव है.लड़कियां समझदार होती हैं, जबकि लड़के बेपरवाह होते हैं. लड़के की तरह व्यवहार करने में पहले परेशानी होती थी. लेकिन अब मुझे आदत हो गयी है. मेरे बाल बहुत बड़े हैं और मेरी कमर तक आते हैं, जिसकी वजह से विग पहनने के वक्त मुझे काफी वक्त लग जाता था.सेट पर लड़के की मैनरिज्म को सीखने में आदी मेरी मदद करता था. अब तो मुझसे चाहे जैसे भी रोल करवालो. मैं जरूर कर लूंगी.
 इनके अलावा किन चीजों में दिलचस्पी है?
 मुझे ट्रैवलिंग और पढ़ना पसंद है. काफी किताबें पढ़ती हूं.

> चुनौतियों के दंगल में एक सुपरस्टार



 आमिर खान ने बॉलीवुड में गौर करें तो स्पोर्ट्स फिल्मों का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व किया है. खास बात यह रही है कि वे फिल्में कामयाब रही हैं. इस बार भी वे रेसलिंग लेकर आ रहे हैं . पेश है अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट

 आमिर खान जब कोई किरदार निभाते हैं, तो वे बतौर एक्टर उस किरदार में खुद को ढालने के लिए शिद्दत से मेहनत करते हैं. यही वजह है कि अगर चुनौती के रूप में उनके सामने कोई स्पोर्ट्स फिल्म भी आये तो वे अपनी उम्र से अधिक मेहनत करने में जुट जाते हैं. नतीजन वे दर्शकों का दिल जीत लेते हैं. आमिर मानते हैं कि बॉलीवुड में स्पोर्ट्स पर बनी फिल्मों को लेकर सोच अलग है.लेकिन फिर भी वे इसे कामयाबी मानते हैं कि उनकी सारी फिल्मों को दर्शकों ने पसंद किया है.
> दंगल
 हाल ही में आमिर खान ने दंगल फिल्म का पोस्टर रिलीज किया है, जिसमें वे चार बेटियों के पिता के रूप में हैं, जो कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इस फिल्म के पोस्टर में वे जिस अंदाज में नजर आ रहे हैं, उससे साफ है कि उन्होंने किरदार में ढलने के लिए कितनी मेहनत की है. इस फिल्म के लिए तो उन्होंने अपने वजन पर एक ही साल में दो बार काम किया है. यही नहीं उन्होंने अपने बालों के रंग पर भी काम किया है. यह किसी सुपरस्टार के लिए एक बड़ी चुनौती रही होगी कि उन्होंने चार बेटियों के पिता का किरदार निभाने का निर्णय लिया. आमिर खुद मानते हंै कि यह उनके लिए बड़ी चुनौती थी. चूंकि वे फिलवक्त बुजुर्ग के किरदार में नजर नहीं आना चाहते थे. वे अपनी भविष्य की फिल्मों को लेकर चिंतित थे कि कहीं बुजुर्ग का किरदार निभाऊं और फिर उन्हें फिल्में ही न मिले. लेकिन उन्हें कहानी इतनी पसंद आ गयी कि उन्होंने नितेश तिवारी को फौरन फिल्म बनाने के लिए कह दिया. वरना, उन्होंने मन बनाया था कि वे यह फिल्म जब 60 साल के हो जायेंगे तब बनायेंगे.
 लगान
 फिल्म लगान को लेकर भी आमिर के मन में कई उलझने थीं. वे कई बार इन बातों को सोच रहे थे कि न जाने यह फिल्म बन पायेगी या नहीं और जिस तरह से लगान बनने में कई दिक्कतें आयी थीं. आमिर फिल्म को लेकर आश्वस्त नहीं थे. आशुतोष को भी फिल्म को लेकर कई लोगों ने मना कर दिया था. कोई इतनी महंगी फिल्म पर बाजी नहीं खेलना चाहते थे. लेकिन ऐसे में आमिर ने हां कह कर सबको चौका दिया था. सभी ने फिर भी आमिर को राय दी थी कि वह गलत निर्णय ले रहे हैं. इतनी महंगी फिल्म नहीं चलेगी और आज के दौर में कौन क्रिकेट मैच पर बनी फिल्म देखना पसंद करेगा. लेकिन आमिर ने उस वक्त भी हिम्मत जुटायी और फिल्म का निर्माण हुआ. आखिरकार आमिर को कामयाबी मिली. आमिर ने भुवन में किरदार में खुद को बखूबी ढाल लिया और दर्शकों को वे बेहद पसंद आये थे.
 अव्वल नंबर
 आमिर क्रिकेट प्रेमी रहे हैं. शायद यही वजह है कि शुरुआती दौर में भी उन्होंने स्पोर्ट्स पर बनी फिल्म में काम किया था. शुरुआती दौर की उनकी फिल्म अव्वल नंबर देव आनंद के साथ उनकी पहली फिल्म थी. 
 जो जीता वही सिकंदर
 जो जीता वही सिकंदर टीनएज की कहानी थी. इस फिल्म में साइकिलिंग को महत्वपूर्ण तरीके से दर्शाया गया था. फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आयी थी. फिल्म में आमिर खान का चुटीला अंदाज भी दर्शकों को बेहद खास लगा था. फिल्म के गाने आज भी दर्शक सुनना और देखना पसंद करते हैं.
 आमिर की बिटिया को भी है फुटबॉल से लगाव
> आमिर की बेटी भी फुटबॉल में काफी दिलचस्पी लेती हैं और हाल ही में उन्होंने सेलिब्रिटीज के साथ फुटबॉल मैच का भी आयोजन किया था, जिसमें कई सेलिब्रिटीज ने शिरकत होकर उनका हौसला भी बढ़ाया 
शाहरुख़ खान ने ईद के मौके पर खासतौर से मीडिया से बातचीत की. उन्होंने इस मौके पर अपने बचपन की कई यादों को भी शेयर किया. पेश है अनुप्रिया और उर्मिला से हुई बातचीत के मुख्य अंश 

बच्चों को कोई इदी नहीं देता 
शाहरुख़ खान ने बातचीत के दौरान कि अब वह बच्चों को कोई ईदी नहीं देते हैं।  पहले दिया करते थे। खुद उन्हें बचपन में ११ रूपये मिला करते थे।  लेकिन अब न तो उन्हें ईदी मिलती है और न ही वे बच्चों को देते हैं।  वे कहते हैं कि जब वे अपने बच्चों को इस दिन सफ़ेद लिबाज पहनने को बोलते हैं तो बच्चों की चाहत होती है कि वे अपने तरीके के लिबाज पहने।  लेकिन वे अपने पिता का मन रखने के लिए पहन लेते हैं। खासतौर से छोटे बेटे अबराम को सफ़ेद कपड़े बेहद पसंद आते हैं। 

चलो पापा बच्चे आ गए
शाहरुख़ खान ने बताया कि  उनके छोटे बेटे अबराम  को भी उनके फैंस से मिलना बेहद पसंद है।  किसी खास पर्व या जन्मदिन के मौके पर शाहरुख़  अबराम तैयार हो जाते हैं और शाहरुख़ से जाकर कहते हैं कि पापा चलो बच्चा हैज कम।  वे फैंस को बच्चा कह कर बुलाते हैं और वे खुद शाहरुख़ को बार बार हाथ खींच कर बाहर बालकनी तक ले आते हैं।  अबराम  को हर पर्व को एन्जॉय करना पसंद है 

क्या कहते हैं अपने बच्चों को 
शाहरुख़ अपने तीनों बच्चों के बारे में  कहते हैं कि मेरे पास खुदा ने  सुहाना के रूप में एक प्रीटी लेडी दी है।  आर्यन के रूप  में हैंडसम हंक दिया है और अबराम  के रूप में मुझे लिटिल गैंगस्टर दिया है।  मेरी दुनिया उनमें ही सिमटी हुई है 

कुछ इस तरह हो रही है बेटे की तयारी 
शाहरुख़ खान अपने बड़े बेटे को एक्टिंग स्कूल में दाखिला दिलाने जा रहे हैं।  लेकिन उन्होंने साफ़ किया है कि  इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि आर्यन एक्टर ही बनेंगे।  कोर्स पूरा करने के बाद यह उनकी मर्जी होगी।  उन्होंने बताया कि  उन्होंने आर्यन के लिए फिल्मों की सूची बना कर उन्हें सौंपी है और कहा है कि  वे वर्ल्ड सिनेमा के साथ साथ भारतीय सिनेमा को भी जरूर देखें।  शोले उन फिल्मों में शामिल है। 

तीनों मिलकर बिरयानी खाएंगे 
शाहरुख़ खान ने बताया कि  पिछले कई सालों से तीनों खान एक दूसरे के घर बिरयानी का आदान प्रदान करते हैं और यह मुमकिन है कि  कभी तीनों खान किसी जगह पर बैठ कर तीनों बिरयानी को मिक्स करके साथ साथ तीनों बिरयानी का मजा लें।  साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि  उन्हें सलमान के घर के पकवान सबसे अधिक पसंद हैं।  चूँकि वहां हर मौके पर बहुत ही स्वादिष्ट पकवान बनते हैं।