इन दिनों एक फिल्म के प्रोमोशन में फिल्म के सितारे फूड यात्रा पर निकले हैं. चूंकि फिल्म का थीम भोजन है. सो, वे कई शहरों में फूड यात्रा कर रहे हैं. वहां के व्यंजनों का आनंद उठा रहे हैं. वर्तमान में बॉलीवुड में प्रोमोशन इस कदर हावी है कि अभी और भी तरह तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं, ताकि प्रोमोशन करने के तरीके में भी कौन सबसे अव्वल आ सके. चूंकि पूरा खेल फर्स्ट डे का है. यानी ओपनिंग का. जितना प्रोमोशन, उतनी अच्छी ओपनिंग़. इसी के तहत यह भी गतिविधि हो रही है. वे फूड यात्रा पर हैं. वही दूसरी तरफ कश्मीर की हालत में अब भी पूरी तरह से सुधार नहीं आया है. वहां अब भी जरूरतमंदों को पूरी तरह से भोजन उपलब्ध नहीं कराया गया है. क्या ऐसे वक्त पर जहां देश का एक कोना भूखे पेट है. वहां सिर्फ फिल्म के प्रोमोशन के लिहाज से फूड यात्रा का आयोजन उचित है. क्या फिल्म के प्रोमोशन का यही अलग अंदाज नहीं होता कि फिल्म के कलाकार कश्मीर के लोगों के लिए भोजन आपूर्ति की अपील करते या खुद से पहल करते या फिल्म के निर्माता ही ऐसे कदम उठाते. क्या हम इस हद तक असंवेदनशील हो गये हैं. हां, यह हकीकत है कि हर बार यह इंडस्ट्री के लिए संभव नहीं कि वह हर बार कदम बढ़ाएं. लेकिन अगर वह प्रमोशन में इतने पैसे खर्च कर सकते हैं तो फिर उसका एक हिस्सा क्यों जरूरतमंदों को नहीं जा सकता. पुराने दौर में दिलीप कुमार, प्राण साहब इस तरह के नेक काम करते रहे हैं और शायद यही वजह है कि वे लीजेंड हैं. वर्तमान में किसी को सौ सालों के लिए नहीं, बल्कि एक दिन का सेलिब्रिटी बनना है. और मीडिया भी उनके ही गुणगान में परेशां हैं. बेहतर हो कि सेलिब्रिटी टिष्ट्वटर से ऊपर उठ कर कुछ कदम जरूरतमंदों के लिए भी उठाएं. सिर्फ अफसोस जाहिर न करें. अपनी सक्रियता और अपनी भूमिका भी दर्शाएं. यह भी उनकी नैतिक जिम्मेदारी हैं
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20141203
प्रोमोशन और जरूरत
इन दिनों एक फिल्म के प्रोमोशन में फिल्म के सितारे फूड यात्रा पर निकले हैं. चूंकि फिल्म का थीम भोजन है. सो, वे कई शहरों में फूड यात्रा कर रहे हैं. वहां के व्यंजनों का आनंद उठा रहे हैं. वर्तमान में बॉलीवुड में प्रोमोशन इस कदर हावी है कि अभी और भी तरह तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं, ताकि प्रोमोशन करने के तरीके में भी कौन सबसे अव्वल आ सके. चूंकि पूरा खेल फर्स्ट डे का है. यानी ओपनिंग का. जितना प्रोमोशन, उतनी अच्छी ओपनिंग़. इसी के तहत यह भी गतिविधि हो रही है. वे फूड यात्रा पर हैं. वही दूसरी तरफ कश्मीर की हालत में अब भी पूरी तरह से सुधार नहीं आया है. वहां अब भी जरूरतमंदों को पूरी तरह से भोजन उपलब्ध नहीं कराया गया है. क्या ऐसे वक्त पर जहां देश का एक कोना भूखे पेट है. वहां सिर्फ फिल्म के प्रोमोशन के लिहाज से फूड यात्रा का आयोजन उचित है. क्या फिल्म के प्रोमोशन का यही अलग अंदाज नहीं होता कि फिल्म के कलाकार कश्मीर के लोगों के लिए भोजन आपूर्ति की अपील करते या खुद से पहल करते या फिल्म के निर्माता ही ऐसे कदम उठाते. क्या हम इस हद तक असंवेदनशील हो गये हैं. हां, यह हकीकत है कि हर बार यह इंडस्ट्री के लिए संभव नहीं कि वह हर बार कदम बढ़ाएं. लेकिन अगर वह प्रमोशन में इतने पैसे खर्च कर सकते हैं तो फिर उसका एक हिस्सा क्यों जरूरतमंदों को नहीं जा सकता. पुराने दौर में दिलीप कुमार, प्राण साहब इस तरह के नेक काम करते रहे हैं और शायद यही वजह है कि वे लीजेंड हैं. वर्तमान में किसी को सौ सालों के लिए नहीं, बल्कि एक दिन का सेलिब्रिटी बनना है. और मीडिया भी उनके ही गुणगान में परेशां हैं. बेहतर हो कि सेलिब्रिटी टिष्ट्वटर से ऊपर उठ कर कुछ कदम जरूरतमंदों के लिए भी उठाएं. सिर्फ अफसोस जाहिर न करें. अपनी सक्रियता और अपनी भूमिका भी दर्शाएं. यह भी उनकी नैतिक जिम्मेदारी हैं
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