हिंदी सिनेमा में शायद पहली बार कोई पंचरवाला नायक है: डॉ द्विवेद्वी
डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के नाम का जिक्र होते ही हिंदी सिनेमा व टेलीविजन के कुछ वैसे पुख्ता व महत्वपूर्ण धारावाहिकों व फिल्मों के नाम जेहन में आते हैं, जिन्हें दर्शाने की चेष्टा कोई ऐसे निर्देशक ही कर सकते हैं, जो खुद उन विषयों पर पारखी समझ रखते हों. शायद यही वजह है कि पिंजर, चाणक्य व उपनिषद गंगा जैसी फिल्में व धारावाहिक लोगों को मनोरंजन ही नहीं ज्ञान भी देते हैं. इसी क्रम में डॉ द्विवेद्वी इस बार फिल्म जेड प्लस लेकर आये हैं. फिल्म में व्यंग्यात्मक व चुटीले अंदाज में एक रोचक कहानी कहने की कोशिश की गयी है. पेश है अनुप्रिया से हुई बातचीत के मुख्य अंश
ेरोचक प्लॉट
आप कल्पना करें कि देश के प्रधानमंत्री को पीपल वाले पीर के दरगाह पर जाने की सलाह दी जाती है. वह वहां चादर चढ़ाते हैं ताकि उनकी सरकार सत्ता में कायम रहे. और इसी दौरान उनकी एक असलम नामक व्यक्ति से मुलाकात होती है, जो कि पंचरवाला है. फिर दोनों में बातचीत होती है. जिसके आधार पर उस पंचर वाले को जेड प्लस की सेक्योरिटी दी जाती है. आखिर उस सेक्योरिटी की क्या वजह है. क्यों एक आम आदमी को जेड प्लस की सेक्योरिटी मिलती है. और कैसे उसकी आम जिंदगी में खलल पड़ जाती है. यह इस फिल्म की केंद्र कहानी है. इस फिल्म में शुरुआत हल्के फुल्के व्यंग्य से की गयी है. लेकिन जैसे कहानी आगे बढ़ेगी, दर्शकों को देश, समाज व आम लोगों की कहानी देखने को मिलेगी. यह राजनीति पर आधारित फिल्म नहीं है. लेकिन राजनीति का समाज व आम व्यक्ति पर पड़े प्रभाव की कहानी है.
असलम पंचरवाला
हिंदी सिनेमा में शायद पहली बार ऐसा होगा, जहां किसी कहानी में किसी देश के प्रधानमंत्री से देश का बिल्कुल आम व्यक्ति यानी पंचर की दुकान चलाने वाली की मुलाकात हुई हो और फिर दोनों की बातचीत के आधार पर उसे जेड प्लस की सेक्योरिटी मिल गयी हो. यह अपने आप में रोचक और उत्साहित कर देने वाला किरदार है. मुझे नहीं लगता कि पानवाला, पंचरवाले या किसी चाय वाले को मुख्य किरदार में रख कर आम आदमी की कहानी कहने की कोशिश इससे पहले कही गयी होगी. इसलिए मैंने ऐसे किरदार चुने हैं और उनके माध्यम से ही कहानी कहने की कोशिश की है.
रामकुमार लिख रहे थे उपन्यास
.रामकुमार इससे पहले राजस्थानी फिल्म लिख चुके थे. मुझे इस बारे में जानकारी थी. साथ ही मुझे यह भी जानकारी थी कि वह सिनेमा में काफी दिलचस्पी लेते हैं. इस फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह ने मुझे ये कहानी मजाक मजाक में सुनाई थी.वह इसे उपन्यास का रूप देना चाहते थे. लेकिन उन्होंने जब मुझे यह कहानी सुनानी शुरू की, उसी वक्त मैं उन्हें कहा कि अब वह रुक जायें. चूंकि कहानी इतनी रोचक थी कि मैंने तुरंत निर्णय लिया कि मैं इस पर फिल्म बनाऊंगा. मैंने रामकुमार को ही कहा कि वे इसको स्क्रिप्ट का रूप दें और मुझे ड्राफ्ट भेजें. रामकुमार खुद राजस्थान से हैं. वह शेखावटी प्रांत से सबंध रखते हैं. सो, उन्हें वहां की भाषा, संस्कृति की अच्छी समझ है. सो, मैंने वह फ्लेवर बरकरार रखने के लिए उन्हें ही कहा कि वे कहानी को फिल्म का रूप दें. रामकुमार के साथ साथ मुझे लेखन में तुषार उपरेती का साथ मिला. तुषार उपरेती भी जर्नलिस्टिक बैकग्राउंड से हैं. और निर्देशन टीम के एन के त्रिपाठी. सभी ने साथ ने मिल कर कहानी को एक आकार दिया. इतने सालों के अनुभव के बाद मैंने महसूस किया कि स्क्रिप्ट राइटिंग का मतलब है राइटिंग और री राइटिंग़. मेरा मानना है कि आप जितना रि राइट करोगे स्क्रिप्ट उतनी अच्छी होगी. और यही वजह है कि जब स्क्रिप्च 23 ड्राफ्ट के बाद तैयार होती है तो जेड प्लस जैसी फिल्म बन कर आती है.
चाणक्य से जेड प्लस तक
मैं चाणक्य से जेड प्लस तक अपने करियर को देखता हूं तो इसमे मैं एक कॉमन थ्रेड पाता हूं. चाणक्य एक एपिक स्टोरी थी. पिंजर एक देश के ट्रेजिक विभाजन को दर्शाती है. मोहल्ला अस्सी देश में बदल रहे सोशल वैल्यूज को दिखाती है और जेड प्लस भारत के कॉमन व्यक्ति की कहानी को दर्शाती है.
फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह बताते हैं कि उनके जेहन में सबसे पहले जेड प्लस की कहानी क्यों आयी. बकौल रामकुमार हम पत्रकार हैं, जब किसी बड़े फाइव स्टार होटल में जाते हैं तो खुद को खास मानने लगते हैं. लेकिन वहां से निकलते ही आम हो जाते हैं. रोड पर आते हैं तो कोई वीआइपी रोड से जा रहा हो तो आपको रोक दिया जाता है कि पहले स्पेशल लोग जायें. बस उसी दुविधा से कि आखिर हम आम आदमी हैं कि खास हैं. जेड प्लस की नींव पड़ी. लगा कि सरकार ही किसी एक ऐसे आम आदमी को जेड प्लस दे कि लोग हैरत में पड़ जायें. जेड प्लस का असलम आम फिल्मों के आम आदमी से अलग इस लिहाज से है कि हमारी फिल्मों में आमतौर पर आम आदमी के साथ चमत्कार होते दिखाया जाता है. हमने असलम के साथ कोई चमत्कार नहीं किया है. उसको रियल बनाये रखा है. जैसा कि आप देखें कि मोदी जी की पत् नी जशोदाबहन कैसे परेशान हैं कि उन्हें सेक्योरिटी मिली है. हम आम आदमी जिंदगी में छोटे छोटे धोखे करते हैं, छोटी छोटी चालाकियां करते हैं लेकिन वह किसी चमत्कार का हिस्सा नहीं होते. असलम हम सबके के बीच से वही वह आदमी है.
डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के नाम का जिक्र होते ही हिंदी सिनेमा व टेलीविजन के कुछ वैसे पुख्ता व महत्वपूर्ण धारावाहिकों व फिल्मों के नाम जेहन में आते हैं, जिन्हें दर्शाने की चेष्टा कोई ऐसे निर्देशक ही कर सकते हैं, जो खुद उन विषयों पर पारखी समझ रखते हों. शायद यही वजह है कि पिंजर, चाणक्य व उपनिषद गंगा जैसी फिल्में व धारावाहिक लोगों को मनोरंजन ही नहीं ज्ञान भी देते हैं. इसी क्रम में डॉ द्विवेद्वी इस बार फिल्म जेड प्लस लेकर आये हैं. फिल्म में व्यंग्यात्मक व चुटीले अंदाज में एक रोचक कहानी कहने की कोशिश की गयी है. पेश है अनुप्रिया से हुई बातचीत के मुख्य अंश
ेरोचक प्लॉट
आप कल्पना करें कि देश के प्रधानमंत्री को पीपल वाले पीर के दरगाह पर जाने की सलाह दी जाती है. वह वहां चादर चढ़ाते हैं ताकि उनकी सरकार सत्ता में कायम रहे. और इसी दौरान उनकी एक असलम नामक व्यक्ति से मुलाकात होती है, जो कि पंचरवाला है. फिर दोनों में बातचीत होती है. जिसके आधार पर उस पंचर वाले को जेड प्लस की सेक्योरिटी दी जाती है. आखिर उस सेक्योरिटी की क्या वजह है. क्यों एक आम आदमी को जेड प्लस की सेक्योरिटी मिलती है. और कैसे उसकी आम जिंदगी में खलल पड़ जाती है. यह इस फिल्म की केंद्र कहानी है. इस फिल्म में शुरुआत हल्के फुल्के व्यंग्य से की गयी है. लेकिन जैसे कहानी आगे बढ़ेगी, दर्शकों को देश, समाज व आम लोगों की कहानी देखने को मिलेगी. यह राजनीति पर आधारित फिल्म नहीं है. लेकिन राजनीति का समाज व आम व्यक्ति पर पड़े प्रभाव की कहानी है.
असलम पंचरवाला
हिंदी सिनेमा में शायद पहली बार ऐसा होगा, जहां किसी कहानी में किसी देश के प्रधानमंत्री से देश का बिल्कुल आम व्यक्ति यानी पंचर की दुकान चलाने वाली की मुलाकात हुई हो और फिर दोनों की बातचीत के आधार पर उसे जेड प्लस की सेक्योरिटी मिल गयी हो. यह अपने आप में रोचक और उत्साहित कर देने वाला किरदार है. मुझे नहीं लगता कि पानवाला, पंचरवाले या किसी चाय वाले को मुख्य किरदार में रख कर आम आदमी की कहानी कहने की कोशिश इससे पहले कही गयी होगी. इसलिए मैंने ऐसे किरदार चुने हैं और उनके माध्यम से ही कहानी कहने की कोशिश की है.
रामकुमार लिख रहे थे उपन्यास
.रामकुमार इससे पहले राजस्थानी फिल्म लिख चुके थे. मुझे इस बारे में जानकारी थी. साथ ही मुझे यह भी जानकारी थी कि वह सिनेमा में काफी दिलचस्पी लेते हैं. इस फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह ने मुझे ये कहानी मजाक मजाक में सुनाई थी.वह इसे उपन्यास का रूप देना चाहते थे. लेकिन उन्होंने जब मुझे यह कहानी सुनानी शुरू की, उसी वक्त मैं उन्हें कहा कि अब वह रुक जायें. चूंकि कहानी इतनी रोचक थी कि मैंने तुरंत निर्णय लिया कि मैं इस पर फिल्म बनाऊंगा. मैंने रामकुमार को ही कहा कि वे इसको स्क्रिप्ट का रूप दें और मुझे ड्राफ्ट भेजें. रामकुमार खुद राजस्थान से हैं. वह शेखावटी प्रांत से सबंध रखते हैं. सो, उन्हें वहां की भाषा, संस्कृति की अच्छी समझ है. सो, मैंने वह फ्लेवर बरकरार रखने के लिए उन्हें ही कहा कि वे कहानी को फिल्म का रूप दें. रामकुमार के साथ साथ मुझे लेखन में तुषार उपरेती का साथ मिला. तुषार उपरेती भी जर्नलिस्टिक बैकग्राउंड से हैं. और निर्देशन टीम के एन के त्रिपाठी. सभी ने साथ ने मिल कर कहानी को एक आकार दिया. इतने सालों के अनुभव के बाद मैंने महसूस किया कि स्क्रिप्ट राइटिंग का मतलब है राइटिंग और री राइटिंग़. मेरा मानना है कि आप जितना रि राइट करोगे स्क्रिप्ट उतनी अच्छी होगी. और यही वजह है कि जब स्क्रिप्च 23 ड्राफ्ट के बाद तैयार होती है तो जेड प्लस जैसी फिल्म बन कर आती है.
चाणक्य से जेड प्लस तक
मैं चाणक्य से जेड प्लस तक अपने करियर को देखता हूं तो इसमे मैं एक कॉमन थ्रेड पाता हूं. चाणक्य एक एपिक स्टोरी थी. पिंजर एक देश के ट्रेजिक विभाजन को दर्शाती है. मोहल्ला अस्सी देश में बदल रहे सोशल वैल्यूज को दिखाती है और जेड प्लस भारत के कॉमन व्यक्ति की कहानी को दर्शाती है.
फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह बताते हैं कि उनके जेहन में सबसे पहले जेड प्लस की कहानी क्यों आयी. बकौल रामकुमार हम पत्रकार हैं, जब किसी बड़े फाइव स्टार होटल में जाते हैं तो खुद को खास मानने लगते हैं. लेकिन वहां से निकलते ही आम हो जाते हैं. रोड पर आते हैं तो कोई वीआइपी रोड से जा रहा हो तो आपको रोक दिया जाता है कि पहले स्पेशल लोग जायें. बस उसी दुविधा से कि आखिर हम आम आदमी हैं कि खास हैं. जेड प्लस की नींव पड़ी. लगा कि सरकार ही किसी एक ऐसे आम आदमी को जेड प्लस दे कि लोग हैरत में पड़ जायें. जेड प्लस का असलम आम फिल्मों के आम आदमी से अलग इस लिहाज से है कि हमारी फिल्मों में आमतौर पर आम आदमी के साथ चमत्कार होते दिखाया जाता है. हमने असलम के साथ कोई चमत्कार नहीं किया है. उसको रियल बनाये रखा है. जैसा कि आप देखें कि मोदी जी की पत् नी जशोदाबहन कैसे परेशान हैं कि उन्हें सेक्योरिटी मिली है. हम आम आदमी जिंदगी में छोटे छोटे धोखे करते हैं, छोटी छोटी चालाकियां करते हैं लेकिन वह किसी चमत्कार का हिस्सा नहीं होते. असलम हम सबके के बीच से वही वह आदमी है.
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