20160513

क्योंकि सास नहीं बहू नहीं ... कहानी बनी कहानी घर-घर की...


एकता कपूर टेलीविजन की क्वीन हैं. उन्होंने महज 14 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी और फिर एक लंबे सफर को तय कर उन्होंने अपना साम्राज्य फैलाया. लोग कई तरह से उनकी आलोचनाएं करते हैं. लेकिन इन बातों से बेफिक्र उन्होंने अपनी पहचान बनायी. उनके ड्रामा और टेलीविजन शोज को देख कर भले ही लोगों के जेहन में यह बातें हों कि वे सिर्फ सास-बहू के शोज गढ़ने में ही माहिर हैं. लेकिन उनकी जिंदगी का एक अहम पहलू यह भी है कि वे अपने साथ काम कर रहीं क्रियेटिव महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही हैं. यही नहीं वर्तमान दौर में कई महिला क्रियेटिव प्रोडयूसर नये आइडियाज के साथ छोटे परदे पर कमान संभाल रही हैं . वे सिर्फ निर्माता नहीं बल्कि रचियता भी हैं, जो नये कांसेप्ट गढ़ रही हैं. 


 सोनाली जाफर ( बहू हमारी रजनीकांत) रोबोटिक बहू का हिट फार्मूला
सोनाली जाफर ने लंंबे अरसे तक एकता कपूर के साथ बालाजी प्रोडक् शन में काम किया है. वे पेशे से पहले पत्रकारिता के क्षेत्र में थीं. लेकिन उन्हें अपनी क्रियेटिविटी को दर्शाना था और ऐसे में उन्हें एकता कपूर का साथ मिला. सोनाली जाफर बालाजी प्रोडक् शन के कई हिट शो के साथ काम किया और इन दिनों बतौर निर्माता बहू हमारी रजनीकांत से जुड़ी हैं. बहू हमारी रजनीकांत ने कम ही समय में दर्शकों के दिलों में जगह बना ली है. वजह यह है कि यह अन्य सास-बहू शोज से बिल्कुल अलग है. शो के नाम में बहू का जिक्र है. लेकिन यह सास बहू सागा बिल्कुल नहीं. यह सोच ही अपने आप में अदभुत और अद्वितीय है कि सोनाली ने यह सोचा कि आमतौर पर समाज की हर बहू से बहुत आशाएं होती हैं. हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी बेटी परफेक्ट हो न हो. बहू परफेक्ट ही होनी चाहिए. लेकिन एक आदर्श बहू के सारे गुण किसी एक लड़की में होना संभव ही नहीं है, चूंकि अगर किसी एक बहू में सबकुछ हो तो वह इंसान नहीं मशीन ही होगी.जो सबको खुश रख सकेगी. इस शो में रजनी बार बार यह दोहराती है कि मुझे बुरा नहीं लगेगा...मुझमें यह फीचर्स है ही नहीं. कई मायनों में सोनाली व्यंग्यात्मक तरीके से दर्शकों को समझाने की कोशिश कर रही हैं कि एक बहू इंसान है तो उसे भी चीजें बुरी लग सकतीं. अगर बुरी नहीं लगे तो वह मशीन ही है. शो का यह अलग कांसेप्ट ही शो की यूएसपी है और यही वजह है कि सोनाली के इस शो को लगातार सफलता मिल रही है. उन्हें टेलीविजन को लंबे अरसे के बाद एक ताजगी दी है.
निवेदिता बासु ( मेरी आवाज ही पहचान है) 
निवेदिता बासु भी लंबे समय से बालाजी प्रोडक् शन से जुड़ी रही हैं और उन्होंने हाल ही में मेरी आवाज ही पहचान है नामक शो से अपने प्रोडक् शन हाउस की शुरुआत की. खास बात यह है कि उन्होंने भी सास-बहू सागा चुनने की बजाय दो ऐसी बहनों की कहानी चुनी, जो एक ही क्षेत्र में होने के कारण एक दूसरे की सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी हैं. हालांकि इस शो को लेकर काफी चर्चा रही कि यह शो मशहूर गायिका लता मंगेशकर और आशा भोंसले की जिंदगी पर आधारित है. लेकिन कभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई. इस शो की खासियत यह है कि इसे पारंपरिक रूप प्रदान किया गया है. पल्लवी जोशी, दीप्ति नवल, जरीना वहाब जैसे वरिष्ठ कलाकार शो का हिस्सा हैं. इस शो की कहानी ने भी छोटे परदे को नयापन दिया है. निवेदिता ने भी दर्शकों की नब्ज को समझा है और विषयपरक शो लाकर साबित किया है कि छोटे परदे पर भी अच्छी कहानियां कही जा सकती है. इस शो के लोकेशन्स, कलाकारों के परिधान सबकुछ विषय के अनुसार मुनासिब नजर आते हैं. शायद यही वजह है कि धीरे-धीरे ही सही दर्शकों तक यह कहानी पहुंच रही है.
 भागे रे मन( मीतू) 
जिंदगी पर कुछ महीने पहले प्रसारित होने वाले शो  भागे रे मन ने दर्शकों का दिल जीता. इस शो में एक ऐसी महिला की कहानी दिखायी गयी, जिसे अपनी जिंदगी किसी और की मरजी से नहीं जीनी थी. सो, वह अपनी शादी से भाग जाती है. और पूरी दुनिया की सैर करके वापस अपने घर आती है तो किस तरह उसका नजरिया बदलता है. इस शो की सबसे खास बात यह थी कि इस शो की निर्माता मीतू ने शो के लिए किसी ऐसे कलाकार का चयन बतौर लीड नहीं किया, जो हमेशा लीड किरदारों में नजर आती रही हैं. बल्कि उन्होंने करुणा पांडे को चुना, जो टेलीविजन पर लंबे अरसे से जुड़ी रही हैं. मगर वे सहयोगी कलाकारों में नजर आती थीं. पहली बार मीतू ने उन्हें इस तरह का किरदार निभाने का मौका दिया तो करुणा पांडे ने कमाल कर दिया. वे बेहद स्वाभाविक तरीके से अपना किरदार निभाती गयीं और दर्शकों की चहेती बनीं. इस शो ने भी वाकई दर्शकों को ताजगी दी. फिलवक्त शो ने सीजनल ब्रेक लिया है. लेकिन उम्मीदन शो की जल्द ही वापसी होगी.
अरुणा ईरानी के भी  रहे सार्थक कदम
अरुणा ईरानी बेहतरीन अभिनेत्री तो रही ही हैं. लेकिन छोटे परदे पर भी बतौर महिला निर्मात्री उन्होंने  एक अलग मुकाम हासिल किया है. उन्होंने एक दौर में मेहंदी तेरे नाम की जैसे शो का निर्माण किया था. इस शो में एक ऐसी लड़की की कहानी थी, जो अपने पैरों से लाचार थी. लेकिन उसे अपनी जिंदगी जीने का मौका किस तरह एक मां देती है और अपनी बेटी के साथ खड़ी रही थी. यह शो की कहानी थी. इस लिहाज से अरुणा ईरानी ने भी एक नयी सोच दी थी.
ममता यश पटनायक
ममता यश पटनायक भी बतौर लेखिका व प्रोडयूसर अलग तरह के कांसेप्ट लेकर आ रही हैं. उनका वर्तमान शो कुछ रंग प्यार के ऐसे भी अलग तरह की प्रेम कहानी है और दर्शकों को शो पसंद आ रहा है. उनका सुपरहिट शो वीरा भी काफी लोकप्रिय रहा.
सृष्टि आर्या
सृष्टि आर्या ने भी टेलीविजन को कई नये शोज दिये हैं. कहता है दिल जीले जरा...जैसे शो में उन्होंने एकरूपता वाली कहानी को न दर्शाते हुए अलग तरह की कहानी चुनी.

20160508

बदले बदले से हैं मॉम के सुर


बदलते दौर के साथ ही सिनेमा की मां ने भी अपने अंदाज में कैमरे का शटर बदल लिया है. अब संघर्षरत रहने वाली मां, खुद में घुटने वाली मां सेल्फी लेने में विश्वास रखती हैं. मसलन वे आत्मनिर्भर हुई हैं और वे अपनी बेटियों को भी यही राय दे रही हैं.शायद यही वजह है कि फिल्मों में भी अब मां के किरदार गढ़ने में निर्देशकों ने अपनी स्टीरियोटाइप सोच को परे रख दिया है. मदर्स डे के बहाने हिंदी सिनेमा की कुछ ऐसी ही बिंदास मॉम पर अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट
स्वरूप संपत ( फिल्म की एंड का)
आर बाल्की की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म की एंड का में करीना कपूर की मां के किरदार में स्वरूप संपत नजर आयी हैं. स्वरूप फिल्म में बेटी किया से खुल कर बातें शेयर करती हैं. वे उनसे बिंदास तरीके से सेक्स के बारे में भी बातें करती हैं. निर्देशक की यह सोच बताती है कि अब जमाना बदल रहा है और बेटी की मांएं भी अब बोल्ड हो गयी हैं. उन्हें इन बातों से झिझक नहीं हैं, कि उनकी बेटी को किसी से प्यार है और वह उनसे सेक्स के मुद्दे पर भी खुल कर बातचीत करती है.
किरण खेर
फिल्म खूबसूरत में निर्देशक ने प्रेम कहानी दर्शाने के साथ इन बातों का ख्याल रखा है कि फिल्म में प्रेम कहानी के साथ मां-बेटी के रिश्ते को भी बखूबी दिखाया जाये.इस फिल्म की सबसे खास बात है कि फिल्म में लड़की अपनी मां को दोस्त बना लेती है और उससे जिंदगी की हर बात शेयर करती. दरअसल, वास्तविक जिंदगी में भी मां के साथ उनकी बेटियों का यही रिश्ता हो तो सभी बेटियां खुश रहेंगी. किरण खेर ने फिल्म टोटल सियापा में भी एक ऐसी मां का किरदार निभाया है, जिसे अपनी बेटी के पाकिस्तानी ब्वॉयफ्रेंड को भी सिर्फ इसलिए अपनाना पड़ता है, क्योंकि उनकी बेटी इसमें खुश हैं. फिल्म दोस्ताना की किरण खेर को कौन भूल सकता है. हाल के दौर में मां के किरदारों को उन्होंने बखूबी निभाया है.
रत् ना पाठक शाह
रत् ना पाठक शाह यो ही किसी फिल्म को हां नहीं कहतीं. उनके लिए स्क्रिप्ट मायने रखती है. सो, जाहिर सी बात है कि वे जिन फिल्मों में मां के किरदार में होंगी, वह किरदार सशक्त ही होगा. फिल्म खूबसूरत में उन्होंने मां के किरदार को बखूबी निभाया है. फिल्म कपूर एंड सन्स में दो बेटों के प्यार के मंझदार में फंसी मां के किरदार रत् ना पाठक शाह ने बखूबी निभाया है.
ेॅसुप्रिया पाठक
फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक ने लीला यानी दीपिका पादुकोण की मां का किरदार निभाया है. वे फिल्म में एक सशक्त भूमिका में हैं, जिसे अपनी सत्ता को बचाने के लिए अपनी बेटी की उंगलियां कांटने में भी तरस नहीं आया. मां का यह बोल्ड अंदाज भी दर्शकों को बेहद पसंद आया.
तब्बू
फिल्म हैदर में तब्बू ने शाहिद कपूर की मां का किरदार निभाया है. वे एक ऐसी मां के किरदार में हैं, जो अपने बच्चे से बेइतहां प्यार करती है और अंत में उसकी जिंदगी बचाने के लिए वे खुद की जान दावं पर लगा देती है. तब्बू ने इस फिल्म में शानदार अभिनय किया है. वही फिल्म फितूर में वह सनकी मां के किरदार में हैं, जो अपने प्यार में मिले धोखे का दर्द अपनी बेटी के माथे मढ़ देती है और कभी उसे खुश नहीं देखना चाहती. तब्बू ने एक मां के रूप में काफी इंटेंस किरदार निभाया है इस फिल्म में.

असल जिंदगी में रिवॉल्वर रानी



 कंगना रनौट ने हाल ही में तीसरा राष्टÑीय पुरस्कार सम्मान हासिल किया है. लेकिन भले ही वे अपने काम से लगातार सम्मान हासिल कर रही हों. लेकिन अब भी उनके व्यक्तित्व पर कई सवाल उठते रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद कंगना कभी विचलित नहीं हुई हैं. हाल ही में ऋतिक के साथ चल रहे उनके मसले में अध्ययन सुमन द्वारा दिये गये भद्दे बयानों से कंगना पर लगातार बयानबाजी हो रही हैं. लेकिन कंगना सभी को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं. यह पहली बार नहीं हो रहा, जब कंगना ने यह फांकाकशी सही है. अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट

 फिल्म रिवॉल्वर रानी में कंगना के किरदार को सिर्फ प्यार और विश्वास चाहिए. लेकिन उनके अपने मामा और प्रेमी मिल कर उसे धोखा देते हैं. लेकिन अंत तक अल्का सिंह किसी के सामने नहीं झूकती. दरअसल, वास्तविक जिंदगी में भी कंगना ने अपनी लड़ाई खुद ही लड़ी है. यह पहली बार नहीं कि उन पर तंज कसे जा रहे हैं. छींटाकशी की जा रही हैं. यह हकीकत है कि उनका सफर कभी सुहावना नहीं रहा है. लेकिन उन्होंने सारी परेशानियों का हल खुद निकाला है और आगे बढ़ती रही हैं. जहां एक तरफ उनकी वास्तविक जिंदगी उनकी फिल्म रिवॉल्वर रानी से मिलती है. वही फिल्म क्वीन से उलट उन्होंने रोने-धोने की बजाय धोखा देने वाले ब्वॉयफ्रेंड के खिलाफ खड़ा होना ही जायज समझा है. कंगना हमेशा ही इंडस्ट्री में कई लोगों के हास्य का पात्र बनती रही हैं. इसकी वजह यह थी कि उन्होंने काफी कम वक्त में खुद की जगह तो बनायी ही. वे छोटी उम्र में इस इंडस्ट्री का हिस्सा बन गयी थीं. 
अंगरेजी न बोलने पर हास्य की पात्र
कंगना ने खुद कई बार स्वीकारा है कि उन्हें अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी और इस वजह से इंडस्ट्री के कई लोगों ने उनका मजाक बनाया है. इस वजह से उन्होंने बाद में अंगरेजी सीखी और फिर विदेश जाकर अपना कोर्स भी अंगरेजी में पूरा किया. 
को-स्टार्स ने उड़ाया था मजाक
उस दौर में कंगना की फिल्में नाकामयाब हो रही थीं. और वे वैसी फिल्मों का हिस्सा बन रही थीं, जिससे उन्हें पैसे मिलें. ऐसी फिल्मों में रास्कल्स भी शामिल थी. कंगना यह बताना कभी नहीं भूलतीं कि उस वक्त भी उनके को स्टार्स ने उनका बहुत मजाक बनाया था और उन्हें फिल्म के किसी भी प्रोमोशन में साथ नहीं रखा था. कुछ ऐसा ही फिल्म शूटआउट एड वडाला के साथ भी हुआ था. एकता कपूर ने उन्हें फिल्मी प्रोमोशन का हिस्सा ही नहीं बनने दिया था. यह बातें कंगना को बुरी भी लगी थीं. लेकिन उन्होंने इन बातों को नजरअंदाज कर खुद की जगह बनायी.
मुंबई में घर खरीदने के लिए फिल्में
एक दौर में तो कंगना इस बात से भी बदनाम हो गयी थीं, कि वे उस दौर की कोई भी फिल्म कर रही हैं, क्योंकि उन्हें मुंबई में फ्लैट खरीदने के लिए पैसे चाहिए. इस बारे में भी कंगना ने हमेशा दो टूक बातें कही हैं कि हां यह सच है कि घर खरीदने के लिए पैसे चाहिए होते हैं और हम एक्टर्स हैं, हमें एक्टिंग करके ही पैसे कमाने पड़ते हैं. इसलिए उन्होंने कोई भी फिल्म की. उस दौर में भी चिराग पासवान के साथ उनके अफेयर की चर्चा रही है.
ड्रामा क्वीन
कंगना हमेशा ड्रामा क्वीन के रूप में जानी जाती रही हैं. आदित्य पंचोली के साथ अफेयर और फिर पुलिस थाने में मारपीट को लेकर भी काफी खबरें बनी. लेकिन कंगना ने उनका भी सामना किया. वे बाद के कई इंटरव्यू में स्वीकारती रही हैं कि वह छोटी थी उस वक्त. उनका कई लोगों ने फायदा उठाया है. उस वक्त उन्हें अक्ल नहीं थी. लेकिन अब वह समझदार हो चुकी हैं. कंगना की जिंदगी हमेशा लोगों ने उनकी फिल्म वो लम्हें के उनके किरदार से जोड़ा है. जबकि वास्तविक जिंदगी में कंगना कभी डिप्रेशन में आकर गलत कदम उठाने के पक्ष में नहीं रहीं. उन्होंने हमेशा सबका सामना किया है.
बहन का साथ
उनकी बहन रंगोली पर जब एसिड अटैक हुआ तब भी उन्होंने अपनी दो टूक राय रखी और फिर कई एसिड विक्टिम की मदद की. उन्होंने इसके खिलाफ काफी काम भी किया.
नहीं करेंगी आयटम
कंगना ने इस बारे में भी साफ राय दी कि वे आयटम सांग नहीं करेंगी. चूंकि उन्हें लगता है कि उनके गाने पर अगर बच्चे नाचते हैं और जो कि उन्हें नाचना नहीं चाहिए तो उनका यह आयटम करना लाजिमी नहीं है.
दीपिका से भीड़ी, अवार्ड को कहा बाय-बाय
दीपिका पादुकोण ने जब किसी अवार्ड फंक् शन में अपना अवार्ड कंगना को डेडिकेट किया तब भी उन्हें यह बात बुरी लगी. उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि दीपिका उनकी एक फिल्म छीनना चाहती थीं. इससे स्पष्ट होता है कि कंगना ने कभी पोलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश नहीं की है.
ऋतिक-कंगना मसला
ऋतिक रोशन के साथ अपने प्रेम प्रसंग को लेकर भी वे शांत नहीं रहीं. उन्होंने कानूनी तौर पर कार्यवाही शुरू करवायी. क्योंकि उन्हें लगता था कि ऋतिक उनसे व्याह करेंगे. लेकिन ऋतिक ने गलत तरीके से उनका मेल हैक किया था( हालांकि अब तक साबित नहीं हुआ है). इसके बाद उनके पुराने ब्वॉयफ्रेंड अध्ययन सुमन द्वारा उनके काला जादू करने की बात हुई. साथ ही उनके पीरियड को लेकर भी बात हुई. एक देश के लिए इससे शर्मनाक बात क्या होगी कि जहां एक औरत के माहवारी के बारे में चर्चा की जा रही है. लेकिन इसके बावजूद कंगना बोल्ड होकर खड़ी हैं और लगातार वे सारे सवालों के जवाब दे रही हैं. उन्हें डायन और चुड़ैल भी कहा गया है. लेकिन वे पूर्ण रूप से डटी हुई हैं और यही वजह है कि कई मायनों में वे छोटे शहरों की लड़कियों की पे्ररणा बनी हैं. चूंकि आउटसाइडर होने के बावजूद वे झूक नहीं रहीं, बल्कि अपनी लड़ाई जारी रख रही हैं. 
खान्स के साथ काम नहीं
उन्होंने साफ कहा है कि खान्स के साथ काम करने में खास दिलचस्पी नहीं. क्योंकि वे खुद को किसी भी फिल्म का हीरो मानती हैं. जहां शेष अभिनेत्रियां खान्स की अभिनेत्री बनना चाहती हैं. कंगना अपना करियर खुद गढ़ रही हैं. 

किरदारों के साथ इतने प्रयोग किये हैं ओरिजिनल प्रोसेन कौन है, याद नहीं : प्रोसेनजीत


ँप्रोसेनजीत का नाम किसी फिल्म से जब भी जुड़ता है. वह फिल्म खास हो जाती है. हिंदी फिल्मों में उनकी आवाजाही कम है. चूंकि वे चूनिंदा फिल्में ही करते हैं. उनका मानना है कि कहानी में दम हो तो कलाकार खुद आकर्षित हो ही जाता है.इस बार वे हिंदी फिल्म ट्रैफिक का हिस्सा बने हैं. 
 ट्रैफिक से जुड़ने की खास वजह क्या रही?
दरअसल, मैं बंगाली फिल्में भी करता हूं. साल में दो तीन. लेकिन वह अलग तरह की फिल्में होती हैं. हमारे यहां पहले जो होता था कि मेनस्ट्रीम सिनेमा, अलग सिनेमा. लेकिन अब वह बदलाव आ गया है.दर्शक हर तरह की फिल्में देखना चाहते हैं. बहुत सालों के बाद जब शंघाई में मैंने काम किया. शंघाई के बाद मैंने तय किया कि अगर हिंदी फिल्मों में भी मुझे अच्छे रोल मिले तो करूंगा. जिस वक्त मैं बांग्ला की मेनस्ट्रीम फिल्म कर रहा हूं और उस वक्त अगर मुझे यहां आना है तो मेरे लिए कांप्टीशन बढ़ जाता है. उस वक्त तय करना मुश्किल होता है. दरअसल, मैं खुद को स्टार प्रोट्रे करने की कोशिश ही नहीं कर रहा हूं. पिछले 10 साल से मैंने जितनी भी फिल्में की हैं, वह जानते हैं कि मैं किस तरह की फिल्में करता हूं. मराठी, मलायली सभी जानते हैं कि मुझे किसी तरह की फिल्म पसंद है. जब मुझे ट्रैफिक आॅफर हुई तो ऐसा नहीं है कि मैंने यह सुना नहीं था. मैं जानता था इस फिल्म के बारे में. मुझे पता था कि मलायली में जो यह फिल्म बनी है. यह अच्छी फिल्म बनी है. अच्छे एक्टर्स ने काम किया है. तो मुझे लगा कि मुझे जुड़ना चाहिए. मुझे सबसे बड़ी बात है कि बहुत सारे अच्छे एक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला है. 
मसलन, हिंदी सिनेमा के अच्छे एक्टर्स से आपकी बांडिंग अच्छी है?
जी हां, बिल्कुल मनोज यहां फिल्में बनाते हैं. मैं वहां रह कर भी उनकी फिल्में देखता हूं. मैं हमेशा मनोज से टच में हूं. हर जगह के जो अच्छे एक्टर्स हैं, वह कहीं न कहीं, किसी न किसी जगह पर कनेक्ट जरूर हैं. दिव्या दत्ता हमेशा मुझसे मिलती रही हैं. वे कभी भी मिलीं, कहीं भी मिली, हमेशा उन्होंने यही कहा कि मैं आपके साथ काम करना चाहती हंू. मनोज, जिम्मी, सचिन, दिव्या के साथ काम करके मुझे मजा आया. मनोज बिहार से हैं, जिम्मी पंजाब से. मैं बंगाल से. सचिन मराठी सिनेमा से जुड़े हैं. तो एक अच्छा कांबीनेशन हुआ है इस फिल्म में.
मनोज बाजपेयी से जुड़ाव कैसे हुआ?
मुझे यह तो याद नहीं कि उनकी पहली फिल्म कौन सी है. लेकिन उनकी फिल्म शूल देख कर मैं चौंका था और मुझे समझ आ गया था कि वह काफी डायनेमिक एक्टर हैं. उन्होंने जिस तरह खुद को बदलाव किया है. मेनस्ट्रीम, कमर्शियल सबमें वह कमाल का है. जैसे मैंने 300 फिल्में की कमर्शियल वह बॉक्स आॅफिस पर कामयाब रहीं. लेकिन पिछले 10 साल से मैंने स्टाइल ही पूरी तरह बदल दी. तो वे फिल्में भी दर्शकों को पसंद आयी है. एक एक्टर के रूप में आप ग्रो करना जरूरी है और साथ ही वक्त के अनुसार चलना भी जरूरी है. हाल ही में जो अलीगढ़ में उन्होंने कमाल का काम किया है. उनकी हर फिल्म पसंद आती है. रेंज दिखता है. फिल्म गैंग्स आॅफ वासेपुर में वे कमाल हैं. हमलोग मिलते-जुलते रहते हैं.
आप बांग्ला सिनेमा के सुपरस्टार हैं, तो जब आप हिंदी सिनेमा में फिल्में चुनते हैं तो कहीं जेहन में यह बात रहती है कि मैं कोई ऐसी फिल्म न चुन लूं, कि उन्हें दुख हो.
देखिए, शांघाई फिल्म में मेरे कितने सीन्स थे. लेकिन आप पूछें बंगाल में, ऐसा कोई फैन फॉलोअर्स नहीं थे, जिन्होंने मुझे यह कहा कि आपने यह फिल्म क्यों की. यह कांसेप्ट आज के जमाने में बदलना शुरू हो चुका है. जो कभी हॉलीवुड में हुआ करता था. कि कई सुपरस्टार छोटी फिल्मों में भी छोटे दृश्यों के लिए काम करते रहे हैं. तो ये जो सुपरस्टार और स्टार का जो कांसेप्ट है, हां तो मैं सुपरस्टार हूं. सलमान, शाहरुख हैं. लेकिन किसी फिल्म में अगर बात है तो उससे जुड़ने में कोई हर्ज नहीं. जैसे शाहरुख खान ने फिल्म बिल्लू में काम किया था. वह शाहरुख पर फिल्म नहीं थी.लेकिन उन्होंने हां इसलिए किया, क्योंकि उन्हें लगा कि अच्छी फिल्म बन रही है. अच्छा विषय है. और उसमें शाहरुख की जरूरत है. आज के जमाने में स्टार है, लेकिन कंटेंट भी महत्वपूर्ण हो गया है. अच्छे कांटेंट में भी अगर चार सीन भी करे तो लोग उसे याद रखते हैं. हां, मगर यह दस साल पहले होता तो शायद मेरे लिए प्रेशर हो जाता. आप किसी भी रीजन में नंबर वन हो और कहीं भी जाकर आप अगर नंबर वन न बने तो वह मेरे आॅडियंस, मेरे प्रोडयूर्स सबको मैं अफैक्ट कर रहा हूं. लेकिन आज की तारीख में मुझ पर कोई प्रेशर नहीं है बंगाल में, चूंकि मेरी फिल्में जाते ही हैं, दर्शक कुछ अलग देखने के लिए. 10 साल में मेरे बारे में जो लिखा गया है , लोगों ने यह लिखा है कि ओरिजनल प्रोसेनजीत दिखते कैसे हैं. मैंने अपने लुक के साथ इतने एक्सपेरिमेंट कर लिये हैं.
आप मानते हैं कि अब बांग्ला सिनेमा में आपका कोई प्रतिद्वंदी नहीं रह गया है?
मुझे लगता है कि प्रोसेनजीत इस तरह से ब्रांड बन चुका है वहां, कि आज के जमाने में जो हीरो लोग अच्छा काम कर रहे हैं, वह मुझे कांप्टीटर के रूप में नहीं देखते. उन्होंने मुझे अलग जगह पर ही बिठा कर रखा है. वे लोग मुझसे सलाह लेने आते हैं. मैं अभी एक्टर कम मेंटर अधिक हो गया हूं वहां के लिए. और मैं गाइड भी करता हूं.
आपके लिए सिनेमा क्या है?
मेरी जिंदगी में सभी जानते हैं कि सिनेमा ही मेरी दुनिया है. मुझे दुनिया को और कोई भी चीज टच नहीं कर पाती. मेरी जिंदगी में 24 घंटे में से 20 घंटे फिल्मों के लिए ही है. फिल्म से ही मेरे ताल्लुकात है.
आपका सिनेमा से जुड़ाव किस तरह हुआ?
मेरे पिताजी ने एक फिल्म प्रोडयूस की थी. ऋषिकेश मुखर्जी ने निर्देशित की थी. मैं उस वक्त पांच साल का था. वह फिल्म बहुत बड़ी हिट थी.छोटो जिज्ञासा, इसके बाद मुझे बहुत सारे आॅफर आये थे. शक्ति सामंत से, राज कपूर से, घर से मुझे इजाजत नहीं मिली. इसके बाद मैंने दूती पाता की. यह फिल्म बंगाल में कई मायनों में अलग रही थी. इस फिल्म में मैंने एक् शन इंट्रोडयूस किया. डांस इंट्रोडयूस किया.थोड़ा बांबइशस टच दिया था. वह फिल्म 100 डेज से ऊपर चली थी. इसके बाद कमर्शियल फिल्मों में न बदलाव होना शुरू  हुए, तो सच कहूं तो ब्लैक एंड व्हाइट ऐरा से कलर तक जिस तरह सिनेमा बदला. मैं सबका साक्षी रहा हूं.सिनेमास्कोप से मल्टीप्लेक्स सबमें कहीं न कहीं मेरा कंट्रीब्यूशन है. 
आप हिंदी और बांग्ला सिनेमा में कितना अंतर देखते हैं?
मुझे बहुत अंतर नहीं दिखता. अंतर बस इतना है कि बजट का अंतर है. फिल्म की जो भाषा है वह पूरी दुनिया में एक ही भाषा है. आप कहीं भी जाओ तीन दिनों में आप वहां के सिनेमा को समझ लेते हैं. वही लोग हैं. वही काम है. हॉलीवुड में भी वही है. कैमरामैन, मेकअप सब वही है. एंबीयंस का फर्क होता है. हमलोग रीजनल में बजट पर ध्यान देते हैं. कंटेंट पर ध्यान देते हैं. हमारे सारे निर्देशक शुजीत सरकार ने भी बंगाली फिल्म प्रोडयूस की. मैंने उनके साथ काम किया है. सेकेंड फिल्म भी की. सुजोय घोष कोलकाता में जाते हैं. तो मैं मानता हूं कि हमारा सिनेमा कंटेंट के ऊपर ही है. हम उस पर ही निर्भर हैं. मलायली भी वही है. मलायली, मराठी, और बांग्ला सिनेमा ये सभी ज्यादा सेंसिबल फिल्में बनाते हैं.एक्सपेरिमेंटल बनाते.
पहली बार आपने किस फिल्म से स्टारडम का स्वाद चखा और वह अनुभव कैसा था?
मैं उस वक्त 16 साल का था.उस वक्त मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था. दूती पाता बहुत हिट रही थी और लोग मुझे पसंद करने लगे थे. इसके बाद मेरी फिल्म आयी अमर संगी. वह फिल्म कोई भूल नहीं सकता. इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 
कभी डर लगता है कि नंबर वन की कुरसी पर इतने लंबे समय तक विराजमान रहा. कठिन है.
जिस वक्त मैंने खुद को मेनस्ट्रीम से हटाया. वह वक्त मेरे लिए रिस्की जोन था. क्योंकि मेरा आॅडियंस जो हमेशा मुझे एक् शन करते देखते रहे, रोमांस करते, डांस करते देखते रहे. एक वक्त मुझे लगा कि मुझे यह जगह अब नेक्स्ट जेनरेशन के लिए छोड़ना चाहिए. पब्लिक एक वक्त पर भूल जायेंगी. मैं एक वक्त में घड़ी को या कैलेंडर को कंपीट नहीं कर पाऊंगा. मैं बिलिव करता हूं कि  मैं एक एक्टर के रूप में ही जो कर सकता हूं. अच्छे किरदार करूं. मैंने जब 40 की उम्र पार की.मेरे दिमाग में यह आ गया था कि मैं प्रोसेजनजीत हूं. लेकिन जो मैंने 25 साल तक किया है. अब मैं वह नेक्सट जेनरेशन के लिए छोड़ूंगा और ग्रेसफुली मैं हटा. लेकिन मैंने अपने ब्रांड को कम नहीं होने दिया. यही वजह है कि आज की तारीख में अगर मैं एक भी फिल्म करूं तो आॅडियंस इंतजार करती है.ये तो कुछ अलग होगा. आप देखें जो भी मेरी फिल्म आती है, उस पर आज भी क्या प्रतिक्रिया मिलती है.
आपने अपने स्टारडम के इर्द-गिर्द कोई लकीर खींची है. या आपको लोगों से मिलना जुलना पसंद है?
अगर आपके कोई जर्नलिस्ट दोस्त हों कोलकाता में तो उनसे पूछें. मैं कैसा हूं.क्योंकि हमारे यहां पर जर्नलिस्ट भी आते हैं तो मुझे हीरो नहीं मानते.बड़े भाई मानते हंै. मैं हमेशा जर्नलिस्टस को बोलता हूं कि आप भी हमारी इंडस्ट्री के अहम हिस्सा हैं.अगर वे मुझे कहते हैं कि किसी फिल्म में मैंने अच्छा नहीं किया तो वे मुझे लेशन देते हैं.जब मैंने 30 साल इंडस्ट्री में पूरे किये तो मैंने उठ कर बोला कि मैं आज जो भी हूं,उसमें मीडिया की अहम भूमिका है. उन्होंने प्रोसेनजीत को बनाया है.हर जगह पर उन्होंने टोका है. और मैं करेक् शन करते करते आज मैं 30 साल तक टिका हूं. यही वजह है कि मेरी मीडिया से इक्क्वेशन अलग है. मैं हर जर्नलिस्ट की शादी में जाता हूं. वहां मैं परिवार का सदस्य बन कर जाता हूं. सुपरस्टार नहीं.
खुद को निखारने के लिए क्या-क्या करते रहते?
मैं थियेटर करता हूं.इसके साथ मैं हर वक्त अपने आप को डेवलप करता हूं. कैरेक्टर के हिसाब से. गेटअप के हिसाब से. फिजिकिली मैं कभी मोटा तो कभी दुबला हो जाता हूं.जैसा कुछ आमिर करता है. मैं जो भी काम करता हूं इमोशन से करता हूं और मैं समझता हूं कि कोई भी अच्छा काम जो हमलोग क्रियेट करते हैं. वह इमोशन से ही आता है. मेरा प्लस प्वाइंट है. जो भी प्रोसेनजीत अंदर से नहीं कहेगा कि इसको कर. तो मैं प्रोजेक्ट करूंगा ही नहीं. इसके लिए मैं क्या क्या नहीं कर सकता. आप सोच भी नहीं सकते. मैंने एक फिल्म की थी. मैं कोलकाता में ही था. लेकिन मेरा परिवार के साथ, आॅफिस के साथ कोई राबतां नहीं था. मैं एक घर में मैट पर  सोता था. बाउल के साथ काम किया. एक फिल्म में मैंने कबीर जैसा रोल किया था तो उसकी अलग तैयारी थी. कभी कभी अगर किरदार की जरूरत हो तो मैं आम लोगों से जुड़ा रहूं.
और किन चीजों में दिलचस्पी है?
गाना, म्यूजिक, फुटबॉल खेलना पसंद है. बट नॉट पॉलिटिक्स. लेकिन मैं पॉलिटिक्स से नहीं जुड़ूंगा. मैं विश्वास करता हूं कि मैं एक एंटरटेनर हूं और हर पार्टी के लोग मुझे देख कर बोलें मेरे काम को कि आपकी फिल्म अच्छी थी बस. 

20160503

स्टारडम आपको दायरे में बांधती, और मैं मुक्त रहना चाहता : अरविंद स्वामी



फिल्म रोजा व बांबे ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया.लेकिन उन्हें इस स्टारडम से कभी लगाव न हुआ. उन्हें जिंदगी में और भी नयी चीजें करनी थी. सो, उन्हें बॉलीवुड और अपने बीच एक दूरी बनायी. अब काफी सालों के बाद एक बार वे फिर से लौटे हैं. फिल्म डियर डैड से. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश

 अरविंद, आपने ऐसे समय में फिल्मों से दूरी बनायी. जब आप सबसे लोकप्रिय स्टार में से एक थे?
हां, क्योंकि जिस तरह से मुझे स्टारडम मिल रहा था. मैं वह नहीं था. मेरी जिंदगी का मकसद सिर्फ यही नहीं था. सो, मुझे लगा कि मुझे इससे दूरी बनानी चाहिए. मुझे कभी स्टारडम से लगाव नहीं रहा. इसलिए दूरी बनाते वक्त अफसोस भी नहीं हुआ. लेकिन हां, मुझे यह बातें समझ आती थीं कि मेरे फैन्स मुझे बेहद प्यार करते हैं. उनके इमेल मिलते थे मुझे. लेकिन मुझे चूंकि हमेशा से नयी चीजें सीखने में दिलचस्पी रही. तो मैंने खुद को इस तरह से तैयार किया. और मैं दिल से बोलता हूं कि मुझे इन बातों की तकलीफ नहीं है. जब मंैने शुरुआत की थी, उस वक्त मेरी उम्र 21 थी. फिर मैं वहां से यूएस चला गया था.फिर मैंने काफी फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़ी. लेकिन अपनी पहली फिल्म के हिट के बाद से मैं एक्टिंग एंजॉय करने लगा था. लेकिन स्टारडम नहीं. मैं स्टारडम के साथ कंफर्टेबल नहीं था. मुझे फिल्मों की मेकिंग के बारे में जानना, उसे समझना और इस प्रोसेस में मजा आता था. और मैं हमेशा से वही चाहता था. मैं कभी स्टार बनना नहीं चाहता था. लेकिन जो आकर्षण मुझे मिलने लगा था, उन चीजों से डील नहीं कर पा रहा था. अब जाकर मैं इस बात को लेकर थोड़ा सहज हो पाया हूं. और यही वजह थी कि मैंने दूरी बनायी और तय किया कि कुछ और करूंगा. मैं मुक्त रहना पसंद करता हंू. स्टारडम मुझे दायरे में बांध रही थी.
फिल्म डियर डैड की कहानी में ऐसी क्या खास लगी कि आपने हां कह दिया?
मैंने जब पहली बार स्क्रिप्ट सुना तो मुझे लगा कि ऐसे सिचुएशन भी हो सकते हैं किसी परिवार में, क्योंकि मैंने कभी इस तरह की जिंदगी देखी नहीं थी, कि इस तरह के भी सिचुएशन से डील किया जा सकता है. मैं काफी अकंफर्टेबल हो गया था. लेकिन मुझे लगा कि इसके बारे में बात होनी चाहिए. बतौर एक्टर भी मुझे अपने कंफर्ट जोन से बाहर आना चाहिए. फिल्म में जो दिखा रहे. मैं वह नहीं हूं. रियलिटी वह नहीं है इसलिए लगा कि और यह चैलेंज लूं.
फिल्म के पोस्टर देख कर दर्शकों की राय आपके बारे में है कि आप और कम उम्रदराज नजर आने लगे हैं?
हंसते हुए) पता नहीं लोगों को ऐसा लग रहा है. लेकिन मैं वास्तविक जिंदगी में बहुत बड़े बच्चों का पिता हूं. मेरी बेटी 19 साल की है. बेटा भी बड़ा है. सो, मुझे उम्र को लेकर कभी कोई परेशानी नहीं रही है. मुझे कभी किसी फिल्म में पिता का किरदार निभाने में कभी कोई परहेज नहीं रहा है.
आप वास्तविक जिंदगी में जिस तरह के पिता हैं, क्या फिल्म में भी आपकी वह छवि नजर आयी है?
सच कहूं तो नहीं. मैं वास्तविक जिंदगी में उस तरह से नहीं जीता हूं. इस फिल्म से मेरी जिंदगी के किसी भी अनुभव का अनुमान न लगायें.
आप अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं या फिर आप भी सख्त पिता हैं?
सच कहूं तो दोनों ही हूं. हां, मगर एक बात तो मैंने समझी है कि हमारे पिताजी जैसे हुआ करते थे. पेरेंट्स जिस तरह के हुआ करते थे और अब के दौर में अंतर है. उस दौर में तो पिता पूछते नहीं थे. वे कहते थे और हम करते थे और सच कहूं तो कभी यह महसूस भी नहीं होता था कि अरे हमारी नहीं चल रही. पिताजी ने कुछ बुरा कर दिया. पिताजी की सख्ती के कारण मैंने कुछ खोया हो या मिस किया हो. ऐसा नहीं हुआ है. मुझे लगता है कि सख्त और दोस्ताना दोनों व्यवहार होना चाहिए. हां, मगर मैं यह जरूर चाहता हूं कि मेरे बच्चे मुझसे हर विषय पर बातचीत जरूर करें. सभी टीनएज से गुजरते हैं. अगर उनसे गलतियां भी होती हैं. तब भी मैं जानना चाहूंगा. और मुझे लगता है कि कभी जजमेंटल नहीं होना चाहिए. वरना, बच्चे आपसे दूर हो जाते हैं. कोई भी रिलेशनशीप परफेक्ट होता ही नहीं. मैंने अपने 10 साल अपने बच्चों को दिये और मैं इस बात से गर्व महसूस करता हूं कि मैंने उनकी जिंदगी के अहम वक्त उनको दिये. यही वजह है कि वे आपके करीब होते हैं.
आप अपने बेटे की उम्र में थे, तो किस तरह के युवा थे? आपके पिता से आपके रिश्ते कैसे थे?
मैं शर्मिला नहीं था. मेरे पापा स्ट्रीक्ट थे और अनअप्रोचेबल थे. मेरे पिता कभी किसी मीटिंग में नहीं आते थे. उस वक्त आते भी नहीं थे लोग़. उस वक्त बिल्कुल क्लियर होती थी कि बातें कि आपसे आपके पेरेंट्स की क्या उम्मीदें हैं, क्या नहीं. उस वक्त च्वाइस नहीं होते थे.मेरे पापा भी हमसे कभी पूछते नहीं थे कि बाहर आउटिंग पर आये हो तो क्या खाओगे. वे जो खिलाते हम खा लिया करते थे. लेकिन मुझे इससे कभी परेशानी नहीं हुई. आज बच्चों को आप चुप नहीं करा सकते. दिक्कतें आती हैं.
एक दौर में आप बड़ी परेशानी से घिरे रहे. उस वक्त खुद को ऊर्जावान कैसे रखा?
हां, यह सच है कि मैं पैरालाइसिस से ग्रसित था. और काफी परेशान रहा इसकी वजह से. लेकिन उस दौर में भी मैं पोजिटिव रहा. क्योंकि मैं पोजिटिव थॉट का व्यक्ति हूं. हाल में एक मैराथन में मैं 21 किमी दौड़ा. मेरे लिए वह बड़ी उपलब्धि थी. इस बात से मैं महसूस करता हूं कि अगर आप पोजिटिव रहें और इच्छा शक्ति रखें तो कुछ भी कर सकते.
अब आप  और फिल्में करेंगे ?
हां, जल्द ही मेरी एक फिल्म का तेलुगु रुपांतर आप देखेंगे. तमिल और तेलुगू की फिल्में कर रहा हूं