20130629

रांझणा जैसा प्रेमी आज के जमाने में मुश्किल है मिलना : सोनम


सोनम कपूर फिल्म रांझणा को अपनी कठिन फिल्मों में से एक मानती हैं. लेकिन उन्होंने इसमें बहुत मेहनत की है. दर्शकों को उनका काम जरूर पसंद आयेगा. ऐसा उन्हें विश्वास है. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश

 सोनम कपूर फिल्म में जोया के किरदार में है. सोनम को फिल्म की कहानी और फिल्म में दिखाये गये शहर बनारस दोनों से प्यार हो गया है. बातचीत सोनम से

 कुंदन जैसा प्रेमी मिलना मुश्किल
इस फिल्म में कुंदन का जो किरदार धनुष ने निभाया है. आज के जमाने में वैसा ट्रू लवर मिलना बिल्कुल मुश्किल है. मैं तो मानती ही नहीं कि आज ऐसे लड़के होते भी हैं जो शिद्दत से प्यार करे. फिल्म रांझणा एक ऐसे लड़के की कहानी है जो जिंदगी भर सिर्फ एक लड़की से प्यार करता है. और वह लड़की जोया है. जोया का किरदार निभाने में मुझे बेहद मजा आया. क्योंकि इस किरदार की जो सिंपलिसिटी है वह इसकी खासियत है. इससे पहले मैंने और भी जो फिल्मों में ऐसा किरदार निभाया है. मुसलिम लड़की का किरदार. लेकिन सभी एक दूसरे से बिल्कुल जुदा है. जोया में जो तेवर है. जो अंदाज है. वह बाकी किरदारों में नहीं था. फिल्म में जोया जिस तरह की आंदोलनकारी लड़की की भूमिका में हैं. वह बाकी फिल्मों के किरदारों में नहीं था.
बनारस से प्यार हो गया
मैं भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त हूं. मेरी मां कहती है कि तुम रहती हो मॉर्डन और तुम्हें भगवान से बेहद लगाव है. सो, मैं जब बनारस गयी तो मुझे लगा कि मुझे बाबा भोलेनाथ के दर्शन हो गये. वहां की जो खासियत है कि वहां सुकून बहुत है. वहां वह सबकुछ है जो मेट्रो सिटी में नहीं. वहां की सिंपलसिटी. लोग सभी अच्छे हैं. मुझे तो बनारस से प्यार हो गया. फिल्म का किरदार कुंदन जो कि जोया से प्यार करता है. प्यार में बावला है. ऐसे लड़के मुंबई में तो नहीं मिल सकते. ऐसा मैं कह सकती हूं. तो मुझे तो बनारस से प्यार हो गया. वहां के कपड़ों से. वहां के लोगों से. वहां के चाट, गोलगप्पे से. हर चीज से खुद को जुड़ा पाती हूं.
नंबर वन की रेस में नहीं
यह सच है कि मेरी फिल्में बहुत सफल नहीं हो पा रहीं. लेकिन इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं कि मेरा काम अच्छा नहीं हो रहा. आप देखें मेरी फिल्मों का चुनाव किस तरह का है. सारी फिल्में याद रखी जानेवाली हैं. जिन निर्देशकों के साथ मैं काम कर रही हूं. वे अदभुत हैं. राकेश ओमप्रकाश, आनंद एल राय सभी मुझे अपने किरदारों में ढाल लेते हैं और मुझे जो कि मेट्रो की लड़की है लेकिन उसे छोटे शहर की लड़की के रूप में दिखा पाते हैं तो वह मेरे अभिनय की खासियत है. भाग मिल्खा भाग में भी मेरा किरदार खास है. वैसे भी मैं नंबर रेस में शामिल नहीं. मेरी फिल्म हिट हो या फ्लॉप. मैं खुश रहना जानती हूं. खुशी मेरे लिए सबसे अहम चीज है.
राकेश ओम प्रकाश मेरे लिए खास
मैं जब राकेश ओम प्रकाश से नहीं मिली थी. उससे पहले मैं डरी सहमी सी रहती थी. मुझमें कांफिडेंस नहीं था. मुझे नहीं लगता था कि मैं अच्छा काम कर सकती हूं. अच्छा काम कर पाऊंगी. लेकिन दिल्ल ी6 में उन्होंने मुझे बोल्ड बनाया. मैं बोलने लगी. मैं लोगों से मिलने लगी. अपनी खूबियों को जानने लगी. तब जाकर मैं समझ पायी कि मुझमें क्या बात है. वह मेरे लिए मेंटर हैं और वह जब भी मुझे कहेंगे. मैं उनकी हर फिल्म में काम करूंगी. भाग मिल्खा भाग मैंने सिर्फ 11 रुपये में की है. चूंकिक राकेश मेरे मेंटर हैं.
धनुष जैसा जीवनसाथी
मुझे मेरी जिंदगी में अगर धनुष जैसा जीवनसाथी मिल जाये तो मैं तो अपने को सबसे महान समझूंगी. धनुष दिल से बहुत नेक इंसान है. ईमानदार हैं और यही वजह है कि उ्यकी हॉनेस्टी लोगों के सामने आती है. वे दिखावटीपन में बिलिव नहीं करते. लेकिन साउथ में ही ऐसे लड़के मिल सकते हैं. ऐसे जीवनसाथी मिल सकते हैं. मुंबई में तो बेहद फेक लड़के मिलते हैं.
स्कूल में की थी किसी ने पागलपंती
मेरे लिए फिल्म रांझणा में जिस तरह कुंदन पागल रहते हैं. वैसे ही रियल लाइफ में मेरा एक दीवाना था. जिसने अपनी खून से मेरे नाम का खत लिखा था. लेकिन आज वह कहां है. कैसा है मुझे नहीं पता. लेकिन ऐसी प्रेम कहानियां स्कूल में खूब हुआ करती थी. फिलहाल मुझे मेरा प्यार अब तक नहीं मिल पाया है. 

अम्माजी की इमेज को तोड़ना चाहती हूं : मेघना


लोग उन्हें अम्मा जी के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इन दिनों जिस तरह वे झलक दिखला जा के मंच पर धमाल मचा रही हैं. जज के साथ साथ दर्शक भी चकित हैं. दरअसल, मेघना मल्लिक खुद चाहती हंै कि वह अम्माजी की इमेज तोड़ कर और भी कई प्रयोग करें. पेश है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश
मे  घना ने अपने पिछले परफॉरमेंस से तीनों दर्शकों का दिल जीता. आखिर झलक दिखला जा चुनने की क्या थी वजह. बता रही हैं खुद मेघना
कुछ नया करने की कोशिश
निस्संदेह मुझे अम्माजी के किरदार से जो लोकप्रियता मिली और झलक दिखला जा जैसे शो मुझे आॅफर हुए. इसकी वजह साफ है कि इसी शो ने मुझे असल पहचान दिलायी. लेकिन अब मैं अपने काम और अभिनय के साथ थोड़ा प्रयोग करना चाहती हूं. चाहती हूं कि किरदार थोड़ा अलग हो. और अब कुछ नया ट्राइ करूं. यही वजह रही कि मुझे जब यह शो आॅफर हुआ तो मैंने तुरंत हां कह दी. क्योंकि डांस एक ऐसा फॉर्म है, जो आपको खुशी देता है. मुझे डांस करना हमेशा से पसंद है और झलक से बेहतर और कौन सा मंच होता . सो, मैंने फौरन हां कह दी.
तीनों जज के कमेंट से हुई खुश
पिछले हफ्ते मैंने झलक में जो परफॉरमेंस दिया. दर्शकों को और खासतौर से तीनों जज को बेहद पसंद आया. मैंने आंटीजी पर किया था परफॉर्म. अब अगर यह बातचीत प्रकाशित होते होते मैं शो से बाहर भी हो जाऊं तो तकलीफ नहीं होगी. क्योंकि माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्री आपके काम की तारीफ करती है तो सुकून मिलता है. करन जौहर ने मुझे बताया कि उनकी मम्मी को मेरा शो काफी पसंद था और मेरा किरदार भी तो मुझे बेहद खुशी हुई. रेमो सर तो डांस के मास्टर हैं. उन्होंने मुझे और सेवियो को बहुत अच्छे रिमार्कस दिये हैं. मैं डांसर नहीं. लेकिन जिस तरह मुझे अच्छे कांप्लीमेंट मिल रहे हैं. मैं लगातार अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी.
टीवी में आॅप्शन कम
मैं मानती हूं कि टेलीविजन में आप अपने किरदार को बहुत दिनों तक जीवित नहीं रख पाते. चूंकि लोग धीरे धीरे आपको भूलने लगते हैं. मैंने खुद राधी की बेटियां से करियर शुरू किया, फिर हर घर कुछ कहता है, तुझको है सलाम जिंदगी, कागज की कश्ती जैसे शोज किये. लेकिन पहचान लाडो ने ही दिलायी. लाडो जैसे शो बार बार नहीं बनते. सो, डेली सोप अभी दिमाग में नहीं है.
पड़ीं कई गालियां
अम्माजी के किरदार ने मुझे जितनी लोकप्रियता दी. उतनी गालियां भी पड़ी. कई लोग मुझे वास्तविक जिंदगी में भी यही समझने लगे कि मैं खड़ूस हूं. कई एनजीओ की महिलाओं ने मुझे डराया धमकाया भी था.व्यक्तिगत रूप से. मैं एक मॉल में थी. जब एक महिला ने आकर मुझे खूब खरी खोटी सुनाई थी कि मैं लड़कियों के साथ ठीक नहीं करती. उस वक्त खुशी मिलती थी कि मेरा काम इस कदर लोगों को प्रभावित कर रहा है. लोग नफरत के रूप में ही सही मुझे प्यार ही दे रहे हैं. 

फिल्म को रोमांचित बनाती है एडिटिंग


त्रशॉटकर्ट रोमियो से जुड़ने का संयोग कैसे बना?
आशुतोष ग्वारिकर जैसे परफेक् शनिष्ट निर्देशक की फिल्म खेले हम जी जान से के एडिटर रह चुके दिलीप देव 21 जून को रिलीज हो रही फिल्म शॉटकर्ट रोमियो के भी फिल्म एडिटर हैं. दिलीप देव झारखंड से हैं. खेले हम...के अलावा उन्होंने वांटेड फिल्म का भी संपादन किया था.  शॉटकर्ट रोमियो के बहाने दिलीप देव ने फिल्म एडिटिंग के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं व बारीकियों के बारे में बातचीत की.
मेरे एक्जीक्यूटिव प्रोडयूसर लॉरेंस डिसूजाने मेरी फिल्म के निर्देशक सुशी गणेशन से मेरी मुलाकात करायी थी और मुलाकात होने के बाद ही हम दोनों की समझ काफी मिलने लगी थी. जब हमने काम शुरू किया तो काम करने में और भी मजा आया. शॉटकर्ट रोमियो उन फिल्मों में से एक है, जिनमें आपको एडिटिंग के कई पैटर्न नजर आयेंगे. इस फिल्म में सिर्फ स्टोरी टेलिंग नहीं है.

त्रशॉटकर्ट रोमियो की एडिटिंग की क्या खास बातें रहीं?
सबसे खास बात तो यह रही कि फिल्म में बेहद खूबसूरत लोकेशन को फिल्माया गया है. इस फिल्म की शूटिंग केन्या में भी हुई है. मुंबई को हाल के दिनों में जितनी खूबसूरती से इस फिल्म में कैप्चर किया गया है. वह अदभुत है. आप फिल्म देखेंगी तो खुद अनुमान लगा सकती हैं.सुशी ने बेहतरीन काम किया है और चूंकि उन्होंने खूबसूरती से कैप्चर किया है तो उन्हें हमें एडिटिंग के दौरान परदे पर दर्शाने में मजा आया है. शॉटकर्ट रोमियो एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो शॉर्टकर्ट रास्ता अपना कर कैसे सबकुछ हासिल करना चाहता है. कहानी कई जगहों पर घूमती है तो एडिटिंग के लिए फिल्म में काफी आॅप्शन थे. एक्सपेरिमेंट करने के लिए.
त्र इन दिनों जिस तरह की फिल्में आ रही हैं. इसमें एडिटिंग की क्या भूमिका है?
इन दिनों जो भी फिल्में आ रही हैं, वे पूरी तरह व्यवसायिक है. और पहले फिल्मों का मतलब होता था कि बस कहानी कहना है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. आप सबकुछ नहीं दिखा सकते. आपको वही दिखाना है जो दर्शक को बोर न करे. ऐसे में एडिटिंग की अहमियत बहुत बढ़ जाती है. चूंकि एडिटिंग के माध्यम से ही आप कई बेकार की चीजों को फिल्म से अलग करके. दर्शकों को रोचक चीजें प्रस्तुत करें. फिल्मों में रोमांच को बरकरार रखने का काम एडिटिंग ही कर सकती है. फिल्म के पेस को बरकरार रखना. उसका ट्रीटमेंट ये सारी चीजें एडिटिंग पर ही होती है. फिल्मों की शूटिंग तो कई घंटों की होती है. लेकिन उसे ढाई घंटे की एक रोचक फिल्म बनाना. और साथ ही जर्क न लगने देने के काम एडिटर का होता है.

त्रहाल के दिनों की कुछ फिल्मों की बात करें, तो किन फिल्मों की एडिटिंग बेहतरीन रही है?
मुझे डेविड धवन की फिल्म चश्मे बद्दूर काफी पसंद आयी. एडिटिंग के लिहाज से. इस फिल्म में कहानी बहुत छोटी है. सो, कहीं भी बोर होने का मौका नहीं दिया है डेविड धवन ने. वे खुद भी एडिटर रहे हैं तो उन्हें इस बात का अनुमान रहता है कि दर्शकों को कैसे बोरियत से बचाया जाये. आप फिल्म देखें तो फिल्म के गाने, कहानी कहीं भी आपको बोर नहीं करते. हॉलीवुड फिल्मों की बात करें. तो वे जबरदस्त काम कर रहे हैं एडिटिंग के लिहाज से. आयरम मैन 3 जैसी फिल्में एडिटिंग से ही बड़ी फिल्म बन जाती है.स्काईफॉल में भी कमाल की एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है
त्रहिंदी फिल्मों में इन दिनों एडिटिंग की कौन सी नयी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है?
इन दिनों हिंदी फिल्मों में सीजीआइ का बोलबाला है और आगे भी रहेगा. फिल्में क्रोमा में शूट होती हैं ज्यादातर. फिर उसे सीजीआइ तकनीक से इनहांस किया जाता है. लेकिन दर्शक उसे देख कर यह अनुमान नहीं लगा पाते कि वास्तविकता में वह किसी लोकेशन पर शूट नहीं हुई है. यह सीजीआइ का कमाल है और आनेवाले समय में इसका  प्रभाव और बढ़ेगा.
त्रआपने आशुतोष ग्वारिकर के साथ खेल हम जी जान से में काम किया है. कैसा रहा था आपका एडिटर व निर्देशक वाला संबंध
निर्देशक किसी फिल्म का हसबैंड होता है तो एडिटर उसकी व्हाइफ़ जितनी खूबसूरती से निर्देशक फिल्म के शॉट्स लाता है उसे बखूबी पकाने का नाम एडिटर का होता है. आशु सर के साथ काम करने में बहुत मजा आया. सबसे खास बात यह थी कि इन दिनों बाजार से प्रभावित होकर कहानी के साथ कांप्रमाइज किया जाता है. लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं था. वे कहानी के साथ कांप्रमाइज नहीं करते थे. किसी बाजार के दबाव में नहीं रहते थे. इसलिए मुझे वहां प्रयोग करने के आॅप्शन ज्यादा मिले. मैं किसी बंदिश में रह कर काम नहीं किया करता था. दूसरी बात वे अपने काम को लेकर स्पष्ट होते थे कि उन्हें क्या चाहिए क्या नहीं और एक एडिटर के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि उसे क्या चाहिए और क्या फिल्म में नहीं लेना है. 

मेरे दर्शक हमेशा लॉयल रहे हैं


माधुरी इन दिनों पूरी ऊर्जा के साथ बॉलीवुड में सक्रिय हो चुकी हैं. इसके साथ ही साथ वे छोटे परदे के बड़े शो झलक दिखला जा में जज की भूमिका में हैं. इन दिनों माधुरी गुलाब गैंग और डेढ़ इश्किया की शूटिंग में व्यस्त हैं. लेकिन इस बीच वे अपने डांस की प्रैक्टिस और डांस के प्रति अपने लगाव के साथ कोई समझौता नहीं करतीं. झलक दिखला जा उनके लिए एक बड़ा मंच है अपने इस शौक को पूरा करने व उसे गति में बनाये रखने के लिए. बातचीत माधुरी से...
माधुरी मानती हैं कि अब सिनेमा बदल चुका है. उसकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं. लेकिन दर्शक  आज भी लॉयल हैं.
त्रमाधुरी, हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री को आपने इतने साल दिये हैं. आप उन सुपरस्टार में से एक हैं, जिनके दर्शक आज भी लॉयल हैं. तो आज भी माधुरी का वह जादू बरकरार है. आप क्या मानती हैं?
 मैं अपने दर्शकों की शुक्रगुजार हूं कि मुझे उन्होंने अब तक इतना सपोट किया है और आज भी उनका वही प्यार बरकरार है. मैं मानती हूं कि हिंदी सिनेमा के दर्शक देश दुनिया भर में सबसे लॉयल दर्शकों में से एक हैं. वे जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें तहे दिल से प्यार करते हैं. जादू मेरा नहीं है. जादू इस बात का है कि दर्शक लॉयल हैं मेरे. आज वापस आकर फिर से अपनी दुनिया में लौट आयी हूं और खुश हूं. संतुष्ट हूं तो सिर्फ और सिर्फ अपने दर्शकों की वजह से.
त्रआप लगातार फिल्मों में भी सक्रिय हैं. लेकिन छोटे परदे पर भी आप अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. फिल्में मिल रही हैं. इसके बावजूद टीवी का माध्यम आपने क्यों चुना?
क्या आपको ऐसा लगता है कि आज कल टीवी की लोकप्रियता कम हो चुकी है. अगर आपको ऐसा लगता है. तो आप बिल्कुल गलत सोच रही हैं. सच्चाई यह है कि एक तो झलक दिखला जा मेरा पसंदीदा शो है. इसमें डांस है और सिर्फ डांस है तो मैं इसे मिस कैसे कर सकती थी और दूसरी बात है झलक ने दोबारा मुझमें कांफिडेंस बढ़ाया है. इस शो के माध्यम से जितनी लोकप्रियता मुझे मिली. मुझे इस शो से प्यार हो गया.
त्र हाल ही में आपने रणबीर कपूर के साथ फिल्म ये जवानी है दीवानी में आयटम नंबर किया. कैसा रहा अनुभव
मैं इस बारे में यही कहना चाहूंगी कि ये मेरे करियर के खास गानों में से एक है. चूंकि इस फिल्म में मैंने रणबीर कपूर के साथ डांस किया.मुझे याद है मैं ऋषि कपूर के साथ फिल्म की शूटिंग कर रही थी और उस वक्त रणबीर मेरे पास आये थे. सेट विजिट में. उस वक्त वे सिर्फ हंसते रहते थे. अब वे सुपरस्टार बन चुके हैं. उम्र में वे मुझसे काफी कम हैं. लेकिन जब वह मुझे कांप्लीमेंट देते हैं तो लगता है कि परिवार का कोई सदस्य है. बहुत ही अच्छा अनुभव रहा है उनके साथ. रणबीर खुद बेहतरीन डांसर हैं और माशाअल्लाह एक्टिंग तो कमाल की करते हैं.
त्र माधुरी, आज भी कई अभिनेत्रियां बेहतरीन डांस करती हैं. लेकिन बॉलीवुड में आपको कोई भी रिप्लेस नहीं कर पाता?
ये तो आपका ख्याल है. लेकिन मेरा मानना है कि अनुष्का शर्मा, प्रियंका चोपड़ा, कट्रीना कैफ ऐसी अभिनेत्रियां हैं जो मुझसे बेहतरीन डांस करती हैं. हां, यह जरूर कहूंगी कि हर अभिनेत्री के पास उसका अपना अंदाज होता है. कट्रीना का अपना है, प्रियंका का अपना है. मेरा अपना है. लेकिन इसका यह कतई मतलब नहींं कि मैं बेस्ट हूं.
त्रआपके बच्चे तबला वादन सीख रहे हैं?
हां, मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चों को क्लासिकल ट्रेनिंग मिले. चूंकि मेरे परिवार में मेरी मां भी संगीत की शौकीन रही हैं और पापा भी. मेरे पति को भी ये सब पसंद है. पहले मैं भारत से बाहर थी. अब भारत में हूं तो फिर क्यों नहीं बच्चों को इसकी तालीम दूंगी. मैं खुश हूं कि उन्हें शास्त्रीय संगीत में अब रुचि होने लगी है और वे शिद्दत से इसे सीख रहे हैं.
त्र बिरजू महाराज ने आपके गाने को फिर से कोरियोग्राफ किया है?
मेरे लिए यह जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा है कि बिरजू महाराज के साथ मुझे हमेशा डांस करने में मजा आया है. वे जिस बारीकी से सिखाते हैं और उनका उत्साह आज भी बरकरार है. मैं खुशनसीब हैं कि वे आज भी मेरे साथ हैं.
त्रमाधुरी आप आज भी जबकि मीडिया में लगातार बने रहना जरूरी हो चुका है. लाइमलाइट से दूर रहती हैं. बहुत कम मिलती जुलती हैं मीडिया से .कोई खास वजह?
नहीं, ऐसी कोई खास वजह नहीं. मैं वर्कोहलिक हूं. मुझे लगता है कि अगर काम करूंगी तो उसके बारे में बात करूं.वरना, लोगों को बताने के लिए मेरे पास कुछ भी तो नहीं होगा. फिर मैं क्या खाती हूं क्या पहनती हूं. कैसे फिट रहती हूं इस पर तो काफी बार बातें करती रही हूं. तो मुझे नहीं लगता कि लोगों को अब बहुत दिलचस्पी होगी.
त्रविदेश से आने के बाद आपकी दिनचर्या अब किस तरह बदली है?
पूरी तरह से वहां, सिर्फ परिवार संभालती थी. अब यहां अपने परिवार और काम दोनों को संभाल रही हूं. अब वक्त मिलता है मुझे बहुत कुछ सोचने के लिए. काम करके मजा आ रहा है.
त्रकिसी दौर में जूही चावला आपकी प्रतिद्वंदी मानी जाती थी. आज आप दोनों साथ साथ फिल्म में काम कर रहे हैं?
मैं मानती हूं कि कांप्टीशन अपनी जगह है. वह होना चाहिए. इसमें कोई बुराई नहीं. लेकिन हमने कोई दुश्मनी तो नहीं पाल ली थी. हम अच्छे दोस्त हैं और काफी कुछ शेयर करते हैं खासतौर से बच्चों के ूबारे में

खोई फिल्मी प्रीमियर की चमक


   अपने जमाने के मशहूर खलनायक अभिनेता रंजीत अब फिल्मी प्रीमियर में जाना पसंद नहीं करते. वे बताते हैं कि इन दिनों फिल्मी प्रीमियर में वह बात नहीं रही. जो पहले हुआ करती थी. किसी दौर में फिल्मी प्रीमियर एक खास आयोजन होता था. फिल्मी प्रीमियर के कई कायदे कानून होते थे. उस वक्त प्रीमियर में जाना किसी खास कार्यक्रम में कम नहीं होता था. चमक धमक तो तब भी थी. लेकिन इस कदर नहीं. उस दौर में फिल्मी प्रीमियर में लगभग सभी कलाकार शामिल होते थे. पूरी फिल्म देखते थे. बाद में सभी स्टेज पर जाकर फिल्म की चर्चा करते थे. मिलना जुलना होता था. आज की तरह नहीं, कि फिल्म शुरू होने से पहले बार खुल जाते हैं और लोग केवल पीने पिलाने में रह जाते थे.यही कारण है कि रंजीत इन दिनों फिल्मी प्रीमियर से दूर रहते हैं. दरअसल, यही हकीकत भी है. हाल के दिनों में प्रीमियर की खास अहमियत नहीं रह गयी. आजकल हर फिल्म के प्रीमियर होते हैं और वे सिर्फ तसवीरों और पोशाकों तक सीमित रह जाते हैं, कुछ सालों पहले अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्म पा के दौरान अलग तरीके का प्रीमियर रखा था. इसके अलावा संजय लीला भंसाली ने देवदास के प्रीमियर पर खास आयोजन किया था. फिल्म देखने के बाद सभी लोगों को उन्होंने होटल ताज में दावत दी थी. लेकिन आमतौर पर अब फिल्मी प्रीमियर की चमक गायब हो चुकी है. अब यह सिर्फ दिखावे तक ही सीमित है. जबकि किसी दौर में खुद फिल्म के सितारे बाहर दरवाजे पर खड़े होकर आनेवाले मेहमानों का अभिवादन करते थे. फिर एक घोषणा के साथ फिल्म की शुरुआत होती है. वर्तमान में वह माहौल अब कहीं न तो देखा जाता है और न ही देखा जायेगा. चूंकि आज ग्लैमर हर तरफ हावी है. आज लोग केवल मीडिया कवरेज के लिए फिल्मी प्रीमियर पार्टी रखते हैं.

आंखों की भाषा


बिरजू महाराज ने हाल ही में सोनाक्षी सिन्हा की आंखों की तारीफ करते हुए कहा कि सोनाक्षी की आंखें बेहद एक्सप्रेसिव हंै और वह चाहें तो केवल अपनी आंखों से भी भावपूर्ण अभिनय कर सकती हैं. बिरजू महाराज ने इससे पहले माधुरी दीक्षित की आंखों के बारे में भी यही कहा था. माधुरी जब नृत्य करती हैं तो अपनी आंखों से भी नृत्य करती हैं. किसी दौर में मीना कुमारी अपनी आंखों से अभिनय करती थीं. मधुबाला की आंखें भी एक्टिंग किया करती थी. मधुबाला पर फिल्माये गीतों पर गौर करें तो लगभग सभी फिल्मों के गीतों में उनके चेहरे व आंखों पर मुख्य रूप से केंद्रित किया जाता रहा है. बैजयंतीमाला भी अपनी आंखों की वजह से काफी लोकप्रिय थी. दरअसल, हकीकत यही है कि नृत्य के भाव में आंखों की अहम भूमिका होती है. और जिन अभिनेत्रियों ने भी डांस को अपने अभिनय का हिस्सा माना है. उन्होंने इसकी बारीकियों पर ध्यान दिया है. ऐश्वर्य राय बच्चन से जब यह सवाल किया गया था कि वह दुनिया से जाने के बाद किस एक चीज को दुनिया को देना चाहेंगी तो उन्होंने कहा था कि वह चाहेंगी कि वे अपने आंखें दान दें दें. ताकि कोई और उससे पूरी दुनिया को देखे. ऐश्वर्य राय बच्चन का यह दान जीवनदान है. किसी जमाने में ललिता पवार को भगवान दादा ने शूटिंग के दौरान इतना जोर का थप्पड़ मारा था कि उनकी आंखें बिगड़ गयी थीं. साथ ही उनका चेहरा भी बिगड़ गया और बाद में वे वैसे किरदार नहीं निभा पायीं, जिनमें आंखों की अहम भूमिका होती थी. चूंकि यह हकीकत है कि किसी अभिनेत्री की जिंदगी में उसकी आंखों की अहमियत भी खास होती है. और खासतौर से तब जब वह इससे अभिनय करने में माहिर हों. साधना, राखी, रेखा और शर्मिला टैगोर जैसी अभिनेत्रियों ने भी आंखों के सहारे उम्दा अभिनय लगातार निभाया है. 

रितुपर्णो का जाना


भारतीय सिनेमा ने एक महत्वपूर्ण निर्देशक रितुपर्णो घोष को खो दिया. रितुपर्णो महज 49 वर्ष के थे. रितुपर्णो की फिल्मों की यह खासियत रही कि उनकी फिल्में आम तौर पर बननेवाली फिल्मों से हमेशा अलग थी. वे कई बार विवादों से घिरे रहे. लेकिन उन्होंने इस परवाह नहीं की. उन्होंने बांग्ला फिल्मों को नया आयाम दिया. उन्होंने कभी इस बात की फिक्र नहीं की कि उनके बारे में या उनकी फिल्मों के बारे में लोग क्या सोचेंगे. उनके फिल्मों के विषय आमतौर पर ऐसे विषय रहे, जिनके बारे में लोगों ने कभी खुलेतौर पर बात नहीं की. वे बोल्ड विषयों को चुनते. उनकी फिल्मों की अभिनेत्रियां हमेशा सशक्त भूमिकाओं वाली रही है. उनकी फिल्में चोखेरबाली, रेनकोट, सन ग्लास, नौकाडूबी, अंतरमहल, दोसर, द लास्ट लीयर, शुभो महरुत , तितली, उत्सव कुछ वैसी फिल्मों में से एक रहीं, जो हमेशा यादगार रहेंगी. उन्होंने निर्देशन के साथ साथ कई फिल्मों में अभिनय भी किया. रितुपर्णो की महत्वपूर्ण फिल्मों में से नौकाडूबी एक सार्थक फिल्म है. इस फिल्म को हिंदी में भी कशमकश नाम से रिलीज किया गया था. यह फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की रचना पर आधारित थी. इससे पहले भी कई बार इस रचना पर आधारित फिल्म का निर्माण किया जाता रहा है. रितुपर्णो की फिल्म उन सभी फिल्मों में से महत्वपूर्ण फिल्म रही. राइमा सेन जैसी अदाकारा ने अपनी सबसे अधिक फिल्में रितुपर्णो के साथ ही मनायी. राइमा मानती हैं कि उनको पहचान दिलाने में रितुपर्णो की अहम भूमिका रही. रितुपर्णो ने हिंदी में मात्र दो ही फिल्में बनायी. लेकिन दोनों ही फिल्में उल्लेखनीय रहीं. हिंदी सिनेमा की लोकप्रिय अभिनेत्री ऐश्वर्य राय ने रितु की दो मुख्य फिल्में रेनकोट और चोखेरबाली में साथ साथ काम किया है, वे भी रितुपर्णो को महत्वपूर्ण निर्देशक मानती हैं.

फर्स्ट लुक का कमाल


बॉलीवुड में इन दिनों एक नया ट्रेंड है. ट्रेलर लांच पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रिसर्च टीम बताती है कि हाल के दिनों में दर्शक फर्स्ट लुक से तय करते हैं कि हमें किसी फिल्म को देखना है और किसे नहीं. यही वजह है कि निर्माता फर्स्ट लुक को लेकर हमेशा गंभीरता से सोचते हैं. फिल्म का प्रोमोशन उतना महत्व और प्रभावशाली नहीं रहता. जो कमाल फर्स्ट लुक करता है. पिछली फिल्मों की बात करें तो फर्स्ट लुक में वे सारे संवाद और दृश्य को खासतौर से दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है. जो सबसे ज्यादा प्रभावित कर सके. रांझणा का यह संवाद कि लौंडा बनारस में भी नहीं जीतेगा तो कहां जीतेगा. बार बार दोहराया जाता रहा और यही वजह रही कि दर्शकों को वह काफी पसंद भी आया. फिल्म रांझणा को अच्छी ओपनिंग मिली क्योंकि उसके संवाद कमाल के थे. और दृश्य भी. यही वजह है कि इन दिनों फिल्म के फर्स्ट लुक के प्रोमो एडिटर को हद से अधिक सैलरी दी जाती है. इन दिनों फिल्म के एडिटर से अधिक महत्व प्रोमो एडिटर को दिया जाता है. इन दिनों फिल्म कृष 3 और चेन्नई एक्सप्रेस के प्रोमो पर विशेष रूप से फिल्म के मेकर्स काम कर रहे हैं. चेन्नई एक्सप्रेस के प्रोमो को देखने के बाद ही उसे 100 करोड़ क्लब की फिल्म बता दिया गया है. भाग मिल्खा भाग, लुटेरा और घनचक्कर के प्रोमो को देख कर भी काफी उत्सुकता है. स्पष्ट है कि फर्स्ट लुक के लांच पर इसी वजह से फिल्म के मेकर्स खर्च करते हैं. इन दिनों कम से अपनी फिल्मों के तीन से अधिक प्रोमो लांच किये जाते हैं.हाल ही में प्रकाश झा ने भी अपनी फिल्म सत्याग्रह का  नया ट्रेलर किया है, जिसे यू टयूब पर काफी लोकप्रियता भी मिल रही है. स्पष्ट है कि इन दिनों जमाना ट्रेलर का ही है, न कि फिल्मी प्रोमोशन का.

धर्म निरपेक्ष बॉलीवुड


 फरहान अख्तर फिल्म भाग मिल्खा सिंह में मिल्खा सिंह की भूमिका निभा रहे हैं. इसी फिल्म के सिलसिले में बातचीत के लिए उनके बांद्रा स्थित बिपासना बंगले पर जाने का मौका मिला. प्राय: फिल्मी कलाकार इन दिनों फिल्मी इंटरव्यूज मुंबई के पांच सितारा होटलों या अपने कॉरपोरेट आॅफिस में ही देना पसंद करते हैं. लेकिन फरहान के लिए शायद यह फिल्म बेहद खास है. इसलिए उन्होंने बातचीत के लिए अपने घर को ही चुना. फरहान अख्तर हनी ईरानी और जावेद अख्तर के बेटे हैं. वे निर्माता भी हैं, फिल्मकार भी और अभिनेता भी. फरहान के घर पर जाने का यह पहला मौका था. हालांकि फरहान फिलवक्त कोई सुपरस्टार नहीं. लेकिन इसके बावजूद उनके घर की रूपरेखा की चर्चा यहां करना इसलिए जरूरी और रोचक है, चूंकि उनके घर में पहला कदम रखते ही आप उस व्यक्ति की सोच से वाकिफ होते हैं. फरहान ने अपने घर का नाम विपासना रखा है. जिसके अर्थ से हम सभी वाकिफ हैं. गौतम बुद्ध विपासना किया करते थे. फरहान के घर में पहला कदम रखते ही आपको सामने गौतम बुद्ध की मूर्ति नजर आती है. वहां न तो कोई अल्लाह है न कोई ईश्वर, वहां गौतम बुद्ध है. इसका अर्थ है कि वे बुद्ध की तरह सभी धर्म को सम्मान देते हैं. दरअसल, धर्म को लेकर कई तरह के मतभेद हैं. लेकिन बॉलीवुड भारतीय एकता के संगम का सबसे बेहतरीन स्थान है, जहां ऐसे कई उदाहरण नजर आते हैं. जो आपको धर्म निरपेक्षता का पाठ पढ़ाते हैं. सलमान खान के घर पर भी सभी धर्म का सम्मान है. शाहरुख ने घर पर गीता भी रखी है और कुरान भी. उनके बच्चों दोनों धर्मों को मानते हैं. उन्होंने बच्चों के नाम सरनेम रखा ही नहीं है. आमिर खान ने किरन राव से शादी की. दरअसल, हिंदी सिनेमा धर्म निरपेक्षता का खास परिचायक है और हमें इससे वह सीख लेनी चाहिए.

यह रांझणा जुदा है


फिल्म रांझणा का कुंदन अपनी महबूबा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. वह जोया से इतनी मोहब्बत करता है. उसे धर्म जाति या किसी भी तरह की सरहद सरहद नहीं लगती. कुंदन अपनी प्रेमिका के प्यार में अपनी हथेलियों को कांट लेता है. लेकिन उसे उस वक्त उतना दुख नहीं होता. जितना दुख उसे तब होता है, जब उसे पता चलता है कि जोया कुंदन से प्यार ही नहीं करती. रांझणा ने तीन दिनों में ही अच्छी कमाई कर ली है. फिल्म को दर्शकों का बेइतहां प्यार मिल रहा है. इसकी वजह यही है कि इस फिल्म से हर आम लड़के, हर आम जिंदगी खुद  को कनेक्ट कर पा रहे हैं. कुंदन सिर्फ रांझणा का कुंदन नहीं है. बल्कि वह उन तमाम छोटे शहरों की गलियों में रहनेवाले प्यार को इबादत समझने वालों का प्रतिनिधित्व करता है. छोटे शहरों में प्यार यूं ही गलियों में पनपता है. लेकिन कई बार अंत वही होता है. जो कुंदन के साथ हुआ.फिल्म में एक जगह जोया कहती है कि मैं क्या कुंदन जैसे जाहिल गवार से शादी कर लूं. उससे प्यार कर लूं? जोया की यह बातें दर्शाती हैं कि भले ही लोग लंबी लंबी बातें करें कि प्यार कोई उम्र कोई हैसियत नहीं देखता. लेकिन हकीकत तो यही है कि प्यार हैसियत का भी मोहताज होता है. खासतौर से छोटे शहरों में कई कुंदन का प्यार यूं ही अधूरा रह जाता है. चूंकि या तो उनकी हैसियत नहीं होती. चूंकि प्राय: लड़की के परिवार लड़के का दिल नहीं, उसका बैंक बैलेंस देखते हैं. उन्हें अपनी बेटी के प्यार में पागल लड़का नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारी वाला दामाद ही चाहिए. दरअसल, रांझणा के माध्यम से इस सोच को बखूबी परदे पर दर्शाया गया है और वह प्रासंगिक भी है. यही वजह है कि छोटे शहर में यह फिल्म और पसंद की जा रही है. हिंदी सिनेमा में पहले भी रांझणों पर फिल्म बनती रही है. लेकिन यह रांझणा सबसे जुदा है क्योंकि यह सबके बीच का है.

बायोपिक फिल्मों की जरूरत


भाग मिल्खा भाग के लिए फरहान अख्तर ने खुद को पूरी तरह से मिल्खा सिंह के किरदार में ढालने की कोशिश की है. वे फिल्म में वाकई मिल्खा सिंह के हूबहू रूप नजर आ रहे हैं. प्रियंका चोपड़ा मैरी कॉम का किरदार निभा रही हैं. लेकिन हाल ही उन्हें इस बात से काफी दुख हुआ था कि उनका लुक पहले ही जगजाहिर हो गया और फिर लुक बदला गया. हालांकि प्रियंका चोपड़ा का दुखी होना लाजिमी नहीं. चूंकि किसी भी फिल्म को जब निर्देशक बायोपिक रूप देते हैं तो वे इन बातों का खास ख्याल रखते हैं कि न सिर्फ रूप में बल्कि फिल्म में वह कलाकार उसे किस तरह बखूबी परदे पर उतार पा रहा है या नहीं. सो, जरूरत किरदार को उस रूप में ढालने की है. प्रियंका के लिए यह सुनहरा मौका है, जब वह खुद को बर्फी की झिलमिल किरदार के बाद खुद को साबित कर सकती हैं. सो, बेहतर है कि उन्हें अपने किरदार पर ध्यान देना चाहिए. जिस तरह विद्या बालन ने सिल्क स्मिथा का किरदार फिल्म द डर्टी पिक्चर्स में निभाया है. वह अदभुत था. लोग विद्या को देख कर यह कल्पना कर सकते हैं कि सिल्क ऐसा ही सोचती होगी. फरहान अख्तर के लिए भी यह सुनहरा अवसर है जब वह अपने जीवन की सबसे खास फिल्म में खुद को साबित करें. इरफान खान के लिए पान सिंह तोमर माइलस्टोन फिल्म साबित हुई. सिर्फ इसलिए नहीं कि फिल्म में उनका लुक पान सिंह से मिलता था. बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने उस किरदार को जीवटता से जिया.  स्पष्ट है कि हिंदी सिनेमा के कलाकार इन बातों को बखूबी समझे कि बायोपिक फिल्म में लुक से कहीं बढ़ कर यह जरूरी है कि आप अपने अभिनय में उस शख्सियत की जिंदगी को कितना ऊभार कर सामने लाते हैं. हिंदी सिनेमा में तभी बायोपिक फिल्मों में मौलिकता नजर आयेगी. प्रियंका की मैरी कॉम पर आधारित फिल्म का इंतजार रहेगा. 

चुपके चुपके का रीमेक


  फिल्म चुपके चुपके के भी रीमेक बनाने की तैयारी पूरी हो चुकी है. फिल्म का निर्देशन उमेश शुक्ला कर रहे हैं और खबर है कि परेश रावल ओम प्रकाश वाले किरदार में नजर आयेंगे. ऋषिकेश की फिल्म गोलमाल का भी रीमेक बनाया जा चुका है. चुपके चुपके अगली फिल्म है. चुपके चुपके हिंदी सिनेमा की उन लोकप्रिय हास्य फिल्मों में से एक है, जो सदाबहार है. दर्शक आज भी फिल्म के संवाद नहीं भूले. आप चाहें तो इस फिल्म को कई बार देख सकते हैं. लेकिन आप बोर नहीं होंगे. दरअसल, इस फिल्म में जीजा साली और परिवार के रिश्तों को हास्य की चाशनी में इस कदर डुबो कर प्रस्तुत किया गया था कि वह फिल्म दर्शकों को आज भी याद है. धर्मेंद्र अमिताभ, जया और शर्मिला ने फिल्म में जिस अंदाज में प्रस्तुति दी थी. मल्टी स्टारर फिल्मों की लोकप्रिय फिल्मों में से एक थी, हाल की मल्टी स्टारर फिल्में देखें तो लगभग सभी कलाकारों पर निर्देशक बारीकी से काम नहीं करते. लेकिन उस दौर में ऐसी फिल्मों में भी हर किसी के किरदार को खास तरीके से प्रस्तुत किया जाता था. चुपके चुपके के नये रीमेक की तैयारी हो तो रही है. लेकिन क्या नये चुपके चुपके वही रस , वही जादू बरकरार रख पायेगी. अमिताभ ने जिस बखूबी से दर्शकों को इस फिल्म में हंसाया है. शायद ही इतना बेहतरीन हास्य अभिनय उन्होंने किसी अन्य फिल्म में किया था. वर्तमान मे ं भले ही निर्देशक पुरानी फिल्मों को लेकर उसे नये रंग रूप में प्रस्तुत करें और उसे आज भी प्रासंगिक बनाने की कोशिश करें. लेकिन हकीकत यही है कि पुराने दौर की फिल्में आज भी प्रासंगिक हैं. लेकिन आज के दौर की बनी भी आज के दौर में प्रासंगिक नहीं लगती. उस दौर की फिल्मों के लगातार रीमेक हो रहे हैं.लेकिन आज के दौर की फिल्में कुछ सालों के बाद रीमेक नहीं बन सकती. चूंकि वे प्रासंगिक नहीं .

दोस्ती और प्यार की तलाश


 जिया खान को लेकर लगातार आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली पर उंगलियां उठाई जा रही हैं. वे लगातार शक के घेरे में है. चूंकि जिया के वे करीबी दोस्तों में से एक थे और जिया के मोबाइल में सूरज का नाम ही आखिरी डायल नंबरों में से एक था. इस बारे में शोभा डे ने भी अपने कॉलम में लिख डाला है कि आदित्य पंचोली के बेटे ने अपने पिता की तरह की ही हरकतें की है. दरअसल, आदित्य पंचोली की छवि हमेशा साफ सुथरी नहीं रही है. वे भी कई तरह के अफेयर व कई खबरों से जुड़े रहे हैं. सो, शोभा ने जैसा बाप वैसा बेटा वाले तर्क पर दोनों को लथाड़ा है. दरअसल, यह हकीकत भी है कि कई बार अपने माता पिता की परवरिश का सीधा असर उनके बच्चों पर भी होता है. हालांकि सुनील दत्त साहब की छवि बेहद साफ थी और वे हमेशा फक्र से जीने वाले इंसान रहे. लेकिन संजू शुरुआती दौर से ही बुरी संगत में रहने के कारण बिगड़ गये. लेकिन जहां तक बात है सूरज पंचोली की तो वे उन रयिश माता पिता की बिगड़ी औलाद में से हैं, जिनके लिए रिश्तों की खास अहमियत नहीं होती. हालांकि उन्होंने कहा है कि जिया की मौत के जिम्मेदार वे नहीं, वे दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त थे. लेकिन जिया जिस दौर से गुजर रही थी, उसमें अगर सूरज का साथ उन्हें मिला था तो वे उसे ही खास दोस्ती समझ बैठी होंगी. यह अलग बात है कि मुंबई में हर दिन रिश्तों का इक्वेशन बदलता रहता है. जिया की मौत का कारण उनकी तन्हाई भी थी. अगर उन्हें अच्छे दोस्त का साथ मिला होता तो शायद वे मौत का रास्ता नहीं चुनती. दरअसल, यह इंडस्ट्री दोस्ती के नहीं आर्थिक स्थिति के आधार पर रिश्तें तय करती है.आज सूरज खुद को इस बात से अलग कर रहे हैं. लेकिन वक्त रहते अगर उन्होंने दोस्ती निभाई होती तो शायद 25 साल की जिया आज जिंदा रह सकती थीं. 

अमिताभ की नयी पारी


अमिताभ बच्चन अपनी नयी पारी की शुरुआत टेलीविजन के एक फिक् शन शो से करने जा रहे हैं. यह पहली बार होगा जब वह टेलीविजन पर किसी फिक् शन शो का हिस्सा बनेंगे. इससे पहले वह सोनी टीवी के रियलिटी शो का हिस्सा रहे हैं. लेकिन यह उनकी पहली शुरुआत है. बुधवार को उन्होंने मीडिया के सामने यह बात स्वीकारी. प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अमिताभ के फिल्मी करियर पर आधारित एक आॅडियो विडियो प्रस्तुत किया गया था. जिसमें मुख्यत : इस बात पर बात की गयी थी कि अमिताभ हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि आगे क्या?चूंकि वे जिंदगी में संतुष्ट नहीं रहना चाहते. दरअसल, अमिताभ की इस संतोष न करनेवाली ललक को उनके आर्थिक असंतुष्टि से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. अमिताभ वर्कहोलिक हैं. और वे लगातार काम करते रहना चाहते हैं. वे फिल्मों के साथ साथ टीवी पर भी सक्रिय रहे हैं और यह उनकी नयी पारी होगी. बहरहाल उन्होंने शो के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी है. लेकिन निश्चित तौर पर उनके आने से शो का कद ऊंचा हो जायेगा. चूंकि लार्जर देन लाइफ होने के बावजूद अमिताभ उन शख्सियत में से एक हैं जो आम लोगों से बहुत सही तरीके से कनेक्ट कर पाते हैं. दर्शकों के लिए यह खुशी की बात है और अमिताभ के लिए नयी शुरुआत. दरअसल, नयी पीढ़ी को अमिताभ से प्रेरणा लेनी चाहिए कि वे किस तरह अब भी प्रयोग कर रहे हैं. वे चाहें तो आज भी आराम कर सकते हैं और उनकी लोकप्रियता में इससे कोई कमी नहीं आयेगी. लेकिन वे ऐसा नहीं करते, चूंकि वे काम करते रहना चाहते हैं.निश्चित तौर पर वे जब पूरे दिन की थकान के साथ अपने कमरे में जाते होंगे तो चैन की सांस लेते होंगे और उन्हें खुशी मिलती होगी कि वे निरंतर प्रयास कर रहे हैं और आज भी सफल हो रहे हैं. 

किरदारों का खोना


करन जौहर की ये जवानी है दीवानी ने अच्छा व्यवसाय कर लिया है. फिल्म ने पहले दिन ही अच्छी कमाई की थी. रणबीर कपूर की किसी फिल्म को इससे पहले इतनी अच्छी ओपनिंग नहीं मिली थी. फिल्म की रिलीज से पहले ही फिल्म का जम कर प्रोमोशन किया गया था और इस वजह से लोगों में काफी उत्सुकता भी थी. और यह भी वजह रही कि फिल्म को अच्छी ओपनिंग मिली. लेकिन  फिल्म देखने के बाद वह सारी उत्सुकता खत्म हो जाती है. चूंकि फिल्म में कहानी बेहद कमजोर थी. अयान मुखर्जी की वेकअप सीड देखने के बाद उनसे और अधिक उम्मीदें बढ़ी थी. कुछ जगहों पर और भी त्रूटियां हैं. नैना के माता पिता फिल्म के अंतराल के बाद गायब ही हो जाते हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि इन दिनों हिंदी सिनेमा में यह एक नया ट्रेंड बन चुका है. फिल्मों के किरदार अचानक से आकर अचानक चले जाते हैं. फिल्म जब तक है जान में अनुपम खेर को कट्रीना कैफ के पिता की भूमिका में दिखाया गया है. लेकिन वे अचानक फिल्म से गायब हो जाते हैं. यह हिंदी फिल्म के निर्देशकों की कमी है. वे अपने किरदारों को लेकर उस तरह से सजग नहीं. जैसे उन्हें होना चाहिए. इस संदर्भ में अनुराग कश्यप का कोई सानी नहीं. वे अपने किरदारों न सिर्फ सही तरीके से सहेजते हैं, बल्कि वे उन्हें सही तरीके से प्रस्तुत भी करते हैं. वे अपने सारे किरदारों के बेफिजूल फ्रेम में नहीं लाते. निर्देशक की यह खूबी होनी चाहिए कि उसके छोटे किरदार भी बेफिजूल न लगें. इस मामले में अनुराग बसु भी अच्छे निर्देशक हैं. रमेश सिप्पी ने अगर फिल्म शोले में इतनी बड़ी स्टार कास्ट होने के बावजूद किरदारों की बारीकियों पर ध्यान नहीं दिया होता तो शायद ही शोले हिंदी सिनेमा की श्रेष्ठतम फिल्मों में से एक होती.यह निर्देशक की कला और उनकी दक्षता पर निर्भर करता है और इसे उन्हें 

जवां ऋषि


 ऋृषि कपूर इस साल अपने बेटे रणबीर कपूर से अधिक व्यस्त हैं. इस साल उनकी लगभग सात फिल्में आ रही है. जिनमें वे अहम किरदारों में हैं. ऋषि कपूर ने बहुत कम उम्र से ही अभिनय में कदम रख लिया था. वे फिल्म मेरा नाम जोकर में राज कपूर के बचपन के किरदार निभाते नजर आये थे. बाद में बॉबी से उन्होंने अपने सक्रिय अभिनय करियर की शुुरुआत की. इसके बाद वे लगातार सफलता की ऊंचाईयों को छूते रहे. अपनी तीनों भाईयों में वे सबसे बेहतरीन अभिनेता साबित हुए. उन्होंने हर तरह के किरदार निभाये. लेकिन इसके बावजूद उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि लोगों ने उन्हें राज कपूर क ेबेटे के रूप में जाना और जबकि आज उनके बेटे रणबीर कपूर बेहतरीन अभिनेता हैं तो लोग आज उन्हें ऋषि कपूर के बेटे नहीं, बल्कि राजकपूर के पोते के रूप में संबोधित करते हैं.उन्होंने एक बार अपनी बातचीत में इस बात का जिक्र किया था कि लोग यह भूल जाते हैं कि राजकपूर और रणबीर के बीच एक ऋषि भी है. ऋषि यह भी मानते हैं कि उन्हें हाल में जितनी बेहतरीन फिल्मों में काम करने का मौका मिल रहा है. कुछ सालों पहले तक उन्हें उपेक्षित किया जा रहा है. दरअसल, यह हकीकत भी है कि ऋषि कपूर फिलवक्त जिस तरह के किरदार निभा रहे हैं. वे फिल्मों में कैरेक्टर आर्टिस्ट होकर भी लीड किरदारों पर भारी पड़ते हैं. फिर चाहे वह रॉफ लैला का किरदार हो, या औरंगजेब का. फिल्म चश्मे बद्दूर में उन्होंने जो हास्य किरदार निभाया है. वह भी अलग और मजेदार किरदार है. जल्द ही उनकी फिल्म डीडे रिलीज होगी, जिसमें वे बिल्कुल अलग एक डॉन के किरदार में है. हिंदी सिनेमा ने अब जाकर उनकी प्रतिभा का सम्मान करना शुरू किया है. ऋषि आने वाले समय में और एक मील का पत् थर साबित होंगे. जरूरत बस इतनी सी है कि उनके अभिनय का सम्मान हो और उन्हें अच्छे किरदार मिले

बॉलीवुड की पारिवारिक महिलाएं


फराह खान जल्द ही फिल्म हैप्पी न्यू ईयर लेकर आ रही हैं. और इसके अलावा वे लगातार छोटे परदे पर डांसिंग शोज की जज की भूमिका निभाती रहती हैं. फराह तीन बच्चों की मां हैं. उनके पति शिरीष कुुंदुर फिल्म संपादक होने के साथ साथ निर्देशक भी हैं. लेकिन वे अभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाये हैं. इसके बावजूद फराह खान उनका पूरा सहयोग करती हैं और अपने पति की वजह से वे कई बार इंडस्ट्री के बड़े सितारों व अपने खास दोस्तों से पंगे भी ले लेती हंै. ठीक उसी तरह जैसे भगवान शिव का अपमान सति को बर्दाश्त नहीं हुआ था और उन्होंने खुद की आहुति दे दी थी. उसी तरह लगातार फराह अपने पति का साथ देती हैं. इसकी एक खास वजह यह भी है कि वह उम्र में शिरीष से काफी बड़ी हैं और उन्होंने प्रेम विवाह किया है. विद्या बालन ने हाल ही में अपने देवर की फिल्म नौटंकी साला की सफलता पर घर में पार्टी दी और पूरे मेहमानों के लिए खुद से खाना पकाया. दरअसल, फराह उन महिलाओं में से एक हैं, जिनके लिए काम के साथ साथ परिवार की भी खास अहमियत है. वे इस बात को समझती हैं कि परिवार हैं तो हम हैं. ऐश्वर्य राय बच्चन ने भी अपने करियर को लंबा ब्रेक देकर अपनी बेटी आराध्या को अपना पूरा वक्त दिया. हिंदी सिनेमा में ऐसी महिलाओं की संख्या बेहद कम है, जो पूरी तरह अपने परिवार के प्रति समर्पित हो सके. ग्लैमर की दुनिया का चस्का इस कदर हावी रहता है कि चाह कर भी इससे दूर जाने के बारे में अभिनेत्रियां नहीं सोच पातीं. लेकिन जो जानती हैं कि उनमें बात है. वे आत्मविश्वास के साथ परिवार और घर दोनों संभालती हैं. ये महिलाएं आदर्श हैं और प्रेरणा है. शायरा बानो ने अपने फिल्मी करियर को विराम दिलीप साहब के लिए दिया. लेकिन अपनी खुशी से. चूंकि उनके लिए भी परिवार सबसे अहम था.

जिंदगी से जुड़े अनुभव को पिरोता हूं शब्दों में : प्रसुन जोशी

  उनकी कलम से जब शब्द निकलते हैं तो तारें जमीं पर आ जाते हैं. वे जब कहानी बुनते हैं तो मिल्खा सिंह भाग मिल्खा भाग के रूप में दर्शकों के सामने होते हैं. वे जब बातें करते हैं तभी ऐसा लगता है जैसे शब्दों को लय में बांध कर सामने प्रस्तुत किया गया हो. वे अपने फन में माहिर हैं. महारथी हैं. बात हो रही है प्रसुन जोशी की, जो गीतकार के साथ साथ अब कहानीकार के रूप में भी दर्शकों के दिलों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. भाग मिल्खा भाग इस साल की बहुचर्चित फिल्म है और इसे कहानी में  प्रसुन ने ही पिरोया है. फिल्म के बारे में व कई पहलुओं पर उन्होंने   अनुप्रिया अनंत से बातचीत की.
त्र प्रसून, आपने अब तक कई गीतों के शब्द पिरोये. लेकिन अचानक फिल्म लेखन की तरफ झुकाव कैसे हुआ?
मेरे अंदर लेखन का कीड़ा है. फिर चाहे वह फिल्म का लेखन हो या छोटी सी कविता ही क्यों न हो. मुझे लिखते रहना पसंद है. भाग मिल्खा भाग की कहानी मैंने इसलिए लिखी. चूंकि मिल्खा सिंह की जिंदगी में इतने वेरियेशन है, जो एक लेखक को कई शेड्स देने के लिए प्रेरित करता है. मिल्खा सिंह जैसे व्यक्ति पर फिल्म बनाने के लिए कहानी का अपने आप में हीरो होना बहुत जरूरी था. जितनी दिलचस्प यह फिल्म गढ़ी जा सकती है. हमने गढ़ने की कोशिश की है. राकेश और मैंने एक कोशिश की है. मिल्खा सिंहजी और मेरी मुलाकात हुई. बाद में राकेश, मैंने और मिल्खाजी ने फिल्म का अनाउंसमेंट किया.

त्र भाग मिल्खा सिंह मिल्खा सिंह की जिंदगी पर आधारित फिल्म है. तो किसी फिक् शन किरदार पर फिल्म की कहानी व कैरेक्टर गढ़ने व वास्तविक व्यक्ति को कैरेक्टर में डाल कर फिल्म की कहानी बनाना कितना मुश्किल कितना आसान है?
आसान तो बिल्कुल नहीं है. चूंकि आप जब बायोपिक फिल्म लिखते हैं तो आपको इन बातों का खास ख्याल रखना होता है कि फिल्म के किरदार वास्तविक व्यक्ति से बिल्कुल मेल खाता हुआ हो. फिर चाहे वह मुख्य किरदार हो या फिर कोई कैरेक्टर आर्टिस्ट ही. चूंकि कैरेक्टर आर्टिस्ट भी तो मुख्य किरदार निभा रहे व्यक्ति की तरह ही वास्तविक ही होने चाहिए. तो यह एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन हमने कोशिश की है फिल्म की कहानी के साथ न्याय करने की. फिर दूसरी बात यह है कि मिल्खा सिंह जी की जिंदगी में इतने शेड्स हैं कि उन्हें ढाई घंटे में दिखाना मुश्किल है. तो क्या लें, क्या छोड़े. ये भी तय करना बतौर लेखक बड़ी जिम्मेदारी थी. मैंने मिल्खाजी के साथ काफी वक्त गुजारा और उन्हें नजदीक समझने की कोशिश की.

त्रजैसा कि आपने कहा कि मिल्खा सिंह की जिंदगी को ढाई घंटे में परदे पर दर्शाना मुश्किल है तो क्या हम उम्मीद करें कि मिल्खा सिंह की फिल्म के भी सीक्वल आने की पूरी गुंजाईश है?
ट्रेंड तो वही है. लेकिन हम इसलिए फिल्म का सीक्वल अगर कभी बनाया तो इसलिए नहीं बनायेंगे कि हम ट्रेंड के साथ चलें, दरअसल, उनकी जिंदगी है ही इतनी रोमांचित. फिलवक्त हम तो मिल्खा सिंह के अंदर के धावक की जिंदगी पर फोकस कर रहे हैं. लेकिन मिल्खा सिंह की जिंदगी में उनकी पारिवारिक जिंदगी के भी कई पहलू हैं. जिन्हें दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश है. जब वह स्पोटर््पर्सन नहीं थे तब क्या थे. कह सकते हैं कि फिल्म बनी तो वह प्रीक्वल फिल्म बन सकती है. तो अभी से यह नहीं कह सकता कि फिल्म बनेगी ही. लेकिन लिखना तो जरूर चाहूंगा. मेरे इंटरेस्ट का विषय है.

त्र प्रसून, क्या आप मानते हैं कि वर्तमान में लगातार रीमेक फिल्में बन रही हैं, सीक्वल फिल्में बन रही हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, चूंकि इन दिनों कहानी की कमी है?
बिल्कुल है. मेरा मानना है कि हिंदी सिनेमा में कहानी की कमी है और इसकी वजह यह है कि कहानियां मेट्रो शहरों तक सीमित रह जा रही है.पिछले कुछ सालों में हालांकि कुछेक फिल्मों ने गांव का रुख किया था. लेकिन फिल्मों की मार्केटिंग को मद्देनजर रखते हुए अब भी फिल्में मेट्रो को या बड़े शहरों को ध्यान में रख कर बनाई जा रही हैं. फिल्म से हिंदी पट्टी की कहानी गायब है और यही बड़ी वजह है कि नये विषयों पर आधारित कहानी का अभाव है. लेकिन धड़ल्ले से फिल्में बन रही हैं.

त्र और अगर लेखक के सम्मान और मेहनताना की बात करें तो क्या उन्हें वह सब मिल पाता है, जिसके वे असल में हकदार हैं?
यह हकीकत है कि फिल्मों के लेखक को अब भी उनका वह सम्मान नहीं मिला है. लेकिन मुझे लगता है कि राकेश ओमप्रकाश मेहरा जैसे निर्देशक जिनकी कहानियां ही उनका हीरो होती हैं. वैसे निर्देशक कभी भी लेखकों का साथ नहीं छोड़ेंगे. लेकिन जब तक आम लोग लेखक को पहचान न लें. उन्हें यह बात न समझाई जाये कि लेखक फिल्म के लिए क्यों खास होता है. तब तक आप नहीं कह सकते कि उन्हें सबकुछ हासिल हो चुका है. लेकिन अच्छा दौर शुरू हो चुका है और धीरे धीरे सुधार हो ही जायेंगे.

त्रआप पिछले कई सालों से लगातार बेहतरीन गानें, कविताएं लिखते आ रहे हैं. लेकिन कोई भी गीत ऊबाऊ नहीं होते. ऐसा भी नहीं लगता कि आप चीजों को दोहरा रहे हैं. तो वे कौन सी बातें हैं वह ऊर्जा है, जो आपको लगातार लिखने के लिए प्रेरित करती है?
सबसे खास बात यह है कि मंै कभी नंबर वन की रेस में शामिल नहीं हुआ. मैं इसलिए नहीं लिखता कि मुझे नंबर वन बनना है. मुझे अच्छा लिखना है. चूंकि मेरे दिल को अच्छा लगता है. इसलिए लिखता हूं. और आज भी मैंने पढ़ना नहीं   छोड़ा है. ट्रैवल करना नहीं छोड़ा है. यह सब मेरे लिए सोर्स आॅफ एनर्जी है. ट्रैवल करने से, लोगों से मिलने जुलने की वजह से मुझे वहां के अनुभव मिलते रहते हैं और यही चीजें मुझे प्रेरित करती हैं. दूसरी बात है कि जब भी गाने लिखता हंू तो कोशिश यही होती है कि अपनी जिंदगी से जुड़े अनुभव को आसान शब्दों में लोगों तक पहुंचाऊं. तो यही सब वजह है. मैंने जब तारें जमीं पर के गीत लिखे थे. तो इसलिए मेरी मां जैसा गीत निकल कर सामने आया. चूंकि वह गीत मैंने खुद को सोच कर लिखी थी. मेरी जिंदगी पर आधारित है. मैं भी बचपन में अंधेरे से डरता था. और वही से मैंने इस गाने की प्रेरणा ली थी.

त्र आपने अब तक हर जॉनर के गीत लिखे हैं. सबसे कठिन जॉनर आपके लिए कौन सा रहा?
बच्चों के लिए गीत लिखना बेहद कठिन होता है. चूंकि वे खुद बहुत सेंसिटिव होते हैं. आप उन्हें बड़ी बड़ी बातें कह कर बहला नहीं सकते. सो, उनके लिए लिखते समय आपको ध्यान देना होता है कि आप जो लिख रहे हैं, उसमें मस्ती भी हो, थोड़ा मेसेज भी हो. ममता भी हो और खास बात उनके दिल को किसी बात से ठेस न पहुंचे. इन बातों का ख्याल रखना होता है.

त्रकभी मौका मिले तो क्या भविष्य में आप निर्देशन करना चाहेंगे?
फिलहाल लेखन पर ध्यान है. लेकिन क्रियेटिविटी है निर्देशन के क्षेत्र में भी तो. कभी देखा जायेगा. वैसा संयोग बना तो जरूर करूंगा निर्देशन.

है दर्शकों का दिल जीतने की कोशिश : सिद्धार्थ

  सिद्धार्थ शुक्ला बालिका वधू के शिव के रूप में तो दर्शकों के चहेते बन चुके हैं. लेकिन जल्द ही वे झलक दिखला के डांस फ्लोर पर एक अलग ही अंदाज में नजर आयेंगे. सिद्धार्थ खुश हैं कि उन्हें डांस फ्लोर पर खुद को एक्सप्लोर करने का मौका मिल रहा है. आइए जाने कैसी है उनकी तैयारी जीत की

सिं  द्धार्थ शुक्ला पहली बार झलक दिखला जैसे डांसिंग कांप्टीशन का हिस्सा बनने जा रहे हैं और वे इस शो को लेकर काफी उत्साहित हैं. बातचीत सिद्धार्थ शुक्ला से...
पहला मौका है, सो खुश हूं
मुझे डांस का शौक तो हमेशा से रहा है. लेकिन यह पहला मौका है जब इतने बड़े मंच पर मैं परफॉर्म कर रहा हूं. यह कोई आसान काम नहीं है. डांस पार्टी में डांस करना और किसी कंप्टीशन में डांस करना दोनों दो अलग अलग बातें हैं. यह जितना आसान है उतना ही मुश्किल. लेकिन मैं खुश हूं कि झलक के मंच के लायक मुझे समझा गया है.
मैं फिटनेस फ्रीक हूं
मेरे बारे में सभी जानते हैं कि मैं फिटनेस फ्रीक हूं और मुझे खुशी है कि मैं फिट हूं. इससे मुझे झलक में भाग लेने में आसानी हो रही है, क्योंकि डांस का भी फिटनेस से बेहद जुड़ाव है. दोनों एक दूसरे से कनेक्टेड है. तो मैं तो कहंूगा कि झलक दिखला जा का मंच जो फिट नहीं है. उसे फिट बना देता है और जो हैं उन्हें और ज्यादा फिट बना देता है. हम लगातार झलक के लिए प्रैक्टिस कर रहे हैं. काफी मेहनत हो रही है. रिहर्सल हो रहे हैं.
डायट का ख्याल
चूंकि मैं खुद डायट का बहुत ख्याल रखता हूं. तो इसमें मुझे खास परेशानी नहीं हो रही है. हां इतना ख्याल रख रहा हूं कि ज्यदा हेवी खाना न खाऊं. ओइली खाना न खाऊं.
स्कूल में किया था परफॉर्म
मैंने सबसे पहले अपने स्कूल में परफॉर्म किया था. लेकिन उस परफॉरमेंस और इस परफॉरमेंस में काफी फर्क है. काफी ऐसी चीजें हैं जो डिफरेंट है. कई बार टेलीविजन शोज के लिए रिहर्सल करता हूं. लेकिन इस बार झलक में बिल्कुल ट्रेंड कोरियोग्राफर के साथ ट्रेनिंग कर रहा हूं तो मजा आ रहा है.
नहीं बदली है जिंदगी
मुझे शिव के किरदार से काफी लोकप्रियता मिली है. लेकिन इससे मेरी जिंदगी बिल्कुल नहीं बदली है. मैं अपने फैन से प्यार करता हूं और हमेशा उनसे मिलना पसंद करता हूं.

मैं भी कॉलेज के दिनों में था फुकरे :


आपकी आनेवाली फिल्म फुकरे के बारे में बताएं?
फुकरे कहानी चार ऐसे लड़कों की कहानी है  जो कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए बहुत बेचैन हैं. वे चारों फुकरे हैं यानी निकम्मे हैं, इसलिए उन्हें कॉलेज में  दाखिला बेने में काफी तकलीफ होती है. लेकिन एडमिशन लेने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं और फिर कैसे उनके पैंतरे उनपर ही भारी पड़ते हैं, इसी के आसपास फिल्म की कहानी घूमती है.

त्फरहान इससे पहले आपने दिल चाहता है भी बनाई थी.फिर फुकरे भी दोस्तों के इर्द गिर्द ही घूम रही है. रॉक आॅन भी आपके प्रोडक् शन की ही फिल्म थी. दोस्ती पर फिल्में बनाने की कोई खास वजह?
 इसके पीछे कोई सोची समझी वजह नहीं  ये इत्तेफाक है कि हमारी फिल्में दोस्ती पर आधारित है लेकिन वो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें ये कहानियां पसंद आयी हैं. हमने कभी ये सोचकर फिल्में नहीं बनाई है कि ये दोस्ती के ऊपर कहानी है इसलिए हम यही बनायेंगे. ये कहानी इस योग्य थी कि इस पर फिल्म बनाई जाये. मैं और मेरे दोस्त रितेश भी अपने कॉलेज के दिनों में कुछ इसी तरह जीते थे. सो, यह कहानी मुझे खुद से कनेक्टिंग लगी और लगा कि दर्शक भी कनेक्ट कर पायेंगे.हमारी फिल्में भले ही दोस्ती पर आधारित होती हैं लेकिन ये सभी फिल्मों की कहानी का आधार एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग होते हैं. हर कहानी में नयापन लाने की कोशिश करते हैं जिसे दर्शक पसंद करें.

त्रइस फिल्म में सिर्फ नये चेहरे नजर आ रहे हैं. कुछ खास वजह?
 हर स्क्रिप्ट की अपनी डिमांड होती है. इस फिल्म की कहानी के अनुसार हमें नये चेहरों की जरूरत थी. फिल्म में हर अभिनेता अपने किरदार को पूरी तरह से जंच रहा है और सभी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. मैं भी एक समय पर नया था तो हर अभिनेता को पहला मौका मिलता है उसके बाद ही वो एक स्टार बन पाता है. और ये कलाकार जो फिल्म में हैं ये सभी काफी प्रतिभाशाली अभिनेता हैं और इसलिए इन्हें मौका मिला है.

त्रआपको लगता है कि इस फिल्म से दर्शक खुद को कनेक्ट कर पायेंगे?
अमूमन लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ पायेंगे क्योंकि हर इंसान के जीवन में एक न एक दिन ऐसा जरूर आता है जब उन्हें लगता है कि वो किसी लायक नहीं हैं या अपनी मंजिल को वो नहीं पहचान पाते हैं और उसकी खोज में लग जाते हैं. मैं खुद भी ऐसे दौर से गुजर चुका हूं. मेरे हिसाब से हर स्कूल या कॉलेज में जाने वाले युवा इस फिल्म से खुद को जोड़ पायेंगे.

त्रफिल्म का शीर्षक फुकरे अजीबोगरीब है. आधे लोग तो इसके मायने समझते भी नहीं होंगे. कोई खास वजह ऐसा शीर्षक चुनने की?
मुझे नहीं लगता कि लोग इसे नहीं समझ पायेंगे. दिल्ली के लिए आम शब्द है और आज भारत की आधे से ज्यादा आबादी के छात्र तो दिल्ली में पढ़ते ही हैं और अगर दूर भी हैं तो नेटवर्किंग साइट्स की वजह से सभी इस तरह के शब्द से वाकिफ होंगे. वैसे भी ऐसा तो कहीं नहीं लिखा  कि फिल्म का शीर्षक असामान्य नहीं होना चाहिए. बल्कि मुझे ऐसा लगता है कि दर्शकों के अंदर ऐसे शीर्षक ही जिज्ञासा पैदा करते हैं. उन्हें भी तो मजा आना चाहिए कि आखिर इस शब्द का मतलब क्या है और फिर वो अपनी ओर से भी थोड़ी कोशिश करें जानने की. नये शब्द और नयी चीजें हर कोई सीखना चाहता है. 'फुकरे' शब्द फिल्म को परिभाषित करता है. दबंग फिल्म के रिलीज होने के पहले कितने लोगों ने इस शब्द को सुना था. जब फिल्म रिलीज हुई उसके बाद लोगों ने इस शब्द का मतलब समझा और हर बात में इसका इस्तेमाल भी करने लगे.

त्रआप फिल्म के निर्माता हैं तो शूटिंग के दौरान आपका कितना हस्तक्षेप रहा?
 मैं इस फिल्म का निमार्ता हूं और बतौर निमार्ता मुझे जितना योगदान करना चाहिए था वो मैंने किया है. मैंने मृग जो कि हमारे निर्देशक हैं उनसे पहले ही बोल दिया था कि मैं सेट पर नहीं आऊंगा. मैं नहीं चाहता था कि उन्हें किसी प्रकार का कोई दबाव महसूस हो मेरे वहां मौजूद होने पर.  एक निर्देशक को आजादी देना और उन पर भरोसा करना बहुत जरूरी है. मैं खुद निर्देशक हूं तो इस बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं.

त्रआपकी आनेवाली फिल्में?
विद्या बालन के साथ आप जल्द ही मुझे अभिनय करते देखेंगे. इसके अलावा हमारे बैनर से और भी युथफुल फिल्में दर्शकों को देखने मिलेंगी. 

रणबीर हमेशा रहेंगे खास दोस्त : दीपिका पादुकोण


कॉकटेल में वेरोनिका का किरदार निभाने के बाद अब दीपिका पादुकोण को बॉलीवुड में अलग दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है. दीपिका खुद भी बबली किरदारों से बोर हो चुकी हैं और अब वे कई नये अवतार में दर्शकों के सामने आने के लिए तैयार हैं. ये जवानी है दीवानी में वह एक ऐसी लड़की के किरदार में हैं, जिनसे वह खुद को बहुत रिलेट करती हैं. वेरोनिका के बाद वे इस फिल्म के किरदार नैना को अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक मानती हैं.
दीपीका पहली बार करन जौहर की फिल्म में काम कर रही हैं. वे इस फिल्म में काफी फ्रेश नजर आ रही हैं. दीपिका का इस बारे में कहना है कि फिल्म की स्क्रिप्ट ही इतनी फ्रेश और युशफुल है कि उनका फ्रेश नजर आना लाजिमी था. बातचीत दीपिका पादुकोण से...

त्रदीपिका, वेरोनिका का किरदार निभाने के बाद यानी कॉकटेल फिल्म के बाद ये जवानी है दीवानी आपकी अगली फिल्म है? कितना अलग है वेरोनिका से नैना का किरदार?
बतौर एक्ट्रेस मेरी कोशिश हमेशा यही रही है कि मैं अलग अलग तरह के किरदारों को निभाती रहूं. आप मेरी शुरुआती दौर से अब तक की फिल्में देख लें. कोई भी एक दूसरे से मेल नहीं खाता. लेकिन लोगों ने मुझे वाकई अगर सराहा है तो वह कॉकटेल की वेरोनिका से. लेकिन उस फिल्म के पहले भी मैंने काफी अच्छे किरदार निभाये हैं. लेकिन दर्शकों को वेरोनिका सबसे खास इसलिए लगी क्योंकि वह इंटेंस किरदार था और मैं होमी की शुक्रगुजार हूं कि उसने इतना अच्छा किरदार निभाने का मुझे मौका दिया. जहां तक बात है फिल्म ये जवानी है दीवानी की नैना की तो नैना का किरदार मेरी अपनी जिंदगी से बहुत मेल खाता है. नैना जिस तरह अपनी लाइफ में सीरियस है. मैं भी हूं. नैना सेंसिबल है रिश्तों को लेकर मैं भी हूं. नैना अपने करियर को लेकर क्लीयर है उसे क्या करना है मैं भी फोकस्ड हूं. और मेरे इस किरदार के बारे में रणबीर भी यही कहते हैं कि नैना और मेरे में काफी कुछ एक सा है.

त्रये जवानी है दीवानी के निर्देशक अयान आपके अच्छे दोस्त रहे हैं, शायद वे आपको अच्छी तरह से जानते थे. इसलिए वे इस बात से वाकिफ थे कि आप इस किरदार को निभा सकती हैं?
हां, बिल्कुल ये वजह रही है. अयान मेरे और रणबीर दोनों के कॉमन फ्रेंड हैं और वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मेरा स्वभाव कैसा है. मेरा बॉडी लैंग्वेज कैसा है. तो निश्चित तौर पर अयान ने मुझे फाइनल करते हुए मेरी वह इमेज तो ध्यान में रखी ही होंगी.
त्र इस फिल्म में आप बहुत फ्रेश नजर आ रही हैं. आपके लुक पर भी खास काम हुआ है. डांस नंबर भी ज्यादा मिले हैं?
यह पूरी तरह से यूथफुल फिल्म है. और मुझे खुशी है कि इसमें बहुत डांस मस्ती है. चूंकि मुझे खुद डांस मस्ती करना बेहद पसंद है. मनीष मल्होत्रा ने मुझे अलग तरह के कपड़े दिये हैं. मैं खुद डांस नंबर्स करके खुश हूं. फिल्म के सारे गाने मुझे पसंद हैं और इसके सारे स्टेप्स भी मुझे बेहद अच्छे लग रहे हैं. वैसे मैंने खुद लुक पर बस इतना ही काम दिखा है कि थोड़ी सी जवां और मस्तीखोर दिखने की कोशिश की है फिल्म में.

त्र रणबीर आपके एक्स ब्वॉयफ्रेंड रहे हैं और अभी ब्रेकअप के बाद आप दोनों की साथ में पहली फिल्म है? कितनी सहज या असहज थीं आप?
बिल्कुल असहज नहीं था. हमारा ब्रेकअप हुआ है तो वह लव रिलेशन टूटा है. दोस्त का नहीं. मैं अब भी दावा करती हूं कि मैं रणबीर को बहुत अच्छे तरीके से जानती हूं. मैं पिछले 6 सालों में रणबीर को जितना समझ पाई हूं उतना और कोई नहीं समझ सकता क्योंकि मैं और रणबीर आज भी अच्छे दोस्त हैं. दुख होता है कि हम अपने कुछ रिश्ते खो देते हैं. लेकिन जरूरत यह है कि आपका रिलेशन खत्म न हो. रणबीर तो कहता है कि वह मेरे बच्चों के बच्चों को भी खेलायेगा. वह मुझे लेकर आज भी पोजेसिव है. एक दोस्त के ही नाते. उसे मेरी फिक्र रहती है. और मैं अब रणबीर के बारे में जवाब देकर थक चुकी हूं. इस फिल्म में हम साथ हैं तो सभी बातें कर रहे हैं. फिल्म रिलीज हो जायेगी तो फिर इतनी बातें नहीं होंगी.

 समीक्षक हमेशा कहते हैं कि दीपिका विद्या बालन या माधुरी या प्रियंका जैसे रोल नहीं कर रहीं? आप का क्या कहना है?
क्या वेरोनिका का किरदार इंटेंस और कठिन नहीं था. सीरियस फिल्मों का मतलब डार्क फिल्में तो करना नहीं. मैं जो काम कर रही हूं. उसमें खुश हूं. मैं हर दिन खुद को अपग्रेड कर रही हूं. दर्शक मुझे पसंद कर रहे हैं तो फिर मुझे डार्क या अलग करने की जरूरत क्या है. खुद में संतुष्ट हूं.

बॉलीवुड की चूंिनंदा स्टाइल आइकन में से हैं आप? आपका कोई खास स्टेटमेट है स्टाइल को लेकर?
मुझे ओवरमेकअप पसंद नहीं है. मैं ज्यादा मेकअप नहीं करती तो ज्यादा ब्लंडर नहीं होते. मैं वैसे कपड़े कभी नहीं पहनती जिसमें मेरी पर्सनैलिटी निखर कर न आये. मैं सेल्फ कांफिडेंट लड़की हूं तो ड्रेस अप करते वक्त इस बात का ख्याल रखती हूं कि यह बात मेरे लुक से भी दिखे. दूसरी बात है कि स्पोर्ट्स बैकग्राउंड होने की वजह से मैं फिटनेस को महत्व देती हूं और शायद इसी से अपने स्टाइल को एक खास टच दे पाती हूं.
त्र कम सालों में अच्छा मुकाम हासिल किया है आपने?लेकिन फिर भी लोग प्रूव करने की बात करते हैं? ऐसे में
कहीं कोई दबाव महसूस करती हैं?
उन्हें लगता है कि मैं कर सकती हूं. इसलिए लोग उम्मीद करते हैं. बॉलीवुड के आउट साइड से आकर मैंने पहचान बनाई है. यह आसान काम नहीं था. 

लता के साथ गाने का है सपना


श्रेया घोषाल वर्तमान में हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय गायिकाओं में से एक हैं. वे खुद एक रियलिटी शो के माध्यम से आयी थीं और यही कारण है कि अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद श्रेया रियलिटी शो का हाथ हमेशा थामी रहती हैं. वे इन दिनों सोनी टीवी पर जूनियर इंडियन आइडल में जज की भूमिका में नजर आ रहंी हैं. पेश है उनके गानों और इंडियन आयडल से जुड़ी बातचीत पर मुख्य अंश

त्रश्रेया, आप पहले हमेशा मीडिया से बातें करती रहती थीं. लेकिन जैसे जैसे आपकी लोकप्रियता बढ़ी है आप मीडिया से कटती जा रही हैं?
नहीं ऐसी बात नहीं है. हां, आज कल इंटरव्यूज कम हो पाते हैं. चूंकि वक्त नहीं मिलता. इन दिनों सुबह से शाम स्टूडियोज के ही चक्कर लगते रहते हैं और यही वजह है कि मुझे बाकी काम के लिए फुर्सत नहीं मिल पाती. मैं तो परिवार के साथ भी बहुत वक्त नहीं गुजार पाती. लेकिन शुक्र है बिजी हूं. वह जरूरी है. दूसरी बात यह है कि मैं हमेशा अपनी फिल्मों के बारे में दर्शकों को कितना बताऊं. मुझे लगता है कि सही समय पर बातें हो तो अच्छा है.

त्रइतने बिजी शेडयूल के बीच भी रियलिटी शो की जज की भूमिका. कैसे मैनेज करेंगी?
रियलिटी शो मेरे जीवन का खास हिस्सा है, क्योंकि इसी शो की वजह से मुझे पहचान मिली. मैंने अपनी शुुरुआत रियलिटी शो के माध्यम से ही की थी. इंडियन आयडल का प्लैटफॉर्म हमेशा एक बड़ा प्लैटफॉर्म रहा है. चूंकि इससे नये लोगों को मौके मिले हैं. जूनियर आयडल एक नया कांसेप्ट है तो मैं कैसे इसे न कह सकती थी.

त्रजूनियर आयडल में क्या खास होगा?
आपने अपना टैगलाइन तो देखा ही होगा कि गाने का वही अंदाज अब बच्चों की आवाज में. मैं आपसे यह बात शेयर करना चाहूंगी कि पूरे भारत में हमें इतने शानदार होनहार बच्चे मिले हैं, जिनकी आवाज सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे कि आखिर ये लोग कहां से आये हैं. मां सरस्वती साक्षात उनकी आवाज में हैं. ऐसे बच्चों को अगर कोई बड़ा प्लैटफॉर्म मिलता है तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है. हमने इस बार आयडल में एक ख्याल रखा है कि वैसे कोई भी गाने जिसमें डबल मीनिंग शब्द हैं, वैसे गानों को हमने प्रतिबंध कर रखा है. हम चाहते हैं कि इस प्लैटफॉर्म के माध्यम से एक नयी फनकार मिले इस इंडस्ट्री को.

त्रहर साल कई रियलिटी शोज होते हैं. ेलकिन कुछ दिनों की लोकप्रियता के बाद न तो वे चेहरे और न ही वे नाम याद रह जाते हैं. फिर ऐसे रियलिटी शोज का क्या फायदा?
यह सवाल लगभग हर साल किया जाता रहा है. लेकिन मैं यह नहीं मानती. आप यह देखें न कि जो बच्चे सेलेक्ट होते हैं. उन पर कितनी मेहनत की जाती है. उन्हें उन हफ्तों में कितने बेहतरीन गुरु मिलते हैं, नयी दुनिया मिलती है. खुद को परफॉर्म करने का अंदाज मिलता है. ऐसे कितने बच्चे हैं जिनके मां बाप उन्हें मौके नहीं िदला पाते, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं होते. ऐसे में अगर बच्चों को रियलिटी शोज का मंच मिलता है तो इसके बाद रास्ते आसान हो जाते हैं. ऐसा मैं मानती हूं.

त्रश्रेया आप बचपन में किस तरह की सिंगर थी. गाने आपको जल्दी याद हो जाते थे या नहीं?
मैं बहुत भूल कर टाइप की लड़की हूं. मैं पढ़ाई में बहुत ज्यादा चीजों को याद नहीं रख पाती थी. लेकिन न जाने गाने के बोल कैसे याद रह जाते थे. मैं गानों को जल्दी याद कर लेती थी. और शायद इसलिए मैं आज सिंगर हूं. आज भी मैं अपना रियाज जारी रखती हूं. चूंकि मुझे लगता है कि जो मैंने सीखा है वह भूल न जाऊं. मेमोरी शार्प नहीं है. इसलिए. सो मैं अपना रियाज जारी रखती हूं.

त्रइन दिनों लगभग हर फिल्मों में आपके गाने उपस्थित होते ही हैं. तो लगता है कि हां, अब नाम स्थापित कर लिया. सपना पूरा कर लिया?
हां, खुशी होती है कि जितनी मेहनत करती हूं. लोगों तक वह सब पहुंच पा रहा है. लेकिन कभी कभी दुख भी होता है. इन दिनों कुछ म्यूजिक निर्देशक हैं, जो आपके गानों के साथ सही तरीके से न्याय नहीं कर पाते. तब लगता है कि जो मेहनत की थी वह बर्बाद हो गयी. लेकिन इसके बावजूद मुझे खुशी है कि अब गाने मुझे ध्यान में रख कर लिखे जाने लगे हैं.जहां तक सपने की बात है तो मेरा सपना तभी पूरा होगा, जब कभी लताजी के साथ गाने का मौका मिलेगा. वह मेरी आदर्श हैं और हमेशा रहेंगी. जब वह तारीफ करती हैं तो लगता है कि मुझे सबकुछ मिल गया.

त्रकरियर के इस मुकाम पर आकर अब क्या आप गानों को न भी कह पाती हैं. या यूं कहें तो क्या कुछ तय कर रखा है कि ऐसे गाने नहीं गाने हैं?
 हां, बिल्कुल मुझे लगता है कि अब जो मेरी छवि बन चुकी है. मुझे बुजुर्ग भी  पसंद करते हैं. कोई गाना गाओ और बाद में लोगों को पता चलता है कि श्रेया ने गाया है और जब वह कहते हैं कि छी श्रेया ने कैसा गाया है तो लगता है मेहनत पानी में मिल गयी. सो, मैं अब गानों को लेकर चूजी हो गयी हूं. 

लूटेरा अब तक की सबसे कठिन फिल्म


रणवीर सिंह लूटेरा से अपनी बनी बनाई इमेज को तोड़ रहे हैं. वे इस फिल्म में थोड़े गंभीर प्रेमी का किरदार निभा रहे हैं. रणवीर इसे अपनी अब तक की सबसे खास और कठिन फिल्म मानते हैं. चूंकि फिल्म में उनके संवाद कम थे और केवर चेहरे के एक्सप्रेशन दर्शा कर उन्हें खुद को साबित करना था. फिर भी रणवीर के लिए फिल्म लूटेरा का पूरा सफर खास रहा. रणवीर सिंह की अब तक की फिल्में और लूटेरा में उनके बदले अंदाज पर बातचीत के मुख्य अंश
रणवीर यह मानने लगे हैं कि फिल्मों में सबसे कठिन जॉनर रोमांटिक जोनर ही होता है. बातचीत रणवीर सिंह से
त्ररणवीर, अब तक विक्रमादित्य मोटवाने की केवल एक फिल्म ही आयी है उड़ान और वह मेनस्ट्रीम सिनेमा से बिल्कुल अलग हट कर फिल्म थी. और आप अब तक मेनस्ट्रीम फिल्में करते आ रहे हैं तो जब आपको उन्होंने

लूटेरा आॅफर की तो आपका क्या रियेक् शन था?
 मैंने विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म उड़ान देखी थी और वह क्या कमाल की फिल्म थी. उस फिल्म को देख कर ही मैंने तय कर लिया था कि मुझे हर हाल में इनके साथ काम करना ही है. हम दोनों की पहली मुलाकात एक अवार्ड फंक् शन के दौरान हुई. वहां मिला तो मैंने उन्हें साफ साफ कहा कि आप कभी भी फिल्म लिखें और आपको ऐसा महसूस हो. मुझे फिल्म में कास्ट करना चाहिए तो मुझे जरूर बताईयेगा. विक्रम ने जब मुझे फिल्म की कहानी सुनायी. तो मैं तो न कह ही नहीं पाया, आप सोचिये. आप अकेले बाद में बैठ कर स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं और आपकीआंखों से लगातार आंसू गिर रहे हैं. तो उस वक्त आपको क्या महसूस होगा कि आप फिल्म के हिस्सा बन चुके हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. मैंने फिल्म के लिए हां तो कह दी.

त्रहमने सुना आप फिल्म साइन करने के बाद नर्वस होकर फिल्म छोड़नेवाले थे.
जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना. अभी फिल्म की शूटिंग शुरू हुए तीन चार दिन ही बीते थे. मैं अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रहा था. उस वक्त मुझे लगा कि मुझे यह फिल्म छोड़ देनी चाहिए. मैंने विक्रम से कहा कि गलत व्यक्ति को चुन लिया तुमने. लेकिन विक्रम ने भरोसा दिलाया और उन्होंने क्या बदला मुझे. आप फिल्म देखेंगे तो  खुद महसूस करेंगी कि किरदार कितना इंटेंस हैं.दरअसल, मैं खुद भी मसाला फिल्मों का दर्शक रहा हूं. मेरे लिए फिल्मों का मतलब मसाला फिल्में हुआ करती थी और मैं वैसी ही फिल्मों का चुनाव करता था तो वह मेरे लिए मुश्किल काम नहीं था. लेकिन लूटेरा मेरे स्वभाव से बिल्कुल विपरीत फिल्म है. इसमें मैं जितना गंभीर, शर्मीला सा रहनेवाला लड़का, केवल पॉकेट में हाथ डाले पूरी फिल्म निकल जाती है. फिल्म में संवाद है ही नहीं मेरे. ऐसे में अभिनय करना बहुत कठिन था. लेकिन विक्रम ने मुझे जो ढाला है फिल्म में. मैं खुद चकित हूं कि मैं यह कर पाया.

त्रविक्रमादित्य मोटवाने के साथ आपका अनुभव कैसा रहा ? 
मैं खुशनसीब हूं कि मुझे विक्रमादित्य के साथ काम करने का मौका मिला है. विक्रम हिंदी सिनेमा के उन निर्देशकों में से एक है. जो जीनियस है. सिनेमा की समझ उनमें जितनी है. शायद ही किसी में होगी. उस बंदे को सिनेमा के ग्रामर की जो समझ है. शायद ही किसी और के पास होगी. उनके किरदारों को कहने का ढंग, प्रॉप्स का चुनाव और लगन. सब अलग है. हम जब इस फिल्म की शूटिंग डलहौंजी में कर रहे थे. वहां जब हमें बर्फ चाहिए था. बर्फ मिल नहीं रहा था और जब नहीं चाहिए था तो इतनी बर्फबारी हो रही थी कि हम शूटिंग नहीं कर पा रहे थे. हम कई बार शूटिंग करने गये. लौट लौट कर आये. कोई और निर्देशक होते तो फिल्म कहीं और शूट कर लेते, लेकिन विक्रम ने तय कर लिया था वही शूट करेंगे. मैं उन्हें हैट्स आॅफ करता हूं कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद फिल्म का निर्माण किया.

रणवीर, इस फिल्म के दौरान भी आप चोटिल हुए और रामलीला की शूटिंग के दौरान भी आप घायल हो गये थे?
हां, लूटेरा फिल्म की शूटिंग के दौरान मेरी कमर में चोट थी और मैं चल नहीं पा रहा था. उठ कर भी खड़ा नहीं हो पा रहा था. उस वक्त भी मैंने विक्रम से कहा था कि वह किसी और कास्ट कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ. रामलीला के दौरान भी मुझे शूटिंग के वक्त चोट लगी. पहले तो मैं नानी की बात नहीं मानता था. लेकिन अब काला धागा बांधने लगा हूं. नानी कहती हैं कि इससे नजर हटती है. अब इतनी चोट लगती है तो लगता है यह सब मानना ही होगा.
सोनाक्षी के साथ यह आपकी पहली फिल्म है कैसा रहा अनुभव?
सोनाक्षी बेहतरीन अभिनेत्री हैं और इन दिनों वे डिमांड में हैं. इसकी वजह यही है कि वह मेहनती हैं और खासतौर से  इंडियन लूक के किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता. उनकी आंखें एक्सप्रेसिव है और यही वजह है कि इस रोमांटिक फिल्म में वह जंचती हैं. उनकी आवाज भी काफी मीठी है तो वह भी किरदार में जमती हैं. मुझे लगता है कि दर्शकों को हमारी जोड़ी पसंद आयेगी.

त्दो फिल्मों के बाद आप लगभग गायब रहे तो 19 महीनों के अंतराल के बाद आप फिर से दर्शकों के सामने होंगे तो कोई नर्वसनेस है कि लोग भूल गये होंगे?
हां, यह सही है कि मैं देर से आ रहा हूं. लेकिन इस साल लगभग मेरी चार फिल्में बैक टू बैक रिलीज हो रही है. तो मुझे विश्वास है कि इस बार मेरे कई अवतार उन्हें देखने को मिलेंगे. ये फिल्में सही तरीके से चलीं तो दर्शकों का प्यार मिलता ही रहेगा. 

जिंदगी संघर्ष के बिना अधूरी - नील नीतिन मुकेश


पिछले कुछ सालों से नील की फिल्में बॉक्स आॅफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पा रही हैं, उन्हें एक अदद हिट फिल्म की तलाश है लेकिन वह इस संघर्ष को भी इंज्वॉय कर रहे हैं उन्हें लगता है कि संघर्ष बिना जिंदगी अधूरी है.  नील जल्द ही फिल्म शॉटकर्ट रोमियो में नजर आएंगे. एक बार फिर वह ग्रे किरदार में दिखेंगे. उनके इस किरदार और अब तक के कैरियर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

 अब तक की आपकी फिल्मों से यह शॉर्टकट रोमियो कितनी अलग होगी. 
 एक शब्द में कहूं तो यह मेरे कैरियर की सबसे ज्यादा कमीना किरदार है. मैं प्लेयर्स में कमीना था जॉनी गद्दार में कमीना था लेकिन शॉटकर्ट में थोड़ा ज्यादा हूं यह आज के युवाओ को प्रस्तुत करता है.जो जिंदगी में बड़ा करना चाहते हैं लेकिन मेहनत के नहीं ऐसा ही इस फिल्म में मेरा किरदार है लेकिन उसका शॉर्टकट उसे कितना महंगा पडता है इसी की कहानी यह फिल्म बयां करता है.

क्या सफलता के लिए आप शॉटकर्ट को सही मानते हैं. 
मैं नहीं मानता अगर विश्वास करता तो कहीं और होता था. लाइफ में शॉर्टकट के जरिए सफलता पाने को भी मैं मुनासिब नहीं मानता हूं. सच कहूं तो शॉर्टकट के रास्ते से आप कहीं नहीं पहुंचते हैं. लाइफ में एक समय ऐसा जरूर आता है, जब आपको अपनी गलती का एहसास होता है और आप सही रास्ते से अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करते हैं. जीवन में उंचाईया पाने और बडा नाम कमाने के साथ उतना ही विनम्र होना भी जरूरी है. मेरी पापा की यही सीख है जिसे मैं बचपन से मानता हूं.

 रियल लाइफ में आप कितने रोमियो है और अब तक कितनी बार प्यार हुआ है. 
मैं बहुत रोमांटिक हूं लेकिन दुख की बात है जो भी मुझे मिलेगी.वह मुझे छोड़ गयी. इस वक्त में अकेले खुद को कंपनी देता हूं अपने गैजेट और कंप्यूटर के जरिए.  मैं तीन बार सीरियस रिलेशनशिप में रहा हूं लेकिन दो बार लड़कियां मेरे प्रोफेशन से खुश नहीं थी तीसरी बार मुझे समझ आ गया कि यह लड़की मेरी तरह नहीं है.

यह तमिल फिल्म का रिमेक है क्या आपको लगता है कि हमारी इंडस्ट्री में कहानियों की कमी हो गयी है 
जो निर्देशक सुशी गणेश ने मुझे यह फिल्म दिखायी मुझे कहानी अच्छी लगी और मैंने कहा कि हम इसे परदे पर अलग तरह से पेश करेंगे. थोड़ा और  इंटरटेनिंग बनाते हैं. आज दावे के साथ कह सकता हूं कि आप दोनों फिल्मों में जमीन आसमान का अंतर पाएंगे. सच कहूं तो गिन चुनकर पूरे विश्व में कुछ ही कहानियां होता ही उसे अलग तरह से प्रस्तुत करने ही किसी फिल्मकार की यूएसपी है.

 कुलमिलाकर शॉटकर्ट रोमियो में भी आप ग्रे किरदार में इस बार  है ग्रे किरदार आपको क्यूं ज्यादा लुभाता है.
वो इसलिए कि मैं उन किरदार जैसा हूं ही नहीं, सच तो ये है कि परदे पर में जैसा दिखता हूं , असल जिंदगी में उसके एकदम उलट हूं.आप अगर मुझे किसी खिलोनों की दुकान में अपने भानजे के साथ देखें तो आप पायेंगे कि मैं उससे ज्यादा छोटा बच्चा हूं। यही वजह है कि मुझे अपने से विपरीत किरदार चुनौतीपूर्ण लगते हैं.


आपकी फिल्म जॉनी गद्दार और न्यूयॉर्क बहुत पसंद की गयी थी ऐसे में क्या वजह रही जो आप उस सफलता को बरकरार नहीं रह पाए 
(मुस्कुराते हुए ) काश कि मैं सफलता के गणति को जान पाता. काश कि मुझे पता होता कि कामयाबी का फॉर्मूला क्या है? प्लेयर्स इतने बड़े बजट की फिल्म थी मगर चली नहीं, जबकि, न्यूयार्क खूब चल गयी. वैसे मेरी  लफंगे परिंदे और  आ देखें ज़रा ने बॉक्स आॅफिस पर अपने पूरे पैसे वसूले तभी तो उन निर्माताओं ने मुझे रिपीट किया.मुझे लगा था कि  सात खून माफ बॉक्स आॅफिस पर क्लासिक साबित होगी  पर वो नहीं चली, तो मुझे नहीं पता कि दर्शक को क्या पसंद आता है. मैं  खुद को फाइटर समझता हूं. मुझे लगता है कि बस मुझे एक पंच की ज़रूरत है.मैं अपने बुरे दौर में बच्चन साहब का उदाहरण लेता हूं कि उन्होंने कितना लम्बा असफलता का दौर देख्

आपके साथ रनबीर और इमरान खान ने भी अपनी शुरुआत की थी  रोमांटिक  वे ज्यादातर रोमांटिक रोल में नजर आते हैं आपने ज्यादातर ग्रे किरदार किए हैं क्या आपको लगता है कि यह बात आपके कैरियर के खिलाफ गय ीहै. 
मैं अपनी तुलना उनसे नहीं करना चाहता. दरअसल वे बडे स्टार हैं और मैं महज एक एक्टर हूं. मैंने सात राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशकों के साथ काम किया है, इसे ही मैं अपने लिए उपलब्धि मानता हूं. रणबीर, इमरान और मेरे बीच किसी प्रकार का कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. रनबीर मेरे भाई की तरह हैं.

 आपके शब्दों में इंडस्ट्री में अब तक की आपकी जर्नी कैसी रही है. 
 मेरी इंडस्ट्री में अब तक की जर्नी बहुत रोचक रही है. मैंने बहुत से उतार चढाव देखे हैं लेकिन इन सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला है. अपने कैरियर में मैं सात बार नेशनल एवार्ड विनर निर्देशकों के साथ काम कर चुका हूं. इससे ज्यादा खुशनसीबी मेरी और क्या होगी. यहां मैं प्लेयर्स का उदाहरण देना चाहूंगा. यह फिल्म  बॉक्स आॅफिस पर भले ही न चली हो लेकिन अब्बास मस्तान भाई ने मैंने बहुत कुछ सीखा है. मुझे लगता है कि हम सभी एक्टर पेंसिल की तरह होते हैं. निर्देशक पेंसिल लेता है और अपने मुताबिक स्केच बनाने लगता है लेकिन अब्बास मस्तान भाई पेंसिल को लेते हैं फिर उसे छिलते हैं फिर स्केच बनाते हैं. वैसे प्लेयर्स के न चलने की जो वजह मुझे नजर आती है वह यह कि उस फिल्म का बजट थोड़ा ज्यादा है. आज के दौर में १० करोड़ से ज्यादा फिल्म का बजट नहीं होना चाहिए. इसके अलावा इटालिएन जॉब का रिमेक बोलकर उस फिल्म का प्रचार करना भी उसके खिलाफ गया.

 आपकी  आनेवाली फिल्में कौन कौन सी हैं. 
मेरी आनेवाली फिल्म इश्केरिया और दशहरा है.


अपनी सी लगती है रान्झाना : धनुष

लोग उन्हें कोलावरी डी वाला कह कर बुलाते हैं. लेकिन दक्षिण में उनकी पहचान सिर्फ कोलावरीडीवाला के रूप में नहीं. वे साउथ के जाने माने स्टार हैं. हां, हिंदी सिनेमा में यह उनकी पहली शुरुआत है. फिल्म रांझणा में वे बनारस की गलियों के छोरे के किरदार में जिस तरह नजर आ रहे हैं, उससे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि वे आनेवाले समय में बॉलीवुड के खास सितारों में शामिल हो जायेंगे. बात हो रही है धनुष की.

फिल्म रांझणा के निर्देशक आनंद एल राय ने धनुष की लगभग सभी फिल्में देखी हैं और वे इस बात को लेकर पूरी तरह स्पष्ट थे कि उनकी फिल्म में कुंदन का किरदार धनुष से बेहतर और कोई निभा ही नहीं सकता. बातचीत धनुष से...

 हिंदी फिल्म रांझणा जब आॅफर हुई तो आपका क्या रिएक्शन था 
 सन २००८ से मुझे हिंदी फिल्मों के आॅफर आ रहे थे लेकिन मैं अपनी एक के बाद एक तमिल फिल्मों में मशरुफ था कि मैंने किसी भी हिंदी फिल्म को हां नहीं कहा जब रांझणा आॅफर हुई तो पहले मैंने इसे भी मना कर दिया था लेकिन आनंद सर ने मुझसे कहा कि मुझे सिर्फ तुमसे १५ मिनट मिलना है. उस वक्त मैं कोलकाता में था अपने गाने कोलावरी डी को प्रमोट कर रहा था. वे मुझसे मिलने वहां आए और जब उन्होंने अपनी फिल्म की कहानी मुझे सुनायी मैंने तुरंत उसे हां कह दिया क्योंकि मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आयी कि भाषा के अंतर को भूल जाओ अगर तुम यह फिल्म नहीं कर सकते तो तुम एक्टर नहीं हो.

क्या वजह रही जो आप रांझणा को न नहीं कह पाए थे. 
 मैं पूरी तरह से इस किरदार और कहानी से जुड़ गया था. जब आनंद सर मुझे फिल्म की कहानी सुना रहे थे उसके २० सीन में से १४ सीन मेरे साथ निजी जिंदगी में हो चुके थे. मैं कुंदन के किरदार और उसकी दीवानगी से बहुत जुड़ाव महसूस करता हूं इसलिए मैं रांझणा को न नहीं कह पाया.

आप कब और किसके लिए निजी जिंदगी में रांझणा बने थे. 
जब मैं १६ साल का था, वह लड़की दूसरी स्कूल में पढ़ती थी और मैं दूसरी स्कूल. जो जो मैंने सोनम के प्यार को पाने के लिए इस फिल्म में किया है वो सब सब उसके लिए भी किया था. उसने मुझे हां भी कहा था लेकिन दो साल बाद उसने मुझे छोड़ दिया. शुरुआत में मुझे लगा कि यह मेरा हाइस्कूल क्रश है. मैं भूल जाऊंगा लेकिन मैं नहीं भूला. वाकई वह मेरा पहला प्यार था. जो हमेशा रहेगा.

 आपकी जिंदगी में प्यार की क्या परिभाषा है.
सभी के लिए प्यार की परिभाषा अलग अलग होती  है लेकिन मेरे लिए प्यार उसका नाम है जो आपकी प्राथमिकता को बदल दे. मुझे याद है जब मैं प्यार में पड़ा था उससे पहले तक मैं अपनी मां को दिन में चार से पांच बार फोन करता था (हंसते हुए)लेकिन जब प्यार में पड़ा था तो अपना ही ख्याल नहीं रहा था तो मां को क्या फोन करता .

ऐश्वर्या से पहली बार कब और कैसे मिले थे. 
मेरी सेंकेड फिल्म कधाल कोंदेन रिलीज हुई थी. पूरे परिवार के साथ मैं गया था थिएटर में दर्शकों का रिएक्शन देखने के लिए .  वहां पर थिएटर के मालिक ने मुझे ऐश्वर्या से मिलवाया यह कहते हुए कि यह रजनी सर की बेटी हैं. उसके बाद उन्होंने मुझे फूलों का गुलदस्ता भेजा जिसमे लिखा था आपने अच्छा काम किया है किप इन टच (हंसते हुए) मैंने उनकी बात को सीरियस ले लिया फिर हमेशा उनके टच में ही रहने लगा

क्या आपकी पत्नी ऐश्वर्या की तरफ से यह लव एट फर्स्ट साइट वाला मामला है.
मुझे देखकर भी आपको यह लगता है कि कोई मुझसे पहली नजर में प्यार करने लग सकता था शायद मेरा टैलेंट था जो ऐश्वर्या के दिल में जगह मिल गयी.

लाइफ पार्टनर के तौर पर आप दोनों एक दूसरे को कितना कंपलीट करते हैं. 
हम दोनों बहुत युवा थे तब ही शादी कर ली थी इसलिए  हम अब भी एक दूसरे को समझ रहे हैं. मैं अपने काम में ज्यादा मशरुफ रहता हूं इसलिए टाइम नहीं दे पाता हूं. मैं अच्छा हसबैंड नहीं हूं लेकिन बेहतर पिता जरूर बनना चाहता हूं.मेरे दो बेटे हैं.  ६ साल का यात्रा ३ लिंगा, लिंगा का मतलब शिवा होता है. मैं शिवभक्त हूं.


इस फिल्म को लेकर आपके ससुर जी रजनीकांत और आपकी पत्नी ऐश्वर्या की क्या प्रतिक्रिया रही है. 
रजनी सर ने अब तक इस फिल्म का प्रोमो नहीं देखा है और न ही इस फिल्म को लेकर हमारी कोई बात हुई है.हम फिल्मों पर बहुत कम ही बात करते हैं. अपने सारे निर्णय मैं खुद ही लेता हूं.  हां ऐश्वर्या बहुत खुश है. खासकर मुझे हिंदी बोलता देखकर.साउथ में भी सब बहुत खुश है. उत्सव जैसा माहौल है. उम्मीद करता हूं कि फिल्म की रिलीज के बाद भी यह माहौल रहे.

आपकी हिंदी भाषा पर पकड़ कितनी अच्छी हो गयी है. क्या आप हिंदी में अब सहज हो गए हैं. 
 एक और हिंदी फिल्म का मौका दीजिए उसके बाद मैं जब भी आपसे मिलूंगा अंग्रेजी में नहीं हिंदी में ही सारे जवाब दूंगा.
 उत्तर भारतीय कुंदन के किरदार को निभाने के लिए क्या आपको कुछ होमवर्क भी करना पड़ा 
 रांझणा के लिए मैंने कुछ नहीं किया है. सिर्फ मैंने अपनी दाढी मुडवायी है फिर जब फिल्म की कहानी आगे बढ़ी तो बढ़ायी है इससे ज्यादा कुछ नहीं किया क्योंकि मैंने निजी जिंदगी में उन पलों को जिया था.  जब मैंने पहली बार प्यार किया था. मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे फिर से वो सब जीने का मौका दिया. हां मैं हिमांशु शर्मा का जरूर शुक्रगुजार हूं. मेरी हिंदी को बेहतरीन तरीके से डबिंग करवाने में उन्होंने मेरी बहुत मदद की. वरना आप अगर डबिंग थिएटर में होती तो मेरी हिंदी सुनकर भाग गयी होती थी. 

 हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अब तक कई साउथ के स्टार किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन अब तक कोई खास कमाल नहीं कर पाए हैं क्या आपको लगता है कि आप खुद को साबित कर पाएंगे.
मेरे दिमाग में यह सब कुछ भी नहीं है. मैं इस तरह से नहीं सोच रहा हूं. मैं सिर्फ  आनंद सर के बारे में सोच रहा हूं. आदूकलाम मेरी इस फिल्म को यूट्यूब पर देखकर उन्होंने तय कर लिया कि रांझणा का कुंदन मैं ही होऊंगा. मैं उनके उस विश्वास पर खरा उतरना चाहता हूं. जब फिल्म रिलीज हो तो उन्हें अपने फैसले पर पछतावा न हो बस यही चाहता हूं.


सुनने में आ रहा है कि रांझणा की वजह से आपकी तमिल फिल्म मरियान का भविष्य अधर में लटक गया है क्या अब आपकी प्राथमिकता सिर्फ हिंदी फिल्में रह गयी हैं. 
यह खबर गलत है मरियान पूरी हो गयी है,रांझणा २१ को रिलीज हो रही है.  उसका अब तमिल वर्जन भी आ रहा है इसलिए इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि दोनों एक दूसरे के बिजनेस को नुकसान न पहुंचाए. जहां तक प्राथमिकता की बात है हिंदी या तमिल फिल्में नहीं बल्कि मैं अच्छी फिल्मों का हिस्सा बनना चाहता हूं और मुझे लगता है कि अब तमिल और हिंदी सिनेमा जैसे बात नहीं रही है. यहां के लोग वहां काम कर रहे है यहां के वहां. अब सब भारतीय सिनेमा होता जा रहा है.

अगर तमिल की एक अच्छी फिल्म और हिंदी की भी एक अच्छी फिल्म आॅफर हो तो आप किसे चुनेंगे. 
(हंसते हुए) तब मैं उस फिल्म को चुनूंगा जो मुझे सबसे ज्यादा मेहनताना देगी.


क्या वाकई अब हिंदी फिल्मों और तमिल  में कोई अंतर नहीं रह गया है. 
एक दो है जैसे बॉलीवुड फिल्मों का बजट बहुत होता है साउथ फिल्मों का इतना बजट नहीं होता है और एक चीज जो अलग महसूस होती है. वह है सिनेमाटोग्राफर में  वहां पर वी के चंद्रन, रवि बर्मन, संतोष शिवन जैसे सिनेमाटोग्राफर है.

कोएक्टर के तौर पर सोनम कपूर का साथ कितना खास रहा 
सोनम बहुत ही प्यारी एक्ट्रेस है और उनके धैर्य की तारीफ करनी होगी. मेरी खराब हिंदी को उन्होंने बहुत झेला है खासकर कभी भी उन्होंने मेरी हंसी नहीं उड़ायी बल्कि मुझे सपोर्ट ही किया.

आप साउथ के सुपस्टार है लेकिन उत्तर भारत में आपकी पहचान आपके गीत कोलावरी डी ने बनायी है क्या आपको लगता है कि वह पहचान इस फिल्म के लिए भी कारगर साबित होगा. 
कोलावरी डी गाना आया, देश-दुनिया में धूम मचाकर चला गया. उसका मकसद पूरा हो गया. रांझणा को सफलता उस गाने की लोकप्रियता से नहीं बल्कि पूरी टीम की मेहनत से मिलेगी


क्या आप हिंदी फिल्मों के दर्शक हैं और आपकी ख्वाहिश किन निर्देशकों के साथ काम करने की है. 
ज्यादा नहीं थोड़ी बहुत मैंने हिंदी फिल्म देखी है. आखिरी हिंदी फिल्म मैंने बर्फी देखी है. जो मुझे बहुत पसंद आयी थी. मेरी ख्वाहिश आनंद एल राय के साथ ही काम करने की ही है क्योंकि मैं उनके साथ बहुत सहज हूं.

 रनबीर कपूर के साथ आपकी दोस्ती की खबरें आए दिन खबरों में आ रही हैं. 
मैंने भी ऐसी खबरें पढी हैं लेकिन दोस्ती जैसा हमदोनों के बीच कुछ नहीं है. हां हमने एक दो बार फोन पर जरूर बात की है.  इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हूं.

 बनारस में शूटिंग का अनुभव कितना खास रहा है. 
 आनंद सर फिल्म की शूटिंग से पहले मुझे बनारस दिखाने ले गए थे काशी विश्वनाथ का मंदिर, घाट सब घूमा. उत्तर भारत हो या दक्षिण जगह के मामले में एक से ही लगते हैं हां संस्कृति जरूर अलग है.  बनारस में कुछ ऐसा है जो मैं नहीं बता सकता हूं ७० दिनों की शूटिंग के दौरान मैंने कोई सपना नहीं देखा. इतना पवित्र जगह थी कि मैं आराम से सो जाता और सुबह उठ भी जाता था. मैं शाकाहारी हूं इसलिए बनारस और मुझे रास आया. वहां की पूडी और आलू की सब्जी जमकर खाता था. चाट समोसा भी बहुत टेस्टी था और सबसे महत्वपूर्ण बात  मैंने बनारस की गलियों में होली खेली थी मुझे नहीं लगता  कि फिर ऐसा कभी कुछ मैं कर सकता हू. ं

बॉलीवुड बहुत ग्लैमरस इंडस्ट्री है और आप बहुत ही सिंपल और जमीन से जुड़े ऐसे में तालमेल बिठाने में क्या कोई परेशानी हुई
 मैं ज्यादा लोगों से नहीं मिला हूं लेकिन मैं जिस किसी से भी मिला वह मुझे सिंपल लगे. मैं अपना काम करने में विश्वास करता हूं और कुछ नहीं देखता न सोचता हूं.

 खबरे आ रही हैं कि आपने आनंद एल राय की अगली फिल्म भी साइन कर ली है. 
हां इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान वह एक फिल्म का आइडिया लेकर आए थे मैंने कहा कि हम करेंगे बाद में फिल्म की शूटिंग के दौरान हम इतने सहज हो गए कि मैंने इस फिल्म को भी हां कह दिया वैसे यह फिल्म तनु वेड्स मनु का सीक्वल नहीं है. इस फिल्म का मैं सह निर्माता भी हूं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता 

लेखक दिखा रहे कमाल



फिल्म शांघाई जैसे पॉलिटिकल थ्रीलर को देख कर शायद सबसे पहले हमारे जेहन में यह बात आती हो कि इस फिल्म की पटकथा शायद किसी राजनीति के विशेषज्ञ ने लिखी होगी. लेकिन फिल्म के निर्देशक दिबाकर बनर्जी इस फिल्म के लेखन का श्रेय देते हैं उर्मि ज्वूयेकर को. चूंकि उन्होंने इस फिल्म में टिष्ट्वस्ट और टर्न देने में दिबाकर की मदद की. विकी डोनर हाल के सालों में आयी ऐसी फिल्म है, जिसे न केवल बॉक्स आॅफिस पर सफलता मिली, बल्कि इस फिल्म को अंतरराष्टÑीय स्तर के निर्देशकों ने भी सराहा. विकी डोनर की कहानी को कभी कई निर्माताओं ने यह कह कर फिल्म निर्माण से मना कर दिया था कि यह कहानी तो किसी ऐड फिल्म की लगती है. लेकिन लेखिका जूही चतुर्वेदी को अपनी कहानी पर पूरा विश्वास था. सो, उन्होंने हौसला न छोड़ा और लगी रहीं. आखिरकार उन्हें सुजीत सरकार का साथ मिला. पिछले कई सालों से भट्ट कैंप की फिल्में लगातार सफल हो रही हैं. भट्ट कैंप में इन दिनों रोमांटिक जोनर के साथ साथ सस्पेंस थ्रीलर और हॉरर जॉनर की फिल्में भी बन रही हैं. खासतौर से भट्ट कैंप के संवादों की काफी चर्चा हो रही है. यह कमाल कैंप में शामिल एक ऐसी लेखिका का है जो कभी बार सिंगर थीं. शगुफ्ता रफीक़ . निर्देशक मोहित सुरी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें लगातार लिखने के लिए प्रेरित किया. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा की नयी फेहरिस्त में ऐसी कई महिला लेखिकाओं का नाम शामिल है, जिनकी वजह से फिल्म की नींव रखी जा रही है. उनके लेखन के कायल इन दिनों हिंदी सिनेमा के कई निर्देशक हैं. तभी उन्हें लगातार फिल्में लिखने का मौका मिल रहा है. एक खास बात जो गौर करने की है वह यह है कि महिला लेखिकाओं की कलम से आम लव स्टोरी या आम फिल्मी कहानी नहीं लिखी जा रही, बल्कि वे इनोवेटिव विषयों पर लिख रही हैं. हाल ही में फिल्म गिप्पी प्रदर्शित हुई है. इस फिल्म की लेखिका सोनम नायर हैं. वे फिल्म की निर्देशिका भी हैं. लेकिन गिप्पी के माध्यम से उन्होंने भारत की ऐसी आधी आबादी के बारे में दर्शाने की कोशिश की है, जो खूबसूरत नहीं है. लेकिन फिर भी वह अपनी जिंदगी में खुश रहने की कैसे कोशिश करता है. सोनम नायर ने अपनी जिंदगी की कहानी इस फिल्म के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की तो रीमा कागती ने फिल्म तलाश के माध्यम से एक बेहतरीन सस्पेंस थ्रीलर प्रस्तुत किया. जोया अख्तर भी फिलवक्त हिंदी सिनेमा की बेहतरीन महिला फिल्म लेखिका हैं. सकारात्मक बात यह है कि हिंदी सिनेमा के निर्देशक, जहां आज भी पुरुषों का बोलबाला है. वे भी मानते हैं कि महिला लेखिकाओं की सोच आम फिल्मों से अलग होती है. वे विशेष कर संवाद बेहतरीन तरीके से लिख पाती हैं. शायद इसकी वजह यह है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक अनुभवी होती हैं. वे आमतौर पर भी पुरुषों से अधिक और अलग नजरिये से जिंदगी के अनुभवों को हासिल करती हैं. किसी दौर में सलाम बांबे ने हिंदी सिनेमा में धूम मचाई थी. इस फिल्म का निर्देशन मीरा नायर ने किया था और उनका लेखन में साथ दिया था सूनी तारपोरवाला ने. सोनी बताती हैं कि उस वक्त जब वह लेखन की शुरुआत कर रही थीं तब वे बिल्कुल नयी थी इस दुनिया के लिए और सलाम बांबे ऐसी कहानी थी, जिसमें संवेदना को बनाये रखना बेहद जरूरी था. सूनी तारपोरवाला ने इस फिल्म की पटकथा यूं ही तैयार नहीं की थी. बल्कि मुंबई के स्ट्रीट के बच्चों के साथ काफी वक्त बिताया था और उसके बाद कहीं जाकर अपने रीयल एक्सपीरियंस पर उन्होंने फिल्म की पटकथा लिखी थी. उस वक्त हिंदी सिनेमा में पटकथा लेखन में महिलाओं की संख्या न के बराबर थीं. लेकिन उन्हें खुशी होती है कि अब कई महिलाएं लेखन के क्षेत्र में न सिर्फ आ रही हैं, बल्कि उन्होंने अपनी पहचान भी हासिल की है. सूनी को बहुत अच्छा लगता है जब किसी फिल्म के क्रेडिट को देखने के बाद लोग कहते हैं कि वाव, इस फिल्म की कहानी किसी महिला ने लिखी है. आॅशम. तब सूनी को लगता है कि वाकई महिलाओं को कितनी उपेक्षित नजर से देखा जाता है.
 शांघाई की शान उर्मि
उर्मि और दिबाकर की पहचान उस वक्त से है, जब दिबाकर खोंसला का घोंसला लिख रहे थे. उर्मि उस वक्त भी दिबाकर के साथ थीं. लेकिन उस वक्त वे किसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण कर रही थीं. बाद में दिबाकर और उर्मि ने मिल कर ओये लकी लकी ओये लिखी थी. और उसी वक्त दोनों के जेहन में शांघाई जैसी फिल्म की कल्पना आयी थी. उर्मि से दिबाकर ने कहा कि वह जी जैसी एक पॉलिटिकल फिल्म बनाना चाहते हैं. उर्मि को भी जी काफी पसंद थीं. उन्होंने दिबाकर से कहा कि जी जैसी फिल्म उन्हें लिखनी है. दिबाकर ने उन्हें कहा . ठीक है तुम लिखो. दिबाकर और उर्मि सोचते साथ साथ हैं. और लिखने का काम अलग अलग करते हैं. दोनों ने लिखना शुरू किया. दिबाकर ने महसूस किया कि उर्मि इस फिल्म की कहानी के साथ न्याय कर सकती हैं सो, उन्हें यह जिम्मा सौंप दिया. हालांकि उर्मि से शांघाई से पहले कई फिल्में लिखी हैं. लेकिन उन्हें असन पहचान इसी फिल्म से मिली. उर्मि मानती हैं कि हिंदी सिनेमा में लेखक को लेकर आज भी उदासीनता है. लेकिन यह बात पुरुष लेखक और महिला लेखक दोनों पर ही लागू होती है. कोई खास अंतर नहीं. हर किसी को क्रेडिट हासिल करने में वक्त लगता है. सो, उन्हें भी लगा. लेकिन वे अपने नाम और काम दोनों से संतुष्ट हैं.

भट्ट कैंप की शगुफ्ता
शगुफ्ता रफीक जब युवा थीं. तब से जब भी वह कोई फिल्म देखतीं तो उसे वह अपने अंदाज में दृश्यों को सोच कर लिखती थीं. उन्हें लिखने का और दृश्य गढ़ने का शौक हमेशा से रहा. लेकिन घर की ऐसी परिस्थिति थी कि वह कभी इस बारे में सोच नहीं पायीं. मां की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. सो, वे रात में बार में गाना गातीं और दिन भर प्रोडयूसर के घरों के चक्कर लगातीं ताकि उन्हें फिल्में लिखने का मौका मिले. वे फ्री में भी काम करने को तैयार थीं. लेकिन उन्हें काम नहीं मिला. एक दिन वह भट्ट कैंप गयीं. वहां भी उन्हें कई बार लौटाया गया. बाद में कलयुग के दौरान  भट्ट कैंप के लेखक बीमार पड़ गये थे. तो कलयुग का कुछ हिस्सा शगुफ्ता ने लिखा और वही से उनकी जर्नी शुरू हुई. मोहित सूरी के साथ उन्हें लगातार लिखने का मौका मिला और उन्होंने वो लम्हे से लेकर अब तक मोहित की सारी फिल्मों का लेखन शुरू किया. हाल ही में प्रदर्शित आशिकी 2 की पटकथा लेखक भी शगुफ्ता रफीक ही रही हैं.

इला बेदी दत्ता
इला बेदी ने टेलीविजन के लिए लंबे अरसे तक काम किया है. बाद में उन्हें करन मल्होत्रा के साथ अग्निपथ में काम करने का मौका मिला. करन मल्होत्रा की अग्निपथ की लेखिका वही हैं. रॉफ लैला का किरदार उन्होंने ही गढ़ा. वे मानती हैं कि अब हिंदी सिनेमा में महिला लेखिकाओं का स्वागत हो रहा है. करन खुद मानते हैं कि अग्निपथ में जिस तरह से इला ने अपनी लेखन ने आग लगायी है. उनके लेखनी में एक स्पार्क है. जिसे उन्होंने बखूबी अपनी कहानियों में गढ़ा है. वे एक् शन थ्रीलर लिखना पसंद करती हैं . साथ ही उन्हें एक् शन ड्रामा लिखने में खास दिलचस्पी है.  इला मानती हैं कि अब हिंदी फिल्म जगत में कुछ भी नामुमकिन नहीं. यहां नये और फ्रेश लोगों को जमकर मौके मिल रहे हैं. उनका मानना है कि कंटेट ही अब किंग है.

जूही चतुर्वेदी की विकी डोनर
जूही चतुर्वेदी ने विकी डोनर की कहानी कई निर्देशकों को सुनाई थी. लेकिन निर्देशकों ने उनकी कहानी को खास नहीं समझा. सभी उन्हें राय देते थे कि वह ऐड वर्ल्ड की ही लेडी हैं तो उन्हें ऐड वर्ल्ड में ही रहना चाहिए. उन्हें किसी भी तरह से फिल्मों की दुनिया में नहीं जाना चाहिए. सब उन्हें विकी डोनर की कहानी के बारे में कहते थे कि इस पर विज्ञापन बन सकता है . ेलकिन फिल्म नहीं. लेकिन एक विज्ञापन शूट के दौरान जूही को सुजीत सरकार का साथ मिला और उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट उन्हें सुनायी. सुजीत ने हां कह दिया और विकी डोनर जैसी फिल्म बन कर दर्शकों के सामने आयी. जूही ने कहा कि उन्हें शुरुआती दौर में थोड़ी परेशानी हुई. लेकिन व मानती हैं कि अगर आपके पास कुछ टैलेंट है तो यह इंडस्ट्री आपके हुनर को पहचान ही लेती है.
मेघा रामास्वामी : एफटीआइआइ से पढ़ाई पूरी करने के बाद मेघा ने बिजॉय के फिल्म शैतान में साथ साथ लेखन शुरू किया. मेघा का मानना है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आजकल किकएश स्टोरी पर विश्वास करती हैं. मेघा मानती हैं कि सूनी ने सलाम बांबे  और हनी ईरानी ने डर और कृष जैसी फिल्मों के लेखन से महिला लेखिकाओं को इस क्षेत्र में आने का मौका दिया. कामना चंद्रा ने चांदनी और करीब का लेखन किया था.

रीमा कागती : रीमा कागती बचपन से ही टिन टिन मैगजीन में लिखा करती थीं और उन्हें उस वक्त से ही लेखन का शौक था. बाद में लगान में उन्हें आशुतोष ग्वारिकर के साथ कामकरने का मौका मिला. फिर जोया अख्तर के साथ उन्होंने कई फिल्में लिखीं. रीमा जेंडर बायसनेस को बिल्कुल नहीं मानतीं. 

रीमेक, नकल का दौर


फिल्म शौकीन के रीमेक में अक्षय कुमार और नरगिस फाकड़ी साथ साथ नजर आयेंगे. खबर है कि करन जौहर अपनी नयी फिल्म जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति मुख्य किरदार निभा रहे हैं. वह यशराज की किसी फिल्म की नकल है. दूसरी तरफ यह भी खबर है कि रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म मर्दानी भी किसी दौर में प्रदर्शित हुई फिल्म तेजीस्वनी की कॉपी है. फिल्म खूबसूरत का भी रीमेक बनाया जा रहा है. जंजीर व कई चर्चित फिल्में पहले से ही रीमेक की फेहरिस्त में शामिल हैं. हिंदी सिनेमा में क्या इसवक्त कहानियों का अकाल है. जो लगभग कहानियां या तो पुरानी फिल्मों का रीमेक पर आधारित हो रही हैं. या फिर फिल्मों का सीक्वल है. एक दौर में तो केवल लोकप्रिय फिल्मों का रीमेक बनने की होड़ लगी थी. लेकिन फिलवक्त वे फिल्में भी जो किसी दौर में असफल भी रही हैं. उन फिल्मों को भी ढूंढ कर उनके रीमेक बनाये जा रहे है. इससे स्पष्ट है कि एक तरफ जहां एक तरफ कई फ्रेश और ओरिनजल कहानियां दर्शकों तक पहुंचाई जा रही है. वही दूसरी तरफ कुछ निर्माता निर्देशक केवल सीक्वल, रीमेक और नकल की दौर में शामिल हैं. आप सिनेमा थियेटर में बैठते हैं. फिल्म शुरू होती है. आपको फिल्म अच्छी लगती है. लेकिन बाहर आने के बाद आपको जब यह जानकारी मिलती है कि आप जिस फिल्म को अच्छा कर रहे हैं, वह किसी फिल्म की कॉपी है तो न सिर्फ सिनेमा बल्कि निर्देशक से भी आपका विश्वास उठ जाता है. हाल ही में जोया की फिल्म बांबे टॉकीज में भी कुछ ऐसा ही हुआ. यह फिल्म द पिंक इन माइ लाइफ की कॉपी है. हमारे चारों तरफ इतनी सारी कहानियां हैं, जिनपर फिल्में बन सकती हैं. फिर रीमेक फिल्में या नकल फिल्मों की जरूरत ही क्या है. यह सिलसिला थम नहीं सकता. लेकिन चाहे तो इस पर पूर्णविराम तो नहीं, लेकिन अल्पविराम तो लगा ही सकते हैं. 

नये लोग नयी आवाज


 इन दिनों नये गायक गायिकाओं को फिल्मों में काफी मौके मिल रहे हैं. किसी दौर में एक फिल्म के सारे गाने किसी एक ही गायक या गायिका गाया करती थीं. लेकिन जैसे जैसे हिंदी फिल्मों ने अपना रूप और कलेवर बदला है. हिंदी सिनेमा जगत में गायिकी के क्षेत्र में भी काफी बदलाव आ गये हैं. अब हर फिल्म में नये नाम सामने आ रहे हैं. यह एक सकारात्मक बदलाव है. चूंकि इससे कई नये लोगों को पहचान मिल रही है. फिल्म आशिकी 2 के लगभग सभी गाने काफी लोकप्रिय हुए हैं और इन गानों को आवाज दी है अरजित सिंह ने. अरजित सिंह फेम गुरुकूल की खोज हैं. अरजित सिंह इन दिनों ये जवानी है दीवानी के गानों से भी लोकप्रिय हो रहे हैं. भले ही इस गाने के पीछे की आवाज को लोग न जानते हों, लेकिन उनकी आवाज से दर्शक और श्रोता वाकिफ हो रहे हैं. कुछ ऐसी ही गायिका हैं कविता शेठ . कविता ने हाल ही में बांबे टॉकीज के एक गीत में अपनी आवाज दी. कॉकटेल फिल्म का गाना तुम ही हो बंधूं... भी काफी लोकप्रिय रहा. इस साल प्लेबैक का फिल्मफेयर अवार्ड शलमाली कोलगड़े को फिल्म इशकजादे के लिए दिया गया. जब तक हैं जान जैसी फिल्म में भी हरशदीप कौर द्वारा गाया गीत हीर काफी लोकप्रिय रहा. दरअसल, हकीकत यही है कि इन दिनों नये टैलेंट्स को काफी मौके मिल रहे हैं. हालांकि इससे पुराने दौर के म्यूजिक निर्देशक सही नहीं मानते. लेकिन मेरा मानना है कि किसी भी फिल्म में अगर 10 गाने हंैं और 10 गाने अलग अलग सिंगर द्वारा गाया जा रहा है तो इससे नयी प्रतिभाओं को मौका मिलता है और किसी एक सिंगर का एकाधिकार नहीं होता. जैसा पहले कभी होता था. किसी दौर में कई सिंगर ने अपनी मोनोपली चलायी. लेकिन अब दौर बदला है. बस एक इतनी ही रह गयी है कि अगर सिंगर का नाम भी फिल्म के क्रेडिट में शामिल कर लिया जाये तो उन्हें पूरा अधिकार मिलेगा. 

दक्षिण भारत का रांझणा


 आनंद एल राय रांझणा लेकर आ रहे हैं.यह रांझणा बनारस की गलियों का रांझणा है. इस फिल्म के मुख्य किरदार में आनंद ने धनुष को चुना है. धनुष दक्षिण भारतीय फिल्मों के लोकप्रिय सितारा हैं. धनुष पहली बार किसी हिंदी फिल्म में काम कर रहे हैं. धनुष के साथ सोनम कपूर की जोड़ी जब बनी तो आनंद राय से काफी प्रश्न पूछे गये कि आखिर धनुष क्यों? लेकिन फिल्म के ट्रेलर आने के बाद लोगों को उनका जवाब मिल गया होगा. वाकई धनुष की काबिलियत को केवल कोलावड़ी डी की लोकप्रियता के आधार पर नहीं आंका जा सकता है. उन्होंने जिस अंदाज में बनारस के रंग में खुद को घोला है और वे जिस तरह से संवाद बोलते नजर आ रहे हैं. वह अदभुत है. धनुष इन दिनों चर्चा में इसलिए बने हुए हैं, क्योंकि वे न केवल बेहतरीन अभिनेता हैं. बल्कि वे एक खास होते भी बहुत सामान्य सी जिंदगी जीते हैं. धनुष ने अब तक लगभग जितने भी प्रेस कांफ्रेंस में शिरकत की है वे लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे. बावजूद इसके कि वे बिल्कुल सामान्य सी लाइफस्टाइल जीते हैं. सामान्य परिधान में भी वे बेहद खास नजर आते हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा की तरह दक्षिण सिनेमा में अत्यधिक दिखावापन नहीं. सुपरस्टार रजनीकांत तो सेट पर स्पॉट ब्वॉय के साथ भी खाना खाते हैं और बिल्कुल सामान्य सी जिंदगी जीते हैं. असिन ने भी एक बार अपनी बातचीत में कहा था कि उन्हें बॉलीवुड की फिल्में पसंद हैं लेकिन यहां का ग्लैमर नहीं. हिंदी सिने जगत को कम से कम दक्षिण से इतना तो सीखना ही चाहिए कि दक्षिण भारत की फिल्में तो लार्जर देन लाइफ होती है. लेकिन वे आम जिंदगी में बहुत ही सामान्य सी जिंदगी जीते हैं और शायद यही वजह है कि वहां के आम लोग को भी वहां के सितारों तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती.

किरन दिखा रहीं नयी किरन


इन दिनों बॉलीवुड में एक नये ट्रेंड की शुरुआत हुई है. एक ही घर में दो दो प्रोडक् शन हाउस खोले जा रहे हैं. हाल ही में आमिर खान की पत् नी किरन राव ने अपने बैनर किरन राव प्रोडक् शन की शुरुआत की है. इस प्रोडक् शन बैनर के अंतर्गत वे कुछ ऐसी फिल्मों का निर्माण करेंगी, जो कमर्शियल फिल्मों से अलग होंगी. जब किरन ने इस बात का निर्णय लिया था उस वक्त लोगों ने कयास लगाने शुरू कर दिये थे कि किरन राव और आमिर खान में प्रोफेशनल डिफरेंस आ गये हैं. उनमें मतभेद शुरू हो चुका है और इसलिए दोनों अलग हो रहे हैं. जबकि हकीकत यह है कि किरन राव अपने बलबूते अलग तरह की फिल्में बनाना चाहती हैं और वे मानती हैं कि आमिर खान प्रोडक् शन में यह पूरी तरह संभव नहीं. जिन लोगों ने किरन राव की फिल्म धोबी घाट देखी होगी वे इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि वे किस मिजाज की निर्देशिका हैं. वे कमर्शियल फिल्मों से अधिक पैरलल और रियल मुद्दों पर आधारित फिल्मों को अधिक तवज्जो देती हैं. जाहिर सी बात है यही वजह रही होगी कि उन्होंने अलग प्रोडक् शन की शुरुआत की है और यह एक सराहनीय पहल है. उन्होंने शीप आॅफ थेसस जैसी फिल्म को अपना बैनर दिया है और उन्होंने वादा भी किया है कि अब से वे स्वतंत्र फिल्मों को खास मौके देंगी. निश्चित तौर पर इससे कई ऐसे स्वतंत्र फिल्मकारों को मदद मिलेगी जो अच्छी फिल्में बनाने के बावजूद फिल्मों को रिलीज नहीं कर पाते. किरन राव ने एक अलग रास्ता चुना है. बजाय इसके कि वह केवल औपचारिक रूप से आमिर खान प्रोडक् शन की फिल्मों में क्रेडिट लें. उन्होंने एक स्वतंत्र शुरुआत की है. हिंदी सिनेमा जगत में ऐसे प्रयासों की जरूरत है, ताकि  नये लोगों को मौके मिले. उम्मीदन अब कई छोटे लेकिन बड़े फिल्मकारों को अब मौके मिलेंगे.

दूर देश का ढोल सुहावना


दूर देश का ढोल हमेशा सुहावना ही होता है. अर्थात हमें दूर की चीजें हमेशा आकर्षित करती हैं. गांव वालों के लिए शहर हमेशा खास होता है और शहर वालों के लिए मेट्रो शहर. हिंदी फिल्मी दुनिया पूरे भारत को आकर्षित करती है और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लोग हॉलीवुड व विदेशों की फिल्में और वहां के सेलिब्रिटीज से आकर्षित होते हैं और शायद यही वजह है कि वे कभी कभी विदेश में खुद को अलग और सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जो उन्हें हंसी का पात्र बना देती है. इन दिनों कान फिल्मोत्सव का आयोजन हो रहा है और वहां इस बार भारत के कई सेलिब्रिटीज शामिल हुए हैं. सोनम कपूर, अमिताभ बच्चन, विद्या बालन. विद्या बालन वहां जूरी सदस्यों में से एक हैं. और अमिताभ अपनी हॉलीवुड फिल्म के प्रोमोशन में वहां शामिल हुए. अमिताभ लीयनार्डो के साथ जब मंच पर गये तो उन्होंने वहां हिंदी में भाषण दिया, जो वाकई हिंदुस्तान के लिए गर्व की बात है. विद्या बालन का कान फिल्मोत्सव में जूरी के रूप में चयनित होना भी गर्व की बात है. लेकिन भारतीय कलाकार वहां जिस तरह के परिधान में नजर आये. वह दिखावा मात्र लग रहा है. अलग और अनोखा करने के चक्कर में अमिताभ से लेकर सोनम विद्या सभी ने अति कर दी. वहां अन्य सितारों पर गौर करें तो सभी सामान्य अटायर में थे और उन सभी को एक सा दिखने में कोई परेशानी नहीं. लेकिन हमारे यहां सितारे तभी चमकते हैं, जब उनके कपड़े चमकते हैं, सो उन्होंने कुछ अजीबोगरीब परिधान पहन कर वहां रेड कारपेट पर वॉक किया. विद्या को अगर भारतीय परिधान में जाना ही था तो वह सामान्य सी साड़ी पहन सकती थीं. आमतौर पर वह बेहद खूबसूरत नजर आती है. लेकिन वे भी यहां चूक गयीं. दरअसल, यह हमारे अति उत्साह और दिखावेपन का ही खोखला नतीजा है. 

माधुरी का 46वां बसंत


 आज माधुरी दीक्षित का जन्मदिन है. आज वह अपने जीवन के 46 वें जीवन में प्रवेश कर रही हैं. और इस वक्त वे दो फिल्मों में काम कर रही हैं. गुलाब गैंग और डेढ़ इश्किया. साथ ही वह झलक दिखला जा सीजन 2 रियलिटी शो में जज की भूमिका भी निभायेंगी. माधुरी दीक्षित हिंदी सिनेमा की दक्ष अभिनेत्री में से एक रही हैं. वे नृत्य के साथ साथ अभिनय के लिए शीर्ष अभिनेत्री मानी जाती हैं. कई सालों पहले उन्होंने जब आजा नच ले से दूसरी पारी की शुरुआत की थी उस वक्त वह कामयाब नहीं रही थीं. लेकिन इस बार वे कमजोर कड़ी तैयार कर भारत नहीं लौटी हैं, बल्कि उन्होंने पूरी तैयारी की है. तैयारी भी ऐसी कि सिर्फ इस फिल्म में वे गाने गाती नजर नहीं आयेंगी, बल्कि वह फिल्म में एक् शन करती भी नजर आयेंगी. फिल्म के सेट पर मौजूद माधुरी के नजदीकी बताते हैं कि किस तरह माधुरी आज भी अपने काम को लेकर समर्पित हैं. वे आज भी अनुशासन के साथ काम करती हैं. माधुरी उस जमाने में लोकप्रिय अभिनेत्री थीं, जब उतने मीडिया हाउस नहीं थे. सो, वे जब अमेरिका से वापस लौटीं तो वह नर्वस थीं. लेकिन धीरे धीरे वह भी समकालीन अभिनेत्रियों की तरह इंडस्ट्री में ढल गयी हैं. अब वे भी मीडिया और मैनेजर को मैनेज करना सीख चुकी हैं. वे अपना प्रोडक् शन हाउस भी शुरू करने जा रही हैं और साथ ही उन्होंने अपने पति डॉ नेने के साथ मिल कर बहुत सारी प्लानिंग भी की है. दोनों खुश हैं और उनके पति अब माधुरी को पूरा सपोर्ट कर रही हैं. माधुरी ने जिस तरह अपने परिवार और अपने करियर में सामांजस्य बना कर रखा. वे अतुल्नीय है. जब वह अमेरिका जा रही थी. जब वह जाना नहीं चाहती थीं. लेकिन फिर भी उन्होंने कोई सवाल जवाब नहीं किया था. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी की और खुशी खुशी पूरे परिवार की इच्छा से भारत लौट आयी हैं और अपनी दुनिया में आकर वे खुश हैं

रितेश की बेहतरीन पहल


 रितेश देशमुख ने हाल ही में फिल्म बालक पलक का निर्माण किया था. इस फिल्म से न सिर्फ लोकप्रियता हासिल की, बल्कि कई अंतरराष्टÑीय फिल्मोत्सव में भी सराही गयी. अब फिर से रितेश देशमुख ने एक और मराठी फिल्म निर्देशन की परिकल्पना की है. इस बार वह एक स्पोर्ट्स पर्सन पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल, रितेश देशमुख स्वयं मराठी हैं. और उन्होंने एक बेहतरीन सोच के साथ अपने प्रोडक् शन हाउस का निर्माण किया है. वे अपने प्रोडक् शन हाउस के माध्यम से लगातार बेहतरीन काम कर रहे हैं. वे अच्छी और स्तरीय फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. उनकी हिंदी फिल्मों को देख कर रितेश की सोच का अनुमान लगाना बिल्कुल अनुचित होगा. चूंकि रितेश मराठी सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप से तत्पर हैं और काफी काम कर रहे हैं. दरअसल, सिनेमा की दुनिया में ऐसे सोच के लोगों की सख्त जरूरत है. पैसे से सिनेमा बन जाता तो हर कोई फिल्में बना रहा होता. लेकिन रितेश धन के साथ अपनी क्रियेटिविटी को भी कायम कर रहे हैं और उन्हें प्रोत्साहन भी मिल रहा है. यही वजह है कि आज मराठी सिनेमा इतना लोकप्रिय है और स्तरीय भी. यहां सार्थक फिल्में बन रही हैं और क्षेत्रीय भाषा को सम्मान भी मिल रहा है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि बिहार झारखंड में ऐसा काम नहीं हो रहा . ऐसा नहीं है कि वहां के लोगों में सिनेमा को लेकर वह सोच नहीं है. नितिन चंद्रा जैसे एंटरप्रेनर निर्देशक ने देसवा बनायी. भोजपुरी की यह स्तरीय फिल्मों में से एक है. फिल्म विषयपरक है. लेकिन उन्हें वह मदद या प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा कि वह भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाये. सौरभ कुमार मैथिली में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन सभी को जो सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए. वह नहीं मिल पा. नतीजन वैसी फिल्में नहीं बन पा रही हैं.

बनते बिगड़ते रिश्ते


हाल ही में फिल्म शॉटकर्ट रोमियो के सिलसिले में नील नीतिन मुकेश से मुलाकात हुई. नील अभिनय के साथ साथ निर्देशन में भी दिलचस्पी रखते हैं और साथ ही साथ वह बेहतरीन पेंटर भी हैं. नील नीतिन से यह बात बहुत औपचारिक और बहुत अनौपचारिक भी थी. नील ने अपने दादा मुकेश  के दौर की कई बातें शेयर कीं. यह सवाल पूछने पर कि क्या आज भी कपूर खानदान से नील या उनके परिवार के रिश्ते उसी तरह घनिष्ठ हैं. उन्होंने कहा नहीं. आज वह दौर नहीं है. आज प्रोफेशनलिज्म ज्यादा हावी है. किसी दौर में मुकेश राजकपूर के जिगरी दोस्त थे. लेकिन न तो राजकपूर के परिवार के बाद की पीढ़ी और न ही मुकेश की आगे की पीढ़ी इस रिश्ते को आगे बढ़ा पायी. हिंदी सिने जगत में ऐसे रिश्तों की फेहरिस्त अपवाद हैं, जिनकी दोस्ती कई पीढ़ियों से चली आ रही हो. किसी दौर में सलीम जावेद खास दोस्त थे. लेकिन दोनों में दूरियां बनीं तो उनके बच्चे भी दूर हो गये. सलमान खान और फरहान आज भी सामान्य रिश्ते नहीं रखते. किसी दौर में फरहान और सलमान खान साथ साथ साइकिलिंग किया करते थे. स्वीमिंग किया करते थे. लेकिन पिता में अनबन के कारण दोनों के रिश्तों में भी खटास आयी. दिलीप साहब और प्राण साहब के परिवार में आज भी वह घनिष्ठता है और इसलिए इस परिवार के बच्चे भी एक दूसरे के करीब हैं. वही राजकुमार के बच्चे आज कहां हैं, किसी को नहीं पता. मोहम्मद रफी के बच्चे और लता में ंहाल ही में काफी मतभेद हुआ. दरअसल, हकीकत यही है कि आज प्रोफेशनलिज्म हिंदी सिनेमा जगत पर काफी हावी हो चुका है. हाय हलो से ज्यादा जिंदगी आगे जाती ही नहीं. यह मुमकिन ही नहीं कि आमिर, शाहरुख सलमान के बच्चे कभी भी आपस में शायद कभी एक दूसरे से मिलेंगे ही.चंूकि परवरिश से ही बच्चे अपने और गैरों में फर्क करना समझते हैं 

अभिनेता की आवाज


 फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के म्यूजिक निर्देशक विशाल शेखर ने तय किया है कि वे इस बार शाहरुख की आवाज मशहूर गायक एसबी बाला सुब्रमणियम को बनायेंगे. एसबी लंबे अरसे के बाद किसी हिंदी फिल्म के लिए पार्श्व गायन करेंगे. किसी दौर में एसबी सलमान खान की आवाज हुआ करते थे. सलमान के शुरुआती दौर की सारी लोकप्रिय फिल्मों में सलमान की आवाज एसबी ही थे. फिर चाहे वह मैंने प्यार किया हो, या फिर हम आपके हैं कौन. राजश्री के साथ भी एसबी क े अच्छे रिश्ते रहे हमेशा. बाद में एसबी ने हिंदी सिनेमा से और हिंदी सिनेमा ने एसबी से दूरी बना ली थी. दरअसल, हिंदी सिनेमा में नायक व उनकी आवाज वाले गायकों का भी एक दौर रहा है. किसी दौर में शाहरुख खान की आवाज कुमार सानु और उदित नारायण ही हुआ करते थे. शुरुआती दौर पर गौर करें तो शंकर जयकिशन, राजकपूर, शैलेंद्र व मुकेश की टीम थी. मुकेश राजकपूर की आवाज थे. जब मुकेश का निधन हुआ था. उस दिन राज कपूर ने कहा था कि आज मैंने अपनी आवाज खो दी. शम्मी कपूर की आवाज मोहम्मद रफी हुआ करते थे. तो राजेश खन्ना की आवाज किशोर कुमार बने. गौरतलब है कि हिंदी सिनेमा में जिस तरह अभिनेताओं के साथ उनकी आवाज वाले गायकों को लोकप्रियता मिली. उस तरह गायिकाओं को उनकी अभिनेत्री नहीं मिली. वहां हमेशा विभिन्नताएं रहीं. हाल के दौर में मोहित चौहान रणबीर की आवाज बन चुके हैं. मोहित की यह खासियत है कि वे रणबीर के अलावा अन्य कलाकारों की आवाज में भी फिट बैठ जाते हैं. किसी दौर में गायकों को भी अभिनेता बनने का धुन सवार हुआ था. उस वक्त मुकेश, मोहम्मद रफी समेत कई गायकों ने गाने के साथ साथ अभिनय में ही अपना हाथ आजमाया. लेकिन किशोर कुमार की तरह किसी को कामयाबी नहीं मिली.

दर्शकों को एंटरटेन करना मुख्य मकसद : श्रूति हसन


श्रूति हसन दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हैं. वे बेहतरीन अभिनय के साथ साथ अपनी गायिकी को लेकर भी हमेशा गंभीर रही हैं और पार्श्व गायन में हमेशा योगदान करती रही हैं. हिंदी फिल्मों में इन दिनों वे लगातार नजर आ रही हैं. इस बार वह प्रेम कहानी में दर्शकों के सामने होंगी.

श्रूति, आाप हिंदी सिनेमा में भी लगातार नजर आ रहंी हैं और दक्षिण भी आपने फिल्में करना कायम रखा है.तो कोई खास योजना बना रखी है. क्या कभी पूरी तरह बॉलीवुड शिफ्ट होने का ख्याल आया है?
बिल्कुल नहीं, आइ लव साउथ. हां, मगर मैं बॉलीवुड की फिल्मों में काम करना इसलिए पसंद करती हूं क्योंकि यह भी अलग दुनिया है. यहां ग्लैमर है. लोगों तक आपकी पहुंच ज्यादा है. आप अपने तरीके से यहां की जिंदगी जी सकते हो. फिल्में दर्शकों को पसंद आती है तो अपने फैन तक पहुंचने का जरिया है बॉलीवुड . लेकिन मैं दक्षिण कभी नहीं छोड़ूंगी.

 दक्षिण सिनेमा इंडस्ट्री में और बॉलीवुड में आपको क्या विभिन्नताएं नजर आती हैं?
मेरे लिए फिल्मों में काम करने का मतलब उसकी भाषा से नहीं है. ईस्ट हो या वेस्ट हो या नॉर्थ या साउथ. विभिन्नता फिल्म इंडस्ट्री में नहीं होती. बल्कि मुझे लगता है कि हर फिल्म एक दूसरे से अलग होती है. हर फिल्म का सेटअप एक दूसरे से अलग होता है. हर प्रोडक् शन हाउस की फिल्म एक दूसरे से अलग होती है. हर फिल्म मेकर का अप्रोच अलग होता है. तो मैं मानती हूं कि डिफरेंस तो फिल्म के बदलते ही आ जाते हैं. ऐसे में स्टेट उतना मायने नहीं रखता.

गों का मानना है कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री के लोग अधिक प्रोफेशनल होते हैं. इस बात में कितनी सच्चाई है?
जैसा कि मैंने कहा कि बांबे हो या तेलुगु इंडस्ट्री हो या फिर तमिल. फिल्मों की सोच, फिल्मों में काम करने का तरीका, उसके प्रोडक् शन हाउस पर निर्भर करता है. और मुझे लगता है कि साउथ में लोगों की दुनिया पूरी तरह से सिर्फ सिनेमा नहीं है. इसलिए वे लोग अपना काम जल्द से जल्द पूरा करते हैं ताकि वे बाकी काम में भी वक्त दें. अब आप इस प्रोफेशनलिज्म का नाम दे सकती हैं.लेकिन हकीकत में हर सिनेमा इंडस्ट्री में प्रोफेशनल अन प्रोफेशनल लोग होते ही हैं.
आप किसी हिंदी फिल्म में लगभगं दो सालों के बाद  नजर आ रही हैं, तो इस दौरान क्या किसी फिल्म का आॅफर नहीं मिला या फिर आपने किन्हीं कारणों की वजह से वे फिल्में नहीं की.
एग्जैक्टली, मुझे फिल्में मिल रही थीं. लेकिन जिस तरह की स्क्रिप्ट आ रही थी. मुझे पसंद नहीं आ रही थी.इसके अलावा इन दो सालों में साउथ में मेरे कई कमिटमेंट्स थे, जिन्हें मुझे पूरा करना था.

श्रूति, आपका पूरा परिवार हिंदी सिनेमा से जुड़ा रहा है. तो आपके फिल्मों के चुनाव में उनकी क्या भूमिका रहती है?
सच कहूं तो बिल्कुल नहीं. मेरे माता पिता की दखल या उनका रोल तब तक ज्यादा था जब मैं ग्रोइंग एज में थी.  लेकिन अब मैं अपने डिसीजन खुद लेती हूं.  मैं अब पूरी तरह से इंडिपेंडेंट हो चुकी हूं और इंडिपेंडेंट रूप से ही अपनी फिल्मों का चुनाव करती हूं. मुझे पता है कि मैं क्या अच्छा काम कर सकती हूं क्या नहीं. सो, मैं खुद अपने किरदारों का चुनाव करती हूं.

आप रम्मैया वस्तावैसा  इस फिल्म में इंडियन लुक में हैं तो कितना अलग रहा आपका अनुभव
मैंने साउथ में काफी इंडियन लुक किया है. वहां की फिल्मों में तो मुझे लगता है कि ज्यादा इंडियन लुक को तवज्जो देते हैं. ये यूं ही यहां की मीडिया में बात फैलाई जा रही है कि मैं पहली बार इंडियन लुक में नजर आ रही हूं. जबकि हकीकत यही है कि मैंने पहले भी ऐसे कई लुक में काम किया.

गिरीश कुमार की यह पहली फिल्म है वह तो न्यू कमर हैं. तो ऐसे में जबकि आप इस फिल्म की अभिनेत्री हैं तो आप पर अधिक जिम्मेदारी है फिल्म को सफल कराने को लेकर?
मुझे लगता है कि एक फिल्म की पूरी जिम्मेदारी उसके निर्देशक की होती है. उसके कैसे कैरेक्टर्स होते हैं. उन्हें किस तरह प्रेजेंट करना है. यह सब देखना उनका मामला है. हमारी जिम्मेदारी बतौर कलाकार बस इतनी ही होती है कि हम एक् श्न और कट के बीच में 100 पर्सेंट अपनी मेहनत दिखा पायें. तो वही मेरी जिम्मेदारी है. और गिरीश न्यूकमर हैं. लेकिन पहली फिल्म में तो हर कोई अधिक मेहनत करता है तो मुझे लगता है कि दर्शक पसंद करेंगे उन्हें. जहां तक बात है फिल्मों के सफल होने की तो वह मेरी जिम्मेदारी नहीं. इसके बारे में निर्माता सोचें. मैं क्यों.
गिरीश फिल्म के निर्माता के बेटे हैं तो कहीं आपको अपने किरदार को लेकर यह बात महसूस हुई कि फिल्म में गिरीश को फोकस करने की कोशिश की जायेगी?
जी मुझे कहीं भी ऐसा नहीं लगा. सच कहूं तो रम्मैया वस्तावैया की पूरी कहानी ही मेरे किरदार सोना के इर्द गिर्द घूमती है. गिरीश का जो कैरेक्टर है. वह एनआरआइ का है. गिरीश भारत आते हैं और फिर सोना से मिलते हैं और उसी की दुनिया में चले जाते हैं. मुझे लगता है कि मैं सेंट्रल कैरेक्टर में हूं. मैं फिल्म में सिंपल सी लड़की का किरदार निभा रही हूं. सिंपल सी दुनिया की लड़की सोना से गिरीश मिलते हैं.

बतौर निर्देशक प्रभुदेवा के साथ आपका अनुभव कैसा रहा?
बतौर निर्देशक प्रभुदेवा बेहतरीन निर्देशक हैं. उन्हें अपने किरदारों के बारे में पता होता है कि उसकी क्या खूबियां हैं और उसका इस्तेमाल वह किस तरह से उनकी खूबियों के साथ साथ कैरेक्टर की खूबियों को जोड़ते हैं.

आप म्यूजिक कंपोजर भी हैं. सिंगर भी हैं और एक्टर भी तो किसमें ज्यादा मजा आता है?
मुझे लोगों को एंटरटेन करने में ज्यादा मजा आता है.फिर चाहे वह डांस हो, संगीत हो या एक्टिंग हो. मैं एंटरटेनमेंट फैमिली से हूं तो मुझे खुशी मिलती है कि मैं लोगों को एंटरटेन करूं.

फिल्म का शीर्षक रम्मैया वस्तवैया है तो यह किस तरह कहानी को सार्थक करता है?
फिल्म में हीरो का नाम राम है. तो इसलिए इस फिल्म का नाम रम्मैया वस्तावैया रखा गया है. सिंपल.

पापा कमल हसन की फिल्मों में अभिनय करने के बारे में कभी नहीं सोचा?
बात पापा की स्क्रिप्ट की नहीं है. जो पापा बनाते हैं. वह मुझे दर्शक के रूप में पसंद है. लेकिन स्क्रिप्ट चुनते वक्त मैं खुद की सुनती हूं. जो कर पाऊंगी हमेशा वही चुनूंगी.