हिंदी सिने जगत से जुड़े वरिष्ठ व उम्दा कलाकार अनुराधा पटेल और कंवलजीत के दोनों बेटे पिछले दिनों श्रीनगर के बाढ़ में फंसे थे. उन्होंने एक अखबार में अपनी आपबीती लिखी है. इस आपबीती को उनका पब्लिसिटी स्टंट समझना मीडिया की ज्याददती होगी. चूंकि जिस तरह उन्होंने अपनी आंखों से सच्चाई बयां की है. यह उन जैसे सेलिब्रिटी व मुंबईकर बच्चों के लिए आम बात नहीं है. एक पल के लिए हमें यह भूलना होगा कि वह किसी सेलिब्रिटी माता पिता के बच्चे हैं. उनके बेटों ने आपबीती में लिखा है कि किस तरह उन्होंने अपने सामने लोगों को मरते देखा. एक औरत ने दो बच्चों को जन्म दिया. उसी बाढ़ में. और कैसे खुद जोखिम उठा कर उन दोनों बच्चों की जिंदगी बचा रही थीं. उनके बेटों ने अपनी आपबीती के अंत में लिखा है कि वे कश्मीर मस्ती के लिए गये थे. लेकिन अब जब वह वापस लौटे हैं तो जिंदगी का वास्तविक अनुभव करके लौटे हैं और अब उन्हें भोजन, पानी, घर की अहमियत समझ आ गयी है. दरअसल, हकीकत यही है कि मुंबई और मुंबई महानगरों की जिंदगी चहारदीवारी और एसी कार के शीशो में ही कैद है. वे अपनी जिंदगी के अनुभव किसी नोबल में लिखी जिंदगी के आधार पर करते हैं. चूंकि वे उसे सामने से जीते नहीं. फिल्ममेकर इम्तियाज अली ने भी फिल्म हाइवे की बातचीत में ये कहा था कि मुंबई की जिंदगी जूहू की गलियों से शुरू होकर बांद्रा तक खत्म हो जाती है. यहां लोगों की जीवनशैली जीवनशैली नहीं बल्कि लाइफस्टाइल के रूप में जी जाती है. यहां पारिवारिक बांड नहीं, ब्रांड अहम हैं. मुंबई में जितने फिटनेस सेंटर हैं. शायद ही भारत के अन्य शहरों में होंगे. चूंकि यह यहां की लाइफस्टाइल का हिस्सा हैं. दरअसल, जिंदगी की हकीकत से वास्तविक आमना सामना वही है जो कंवलजीत के बच्चों ने अनुभव किया है. यही असलियत बताते हैं
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20141203
हकीकत से आमना सामना
हिंदी सिने जगत से जुड़े वरिष्ठ व उम्दा कलाकार अनुराधा पटेल और कंवलजीत के दोनों बेटे पिछले दिनों श्रीनगर के बाढ़ में फंसे थे. उन्होंने एक अखबार में अपनी आपबीती लिखी है. इस आपबीती को उनका पब्लिसिटी स्टंट समझना मीडिया की ज्याददती होगी. चूंकि जिस तरह उन्होंने अपनी आंखों से सच्चाई बयां की है. यह उन जैसे सेलिब्रिटी व मुंबईकर बच्चों के लिए आम बात नहीं है. एक पल के लिए हमें यह भूलना होगा कि वह किसी सेलिब्रिटी माता पिता के बच्चे हैं. उनके बेटों ने आपबीती में लिखा है कि किस तरह उन्होंने अपने सामने लोगों को मरते देखा. एक औरत ने दो बच्चों को जन्म दिया. उसी बाढ़ में. और कैसे खुद जोखिम उठा कर उन दोनों बच्चों की जिंदगी बचा रही थीं. उनके बेटों ने अपनी आपबीती के अंत में लिखा है कि वे कश्मीर मस्ती के लिए गये थे. लेकिन अब जब वह वापस लौटे हैं तो जिंदगी का वास्तविक अनुभव करके लौटे हैं और अब उन्हें भोजन, पानी, घर की अहमियत समझ आ गयी है. दरअसल, हकीकत यही है कि मुंबई और मुंबई महानगरों की जिंदगी चहारदीवारी और एसी कार के शीशो में ही कैद है. वे अपनी जिंदगी के अनुभव किसी नोबल में लिखी जिंदगी के आधार पर करते हैं. चूंकि वे उसे सामने से जीते नहीं. फिल्ममेकर इम्तियाज अली ने भी फिल्म हाइवे की बातचीत में ये कहा था कि मुंबई की जिंदगी जूहू की गलियों से शुरू होकर बांद्रा तक खत्म हो जाती है. यहां लोगों की जीवनशैली जीवनशैली नहीं बल्कि लाइफस्टाइल के रूप में जी जाती है. यहां पारिवारिक बांड नहीं, ब्रांड अहम हैं. मुंबई में जितने फिटनेस सेंटर हैं. शायद ही भारत के अन्य शहरों में होंगे. चूंकि यह यहां की लाइफस्टाइल का हिस्सा हैं. दरअसल, जिंदगी की हकीकत से वास्तविक आमना सामना वही है जो कंवलजीत के बच्चों ने अनुभव किया है. यही असलियत बताते हैं
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