जिन्होंने फिल्म अंगूर, चोरी मेरा काम जैसी फिल्में देखी हैं. वे देवेन वर्मा के हास्य अंदाज को भूल नहीं सकते. कुछ सालों पहले आयी फिल्म इश्क में भी वे चंद दृश्यों में नजर आये. लेकिन उनके वे दृश्य अब भी स्मरण में जीवित हैं.देवेन आज भी पुणे में अपने निजी थियेटर में फिल्में देखा करते थे. उन्होंने भले ही फिल्मों में अभिनय से दूरी बनायी. लेकिन फिल्मों से उनका स्रेह नहीं टूटा. उन्हें संजीव कपूर का संगी साथी समझा जाता था. चूंकि वे संजीव कुमार के साथ कई फिल्मों में नजर आते रहे. उन्हें कई फिल्मों में कई फिल्मफेयर अवार्ड से सराहा जाता रहा है. संजीव कुमार के अलावा वे अमिताभ के साथ कई फिल्मों में नजर आये. यह देवेन वर्मा की खूबी रही कि उन्होंने सिर्फ खानपूर्ति के लिए बाद में आयी फिल्मों में अभिनय करते रहने की जिद्द नहीं ठानी. उनके मन में एक संतुष्टि थी और वे मानते थे कि कॉमेडी का अंदाज फिल्मों की तरह ही बदल रहा है. सो, उन्हें इस बात से किसी से शिकायत नहीं थी. लेकिन वे चाहते थे कि कॉमेडी फिल्मों में जिंदा रहें, क्योंकि कॉमेडी भी अभिनय का एक महत्वपूर्ण रस है. देवेन वर्मा मिमिक्री में उस्ताद थे और इसी माध्यम से उनका फिल्मों में आना हुआ. बी आर चोपड़ा ने उन्हें धर्मपुत्र में पहला अवसर दिया. देवेन वर्मा की खूबी थी कि वे फिल्म में किरदार को ओहदा नहीं. किरदार की जान देखते थे. अगर गौर करें तो हिंदी फिल्मों में सबसे अधिक नौकर की भूमिका देवेन वर्मा ने ही निभाई है. मेरी पत् नी मुझे सताती है...गाना, मम्मी ओ मम्मी तू कब सास बनेगी जैसे गीत आज भी पारिवारिक दर्शकों के पसंदीदा गीत हैं. देवेन वर्मा को जो अंदाज था, वह उसी तरह का था जैसे परिवार के बीच कोई एक व्यक्ति अपनी हास्य बातों से सबका दिल जीत लेता हो. देवेन वर्मा भले ही हमारे बीच नहीं, लेकिन उनका चुटीला अंदाज हमेशा लोगों को गुदगुदाता रहेगा.
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