दिबाकर बनर्जी की फिल्म ब्योमकेश बक्शी का टीजर जारी कर दिया गया है. टीजर से स्पष्ट है कि फिल्म में 1973 के कोलकाता को प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है.फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत मुख्य किरदार निभा रहे हैं. दिबाकर बनर्जी ने अपनी बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को एक ऐसे ब्योमकेश से मिलवाना चाहते हैं, जो सिर्फ एक डिटेक्टीव नहीं है. अब तक हमने धारावाहिक में ब्योमकेश बक् शी के रूप में रजीत कपूर में एक बेहद संवेदनशील व्यक्ति को देखा है. जो बेहद गंभीर भी हैं. लेकिन इस फिल्म में कई नये पहलू उभर कर सामने आयेंगे. सत्यजीत रे के लोकप्रिय फेलुदा को कोई नहीं भूल सकता. बांग्ला साहित्य में अधिकतर डिटेक्टीव किरदार मिलते हैं. वजह शायद यह है कि यह मान लिया गया है कि बंगाली ज्यादा अकलमंद होते हैं और यही वजह है कि उनमें सिक्स सेंस होने की संभावना अधिक होती है. बहरहाल फिल्म का टीजर बहुत आकर्षक नहीं है. लेकिन सिर्फ टीजर के आधार पर फिल्म की कहानी का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. दिबाकर बनर्जी अपनी फिल्मों को इंटेंस तरीके से प्रस्तुत करने के लिए लोकप्रिय रहे हैं.सो, उनसे उम्मीद की जा सकती है. लेकिन वाकई एक पीरियड फिल्म तभी सार्थक फिल्म बन पाती है, जब उसमें डिटेलिंग हो. कोलकाता ने आज भी पूरी तरह से मॉर्डन रूप धारण नहीं किया है. सो, उम्मीद की जा सकती है कि दिबाकर अपने विजन में खरे उतरेंगे. ब्योमकेश एक दिलचस्प किरदार हैं. हां, लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी होगा कि पहले से दिखाई गयी चीजें दोबारा दोहरायी न जाये. चूंकि यह फिल्म के हित में नहीं होगा. वजह यह है कि टेलीविजन सीरिज के रूप में ब्योमकेश हिट थे. सो, दिबाकर के लिए फिल्म के रूप में इसे स्थापित करना एक बड़ी चुनौती होगी.
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20141203
ब्योमकेश का टीजर
दिबाकर बनर्जी की फिल्म ब्योमकेश बक्शी का टीजर जारी कर दिया गया है. टीजर से स्पष्ट है कि फिल्म में 1973 के कोलकाता को प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है.फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत मुख्य किरदार निभा रहे हैं. दिबाकर बनर्जी ने अपनी बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को एक ऐसे ब्योमकेश से मिलवाना चाहते हैं, जो सिर्फ एक डिटेक्टीव नहीं है. अब तक हमने धारावाहिक में ब्योमकेश बक् शी के रूप में रजीत कपूर में एक बेहद संवेदनशील व्यक्ति को देखा है. जो बेहद गंभीर भी हैं. लेकिन इस फिल्म में कई नये पहलू उभर कर सामने आयेंगे. सत्यजीत रे के लोकप्रिय फेलुदा को कोई नहीं भूल सकता. बांग्ला साहित्य में अधिकतर डिटेक्टीव किरदार मिलते हैं. वजह शायद यह है कि यह मान लिया गया है कि बंगाली ज्यादा अकलमंद होते हैं और यही वजह है कि उनमें सिक्स सेंस होने की संभावना अधिक होती है. बहरहाल फिल्म का टीजर बहुत आकर्षक नहीं है. लेकिन सिर्फ टीजर के आधार पर फिल्म की कहानी का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. दिबाकर बनर्जी अपनी फिल्मों को इंटेंस तरीके से प्रस्तुत करने के लिए लोकप्रिय रहे हैं.सो, उनसे उम्मीद की जा सकती है. लेकिन वाकई एक पीरियड फिल्म तभी सार्थक फिल्म बन पाती है, जब उसमें डिटेलिंग हो. कोलकाता ने आज भी पूरी तरह से मॉर्डन रूप धारण नहीं किया है. सो, उम्मीद की जा सकती है कि दिबाकर अपने विजन में खरे उतरेंगे. ब्योमकेश एक दिलचस्प किरदार हैं. हां, लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी होगा कि पहले से दिखाई गयी चीजें दोबारा दोहरायी न जाये. चूंकि यह फिल्म के हित में नहीं होगा. वजह यह है कि टेलीविजन सीरिज के रूप में ब्योमकेश हिट थे. सो, दिबाकर के लिए फिल्म के रूप में इसे स्थापित करना एक बड़ी चुनौती होगी.
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