20131127

गांव की दुनिया पसंद है मुझे : करीना कपूर खान


करीना कपूर परदे पर पहली बार किसी सोशल वर्कर की भूमिका में नजर आयेंगी. करीना इस बात से खुश हैं कि उन्हें लगातार अच्छी फिल्में करने के मौके मिल रहे हंै. सत्याग्रह के बाद उनकी अगली फिल्म गोरी तेरे प्यार में रिलीज होने जा रही है.
 करीना, इमरान ने बताया कि उन्हें इस फिल्म का दूसरा भाग जो गांव का है. वह पसंद नहीं आया था  पहले. इसलिए वह यह फिल्म नहीं करना चाहते थे. आप इस बारे में क्या कहेंगी?
मैं तो कहूंगी कि मैंने दूसरे हिस्से यानी गांव वाले हिस्से की वजह से ही फिल्म की है. कितना मजा आता है गांव में. गांव में जो ईमानदारी है. एक मासूमियत है लोगों में. वह आपको कभी शहर में नहीं मिलेगी. हमारी जिंदगी बीबीएम में है. हम तो एक दूसरों से बात भी नहीं कर पाते. बस एसएमएस करते रह जाते हैं. मेरी मम्मी भी इस बात की शिकायत करती हैं कि क्या तुमलोग सिर्फ बीबीएम पर बातें करते हो. सामने भी बातें किया करो. हम शहर में बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं और मस्ती करते हैं. लेकिन गांव में जाकर देखें वहां कितनी परेशानी है. फिर भी लोग किसी से शिकायत नहीं करते. खुद प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालने की कोशिश करते हैं. मुझे तो गांव के लोग अच्छे लगे. उन्होंने हमारा कितना ख्याल रखा. फिल्म के बहाने ही सही गांव की जिंदगी जीने का मौका तो मिला. वहां सबकुछ नैचुरल होता है. मिलावटीपन नहीं. िदखावे वाली जिंदगी नहीं.
आपने फिल्म रिफ्यूजी में भी गांव में शूटिंग की थी?
हां और गोरी तेरे प्यार में के बारे में जब मुझे पुनीत ने बताया कि हम भुज जाकर शूटिंग करनेवाले हैं. मैं खुश थी. खुशी की वजह यह थी कि इस फिल्म की शूटिंग भी उसी हिस्से में हुई है. जहां रिफ्यूजी की शूटिंग हुई थी. मेरी सारी पुरानी यादें ताजा हो गयीं. मैं और अभिषेक वहां जिस तरह से जाते थे. वहां के लोग हमें कितने प्यार से खिलाते थे. पिलाते थे. मैंने अपने क्रू के सभी लोगों को वह सारी जगहें दिखायी, और हम सबने मिल कर वहां बहुत मस्ती भी की थी. मेरे लिए कई ऐसे मोमेंट आये जब मैं काफी इमोशनल हो गयी थी. चूंकि रिफ्यूजी के वक्त मैं िबल्कुल नयी थी. खास बात यह है कि वहां के लोग मुझे आज भी याद करते हैं. कुछ लोग ऐसे भी मिले जो उस वक्त भी मिले थे. अब भी. मुझे भुज के लोग और वहां की मिट्टी काफी पसंद है. मुझे फिर से किसी फिल्म में काम करने का मौका मिला. जिसकी कहानी गांव पर होगी तो मैं दोबारा से काम करने के लिए तैयार हूं.
फिर से इमरान खान के साथ आप काम करने जा रही हैं?
हां, इमरान बहुत समझदार और सिंपल सा बंदा है. वह बहुत बॉलीवुड अंदाज में नहीं रहता. मेरी तरह है. मैं भी ज्यादा सोशल नहीं रहती. मेरे दोस्त इंडस्ट्री से बाहर हैं और मैं फिल्मों के अलावा पार्टियों में नहीं जाती. मुझे नहीं पसंद. इमरान भी वैसा ही है. उसके चेहरे से मासूमियत झलकती है. हम दोनों तो सेट पर खूब मस्ती करते थे. इस बार भी उसने मेरी ढेर सारी तस्वीरें खीची है. दोस्त बन गया है अब वह मेरा. खूब मस्तीखोर हंै हम दोनों.
अपने किरदार के बारे में बताएं?
फिल्म में मैं सोशल वर्कर की भूमिका में हूं. मुझे लोगों के लिए काम करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम किसी के लिए भी नहीं छोड़ सकती. फिर वह प्यार ही क्यों न हो. कुछ ऐसे हालात आते हैं कि इमरान को मुझे छोड़ कर गांव आना होता है. फिर वह मेरा दिल जीतने के लिए कई चीजें करता है. मैंने प्यार किया में जैसे सलमान ने कुछ कुछ किया था. वैसा ही है किरदार. मजा आया जब इमरान को गांव की वह सारी चीजें करनी पड़ीं. जो उसने कभी की नहीं. सो, मुझे तो बहुत मजा आया.
शुद्धि के लिए आप सिक्स पैक एब्स बना रही हैं?
हां, खबर सही है. लेकिन सिक्स पैक तो नहीं लेकिन मुझे अपनी बॉडी पर वाकई अलग तरीके से काम करना होगा इस फिल्म में. चूंकि पूरी कहानी में मैं सेंट्रल भूमिका में हूं और जैसी कहानी है. निश्चित तौर पर मुझे दिखाना होगा कि किस तरह मैं खुद को इस किरदार में फिट समझती हूं.
करीना अब आप घर के कामों में कितनी निपुण हुई हूं?
बिल्कुल नहीं सैफ के लिए मैं सिर्फ एक ही काम अच्छे तरीके से कर पाती हूं और वह है उन्हें प्यार करना. बाकी खाना तो मैं अब भी नहीं बना पाती. मेरे कूक है और वह बेहतरीन खाना बनाता है.
हाल ही में आपके करवा चौथ के बयान पर बवाल खड़ा हुआ?
मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता. मैं वाकई दिखावा करके या भूखे रह कर नहीं कर सकती कोई पूजा. मैं रोजा भी नहीं रखती तो करवा चौथ क्यों. मैं फैशन के पीछे नहीं भागती. और मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं. मैं खुश हूं और मुझसे जुड़े लोग खुश रहें बस.
फिल्मों का चुनाव किस आधार पर करती हूं?
मुझे उन्हीं फिल्मों का चुनाव करना है. जिनके साथ मजा आया. किसी के साथ 200-300 दिन बिताना आसान नहीं होता. अगर आप फिल्म में दिलचस्पी नहीं रख सके तो आप बोर हो जायेंगे. काम करने में. तो वह मैं नहीं करना चाहती.
आनेवाली फिल्में? 
शुद्धि और कुछ फिल्में हैं. जल्द ही घोषणा करूंगी.

नेगेटिव किरदार निभाना ज्यादा पसंद : रुशद



रुशद, कई दिनों बाद आपने परदे पर वापसी की. इतने दिनों तक क्या किया?
मैं अपने परिवार के साथ एंजॉय कर रहा था. अच्छी कहानी की तलाश में था. मिल नहीं रहा था. सो, सोचा थोड़ा इंतजार करूं. जी ले जरा का कांसेप्ट और किरदार दोनों मुझे पसंद आया तो मैंने हां कह दिया.
आपको हमने पॉजिटिव किरदार निभाते हुए देखा है. ऐसे में नेगेटिव किरदार निभाना कितना मुश्किल था?
नहीं मैं इससे पहले भी कई नकारात्मक भूमिकाएं निभा चुका हूं. लेकिन कहता है दिल जी ले जरा में मेरा किरदार पूरी तरह से नेगेटिव है. मैंने इस भूमिका को बिल्कुल अलग अंदाज में निभाने की कोशिश की है और इसमें कुछ बारीकियों पर भी ध्यान दिया है. इस नेगेटिव किरदार को लोग भी याद रखेंगे. मेरी भूमिका गोयल परिवार के सबसे बड़े वंशज एन्वे की है, जो अपने पिता के नक् शे कदम पर चलता है. एन्वे अपने पिता की तरह तेज और चतुर है. उसने हार्वड यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट में डिग्री हासिल की है. वह हर चीज पर प्राइस टैग लगाने के अपने पिता के सिद्धांत  में विश्वास रखता है और उन लोगों की तलाश में रहता है, जो पैसों से ऊपर हैं. एन्वे के अनुसार सांची बेवकूफ है, क्योंकि उसने एक अच्छा डील स्रीकार नहीं किया. सांची और एन्वे के बीच की लड़ाई और साजिश आपको नजर आ रहा होगा शो में. मुझे नेगेटिव किरदार निभाने में ज्यादा मजा आता है. इससे आपके अभिनय में वेरियेशन आता है.
टीवी धारावाहिकों में आपने पहले भी काम किया है. इस बार अनुभव कैसा है?
रुसलान मुमताज और संगीता घोष जैसे कलाकारों और रोस आॅडियो विजुअल प्राइवेट लिमिटेड जैसे बड़े बैनर के साथ काम करके काफी अच्छा लगा. साथ ही शो के निर्माता के साथ काम करके भी मजा आया. वह कुछ भी थोपते नहीं. वे किरदारों में निखार लाने की कोशिश करते रहते हैं.
सीआइडी और अदालत में भी आपका किरदार काफी पसंद किया गया. उनके बारे में बताएं?
इन शोज के एपिसोड में काम करने का अनुभव बेहद शानदार था.  इस तरह के शोज आपको दर्शकों की नजरों में बनाये रखते हैं और लोकप्रियता और पहचान दिलाते हैं.
क्या आप रियलिटी शो में भी हिस्सा लेंगे कभी?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शैली किस तरह की होगी. मैं किसी डांस या म्यूजिक रियलिटी शो का हिस्सा नहीं बनूंगा क्योंकि मैं इसके लिए खुद को परफेक्ट नहीं मानता हूं.
आपने कई फिल्मों में भी काम किया है तो आगे कुछ और फिल्मों में आने की इच्छा?

बिल्कुल है जैसे जैसे मौके मिलेंगे. करता जाऊंगा. मैंने अब तक डोर, मोहब्बत और ये फासले जैसी फिल्मों में काम किया है. 

बा के रूप में स्त्री


फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक दीपिका पादुकोण से कहती हैं कि तू मेरा गुरूर है. अगर कोई और होता तो गर्दन काट देती और इतना कह कर वह सरौता दीपिका की उंगलियों पर चला देती हैं. सुप्रिया पाठक ने फिल्म में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है. जो कई वर्षों से अपने पति की मृत्यु के बाद गद्दी संभालती है. उनकी एक आवाज के बिना कोई पत्ता भी नहीं सरकता. संजय लीला की फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक के किरदार का खास विश्लेषण किया जाना चाहिए. चूंकि वह कोई आम किरदार नहीं है. जिस तरह सुप्रिया के किरदार की विभिन्नताओं और पहलूओं को फिल्म के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गयी है. दरअसल, एक ही फिल्म में एक ही किरदार औरत के व्यवहार की हर छवि को प्रस्तुत कर दी गयी है. किसी हिंदी फिल्म में किसी महिला किरदार की इतनी खूबसूरत तसवीर शायद ही इस रूप में गढ़ी गयी होगी. आप फिल्म में सुप्रिया के किरदार पर गौर करें. वह हंसी ठिठोली करती है. लेकिन उसमें आग है. हां, वह गुस्सैल भी है. लेकिन अपने परिवार को लेकर उतनी ही भावनात्मक भी. बेटी लीला जब राम के साथ एक रात बीता कर वापस आती है. दूसरी मां की तरह वह उस पर हाथ नहीं उठाती. उसे मार नहीं डालती. बल्कि अपनी लाज बचाने के लिए उसके व्याह रचाने की तैयारी करती है. जब वह बीमार पड़ती है. और लीला गद्दी संभालती है. वह एक अच्छी शासक की तरह लीला को हड़बड़ी में किसी भी कागज पर हस्ताक्षर करने से रोकती है. बहू की इज्जत लूटने वालों को वह पत्थर का जवाब पत्थर से देती है. अंत में वह अपने दुश्मन के बच्चे को गले लगा कर कहती है कि मुझे यहां सब बा कहते हैं. बच्चा जैसे ही गोद में जाता है. बा की ममता निकल कर सामने आ जाती है. स्पष्ट है कि संजय लीला भंसाली ने इस चरित को लिखने में मेरे ख्याल से सबसे ज्यादा वक्त लिया होगा.

वापसी की होड़


राहुल रॉय ने फिल्म आशिकी से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. आशिकी को खास लोकप्रियता मिली और साथ ही साथ इस फिल्म के दोनों कलाकारों को भी. लेकिन कुछ फिल्मों के बाद दोनों ही कलाकार यानि राहुल रॉय और अनु अग्रवाल सिल्वर स्क्रीन से गायब हो गये. राहुल ने बाद में बिग बॉस जैसे शो में हिस्सा लिया. अनु अग्रवाल इन दिनों स्प्रीचुअल कामों में व्यस्त हैं. अब फिर से राहुल रॉय ने कमबैक के बारे में योजना बनायी है. लेकिन क्या राहुल का यह कमबैक उनके लिए सार्थक साबित होगा. दरअसल, हिंदी सिनेमा में सुपरसितारों को भी कमबैक के मौके मिले. लेकिन उन्हें वह लोकप्रियता फिर से नहीं मिल पायी. हाल ही में रानी मुखर्जी ने फिल्म अइया से दोबारा कम बैक किया. लेकिन उन्हें वह लोकप्रियता नहीं मिली. वे नाकामयाब रहीं. वे लगातार कोशिशों में जुटी हैं कि उन्हें दोबारा काम मिले. कुछ इसी तरह शेखर सुमन, सोनू निगम जैसे कई कलाकारों ने कमबैक की कोशिश की है. वे चर्चित कलाकार भले ही सहयोगी कलाकार के रूप में पसंद किये गये हों. लेकिन उन्हें मुख्य किरदार निभाते दर्शक नहीं स्वीकार पाते. दरअसल, हिंदी सिनेमा की यह रीत है कि यहां मौके दोबारा नहीं मिलते. हिंदी सिनेमा ने दर्शकों को जिस तरह नये और फ्रेश फिल्मी और चेहरों की लत लगा दी. पुराने चेहरे चाह कर भी वह वापसी नहीं कर पाते. जिनकी वह उम्मीद करते हैं. हिंदी सिनेमा में यह भी रीत रही है कि यहां एक फिल्म से सबको आंखों पर बिठा लिया जाता है. अगले ही पल वे कहां खो जाते. किसी को पता नहीं होता. भाग्यश्री ने फिल्म मैंने प्यार किया से जो लोकप्रियता हासिल की. उसके बाद वे खो गयीं. उन्हें फिल्में भी कम मिली. जो मिली वह कामयाब न हो सकी.दरअसल, हकीकत यही है कि यह इंडस्ट्री पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाहती.

स्वतंत्र बहुरानियां


 टीसीरिज के मालिक भूषण कुमार की पत् नी दिव्या खोसला कुमार की फिल्म यारियां जल्द ही रिलीज होगी. दिव्या परिवार के साथ साथ टी सीरिज में भी अपने पति का हाथ बंटाती हैं. वे अपने काम से खुश हैं. उनसे बातचीत के अंदाज से ही आप इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि उन्हें किसी भी तरह की बंदिशों में बंध कर निर्णय लेने की जरूरत नहीं. उनके चेहरे पर वह तेजसाफ झलकाता है कि वे शादी के बाद भी किस तरह अपनी मर्जी से अपनी क्रियेटिविटी को आगे बढ़ा रही हैं. दिव्या ने बताया कि वह बचपन से एक्सट्रा केरिकुलर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रहती थीं और उनकी इच्छा थी कि शादी के बाद भी वह इसे जारी रखें. उनके पति ने उनका सहयोग किया और वह आगे बढ़ी. वह टी सीरिज की पहली निर्देशिका होंगी. चूंकि इससे पहले तक टी सीरिज ने केवल म्यूजिक के क्षेत्र में व निर्माण के क्षेत्र में कदम बढ़ाये हैं. पहली बार परिवार की बहू को काम करने का मौका मिल रहा है. दरअसल, गौर करें तो फिल्म इंडस्ट्री में अधिकतर परिवार ऐसे हैं, जो शादी के बाद भी अपनी बहूरानियों को अपनी मन मर्जी से अपनी जिंदगी जीने देते हैं. खुद दिव्या भी मानती हैं कि शादी के बाद अगर पति का साथ न मिले तो भले आप बड़े खानदान में हों. या फिर आम वर्ग में. आप कुछ नहीं कर सकतीं. हकीकत भी यही है. करीना ने कहा कि वह करवा चौथ नहीं करना चाहतीं क्योंकि वह भूखे रह कर प्यार का दिखावा नहीं करना चाहतीं. तो हंगामा बरपा. माना गया कि करीना संस्कृति का मजाक उड़ा रही हैं. लेकिन करीना की यह स्वतंत्रा जताती है कि न तो उनका परिवार और न ही उनके पति उन्हें जबरदस्ती किसी भी तरह की बंदिश में बांधना चाहते हैं. दरअसल, हर लड़की को अगर शादी के बाद  स्वतंत्रता ही ससुराल से तोहफे के रूप में मिल जाये तो वह हर आसमान  को छू सकती हैं.

सुपरस्टार्स के आदर्श


अजय देवगन ने फिल्म फूल और कांटे में दो गाड़ियों के बीच खड़े होकर जो स्टंट किया था. वह स्टंट अजय की अपने दिमाग की उपज नहीं. बल्कि वह वैन डैमने को कॉपी करते हैं. अक्षय कुमार को लोग खिलाड़ी कुमार कहते हैं. लेकिन खुद अक्षय कुमार निकोलस केज के स्टंट्स से काफी प्रभावित हैं और वे उन्हें कॉपी करने की भी कोशिश करते हैं. राजकपूर ने चार्ली चैप्लीन को इस हद तक अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया था कि अपनी फिल्मों में वह चार्ली के भारतीय संस्करण नजर आते थे. खुद चार्ली चैप्लीन ने स्वीकारा था कि भारत में उनका एक भाई है और वह कोई और नहीं राजकपूर ही हैं. किसी दौर में देव आनंद अपनी प्रेमिका सुरैया को खुश करने के लिए हॉलीवुड के अभिनेता ग्रेगोरी पैक की कॉपी किया करते थे. चूंकि सुरैया ग्रेगोरी पैक की फैन थी और निश्चित तौर पर कहीं न कहीं सुरैया इसलिए देव से प्रभावित भी हुई होंगी चूंकि उनकी शक्ल बहुत हद तक ग्रेगोरी से मिलती है. दरअसल, हकीकत यही है कि हम वास्तविक जिंदगी में भी उन्हें कॉपी करने की कोशिश करते हैं जो हमारे आदर्श होते हैं या फिर जिनसे हम प्रभावित होते हैं. हमारी कोशिश होती है कि हम उनकी तरह ही बने. हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार्स ने भी इससे अछूते नहीं. निस्संदेह वह भी जब सुपरस्टार नहीं होंगे. उस वक्त उन्होंने भी किसी न किसी की परिकल्पना की होगी. एक आम आदमी हमेशा खास व्यक्ति को ही अपना आदर्श बनाता है. किसी भी व्यक्ति को आदर्श बनाने से पहले उसकी कोशिश होती है कि वह अपने अंदर छुपे कुछ गुण को आंकता है और फिर वह धीरे धीरे उस व्यक्ति की तरफ प्रभावित होता जाता है, जिसके कुछ गुण उनसे जरूर मिले. यही वजह रही शायद, जो अक्षय और अजय आज भी अपने स्टंट खुद ही करते आये हैं. चूंकि उनके आदर्श निर्भिक हैं. इसलिए वे भी निर्भिक हैं.

ड्रामा क्वीन

सुचित्रा कृष्णमूर्ति ने ड्रामा क्वीन नामक एक किताब लिखी है. इस किताब में उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत से लेकर अपनी बीमारी, अपने जीवन के बारे में भी कई बातें की हैं. मुख्यत: फिल्मी दुनिया के बारे में उन्होंने कुछ ऐसी सच्चाईयों से सामना कराया है, जिनके बारे में लोग कम बातें करते हैं. कास्टिंग काउच. सुचित्रा ने इस बात का जिक्र किताब में किया है कि किस तरह उन्हें एजेंट का फोन आता था और फिल्म देने के नाम पर उनसे किस तरह की बातें की जाती थीं. सुचित्रा की यह किताब बधाई की पात्र है कि उन्होंने कम से कम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा होते हुए भी सच कहने की हिम्मत दिखाई है. वरना, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कई सच से कई लोग रूबरू तो होते हैं लेकिन उन्हें कहने की हिम्मत नहीं रखते. सुचित्रा की बातों से साफ स्पष्ट होता है कि जब वह शेखर कपूर की पत् नी थी. तब उन्हें इस तरह के आॅफर आया करते थे. तो उन लड़कियों का क्या? जिनकी इस इंडस्ट्री में कोई पहचान ही नहीं. दरअसल, यह हिंदी फिल्मों के लिए कोई नयी बात नहीं और यह सिलसिला आज से शुरू नहीं हुआ, बल्कि कई दौर से चला आ रहा है. किसी दौर में मीना कुमारी से एक निर्माता ने उनके इनकार करने पर इस तरह बदला लिया था, कि सीन में बार बार उन्हें थप्पड़ मारनेवाले सीन रखवाये, ताकि मीना को बार बार थप्पड़ पड़े. उस दौर में भी निर्माताओं की पसंद की अभिनेत्री किसी अन्य अभिनेत्री से रिप्लेस कर दी जाती थी. कास्टिंग काउच हिंदी सिनेमा का वह कड़वा सच है, जो बदला नहीं जा सकता. हकीकत यह है कि हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में ही नहीं वरन बाहरी दुनिया में भी लड़कियों को इस दृष्टिकोण से देखा जाता है कि उनकी जरूरत को लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करें. तरुण तेजपाल कांड इसका जीता जागता उदाहरण है. 

समर्पित दर्शक की किताब


 अविजित घोष ने 40 रिटेक नामक एक पुस्तक लिखी है. इस पुस्तक में उन्होंने उन 40 फिल्मों का वर्णन बेहद दिलचस्प तरीके से किया है, जिनके नाम तो हमने सुने हैं. लेकिन शायद हमने देखे नहीं और शायद देखें भी हो तो जिस अंदाज में अविजित हमें इन फिल्मों को दोबारा 40 रिटेक्स के माध्यम से दिखाते हैं, वह इन फिल्मों को और दिलचस्प बना देती है. अविजित की यह पुस्तक पढ़ कर इन फिल्मों को दोबारा देखना ठीक वैसा ही अनुभव है जैसे आप पहले थ्योरी का अध्ययन करें और फिर उसका प्रयोग़. अविजित अपनी पहली बात में ही इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि उनकी इन 40 चुनिंदा फिल्में और उनकी यह किताब सुपरसितारा विहीन है. मतलब खान के बिना. आज जहां फिल्मों की सफलता सुपरसितारों के कंधों पर है. अविजित की किताब की यही यूएसपी है कि उन्होंने वैसी फिल्मों का चुनाव किया है जो खास होकर भी लोगों तक पहुंच नहीं पायी. वे फिल्में किस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने फिल्म के लेखक, निर्देशक, कलाकारों के माध्यम से उसकी कहानी कहने की कोशिश की है. अविजित मानते हैं कि फिल्मों की बॉक्स आॅफिस सफलता फिल्म के स्तरीय होने और न होने का मानक नहीं है. मुंबई में बैठ कर सिनेमा पर ग्लॉसी किताबें लिखनेवाले लेखकों का मानना है कि मुंबई से बाहर सिनेमा पर जो किताबें लिखी जाती हैं वह पठनीय नहीं. मौलिक नहीं होती. लेकिन अविजित ने जिस तरह इमेल और टेलीफोनिक माध्यम से किताब के शोध की सारी वस्तुएं एकत्रित की हैं. यह कोई सिनेमा का जूझारू और समर्पित दर्शक ही कर सकता है. चूंकि अविजित ने किताब लिखने का जो अंदाज चुना है. वह दिलचस्प है. ऐसा लगता है कि आप किताब नहीं पढ़ रहे, बल्कि देख रहे हैं. अविजित की यह किताब एक महत्वपूर्ण किताब है, जिसे हर सिनेप्रेमियों को जरूर पढ़ना चाहिए.

बच्चों का कृष


बीते रविवार मेरे मोहल्ले में बच्चे आपस में बातें कर रहे थे कि तुने फिल्म कृष देखी क्या. वे कृष 3 के बारे में बातें कर रहे थे. एक से दूसरे से पूछा पहला गाना कौन सा था.और मानवर से डरे क्या???. लोकल ट्रेन में भी एक बच्चा अपनी मम्मी से कह रहा था कि मां कृष जैसा जैकेट खरीद दो न मां. फेसबुक पर भी इन दिनों कृष 3 की चर्चा है. बच्चों को लुभाने के लिए कृष ने गेम भी लांच किया है. कृष 3 200 करोड़ क्लब में शामिल होनेवाली है. और बच्चों की ये बातचीत दर्शाती है कि फिल्म उन्हें पसंद आयी है. ऋतिक रोशन ने अपनी बातचीत में कहा भी था कि वे फिल्म बच्चों के लिए बना रहे हैं. कृष 3 के 200 करोड़ क्लब में शामिल होने को लेकर बी टाउन में चर्चा जारी है. कुछ ट्रेड पंडितों का मानना है कि फिल्म के बढ़ी टिकट की वजह से फिल्म 200 करोड़ क्लब में शामिल हो रही है. निस्संदेह बाल दर्शकों को इससे कोई फर्क   नही पड़ता कि फिल्म 200 करोड़ क्लब की है या 100 करोड़ क्लब. उन्होंने कृष को स्वीकार किया है. इससे पहले फिल्म रा. वन ने भी बच्चों को लुभाने की कोशिश की थी. लेकिन जिस हद तक कृष 3 ने बच्चों को प्रभावित किया है. रा.वन नहीं कर पायी थी. वजह साफ है ऋतिक रोशन ने शुरुआती दौर यानी कोई मिल गया से ही साबित कर दिया था. या यूं कहें स्पष्ट कर दिया था कि फिल्म बच्चों के लिए है. पहले संस्करण में वे बच्चों से घिरे रहे. कृष में भी उन्होंने वह करतब दिखाये और कृष 3 में भी उन्होंने बच्चों को खुश किया. हां, यह सही है कि फिल्म कई फिल्मों की कॉपी है. दृश्य चुराये गये हैं. लेकिन भारतीय बाल दर्शकों को यह संतुष्ट करती है. वजह साफ है कि हिंदी फिल्में कम ही बनती हैं बच्चों के लिए और ऐेसे में अगर कोई एक भी फिल्म आती है तो बच्चे खुश हो जाते हैं. बाल दिवस में निश्चिततौर पर कृष के बाल दर्शकों में और बढ़ोतरी होगी

उगते सूरज पर प्रतिक्रिया


 इन दिनों हर मीडिया हाउस में सचिन के रिटायरमेंट को लेकर काफी आलेख, काफी चीजें दिखाई जा रही हैं. खासतौर से बॉलीवुड इसमें खास भूमिका निभा रहा है. बॉलीवुड की लगभग सभी तमाम बड़ी हस्तियां आमिर खान, शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन समेत हर कोई सचिन से जुड़ी अपनी बातें शेयर कर रहे हैं. यह अच्छी बात है कि ये बड़े नाम सचिन के बारे में बातें कर रहे हैं और दर्शकों को इससे रूबरू करा रहे हैं. लेकिन कई बार यही बॉलीवुड कई ऐसी हस्तियों के बारे में बातें करने से कतराते हैं. जिन्हें वे जानते करीब से हैं. लेकिन चूंकि वह ढले हुए सूरज होते हैं. सो, वे उनकी परवाह नहीं करते. हाल ही में मन्ना डे साहब का निधन हुआ. आशा भोंसले और लता जी उन शख्सियत में से एक हैं, जिन्होंने मन्ना डे के साथ काम किया है. जाहिर है, हर मीडिया हाउस चाहता था कि वे मन्ना डे से जुड़ी कुछ यादें शेयर करें. लेकिन अफसोस की बात यह है कि उस दिन आशाजी और लताजी ने अपना फोन स्वीच आॅफ रखा. हां, यह सच है कि कई बार हम शोक की मुद्रा में होते हैं और कुछ भी बातें करने की स्थिति में नहीं होते. लेकिन वही बात जब किसी बड़े स्टार्स या स्पोटर््स पर्सन की आती है तो सभी कैसे अपनी अग्रणीय भूमिका निभाने लगते हैं. प्राण की मौत पर मनोज कुमार शामिल नहीं हो पाये. लोगों ने उनका माखौल बनाया. बाद में जानकारी मिली कि मनोज कुमार प्राण की मौत की खबर सुन कर सदमे में थे और उनकी तबियत खराब थी. लेकिन यह अपवाद है. दरअसल, बॉलीवुड में इन दिनों यह दौर है कि उगते सूरज के बारे में बातें सभी करना चाहते हैं. डूबते सूरज या ढल चुके सूरज के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. बॉलीवुड की दुनिया की यही असली पहचान है. जो इससे वाकिफ है. उसे संतुष्टि है. जो नहीं है वह बस बॉलीवुड को दोष देता रहेगा.  

बड़े परदे पर प्रेम कविता


बांबे टॉकीज का निर्माण कर चुकीं आशी दुआ की इच्छा है कि अब वह अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी पर फिल्म बनायें. उन्होंने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाने के लिए करीना कपूर और फरहान अख्तर से बात की है. फरहान ने भाग मिल्खा भाग से खुद को साबित किया है और अब वह अगर इस फिल्म का चयन भी करते हैं तो निश्चिततौर पर वे इसमें बखूबी निभायेंगे. आशी दुआ ने सिनेमा के 100 साल पूरे होने के अवसर पर बांबे टॉकीज का निर्माण किया. यह बिल्कुल अलग सी सोच थी. और इस बार भी वे एक अलग सोच लेकर फिल्म बनाने के बारे में सोच रही हैं. चूंकि हिंदी सिनेमा में वास्तविक प्रेम कहानियों की जब भी बात होती है. ज्यादातर फिल्में रोमियो जूलियट या उनके किरदार से प्रभावित या फिर अंगरेजी उपन्यास के हिंदी रूपांतर पात्रों पर आधारित बनाने की कोशिश की जाती रही है. जबकि हिंदी सिनेमा खुद में ही कई प्रेम कहानियों से समृद्ध हैं. साहिर भी कवि थे. अमृता भी. दोनों की प्रेम कहानी निश्चित तौर पर सिनेमा के रूप में भी एक कविता के रूप में ही परदे पर नजर आयेगी. बशर्ते कलाकारों का चयन और निर्देशक के चयन में सावधानी बरती जाये. आशी बधाई की पात्र हैं कि वह लीक से हट कर भी फिल्मों के नॉस्टोलोजिक फैक्टर को लेकर फिल्में बनाने के बारे में सोच रखती हैं और उसे लेकर आगे भी बढ़ रही हैं. अमृता प्रीतम को लोग कवियित्री के रूप में जानते हैं. साहिर को भी. इस प्रेम कहानी के रूप में हिंदी सिनेमा को एक अदभुत प्रेम कहानी का सार मिलेगा. दर्शक एक नयी प्रेम कहानी देख पायेंगे. निश्चित तौर पर कई नयी बातें उभर कर सामने आयेंगी. और वह बेहद दिलचस्प होगी. उनकी प्रेम कहानी को लेकर सभी उत्साहित हैं. अब देखना यह है कि रुपहले परदे पर वह किसी रूप में प्रस्तुत होती है.

प्रॉप्स सिर्फ प्रॉप्स न रहा


आमिर खान इन दिनों हर जगह धूम 3 के अवतार में ही नजर आ रहे हैं. सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रही है उनकी टोपी. आमिर ने इस टोपी को फिल्म की शूटिंग के दौरान ही फिल्म के मेकर्स से खरीद लिया था. दरअसल, आमिर ही नहीं इन दिनों बॉलीवुड के सितारों ने फिल्मी प्रोमोशन को इस कदर अपनी निजी जिंदगी में भी हावी कर लिया है या यूं कहें वे उन चीजों से इस कदर जुड़ जाते हैं कि वे फिल्मों के प्रॉप्स का इस्तेमाल वास्तविकता में भी करने लगते हैं. कुछ स्टार्स इन सबका इस्तेमाल भी प्रोमोशन के लिए करते हैं. कुछ स्टार्स के लिए यह शौक भी है.

 आमिर खान की धूम 3 की टोपी
इन दिनों आमिर खान लगभग हर समारोह में व हर सार्वजनिक स्थानों पर अपने धूम 3 के लुक में ही नजर आ रहे हैं. खासतौर से जिस तरह फिल्म के ट्रेलर और पोस्टर में आमिर की टोपी को तवज्जो दी गयी है. आमिर इन दिनों टोपी को जान बूझ कर काफी हाइलाइट कर रहे हैं. जहां न भी जरूरत हो उस समारोह में भी वह उसी टोपी में नजर आते हैं. इसका एकमात्र कारण यह है कि इससे उन्हें अधिक लोकप्रियता मिलती है. साथ ही यह उनका फैशन और स्टाइल स्टेटमेंट भी बन जाता है.  आमिर इस फिल्म में कई तरह की टोपियों में नजर आयेंगे और उन्हें यह स्टाइल इतना पसंद आया कि उन्होंने इन टोपियों की पूरी सेट ही खरीद ली है.

रणवीर सिंह की लुटेरा बाइक
रणवीर सिंह को फिल्म लुटेरा की पुराने अंदाज की एंटिक बाइक से इस कदर प्यार हो गया कि उन्होंने फिल्म के निर्माताओं से जिद्द करकर वह बाइक अपने पास रख ली. फिल्म लुटेरा की रिलीज  के दौरान रणवीर सिंह हर जगह उसी बाइक से आते जाते थे. चूंकि फिल्म पीरियड फिल्म थी तो उस बाइक को भी खास अंदाज में तैयार किया गया था. सो, रणवीर को उस बाइक से बेहद प्यार हो गया. उन्होंने वह बाइक अपने घर पर शौक से सजा कर रखी है.
दीपिका का ये जवानी है दीवानी 
दीपिका ने फिल्म ये जवानी है दीवानी में दीपिका ने नैना का किरदार निभाया है. फिल्म में नैना चश्मे में नजर आयी है. दीपिका को वे चश्मे इतने पसंद आये थे कि उन्होंने करन जौहर से उसकी मांग की. करन जौहर पहले तो इस बात के लिए तैयार नहीं थे. चूंकि उन्हें अपनी फिल्मों के प्रॉप्स किसी को भी देना पसंद नहीं. लेकिन उन्होंने बाद में दीपिका को वह गिफ्ट कर दिया. दीपिका उसे पाकर इस कदर खुश थी कि कई दिनों तक वह कई समारोह में उसे लगा कर शामिल होती नजर आयीं.

अक्षय कुमार का जूता
अक्षय कुमार ने फिल्म खिलाड़ी 786 में जो जूता पहन रखा है. वह आम जूता नहीं. यूं भी अक्षय कुमार के नाप के जूते जल्दी नहीं मिलते. अक्षय उन्हें खासतौर से तैयार करवाते हैं. िखलाड़ी 786 के एक गाने के लिए उन्होंने एक खास जूता तैयार करवाया था और वह बॉलीवुड का सबसे भारी जूता था, जिसे फिल्म के प्रोमोशन के दौरान खूब इस्तेमाल किया गया और बाद में अक्षय कुमार ने उन जूतों को अपने पास ही रख लिया.
जॉन को मिली बाइक
जॉन अब्राह्म बाइक के शौकीन हैं और जिन फिल्मों में वह काम करते हैं. अगर उन फिल्मों में उन्हें किसी अलग अंदाज की बाइक चलाने का मौका मिलता है. वे उन्हें जरूर खरीद लेते हैं.इस बार उन्हें शूटआउट एट वडाला के निर्देशक संजय गुप्ता ने फिल्म में इस्तेमाल की गयी बाइक जो जॉन को काफी पसंद आयी थी. उन्हें तोहफे के रूप में दे दी.
 कट्रीना का गिटार
कट्रीना कैफ ने फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन में जो गिटार बजाया है. वह कट्रीना को बेहद प्रिय था. तो फिल्म के निर्देशक अली जफर ने कट्रीना को वह बतौर गिफ्ट के रूप में दे दिया. उस फिल्म की रिलीज के दौरान भी कट्रीना जब भी धुनकी अवतार में नजर आती थीं. वे उस गिटार के साथ ही नजर आती थीं.

 शाहरुख खान, काजोल, और रानी मुखर्जी ने फिल्म कुछ कुछ होता है में इस्तेमाल किये गये फ्रेंडशीप बैंड्स को बतौर याद के रूप में अपने पास संजो कर रखा है.
ेुसंजय लीला भंसाली ने फिल्म गुजारिश में इस्तेमाल की गयी वह कुर्सी जिस पर ऋतिक बैठते हैं. उससे संजय को इस कदर लगाव है कि उसे वह अपने आॅफिस में सजा कर रखते हैं.
प्रकाश झा ने अमिताभ बच्चन को फिल्म आरक्षण और सत्याग्रह के बाद कई शॉल गिफ्ट किये. फिल्म में वह प्रॉप्स के रूप में इस्तेमाल हुए हैं.
विद्या बालन ने फिल्म घनचक्कर में प्रॉप्स के रूप में अपने घर की कई चीजों का इस्तेमाल किया है. अमिताभ भी शॉल का इस्तेमाल कई बार अपनी फिल्मों में प्रॉप्स के लिए करते आये हैं. फिल्म मशाल में अमिताभ ने अपने ही कपड़े पहने हैं. चूंकि उस दौर में अच्छे डिजाइनर नहीं हुआ करते थे. 

वेलकम बैक में टष्ट्वेंटी टष्ट्वेंटी


फिल्म वेलकम बैक के आयटम नंबर को लेकर काफी चर्चा हो रही है. कुछ दिनों पहले गाने की शूटिंग पूरी हुई. अनुप्रिया अनंत डायरेक्टली सेट से बता रही हैं कि कैसे हुई इस गाने की शूटिंग
लीड स्टोरी
ेसेट से
फिल्म : वेलकम बैक
समय : शाम के 8 बजे
जगह : चांदीवली स्टूडियो

चांदीवली स्टूडियो के सामने लोगों की भीड़ है. भीड़ की वजह है कि वहां उन्हें उनके पसंदीदा अभिनेता जॉन अब्राह्म की जीप खड़ी नजर आयी है. उन्हें पता है कि जॉन अंदर हैं और वे उसका इंतजार करने के लिए तैयार हैं. चांदीवली स्टूडियो में पहुंचते ही आपको एहसास हो जाता है कि यहां किसी आयटम गाने की शूटिंग चल रही है. अंदर एंट्री लेते ही सीधी नजर गणेश आचार्य पर जाती है. गणेश आचार्य इन दिनों फिल्मों के आयटम नंबर के पसंदीदा कोरियोग्राफर बन चुके हैं. वे अपने क्रू से नाराज हैं. नाराज इस वजह से कि गाने की कंटीन्यूटी में गलतियां हो रही हैं. हम दर्शकों के लिए किसी भी गाने या फिल्म की बुराई करना कितना आसान होता है. लेकिन गाने की शूटिंग देखने के बाद ईमानदारी से कहूं तो यह बात समझ आती है कि एक निर्देशक गाने की शूटिंग में भी कितनी मेहनत करते हैं. गणेश नाराज हैं. चूंकि अब तक एक गाने का पहला शॉट भी ओके नहीं हो पाया है. संभावना शेठ समेत सभी लड़कियां गाने की तैयारियां कर रही हैं. पूरे सेट को तैयार किया गया है. गाने में प्राय: जो धुआं धुआं सा नजर आता है. अक्सर शायद लोगों के जेहन में ये बातें आती होंगी कि आखिर उस धुएं की गरमाहट के बीच कैसे कलाकार परफॉर्म कर पाते होंगे. उनके लिए यह जानकारी है कि वह धुआं धुआं सा सिर्फ नजर ही आता है. उस धुएं में जो स्ट्रॉबेरी फ्लेवर की महक होती है. शायद यह फ्लेवर कलाकारों की सहुलियत को देखते हुए ही दी जाती है. जॉन लाल रंग के लिबास में हैं. हम उनसे उनके वैनिटी में मिलने जाते हैं. जॉन बिल्कुल अनपौचारिक बातें करते हैं. कलाकारों से उनके वैनिटी में बात करने का अनुभव भी अलग होता है. चूंकि कलाकारों की वैनिटी उनका दूसरा घर है. सो, वे वहां बड़े इतमिनान से बातें करते हैं. जॉन भी अपने बिंदास अंदाज में मिलते हैं, उनके चेहरे से खुशी साफ झलक रही है कि उनकी फिल्म मद्रास कैफे ने अच्छी सफलता हासिल की है. जॉन मद्रास कैफे के साथ साथ वेलकम बैक पर भी खूब बातें करते हैं. अब उन्हें सामने से बुलावा आया है. शॉट की तैयारी हो चुकी है. जॉन हमें भी वहां आने का न्योता देते हैं. अनीस बज्मी, फिल्म के निर्देशक के चेहरे पर तनाव है. तनाव की वजह है कि उन्हें गाना उस दिन शूट करना है और गाने में एक साथ कई चेहरे हैं. अब तक एक भी शॉट पूरा नहीं हुआ और रात के 9 बज चुके हैं. गणेश भी टेंशन में हैं. वे कमांड देते हैं और अनु मलिक का गीत टष्ट्वेंटी टष्ट्वेंटी के बोल वहां सुनाई देने लगते हैं. क्रू में खड़े सभी लोग पीछे पूरे अनुशासन से खड़े हैं. फिल्म कोई भी हो. अगर आप उसकी शूटिंग देखने जायें तो इस बात का अनुमान आप आसानी से लगा सकते हैं कि किसी फिल्म का निर्माण अनुशासन से ही होता है. वहां हर व्यक्ति छोटी सी छोटी भूमिका निभाने वाला व्यक्ति भी कितना सजग होता है और उसे यह अच्छी तरह पता है कि उसे क्या और कब करना है. लाइटिंग की रोशनी से गरमाहट भी उन्हें तंग नहीं करती. जो कुछ भारी चीजें लेकर भी सीन में खड़े हैं. वे तब तक खड़े रहेंगे. जब तक उन्हें कट न कहा जाये. अनु मलिक से हमारी मुलाकात होती है. अनु मलिक सातवें आसमान पर हैं. आखिर उन्हें कई अरसे बाद किसी फिल्म में तीन गानों पर काम करने का मौका मिला है. वे हमसे अपना अनुभव शेयर करते हैं. गाने की शूटिंग जारी है... अनु मलिक को पूरा भरोसा है कि गाना सुपरहिट होगा...

कृष 3 से उम्मीद


आज कृष 3 रिलीज हो रही है. लंबे अरसे से इस फिल्म का इंतजार दर्शकों को भी था. और फिल्म के मेकर्स राकेश रोशन और ऋतिक रोशन ने इस फिल्म को लेकर काफी संभावनाएं जताई हैं. कृष की शुरुआत कोई मिल गया से हुई थी. उस वक्त कोई मिल गया उन फिल्मों में से एक थी, जब उस दौर में ऐसी फिल्में नहीं बन रही थीं. लेकिन आज जब कृष 3 लोगों के सामने होगा. कृष 3 के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. ऋतिक रोशन और उनके पिता राकेश रोशन ने कई बार सोचा कि उन्हें यह फिल्म आगे बढ़ानी चाहिए या नहीं. कई बार राकेश ने ऋतिक से कहा कि नहीं बनाते हैं फिल्म. निश्चित तौर पर राकेश इस बात से वाकिफ हैं कि उनके सामने कितनी चुनौतियां हैं. वे जिस किस्म की फिल्में बना रहे हैं. वैसी फिल्मों को हॉलीवुड की कॉपी न बनने से बचाना कितना कठिन है. ऋतिक ने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है. उन्होंने स्वस्थ न होते हुए भी फिल्म की शूटिंग पूरी की. कई ऐसे दृश्य फिल्माये, जिन्हें उन्हें डॉक्टर ने फिल्माने से मना किया था. लेकिन ऋतिक की ये सारी मेहनत. उनकी पापा की आशाएं जाहिर है, किसी दर्शक को उससे कोई मतलब भी नहीं होता और न ही उन्हें फर्क पड़ता है. महत्वपूर्ण यही है कि फिल्म दर्शकों को पसंद आयेगी या नहीं आयेगी. अगर कृष 3 को कामयाबी मिलती है तो एक बार फिर से राकेश रोशन खुद को सफल निर्देशक की श्रेणी में शामिल कर लेंगे. ऋतिक ने कृष 3 से पहले अग्निपथ से कामयाबी का स्वाद चखा है. उनके लिए भी यह बड़ी कामयाबी होगी. लेकिन अगर फिल्म को विफलता मिलती है तो राकेश शायद ही फिर से इस जॉनर की फिल्में बनाने के बारे में सोचेंगे. दरअसल हकीकत यह है कि कई बार जब सिंहासन पर आपका एकाधिकार हो जाये, लेकिन उस एकाधिकार की कोई परिभाषा न हो तो सिंहासन छोड़ने में ही भलाई है.

टिवटर के कीड़े मकोड़े


कमाल आर खान ने अनुष्का शर्मा के बारे में टिष्ट्वटर पर ऐसी भद्दे बातें लिखी हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद इंडस्ट्री को इस बात पर जरूर कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए, लेकिन इंडस्ट्री चुप है. अनुष्का ने कमाल को जवाब दिया है. इससे पहले भी कमाल आर खान कई बार इंडस्ट्री की अभिनेत्रियों के बारे में भद्दी बातें बोलते नजर आये हैं. लेकिन कमाल आर खान इस बात का फायदा उठाते हैं कि उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी है और वह चाहे जो भी कह सकते हैं. दरअसल, वाकई सोशल नेटवर्किग साइट एक ऐसा जरिया बन चुका है. जहां कोई भी अपनी बातें रख सकता है. कोई भी किसी को भी जानबूझ कर बदनाम कर सकता है. हाल ही में रणवीर सिंह को भी बदनाम करने की कोशिश की गयी. कमाल आर खान जैसे लोगों के जेहन में तो यही बातें होती हैं कि कोई भी अभिनेत्री अगर अच्छा काम कर रही हैं. मतलब वह चरित्रहीन है. साहित्य जगत में भी जब भी बातें होती हैं तो दोष स्त्री पर ही मढ़ दिया जाता है. अनुष्का ही नहीं किसी भी अभिनेत्री के बारे में इस तरह की अश्लील बातें कैसे नेटवर्किंग साइट पर लिखी जा सकती है. लेकिन बॉलीवुड इस पर खामोश रहता है. लोगों को लगता है कि ये उसकी पागलपंती है. उन्हें करने दें. लेकिन अगर अब भी कमाल आर खान जैसे लोगों को बॉलीवुड पालना बंद नहीं करेगा तो यूं ही बिना किसी वजह के लोगों के चरित्र पर अंगुली उठाता ही रहेगा. अनुष्का शर्मा इसकी पहली शिकार नहीं हैं. बॉलीवुड फिल्में देखने वाले दर्शक वैसे भी आज भी कलाकारों के काम से ज्यादा उनके चरित्र को तवज्जो देते हैं. अगर व्यक्ति साफ छवि का है. तभी उन्हें वह स्वीकार करते हैं. टिष्ट्वटर के ऐसे कीड़े मकोड़ों का सफाया होना जरूरी है ताकि वह गंध न मचा सकें. लेकिन इसके लिए कदम भी इंडस्ट्री के लोगों द्वारा ही लिया जाना चाहिए, तभी कोई ठोस नतीजे निकलेंगे.

दो दिग्गज कलाकार एक फिल्म


विद्या बालन और अमिताभ जल्द ही सुजोय घोष की फिल्म में प्रेमी प्रेमिका के रूप में नजर आयेंगे. इस फिल्म में अमिताभ टीचर की भूमिका में होंगे और विद्या बालन उनकी पड़ोसी का किरदार निभायेंगी. इससे पहले विद्या बालन और अमिताभ ने फिल्म पा में काम किया था. इस फिल्म में विद्या ने अमिताभ की मां का किरदार निभाया था. अमिताभ इस फिल्म को अपने करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक मानते हैं और वे मानते हैं कि हिंदी सिनेमा में विद्या बालन उन अभिनेत्रियों में से एक हैं, जो हर तरह के किरदार निभाना पसंद करती हैं. अमिताभ ने इससे पहले भी चीनी कम में तब्बू के साथ ढलती उम्र के प्रेमी का किरदार निभाया था. फिल्म सफल रही थी. दरअसल, हकीकत यही है कि अमिताभ बच्चन वर्तमान में हिंदी सिनेमा के एकमात्र युवा हैं. जी हां, सही सुना आपने युवा. चूंकि अमिताभ बच्चन पर आज भी उनकी उम्र हावी नहीं. वे इस तरह के किरदारों में वास्तविक लगते हैं और जब वह ऐसे किरदार निभाते हैं तो वह ओछा नहीं लगता. हाल ही में अमिताभ ने जन्मदिन पर अपने घर पर मीडिया के लोगों को बुलाया था. वहां जब उनसे पूछा गया कि वह क्या दुआ मांगते हैं अपने जन्मदिन पर. उन्होंने तुरंत कहा कि बस प्यार मिलता रहे और आप जैसे लोग मुझे गले लगा लें. और उन्होंने सबको गले लगाया. उनकी शरारत भरी बच्चों की मुस्कान जताती है कि वे आज भी दिल से बच्चे हैं. वे जिस तरह अपनी जीवनशैली जी रहे हैं. निरंतर सबसे ज्यादा देर तक काम करने वाले लोगों में से अमिताभ का ही नाम आता है. वे व्यस्त हैं. लेकिन तंदरुस्त न रहते हुए भी तंदरुस्त हैं. ऐसे में सुजोय ने अगर दो दिग्गज कलाकारों को लेकर फिल्म बनाने की सोची है तो निश्चित तौर में फिल्म अलग होगी और खास होगी. इंतजार है सुजोय की इस नयी पेशकश का.

शुरुआत के दो साल


शुरुआत...आमतौर पर हिंदी अखबारों में इस शब्द को लेकर लोग काफी संदेह में रहते हैं कि शुरुआत में र में छोटी मात्रा होगी या बड़ी. मुझे भी शुरुआती दौर में काफी परेशानी होती थी. मैंने इसे इस ट्रिक से याद किया कि शुुरुआत हमेशा छोटी होती है. बाद में आपकी मेहनत और लगन से वह शुरुआत आकार लेती है. कुछ ऐसी ही शुरुआत आज की ही तारीख में वर्ष  2011 में मैंने इस छोटे से स्तंभ चित्रपट से शुरू की थी. यह छोटा सा सफर आज दो साल का हो गया. पहली बार जब मुझे कहा गया था कि इस स्तंभ को नियमित रूप देना है. उस वक्त मैं नर्वस थी. चूंकि अभी मैं सिनेमा की दुनिया में नयी हूं. सिर्फ चार साल ही तो हुए हैं. लेकिन शुक्रगुजार हूं प्रभात खबर के वरिष्ठों का, जिन्होंने मेरा प्रोत्साहन बढ़ाया और मुझे लिखने के लिए निरंतर प्रेरित करते रहे. जानती हूं कि उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतरी. लेकिन सीखने के क्रम में ही मुझे उन्होंने इस छोटे से कोने में मेरी फिल्मी दुनिया से जुड़े छोटे अनुभव को ही समटेने और फिर उनमें रंग भरने का एक मौका तो दिया है. फेसबुक के माध्यम से जब चित्रपट पढ़ कर लोग अच्छी या बुरी कोई भी प्रतिक्रिया देते हैं तो सबसे ज्यादा सुकून होता है कि लिखने का मकसद तो पूरा हो रहा. यह संयोग है कि इस स्तंभ में मेरा पहला आलेख झारखंड के इम्तियाज अली पर ही आधारित था और आज दो साल पूरे होने पर मैं इम्तियाज से मिली तो उनसे इस बात का जिक्र किया. तो उन्होंने अच्छी प्रतिक्रिया दी. इन दो सालों में सिनेमा 100 सालों में प्रवेश कर चुका है. नियमित लिखने के बावजूद अब भी लगता है कि सिनेमा के 100 वें क्या पहले हिस्से में भी कदम नहीं रख पायी हूं. मेरी कोशिश होगी कि इस स्तंभ के माध्यम से आपको फिल्मी दुनिया के रहस्य से जिस तरह खुद रूबरू होती रहती हूं. रूबरू कराती रहूं. आप सभी पाठकों का आभार.

लव कल आजकल


इन दिनों अभिजीत घोष की किताब 40 रिटेक्स पढ़ रही हूं. इस किताब में फिल्म तीन देवियां की चर्चा है. फिल्म के बारे में किताब में पढ़ने के ज्यादा दिलचस्पी हुई और यूटयूब पर दोबारा यह फिल्म देखी. इस फिल्म की कुछ खासियत है, जो शायद पहली बार मैंने देखी थी. तब उन बातों पर गौर नहीं किया था. शायद रविवार को  शाम 4 बजे दूरदर्शन पर प्रसारित होनेवाली फिल्मों में तीन देवियां भी थी. जब इसे पहली बार देखा था. फिल्म में जितने भी किरदार हैं. उन सारे किरदारों का नाम उनके वास्तविक नामों पर है. देव आनंद देव दत्त का किरदार निभा रहे हैं. कल्पना कल्पना नाम के किरदार में हैं. सिम्मी गेरेवाल सिम्मी हैं और नंदा नंदा है. यहां तक की आइएस जौहर भी इसी नाम के किरदार में हैं. फिल्म की शुरुआत में मनचले लड़कों की फितरत पर कुछ दृश्य हैं. उस दौर में देव आनंद उसी अंदाज में हैं. जो आज के दौर में रणबीर कपूर हैं. जी हां, रणबीर कपूर की फिल्म बचना ऐ हसीनों देखें और तीन देवियां तो उनमें कई समानताएं नजर आयेंगी. तीन देवियां में भले ही देव आनंद शुरुआत से  ही नंदा के प्रति वफादार थे. लेकिन वे कल्पना और सिम्मी के साथ भी दोस्ताना व्यवहार रखते थे. फिल्म बचना ऐ हसीनो में भी रणबीर कपूर लड़कियों से फ्लर्ट करने में उस्ताद रहते हैं. दरअसल, हिंदी फिल्मों में नौजवान युवाओं की कहानी में कई बार इन पहलुओं को दर्शाते देखा गया है. उस दौर में भी  चीजें वही थीं. जो आज हैं. स्पष्ट है कि लड़के तो केवल अपनी खुशी के लिए लड़कियों के करीब जाते हैं लेकिन बाद में लड़कियां इस कदर प्यार में पड़ जाती हैं कि उनसे दूर नहीं हो पाती. फिल्म लव आजकल में प्यार की इस फितरत को दर्शाने की कोशिश की जाती रही है. हर दौर में ऐसी कहानियां बनी हैं और बनती रहेंगी. शायद प्यार को देखने का यह नजरिया कभी नहीं बदला.

किरदार और बेड़ियां


 तिग्मांशु धूलिया की लंबे अरसे से चाहत है कि वह समरू पर फिल्म बनायें. लेकिन उनकी यह चाहत अब तक पूरी नहीं हो पा रही है. वजह यह है कि तिग्मांशु की यह नायिका जिस तरह के किरदार में होगी. समरू बेगम शादीशुदा होने के बावजूद बिंदास जिंदगी जीती हैं. उनके एक्स्ट्रा मैरेटियल अफेयर होते हैं. यही वजह है कि हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अभिनेत्रियां इन किरदारों को निभाने से इनकार कर रही हैं. रानी मुखर्जी, काजोल, ऐश्वर्य राय और तब्बू से इन किरदारों के लिए बात हुई थी. अभिनेत्रियों का मानना है कि जिस तरह का किरदार बेगम का था. दर्शक शायद उस रूप में इन अभिनेत्रियों को पसद नहीं करेंगे. चूंकि इससे उनकी इमेज पर असर होगा. दरअसल, हिंदी सिनेमा की यह विडंबना है कि इस इंडस्ट्री में अब भी वास्तविक छवि का अनुमान निभाये गये किरदार से लगा लिया जाता है. हमें लगता है कि जो किरदार निभाये गये हों, वास्तविकता में वह व्यक्ति उतना ही अच्छा हो या उतना ही बुरा. किकु उर्फ पलक जो इन दिनों काफी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. उनकी पत् नी ने हाल ही में स्टार प्लस के एक वीडियो में बताया है कि उनके पति घर पर अधिक वक्त नहीं देते. साफ जाहिर होता है कि किकु दुनिया के लोगों का मनोरंजन कर रहे. लेकिन अपनी पत् नी का ही नहीं. लेकिन हम उन्हें उसी रूप में स्वीकारना चाहते.जिस रूप में हमने उन्हें परदे पर देखा है. लेकिन एक नजरिया यह भी है कि विद्या बालन ने सिल्क की जो भूमिका निभायी. वे उस किरदार में बंध कर नहीं रहीं. फिर भी रानी मुखर्जी जैसी प्रभावशाली अभिनेत्री को इस बात का डर क्यों हैं. रानी चाहें तो वह इस फिल्म से असल रूप में वापसी कर सकती हैं. फिर भी उन्होंने ये बेड़ियां क्यों लगा रखी है. क्या वाकई 100 साल के हिंदी सिनेमा में महिलाओं को लेकर नजरिये में बदलाव हुआ है. यह सवाल मन में जरूर आता है.

इंगलिश विंगलिश दोबारा


पूनम ढिल्लन सोनी टीवी के शो में दोबारा वापसी कर रही हैं. यह शो फिल्म इंगलिश विंगलिश पर आधारित है. पूनम इस फिल्म में जो किरदार निभाने जा रही हैं. वह किरदार श्रीदेवी ने बखूबी परदे पर दर्शाया. निश्चित तौर पर अगर सोनी टीवी ने इसे धारावाहिक का रूप दिया है तो उन्होंने सर्वेक्षण किया होगा. रिसर्च किया होगा और उन्होंने महसूस किया होगा कि इस तरह की कहानियां धारावाहिक के माध्यम से कही जानी चाहिए. हिंदी टेलीविजन ने महिलाओं को हमेशा एक बड़ी पहचान दी है. हिंदी सिनेमा में फिल्मों के सीक्वल बनाने का प्रचलन रहा है और इस तर्ज पर अब धारावाहिक भी हैं. लेकिन सोनी टीवी के इस सीक्वल की प्रशंसा की जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने एक अच्छा और आवश्यक विषय चुना है. चूंकि यह हकीकत है कि अब भी हमारे आस पास ऐसी कई महिलाएं ही नहीं पुुरुष भी हंै, जिन्हें सिर्फ इस बात से समाज के बीच उपहास का कारण बनना पड़ता है, चूंकि उन्हें अंगरेजी नहीं आती. अंगरेजी न जाने कैसे हिंदी सिनेमा की दुनिया में इस तरह हावी हो चुकी है कि अब तो फिल्मों के पोस्टर्स केवल अंगरेजी में ही नजर आते हैं. फिल्मी पार्टियां भी अंगरेजी में ही रखी जाती है और अंगेरजीदां लोगों के लिए ही रखी जाती है. ऐसे में वे महिलाएं जो बिल्कुल अंगरेजी नहीं जानती, वे कई बार खुद को अकेला महसूस करती हैं. मैंने कई बार देखा है. जो अंगरेजी साहित्य के लेखक हैं या शख्सियत वे हिंदी भाषी साहित्य के लेखकों से अच्छी तरह से बात नहीं करते. कई हिंदी भाषी साहित्य लिखने वाले भी केवल लेखनी में भले हिंदी भाषी हों. वे सार्वजनिक रूप से किसी समारोह में शामिल होने पर अंगरेजी में ही बातें करते हैं. ऐसे में धारावाहिक के रूप में और भी कई पहलुएं नजर आयेंगी. टीवी की पहुंच फिल्मों से अधिक है तो निश्चिततौर पर इसका असर भी व्यापक होगा.

20131114

विद्या ही पहली और आखिरी पसंद : दीया मिर्जा



दीया मिर्जा ने अभिनय के साथ साथ अब फिल्म निर्माण में भी अपने कदम बढ़ा लिये हैं. यह सच है कि उन्हें अपनी पहली फिल्म लव ब्रेकअप जिंदगी से सफलता नहीं मिली. लेकिन वह अपनी दूसरी फिल्म बॉबी जासूस को लेकर काफी उत्साहित हैं. इस उत्साह की सबसे खास वजह यह है कि फिल्म में विद्या बालन मुख्य किरदार निभा रही हैं.

दीया, बॉबी जासूस का आइडिया जेहन में कैसे आया.
यह फिल्म मेरी फिल्म की लेखिका संयुक्ता चावला और फिल्म के निर्देशक समीर शेख  लेकर आये थे. उनके पास एक लाइन की कहानी थी और फिर उस वन लाइनर को हमने पूरी फिल्म का रूप दे दिया.
विद्या बालन को चुनने की खास वजह?
हां, विद्या बालन से मैं उनकी पहली फिल्म से जुड़ी हूं. परिणीता से लेकर लगे रहो मुन्नाभाई जैसी फिल्मों तक मैंने उनके साथ काम किया है. वे उन तमाम अभिनेत्रियों से अलग हैं. जो सफलता पाने के बाद दोस्तों को भूल जाती हैं. मैंने विद्या के लिए हर अवार्ड फंक् शन में तालियां बजायी हैं. मैं जानती हूं कि वह कितनी शानदार अभिनेत्री हैं. हिंदी सिनेमा में जब भी महिला प्रधान फिल्म की बात आयेगी. विद्या का नाम सबसे पहले आयेगा और खास बात यह है कि मैं लकी हूं कि विद्या ने मेरी स्क्रिप्ट को दो दिनों में हां कहा. जबकि वह हर बार कम से कम किसी भी स्क्रिप्ट को हां कहने में 6 महीने लेती है. यह मेरी खुशनसीबी है कि मैं अपनी दूसरी ही फिल्म में हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के साथ काम कर रही हूं.
हिंदी फिल्मों में महिला जासूस को लेकर फिल्म नामात्र बनी हैं. ऐसे में बॉबी जासूस किस तरह अलग होगी.
बॉबी जासूस की कहानी एक ऐसी लड़की की कहानी है. जो डिटेक्टीव बनने का सपना देखती है. और वह सारे काम करती है जो एक डिटेक्टीव करते हैं. लेकिन हां, उसके सिर्फ कपड़ डिटेक्टीव की तरह नहीं हैं. हॉलीवुड में ऐसी फिल्में खूब बनी है. हमने अपनी इस फिल्म में खास ख्याल रखा है कि इसमें पूरा इंडियन टच हो. ताकि कोई ये न कह सके कि हमने चोरी की है कहीं से. दूसरी बात है. आम लड़की की कहानी होगी. विद्या ने इससे पहले ऐसा किरदार नहीं निभाया है. सो, वह भी इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हैं.
आप फिल्मों को मिस नहीं करतीं?
हां, बिल्कुल करती हूं. हां, बुरा लगता है कि हर वक्त अभिनेत्री बनने के बाद प्रीटी प्रीटी लगना होता था. सेट ही घर होता था. हर वक्त लाइट कैमरा एक् शन के लिए तैयार होना होता था. उस वक्त ज्यादा चिंता नहीं होती थी. चूंकि मैं सिर्फ अभिनेत्री थी. अपने हिस्से का काम करके फिर वापस घर. अभी जिम्मेदारियां बढ़ी हैं. प्रोडक् शन का काम बहुत मेहनत का काम होता है. जब आप प्रोडक् शन में होते हैं तो दरअसल, आप निर्देशन ही कर रहे होते हैं. चूंकि प्रोडयूसर के रूप में आप क्रियेटिव रूप से भी जुड़े हैं और फिनाशियल रूप से. मैं लकी हूं कि साहिल मुझे पूरी तरह से सपोर्ट करते हैं. अच्छी चल रही है जिंदगी. मैं खुद बहुत हड़बड़ी में नहीं हूं. धीरे धीरे, प्यार से काम करना चाहती हूं. और पूरी उम्मीद है कि मुझे जल्द ही कामयाबी मिल जायेगी. साहिल और मैं साथ हैं तो काम करना आसान हो गया है.
आपकी पहली फिल्म को खास कामयाबी नहीं मिली. तो क्या कभी निराशा हुई कि अरे यार छोड़ो नहीं बनायेंगे फिल्म?
नहीं, ऐसा ख्याल तो कभी नहीं आया. मैं जब इस निर्माण कार्य से जुड़ी. तो इतने साल इंडस्ट्री में रहने के बाद पता है मुझे कि फिल्मों को लेकर किस तरह से सोचना होता है. हर फिल्म कामयाब हो जरूरी नहीं. हां, लव ब्रेकअप...हमने बहुत प्यार से बनाई थी. लेकिन कामयाबी नहीं मिल पायी तो अफसोस नहीं. हम नये हैं इस क्षेत्र में. सीखने में वक्त लगेगा. लेकिन सीख लेंगे. बॉबी जासूस अलग तरह की कहानी है और उम्मीद है कि दर्शकों को पसंद आयेगी.
हिंदी फिल्मों में अचानक भीड़ सी आ गयी है डिटेक्टीव फिल्मों को लेकर. कोई खास वजह?
मुझे लगता है कि डिटेक्टीव कहानी सदाबहार कहानियां हैं. हर दौर के लोग इसे पसंद करते हैं. लेकिन बॉबी जासूस टिपिकल जासूसों वाली कहानी नहीं हैं. आप फिल्म देखेंगे तो खुद इस बात का अनुमान लगा लेंगे कि यह टिपिकल फिल्म नहीं है. जासूस की कहानी है. लेकिन एक लड़की के जासूस बनने के सपने और उसे पूरा करने की कहानी है.
खबरें थीं कि जल्द ही आप दोनों शादी कर लेंगे?
हमें शादी से कोई परहेज नहीं. ऐसा भी नहीं कि हम शादी को बंधन मान रहे. हां, सही वक्त आने पर हम कर लेंगे शादी. फिलहाल 15 नवंबर से बॉबी जासूस की शूटिंग शुरू करेंगे. अगले साल की शुरुआत में हम शादी कर लेंगे. और बकायदा सबको बता कर करेंगे. फिलहाल फिल्म पर हमारा पूरा ध्यान है.
किस तरह की शादी करेंगे आप? बड़ा जश्न होगा या साधारण समारोह?
यह छोटा सा ही समारोह होगा. मैं पार्टी गर्ल नहीं हूं. दिखावा भी मुझे खास पसंद नहीं आता. मैंने कुछ खास तैयारी नहीं की है.  इस समारोह में मेरे तथा साहिल के घरवालों के साथ हमारे कुछ करीबी मित्र होंगे.मैंने अपनी डिजाइनर दोस्त थीया को अपनी शादी के कपड़ों की जिम्मेदारी सौंप दी है.  बस छोटा सा सब समारोह होगा, जिसमें खास लोग होंगे. मुझे शोर शराबा बिल्कुल पसंद नहीं.
 साहिल से जुड़ने के बाद जिंदगी कैसे बदली?
साहिल ने मुझे धैर्य के साथ जिंदगी जीना सिकाया है. वह सिर्फ बिजनेस पार्टनर नहीं दोस्त है. मैं जिस हिस्से में कमजोर हूं. साहिल उस हिस्से में स्ट्रांग हैं. साहिल जब से जिंदगी में आये हैं. सुकून आ गया है. जिंदगी में. मैं  पहले से ज्यादा आत्मविश्वासी बन गयी हूं . हम दोनों खाने के बहुत शौकीन हैं. तो जम कर खाते हैं और जम कर काम करते हैं. जब मैं नर्वस होती हूं तो साहिल संभालते हैं. सच कहूं तो शायद साहिल जिंदगी में न होते तो मैं प्रोडक् शन का काम नहीं कर पाती.
शादी के बाद अभिनेत्रियों की जिंदगी में आने वाले बदलाव को लेकर काफी चर्चा होती रहती है. आप इसके लिए कितनी तैयार हैं?
हां, हमेशा यह चर्चा होती रहती है. लेकिन मुझे नहीं लगता. शादी सिर्फ स्टैंप पेपर पर साइन करने का एक तरीका होता है. साथ हम अब भी हैं. सो, मैं शादी को लेकर कंफर्ट जोन में हूं. मुझे ऐसी कोई बड़ी परेशानी होने नहीं जा रही है.
आपकी आनेवाली फिल्में?
फिलहाल बॉबी जासूस और इसके बाद एक और स्क्रिप्ट पर काम हो रहा है.

सुपरहीरो के रूप में सुपरस्टार


हिंदी फिल्मों में कई अभिनेताओं ने सुपरहीरो की भूमिकाएं निभाई हैं. इन अभिनेताओं ने हमेशा अपनी बातचीत में कहा है कि वे अपने बेटों के लिए सुपरहीरो की भूमिकाएं निभाना चाहते हैं. सुपरहीरो की इन कोशिशों में कुछ कामयाब रहे तो कुछ असफल. सुपरस्टार्स कोक्यों लुभाते हंै सुपरहीरो वाले किरदार
 अक्षय कुमार ने हाल ही में अपनी बातचीत में कहा है कि वे अपने बेटे आरब के लिए एक सुपरहीरो वाली फिल्म बनायेंगे जिसमें वह खुद सुपरहीरो के किरदार में नजर आयेंगे. चूंकि उनके बच्चे को सुपरहीरो वाली फिल्म पसंद आती है. शाहरुख खान ने अपनी फिल्म रा.वन जो कि उनके प्रोडक् शन की सबसे महंगी फिल्मों में से एक रही. उन्होंने यह फिल्म भी अपने बच्चों के लिए बनाई थी.
बाल दर्शकों की पसंद नापसंद
 दरअसल, सेलिब्रिटिज के बच्चे हॉलीवुड की फिल्में अधिक देखते हैं. हॉलीवुड में बच्चों के लिए सुपरहीरो की कहानियों की भरमार है. सो, वे किरदार उनके बच्चों को आकर्षित करते हैं. हालांकि एक हकीकत यह भी है कि आमतौर पर हिंदी सिनेमा के बच्चों को सुपरहीरो वाली फिल्में उतनी पसंद नहीं आयी हैं. वे बॉडीगार्ड जैसे किरदारों को ज्यादा पसंद करते हैं या फिर कोई मिल गया में जादू जैसे किरदार से भारत के बाल दर्शक खुदa को ज्यादा कनेक्ट कर पाते हैं. भारतीय सिनेमा के बाल दर्शकों को बैटमैन, सुपरमैन, आयरनमैन पसंद आते हैं. लेकिन बात हिंदी सिनेमा की हो तो वे बॉडीगार्ड को पसंद करते हैं. फिल्म पा के किरदार उन्हें अच्छे लग जाते हैं. कोई मिल गया का जादू उन्हें अच्छा लगता है. लेकिन कृष और रा.वन या द्रोणा जैसे किरदारों से वह खुद को कनेक्ट नहीं कर पाते.यही वजह है कि भारत में सुपरहीरो वाली फिल्में कम लोकप्रिय हो पाती हैं.
सुपरहीरो के रूप में खुद को साबित करने के मिलते हैं ज्यादा मौके
दरअसल, हकीकत यही है कि हर बच्चा अपने पिता को सुपरस्टार्स के रूप में ही देखना चाहता है. खासतौर से सेलिब्रिटिज अपने बच्चों की नजर में भी हमेशा सुपरस्टार्स बनने की कोशिश करते रहते हैं. ऐसे में उन्हें सुपरहीरो वाली फिल्मों में खुद को साबित करने के ज्यादा मौके होते हैं. चूंकि इन फिल्म में एक स्टार खुद के सारे स्टंट और अपनी प्रतिभाओं को लार्जर देन लाइफ प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं.
ज्यादातर होम प्रोडक् शन में बनती हैं फिल्में
सुपरहीरो वाली फिल्में ज्यादातर सुपरस्टार्स ने इन फिल्मों का निर्माण अपने होम प्रोडक् शन में किया है. शाहरुख खान की होम प्रोडक् शन की फिल्म थी रा.वन. ऋतिक रोशन के होम प्रोडक् शन की ही फिल्म है कृष और अब आ रही है कृृष 3. इसकी बड़ी वजह यह है कि हर सुपरस्टार इन सुपरहीरो वाली फिल्मों में अपनी प्रतिभा को ज्यादा से ज्यादा दिखाने की कोशिश करता है और उसे यह छूट अपने प्रोडक् शन हाउस में ही मिल सकती है. फिर चाहे इसके लिए वे 100 करोड़ की लागत ही क्यों न लग जाये. वे हॉलीवुड की कॉपी करने की कोशिश करते हैं, जिसमें वह पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाते. नतीजन फिल्म दर्शकों को खास पसंद नहीं आ पाती.
कृष 3 से उम्मीदें
कृष 3 ऐसे वक्त पर रिलीज हो रही है. जब दर्शक काफी समझदार हो चुके हैं. उनका एक्सपोजर बढ़ चुका है. वे हॉलीवुड की फिल्में देखने में माहिर हो चुके हैं. ऐसे में कृष 3 के लिए यह चुनौती है कि वह किस तरह खुद को अलग दिखाने में कामयाब हो पायेगा. चूंकि फिल्म के पोस्टर और दृश्यों को लेकर पहले से ही चर्चा हो रही है कि यह कॉपी की गयी है. फिल्म के गाने भी बेहद पुराने और बासी हैं. ऐसे में ऋतिक रोशन कृष का जादू कायम कर पायेंगे या नहीं. यह संदेह है.
कौन कामयाब कौन फेल
रा.वन से शाहरुख खान ने सुपरहीरो की छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की. वे नाकामयाब रहे. ऋतिक रोशन अब तक कामयाब रहे हैं. अभिषेक बच्चन ने द्रोणा के रूप में कोशिश की थी. लेकिन वे भी नाकामयाब रहे हैं. अक्षय कुमार स्टंट स्टार के रूप में तो लोकप्रिय रहे हैं लेकिन सुपरहीरो के रूप में कामयाब हो पाते हैं या नहीं ये आनेवाला वक्त बतायेगा. 

लेखकों का सम्मान


फिल्म कृष 3 के लेखकों में से एक  व गीतकार संजय मासूम ने अपने फेसबुक वॉल पर बेहतरीन वीडियो सांझा किया है. इस वीडियो में फिल्म कृष 3 के सभी लेखकों की आपस में अनपौचारिक बातें हैं. बातचीत फिल्म कृष 3 को लेकर है. वीडियो में हनी ईरानी, रॉबिन भट्ट, संजय मासूम, राकेश रोशन, इरफान कमाल, ऋतिक रोशन, आकर्ष खुराना नजर आ रहे हैं. इरफान कमाल को छोड़ कर बाकी सभी लेखक राकेश रोशन के साथ फिल्म कोई मिल गया से लेकर कृष 3 बनने की सीरिज तक जुड़े रहे हैं. इस बात के लिए राकेश रोशन बधाई के पात्र हैं, कि उन्होंने अब तक अपनी टीम बरकरार रखी है. इतने सारे लेखकों को लेकर ज्यादातर यह संभावना रहती है कि फिल्म की कहानी में भटकाव नजर आये. लेकिन कोई मिल गया और कृष की सफलता दर्शाती है कि टीम वाकई अच्छी है. राकेश रोशन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि अच्छी फिल्म के लिए अच्छी कहानी की जरूरत है और लेखकों की अहमियत को समझते हुए उन्होंने जो यह टीम तैयार की है. वह सराहनीय है. चूंकि एक साथ इतने सारे लेखकों को साथ लेकर चलना और उन्हें संतुष्ट करना और साथ ही अपनी कहानी के साथ न्याय करना एक कठिन कला है. लेकिन राकेश इसे बखूबी समझ रहे हैं. जिस तरह से इस वीडियो का निर्माण किया गया है. हिंदी सिनेमा में अन्य फिल्मकार भी इस तरह की चीजें अगर आमलोगों से शेयर करेंगे तो यह दर्शकों तक परदे की पीछे की बातों को पहुंचाने का नायाब तरीका होगा. आमतौर पर फिल्म के निर्देशक और कलाकारों के अलावा शेष टीम के लोग आमलोगों तक नहीं पहुंच पाते. सोनम नायर ने अपनी पोस्ट में भी इस बात का जिक्र किया है. इस लिहाज से अगर इस तरह के वीडियो बनाये जायें तो लेखकों व अन्य क्रू के लोगों को सम्मान मिलेगा. पहचान मिलेगी,

किरदार और बेड़ियां


 तिग्मांशु धूलिया की लंबे अरसे से चाहत है कि वह समरू पर फिल्म बनायें. लेकिन उनकी यह चाहत अब तक पूरी नहीं हो पा रही है. वजह यह है कि तिग्मांशु की यह नायिका जिस तरह के किरदार में होगी. समरू बेगम शादीशुदा होने के बावजूद बिंदास जिंदगी जीती हैं. उनके एक्स्ट्रा मैरेटियल अफेयर होते हैं. यही वजह है कि हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अभिनेत्रियां इन किरदारों को निभाने से इनकार कर रही हैं. रानी मुखर्जी, काजोल, ऐश्वर्य राय और तब्बू से इन किरदारों के लिए बात हुई थी. अभिनेत्रियों का मानना है कि जिस तरह का किरदार बेगम का था. दर्शक शायद उस रूप में इन अभिनेत्रियों को पसद नहीं करेंगे. चूंकि इससे उनकी इमेज पर असर होगा. दरअसल, हिंदी सिनेमा की यह विडंबना है कि इस इंडस्ट्री में अब भी वास्तविक छवि का अनुमान निभाये गये किरदार से लगा लिया जाता है. हमें लगता है कि जो किरदार निभाये गये हों, वास्तविकता में वह व्यक्ति उतना ही अच्छा हो या उतना ही बुरा. किकु उर्फ पलक जो इन दिनों काफी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. उनकी पत् नी ने हाल ही में स्टार प्लस के एक वीडियो में बताया है कि उनके पति घर पर अधिक वक्त नहीं देते. साफ जाहिर होता है कि किकु दुनिया के लोगों का मनोरंजन कर रहे. लेकिन अपनी पत् नी का ही नहीं. लेकिन हम उन्हें उसी रूप में स्वीकारना चाहते.जिस रूप में हमने उन्हें परदे पर देखा है. लेकिन एक नजरिया यह भी है कि विद्या बालन ने सिल्क की जो भूमिका निभायी. वे उस किरदार में बंध कर नहीं रहीं. फिर भी रानी मुखर्जी जैसी प्रभावशाली अभिनेत्री को इस बात का डर क्यों हैं. रानी चाहें तो वह इस फिल्म से असल रूप में वापसी कर सकती हैं. फिर भी उन्होंने ये बेड़ियां क्यों लगा रखी है. क्या वाकई 100 साल के हिंदी सिनेमा में महिलाओं को लेकर नजरिये में बदलाव हुआ है. यह सवाल मन में जरूर आता है.

फिल्मों में ब्रांड प्रोमोशन


फिल्म कृष 3 में जैसे ही रोहित दर्शकों के सामने आते हैं. वे बॉनबिटा पीते नहीं खाते नजर आते हैं और फिर दो मिनट के लिए ही सही वे बॉनबिटा के गुण बताते हैं. इसके बाद फिल्म के दृश्यों में एसआइएस, शॉपर्स स्टॉप व कई ब्रांड का जम कर प्रोमोशन किया गया है. जहां जरूरत नहीं वहां भी फिल्म में कई प्रोडक्ट्स के प्रोमोशन नजर आये हैं. फिल्म का मीडिया पार्टनर एक न्यूज चैनल है. सो, जहां फिल्म में जरूरत नहीं है. वहां भी वह चैनल व उसके लोगो नजर आये हैं. फिल्म के एक दृश्य में तो प्रोमोशन की हदें पार हैं. जब काल सारे टीवी चैनल के कैमरे को हवा में उड़ाता है. उसमें एक ही नेटवर्क के सारे सिस्टर्स चैनल के लोगो नजर आते हैं. तो क्या इसका मतलब यह है कि बाकी चैनल वहां पहुंचते ही नहीं थे. दरअसल, हकीकत यह है कि इन दिनों फिल्मों की कहानियों पर भी प्रोडक्ट्स इस कदर हावी हो गये हैं कि वे बेफिजूल तरीके से फिल्मों में नजर आते हैं. वजह यह है कि फिल्म के निर्माता की कोशिश यही होती है कि वह ज्यादा से ज्यादा ब्रांड एंडॉरशमेंट करें ताकि फिल्म के बजट की लागत फिल्म की रिलीज से पहले ही उनकी जेब में आ जाये. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि फिल्म का बजट काफी होता है. और इन दिनों यह भी तय है कि फिल्म अच्छी न हो तो दर्शक उन्हें नामंजूर कर देते हैं और बॉक्स आॅफिस पर उन्हें सफलता नहीं मिल पाती. यही वजह है कि वे ब्रांड एंडॉरशमेंट से ही अपना मुनाफा कमा लेना चाहते हैं. बॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्मों के साथ विशेष कर यह फंडे अपनाये जाते हैं. फिल्म रा.वन में शाहरुख खान ने सारी हदें पार कर दी थी. फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस में भी वे मोबाइल ब्रांड का प्रचार करते नजर आये. कभी कभी निर्देशक इस कदर ब्रांड को फिल्म में शामिल कर लेता है कि उसे कहानी में उसकी वजह से आये अटपटेपन से भी कोई फर्क नहीं पड़ता.

ौंने कहा था कपिल सुपरस्टार बनेगा : राजू


वे जब मंच पर आते हैं. उन्हें देखते ही बासाख्ता होंठों से हंसी निकल पड़ती है. वे जोकर नहीं हैं. लेकिन उनकी बातों में एक ऐसा अंदाज है जो आपको हंसने के लिए प्रेरित करता है बार बार. नेता से लेकर अभिनेता तक उनके सामने ही उनका माखौल उड़ाने की कुब्बत भी उनमें ही है. बात हो रही है राजू श्रीवास्तव की जो इस बार नच बलिये सीजन 6 में हंसी के हंसगुल्ले नहीं बल्कि डांस के ठुमके लगाने आ रहे हैं. वह भी अपनी पत् नी शिखा के साथ.

राजू जी अचानक हंसते हंसाते डांस के मंच पर कैसे आ पहुंचे आप?
हां, यह सच है कि मैं अच्छा डांसर नहीं. लेकिन फिर भी जब मुझे चैनल ने अप्रोच किया तो मैंने फौरन हां इसलिए कह दिया कि चलो हंसते हंसाते तो लोगों को हम थोड़ा हिलते डुलते थे. सोचा इस बार अपने साथ साथ अपनी बहुरिया को भी नचाया जाये. मैं अच्छा डांसर नहीं लेकिन मुझे दिल से डांस करना है और मुझे पता है कि मुझे लोग पसंद करेंगे. मेरा अंदाज़. शो की लांचिंग पर ही लोगों ने जैसा रिस्पांस दिया. मैंने और सीखा ने दोबारा से डांस किया. तो लगा लोग पसंद करेंगे.  वैसे मुझे डांस इंडिया डांस भी आॅफर हुई थी. लेकिन मैंने नच बलिये चुना ताकि शिखा को भी मौका मिले कि वह कुछ अलग कर पाये. अपनी दुनिया से अलग़.
शिखा पहली बार बतौर सेलिब्रिटी परदे पर होंगी. तो जब आपने उन्हें बताया कि उन्हें भी इस शो का हिस्सा बनना है तो उसकी प्रतिक्रिया क्या थी?
शिखा यह तो जान ही गयी है कि मेरे साथ रहते रहते उसे अजीबोगरीब चीजों से गुजरना होगा. बेचारी को मना ही लिया. मजा तब आया जब हमने अपनी अम्मा को बताया कि अम्मा आपकी बहुरिया डांस करने जा रही है. तो कहा कहां पर. हमने कहा टीवी पर. तो कहा बाकी सब ठीक है. खाली सर पर बोलना पल्लू रखने के लिए. शिखा मेरे साथ साथ रहते रहते अब ट्रेंड हो गयी है कि कुछ न कुछ नया तो हमेशा करना ही होगा उसे भी. सो, वह भी खुश है. काफी मेहनत कर रही है. घर को मैनेज करते हुए रिहर्सल में पूरा ध्यान दे रही है. हालांकि उसके लिए लाइट कैमरा की जिंदगी टफ है. लेकिन फिर भी वह मेहनत कर रही हैं.  मेरी बहन ने कहा कि उसको पता नहीं था कि शिखा परफॉर्म करनेवाली है तो उसने कहा अरे  भईया यहां भी मॉडल आपको मोटी ही मिली है. तो हमारा पूरा परिवार ही बड़ा मजाकिया है.
राजू जी इतने दिनों से आप बिल्कुल गायब ही हो गये थे. कोई खास वजह?
वजह यह थी कि हम शो तो कर रहे  थे. लेकिन ऐसे चैनल पर कर रहे थे कि उसकी उतनी टीआरपी नहीं थी. दूसरी बात है. आजकल हमने पॉलिटिक्स ज्वाइन किया है तो वहां भी काफी ध्यान देना होता है. आजकल कानपुर और मुंबई के कितने चक्कर हम कांट रहे हैं हमें ही नहीं मालूम. डांस के रिहर्सल के लिए भी मुश्किल से टाइम मिलता है. लाइव शोज चलते रहते हैं.
इन दिनों कॉमेडी नाइट्स विद कपिल टीवी का नंबर वन शो बन चुका है. आपकी की प्रतिक्रिया?
कपिल के लिए काफी खुश हूं. हम सभी लाफ्टर चैलेंज से यहां तक पहुंचे. एक लंबा सफर कपिल ने भी तय किया. अपनी मेहनत से. लाफ्टर चैलेंज के दौरान वह हमेशा मेरे पांव छू कर जाता था. मैंने उसको कहा भईया ऐसा न करो. तो वह कहता नहीं नहीं आप हमारे सीनियर हैं. बड़े हैं. तो मैंने कहा था उससे अरे आनेवाले समय में तुम्हीं सुपरस्टार हो जाओगे और देखिए सच भी हुआ. किसी शो को इतना प्यार मिल रहा है. वह तरक्की कर रहा है और अपने दम पर कर रहा है. यह बड़ी बात है.
 आप अमिताभ बच्चन के अंदाज में कई बार नजर आये हैं तो क्या अमिताभ के गानों पर ही परफॉर्म करेंगे?
नहीं बिल्कुल नहीं. मैं इस शो में इसलिए आया हूं कि अपना अंदाज दिखा सकूं. अपनी छवि को तोड़ सकूं. सभी ने मुझे उस अंदाज में देखा है और मुझे अब वैसा नहीं करना तो मैं नच बलिये से थोड़ा अलग दिखाने की कोशिश करूंगा खुद को.
डांस के साथ साथ आप अपनी कॉमिक अंदाज का कितना प्रयोग करेंगे.
अरे कॉमिक करना तो खून में है. मेरी कॉमिक टाइमिंग का जम कर प्रयोग करेंगे. चैनल से भी हमें छूट मिली है. अरे हम ठहरे कॉमेडियन तो बस माइक और मंच मिलेगा तो शुरू हो ही जायेंगे. तो जो मन आयेगा करेंगे ही. मौज मस्ती करने आये हैं करेंगे ही. मुझे पूरी उम्मीद है कि साजिद खान हमारी पूरी मदद करेंगे.
आप अपने करियर से कितने संतुष्ट हैं?
अरे हम तो मामूली से आदमी थे. जितना सोचा नहीं था. उतना मिला. बाप रे कभी सोच सकते थे कि कानपुर से निकल कर इतना लंबा सफर हम तय कर पायेंगे. लेकिन कर लिया पूरा. तो किसी से गिला शिकवा शिकायत नहीं. कोई प्रतियोगिता नहीं. बस मजे से लेकर जिंदगी को जीते रहना है. अपना अपना दौर होता है. कभी कोई कभी कोई इसमें बुरा मानने की क्या बात है.

वेलकम बैक में टष्ट्वेंटी टष्ट्वेंटी


फिल्म वेलकम बैक के आयटम नंबर को लेकर काफी चर्चा हो रही है. कुछ दिनों पहले गाने की शूटिंग पूरी हुई. अनुप्रिया अनंत डायरेक्टली सेट से बता रही हैं कि कैसे हुई इस गाने की शूटिंग
लीड स्टोरी
ेसेट से
फिल्म : वेलकम बैक
समय : शाम के 8 बजे
जगह : चांदीवली स्टूडियो

चांदीवली स्टूडियो के सामने लोगों की भीड़ है. भीड़ की वजह है कि वहां उन्हें उनके पसंदीदा अभिनेता जॉन अब्राह्म की जीप खड़ी नजर आयी है. उन्हें पता है कि जॉन अंदर हैं और वे उसका इंतजार करने के लिए तैयार हैं. चांदीवली स्टूडियो में पहुंचते ही आपको एहसास हो जाता है कि यहां किसी आयटम गाने की शूटिंग चल रही है. अंदर एंट्री लेते ही सीधी नजर गणेश आचार्य पर जाती है. गणेश आचार्य इन दिनों फिल्मों के आयटम नंबर के पसंदीदा कोरियोग्राफर बन चुके हैं. वे अपने क्रू से नाराज हैं. नाराज इस वजह से कि गाने की कंटीन्यूटी में गलतियां हो रही हैं. हम दर्शकों के लिए किसी भी गाने या फिल्म की बुराई करना कितना आसान होता है. लेकिन गाने की शूटिंग देखने के बाद ईमानदारी से कहूं तो यह बात समझ आती है कि एक निर्देशक गाने की शूटिंग में भी कितनी मेहनत करते हैं. गणेश नाराज हैं. चूंकि अब तक एक गाने का पहला शॉट भी ओके नहीं हो पाया है. संभावना शेठ समेत सभी लड़कियां गाने की तैयारियां कर रही हैं. पूरे सेट को तैयार किया गया है. गाने में प्राय: जो धुआं धुआं सा नजर आता है. अक्सर शायद लोगों के जेहन में ये बातें आती होंगी कि आखिर उस धुएं की गरमाहट के बीच कैसे कलाकार परफॉर्म कर पाते होंगे. उनके लिए यह जानकारी है कि वह धुआं धुआं सा सिर्फ नजर ही आता है. उस धुएं में जो स्ट्रॉबेरी फ्लेवर की महक होती है. शायद यह फ्लेवर कलाकारों की सहुलियत को देखते हुए ही दी जाती है. जॉन लाल रंग के लिबास में हैं. हम उनसे उनके वैनिटी में मिलने जाते हैं. जॉन बिल्कुल अनपौचारिक बातें करते हैं. कलाकारों से उनके वैनिटी में बात करने का अनुभव भी अलग होता है. चूंकि कलाकारों की वैनिटी उनका दूसरा घर है. सो, वे वहां बड़े इतमिनान से बातें करते हैं. जॉन भी अपने बिंदास अंदाज में मिलते हैं, उनके चेहरे से खुशी साफ झलक रही है कि उनकी फिल्म मद्रास कैफे ने अच्छी सफलता हासिल की है. जॉन मद्रास कैफे के साथ साथ वेलकम बैक पर भी खूब बातें करते हैं. अब उन्हें सामने से बुलावा आया है. शॉट की तैयारी हो चुकी है. जॉन हमें भी वहां आने का न्योता देते हैं. अनीस बज्मी, फिल्म के निर्देशक के चेहरे पर तनाव है. तनाव की वजह है कि उन्हें गाना उस दिन शूट करना है और गाने में एक साथ कई चेहरे हैं. अब तक एक भी शॉट पूरा नहीं हुआ और रात के 9 बज चुके हैं. गणेश भी टेंशन में हैं. वे कमांड देते हैं और अनु मलिक का गीत टष्ट्वेंटी टष्ट्वेंटी के बोल वहां सुनाई देने लगते हैं. क्रू में खड़े सभी लोग पीछे पूरे अनुशासन से खड़े हैं. फिल्म कोई भी हो. अगर आप उसकी शूटिंग देखने जायें तो इस बात का अनुमान आप आसानी से लगा सकते हैं कि किसी फिल्म का निर्माण अनुशासन से ही होता है. वहां हर व्यक्ति छोटी सी छोटी भूमिका निभाने वाला व्यक्ति भी कितना सजग होता है और उसे यह अच्छी तरह पता है कि उसे क्या और कब करना है. लाइटिंग की रोशनी से गरमाहट भी उन्हें तंग नहीं करती. जो कुछ भारी चीजें लेकर भी सीन में खड़े हैं. वे तब तक खड़े रहेंगे. जब तक उन्हें कट न कहा जाये. अनु मलिक से हमारी मुलाकात होती है. अनु मलिक सातवें आसमान पर हैं. आखिर उन्हें कई अरसे बाद किसी फिल्म में तीन गानों पर काम करने का मौका मिला है. वे हमसे अपना अनुभव शेयर करते हैं. गाने की शूटिंग जारी है... अनु मलिक को पूरा भरोसा है कि गाना सुपरहिट होगा...

प्रॉप्स सिर्फ प्रॉप्स न रहा


आमिर खान इन दिनों हर जगह धूम 3 के अवतार में ही नजर आ रहे हैं. सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रही है उनकी टोपी. आमिर ने इस टोपी को फिल्म की शूटिंग के दौरान ही फिल्म के मेकर्स से खरीद लिया था. दरअसल, आमिर ही नहीं इन दिनों बॉलीवुड के सितारों ने फिल्मी प्रोमोशन को इस कदर अपनी निजी जिंदगी में भी हावी कर लिया है या यूं कहें वे उन चीजों से इस कदर जुड़ जाते हैं कि वे फिल्मों के प्रॉप्स का इस्तेमाल वास्तविकता में भी करने लगते हैं. कुछ स्टार्स इन सबका इस्तेमाल भी प्रोमोशन के लिए करते हैं. कुछ स्टार्स के लिए यह शौक भी है.  इस ट्रेंड पर अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट

 आमिर खान की धूम 3 की टोपी
इन दिनों आमिर खान लगभग हर समारोह में व हर सार्वजनिक स्थानों पर अपने धूम 3 के लुक में ही नजर आ रहे हैं. खासतौर से जिस तरह फिल्म के ट्रेलर और पोस्टर में आमिर की टोपी को तवज्जो दी गयी है. आमिर इन दिनों टोपी को जान बूझ कर काफी हाइलाइट कर रहे हैं. जहां न भी जरूरत हो उस समारोह में भी वह उसी टोपी में नजर आते हैं. इसका एकमात्र कारण यह है कि इससे उन्हें अधिक लोकप्रियता मिलती है. साथ ही यह उनका फैशन और स्टाइल स्टेटमेंट भी बन जाता है.  आमिर इस फिल्म में कई तरह की टोपियों में नजर आयेंगे और उन्हें यह स्टाइल इतना पसंद आया कि उन्होंने इन टोपियों की पूरी सेट ही खरीद ली है.

रणवीर सिंह की लुटेरा बाइक
रणवीर सिंह को फिल्म लुटेरा की पुराने अंदाज की एंटिक बाइक से इस कदर प्यार हो गया कि उन्होंने फिल्म के निर्माताओं से जिद्द करकर वह बाइक अपने पास रख ली. फिल्म लुटेरा की रिलीज  के दौरान रणवीर सिंह हर जगह उसी बाइक से आते जाते थे. चूंकि फिल्म पीरियड फिल्म थी तो उस बाइक को भी खास अंदाज में तैयार किया गया था. सो, रणवीर को उस बाइक से बेहद प्यार हो गया. उन्होंने वह बाइक अपने घर पर शौक से सजा कर रखी है.
दीपिका का ये जवानी है दीवानी 
दीपिका ने फिल्म ये जवानी है दीवानी में दीपिका ने नैना का किरदार निभाया है. फिल्म में नैना चश्मे में नजर आयी है. दीपिका को वे चश्मे इतने पसंद आये थे कि उन्होंने करन जौहर से उसकी मांग की. करन जौहर पहले तो इस बात के लिए तैयार नहीं थे. चूंकि उन्हें अपनी फिल्मों के प्रॉप्स किसी को भी देना पसंद नहीं. लेकिन उन्होंने बाद में दीपिका को वह गिफ्ट कर दिया. दीपिका उसे पाकर इस कदर खुश थी कि कई दिनों तक वह कई समारोह में उसे लगा कर शामिल होती नजर आयीं.

अक्षय कुमार का जूता
अक्षय कुमार ने फिल्म खिलाड़ी 786 में जो जूता पहन रखा है. वह आम जूता नहीं. यूं भी अक्षय कुमार के नाप के जूते जल्दी नहीं मिलते. अक्षय उन्हें खासतौर से तैयार करवाते हैं. िखलाड़ी 786 के एक गाने के लिए उन्होंने एक खास जूता तैयार करवाया था और वह बॉलीवुड का सबसे भारी जूता था, जिसे फिल्म के प्रोमोशन के दौरान खूब इस्तेमाल किया गया और बाद में अक्षय कुमार ने उन जूतों को अपने पास ही रख लिया.
जॉन को मिली बाइक
जॉन अब्राह्म बाइक के शौकीन हैं और जिन फिल्मों में वह काम करते हैं. अगर उन फिल्मों में उन्हें किसी अलग अंदाज की बाइक चलाने का मौका मिलता है. वे उन्हें जरूर खरीद लेते हैं.इस बार उन्हें शूटआउट एट वडाला के निर्देशक संजय गुप्ता ने फिल्म में इस्तेमाल की गयी बाइक जो जॉन को काफी पसंद आयी थी. उन्हें तोहफे के रूप में दे दी.
 कट्रीना का गिटार
कट्रीना कैफ ने फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन में जो गिटार बजाया है. वह कट्रीना को बेहद प्रिय था. तो फिल्म के निर्देशक अली जफर ने कट्रीना को वह बतौर गिफ्ट के रूप में दे दिया. उस फिल्म की रिलीज के दौरान भी कट्रीना जब भी धुनकी अवतार में नजर आती थीं. वे उस गिटार के साथ ही नजर आती थीं.

शाहरुख खान, काजोल, और रानी मुखर्जी ने फिल्म कुछ कुछ होता है में इस्तेमाल किये गये फ्रेंडशीप बैंड्स को बतौर याद के रूप में अपने पास संजो कर रखा है.
ेुसंजय लीला भंसाली ने फिल्म गुजारिश में इस्तेमाल की गयी वह कुर्सी जिस पर ऋतिक बैठते हैं. उससे संजय को इस कदर लगाव है कि उसे वह अपने आॅफिस में सजा कर रखते हैं.
प्रकाश झा ने अमिताभ बच्चन को फिल्म आरक्षण और सत्याग्रह के बाद कई शॉल गिफ्ट किये. फिल्म में वह प्रॉप्स के रूप में इस्तेमाल हुए हैं.
विद्या बालन ने फिल्म घनचक्कर में प्रॉप्स के रूप में अपने घर की कई चीजों का इस्तेमाल किया है. अमिताभ भी शॉल का इस्तेमाल कई बार अपनी फिल्मों में प्रॉप्स के लिए करते आये हैं. फिल्म मशाल में अमिताभ ने अपने ही कपड़े पहने हैं. चूंकि उस दौर में अच्छे डिजाइनर नहीं हुआ करते थे. 

'टिवटर के कीड़े मकोड़े


कमाल आर खान ने अनुष्का शर्मा के बारे में टिष्ट्वटर पर ऐसी भद्दे बातें लिखी हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद इंडस्ट्री को इस बात पर जरूर कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए, लेकिन इंडस्ट्री चुप है. अनुष्का ने कमाल को जवाब दिया है. इससे पहले भी कमाल आर खान कई बार इंडस्ट्री की अभिनेत्रियों के बारे में भद्दी बातें बोलते नजर आये हैं. लेकिन कमाल आर खान इस बात का फायदा उठाते हैं कि उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी है और वह चाहे जो भी कह सकते हैं. दरअसल, वाकई सोशल नेटवर्किग साइट एक ऐसा जरिया बन चुका है. जहां कोई भी अपनी बातें रख सकता है. कोई भी किसी को भी जानबूझ कर बदनाम कर सकता है. हाल ही में रणवीर सिंह को भी बदनाम करने की कोशिश की गयी. कमाल आर खान जैसे लोगों के जेहन में तो यही बातें होती हैं कि कोई भी अभिनेत्री अगर अच्छा काम कर रही हैं. मतलब वह चरित्रहीन है. साहित्य जगत में भी जब भी बातें होती हैं तो दोष स्त्री पर ही मढ़ दिया जाता है. अनुष्का ही नहीं किसी भी अभिनेत्री के बारे में इस तरह की अश्लील बातें कैसे नेटवर्किंग साइट पर लिखी जा सकती है. लेकिन बॉलीवुड इस पर खामोश रहता है. लोगों को लगता है कि ये उसकी पागलपंती है. उन्हें करने दें. लेकिन अगर अब भी कमाल आर खान जैसे लोगों को बॉलीवुड पालना बंद नहीं करेगा तो यूं ही बिना किसी वजह के लोगों के चरित्र पर अंगुली उठाता ही रहेगा. अनुष्का शर्मा इसकी पहली शिकार नहीं हैं. बॉलीवुड फिल्में देखने वाले दर्शक वैसे भी आज भी कलाकारों के काम से ज्यादा उनके चरित्र को तवज्जो देते हैं. अगर व्यक्ति साफ छवि का है. तभी उन्हें वह स्वीकार करते हैं. टिष्ट्वटर के ऐसे कीड़े मकोड़ों का सफाया होना जरूरी है ताकि वह गंध न मचा सकें. लेकिन इसके लिए कदम भी इंडस्ट्री के लोगों द्वारा ही लिया जाना चाहिए, तभी कोई ठोस नतीजे निकलेंगे.

बच्चों का कृष


बीते रविवार मेरे मोहल्ले में बच्चे आपस में बातें कर रहे थे कि तुने फिल्म कृष देखी क्या. वे कृष 3 के बारे में बातें कर रहे थे. एक से दूसरे से पूछा पहला गाना कौन सा था.और मानवर से डरे क्या???. लोकल ट्रेन में भी एक बच्चा अपनी मम्मी से कह रहा था कि मां कृष जैसा जैकेट खरीद दो न मां. फेसबुक पर भी इन दिनों कृष 3 की चर्चा है. बच्चों को लुभाने के लिए कृष ने गेम भी लांच किया है. कृष 3 200 करोड़ क्लब में शामिल होनेवाली है. और बच्चों की ये बातचीत दर्शाती है कि फिल्म उन्हें पसंद आयी है. ऋतिक रोशन ने अपनी बातचीत में कहा भी था कि वे फिल्म बच्चों के लिए बना रहे हैं. कृष 3 के 200 करोड़ क्लब में शामिल होने को लेकर बी टाउन में चर्चा जारी है. कुछ ट्रेड पंडितों का मानना है कि फिल्म के बढ़ी टिकट की वजह से फिल्म 200 करोड़ क्लब में शामिल हो रही है. निस्संदेह बाल दर्शकों को इससे कोई फर्क   नही पड़ता कि फिल्म 200 करोड़ क्लब की है या 100 करोड़ क्लब. उन्होंने कृष को स्वीकार किया है. इससे पहले फिल्म रा. वन ने भी बच्चों को लुभाने की कोशिश की थी. लेकिन जिस हद तक कृष 3 ने बच्चों को प्रभावित किया है. रा.वन नहीं कर पायी थी. वजह साफ है ऋतिक रोशन ने शुरुआती दौर यानी कोई मिल गया से ही साबित कर दिया था. या यूं कहें स्पष्ट कर दिया था कि फिल्म बच्चों के लिए है. पहले संस्करण में वे बच्चों से घिरे रहे. कृष में भी उन्होंने वह करतब दिखाये और कृष 3 में भी उन्होंने बच्चों को खुश किया. हां, यह सही है कि फिल्म कई फिल्मों की कॉपी है. दृश्य चुराये गये हैं. लेकिन भारतीय बाल दर्शकों को यह संतुष्ट करती है. वजह साफ है कि हिंदी फिल्में कम ही बनती हैं बच्चों के लिए और ऐेसे में अगर कोई एक भी फिल्म आती है तो बच्चे खुश हो जाते हैं. बाल दिवस में निश्चिततौर पर कृष के बाल दर्शकों में और बढ़ोतरी होगी

बड़े परदे पर प्रेम कविता


बांबे टॉकीज का निर्माण कर चुकीं आशी दुआ की इच्छा है कि अब वह अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी पर फिल्म बनायें. उन्होंने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाने के लिए करीना कपूर और फरहान अख्तर से बात की है. फरहान ने भाग मिल्खा भाग से खुद को साबित किया है और अब वह अगर इस फिल्म का चयन भी करते हैं तो निश्चिततौर पर वे इसमें बखूबी निभायेंगे. आशी दुआ ने सिनेमा के 100 साल पूरे होने के अवसर पर बांबे टॉकीज का निर्माण किया. यह बिल्कुल अलग सी सोच थी. और इस बार भी वे एक अलग सोच लेकर फिल्म बनाने के बारे में सोच रही हैं. चूंकि हिंदी सिनेमा में वास्तविक प्रेम कहानियों की जब भी बात होती है. ज्यादातर फिल्में रोमियो जूलियट या उनके किरदार से प्रभावित या फिर अंगरेजी उपन्यास के हिंदी रूपांतर पात्रों पर आधारित बनाने की कोशिश की जाती रही है. जबकि हिंदी सिनेमा खुद में ही कई प्रेम कहानियों से समृद्ध हैं. साहिर भी कवि थे. अमृता भी. दोनों की प्रेम कहानी निश्चित तौर पर सिनेमा के रूप में भी एक कविता के रूप में ही परदे पर नजर आयेगी. बशर्ते कलाकारों का चयन और निर्देशक के चयन में सावधानी बरती जाये. आशी बधाई की पात्र हैं कि वह लीक से हट कर भी फिल्मों के नॉस्टोलोजिक फैक्टर को लेकर फिल्में बनाने के बारे में सोच रखती हैं और उसे लेकर आगे भी बढ़ रही हैं. अमृता प्रीतम को लोग कवियित्री के रूप में जानते हैं. साहिर को भी. इस प्रेम कहानी के रूप में हिंदी सिनेमा को एक अदभुत प्रेम कहानी का सार मिलेगा. दर्शक एक नयी प्रेम कहानी देख पायेंगे. निश्चित तौर पर कई नयी बातें उभर कर सामने आयेंगी. और वह बेहद दिलचस्प होगी. उनकी प्रेम कहानी को लेकर सभी उत्साहित हैं. अब देखना यह है कि रुपहले परदे पर वह किसी रूप में प्रस्तुत होती है.

तू प्यार का सागर है.


राज कपूर ने मन्ना डे से ये रात गयी...में कहा कि दादा और तान खींचो...और मन्ना डे ने एक सांस में उस गीत को पूरा किया. राजकपूर गये और उन्होंने मन्ना डे के गालों को चूम लिया. मन्ना भी खुशी से झूम उठे थे. चूंकि वह जब संगीत से जुड़े. उस वक्त से वे पृथ्वीराज कपूर को जानते थे और उनकी इच्छा थी कि उन्हें उनके साथ काम करने का मौका मिले. मन्ना डे को हिंदी सिनेमा जगत में लोग प्यार से दादा ही बुलाते थे.मन्ना डे की खासियत रही कि वे हमेशा आत्मीयता से लोगों से बातें करते. उन्हें जो बातें अच्छी नहीं लगती. उस पर भी उन्होंने कड़क आवाज में विरोध नहीं जताया. उन्होंने आशा भोंसले के साथ सबसे अधिक गीत गाये. आशा भोंसले बताती हैं कि उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा था कि छोटा सा दिखने वाले लड़क की आवाज इतनी परिपक्व होगी. आशा भोंसले का मानना है कि लता मंगेशकर, रफी साहब, मुकेश और मन्ना डे जैसे लोगों का जन्म हजार सालों में एक बार होता है. मन्ना डे हिंदी फिल्मों के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाओं के गीत संगीत में भी दिलचस्पी रखते थे. मन्ना डे के गीत सदाबहार रहे. मन्ना डे साहब की खासियत रही कि वे लंबे अरसे तक बीमार रहने के बावजूद काफी सक्रिय रहे. उनके परिवार में हमेशा गाना बजाना होता रहता था. बचपन से ही उनके कानों में सुर गूंजने लगे थे.वे अपने चाचाजी से काफी प्रभावित हुए.  एक दिन बादल खां साहब से चाचाजी से सीख रहे थे. खां साहब ने तान लिया और फिर मन्ना डे साहब ने उसे दोहराया और खां साहब ने उसी वक्त ऐलान कर दिया था कि मन्ना साहब बड़ा नाम करेंगे. और वाकई मन्ना डे साहब ने हिंदी सिनेमा जगत में एक इतिहास बनाया. मन्ना डे साहब जैसे फनकार हमेशा याद किये जायेंगे. वाकई वे प्यार का सागर थे और उनकी आवाज की गहराई हमेशा उनके चाहने वालों के दिलों तक पहुंचती रहेगी.

20131024

सुपरस्टार्स और व्यस्क फिल्म


श्रीदेवी को अभिषेक कपूर ने अपनी फिल्म फितूर में एक ऐसा किरदार आॅफर किया है. अभिषेक चाहते हैं कि श्रीदेवी फिल्म में ग्रे शेड वाली भूमिका निभायें. लेकिन श्रीदेवी इस बात को लेकर असमंझस में हैं कि उन्हें यह किरदार निभाना चाहिए या नहीं. चूंकि उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा कोई भी किरदार नहीं निभाया है. गौरतलब है कि फिल्म लाडला में उन्हें ऐसा किरदार निभाने का मौका जरूर मिला था. लेकिन वह पूरी तरह से ग्रे शेड वाला किरदार नहीं था. उस फिल्म में श्रीदेवी के किरदार को काफी पसंद किया गया था. और अब दौर पूरी तरह से प्रयोगों का है. कंगना रानौट जैसी अभिनेत्रियां भी अब चाहती हैं कि उन्हें नकारात्मक किरदार निभाने का मौका मिले. जिस दौर में श्रीदेवी अभिनेत्री के रूप में पूरी तरह से सक्रिय थीं. उस दौर में अभिनेत्री को ध्यान में रख कर वैसी फिल्में भी कम ही लिखी जाती थीं. अब जबकि अभिनेत्री प्रधान फिल्मों का दौर है तो यह श्रीदेवी के लिए बेहतरीन मौका है. जब वह खुद को साबित कर पायें. चूंकि अब वही कामयाब है जो वाकई अलग है. हिंदी सिनेमा की स्थापित अभिनेत्रियों में रेखा और शबाना आजिमी ने सबसे ज्यादा ग्रे शेड की भूमिकाएं निभायी हैं और वे दोनों ही इस विधा में कामयाब रही हैं.सो, हर अभिनेत्री को अभिनय में एक कदम आगे बढ़ाना ही चाहिए. तभी वे आज फिर से एक नया आयाम स्थापित कर पाने में कामयाब रहेंगी. इस लिहाज से जूही चावला ने भी सही निर्णय लिया है. वे गुलाब गैंग में नेगेटिव किरदार में हैं. जब जूही भी सक्रिय रही होंगी तो उन्होंने भी कभी ऐसे किरदार निभाने की न तो उम्मीद जताई होगी और न ही उम्मीद होगी कि आगे चल कर उन्हें ऐसे किरदार निभाने का मौका मिलेगा. लेकिन अब जबकि श्रीदेवी के सामने यह मौका है तो उन्हें एक और श्रीदेवी के रूप में सामने आना ही चाहिए.

हास्य कलाकार पिता और बच्चे


किसी जमाने के मशहूर हास्य अभिनेता जॉनी लीवर ने हाल ही में अपनी बेटी के साथ कॉमेडी सर्कस में मंच सांझा किया. इसे दर्शकों ने बेहद पसंद भी किया. जॉनी लीवर ने एक दौर में हास्य जगत में राज किया है. उन्होंने हास्य की दुनिया में अपने दम पर खास पहचान बनायी थी. यह वह दौर था. जब स्टैड अप कॉमेडी का खास दौर नहीं था. लगभग हर फिल्म जॉनी लीवर होते थे. निश्चित तौर पर जिस तरह एक अभिनेता के पुत्र पुत्री फिल्मों में अभिनय करने के लिए प्रभावित होते हैं. जॉनी लीवर की पुत्री भी इसी क्रम में अगला नाम हंै. हिंदी फिल्मों में मुख्यधारा के अभिनय जगत में यूं तो कई सितारा पुत्रों ने एंट्री ली. लेकिन इस जगत में हास्य कलाकारों का भी अच्छा नाम है और ऐसे कई कलाकार जो अपनी पिता की हास्य विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. इनकी फेहरिस्त भी लंबी है. दरअसल, हकीकत यह है कि आपका परिवेश, आपका माहौल आपके आगे के करियर को ढालने में काफी मददगार साबित होता है. हम जिस परिवेश में बचपन से ढल जाते हैं. हमें वह जिंदगी प्यारी लगने लगती है. केस्टो मुखर्जी की बेटी सुष्मिता मुखर्जी ने शुरुआती दौर में अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की. बाद में उन्होंने नकारात्मक किरदार निभाना शुरू कर दिया. जगदीप के बेटे जावेद जाफरी ने भी अपने पिता की तरह ही कॉमेडी का रास्ता इख्तियार किया. जॉनी लीवर की बेटी भी इसी क्रम में अगला नाम है. दरअसल, कई बार ये बच्चे अपने पिता के ही सपने को  पूरा करते नजर आ रहे होते हैं. जो जिंदगी वे जी चुके हैं. कई बार वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी उसी जिंदगी को जियें, और कई बार बच्चे अपने शौक से उस जिंदगी को इख्तियार करने की कोशिश करते हैं.हास्य की दुनिया में ये नये नाम अपनी कितनी जगह बना पाते हैं. यह आनेवाला दौर ही बतायेगा. 

पुराना दौर नया कलेवर


 फिल्म बॉस में अक्षय कुमार ने पुराने दौर के  गीत हर किसी को नहीं मिलता...को यह कह कर अपनी फिल्म में  इसका इस्तेमाल किया है कि वह इस गाने से फिरोज खान को ट्रीब्यूट दे रहे हैं. अभिनव कश्यप ने फिल्म बेशरम में फिल्म के किरदार बबली को अमिताभ बच्चन का फैन दिखाया है. इसी फिल्म के अंत में ऋषि कपूर और नीतू कपूर की पुरानी फिल्मों की तसवीर का भी इस्तेमाल किया गया है. इससे पहले प्रियंका चोपड़ा ने शूटआउट एट वडाला में बबली बदमाश में जो कॉस्टयूम पहना था. उन्होंने यह कह कर गाने को प्रोमोट किया था कि वह गीत अमिताभ बच्चन के गाने सारा जमाना हसीनों का दीवाना...को ट्रीब्यूट है. प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई नये जमाने में इस्तेमाल किये जा रहे यह गीत या फिल्मों के दृश्य या तसवीरें वाकई पुराने दौर के कलाकारों को ट्रीब्यूट होती हैं? क्या वाकई फिल्मकार या कलाकार तहे दिल से उन्हें इसे माध्यम से सम्मान देने की कोशिश करते हैं. हाल ही में फिल्म जंजीर के रीमेक के दौरान  अमिताभ बच्चन ने गाने में इस्तेमाल किये जा रहे अपशब्द पर आपत्ति जतायी थी. बाद में इसे हटाया गया और अमिताभ को इस माध्यम से ट्रीब्यूट देने की कोशिश की गयी. दरअसल, हकीकत यह है कि नये जमाने के फिल्मकार और कलाकार सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए पुराने गानों का इस्तेमाल करते हैं. इससे कई फायदे होते हैं. एक तो उन्हें नये गानों की मेकिंग में खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. फिर पुराने गानों को नया रूप देने में उन्हें खास खर्च भी नहीं करना पड़ता. दूसरी बात यह भी स्पष्ट है कि आज भी पुराने दौर के गीतों, कलाकारों का जादू बरकरार है. और लोग उससे सीधे तौर पर खुद को कनेक्ट कर पाते हैं. और यही वजह है कि नये जमाने के कलाकार उस कनेक् शन का फायदा अपने मुनाफे के लिए कमाने की कोशिश करते हैं.

सेलिब्रिटी और मेडिकल साइंस


 ऐश्वर्य राय बच्चन ने हाल ही में घोषणा की है कि वे अपनी बेटी आराध्या के स्टेम सेल को संरक्षित( प्रीजर्व) करवायेंगी. ऐश्वर्य राय बच्चन ने हाल ही में एक कार्यक्रम में यह सूचना दी कि वे यह कदम इसलिए उठा रही हैं क्योंकि यह उनके बेटी के भविष्य के सेहत के लिए लाभदायक साबित होगा. और उन्हें हमेशा से सेहत से संबंधित विषयों, तकनीक और विज्ञान की नयी चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने में दिलचस्पी रही है. ऐश्वर्य राय से पहले मंदिरा बेदी ने भी इसी तरह अपने बच्चों के स्टेम सेल को संरक्षित किया. निश्चित तौर पर आम लोग इस प्रक्रिया से कम अवगत हैं. लेकिन अब चूंकि सेलिब्रिटी दुनिया की एक बड़ी हस्ती इससे जुड़ रही है. तो निश्चित तौर पर लोगों की जानकारी बढ़ेगी. इससे पहले सरोगेसी को लेकर आम लोग उतने जागरूक नहीं थे. जितने अब हैं. चूंकि आमिर खान और शाहरुख खान जैसी हस्तियों ने सरोगेसी का माध्यम चुना तो मीडिया ने भी इसे पूरा तवज्जो दिया. वरना, यह हमारी विडंबना है कि हमारे भारत में सेहत व स्वास्थ्य व विज्ञान व तकनीक को लेकर लोगों में वह जागरूकता नहीं. हम हर दिन आये नये फैशन ट्रेंड पर नजर रखते हैं. लेकिन विज्ञान या मेडिकल साइंस में हुए नयी खोज, प्रयोग के बारे में न तो जानकारी रखते हैं और न ही दिलचस्पी. हां, मगर जैसे ही किसी सेलिब्रिटी का नाम इससे जुड़ता है. लोगों को दरअसल, यह जानने में मजा आता है कि आखिर यह तकनीक क्या है और उस सेलिब्रिटी ने इसका सहारा क्यों लिया. ऐश कभी नेत्रदान को लेकर लोगों को जागरूक करती नजर आती थीं. उनकी वजह से उस दौर में कई लोगों ने नेत्रदान करना शुरू किया था. लेकिन जरूरत यह ैह कि हम अपनी जिम्मेदारी समझ कर इस ओर जागरूक हों न कि किसी सेलिब्रिटी तकी वजह से. चूंकि विषय अपनी सेहत का है.

नैमो नम:


 नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक एंथम बनवाया है. और यह एंथम रैप म्यूजिक के रूप में है. जिसमें नरेंद्र मोदी को नैमो कह कर संबोधित किया जा रहा है. इस पूरे म्यूजिक में नरेंद्र मोदी की गाथा गायी जा रही है और खासतौर से सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. जो नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं और जो नहीं हैं. दोनों ही इसे शेयर कर रहे हैं. स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी जैसे राजनेताओं को भी इस बात की समझ है कि वर्तमान में युवाओं को लुभाने का सर्वश्रेष्ठ जरिया है. जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने अपने कैंपेन में मनोरंजन की दुनिया का सहारा लिया है. इससे उनकी सोच स्पष्ट नजर आती है कि वे मानते हैं कि मनोरंजन एक अहम हिस्सा है. ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने का. पिछले कई दिनों से यह भी चर्चा है कि जल्द ही नरेंद्र मोदी पर फिल्म भी बनेगी. और फिल्म में परेश रावल मुख्य किरदार निभायेंगे. हाल ही में परेश ने मोदी से मुलाकात भी की. आमतौर पर भी मोदी गुजरात में फिल्मों को बढ़ावा देते हैं. न सिर्फ कलेक् शन के रूप में गुजरात प्रमुख केंद्र है. बल्कि फिल्मों की शूटिंग में भी गुजरात के स्थलों का इस्तेमाल जम कर किया जाता है. चूंकि वे इसे प्रोमोट करते हैं. टेलीविजन में गुजराती समुदाय और गुजराती समुदाय पर आधारित धारावाहिकों की बरसात है. इससे स्पष्ट है कि मोदी मनोरंजन को अहम हिस्सा मानते हैं और वे इसे भी व्यवसाय के रूप में देखते हैं. वे औरों की तरह इसे केवल मनोरंजन का माध्यम समझ कर दर किनार नहीं करते. यही वजह है कि अपनी चुनावी हलचल के लिए उन्होंने इस माध्यम का इस्तेमाल किया है और आगे भी करते रहेंगे. दरअसल, वे इस माध्यम की लोकप्रियता को समझ रहे हैं. साथ ही इसके प्रभाव से भी वे वाकिफ हैं और इसका सीधा असर उन्हें नजर भी आ रहा है. 

हंसने हंसाने की कला



किकू शर्मा की सब टीवी के शो एफआइआर में वापसी हो रही है. यह वापसी उन्हें एफआइआर की लोकप्रियता की वजह से नहीं, बल्कि कॉमेडी नाइट्स विद कपिल के शो में पलक के रूप में मिली लोकप्रियता की वजह से मिली है. पलक उर्फ किकू कॉमेडी नाइट्स विद कपल में गुत्थी उर्फ सुनील ग्रोवर के साथ जिस तरह से दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं, वे हर घर में लोकप्रिय हो चुके हैं. इस लिहाज से कपिल और उनकी पूरी टीम को बधाई कि उन्होंने एक बेहतरीन तैयारी की. आम किरदार होकर भी, आम हरकतें करके भी अगर आप दर्शकों के दिलों में जगह बना लेते हैं तो आप सही मायने में कलाकार हैं. किसी जमाने में किशोर कुमार अपने चेहरे के तरह-तरह के भाव, अलग-अलग तरह की आवाजें और फिजूल की हरकतों द्वारा अपने अभिनय में वह रंग भरते थे कि उनकी शरारतें भी दर्शकों को बांधे रख पाने में कामयाब होती थीं और यही वजह है कि आज भी हास्य का महागुरु लोग उन्हें ही मानते हैं. सब टीवी के शो एफआइआर में चंद्रमुखी चौटाला का किरदार निभा रही कविता कौशिक की जगह चित्रासी रावत को शामिल किया गया. लेकिन दर्शकों ने उन्हें सिरे से नकार दिया. चूंकि हंसाना हर किसी के वश की बात नहीं. गौर करें तो टेलीविजन में एक कलाकार की जगह दूसरे कलाकार को लिये जाने का यह सिलसिला लगातार बरकरार है. गौर करें तो नये चेहरे स्थापित हो भी जाते हैं और दर्शक उन्हें पसंद भी करने लगते हैं. जिस तरह गोपी बहू और बालिका वधू में नये चेहरे अब स्थापित हो चुके हैं. लेकिन हास्य की विधा की तुलना किसी और विधा से करना सही नहीं होगा. चूंकि वाकई यह अलग विधा है. इसे लोग जितनी गंभीरता से नहीं लेते, यह उतना ही गंभीर व्यवसाय है. कपिल का शो कामयाब है. चूंकि उनके पास अच्छी टीम है, अगर यह टीम बिखरती है तो शो की लोकप्रियता पर भी असर पड.ना तय है

20131004

लुमिनियर ब्रदर्स का प्रयोग


हाल ही में मुंबई में आयोजित एक फिल्मोत्सव में लुमिनियर ब्रदर्स के परिवार के सदस्य लुमिनियर ब्रदर्स की फिल्में लेकर आये थे. ये वही फिल्में थीं, जिन्हें सबसे पहले लुमिनियर ब्रदर ने बनाया था. मूविंग कैमरे को लेकर उन्होंने जो फिल्में बनायी थी. विश्व में सिनेमा की दुनिया में प्रवेश उसी वक्त हुआ था. इसी से सिनेमा का शंकनाद हुआ और आज भारतीय सिनेमा भी अपने 100वें साल में प्रवेश कर चुकी हैं. लुमिनियर ब्रदर्स ने जो प्रयोग किया था. शायद उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका यह प्रयोग इस कदर पहले क्रियेटिविटी और फिर एक व्यवसाय का रूप ले लेगा. हालांकि लुमिनियर ब्रदर्स के परिवार के सदस्य मैक्स लुमिनियर ने बताया कि अब उनका परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी रूप में फिल्म के व्यवसाय से नहीं जुड़ा है. यह रोचक जानकारी ही है कि सिनेमा के सपने को साकार करनेवाले राजकुमार का परिवार ही अपने इस सपने से सरोकार नहीं रखता. लुमिनियर ब्रदर्स की उन फिल्मों में परिवार के ही सदस्यों के वीडियो लिये गये हैं. मैक्स वीडियो देखते हुए जानकारी देते हैं कि किस तरह कैमरा आॅन होते ही उनके परिवार के सदस्य वाकई थोड़ा अभिनय करने की कोशिश करने लगते थे. दरअसल, यह स्वभाविक क्रिया भी है, आपके सामने जब कैमरा आॅन होता है तो आप भी आमतौर पर अभिनय ही करते हैं. हिंदी सिनेमा के कई कलाकारों के बारे में यह खबर सुनी जाती रही है कि वे कैमरा आॅन होते ही अपने किरदार में ढल जाता है. श्रीदेवी, गोविंदा उनमें से एक हैं. दरअसल, यही हकीकत भी है कि वह अभिनेता हैं और कैमरा आॅन होते ही उन्हें अभिनय करना है. यह सीख शायद लुमिनियर ब्रदर्स ने शुरुआती दौर में ही दे दी थी. अभिनय का श्रीगणेश भी  तो उन्होंने ही किया था. अरसे बाद उनके संस्मरण सुनना अनोखा अनुभव रहा. 

गांधी की नजर से सिनेमा


हिंदी सिनेमा पर आधारित एक महत्वपूर्ण उपयोगी ब्लॉग चवन्नीचैप पर गांधी और सिनेमा पर एक महत्वपूर्ण आलेख है. जिसमें गांधी की नजर में सिनेमा के दृष्टिकोण को दर्शाने की कोशिश की गयी है. इस आलेख में ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा गांधीजी को लिखे पत्र की व्याख्या है, जिसमें ख्वाजा अहमद अब्बास ने गांधीजी को समझाने की कोशिश की है कि सिनेमा उतनी बुरी और अनुपयोगी चीज नहीं. जितनी दिखाई देती है. उन्होंने आग्रह किया है कि वे सिनेमा को लेकर अपने नजरिये को बदलें. लेकिन गांधीजी ने अपना नजरिया नहीं बदला. यह अलग बात है कि बाद में हिंदी सिनेमा ने गांधीजी पर कई फिल्में बनायी. गांधी के विचारों पर गांधी के कार्यों पर कई फिल्में बनी.दरअसल, स्वयं गांधीजी इसकी महत्ता को समझ नहीं पाये होंगे कि एक दौर में जब वह वह नहीं रहेंगे तो यह वीडियो व चलचित्र ही वह माध्यम होगा, जिससे उनके कार्यों का लेखा जोखा लोगों तक पहुंचेगा. आज भी  मेरी अपनी राय है. हो सकता है कि इस बात से कई लोग असहमत होंगे. लेकिन मुझे देखी गयी चीजें ज्यादा याद रहती हैं, बनिस्पत पढ़ी हुई चीजें. मिल्खा सिंह पर आधारित मैंने किताबें पढ़ी हैं. लेकिन उनकी जिंदगी से जितनी वाकिफ फिल्म भाग मिल्खा भाग के माध्यम से हुई. शायद किताबें पढ़ कर उससे वंचित रह जातीं. गांधीजी ने बाद के दौर में राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशकों को इस तरह प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी फिल्म से गांधीगिरी को लोकप्रिय कर दिया. लेकिन शायद खुद गांधीजी रहते तो उन्हें इस शब्द पर आपत्ति होती. यह सिर्फ गांधीवादी विचारधारा नहीं, बल्कि सिनेमा को जुआ और सट्टा समझने की चूक आज भी कई लोग करते हैं. दरअसल, सिनेमा जितना विस्तृत और समृद्ध होता जायेगा. उसे लेकर उतने ही अलग अलग नजरिये बनते रहेंगे. 

डायलॉगबाजी फिर से


शाहिद कपूर की नयी फिल्म आर राजकुमार का संवाद है.साइलेंट हो जा वरना मैं वॉयलेंट हो जाऊंगा. इससे पहले शाहिद कपूर ने फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो में भी जम कर डॉयलॉगबाजी की है. फिल्म वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई दोबारा के असफल होने की बड़ी वजह यही रही कि फिल्म में जरूरत से ज्यादा संवाद अदायगी है. दरअसल, एक बार फिर से हिंदी सिनेमा में डायलॉग बाजी का दौर लौट आया है. किसी दौर में फिल्म की कहानी पर नहीं फिल्म के संवादों पर ही दर्शकों की तालियां बजती थी. 80 से 90 के दशक में ऐसी फिल्में बहुत बनी. हां, यह सच है कि कुछ ऐसे संवाद भी रहे जो हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय संवाद बन गये. लेकिन आज के दौर में उन संवादों को सुनो तो वे न तो प्रासंगिक लगते हैं और न ही बेहद कर्णप्रिय. लेकिन फिर भी उन संवादों पर कॉमेडी शोज में सबसे ज्यादा पैरोडी बनायी जाती है. चूंकि एक बार जो लोकप्रिय हो चुका है. वही लोकप्रिय है. फिलवक्त हिंदी सिनेमा के कुछ निर्देशक इसी का सहारा ले रहे हैं. कहानी कैसी भी हो. वे चाहते हैं कि फिल्मों के संवाद लोकप्रिय हो जायेंगे. राउडी राठौड़ फिल्म की तो पूरी पब्लिसिटी ही संवाद के बलबुते की गयी. लेकिन अफसोस की बात यह है कि परदे पर ऐसे संवाद जब अभिनेता या अभिनेत्री इन दिनों बोलते नजर आते हैं. उनमें कोई नयापन नहीं होता. आर राजकुमार के पोस्टर को देखें तो आप गौर करेंगे कि एक बार फिर से लार्जर देन लाइफ किरदार निभाने वाले किरदार का दौर लौट आया है. दरअसल, शाहिद कपूर सरीके कलाकारों की यही कोशिश है कि वह चॉकलेटी इमेज से बाहर निकल कर ऐसे किरदार निभायें ताकि वे भी उन श्रेणी में शामिल हो पायें. और ऐसे में उन्हें मदद डायलॉगबाजी से ही मिलती है और यही वजह है कि अब कहानी नहीं फिर से डायलॉगबाजी का दौर लौट रहा है

कपूर खानदान कल आज कल


रणबीर कपूर की फिल्म बेशरम तमाम बातों के बावजूद एक बुरी फिल्म है. रणबीर कपूर फिल्म की जान थे. और लोगों का यही मानना था कि फिल्म में चूंकि ऋषि कपूर और रणबीर कपूर ने पहली बार साथ साथ काम किया. फिल्म अच्छी ही बनी होगी. लेकिन लोगों की उम्मीदों पर यह फिल्म खरी नहीं उतरती. ऋषि कपूर ने फिल्म से पहले केबीसी में बातचीत के दौरान कहा कि उनकी इच्छा है कि ये फिल्म जब उनके परपोते देखें तो उन्हें खुशी होगी कि दादाजी और बेटे ने साथ काम किया है. इसी मकसद से उन्होंने यह फिल्म बनायी है. राजकपूर ने भी इसी उद्देश्य से शायद फिल्म कल आज और कल का निर्माण किया था. जिसमें उन्होंने तीन पीढ़ियों को साथ फिल्माया है. हां, यह सच है कि भले ही वह फिल्म सफल नहीं हुई. लेकिन राजकपूर ने फिल्म के माध्यम से तीन पीढ़ियों की सोच को दर्शाने की बेहतरीन कोशिश की थी. लेकिन आज अगर फिल्म बेशरम सफल भी हो जाये तो वह हर लिहाज से उस फिल्म से कम ही होगी. चूंकि कपूर खानदान की दो पीढ़ियों ने जिस तरह से बेशरम में बेशरमियत की हदें पार की हैं. वह कपूर खानदान के नाम पर एक तमाचा है. रणबीर कपूर वर्तमान दौर के सबसे बेहतरीन कलाकार हैं. और उनसे दर्शकों की उम्मीद कई गुना बढ़ चुकी है.ऐसे में बेशरम जैसी फिल्मों का चुनाव और साथ ही साथ ऋषि कपूर जैसे अभिनेता का फिल्म के लिए हां कहा जाना बेहद चौंकानेवाला निर्णय लगता है. क्या हिंदी सिनेमा में इससे पहले किसी निर्देशक ने इन कलाकारों को साथ लेकर फिल्म बनाने की परिकल्पना ही नहीं की थी? क्या ऋषि कुछ और दिन इंतजार नहीं कर सकते थे. ऋषि कपूर के उतावलेपन की वजह फिल्म में साफ नजर आ रही है. वाकई निर्देशक अभिनव कश्यप ने बेहतरीन स्टार कास्ट को बुरी तरह बर्बाद किया है. 

पॉजिटिव सोच से मिलता है सुपर पावर

सुपर स्टार रितिक रोशन सिर्फ बाहर से ही रफ एंड टफ नहीं हैं, बल्कि अंदर से भी काफी मजबूत हैं. उनका सकारात्मक सोच हमेशा उन्हें सुपर पावर देता है. तभी तो हेल्थ से जुड.ी कई परेशानियों से न केवल वह उबर कर सामने आये हैं, बल्कि ज्यादा मैच्योर भी हुए हैं. उनके सकारात्मक सोच की चमक चेहरे पर साफ नजर आती है. उनके अनुसार हर शख्स में एक सुपर हीरो होता है. जरूरत बस उसे पहचानने की है. जिंदगी में मुसीबतों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनसे लड.ना चाहिए. रितिक ने कृष 3 और अपनी जिंदगी से जुडे


आपकी नजर में सुपरहीरो की असली परिभाषा क्या है? सुपर हीरो को पावर कहां से मिलती है?

मेरी नजर में हर किसी में सुपर पावर है. बस उसे जानने-समझने की जरूरत है. सुपर हीरो की पावर उसकी सोच है. सुपर हीरो बनने में सिर्फ तीन सेकेंड बनने का समय लगता है. आपके सामने जो भी चैलेंज, जो भी सिचुएशन है, आप सोच लें कि इसको मैं सुपरहीरो की तरह हैंडल करूंगा. मतलब बहादुरी से. एक, दो, तीन..लेट्स डू इट. जैसे कि मेरे साथ हुआ ब्रेन सर्जरी के समय.डॉक्टर ने कहा कि ब्रेन में ब्लड जमा है. होल करके ब्लड निकालना होगा. ऐसे में पहला रिएक्शन होता है, अरे बाप रे.., लेकिन मैंने तीन सेकेंड में तय कर लिया कि गिव अप नहीं करूंगा. तय किया कि मैं सुपरहीरो की तरह इस परेशानी से उबरूंगा. ऑपरेशन टेबुल पर भी मैं गा रहा था. मैंने कहा कि मैं होश में रह कर ऑपरेशन कराऊंगा. डॉक्टर मेरे सिर से जमा ब्लड निकाल रहे थे और मैं देख रहा था.

इन सब के लिए आपको प्रेरणा कहां से मिलती है? 

प्रेरणा तो जिंदगी ही है. लाइफ इज अ गेम. जिस वक्त आपने यह स्वीकार कर लिया कि इस गेम को पूरी एबिलिटी के साथ खेलना है, तो बस फिर आपके लिए कोईभी काम मुश्किल नहीं. अब जो भी हो रहा है. जब परेशानी आती है, तो मैं ऊपर देखकर भगवान से कहता हूं, बस इतना ही. बस यही से मुझे ऊर्जा और शक्ति मिल जाती है. मैंने महसूस किया है, कि जैस-जैसे मेरी जिंदगी में मुश्किलें बढ.ीं, मेरे सामना करने की क्षमता भी बढ.ती गयी. जिंदगी में प्रॉब्लम कभी खत्म नहीं होती. आज भी मेरे घुटनों में परेशानी है, शोल्डर ठीक नहीं. अब तो ब्रेन में भी होल है. मैं निराश नहीं होता. सोचता हूं, सब अच्छा होगा. मैं एक्सीपिरियंस से जल्दी सीख लेता हूं.

क्या आपने गुजारिश या अन्य फिल्मों में अपनी इसी अवस्था को परदे पर उतारा है?

हां, मैंने अपने हर किरदार से कुछ-न-कुछ सीखा है. जब भी मैं किसी किरदार का चयन करता हूं, तो मैं देखता हूं कि उस किरदार में क्या-क्या खूबियां हैं? अगर उस किरदार में खूबियां मुझसे ज्यादा हैं, तो मैं वह कैरेक्टर करना चाहता हूं, क्योंकि मैं महसूस करता हूं कि कहीं-न-कहीं मैं उस कैरेक्टर से कम हूं. अपने आप को उस कैरक्टर में रख कर मैं ग्रो करने की कोशिश करता हूं.

इस फिल्म का नाम कृष 3 क्यों है? कृष 2 क्यों नहीं? कोई मिल गया व कृष के बाद यह तो अगली कड.ी थी?

ये सीरीज की तीसरी फिल्म है. सबसे पहले कोई मिल गया में जादू ने पावर दिया था. इसके बाद कृष और अब तीसरी फिल्म कृष 3 है.

कोई मिल गया से अब तक बतौर एक्टर क्या चीजें रहीं, जो आपको सबसे कठिन लगी? 

‘कोई मिल गया’ में मैंने जो रोहित का किरदार निभाया था, उसे फिर से 10 सालों के बाद दोबारा कृष 3 में निभा रहा हूं. कोई मिल गया में जो बच्चा था, वहीं इस फिल्म में बाप का रोल कर रहा है. बच्चे की हरकतों के साथ एक बाप की जो डिगनिटी है, जो सपोर्ट है, वहीं बतौर एक्टर मुझे मुश्किल लगा.मैंने इसके लिए काफी मेहनत भी की है. दरअसल, कृष और रोहित मेरे अंदर के ही दो हिस्से हैं. जब शूटिंग के दौरान मैं कृष का सूट पहनता हूं तो मैं वाकई सुपरहीरो की तरह महसूस करने लगता हूं.भारी सूट पहनकर लगातार शूटिंग करना और इसके तुरंत बाद रोहित का किरदार निभाना भी थोड.ा मुश्किल था.

भारत में रह कर कृष 3 जैसी फिल्में बनाना कितना कठिन है? 

हां, ये बात सही कही आपने. थोड.ा टफ तो है. शुरुआत में जैसे-जैसे फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी. पापा मेरे पास आते और कहते कि नहीं बना पायेंगे. पापा ने कहा कि चलो कोई छोटी फिल्म बनाते हैं और उसी को बना कर एंज्वॉय करेंगे. मैंने पापा से बस इतना ही कहा कि यह अब आपकी जिम्मेवारी है, कि आप इस स्क्रिप्ट को दर्शकों तक कैसे पहुंचाते हैं.ऐसी स्क्रिप्ट बहुत कम बनती है. अगर हम दोनों मिल कर नहीं करेंगे, तो कौन करेगा भारत में. उसके बाद हमने निर्णय लिया कि इस फिल्म में हम किसी भी हॉलीवुड आर्टिस्ट से काम नहीं लेंगे. यह पूरी तरह से भारत की पहली हाइ बजट वीएफएक्स सुपरहीरो फिल्म है, जिसका पूरा काम भारत में हुआ है. इसमें एक शॉट भी नहीं है..कहीं भी बाहर से. यह कंप्लीट इंडियन फिल्म है, जिसमें इमोशन भी है. फैमिली ड्रामा भी है और वीएफएक्स सुपरहीरो भी.

इस फिल्म की शूटिंग के दौरान भी आप पूरी तरह से स्वस्थ नहीं थे?

हां, मेरे डॉक्टर्स ने मुझे एक्शन करने से मना किया था और पापा इस बात को लेकर टेंशन में रहते थे. मेरे लाइफ का एक्सपीरियंस रहा है, कि जब भी डॉक्टरों ने कहा कि मैं ये नहीं कर सकता, मैंने करके दिखाया है. मैंने कभी भी अपने करेज के सामने किसी की बात नहीं सुनी. मैंने देखा है कि बहुत सारे लोग हैं, जिनके लाइफ में मिरैकल होते हैं.मैं हमेशा सोचता हूं कि ये मिरैकल मेरे साथक्यों नहीं हो सकता. मुझे तो बस ढूंढ.ना है. साइंस ने तो बोल दिया कि आप अब नहीं कर पायेंगे, लेकिन मैंने ऑल्टेरेनेटिव ढूंढ.ना शुरू किया. कृष के दौरान भी मुझे डॉक्टर ने कहा तो मैंने बात नहीं मानी. मैंने कृष के किरदार से पॉवर लिया और सारे एक्शन किये. आपको आश्‍चर्य होगा कि मैंने अपनी लाइफ में इतना एक्शन कभी नहीं किया, जितना इस फिल्म में किया है. 80 दिनों तक लगातार बिना किसी ब्रेक के. मैं मानता हूं कि अगर आप किसी चीज को पाना चाहते हो और उसे पाने के लिए हरसंभव प्रयास करते हो, तो आपको वह चीज मिल ही जाती है. यह यूनिवर्स का इक्वेशन है. मैंने भी वही किया.

कई लोग कहते हैं कि आप ग्रीक गॉड की तरह दिखते हैं?

नहीं, मैं ग्रीक गॉड नहीं हूं. झूठी बात है. अभी-अभी मैं ग्रीक गया था और वहां मुझे किसी ने पहचाना तक नहीं.इससे साबित होता है कि मैं ग्रीक गॉड नहीं हूं

20130930

बॉलीवुड के बेशरम


जल्द ही रणबीर कपूर की फिल्म बेशरम रिलीज हो रही है. फिल्म में उन्होंने चोर उचक्का किस्म का किरदार निभाया है और रणबीर यह किरदार निभा कर बेहद खुश भी हैं. यह तो रहीफिल्म की बात. लेकिन हकीकत यह है कि बॉलीवुड हस्तियों की वास्तविक जिंदगी में भी कुछ लम्हें ऐसे रहे हैं, जब वह वास्तविक जिंदगी में भी बेशरम के रूप में नजर आये हैं. पेश है कुछ ऐसे बॉलीवुड के वास्तविक बेशरम कारनामों पर की रिपोर्ट

 बॉलीवुड हस्तियों के जीवन में भी ऐसे कई पल आये हैं, जब कभी वे जान बूझ कर बेशरम बने तो कभी कुछ परिस्थिति ऐसी रही कि उन्हें बेशरम बनना पड़ा. 

 मनोरंजन की दुनिया में ऐसी भी कुछ हस्तियां हैं, जिन्हें खुद को बेशरम कहलाने में बहुत मजा आता है और वह खुद को बिंदास होकर बेशरम मानती हैं या मानते हैं.
इन हस्तियों में वीणा मल्लिक और पूनम पांडे का नाम सबसे पहले आता है. क्योंकि आये दिन वे न्यूड होकर फोटो शूट करवाती रहती हैं और वे इसे शान की बात मानती हैं. सनी लियोन को भी पॉर्न स्टार की इमेज में रहने से कोई परेशानी नहीं. डॉली बिंद्रा बकबक करने के लिए बदनाम हैं. लेकिन उन्हें भी अपनी इस बेशरमी से कोई परेशानी नहीं. राखी सावंत, इमाम सिद्दिकी जैसे लोगों का नाम भी इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. 

रणबीर कपूर-कट्रीना कैफ
कट्रीना कैफ और रणबीर कपूर की स्पेन के बीच पर बिताई गयी कुछ तसवीरें पिछले काफी दिनों से चर्चा का विषय रही. वजह यह थी कि इसमें कैट बिकनी ड्रेस में थी और रणबीर कैट काफी कूल मूड में थे. ऐसे में उनकी तसवीरें कैमरे में कैद हो गयीं और पूरे मीडिया में यह खबर फैल गयी. इसके बाद कट्रीना ने मीडिया को एक खुला पत्र लिख कर अपने गुस्से का इजहार किया कि उनकी निजी जिंदगी में किसी मीडिया को दखल नहीं देना चाहिए. अब कैट एक बात तो आपको समझनी ही चाहिए कि कैमरा आपका पीछा करेगा ही. आप सेलिब्रिटी हैं और अगर आपको पसंद नहीं कि लोग आपकी ऐसी तसवीरें उतारें तो आपको सार्वजनिक स्थल पर इस तरह घूमना ही नहीं था.
अक्षय कुमार ने जब सार्वजनिक रूप से किया ये कारनामा
अक्षय कुमार ने कुछ सालों पहले एक फैशन शो में रैंप पर वॉक करते करते अपनी पत् नी टिष्ट्वंकल खन्ना के पास पहुंच गये. टिष्ट्वंकल फर्स्ट रो में बैठी थीं और उन्होंने वहां जाकर टिष्ट्वंकल से कहा कि मेरी जींस की जीप खोले. टिष्ट्वंकल ने भी आव देखा न ताव उन्हें लगा कि वे इससे काफी लोकप्रिय हो जायेंगे. सो, उन्होंने जीप खोल भी दिया. अक्षय कुमार उस फैशन शो में किसी जींस के ब्रांड का ही प्रोमोशन कर रहे थे. आमतौर पर कूल और मजाकियां अंदाज में रहनेवाले अक्षय को यह नहीं पता था कि उनकी यह बेशरम हरकत उन्हें परेशानी में डाल देगी. बाद में इसे लेकर काफी विवाद हुआ
आमिर ने शाहरुख को कह दिया कुत्ता
आमिर खान कुछ सालों पहले पंचगिनी से एक कुत्ता लेकर आये थे और उन्हें वह शाहरुख कह कर बुलाते थे. उन्होंने कई नेटवर्किंग साइट पर यह लिख दिया कि शाहरुख मेरे पैरों के नीचे बैठा है और वह मेरे तलवे चाट रहा है. मैं अभी शाहरुख को बिस्किट खिला रहा हूं और ऐसी ही कई बातें आमिर ने कही. बाद में उन्होंने लिखा कि शाहरुख मेरे कुत्ते का नाम है. इसे लेकर काफी विवाद हुआ. शाहरुख खान ने भी इस पर काफी तीखा वार किया. लेकिन बाद में आमिर ने महसूस किया कि बात ज्यादा आगे निकल रही है और इससे उनकी इमेज खराब होगी तो उन्होंने शाहरुख के घर जाकर उनसे माफी मांगी. शाहरुख की बेटी से माफी मांगी और बात को स्पष्ट किया कि वे वह कुत्ता पंचगनी से लाये थे और वहां एक परिवार वाले ने उस कुत्ते को पाला था. और वे शाहरुख के फैन थे और वह अपने कुत्ते को बेटे सा प्यार करते थे इसलिए उन्होंने कुत्ते का नाम शाहरुख रखा था.
शाहरुख-सलमान के कारनामे
शाहरुख खान भी कई बार अपनी सुपरस्टार की इमेज से इतर बेशरमियत पर उतर आये हैं. उन्होंने कई बार पार्टियों में अपना आपा खोया. सलमान खान के साथ कैट की पार्टी में उन्होंने हाथापाई की थी. फिर एक बार उन्होंने संजय दत्त की पार्टी में गुस्से में अपना आपा खो दिया और बेशरम बन कर सबके सामने फराह खान के पति शिरीष कुुंदुर को चाटा जड़ दिया था फिर काफी बातें भी सुनाई थी. वही दूसरी तरफ सलमान खान हमेशा खबरों में बने रहते हैं, चूंकि उनके कुछ ऐसे ही कारनामें होते हैं. हाल ही में सलमान खान ने एक टीवी शो की लांचिंग पर एक गे जर्नलिस्ट का काफी मजाक उड़ाया. साथ ही वह कई बार मीडिया के लोगों से भी बदतमीजी कर चुके हैं. उन्होंने कई बार अपने फैन को भी थप्पड़ जड़ा है. लेकिन इसके बावजूद उन्हें इन बातों का मलाल नहीं.
मीडिया के साथ बदसलूकी
आमतौर पर फिल्मी हस्तियों की यह छवि बनी होती है कि वे बेहद नम्र स्वभाव के होते हैं. लेकिन कई ऐसी हस्तियां हैं, जो कई बार मीडिया के साथ काफी बदसलूकी करती है. इनमें जया बच्चन का नाम सबसे पहले आता है. जया बच्चन को मीडिया से बात करना पसंद नहीं वह इंटरव्यू नहीं देतीं और अगर कभी किसी इवेंट में शामिल भी हो जायें तो ढंग से बात नहीं करतीं. एक बार गुस्से में आकर उन्होंने एक मीडिया हाउस के माइक के बूम को ही तोड़ डाला था. उनके बेटे अभिषेक बच्चन ने भी एक बार मीडिया के व्यक्ति पर सरेआम हाथ उठा लिया था. रणबीर कपूर ने फिल्म ये जवानी है दीवानी के प्रेस लांच में एक जर्नलिस्ट को काफी खरी खोटी सुना दी थी, क्योंकि वह चैनल के प्रतिनिधि रणबीर और दीपिका की लव स्टोरी से संबंधित सवाल पूछ रहे थे. ऋतिक रोशन ने भी एक बार शिरडी यात्रा में कुछ ऐसा ही बर्ताव किया था. अमिताभ बच्चन ने भी कुछ सालों पर पहले मीडिया को बॉयकॉट किया था. ऐश्वयर्  राय बच्चन भी बच्चन बहू बनने के बाद मीडिया के उनके निजी जीवन में पूछे गये किसी भी सवाल का सही तरीके से जवाब नहीं देती हैं.शाहिद कपूर भी पहले मीडिया से अच्छी तरह से बात नहीं करते थे.
रणवीर सिंह
रणवीर सिंह पिछले काफी दिनों से दीपिका पादुकोण के पीछे पीछे घूमते नजर आ रहे हैं. हाल ही में वह एक टीवी के सेट पर भी दीपिका के पीछे पीछे पहुंच गये थे. दीपिका वहां अपने फिल्म के प्रोमोशन के लिए पहुंची थी. लेकिन रणवीर वहां भी पहुंच गये थे. बाद में जब यह खबर फैली तो वह अपना मुंह छुपा कर वहां से भाग निकले थे. उनकी इस हरकत के बारे में  मीडिया में काफी दिनों तक  चर्चा रही.

फिल्मी तिलिस्म


अमिताभ बच्चन ने हाल ही में केबीसी के एक एपिसोड में रणबीर कपूर के पूछने पर एक यादगार बात सांझा की. उन्होंने बताया कि फिल्म याराना फिल्म के गाने सारा जमाना हसीनों का दीवाना में...किस तरह उन्होंने स्टेडियम की शूटिंग में लोगों की बजाय मोमबत्तियां लगाने की राय निर्देशक को दी. ताकि ज्यादा लोगों को एकत्रित करने की जरूरत न हो. शूटिंग दिन में हुई थी. लेकिन माहौल रात का दर्शाना था. साथ ही उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने कॉस्टयूम को वह लुक दिया, ताकि पूरे स्टेडियम में जगमगाहट नजर आये. अमिताभ बच्चन की एक फिल्म शंहशाह के एक दृश्य में अमिताभ अदालत में कार लेकर घूस जाते हैं और अरुणा ईरानी को गवाह के रूप में पेश करते हैं. फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो में मुंबई पुलिस को निठ्ठला दिखाया गया है. दरअसल, हकीकत यही है कि यह फिल्मों का ही तिलिस्म होता है. जो हमें गलत को भी सही और स्वभाविक समझने पर मजबूर कर देता है. वरना, वर्तमान में आप जब वे पुरानी फिल्में देखें तो आप उसके साथ कई तर्क वितर्क कर सकते हैं. चूंकि अब दर्शक काफी बुद्धिमान हो चुके हैं. लेकिन जिस दौर में वे फिल्में बनी हैं. उस दौर में दर्शक हिंदी फिल्मों की इन्हीं नादानियों या यूं कहें चीट शॉट्स को देख देख कर तालियां बजाती थीं और खुश होती थीं. फिल्म अमर अकबर एंथनी में साई बाबा की आंखों से आंखें निकल कर निरुपा राय की आंखों में चली जाती हैं, इस दृश्य के बारे में अमिताभ ने रणबीर से पूछा कि क्या आज ये फिल्में बने तो युवा पीढ़ी पसंद करेंगी. हालांकि रणबीर ने कहा हां. लेकिन हकीकत यह है कि आज इस तरह की चीजें हास्यपद साबित होंगी. सो, आज के दर्शक इस तरह के दृश्यों को फिल्माने में काफी सतर्कता बरतते हैं. तमाम बातों के बावजूद एक सच कायम है कि फिल्म का यह तिलिस्म जारी रहेगा.