हाल ही में मामी फिल्मोत्सव में अभिनेता इमरान खान जब एक फिल्म को प्रस्तुत करने स्टेज पर गये.तो नीचे आॅडियंस में बैठे लोगों ने उनका काफी मजाक बनाया. मजाक इस संदर्भ में भी इमरान को किसने हक दिया है कि वे मामी जैसे बुद्धिजीवी फिल्मोत्सव का हिस्सा बनें. स्पष्ट है कि भारत में ऐसे जितने भी फिल्मोत्सव होते हैं, वहां तथाकथित बुद्धिजीवी लोग आते हैं, जो खुद को वर्ल्ड सिनेमा का ही हिस्सा मानते हैं. और उनकी नजर में बॉलीवुड की सारी फिल्में बेमतलब की होती हैं. निम्न स्तर की होती हैं. सो, उनकी नजर में ऐसे फिल्मोत्सव से बॉलीवुड का कोई काम नहीं. जबकि हकीकत यह है कि इस वर्ष मामी फिल्मोत्सव में फंड की कमी थी और सबसे ज्यादा बॉलीवुड के लोग ही आगे आये और उन्होंने मामी को बचाया. ऐसे में बॉलीवुड सिनेमा के हेय की दृष्टि से देखा जाना कहां तक उचित है. इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता कि बॉलीवुड लोकप्रिय सिनेमा है. जब अमिताभ बच्चन कान फिल्मोत्सव के ज्यूरी बनते हैं और खास मेहमान बनते हैं तो हम कैसे भूल जाते हैं कि वह इसी बॉलीवुड की ही देन हैं. शाहरुख खान विदेशों में लोकप्रिय हैं. सो, बुद्धिजीवी सिनेमा खुद को बॉलीवुड से जुदा करके नहीं देख सकता. मुंबई के दर्शकों के साथ यह परेशानी है कि वे अंगरेजी सिनेमा को ही सबसे खास सिनेमा मानते हैं. हर समीक्षक भी हिंदी सिनेमा की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि वे बेकार हैं. अंगरेजी फिल्मों की तरह नहीं बनी. फिर वे उसके आधार पर ही फिल्मों में कमियां निकालना शुरू कर देते हैं. तो यह हमारी प्रवृति है. भले ही इमरान खान सुपरसितारा न हों. लेकिन वे हिंदी सिनेमा जगत के हिस्सा हैं और इस आधार पर उनका अपमान नहीं किया जाना चाहिए था. यह शर्मनाक बात है.
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20141203
बुद्धिजीवी बनाम बॉलीवुड सिनेमा
हाल ही में मामी फिल्मोत्सव में अभिनेता इमरान खान जब एक फिल्म को प्रस्तुत करने स्टेज पर गये.तो नीचे आॅडियंस में बैठे लोगों ने उनका काफी मजाक बनाया. मजाक इस संदर्भ में भी इमरान को किसने हक दिया है कि वे मामी जैसे बुद्धिजीवी फिल्मोत्सव का हिस्सा बनें. स्पष्ट है कि भारत में ऐसे जितने भी फिल्मोत्सव होते हैं, वहां तथाकथित बुद्धिजीवी लोग आते हैं, जो खुद को वर्ल्ड सिनेमा का ही हिस्सा मानते हैं. और उनकी नजर में बॉलीवुड की सारी फिल्में बेमतलब की होती हैं. निम्न स्तर की होती हैं. सो, उनकी नजर में ऐसे फिल्मोत्सव से बॉलीवुड का कोई काम नहीं. जबकि हकीकत यह है कि इस वर्ष मामी फिल्मोत्सव में फंड की कमी थी और सबसे ज्यादा बॉलीवुड के लोग ही आगे आये और उन्होंने मामी को बचाया. ऐसे में बॉलीवुड सिनेमा के हेय की दृष्टि से देखा जाना कहां तक उचित है. इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता कि बॉलीवुड लोकप्रिय सिनेमा है. जब अमिताभ बच्चन कान फिल्मोत्सव के ज्यूरी बनते हैं और खास मेहमान बनते हैं तो हम कैसे भूल जाते हैं कि वह इसी बॉलीवुड की ही देन हैं. शाहरुख खान विदेशों में लोकप्रिय हैं. सो, बुद्धिजीवी सिनेमा खुद को बॉलीवुड से जुदा करके नहीं देख सकता. मुंबई के दर्शकों के साथ यह परेशानी है कि वे अंगरेजी सिनेमा को ही सबसे खास सिनेमा मानते हैं. हर समीक्षक भी हिंदी सिनेमा की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि वे बेकार हैं. अंगरेजी फिल्मों की तरह नहीं बनी. फिर वे उसके आधार पर ही फिल्मों में कमियां निकालना शुरू कर देते हैं. तो यह हमारी प्रवृति है. भले ही इमरान खान सुपरसितारा न हों. लेकिन वे हिंदी सिनेमा जगत के हिस्सा हैं और इस आधार पर उनका अपमान नहीं किया जाना चाहिए था. यह शर्मनाक बात है.
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