20110916

जोड़ आये हम वो गलियां...




किसी निदर्ेशक या लेखक की पृष्ठभूमि के बारे में खंगालें तो आप गौर करेंगे कि कई निदर्ेशकों ने जब भी मौके मिले हैं उन्होंने उन स्थानों को दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जहां कभी उन्होंने अपना बचपन बिताया है. साथ ही उम्र के साथ साथ ही उन स्थानों पर उनकी यादें जुड़ गयी हों. यही वजह है कि कई फिल्मों में हम बासाख्ता कई बार देहरादून के रेलवे स्टेशन तो कभी कानपुर के छत देख लेते हैं. क्योंकि इन निदर्ेशकों ने उन गलियों को छोड़ा नहीं बल्कि बॉलीवुड से जोड़ा है.

फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन में कहानी शुरू तो होती है लंदन से. लेकिन कुछ ही पलों में निदर्ेशक अली अब्बास के फिल्म के मुख्य किरदार कुश के साथ देहरादुन स्टेशन पहुंच जाते हैं, जहां उनके बचपन के दोस्त उनका सेलिब्रिटी स्वागत करते हैं. फिल्म में काफी देर तक कहानी देहरादून शहर में ही घूमती है. कुछ इसी तरह पंकज कपूर की पहली निदर्ेशित फिल्म मौसम के किरदार आयत और हरिंदर सिंह की दोस्ती पंजाब के शहर में होती है और फिर उनकी प्रेम कहानी आगे बढ़ती है. मनीष शर्मा की बैंड बाजा बारात के श्रूति बिट्टू के तो रग रग में दिल्ली की भाषा है. दरअसल, सच्चाई यही है कि निदर्ेशक अपनी कल्पनाशीलता में उन स्थानों को जरूर शामिल करता है, जहां उसका बचपन या अधिक से अधिक वक्त गुजरा हो. इसकी खास वजह यही है कि किसी भी व्यक्ति को उन चीजों से गहरा लगाव हो जाता है, जिसे वह बचपन से देखते रहे हों. फिर चाहे वह वहां की भाषा हो, वहां का रहन सहन हो. यही वजह है कि हिंदी सिनेमा के कई निदर्ेशकों ने अपन मूल स्थानों को कई बार फिल्मों में दर्शाया है. खुद अली अब्बास जफर ने मेरे ब्रदर की दुल्हन की मेकिंग के बारे में बताते हुए कहा था कि यह सच है कि मैंने अपनी फिल्मों में अपने उन स्थानों को दर्शाया है. जहां मैंने अपनी जिंदगी के सबसे ज्यादा दिन गुजारे हैं. उनका ईशारा दिल्ली और देहरादून से था. निदर्ेशक पंकज कपूर मानते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपने लेखन या सोच में उन चीजों की चर्चा करे, जिससे वह सबसे ज्यादा जुड़ा है तो उसमें वास्तविकता आती है और मौलिकता भी. वह फिर बनावटीपन नहीं लगता. मैं पंजाब से हूं. सो, मैंने फिल्म की पृष्ठभूमि पंजाब की चुनी. चूंकि मैं पंजाब को समझता हूं तो शायद मैं सही तसवीर प्रस्तुत करने में सफल रहूंगा. हिंदी सिनेमा जगत में हम अगर देखें तो वे सारी फिल्में जिनमें निदर्ेशक या लेखक ने अपने मूल स्थानों को जोड़ा है, उसके संवाद दर्शकों ने पसंद किये हैं. उन फिल्मों के किरदार लोकप्रिय रहे हैं.

महेश मांजरेकर, (वास्तव, सिटी ऑफ गोल्ड स्थान मुंबई)

महेश मांजरेकर मूलतः महाराष्ट्र से हैं. उन्होंने अब तक जितनी भी फिल्में बनाई हैं. उनमें सबसे अधिक लोकप्रिय उल्लेखनीय कामों में उनकी वास्तव सिटी ऑफ गोल्ड नामक फिल्मों की गिनती होती है. इसकी वजह यह है कि जहां वास्तव में उन्होंने एक ऐसे लड़के की कहानी बयां की है जो अंडरवर्ल्ड से जुड़ जाता है तो वही फिल्म सिटी ऑफ गोल्ड में मुंबई में चीनी मील के बंद पड़ जाने से मजदूर की दयनीय हालत को दर्शाया है. फिल्म के संवाद भी मुंबईया अंदाज में लिखे गये हैं.

दिबाकर बनर्जी( ओये लकी लकी ओये, स्थान दिल्ली)

दिबाकर बनर्जी का बचपन दिल्ली के करोलबाग इलाके में गुजरा है. लेकिन अपनी फिल्में ओये लकी लकी ओये में उन्होंने दिल्ली की गलियों से गुजर गुजर कर जो कहानी लिखी है. वह उल्लेखनीय है. फिल्म में बंगाली लकी चोर का किरदार पूरी तरह दिल्ली के स्थानीय भाषा में ही बातें करता है.

मनीष शर्मा ( बैंड बाजा बारात, स्थानः दिल्ली)

मनीष शर्मा भी मूलतः दिल्ली से हैं. उनकी पहली ही फिल्म में श्रूति बिट्टू पूरी तरह उसी अंदाज में नजर आये हैं, जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले युवाओं की भाषा होती है. ब्रेड पकोड़े की कसम जैसे संवाद हकीकत में भी दिल्ली के युवाओं के सुनने को मिल सकती है. दिल्ली की सड़के, गलियां और मोहल्ले ने फिल्म को पूरी तरह सार्थक किया है.

अली अब्बास जफर ( मेरे ब्रदर की दुल्हन, स्थान देहरादून,दिल्ली )

अली अब्बास मूलतः देहरादून से हैं. पढ़ाई दिल्ली से भी की है. सो, उन्होंने अपनी फिल्म में देहरादून और दिल्ली दर्शाया है.

बेला नेगी (दायें या बायें, स्थान देहरादून)

फिल्म दायें या बायें की पूरी शूटिंग देहरादून के गांव में की गयी है. एक लॉटरी से मिले कार की कहानी पर आधारित इस फिल्म की निदर्ेशिका भी मूलतः देहरादून से हैं

पंकज कपूर(मौसम स्थान पंजाब)

पंकज कपूर की आगामी फिल्मों में पंजाब के खेत, खलिहान, लोग, लोकेशन सबकुछ नजर आयेगा

संजीवन लाल ( बबलगम, स्थान जमशेदपुर )

फिल्म बबलगम के निदर्ेशक संजीवनलाल ने संजीदगी से फिल्म की पूरी शूटिंग जमशेदपुर में की. वे मूलतः इसी शहर से हैं. उन्होंने पूरी कहानी जमशेदपुर में 80 के दौर में रहनेवाले कॉलोनी के बच्चों पर फिल्माई है.

सुधीर मिश्र, ये साली जिंदगी, स्थानः दिल्ली)

दिल्ली से प्रेम करनेवाले सुधीर मिश्र ने भी अपनी प्रिय दिल्ली को फिल्म ये साली जिंदगी में दर्शाया है.

राकेश ओम प्रकाश मेहरा (दिल्ली 6, स्थानः दिल्ली)

राकेश ओम प्रकाश ने अपनी फिल्मों में दिल्ली के साथ साथ अपने पंजाबी परिवार के रहन सहन को बखूबी परदे पर उतारा है. उनकी फिल्म दिल्ली 6 में दिल्ली तो फिल्म रंग दे बसंती में पंजाबी रहन सहन के दृश्य मिलते हैं.

प्रदीप सरकार ( परिणीता, पश्चिम बंगाल)

फिल्म परिणीता के गीत, परिधान, बोल चाल के तौर तरीके, गीत-संगीत में भी पूरी तरह बंगाल नजर आता है.

शाद अली ( बंटी और बबली स्थानः लखनऊ, कानपुर, बनारस)

फिल्म बंटी बबली में निदर्ेशक ने अपने प्रिय स्थानों लखनऊ तो कानपुर के ठग के लड्डू जैसी चीजें दशाई हैं

तनु वेड्स मनु( लेखक हिमांशु, निदर्ेशक आनंद एल राय, स्थान दिल्ली, लखनऊ.

तनु वेड्स मनु में लखनऊ से संबंध्द रखनेवाले हिमांशु की कलम से लिखी गयी फिल्म तनु वेड्स मनु में लखनऊ और कानपुर की सभ्यता का लेखा जोखा है तो आनंद से अपने मूल स्थान दिल्ली को अपने किरदार तनु का मूल स्थान बना दिया है.

अक्षत वर्मा (डेल्ही बेली, स्थान दिल्ली)

दिल्ली के जनकपुरी में ऐसे कई पंचर बनाने की दुकानें हैं, जहां पंचर को पैंचर लिखा गया है. अक्षत वर्मा ने फिल्म डेल्ही बेली में इन बारीकियों को खूबसूरती से दर्शाया है.