20141203

गुरुदत्त की निर्देशन शैली

 आज गुरुदत्त साहब की पुण्यतिथि है. गुरुदत्त की यह खूबी थी कि उनके लिए यह मायने नहीं रखता था कि उनकी फिल्म में हमेशा कोई अनुभवी व्यक्ति ही काम करें. उन्हें जिसमें हुनर नजर आता था. वह उन्हें मौका देने से नहीं चूकते थे. गुरुदत्त के प्रिय सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति ने अपनी बातचीत में बताया था कि गुरुदत्त के साथ उनके जुड़ने की वजह यह थी कि एक बार गुरुदत्त के सिनेमेटोग्राफर को एक कठिन दृश्य फिल्माना था. लेकिन वह उसे जिस तरह से फिल्मा रहे थे. गुरुदत्त  को पसंद नहीं आ रहा था. उस वक्त उनके सामने वीके मूर्ति खड़े थे. वीके मूर्ति ने कहा कि क्या मैं कोशिश करूं. पहले ही टेक में वीके मूर्ति ने शानदार दृश्य कैद कर लिया और नतीजन वीके गुरुदत्त  की बाद की तमाम फिल्मों में साथ रहे. वीके ही बताते हैं कि गुरुदत्त जब भी कैमरे को फेस करते थे. वे नर्वस रहते थे. लेकिन कैमरे के पीछे उनका वीजन बिल्कुल स्पष्ट होता था.  गुरुदत्त भेलपुरी खाने के शौकीन थे. वीके मूर्ति और गुरुदत्त चटाई से कई बार बैडमिंटन कोर्ट बना लेते थे. इससे स्पष्ट है कि गुरुदत्त अपनी फिल्मों से भले ही बुद्धिजीवी नजर आते हों. मन से वह बिल्कुल सामान्य व्यक्ति ही थे. यह गुरुदत्त की खूबी थी कि वह फिल्म में लेखन पर बहुत जोर देते थे. अपने लेखक अबरार अल्वी के साथ वे कई कई सीटिंग करते थे. ताकि फिल्म में चूक न रह जाये. अगर आज गुरुदत्त होते तो शायद सिनेमा की सोच अलग होती. और लेखन शैली को काफी प्राथमिकता मिलती.यह गुरुदत्त की खूबी थी कि वे उस वक्त भी बिग क्लोज अप्स  75 एमएम  पर ही फिल्माते थे. फिल्म बाजी में उनके इस निर्णय से उनके सिनेमेटोग्राफर नाराज हो गये थे. लेकिन गुरुदत्त ने दृश्य को नहीं कैमरामैन को ही बदल दिया और वीके मूर्ति उनकी जिंदगी में जुड़े. स्पष्ट है कि गुरुदत्त विजन वाले निर्देशक थे. उनका योगदान हमेशा यादगार रहेगा.

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