अभिनय की पाठशाला माने जाने वाले दिलीप कुमार साहब आज 92वें बसंत में प्रवेश कर रहे हैं. वे भले ही अब परदे पर नजर न आयें. लेकिन अब भी वह किसी कार्यक्रम में शिरकत करते हैं तो उनकी आंखें और उनके चेहरे के हाव भाव ही काफी होती है, यह समझाने के लिए कि वे कौन हैं. दिलीप साहब ने कभी अभिनय की ट्रेनिंग नहीं ली थी. उन्होंने अपनी आॅटो बायोग्राफी में इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह जब उन्हें पहला शॉट देना था. उन्हें तेज दौड़ना था और अभिनेत्री को मरने से बचाना था. उन्हें शर्म आ रही थी और वह अभिनेत्री को छू नहीं पा रहे थे. अभिनेत्री भी उनका मजाक उड़ा रही थीं, लेकिन फिर उन्हें देविका रानी ने समझाया कि तुम अभिनेता हो और अभिनय करते वक्त इतनी बंदिशे रखोगे तो कभी ओरिजनल नहीं दे पाओगे. देविका रानी की सिखाई कई बातें दिलीप साहब के जेहन में हमेशा जिंदा रहीं. दिलीप साहब अपनी जिंदगी में अशोक कुमार, देविका रानी जैसी शख्सियत को इसलिए अहमियत देते हैं, क्योंकि इन्होंने दिलीप साहब को अभिनय से अभिनय सीखने की कला को सिखाया. दिलीप साहब ने खुद अपनी बायोग्राफी में जिक्र किया है कि किस तरह वे और अशोक कुमार अच्छे दोस्त बने. दोनों साथ साथ बैडमिंटन खेला करते थे. अशोक कुमार दिलीप साहब के उर्दू भाषा की पकड़ के कायल थे. दिलीप साहब ने देविका रानी से ही यह कला सीखी कि यह बेहद जरूरी है कि अभिनय से पहले रिहर्सल किया जाये और कई कई बार किया जाये और यही वजह है कि जब तक दिलीप साहब अभिनय में सक्रिय रहे. वे कई बार रिहर्सल किया करते थे. दिलीप साहब ने फिल्म गंगा जमुना के लिए अपने नासिक के माली दिओली से भोजपुरी भाषा सीखी. मधुबन में राधिका नाचेगी गीत के लिए उन्होंने सितार वादन सीखा. दरअसल सीखने का दूसरा नाम हैं दिलीप कुमार
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