फिल्म तमंचे के क्रेडिट में अगर दर्शकों ने गौर किया होगा तो निर्देशक का क्रेडिट फिल्म से जुड़ा ही नहीं है. मेरे लिए भी यह आश्चर्यजनक बात थी. सो, मैंने इसके बारे में जानकारी हासिल की तो ज्ञात हुआ कि फिल्म के निर्देशक जिन्होंने फिल्म के निर्देशन की शुरुआत की थी. उन्हें बाद में फिल्म के निर्माता ने हटा दिया था और उनकी जगह किसी अन्य को रख लिया और यही वजह है कि सारा क्रेडिट विजुअल निर्देशक के रूप में स्क्रीन पर नजर आया. संभवत: शायद जिस शुरुआत और सोच से यह फिल्म शुरू हुई थी. किसी एक व्यक्ति के हाथ में होती थी. तो शायद आज इस फिल्म की दशा कुछ और हुई होती. बॉलीवुड में यह पहली बार नहीं हो रहा. हिंदी फिल्मों में अपनी मनमर्जी चलती रही है. अमोल गुप्ते और आमिर खान में भी जब अनबन हुई थी तो अमोल ने तारे जमीन पे आधी शूट करने के बाद छोड़ दी थी. बाद में कमान आमिर खान ने संभाल ली थी. सिर्फ निर्देशकों के ही नहीं, वरन अन्य तकनीकी हिस्सों में भी कई फिल्में अधूरी छोड़ दी जाती है. फिर उसे कोई और पूरा करते हैं. बाद में उस व्यक्ति को क्रियेटिव डायरेक्टर या कोई गढ़ा हुआ सा पद मिल जाता है. दरअसल, कई लोगों के जेहन में अब भी यह बात नहीं है कि फिल्म सृजनात्मक कला है. उसे आप किसी जोर जबरदस्ती या बिना किसी विजन के तैयार नहीं कर सकते. इस लिहाज में आशुतोष ग्वारिकर, राजू हिरानी, संजय लीला भंसाली को सोच स्पष्ट लगती है कि वे किसी के भी कहने पर अपनी सोच नहीं बदलते. अपने निर्णय नहीं बदलते. संजय तो सरस्वतीचंद्र नामक धारावाहिक से ही अलग इसलिए हुए चूंकि बाद में चैनल कहानी के साथ मनमानी करने लगे थे और भंसाली को यह हरगिज बर्दाश्त नहीं था. वाकई सिनेमा को सम्मान और उनसे जुड़े लोगों को सम्मान की नजर से देखना बेहद जरूरी है.
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