20130903

शाहरुख खान on impact of film on children


 मुझे लगता है कि अब बच्चों के लिए इनॉफोरमेशन पाने के रास्ते अब सिनेमा से कहीं ज्यादा बढ़ चुके हैं. सो, अगर आपके बच्चे बिगड़ रहे हैं तो प्लीज इसका दोष भारतीय सिनेमा पर बिल्कुल मत मढ़ें. उनके पास बिगड़ने के और भी कई माध्यम हैं. मैं तो कहना चाहूंगा कि बच्चे टैबॉलॉयड या अखबार पढ़ कर उनकी चीजें देख कर भी बिगड़ सकते हैं, अगर उन्हें बिगड़ना है तो. मैं तो मानता हूं कि सिनेमा की दुनिया एक ऐसी जगह है, जिससे आप अपने बच्चों को देश दुनिया की वह तमाम चीजें दिखा सकते हैं. जो वह नहीं देख सकते और वह भी वहां जाये बगैर. हां, लेकिन यह बात जरूर है कि भारतीय सिनेमा को ज्यादा से ज्यादा बच्चों के लिए फिल्म बनानी चाहिए. बच्चों के विषय पर फिल्म बनानी चाहिए. बड़े प्रोडक् शन को वैसे विषय लेकर आने चाहिए. चूंकि बच्चे भी हमारे दर्शक हैं तो उन्हें देखने का मौका मिलना ही चाहिए. और बच्चों की फिल्मों के लिए  भारत में बड़ा बाजार है. चूंकि यहां बच्चों की संख्या अच्छी तो है ही. साथ ही साथ हर तरह के हर प्रांत के बच्चे हैं तो उन्हें हर तरह की फिल्में देखने में मजा आता है. मेरे फैन तो बच्चे से लेकर बुढ़े तक हैं. तो मेरी कोशिश यही होती है कि मैं वैसी फिल्में करूं. जो सभी देख पायें और मैं यह बिल्कुल मानता हूं कि सिनेमा समाज का आईना है. समाज नहीं है. आप इसे किसी भी तरह से तौलने की कोशिश न करें. दूसरी बात है, आप अपने बच्चों पर पाबंदी मत लगायें कि यार ये मत देखो, वो मत देखो, आज के बच्चे खुद समझदार हैं. वे खुद वैसी चीजों में दिलचस्पी लेने लगे हैं. जिसमें इनफॉरमेशन है. लोगों को लगता है कि बच्चे अश्लील चीजें देख रहे हैं टीवी पर या सिनेमा में. लेकिन हकीकत यह है कि बच्चों को उन चीजों में मजा ही नहीं आता. वे तो एक् शन, रोमांच वाली चीजों को ही देखना पसंद करते हैं. बच्चों को सिनेमा के माध्यम अच्छी चीजें सिखायें. सिनेमा तो माध्यम है कि आप उन्हें फन देकर मस्ती मस्ती में अच्छी चीजें दिखा दें. सीखा दें.  आप देखें तो एनिमेशन और कार्टून फिल्में कितनी अच्छी बनती हैं और उनमें बच्चों के लिए कितनी अच्छी अच्छी चीजें होती हैं सिखने सिखाने वाली. मुझे तो लगता है कि वैसी फिल्में बच्चों को इनहांस करती हैं. मैं अपने बच्चों को कभी रोक टोक नहीं लगता कि तुम ये मत देखो, वो मत देखो. मैंने शुरू से उनकी आंखें नहीं ढंकी. मुझे लगता है कि उन्हें सबकुछ देखना चाहिए. एक वक्त आयेगावह खुद समझदार हो जायेंगे. ढकने से क्या होगा. वह छुप छुप देखेंगे. अच्छा है कि आप उनके दोस्त बन जायें और सामने से देखें कि वह क्या कहते हैं क्या करते हैं और उसका आपके बच्चों पर प्रभाव क्या पड़ा है. मुझे लगता है कि ज्यादा से ज्यादा सिनेमा का असर यही होता है कि बच्चे सिनेमा के माध्यम से ुजड़े जो गेम लांच हो रहे हैं. वे खरीदने की जिद्द करते हैं. न कि सिनेमा में किसी सीन में देख कर वह कुछ बुरी या अश्ललील हरकत करने लगते हैं. अगर वह ऐसा करते हैं तो ब्लेम सिनेमा को मत दीजिए, ब्लेम खुद पर लें और उस बच्चे को देखें कि आखिव्र ऐसा क्यों हो रहा है. मैं अपने बच्चों को हर फिल्म देखने देता हूं. हां, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि सभी पेरेंट्स ऐसा करते हैं या करें. लेकिन मैं करता हूं.मैं सिनेमा की दुनिया में काम करता हूं. िसनेमा के लिए काम करता हूं तो मैं इसकी रिस्पेक्ट करता हूं और उम्मीद करता हूं कि मेरे बच्चे भी करें. हां, यह मेरी डयूटी है कि मैं ऐसा कोई काम नहीं करूं कि मेरे बच्चों को मेरी फिल्म देखने में शर्म आये. तो मैं ध्यान रखता हंू कि अच्छी फिल्में करूं, ताकि उन्हें कोई ये न कहे कि अरे तेरे पापा शाहरुख क्या गंदा काम करते हैं फिल्मों में. तो मैं इन बातों का ध्यान रखता हूं. मैं अपने बच्चों की आंखें नहीं बंद करता. बल्कि मैं इंतजार करता ूहं कि वे आकर हर फिल्म पर अपना रिव्यू दें. मैं देखता हूं कि वह किन किन बातों को ले रहे हैं फिल्मों से. अगर मुझे लगता है कि कुछ गलत ले रहे हैं तो मैं उनको रोकूंगा लेकिन अगर नहीं ले रहे तो मैं क्यों रोकूं. मुझे नहीं लगता कि फिल्में देखने में कोई बुराई है. यह तो वर्तमान में सबसे बेहतरीन माध्यम है. बच्चे कैसा व्यवहार करेंगे, क्या सीख रहे हैं क्या नहीं. यह तो आपकी परवरिश और आपके घर परिवार और आस पड़ोस के माहौल पर निर्भर करता है. न कि इस पर कि वह फिल्म में देख रहे हैं कि देखो फिल्म में उसके माता पिता अपने बच्चों  के साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं. बच्चे इन बातों पर ध्यान नहीं देते. चूंकि उनके पास याद रखने के लिए और भी कई चीजें होती हैं. मैं बजाय सिनेमा को ब्लेम करने के अपने बच्चे के आस पास के माहौल पर ध्यान देता हूं. मैं जब किसी बच्चे या लड़के को लड़कियों के बारे में कुछ कहते सुनता हूं तो मुझे लगता है कि मेरी भी लड़की है. मेरी बेटी के बारे में भी ये लोग कुछ ऐसा कह सकते हैं. तो मैं उन बच्चों को समझताा हूं कि वह ऐसा न कहें. लेकिन वह सारी चीजें वह फिल्मों से थोड़ी न ले रहे हैं. मैं अपने बेटे को भी समझाता हूं कि आपको महिलाओं की कद्र करना है, वह अब 15 साल का हो चुका है. मैं उसे सिखाता हूं कि कभी किसी महिला की निंदा मत करो. लड़कों के गुप्र में कभी किसी लड़की का मजाक मत उड़ाओ. तो ये छोटी छोटी चीजें आपके बच्चों के दिमाग पर असर करती है और यही मैटर करता है. शेष आप फिल्मों को ब्लेम करके खुद पीछे नहीं हट सकते कि फिल्म ने मेरे बच्चों को बिगाड़ दिया.ऐसा कतई नहीं होता. कोई फिल्म बड़े के दिमाग पर उतना असर नहीं कर पाती तो बच्चों को क्या उनकी चीजें याद रहेंगी. आज तो मैं देखता हूं कि बच्चे फिल्मों से तकनीक सीख रहे हैं, कॉमिक्स, कार्टून कैरेक्टर उन्हें याद रह जाते हैं. 

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