हिंदी फिल्मों में रविदोय. शीर्षक इसलिए चूंकि वाकई ंिहंदी फिल्मों में रवि किशन का नया उदय हो रहा है. रवि का मतलब खुद सूरज होता है. हाल ही में रवि किशन की दो फिल्में रिलीज हुईं. बजाते रहो. इसक़. इस गुरुवार यह दोनों ही फिल्में मैंने एक के बाद एक देखी. फिल्म में वह मुख्य किरदारों में थे. लेकिन फिल्म के लीड किरदार कोई और थे. लेकिन रवि किशन ने अपने अभिनय से इस कदर प्रभावित किया है कि वे फिल्म के सबसे प्रभावशाली अभिनेता के रूप में निखर कर सामने आते हैं. मैंने चित्रपट स्तंभ ( 27 मार्च 2012) में इस बात पर व्याख्या की थी कि हिंदी फिल्मों में रवि किशन किस तरह अपने अभिनय से छाप छोड़ जाते हैं. एक बार फिर रवि किशन के अभिनय की चर्चा इसलिए कि हाल ही में रिलीज दोनों ही फिल्मों में वे खलनायक बने हैं. एक फिल्म में वे पंजाबी बिजनेसमैन थे. तो दूसरे में उत्तर भारत के दबंग खलनायक़. दोनों ही फिल्मों में रवि किशन के अभिनय में वह रेंज है कि वह हर तरह के किरदार को बखूबी निभा सकते हैं. लेकिन उनका अभिनय हिंदी फिल्मों में ही निखर कर सामने आ पाता है. बॉलीवुड में उन्हें लगातार मौके दे रहा है. इसक में तो उन्हें सबसे अधिक स्पेस मिला है. रवि किशन की खासियत है कि उन्होंने अपने ठेठ पन को नहीं छोड़ा है. उन्हें किरदार भी वैसे ही मिले हैं. सो, वह स्वभाविक लगते हैं. इसक में जब वह बनारसी अंदाज में दहाड़ते हैं तो लगता है कि हां, वे बनारसी ही हैं. शायद यही वजह है कि श्याम बेनेगल जैसे दिग्गज निर्देशक भी अपनी हर फिल्म में उन्हें जरूर मौके देते हैं. जरूरत है कि उन्हें अच्छे किरदार मिले और मांझनेवाला निर्देशक मिले.यह सच है कि रवि को दर्शक भोजपुरी फिल्मों ने दिये हैं. लेकिन उनके प्रशंसक हिंदी फिल्मों से बने हैं और बनते रहेंगे.
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20130903
हिंदी फिल्मों में रव्योदय
हिंदी फिल्मों में रविदोय. शीर्षक इसलिए चूंकि वाकई ंिहंदी फिल्मों में रवि किशन का नया उदय हो रहा है. रवि का मतलब खुद सूरज होता है. हाल ही में रवि किशन की दो फिल्में रिलीज हुईं. बजाते रहो. इसक़. इस गुरुवार यह दोनों ही फिल्में मैंने एक के बाद एक देखी. फिल्म में वह मुख्य किरदारों में थे. लेकिन फिल्म के लीड किरदार कोई और थे. लेकिन रवि किशन ने अपने अभिनय से इस कदर प्रभावित किया है कि वे फिल्म के सबसे प्रभावशाली अभिनेता के रूप में निखर कर सामने आते हैं. मैंने चित्रपट स्तंभ ( 27 मार्च 2012) में इस बात पर व्याख्या की थी कि हिंदी फिल्मों में रवि किशन किस तरह अपने अभिनय से छाप छोड़ जाते हैं. एक बार फिर रवि किशन के अभिनय की चर्चा इसलिए कि हाल ही में रिलीज दोनों ही फिल्मों में वे खलनायक बने हैं. एक फिल्म में वे पंजाबी बिजनेसमैन थे. तो दूसरे में उत्तर भारत के दबंग खलनायक़. दोनों ही फिल्मों में रवि किशन के अभिनय में वह रेंज है कि वह हर तरह के किरदार को बखूबी निभा सकते हैं. लेकिन उनका अभिनय हिंदी फिल्मों में ही निखर कर सामने आ पाता है. बॉलीवुड में उन्हें लगातार मौके दे रहा है. इसक में तो उन्हें सबसे अधिक स्पेस मिला है. रवि किशन की खासियत है कि उन्होंने अपने ठेठ पन को नहीं छोड़ा है. उन्हें किरदार भी वैसे ही मिले हैं. सो, वह स्वभाविक लगते हैं. इसक में जब वह बनारसी अंदाज में दहाड़ते हैं तो लगता है कि हां, वे बनारसी ही हैं. शायद यही वजह है कि श्याम बेनेगल जैसे दिग्गज निर्देशक भी अपनी हर फिल्म में उन्हें जरूर मौके देते हैं. जरूरत है कि उन्हें अच्छे किरदार मिले और मांझनेवाला निर्देशक मिले.यह सच है कि रवि को दर्शक भोजपुरी फिल्मों ने दिये हैं. लेकिन उनके प्रशंसक हिंदी फिल्मों से बने हैं और बनते रहेंगे.
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