इन दिनों जीटीवी पर बालाजी के धारावाहिक जोधा अकबर का प्रसारण हो रहा है. इस धारावाहिक में जोधा अकबर की प्रेम कहानी को दर्शाया जा रहा है. यह एक ऐतिहासिक धारावाहिक है. इस लिहाज से इस धारावाहिक में जिस तरह कलाकारों व किरदारों को कॉस्टयूम दिये गये हैं. उस लिहाज से धारावाहिक का भव्य सेट नजर नहीं आता. आप जब इस धारावाहिक को देखें तो कई बार दृश्यों को क्रोमा पर शूट करते दिखाया जाता है, जो आंखों को बहुत खटकता है. चूंकि एक इपिक शो बनाने के लिए महज विषय का चुनाव जरूरी नहीं, बल्कि उसके विषय के साथ साथ सेट, कलाकारों का चयन, उनकी भाषा, वेशभूषा सबकुछ के साथ न्याय करना जरूरी है. लेकिन इस धारावाहिक वे चीजें गौण नजर आती हैं. हिंदी सिनेमा में आशुतोष ग्वारियोतकर की फिल्म जोधा अकबर की भव्यता और विषय की बारीकियों को देखने के बाद इस धारावाहिक को देखें तो आपको निराशा होती है. हिंदी फिल्मों में संजय लीला भंसाली और आशुतोष दो निर्देशक हैं, जो इस तरह के विषयों के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. जोधा अकबर में अकबर का किरदार निभा रहे रजत टोकस भी निराश करते हैं. ऐसा नहीं है कि टेलीविजन पर ऐतिहासिक धारावाहिकों ने सफलता हासिल नहीं की है. महाभारत की लोकप्रियता तो आज भी प्रासंगिक है. कुछ सालों पहले जीटीवी ने ही शोभा सोमनाथ की नामक धारावाहिक की प्रस्तुति की थी. उस धारावाहिक में जिस तरह के कैमरे का प्रयोग किया गया था. वह फिल्मों में इस्तेमाल किये गये कैमरे थे. उस शो में बारीकी थी. झांसी की रानी भी लोकप्रिय धारावाहिक रहे. लेकिन जोधा अकबर हर तरह से निराश करती है. इस शो के मेकर्स को चाहिए कि जल्द से जल्द इसे दुरुस्त करें. वरना, वे दर्शकों को आकर्षित करने में असफल रहेंगे.
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20130903
टीवी के ऐतिहासिक शोज
इन दिनों जीटीवी पर बालाजी के धारावाहिक जोधा अकबर का प्रसारण हो रहा है. इस धारावाहिक में जोधा अकबर की प्रेम कहानी को दर्शाया जा रहा है. यह एक ऐतिहासिक धारावाहिक है. इस लिहाज से इस धारावाहिक में जिस तरह कलाकारों व किरदारों को कॉस्टयूम दिये गये हैं. उस लिहाज से धारावाहिक का भव्य सेट नजर नहीं आता. आप जब इस धारावाहिक को देखें तो कई बार दृश्यों को क्रोमा पर शूट करते दिखाया जाता है, जो आंखों को बहुत खटकता है. चूंकि एक इपिक शो बनाने के लिए महज विषय का चुनाव जरूरी नहीं, बल्कि उसके विषय के साथ साथ सेट, कलाकारों का चयन, उनकी भाषा, वेशभूषा सबकुछ के साथ न्याय करना जरूरी है. लेकिन इस धारावाहिक वे चीजें गौण नजर आती हैं. हिंदी सिनेमा में आशुतोष ग्वारियोतकर की फिल्म जोधा अकबर की भव्यता और विषय की बारीकियों को देखने के बाद इस धारावाहिक को देखें तो आपको निराशा होती है. हिंदी फिल्मों में संजय लीला भंसाली और आशुतोष दो निर्देशक हैं, जो इस तरह के विषयों के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. जोधा अकबर में अकबर का किरदार निभा रहे रजत टोकस भी निराश करते हैं. ऐसा नहीं है कि टेलीविजन पर ऐतिहासिक धारावाहिकों ने सफलता हासिल नहीं की है. महाभारत की लोकप्रियता तो आज भी प्रासंगिक है. कुछ सालों पहले जीटीवी ने ही शोभा सोमनाथ की नामक धारावाहिक की प्रस्तुति की थी. उस धारावाहिक में जिस तरह के कैमरे का प्रयोग किया गया था. वह फिल्मों में इस्तेमाल किये गये कैमरे थे. उस शो में बारीकी थी. झांसी की रानी भी लोकप्रिय धारावाहिक रहे. लेकिन जोधा अकबर हर तरह से निराश करती है. इस शो के मेकर्स को चाहिए कि जल्द से जल्द इसे दुरुस्त करें. वरना, वे दर्शकों को आकर्षित करने में असफल रहेंगे.
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