20130903

नीतेश तिवारी, चिल्लर पार्टी के निर्देशक, जल्द ही भूतनाथ2 का निर्देशन करने जा रहे हैं



 मेरा मानना है कि सिनेमा या टीवी का या उस हर मीडियम का जिसे वह एक्सप्लोर कर रहे हैं. उसका प्रभाव तो स्वाभाविक है. चूंकि यह सच्चाई है कि किसी भी मीडियम से बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. चूंकि बच्चों का दिमाग फर्टाइल होता है. उसे आप जिस तरह से सींचते हैं वह उसी तरह से तैयार होते हैं. वह केवल सिनेमा या टीवी से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की हर चीज से सीखते हैं. जो बड़े करते हैं उससे वह सीखते हैं. कहावत भी है कि बड़े जैसे बच्चे भी ऐसा ही करेंगे. वही एडॉप्ट करेंगे. हां, यह सच है कि सिनेमा और टीवी की गलत चीजें भी वह देखते हैं और सीखते हैं. लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि बच्चे केवल गलत ही चीजें देख रहे हैं या फिर उन पर गलत ही प्रभाव हो रहा है. या हम फिल्म मेकर इस बात का ख्याल नहीं रख रहे कि जो हम बना रहे हैं या दिखा रहे हैं, उसका बच्चों पर क्या असर होगा. मैं तो खुद विज्ञापन जगत से भी जुड़ा हूं. हम जब कोई विज्ञापन बनाते हैं तो इस बात का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है कि कोई गलत चीज न दिखाया जाये जिससे बच्चे गलत चीजें सीखें. आप देखेंगे कई बार विज्ञापनों में हम डिस्क्लेमर लगाते हैं कि यह स्टंट घर पर न करें. चूंकि बच्चे कभी कभी स्टंट वगैरह देख कर खुद उसे आजमाने लगते हैं. बच्चे एक्साइटमेंट में गलती कर बैठते हैं. बच्चे सही चीजें देखें और उन पर उसका अच्छा प्रभाव पड़े इसकी पूरी जवाबदेही उनके पेरेंट्स की होती है. अब जैसे हम पेरेंटस काम पर हैं और उस दौरान बच्चे टीवी पर या इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं. यह ध्यान रखना जरूरी है. आप अपने बच्चों से लगातार बात करते रहें. चेक करते रहें कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा. चूंकि वे जल्दी प्रभावित होते हैं. कई बार लोगों के जेहन में यह बात आती है कि इन दिनों आयटम सांग की वजह से बच्चे बिगड़ रहे हैं. लेकिन मेरा मानना है कि हां, आज कल बच्चे आयटम सांग पर डांस करते हैं, क्योंकि वे उनका मतलब नहीं समझते. और वे उस तरह सोच कर उसके शब्दों को समझ कर डांस नहीं करते. तो मेरे ख्याल से बजाय इसके कि हम यह देखें कि कहीं बच्चे टीवी में कुछ देख कर स्टंट तो नहीं करने लगे. वह ज्यादा अलार्मिंग है. यह ज्यादा बेहतर है कि कोई बच्चा सिर्फ फन के लिए किसी गाने पर डांस कर ले. बजाय इसके कि वह किसी बिल्डिंग से कूदने की कोशिश करे, क्योंकि टीवी में दिखाये गये सुपरमैन वैसा करते हैं. मेरे लिए वह ज्यादा चिंताजनक बात होगी. मेरा मानना है कि टीवी, सिनेमा या कोई भी मीडियम एक्सपोजर है. इंटरनेट एक्सपोजर है. इससे बच्चे कितनी चीजें देख पाते हैं. दुनिया को समझ पाते हैं. जरूरत बस यह है कि पेरेंट्स उस पर निगरानी रखें. अब आप अपने बच्चों को इंटरनेट नहीं दे रहे. यह सोच कर कि अरे बच्चा है. गलत ही चीज देखेगा. लेकिन वह स्कूल गया. वहां उसकेदोस्त उस बारे में बात कर रहे हैं तो जाहिर सी बात है उसे लगेगा कि मुझे क्यों नहीं पता. वह आकर अपने माता पिता से शिकायत करेगा तो आप इस चीज पर रोक नहीं लगा सकते. बस यह कर सकते हैं कि उनकी भाषा, उनके विचार, उनके संगत पर ध्यान दें. वह क्या देख रहे हैं और किस तरह उसे जिंदगी में शामिल कर रहे हैं. उसे देखें. मेरा मानना है कि अगर कोई बच्चा फिल्मों व टीवी से बैड लैंग्वेज सीख रहा है.यह सीख रहा है कि अपने माता पिता की ही इज्जत मत करो. तो वह अर्लामिंग है. तब पेरेंट्स को अलर्ट होना ही होगा. चूंकि आप किसी बच्चे के दिमाग को लॉक नहीं कर सकते. उस पर पाबंदी नहीं लगा सकते. उन्हें टोक सकते हैं और उन्हें यह समझाने की कोशिश करें कि वह गलत है. चूंकि अब दौर बदल चुका है. जब हमारा दौर था. इतना सबकुछ नहीं था. हमें जितनी चीजें दिखाई जाती थी. हम उससे ही अट्रैक्ट होते थे और सीखते थे. लेकिन आज आप बच्चों को अपने तरीके  से कंट्रोल नहीं कर सकते. मैं एक चीज करता हूं कि मैं अपने बच्चों से लगातार बात करता हूं और जानने की कोशिश करता हूं कि क्या चल रहा है इनकी दुनिया में. और फिर उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं. एक चीज और मैं कहना चाहूंगा कि ऐसा नहीं है कि फिल्मों और टीवी से बुरी चीजें ही आती है बच्चों में. मेरे जैसे र्क्रियेटिव व्यक्ति के लिए इससे बड़ी तसल्ली की बात और क्या होगी कि जब हमने चिल्लर पार्टी जैसी फिल्म बनायी थी तो बच्चे उस फिल्म से मेसेज ले पाये. मेरे पास फोन आते थे कि मुंबई के कई इलाकों में बच्चों ने स्ट्रीट के बच्चों की मदद की. कुत्तों की मदद की. मुंबई के वकोला से खबर आयी थी कि उस तरह बच्चों ने कैसे अपना प्लेग्राउंड लिया तो यह देख कर लगता है कि एक जिम्मेदारी पूरी की बच्चों के लिए. बच्चे कुछ सीख पाये. तो बतौर मेकर्स हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम उस तरह की चीजें बनाये. मुझे लगता है कि 3 इडियट्स का कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ा पेरेंट्स और बच्चों दोनों पर. बच्चे अपनी मनमर्जी से अपने करियर का चुनाव करने लगे और पेरेंट्स भी समझ पाये कि बच्चों के लिए क्या करना चाहिए. बच्चों की खुशी जरूरी है तो मैं तो कहूंगा कि यह सारे बड़े इंपैक्ट हैं सिनेमा के बच्चों पर. और मैं तो ऐसी फिल्मों की तरफदारी ही करूंगा. जहां तक बात है रियलिटी शोज की तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई परेशानी है कि अगर बच्चों में टैलेंट है और वह आकर गाते हैं. मैं इंडियन आयडल जैसे शो की बात ही करूंगा. बाकी शोज मैं देखता नहीं हूं तो मुझे नहीं लगता कि इससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है. बल्कि वह दुनिया को और करीब से देख पाते हैं.
आज के दौर में यह भी तो जरूरी है कि बच्चों को हम दुनिया से अवगत करायें और इसके लिए फिल्मों और टेलीविजन का माध्यम चुनना ही पड़ता है. लेकिन हमारे पेरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चों के सामने रोचक चीजें प्रस्तुत करें. रोचक चीजों में दिलचस्पी जगाये बच्चों में.जैसे मैं अपने बच्चों को नेशनल जियोग्राफिक चैनल और एनिमल प्लनेट दिखाता हूं और देखता हूं कि बच्चे उससे कितना कुछ नया सीख रहे हैं . खुद को एक्सप्लोर कर रहे हैं तो यह तो टीवी या सिनेमा की अच्छी चीज है कि हम पर्सनली वहां न रहते हुए दुनिया की तमाम चीजें देख रहे हैं. सीख रहे हैं. तो मैं यही कहना चाह रहा हूं कि उन्हें एक्सप्लोर होने का माध्यम दें. चूंकि ये मीडियम बच्चों को सेल्फ लर्निंग देते हैं और यह भी बच्चों के लिए बेहद जरूरी है. इससे उनका विकास होता है. सो, मेरे ख्याल से अगर आप राइट स्पीरिट से बच्चों के लिए कार्यक्रम बनाये या पेरेंट्स बच्चों को सही तरीके से गाइड करते हुए वैसे माध्यमों से रूबरू करायें तो उनका प्रभाव अच्छा ही होगा. ऐसा मैं मानता हूं. और मुझे लगता है कि सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे. टीवी और सिनेमा देखने से बच्चों को रोके नहीं. उन्हें बस समझायें कि उनके लिए क्या सही है क्या नहीं और उन्हें सेल्फ लर्निंग करने का मौका दें. उन्हें एक्सप्लोर करने का मौका दें. चूंकि अब हमारा दौर नहीं. पहले हम केवळ डीडी 1 देखते थे. आज लाखों चैनल हैं. बस जरूरत आपको है कि आप अच्छे चैनल का चुनाव करें और अच्छी सीख दें.

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