20130903

सलाखों के पीछे झांकती असल जिंदगी की दास्तां


वर्ष 2002 में सलमान खान को  हिट एंड रन के मामले में कुछ महीनों की सजा हुई. जेल जाने से पहले सलमान का बर्ताव काफी गुस्सैल और भड़कीला था. लेकिन जेल से बाहर आने के बाद उनकी जिंदगी बदली. वे हद से ज्यादा चैरिटी करने लगे. संजय दत्त ने भी जब 1993 में सजा काट कर बाहर आये तो उन्होंने अपनी जिंदगी को नये सिरे से शुरू किया. हाल ही में आदित्य पंचोली के बेटे सूरज को जिया खान की आत्महत्या के मामले में हिरासत में लिया गया था. उस वक्त आदित्य ने कहा कि सूरज अब जिंदगी को नये सिरे से समझ पायेगा. यह एक पहलू है. वही दूसरे पहलू में श्रीसंत जैसे लोग भी हैं, जो जेल से बाहर आते ही अपनी जिंदगी में संत बनने की कोशिश करने लगते हैं. वे जताने लगते हैं कि वे अब बदल चुके हैं. आखिर कैसे एक सेलिब्रिटी की दुनिया में सजा के बाद बदलती है. क्या वे वाकई जिंदगी के मायने समझने लगते हैं या फिर कई लोगों के लिए यह भी पब्लिसिटी स्टंट ही होता है. इन सारे पहलुओं से परदा उठा रही है यह रिपोर्ट
अनुप्रिया अनंत

संजय दत्त फिलवक्त जेल में हैं. वे 1993 में हुए बम ब्लास्ट की सजा काट रहे हैं. करोड़ों की लाइफस्टाइल जीनेवाले संजय फिलवक्त महीने में केवल 4 हजार में अपना गुजारा कर रहे हंै. मान्यता हर महीने उन्हें मनीआॅर्डर के माध्यम से यह पैसे उन तक पहुंचाती है. यह बात जब संजय के स्टाफ ने सुनी थी तो सभी रो पड़े थे. वजह यह थी कि संजय के सबसे नीचे ग्रेड के स्टाफ की भी कमाई 22 हजार रुपये हैं और उनके मालिक को केवल 4 हजार में गुजारा करना पड़ रहा है. आज से 20 साल पहले जब वे जेल गये थे. तब और अब के संज़य में यही फर्क है. खता लम्हों ने की. सजा मुद्दतों को मिलीं...जेल की जिंदगी गुजारने के बाद जब संजय बाहर आये तो उन्होंने अपनी जिंदगी पूरी तरह बदल दी. वे गैर जिम्मेदार से जिम्मेदार बने. अपने पिता सुनील दत्त की जो उन्होंने भद उड़वायी थी उसे संवारने में वह शिद्दत से जुटे. संजय जब 1993 में हिरासत में गये थे. उस वक्त भी वे वहां मजदूरी करते थे और फिर उन्हें जो आमदनी मिलती थी. वे उसे अपनी बहनों को राखी पर भेजते थे. उनकी बहनों ने आज भी वह पैसे संभाल कर रखे हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि सलाखों के पीछे जाना एक व्यक्ति को केवल भौतिकवादी जिंदगी से दूर करना ही नहीं, बल्कि अपनों से दूर करना भी है. उस वक्त जब चार दीवारी में इंसान अकेले होता है तो उसे अपने बारे में, खुद को झांकने का मौका मिलता है और ऐसे में या तो वह खुद को सकारात्मक रूप से बदल डालता है या फिर नकारात्मकता उसमें घर कर जाती है.संजय दत्त जब बाहर आये थे उसके बाद उन्होंने अपने डगमगाये फिल्मी करियर को संवारा. फिर उन्होंने अपनी मां के नाम पर स्थापित कैंसर एनजीओ में एक्टिव हुए. वर्तमान दौर में वे फिल्म इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा चैरिटी करनेवाली हस्तियों में से एक हैं. अपने स्टाफ का भी वे इस कदर ध्यान रखते हैं कि उनके स्टाफ उनके न रहने पर भी फ्री में उनके परिवार का ख्याल रख रहे हैं. सलमान खान की जिंदगी ने भी नया मोड़ तब लिया जब वे सजा काट कर बाहर आये. वर्तमान में वे बिइंग ह्मुन नामक एक चैरिटी संस्था चलाते हैं. वे गुमनामी से भी कई लोगों की सहायता करते हैं. सलमान के इस चैरिटी को कई लोग दिखावा भी मानते हैं. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या अधिक हैं, जिनकी सलमान ने गुमनाम होकर मदद की है. वे सलमान को मसीहा मानते हैं. स्पष्ट है कि सलमान जब भी खुद को आइने में देखते होंगे. उनके मन में यह टिश होगी कि आखिर वे किसी के मौत के गुनहगार हैं. जब उन्होंने जेल में अकेले जीवन व्यतीत किया उस वक्त निश्चित तौर पर उन्हें ग्लानि हुई होगी. जिसकी मौत ुहई वह वापस नहीं आ सकता. लेकिन सलमान का यह पश्याताप ही है. यह एक पहलू है. वही दूसरी तरफ ऐसी कई हस्तियां हैं, जिनके लिए हिरासत में जाना और फिर जमानत से बाहर आना भी एक पब्लिसिटी स्टंट की तरह ही है. ऐसे नामचीन लोगों में श्रीसंत का नाम सबसे पहले आता है. श्रीसंत ने जेल से बाहर निकलने के साथ घोषणा की कि वह जल्द ही शादी कर लेंगे. और जिंदगी व्यवस्थित कर लेंगे. क्यों जेल जाने से पहले उनके मन में कभी ऐसे विचार नहीं आये. दरअसल, यह उनके लिए सहानुभूति लुटने का तरीका है. हाल ही में आदित्य पंचोली के बेटे सूरज जिया खान की आत्महत्या के केस में सजा काट कर लौटे. उनके पिता का मानना था कि अब सूरज जिंदगी को और सही तरीके से समझ सकेगा. दरअसल, यह हकीकत है कि जेल की चहारदीवारी आपको जिंदगी के कई कड़वे सच दिखाती है. हंसल मेहता की फिल्म शाहीद में इसका खूबसूरती से वर्णन है कि किस तरह शाहिद को आतंकवादी करार देकर हिरासत में ले लिया जाता है. फिर किस तरह वह अपनी जिंदगी गुजारता है. फिर वह तय करता है कि वह जेल से ही पढ़ कर वकालत की पढ़ाई पूरी करेगा और वह पूरी करता भी है. फिल्म सलाम बांबे में भी मीरा नायर ने जेल की दुनिया में बच्चों के साथ किये गये बर्ताव का सजीव चित्रण किया है. सच्चाई यही है कि वह एक कुरुप दुनिया है. जहां शून्य से शिखर तक पहुंचे व्यक्ति को जिंदगी के सही मायने नजर आने लगते हैं. अभिनेता शाईनी अहूजा ने नौकरानी के साथ किये गये बलात्कार के जूर्म में सजा काटी. कारावास से सजा काटने के बाद अब तक वे अपना करियर नहीं संवार पाये. बेहतरीन अभिनेता होने के बावजूद निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना नहीं चाहते. अनुराग बसु आज भी मानते हैं कि शाईनी निर्दोष हैं और वे शाईनी को अपनी फिल्म बर्फी में एक किरदार देना भी चाहते थे. लेकिन शाईनी इसे स्वीकार कर पाने की स्थिति में नहीं. सो, उन्होंने मना कर दिया. वही दूसरी तरफ अगर हम हॉलीवुड में नजर डालें तो वहां जेल जाना सेलिब्रिटिज के लिए किसी एंडवेंचर की तरह है. वे जान बूझ कर गलतियां करते हैं और फिर सलाखों से बाहर वही बदतमीजी जारी रखते हैं. पेरिस हिल्टन, लेडी गागा, लिडंसे लोहान, रेहाना उन हस्तियों की फेहरिस्त में शामिल हैं जो शौकीन तौर पर कानून तोड़ कर जेल की जिंदगी गुजारते रहे हैं.
कोटेशन :
तृप्ति जयीन, सेलिब्रिटी मनोचिकित्सक
ूमेरा मानना है कि जेल की सजा काटने के बाद कई हस्तियों में सकारात्मक तो कई हस्तियों में नकारात्मक बदलाव आ जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें जेल के अंदर वे सारे कष्ट झेलने पड़ते हैं जो उन्हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं. चहारदीवारी में वे अकेले जिंदगी गुजारते हैं. उस वक्त उन्हें खुद को अपनी अंतर्रात्मा को समझने का वक्त मिलता है और उसके बाद वे खुद की पर्सनैलिटी को समझने की कोशिश करते हैं. अपने अंतर्मन के सवालों से खुद ही टकराते हैं और फिर उसके दो प्रभाव होते हैं. प्रभाव अच्छे हों तो वे बाहर आकर अच्छी जिंदगी जीने लगते हैं. सेलिब्रिटी के संदर्भ में बात की जाये तो सेलिब्रिटी शुरू से बिल्कुल हाइ फाइ जिंदगी जीते हैं. वे आम जिंदगी से वाकिफ नहीं होते. वहां न तो लोकप्रियता मिलती है और न ही उनके आगे पीछे घूमने वाले लोग़. यह सब झेलना बेहद कठिन होता है. ऐसे में जब वे सजा के दिन गुजारते हैं तो कुछ लोगों को वह जिंदगी की हकीकत बदलती है तो कुछ लोग उसे भड़ास के रूप में लेते हैं और बाहर आकर वे और नकारात्मक हो जाते हैं. कुछ हस्तियां बाहर आकर अपनी छवि सुधारने के लिए दिखावे के लिए चैरिटी वर्क और गुडी गुडी तरह के किरदार निभाने लगते हैं और कुछ वाकई खुद की जिंदगी में बदलाव करते हैं.

कोटेशन : महेश भट्ट, फिल्मकार
मैं मानता हूं कि संजय दत्त ने अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा है और अपनी जिंदगी को उन्होंने दोबारा सही तरीके से शुरू किया. खुद को व्यवस्थित किया.  मैं इस बात का गवाह हूं कि संजू क्या था और उसने कैसे खुद में सकारात्मक बदलाव किये. और उसने जो बदलाव किये मैं नहीं मानता कि वह सिर्फ दुनिया की नजर में अपनी छवि सुधारने की कोशिश में ऐसा करता रहा. बल्कि उसने दिल से यह महसूस किया कि मुझे बदलना चाहिए और वह बदला. कारावास की जिंदगी ने उसे काफी कुछ सिखाया और मैं ऐसे लोगों के साथ हूं और रहूंगा जो गिर कर भी संभलते हैं.

बॉक्स में  :
वह भी एक दौर था, जब फिल्मी हस्तियां आंदोलन  व स्वतंत्रता संग्राम को सहयोग करने की वजह से गिरफ्तार होते थे.  वर्ष 1940 में बलराज साहनी को सिर्फ इसलिए हिरासत में ले लिया गया था कि ब्रिटिश प्रशासन का मानना था कि उनके कम्युनिष्ट पार्टी से कनकेक् शन हैं. उन्हें अपनी पार्टी के कार्यों को प्रोमोट करने व कानून के खिलाफ जाने की वजह से हिरासत में ले लिया गया था. उस वक्त वे के आसिफ की फिल्म हलचल की शूटिंग कर रहे थे. उन्हें केवल फिल्म की शूटिंग करने की इजाजत दी गयी थी. शूटिंग के बाद उन्हें दोबारा हिरासत में ले लिया जाता था. एके हंगल की अभिनय करते हुए कई बाल अपने आंदोलन की वजह से जेल जाते रहे हैं.  फिल्म प्यासा के गीत जिन्हें हिंद पर नाज है कहां है...के शब्दों ने उस वक्त ऐसा हंगामा बरपाया था कि फिल्म के लेकर साहिर लुधियानवी को सलाखों में दिन गुजारने पड़े थे. 

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