20130930

हिंदी सिनेमा के दर्शक


चेन्नई एक्सप्रेस समीक्षकों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी. लेकिन दर्शकों ने उसे भारत में हिंदी की सबसे बड़ी फिल्म बना दिया. फिल्म ग्रैंड मस्ती को भी समीक्षकों ने जम कर लथाड़ा. कई समीक्षकों ने तो यहां तक लिख दिया कि फिल्म की समीक्षा होनी भी नहीं चाहिए. िफल्म इतनी बुरी है. लेकिन फिल्म को जबरदस्त ओपनिंग मिली है. स्पष्ट है कि हिंदी सिनेमा के दर्शक को आप प्रीडिट नहीं कर सकते. आप सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी फिल्म की सफलता या असफलता की घोषणा नहीं कर सकते. पहले हिंदी सिनेमा जगत में ज्योतिष विद्या और ट्रेड पंडितों द्वारा भविष्यवाणी करने का ट्रें्ड काफी लोकप्रिय था. लेकिन अब वह दौर नहीं. अब दर्शकों को समझना, उनकी मानसिकता को समझना और फिर अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है. दरअसल, हकीकत यही है कि फिल्में हर किसी की निजी दुनिया है. आपके साथ आपकी बगल की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को जो फिल्म पसंद आयेगी. मुमकिन हो कि आपको वह पसंद न आये. जब हम थियेटर में सीमित आबादी में यह अनुमान नहीं लगा पाते कि फिल्म किसको पसंद आयी. किसे नहीं तो फिर हम सभी दर्शकों के दिलों को कैसे भांप सकते हैं. आज भी हिंदी सिनेमा में फिल्में फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने का चलन है. आज भी दर्शक अपने स्टार्स की फिल्में देखते हैं. ग्रैंड मस्ती में एडल्ट कॉमेडी है. फिल्म ने सारी हदें पार कर दी है. लेकिन फिर भी फिल्म को लोकप्रियता मिल रही हैं. जिस दिन रागिनी एमएमएस2 का ट्रेलर लांच हुआ. उसी दिन अगली का ट्रेलर भी लांच हुआ. लेकिन रागिनी एमएमएस 2 तो इंटरनेट पर भी हिट है. तो, फिर ऐसे में किसी फिल्म मेकर पर दोष मढ़ना कहां तक उचित है कि फिल्म मेकर  अच्छी फिल्में नहीं बना रहे. सच तो यह है कि दर्शक भी बुरी फिल्में देखना पसंद करते हैं और उन्हें सपोर्ट करते हैं.

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