राकेश ओमप्रकाश मेहरा अपनी तरह की फिल्में बनाने में माहिर हैं. वे किसी जल्दबाजी में नहीं होते. वे स्थिरता से काम करते हैं और चूनिंदा विषयों पर भी फिल्में बनाते हैं. उनकी फिल्में दिल्ली 6, रंग दे बसंती जैसी फिल्मों ने दर्शकों को हमेशा झकझोरा है. इस बार वे मिल्खा सिंह की कहानी लेकर आये हैं. फिल्म भाग मिल्खा भाग से वे दर्शकों तक मिल्खा सिंह की जिंदगी के संघर्ष को पहुंचाना चाहते हैं. वे खुद इसे अपनी अहम फिल्म मान रहे हैं. चूंकि पहली बार वह किसी व्यक्ति पर बायोपिक फिल्म बनाने की चेष्ठा कर रहे हैं. पेश है हुई बातचीत के मुख्य अंश
राकेश, आपकी फिल्मों के विषय आम नहीं होते. दिल्ली 6 में आपने जातिवाद के मुद्दों को काला बंदर संबोधित कर एक बेहतरीन कहानी कहने की कोशिश की. रंग दे बसंती भी अलग तरह की आंदोलन की कहानी थी और अब भाग मिल्खा भाग भी बिल्कुल ही अलग विषय हैं. तो कैसे जेहन में आते हैं ऐसे विषय.
दरअसल, मेरी कहानियां मेरी जिंदगी की कहानियां होती हैं. मैंने अपनी जिंदगी से बहुत कुछ सीखा है. मेरी जिंदगी में कई वेरियेशन रहे हैं और मैंने अपना अधिकतर वक्त दिल्ली में गुजारा है. ये सारे अनुभव ही फिल्मों में डाल देता हूं. दिल्ली 6 में जो कुछ दिखाया, वे मेरे उस वक्त की कहानियां हैं जब मैं दिल्ली में रहता था और देखा करता था. रंग दे बसंती की कहानी मैंने एसआरसीसी में बिताये पलों से ली. और मिल्खा सिंह पर फिल्म बनाने का निर्णय भी मेरी जिंदगी से ही लिया. मैंने अपने ग्रोइंग डेज में मिल्खा सिंह की लीजेंडरी स्टोरीज खूब सुनी है. मैं खुद कभी स्पोर्ट्स में रुचि लिया करता था. और खूब किताबें पढ़ता था तो मिल्खा सिंह की जिंदगी से वाकिफ था और मैं उन्हीं विषयों पर फिल्में बनाता हूं जिसके साथ मैं न्याय कर पाऊं. विषय कठिन था. लेकिन मेरी पसंद का विषय था.
त्र बॉलीवुड में ऐसी फिल्में कम बनती हैं ?
मैं खुद को बॉलीवुड का कोर हिस्सा मानता भी नहीं. मुझे नहीं लगता कि मैं काफी जान पाया हूं बॉलीवुड को. मैं पार्टीज में नहीं जाता. मेरे कुछ चुनिंदा दोस्त हैं, जिनमें आमिर और प्रसून प्रमुख हैं. उनसे मिलता रहता हूं और बातें करता हूं. मेरी कहानियां भी बॉलीवुड की फिल्मों की कहानियों की तरह नहीं होती. और यही वजह है कि मुझे अपनी फिल्मों के लिए निर्माता ढूंढने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस फिल्म के लिए भी करना पड़ा. मुझे शुरुआत में किसी ने फिल्म के लिए पैसे नहीं दिये. मुझे अपनी सारी सेविंग खर्च करनी पड़ी है. घर बेच दिया है. मेरी व्हाइफ ने मुझे सपोर्ट किया है. बाद में इस फिल्म में और बड़े नाम जुड़े. लेकिन मुझे अपनी कहानी पर विश्वास था. इसलिए मैं पीछे नहीं हटा. और नतीजा आपके सामने हैं.
त्रमिल्खा सिंह की जिंदगी पर किसी फिल्म की परिकल्पना कैसे की आपने?
मिल्खा सिंह एक इंस्पेरेशनल स्टोरी है. हर वह व्यक्ति जिसने जिंदगी में संघर्ष करके कुछ हासिल किया होगा. वह इस फिल्म को समझ पायेंगे. मिल्खा सिंह ने छोटी उम्र में अपना बचपन खोया, परिवार को खो दिया. पार्टिशन में सबकुछ बर्बाद हो गया उनका. लेकिन फिर भी वे तैयार हुए और फिर एथेलिट बने. और मेरी तो इच्छा है कि मैं भाग मिल्खा पर सीरिज फिल्में बना डालूं. मिल्खा सिंह के बारे में जितना जानते हैं लोग़ उससे कहीं अधिक जानेंगे इस फिल्म से. मुझे इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा मिल्खा सिंह की अनडाइंग स्पिरीट से मिली. एक लड़का अपने ही गांव से अनाथ हो जाता है. फिर खुद को बचाने के लिए 11 साल की उम्र में हथियार उठाता है. फिर जेल के दिन, फिर आर्मी. फिर इन सबके बावजूद वह अच्छा इंसान बनता है.
त्रमिल्खा सिंह से जब आपने अपनी यह इच्छा जाहिर की, कि आप उन पर फिल्म बनाना चाहते हैं तो क्या वह फौरन तैयार हो गये? चूंकि हमने सुना है आपने इस फिल्म में उनकी तीन प्रेम कहानियों को भी दर्शाया है?
मैंने आपसे पहले ही कहा. वही कहानी चुनता हूं जिसके साथ न्याय करूं. अब अगर उनकी जिंदगी में तीन महिलाओं की उपस्थिति रही तो उसे पोलिटिकली करेक्ट होकर न दिखाने का तो सवाल ही नहीं उठता. रोचक यह रहा कि मिल्खा सिंह जी और उनके पूर ेपरिवार ने मेरा साथ दिया. मिल्खा सिंह जी से जब मैंने कहा तो उन्होंने थोड़ा समय लेने के बाद हां, रह दी. उन्होंने मुझसे 1 रुपये लिये अपनी कहानी सुननाने के लिए. उन्होंने 2 सालों तक मुझे अपने साथ रखा. मैं उनके साथ चंडीगढ़ में रहा. मैं उन्हें और करीब से जान पाया. यहां तक कि उन्होंने मुझसे उन पहलुओं पर भी बात की, जिसकी चर्चा उन्होंने अपने परिवार या दोस्तों से भी नहीं की थी. बाद में प्रसून ने भी हमें ज्वाइन किया और फिर उन्होंने पूरी स्क्रिप्ट तैयार की. मैं एक बात जरूर कहना चाहंूगा कि अगर मुझे मिल्खा सिंह जी फिल्म बनाने की अनुमति न भी देते. तो मुझे इस बात की खुशी होती कि उन्होंने मुझ पर विश्वास कर पूरी कहानी सुनायी और मैं ऐसे व्यक्ति के साथ अपनी जिंदगी के दो महत्वपूर्ण साल दी पाया. किसी व्यक्ति के जीवंत रहने पर ही उन पर फिल्म बनाने का क्या आनंद होता है. वह मैं महसूस कर सकता हूं. मुझे फक्र है कि ऐसे विषय का चुनाव किया मैंने.
त्र फरहान ही मिल्खा सिंह का किरदार निभा सकते हैं. ये बात आपके जेहन में कैसे आयी?
जब मैंने और प्रसून ने यह तय किया कि हम फिल्म बनायेंगे. यह सबसे बड़ी चुनौती थी कि हम मिल्खा सिंह के किरदार में किसे कास्ट करें. मैं रात रात भर सो नहीं पाता था. लेकिन एक दिन अचानक मेरे जेहन में बात आयी कि फरहान ही यह किरदार निभा सकते हैं. यूं तो हमने कई आॅडिशन लिये थे. लेकिन फरहान की आंखें मुझे याद थी. वे बिल्कुल मिल्खा सिंह जी से मेल खाती है. फिर हमने मिल्खा सिंह जी से पूछा और उनके हां कहने के बाद हमने फरहान से बात की. फरहान ने जब कहानी सुनी तो वे फौरन तैयार हो गये. और जिस तरह उन्होंने पूरी जिंदगी जी है. उनके बिना मेरी जो सोच थी. मेरा जो विजन था वह कभी पूरा नहीं हो पाता.
त्रभाग मिल्खा भाग के बाद आप जल्द ही गुलजार और अमिताभ के साथ फिल्म बनाने जा रहे हैं. उसके बारे में बताएं?
हां, मेरी यह हमेशा से इच्छा थी कि मैं गुलजार साहब के साथ काम करूं. शुरू शुरू में तो मेरी हिम्मत नहीं हो पाती थी. लेकिन एक बार जब उनसे मिला तो उनसे कह डाला कि फिल्म करना चाहता हूं आपके साथ. फिर लंबा गैप आ गया. लेकिन फिर भी उन्हें याद थी यह बात. उन्होंने खुद बुलाकर पूछा. फिल्म करते हैं. और फिर हमने तय किया कि हम साथ काम करेंगे. अमिताभ के साथ मैंने अक् श में काम किया है. वह मेरी पहली शुरुआत थी. और मुझे अमिताभ का साथ मिला. वह फिल्म कामयाब नहीं रही. लेकिन मैं अमिताभ के अभिनय से वाकिफ हो गया हूं और उम्मीद है हम अच्छा काम कर ेंगे.
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