प्राण साहब के जाते ही हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में एक अजीब सी उदासी है. चारों तरफ इस बात को लेकर चर्चा है कि धीरे धीरे इंडस्ट्री के सभी खलनायक हस्तियों का निधन हो रहा है. हिंदी सिनेमा के कई वेटरन अभिनेता अब हमारे साथ नहीं हैं. हिंदी सिनेमा में खलनायक अभिनेताओं ने एक लंबे समय तक राज किया है. उस दौर में अगर अभिनेता लोकप्रिय थे तो खलनायक भी कम लोकप्रिय नहीं थे. एक दौर में खलनायकों को लेकर निर्देशक विशेष रूप से दृश्य लिखते थे. फिल्म शोले में गब्बर सिंह का किरदार डैनी करनेवाले थे. लेकिन किसी वजह से वे फिल्म से जुड़ नहीं पाये और उनका यह मौका अमजेद खान को मिला और वह हिंदी सिनेमा के ऐतिहासिक खलनायक बन गये. प्राण साहब फिल्मों में अभिनेता बनने के लिए आये थे. लेकिन उन्हें लगातार खलनायकों का किरदार मिला. बाद में स्थिति ऐसी बनी कि प्राण चाह कर सकारात्मक किरदार नहीं निभाना चाहते थे. चूंकि उन्हें लगता कि लोग उन्हें उस रूप में पसंद ही नहीं करेंगे. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा में खलनायकों का जो दौर रहा है. वह यादगार रहा है. दर्शक हमेशा उन स्मृतियों को याद रखना चाहते ैहं. वर्तमान में वैसे किरदार गढ़े नहीं जाते. इन दिनों खलनायक नायकों के सामने छोटे नजर आते हैं. अब निर्देशकों के जेहन में ऐसे कोई किरदार गढ़े ही नहीं जाते. लिखे ही नहीं जाते. धीरे धीरे हिंदी सिनेमा से खलनायक वास्तविकता में खोते जा रहे ैहं. वर्तमान में खलनायकों को केवल हास्य का पात्र बना कर दिखाया जाता है. आम लोग उससे डरते नहीं और यह बात पहले ही समझ आ जाती है कि खलनायक को नायक मार ही गिरायेगा. पहले जैसा तिलिस्म अब है ही नहीं. हिंदी सिनेमा को चाहिए कि वे ऐसे किरदारों के बारे में गंभीरता से सोचें और फिर वैसे किरदारों को गढ़ें.
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20130903
खलनायकों का दौर
प्राण साहब के जाते ही हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में एक अजीब सी उदासी है. चारों तरफ इस बात को लेकर चर्चा है कि धीरे धीरे इंडस्ट्री के सभी खलनायक हस्तियों का निधन हो रहा है. हिंदी सिनेमा के कई वेटरन अभिनेता अब हमारे साथ नहीं हैं. हिंदी सिनेमा में खलनायक अभिनेताओं ने एक लंबे समय तक राज किया है. उस दौर में अगर अभिनेता लोकप्रिय थे तो खलनायक भी कम लोकप्रिय नहीं थे. एक दौर में खलनायकों को लेकर निर्देशक विशेष रूप से दृश्य लिखते थे. फिल्म शोले में गब्बर सिंह का किरदार डैनी करनेवाले थे. लेकिन किसी वजह से वे फिल्म से जुड़ नहीं पाये और उनका यह मौका अमजेद खान को मिला और वह हिंदी सिनेमा के ऐतिहासिक खलनायक बन गये. प्राण साहब फिल्मों में अभिनेता बनने के लिए आये थे. लेकिन उन्हें लगातार खलनायकों का किरदार मिला. बाद में स्थिति ऐसी बनी कि प्राण चाह कर सकारात्मक किरदार नहीं निभाना चाहते थे. चूंकि उन्हें लगता कि लोग उन्हें उस रूप में पसंद ही नहीं करेंगे. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा में खलनायकों का जो दौर रहा है. वह यादगार रहा है. दर्शक हमेशा उन स्मृतियों को याद रखना चाहते ैहं. वर्तमान में वैसे किरदार गढ़े नहीं जाते. इन दिनों खलनायक नायकों के सामने छोटे नजर आते हैं. अब निर्देशकों के जेहन में ऐसे कोई किरदार गढ़े ही नहीं जाते. लिखे ही नहीं जाते. धीरे धीरे हिंदी सिनेमा से खलनायक वास्तविकता में खोते जा रहे ैहं. वर्तमान में खलनायकों को केवल हास्य का पात्र बना कर दिखाया जाता है. आम लोग उससे डरते नहीं और यह बात पहले ही समझ आ जाती है कि खलनायक को नायक मार ही गिरायेगा. पहले जैसा तिलिस्म अब है ही नहीं. हिंदी सिनेमा को चाहिए कि वे ऐसे किरदारों के बारे में गंभीरता से सोचें और फिर वैसे किरदारों को गढ़ें.
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