तुषार कपूर फिल्म बजाते रहो में एक मजेदार किरदार में हैं. क्या है उनका किरदार और बजाते रहो कैसी कॉमेडी है. बता रहे हैं खुद तुषार कपूर
तुषार कपूर का मानना है कि बजाते रहो हिंदी सिनेमा की लोकप्रिय कॉमिक फिल्मों में से एक होगी.
शशांत शह के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
जब से मैंने चलो दिल्ली देखी थी, उसी समय से मैं सशांत के ासथ काम करने के बारे में सोच रहा था. मुझे लगता है कि सशंत काम को डूब कर और ईमानदारी से करनेवाले डायरेक्टर हैं. वे पूरी तरह से प्रोडयूसर के मुताबिक चलनेवाले निर्देश्क हैं. मैंने इतना ईमानदार और इकोनॉमिकल डायरेक्टर नहीं देखा है. सशंत जब शेडयूल पर होते हैं तो अपनी फिल्म को हर पल जीते हैं. वे कड़ी मेहनत से काम करनेवाले डायरेक्टर हैं और उनकी मेहनत परदे पर नजर आती है.
शूटिंग का पूरा शेडयूल किस तरह का था?
यह बहुत ही टफ शेडयूल था. लेकिन फिर भी हमने बहुत मस्ती की. हमने काम को पूरी तरह से जिया. मस्ती भरा काम था. कोई लापरवाही हमने नहीं बरती. क्योंकि शॉट लंबे चलते थे.इसलिए सभी को सेट पर मौजूद रहना होता था. इससे हम लोगों को आपस में काफी बात करने का मौका मिला और हमारे संबंध काफी मजबूत भी हुए, कैमरे के पीछे लगातार हमारी बातचीत चलती रहती थी. मैंने इन लोगों के साथ पहले कभी काम नहीं किया है. हम सब लोग अच्छे दोस्त बन गये थे.
लंबे समय तक चले शेडयूल की वजह से बाकी सितारों के साथ आपके किस तरह के संबंध बने?
विनय और मैं एक दूसरे को जानते थे लेकिन रणवीर और डॉली दो लोगों ऐसे थे, जिनसे मैं कभी पहले नहीं मिला था. लेकिन यह सब काफी रिफ्रेशिंग था. पूरी यूनिट एक परिवार की तरह थी और दिल्ली में घूमने के लिए हम लोगों के पास काफी समय था. हर कोई एक दूसरे की टांग खींचने में लगा रहता और इससे स्क्रीन पर शशांत को मनमाफिक नतीजे पाने में मदद मिला. वे चाहते थे कि हम जम कर मस्ती करें और यही मस्ती स्क्रीन और कैरेर्क्ट्स में नजर आये और दर्शकों तक पहुंचे. लेकिन मुझे लगता है कि मेरे बेस्ट मोमेंट्स और सीन्स विशाखा के साथ हैं. वे नयी हैं, मेहनती हैं और अपने काम पर अपनी महत्वकांक्षा को हावी नहीं होने देती हैं. यही उनकी सबसे अच्छी बात है.
आप ज्यादातर कॉमेडी फिल्मों में नजर आते हैं?
ऐसा नहीं है. अगर आप मेरी आखिरी फिल्म शूटआउट एट वडाला देखें तो मैंने पूरी तरह से अलग रोल निभाया है. चाहे द डर्टी पिक्चर्स हो या शोर इन द सिटी, सी कंपनी या फिर गायब. मैंने गंभीर किस्म का काफी फिल्में की हैं. यह गोलमाल में मेरा रोल ही है, जिस वजह से ऐसा कहा जाता है. अगर आप बजाते रहो में मेरा रोल देखें तो यह फिल्म की तरह हकीकत के काफी करीब और लीक से हट कर है. मेरे लिए, किसी विषय की बजाय अच्छी पटकथा, अच्छा निर्देश्क, अच्छा प्रोडयूसर और अच्छे को स्टार फिल्म चुनने की ज्यादा जरूरी वजह हैं.
फिल्म में अपने कैरेक्टर के बारे में बताएं?
फिल्म मे मैं सक्खी के रोल में हूं. जो काफी इमोश्नल है और कॉमिकल है. फिल्म की शुरुआत मेरे पिता और मेरे बीच में मनमुटाव के साथ होती है. यह एक जटिल किरदार है. वह मैच्योर है और जीवन को अपने ढंग से देखना चाहता है. इस कैरेक्टर के माइंडसेट को समझने के लिए मैंने सशंत के साथ काफी वक्त गुजारा. इस कैरेक्टर में पूरी तरह से उतरने के लिए पंजाबी बेहद जरूरी थी. जिसे मैंने सीखा भी. मैं पंजाबी फिल्में देखता था. मैं अपने पंजाबी काम करनेवालों से पंजाबी में ही बोलता और कहता हूं जहां गलत हूं सही कर देना.
बजाते रहो यानी
यह आपको गुदगुदानेवाली कॉमेडी फिल्म है, जिसमें चार लोग एक दूसरे के बेहद करीब हैं और वह सही चीजों को गलत ढंग से करने के लिए एक साथ आये हैं.
आपकी आनेवाली फिल्में
फिलहाल सतीश कौशिक की फिल्म कर रहा हूं.
तुषार कपूर का मानना है कि बजाते रहो हिंदी सिनेमा की लोकप्रिय कॉमिक फिल्मों में से एक होगी.
शशांत शह के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
जब से मैंने चलो दिल्ली देखी थी, उसी समय से मैं सशांत के ासथ काम करने के बारे में सोच रहा था. मुझे लगता है कि सशंत काम को डूब कर और ईमानदारी से करनेवाले डायरेक्टर हैं. वे पूरी तरह से प्रोडयूसर के मुताबिक चलनेवाले निर्देश्क हैं. मैंने इतना ईमानदार और इकोनॉमिकल डायरेक्टर नहीं देखा है. सशंत जब शेडयूल पर होते हैं तो अपनी फिल्म को हर पल जीते हैं. वे कड़ी मेहनत से काम करनेवाले डायरेक्टर हैं और उनकी मेहनत परदे पर नजर आती है.
शूटिंग का पूरा शेडयूल किस तरह का था?
यह बहुत ही टफ शेडयूल था. लेकिन फिर भी हमने बहुत मस्ती की. हमने काम को पूरी तरह से जिया. मस्ती भरा काम था. कोई लापरवाही हमने नहीं बरती. क्योंकि शॉट लंबे चलते थे.इसलिए सभी को सेट पर मौजूद रहना होता था. इससे हम लोगों को आपस में काफी बात करने का मौका मिला और हमारे संबंध काफी मजबूत भी हुए, कैमरे के पीछे लगातार हमारी बातचीत चलती रहती थी. मैंने इन लोगों के साथ पहले कभी काम नहीं किया है. हम सब लोग अच्छे दोस्त बन गये थे.
लंबे समय तक चले शेडयूल की वजह से बाकी सितारों के साथ आपके किस तरह के संबंध बने?
विनय और मैं एक दूसरे को जानते थे लेकिन रणवीर और डॉली दो लोगों ऐसे थे, जिनसे मैं कभी पहले नहीं मिला था. लेकिन यह सब काफी रिफ्रेशिंग था. पूरी यूनिट एक परिवार की तरह थी और दिल्ली में घूमने के लिए हम लोगों के पास काफी समय था. हर कोई एक दूसरे की टांग खींचने में लगा रहता और इससे स्क्रीन पर शशांत को मनमाफिक नतीजे पाने में मदद मिला. वे चाहते थे कि हम जम कर मस्ती करें और यही मस्ती स्क्रीन और कैरेर्क्ट्स में नजर आये और दर्शकों तक पहुंचे. लेकिन मुझे लगता है कि मेरे बेस्ट मोमेंट्स और सीन्स विशाखा के साथ हैं. वे नयी हैं, मेहनती हैं और अपने काम पर अपनी महत्वकांक्षा को हावी नहीं होने देती हैं. यही उनकी सबसे अच्छी बात है.
आप ज्यादातर कॉमेडी फिल्मों में नजर आते हैं?
ऐसा नहीं है. अगर आप मेरी आखिरी फिल्म शूटआउट एट वडाला देखें तो मैंने पूरी तरह से अलग रोल निभाया है. चाहे द डर्टी पिक्चर्स हो या शोर इन द सिटी, सी कंपनी या फिर गायब. मैंने गंभीर किस्म का काफी फिल्में की हैं. यह गोलमाल में मेरा रोल ही है, जिस वजह से ऐसा कहा जाता है. अगर आप बजाते रहो में मेरा रोल देखें तो यह फिल्म की तरह हकीकत के काफी करीब और लीक से हट कर है. मेरे लिए, किसी विषय की बजाय अच्छी पटकथा, अच्छा निर्देश्क, अच्छा प्रोडयूसर और अच्छे को स्टार फिल्म चुनने की ज्यादा जरूरी वजह हैं.
फिल्म में अपने कैरेक्टर के बारे में बताएं?
फिल्म मे मैं सक्खी के रोल में हूं. जो काफी इमोश्नल है और कॉमिकल है. फिल्म की शुरुआत मेरे पिता और मेरे बीच में मनमुटाव के साथ होती है. यह एक जटिल किरदार है. वह मैच्योर है और जीवन को अपने ढंग से देखना चाहता है. इस कैरेक्टर के माइंडसेट को समझने के लिए मैंने सशंत के साथ काफी वक्त गुजारा. इस कैरेक्टर में पूरी तरह से उतरने के लिए पंजाबी बेहद जरूरी थी. जिसे मैंने सीखा भी. मैं पंजाबी फिल्में देखता था. मैं अपने पंजाबी काम करनेवालों से पंजाबी में ही बोलता और कहता हूं जहां गलत हूं सही कर देना.
बजाते रहो यानी
यह आपको गुदगुदानेवाली कॉमेडी फिल्म है, जिसमें चार लोग एक दूसरे के बेहद करीब हैं और वह सही चीजों को गलत ढंग से करने के लिए एक साथ आये हैं.
आपकी आनेवाली फिल्में
फिलहाल सतीश कौशिक की फिल्म कर रहा हूं.
No comments:
Post a Comment