अपनी फिल्मों के प्रोमोशन के लिए जब भी मैं छोटे परदे के धारावाहिक या शोज में जाती हूं. खासतौर से रियलिटी शो के मंच पर तो मैं महसूस करती हूं कि जो बच्चे इन शोज में भाग लेते हैं. वे कितने टैलेंटेड होते हैं. उन्हें मैंने कभी भी अपशब्द कहते तो नहीं सुना. न ही कोई बुरा व्यवहार करते देखा है. वे तो बेहद मासूम होते हैं और मासूमियत से ही चीजें करते हैं. अब मान लीजिए कि किसी बच्चे ने मासूमियत से शाहरुख खान या मेरी या रणबीर या किसी भी स्टार की नकल उतार दी तो आप इसे बुरा प्रभाव तो नहीं मान लेंगे. वे तो मासूमियत में ऐसा कर रहे हैं. दूसरी बात है कि बच्चे सिनेमा और टीवी पर समय ही कितना देते हैं. बच्चे तो ज्यादातर गेम खेलते हैं. मैं तो अपने आसपास के सभी बच्चों को गेम खेलते ही देखती हूं. तो ऐसे में वे उनसे कैसे बिगड़ जायेंगे. बच्चों को कॉमिक कैरेक्टर पसंद हैं. वे बेनटेन, डॉरोमन की बातें करते हैं. उन्हें ये सारे कैरेक्टर याद रहते हैं. न कि वे इन बातों को याद रखते हैं कि किस फिल्म के क्या दृश्य हैं. तो मैं बिल्कुल नहीं मानती कि बच्चों पर टीवी या सिनेमा का कोई भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. बल्कि रियलिटी शोज के माध्यम से कई वैसे बच्चों को भी बड़े मौके मिल रहे हैं. जो वहां तक पहुंचने में असमर्थ हैं. जिन बच्चों की बिगड़ने की प्रवृति है वह तो कुछ भी देख कर बिगड़ जायेंगे. फिल्में ही सिर्फ माध्यम नहीं उनको बिगाड़ने की. बच्चे फिल्मों से कॉमिक कैरेक्टर और संवादों को याद रखते हैं. शेष चीजें न तो उन्हें याद रहती है और न ही वह इस पर बहुत ज्यादा सोच पाते हैं तो मैं तो इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं. मैं जहां भी रही हूं और जो भी बच्चों को देखा है. वे तो आपस में तकनीक, लड़कियां फिल्मों से स्टाइल की बात करती हैं और लड़के एक् शन, मस्ती, थ्रील की बात करते हैं . सिनेमा का सबसे अच्छा प्रभाव तो बच्चों पर यह है कि वह पूरी दुनिया से रूबरू होते हैं. उन्हें जितनी जानकारी होती है. हमें नहीं होती. गैजेट्स, तकनीक के बारे में वे हमसे ज्यादा जानते हैं और सिन ेमा की यही खूबी है. रही जहां तक बात टीवी की तो मैं इन दिनों टीवी देखती नहीं और इन बातों से बहुत अपडेट नहीं कि उन पर क्या चीजें दिखाई जा रही हैं और बच्चे उनसे कितने वाकिफ हैं.
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20130903
दीपिका पादुकोण on impact of film on children
अपनी फिल्मों के प्रोमोशन के लिए जब भी मैं छोटे परदे के धारावाहिक या शोज में जाती हूं. खासतौर से रियलिटी शो के मंच पर तो मैं महसूस करती हूं कि जो बच्चे इन शोज में भाग लेते हैं. वे कितने टैलेंटेड होते हैं. उन्हें मैंने कभी भी अपशब्द कहते तो नहीं सुना. न ही कोई बुरा व्यवहार करते देखा है. वे तो बेहद मासूम होते हैं और मासूमियत से ही चीजें करते हैं. अब मान लीजिए कि किसी बच्चे ने मासूमियत से शाहरुख खान या मेरी या रणबीर या किसी भी स्टार की नकल उतार दी तो आप इसे बुरा प्रभाव तो नहीं मान लेंगे. वे तो मासूमियत में ऐसा कर रहे हैं. दूसरी बात है कि बच्चे सिनेमा और टीवी पर समय ही कितना देते हैं. बच्चे तो ज्यादातर गेम खेलते हैं. मैं तो अपने आसपास के सभी बच्चों को गेम खेलते ही देखती हूं. तो ऐसे में वे उनसे कैसे बिगड़ जायेंगे. बच्चों को कॉमिक कैरेक्टर पसंद हैं. वे बेनटेन, डॉरोमन की बातें करते हैं. उन्हें ये सारे कैरेक्टर याद रहते हैं. न कि वे इन बातों को याद रखते हैं कि किस फिल्म के क्या दृश्य हैं. तो मैं बिल्कुल नहीं मानती कि बच्चों पर टीवी या सिनेमा का कोई भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. बल्कि रियलिटी शोज के माध्यम से कई वैसे बच्चों को भी बड़े मौके मिल रहे हैं. जो वहां तक पहुंचने में असमर्थ हैं. जिन बच्चों की बिगड़ने की प्रवृति है वह तो कुछ भी देख कर बिगड़ जायेंगे. फिल्में ही सिर्फ माध्यम नहीं उनको बिगाड़ने की. बच्चे फिल्मों से कॉमिक कैरेक्टर और संवादों को याद रखते हैं. शेष चीजें न तो उन्हें याद रहती है और न ही वह इस पर बहुत ज्यादा सोच पाते हैं तो मैं तो इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं. मैं जहां भी रही हूं और जो भी बच्चों को देखा है. वे तो आपस में तकनीक, लड़कियां फिल्मों से स्टाइल की बात करती हैं और लड़के एक् शन, मस्ती, थ्रील की बात करते हैं . सिनेमा का सबसे अच्छा प्रभाव तो बच्चों पर यह है कि वह पूरी दुनिया से रूबरू होते हैं. उन्हें जितनी जानकारी होती है. हमें नहीं होती. गैजेट्स, तकनीक के बारे में वे हमसे ज्यादा जानते हैं और सिन ेमा की यही खूबी है. रही जहां तक बात टीवी की तो मैं इन दिनों टीवी देखती नहीं और इन बातों से बहुत अपडेट नहीं कि उन पर क्या चीजें दिखाई जा रही हैं और बच्चे उनसे कितने वाकिफ हैं.
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