प्राण साहब के अंतिम संस्कार में बॉलीवुड की कई हस्तियां नदारद थीं. इस पर शत्रुघ्न सिन्हा ने बेहद अफसोस जताते हुए कहा कि यह बेहद अफसोसजनक बात है कि प्राण साहब जो खुद में अभिनय के इंस्टीटयूट थे. उनके अंतिम दर्शन में इंडस्ट्री के कई लोग नदारद थे. जबकि एक दौर में प्राण साहब के घर पर लोगों का ताता लगा होता था. प्राण साहब की एक आवाज पर सभी दौड़ कर चले आते थे. प्राण साहब ने उस दौर में कई सेलिब्रिटी लीग मैच कराये थे. ताकि वे चैरिटी कर सकें. उस वक्त सभी कलाकार उनकी एक आवाज पर तैयार हो जाते थे. शत्रुघ्न सिन्हा ने यह बात की सांझा की कि कई वर्षों पहले जब सत्यजीत रे के लिए मेहबबू स्टूडियो में प्रेयर मीटिंग रखी गयी थी. उस वक्त भी इंडस्ट्री के कई लोग शामिल नहीं हुए थे. जबकि सत्यजीत रे ने ही हिंदी सिनेमा को विश्व में पहली पहचान दिलायी थी. दरअसल, हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में न तो सिनेमा देखने की कोई खास संस्कृति है और न ही सिनेमा के लोगों को सम्मानित करने की कोई खास संस्कृति. यही वजह है कि न तो सिनेमा को गंभीरता से लिया जाता है. खुद सिनेमा से जुड़े लोग ही इसका सम्मान ठीक से नहीं करते. बैंड स्टैंड पर स्थित स्टार्स के सिग्नेचर को लोग पैरों से इस कदर मसल देते हैं, जैसे वह कुछ भी नहीं. यही वजह है कि हम आज में जीते हैं. आज जो पॉपुलर है. हाथ हिला सकता है. सेलिब्रिटी अंदाज में अपने कई पोज दे सकता है. वही आज का सितारा है. जहां वे हाथ व्हील चेयर पर आये. फिर वह कुछ भी नहीं रह जाते. यह विडंबना है कि हिंदी सिनेमा धीरे धीरे प्राण साहब जैसी शख्सियतों को खोता जा रहा है. लेकिन उन्हें आखिरी सलाम देने के लिए भी किसी के पास वक्त नहीं. टिष्ट्वटर और सोशल नेटवर्किंग साइट पर ही इन दिनों दुआ सलाम सीमित है.
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20130903
आखिरी सलाम से नदारद इंडस्ट्री
प्राण साहब के अंतिम संस्कार में बॉलीवुड की कई हस्तियां नदारद थीं. इस पर शत्रुघ्न सिन्हा ने बेहद अफसोस जताते हुए कहा कि यह बेहद अफसोसजनक बात है कि प्राण साहब जो खुद में अभिनय के इंस्टीटयूट थे. उनके अंतिम दर्शन में इंडस्ट्री के कई लोग नदारद थे. जबकि एक दौर में प्राण साहब के घर पर लोगों का ताता लगा होता था. प्राण साहब की एक आवाज पर सभी दौड़ कर चले आते थे. प्राण साहब ने उस दौर में कई सेलिब्रिटी लीग मैच कराये थे. ताकि वे चैरिटी कर सकें. उस वक्त सभी कलाकार उनकी एक आवाज पर तैयार हो जाते थे. शत्रुघ्न सिन्हा ने यह बात की सांझा की कि कई वर्षों पहले जब सत्यजीत रे के लिए मेहबबू स्टूडियो में प्रेयर मीटिंग रखी गयी थी. उस वक्त भी इंडस्ट्री के कई लोग शामिल नहीं हुए थे. जबकि सत्यजीत रे ने ही हिंदी सिनेमा को विश्व में पहली पहचान दिलायी थी. दरअसल, हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में न तो सिनेमा देखने की कोई खास संस्कृति है और न ही सिनेमा के लोगों को सम्मानित करने की कोई खास संस्कृति. यही वजह है कि न तो सिनेमा को गंभीरता से लिया जाता है. खुद सिनेमा से जुड़े लोग ही इसका सम्मान ठीक से नहीं करते. बैंड स्टैंड पर स्थित स्टार्स के सिग्नेचर को लोग पैरों से इस कदर मसल देते हैं, जैसे वह कुछ भी नहीं. यही वजह है कि हम आज में जीते हैं. आज जो पॉपुलर है. हाथ हिला सकता है. सेलिब्रिटी अंदाज में अपने कई पोज दे सकता है. वही आज का सितारा है. जहां वे हाथ व्हील चेयर पर आये. फिर वह कुछ भी नहीं रह जाते. यह विडंबना है कि हिंदी सिनेमा धीरे धीरे प्राण साहब जैसी शख्सियतों को खोता जा रहा है. लेकिन उन्हें आखिरी सलाम देने के लिए भी किसी के पास वक्त नहीं. टिष्ट्वटर और सोशल नेटवर्किंग साइट पर ही इन दिनों दुआ सलाम सीमित है.
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