नवाजुद्दीन सिद्दिकी इस बार लैक्मे फैशन वीक में शो स्टॉपर बने. पिछली बार जब वह कान फिल्मोत्सव में जा रहे थे तो डिजाइनर्स ने उनके लिए कपड़े डिजाइन करने से इनकार कर दिया था. चूंकि उनका मानना था कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी डिजाइनर्स स्टाइल अपनाकर अच्छे नहीं दिखेंगे. लेकिन आज वह शो स्टॉपर बन रहे हैं. स्पष्ट है कि यहां उगते सूरज को ही सलाम करते हैं. नवाजुद्दीन की कद काठी की वजह से ही उन्हें हिंदी फिल्मों में लंबा संघर्ष करना पड़ा. 14-15 सालों तक उन्होंने मेहनत की. धक्के खाये. तब जाकर उन्हें फिल्म मिली. आज वह जिस फिल्म का भी हिस्सा होते हैं. वे उस फिल्म के भी शो स्टॉपर बन जाते हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि बॉलीवुड में टैलेेंट की डिमांड तो होती है और उन्हें पहचान भी मिलती है. लेकिन उन्हें लंबी पारी खेलनी पड़ती है. वे तपते हैं और फिर निखरते हैं. हां, यह सच है कि इसी हिंदी सिनेमा ने ओम पुरी और पंकज कपूर जैसे सामान्य चेहरे लेकिन अदभुत अभिनय वाले कलाकारों को भी जगह दी है. लेकिन आज भी ग्लैमर दुनिया में स्टारडम ही हावी है. आज भी दर्शकों की नजर में नवाजुद्दीन कैरेक्टर आर्टिस्ट ही हैं. वे लीड किरदार निभाने के बावजूद वह कैरेक्टर आर्टिस्ट ही कहलाते हैं. इसकी बड़ी वजह नस्लवाद है. हां, यह सच है कि हिंदी सिनेमा जगत में जातिवाद हावी नहीं और न ही नस्लवाद. लेकिन दर्शकों की नजर में आज भी नस्लवाद हावी है. उनके लिए हीरो हमेशा सुंदर, बाइक पर बैठ कर आनेवाला ही होना चाहिए, उसकी बॉडी होनी चाहिए. लोग इरफान के अभिनय को प्यार करते हैं. लेकिन कितने दर्शक होंगे जिन्हें उनके चेहरे से भी प्यार हो. नवाजुद्दीन आने वाले समय में हिंदी सिनेमा के सबसे प्रभावशाली कलाकारों में से एक हैं और होंगे. इसके बावजूद क्या वह हीरो की केटेगरी में फिट हो पायेंगे या दर्शक उन्हें फिट करेंगे.
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20130930
हिंदी फिल्मों का हीरो
नवाजुद्दीन सिद्दिकी इस बार लैक्मे फैशन वीक में शो स्टॉपर बने. पिछली बार जब वह कान फिल्मोत्सव में जा रहे थे तो डिजाइनर्स ने उनके लिए कपड़े डिजाइन करने से इनकार कर दिया था. चूंकि उनका मानना था कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी डिजाइनर्स स्टाइल अपनाकर अच्छे नहीं दिखेंगे. लेकिन आज वह शो स्टॉपर बन रहे हैं. स्पष्ट है कि यहां उगते सूरज को ही सलाम करते हैं. नवाजुद्दीन की कद काठी की वजह से ही उन्हें हिंदी फिल्मों में लंबा संघर्ष करना पड़ा. 14-15 सालों तक उन्होंने मेहनत की. धक्के खाये. तब जाकर उन्हें फिल्म मिली. आज वह जिस फिल्म का भी हिस्सा होते हैं. वे उस फिल्म के भी शो स्टॉपर बन जाते हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि बॉलीवुड में टैलेेंट की डिमांड तो होती है और उन्हें पहचान भी मिलती है. लेकिन उन्हें लंबी पारी खेलनी पड़ती है. वे तपते हैं और फिर निखरते हैं. हां, यह सच है कि इसी हिंदी सिनेमा ने ओम पुरी और पंकज कपूर जैसे सामान्य चेहरे लेकिन अदभुत अभिनय वाले कलाकारों को भी जगह दी है. लेकिन आज भी ग्लैमर दुनिया में स्टारडम ही हावी है. आज भी दर्शकों की नजर में नवाजुद्दीन कैरेक्टर आर्टिस्ट ही हैं. वे लीड किरदार निभाने के बावजूद वह कैरेक्टर आर्टिस्ट ही कहलाते हैं. इसकी बड़ी वजह नस्लवाद है. हां, यह सच है कि हिंदी सिनेमा जगत में जातिवाद हावी नहीं और न ही नस्लवाद. लेकिन दर्शकों की नजर में आज भी नस्लवाद हावी है. उनके लिए हीरो हमेशा सुंदर, बाइक पर बैठ कर आनेवाला ही होना चाहिए, उसकी बॉडी होनी चाहिए. लोग इरफान के अभिनय को प्यार करते हैं. लेकिन कितने दर्शक होंगे जिन्हें उनके चेहरे से भी प्यार हो. नवाजुद्दीन आने वाले समय में हिंदी सिनेमा के सबसे प्रभावशाली कलाकारों में से एक हैं और होंगे. इसके बावजूद क्या वह हीरो की केटेगरी में फिट हो पायेंगे या दर्शक उन्हें फिट करेंगे.
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