शाहरुख खान ने हाल ही में अपने घर ईद की पार्टी दी. इस पार्टी में लगभग इंडस्ट्री के सारे बड़े सितारे आये. नहीं आये तो उनके अपने प्रिय दोस्त. किसी जमाने में जूही चावला शाहरुख की खास दोस्तों में से एक थीं. जूही शाहरुख के साथ मिल कर आइपीएल और रेड चिल्ली प्रोडक् शन में भी साथ साथ काम किया. लेकिन बाद में शाहरुख और जूही के बीच कई बातों को लेकर अनबन हुई और इन दिनों वह दूर दूर हैं. वही उनकी प्रिय सहेलियों में से एक रानी मुखर्जी भी पार्टी से नदारद रहीं. काजोल भी नहीं आयीं. काजोल शाहरुख की बेस्ट फ्रेंड्स में से एक थीं. अर्जुन रामपाल भी नहीं आये. स्पष्ट है कि शाहरुख खान धीरे धीरे अपने पुराने दोस्तों को भूलते जा रहे हैं शायद. या यह भी हो सकता है कि पुराने दोस्तों को शाहरुख से कई तरह की शिकायतें हों और वह इस वजह से शाहरुख की खुशियों में शामिल नहीं हो रहे हों. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा में दोस्ती का समीकरण इसी तरह बनता और बिगड़ता है. कभी जिगरी दोस्त एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और कभी दुश्मन दोस्त. किसी दौर में दिलीप कुमार, देव आनंद में बहुत नजदीकियां थीं. लेकिन धीरे धीरे दोनों का समीकरण बदला. और अंत तक देव आनंद को इस बात की शिकायत रही कि दिलीप उनके साथ ज्यादा वक्त नहीं बिताते थे. किसी दौर में अमिताभ बच्चन और अमर सिंह एक दूसरे के खास दोस्त थे. लेकिन धीरे धीरे इस दोस्ती में भी दूरियां आ गयीं. दरअसल, हिंदी सिनेमा में पनपने वाली दोस्ती. दरअसल, दोस्ती होती नहीं. अगर दोस्ती होती तो वह किसी मकसद से टूटती या बिखरती नहीं, क्योंकि जहां मकसद है. वहां दोस्ती तो होती ही नहीं. हिंदी सिनेमा में यह दौर जारी रहेगा. दोस्ती और दुश्मनी के समीकरण बदलते दौर के साथ बदलेंगे और बिगड़ेंगे.
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20130903
शाहरुख की ईदी
शाहरुख खान ने हाल ही में अपने घर ईद की पार्टी दी. इस पार्टी में लगभग इंडस्ट्री के सारे बड़े सितारे आये. नहीं आये तो उनके अपने प्रिय दोस्त. किसी जमाने में जूही चावला शाहरुख की खास दोस्तों में से एक थीं. जूही शाहरुख के साथ मिल कर आइपीएल और रेड चिल्ली प्रोडक् शन में भी साथ साथ काम किया. लेकिन बाद में शाहरुख और जूही के बीच कई बातों को लेकर अनबन हुई और इन दिनों वह दूर दूर हैं. वही उनकी प्रिय सहेलियों में से एक रानी मुखर्जी भी पार्टी से नदारद रहीं. काजोल भी नहीं आयीं. काजोल शाहरुख की बेस्ट फ्रेंड्स में से एक थीं. अर्जुन रामपाल भी नहीं आये. स्पष्ट है कि शाहरुख खान धीरे धीरे अपने पुराने दोस्तों को भूलते जा रहे हैं शायद. या यह भी हो सकता है कि पुराने दोस्तों को शाहरुख से कई तरह की शिकायतें हों और वह इस वजह से शाहरुख की खुशियों में शामिल नहीं हो रहे हों. दरअसल, हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा में दोस्ती का समीकरण इसी तरह बनता और बिगड़ता है. कभी जिगरी दोस्त एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और कभी दुश्मन दोस्त. किसी दौर में दिलीप कुमार, देव आनंद में बहुत नजदीकियां थीं. लेकिन धीरे धीरे दोनों का समीकरण बदला. और अंत तक देव आनंद को इस बात की शिकायत रही कि दिलीप उनके साथ ज्यादा वक्त नहीं बिताते थे. किसी दौर में अमिताभ बच्चन और अमर सिंह एक दूसरे के खास दोस्त थे. लेकिन धीरे धीरे इस दोस्ती में भी दूरियां आ गयीं. दरअसल, हिंदी सिनेमा में पनपने वाली दोस्ती. दरअसल, दोस्ती होती नहीं. अगर दोस्ती होती तो वह किसी मकसद से टूटती या बिखरती नहीं, क्योंकि जहां मकसद है. वहां दोस्ती तो होती ही नहीं. हिंदी सिनेमा में यह दौर जारी रहेगा. दोस्ती और दुश्मनी के समीकरण बदलते दौर के साथ बदलेंगे और बिगड़ेंगे.
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