काय पो चे में वे अपने अभिनय का हुनर दिखा चुके हैं. महज एक फिल्म से ही उन्हें अच्छी लोकप्रियता मिली है. अब शुद्ध देसी रोमांस में वह रोमांटिक छोरे का किरदार निभा रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत के लिए क्या है शुद्ध देसी रोमांस के मायने और क्यों वह बन गये हैं युवाओं के नये सुपरस्टार. अनुप्रिया अनंत ने सुशांत से जानने की कोशिश की...
क्या है शुद्ध देसी रोमांस
जेनरली हमलोग फिल्म में जो रोमांस दिखाते हैं. वह काफी फैंटेसी होता है. उसमें एक हीरो होता है. एक हीरोइन होती है. और उसमें प्यार हो जाता है. फिर उन दोनों में प्यार होता है. फिर विलेन आता है. विलेन मर जाता है और फिर दोनों रहते हैं खुशी खुशी. लेकिन यह सच्चा रोमांस नहीं होता. शुद्ध देसी रोमांस उस रोमांस के बारे में बातचीत है,जिसमें दो लोगों के बीच कंफ्लीक्ट है. दो लोगों के बीच इमोशन है. दो लोगों के बीच कंफ्यूजन है. लेकिन फिर भी दोनों साथ रहना चाहते हैं. क्यों? क्योंकि उनमें प्यार है. शुद्ध इसलिए क्योंकि इस रोमांस में जो जैसा है. वैसा दिखा रहे हैं. कुछ भी बनावटी नहीं.छुपा नहीं रहे कुछ भी. देसी इसलिए क्योंकि इंडियन मेनेटेलिटी के साथ ही यह रोमांस चलता है. लोग हजार गालियां दे दे कि क्या कर रहे हैं ये लोग़. तमाम आॅथोडॉग्स नॉर्म्स के साथ हम चलते हैं. रोमांस इसलिए क्योंकि इसमें रोमांस है.
क्या छोटे शहरों में होते हैं लिव इन रिलेशनशीप
होते हैं और बिल्कुल होते हैं. ये अलग बात है कि मीडिया में आ नहीं पाती. बस वहां की मीडिया यानी आस पड़ोस में ही रह जाती हैं बातें. छुप छुप कर रहते ही लोग़. हम उसके बारे में बताते नहीं हैं.पिक्चर देखें कि हमने जो दिखाया है. वह सच कैसे है. कैसे लोग दूसरों को दिखाते हैं कि हम नहीं हैं ऐसे. लेकिन होता यही है कि दो लोग रह रहे होते हैं. मेरा मानना है कि लिव इन रिलेशनशीप इस लिहाज से एक अच्छी रिलेशनशीप है कि आपको एक दूसरे को जानने का मौका मिल जाता है. किसी एफेडेबीट रिश्ते में बंधने से पहले.
जब जुड़े यशराज से
मुझे आॅडिशन के लिए बुलाया गया था. उन्हें लगा कि मैं यह किरदार निभा सकता हूं. और यशराज जैसे बैनर को न कौन कहेगा.
जब लगा सुपरस्टार का टैग
मैं सीरियसली इस टैग को गंभीरता से नहीं ले रहा, क्योंकि लोगों को ऊपर चढ़ाने में बड़ा मजा आता है. और उतना ही मजा गिराने में भी आता है. मेरा यहां आने का एक अलग मकसद है. मैं यहां पैसे कमाने के लिए नहीं आया हूं. मैं जहां था वहां भी अच्छे खासे पैसे कमा रहा था. वहां भी रह सकता था. लेकिन मुझे कुछ अलग करना है. मैं अभिनय में यूं ही नहीं आया. मैं परफॉर्मिंग आर्ट्स किये हैं. शामक ने भी ललक देख कर ही मुझे कहा था कि मुझे अभिनय में जाना चाहिए. मैं बारीकी को समझते हुए काम करना चाहता हूं. तो मुझे किसी टैग के साथ नहीं बढ़ना. मेरी तुलना शाहरुख से हमेशा होती रहती है. लेकिन वह जहां आज हैं. उन्होंने लंबा सफर तय किया है. मैं आसानी से कैसे पहुंच जाऊंगा. फिलहाल मैं भी सफर का हिस्सा बनना चाहता हूं. मेरे पास फिलवक्त वे सारे निर्देशकों की फिल्म है, जिनके बारे में सुन कर कोई भी एक्टर पागल हो जायेगा. लेकिन मुझे तो रात में नींद नहीं आती कि मुझे इनके एक्सपेक्टेशन पर खरे उतरना है. मुझे खुद के एक्सपेक्टेशन पर खरा उतरना है.
जब लोगों से मिली वाहवाही
मैं जब परफॉर्मिंग आर्ट का हिस्सा बना तो मैंने देखा कि मैं लोगों को हंसा पा रहा हूं. रुला पा रहा हूं. लोगों को इंगेज कर पा रहा हूं. तब जान पाया था कि अभिनय कर सकता हूं. मुझमें अभिनय का, चीजों को अलग और बारीकी से करने का एडिक् शन है. उस एडिक् शन को कायम रख पाऊं. तो वही बहुत है. मुझे याद है मेरे दोस्त मेरे साथ फिल्म काय पो चे देख रहे हैं. लेकिन ईशान जब मरता है तो वह फुट फुट कर रोते हैं. जबकि मैं बगल में बैठा हूं. तो मैं उस तरह का अभिनय करना चाहता हूं. यह तो मैजिक ही है न कि आपके सामने वह व्यक्ति बैठा है. लेकिन आप परदे पर उसे देख कर रो रहे हो. मैं कैमरा के साथ कैसे खेल सकता हूं. किस तरह अलग कर सकता हूं. फिलहाल यही कोशिश है.
जब छोड़ा छोटा परदा
छोटे परदे से दूर होने की सबसे बड़ी वजह थी कि वहां लोग मुझे नहीं मानव को याद रख रहे थे. मुझे जितना वहां सीखना था. मैं सीख चुका था. छोटे परदे की अपनी सीमाएं हैं, एक वक्त के बाद आप वहां सीख नहीं पाते. सिर्फ पैसे बनाने लगते हैं. मुझे वह नहीं करना. चूंकि मुझे प्रोसेस में मजा आता है. मुझे अच्छा लगता है. जब मैं बारीकी से एक एक चीज, एक एक स्टेप को पार करके आगे बढ़ता हूं. सो, मैंने अपनी सीमाओं को तोड़ना ही जरूरी समझा. मैं अभी जितने भी किरदार निभा रहा हूं.वहां मैं परदे के पीछे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करता रहता हूं. वहां क ेटेक्नीकल के लोगों से पूछता रहता हूं.
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