20130930

कलाकार और उनके संस्कार


माधुरी दीक्षित ने हाल ही में अपने पिता को अंतिम विदाई दी. उनके पिता शंकर आर दीक्षित 95 वर्ष के थे. उन्होंने अपनी जिंदगी में समृद्धि देखी. अपने पूरे परिवार को तरक्की करते देखा. माधुरी इस बात से दुखी थी. स्वभाविक है. हर बेटी होती है. लेकिन वह इस बात से संतुष्ट थी कि उनके पिता ने एक समृद्ध जिंदगी जी. उन्होंने अपने पिता के लिए प्रेयर मीटिंग मुंबई के इस्कॉन टेंपल में रखा. जहां उनके चूनिंदा दोस्त आये और शांति से उन्होंने इसका समापन किया. अनुपम खेर ने भी अपने पिता की मृत्यु पर बिना किसी शोर शराबे और दिखावे के शांति से इस्कॉन टैंपल में प्रेयर मीटिंग रखी. स्पष्ट है कि ये कलाकार अपनी जिंदगी की इतनी बड़ी क्षति के दुख का कोई दिखावा नहीं करना चाहते थे. वरना, बॉलीवुड में मातम भी फाइव स्टार होटल में मनाने का प्रचलन है. हिंदी सिनेमा में चूंकि मातम भी किसी छलावे और दिखावे से कम नहीं होता. दरअसल, माधुरी या अनुपम खेर या अमिताभ जैसे कलाकारों ने  अपने माता पिता को केवल शारीरिक रूप से जिंदगी शामिल नहीं कर रखा था. अनुपम बताते हैं कि जब वह फेल हुए थे तो किस तरह उनके पिता ने जश्न मनाया था. क्योंकि वे मानते थे कि असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है. माधुरी को उनके पिता ने हमेशा प्रेरित किया कि वे संगीत के क्षेत्र में भी आगे बढ़ें. माधुरी आज भी भारतीय परिवार के हर वर्ग के दर्शक के लिए प्रेरणा है. चूंकि उन्हें वह मान सम्मान मिलता है. सबको लगता है कि वह काफी सांस्कारिक हैं. अमिताभ बच्चन हमेशा अपने पिता की कविताओं को और उनके मूल्यों को जिंदगी में शामिल करते रहे हैं. एक विज्ञापन में उन्होंने बिल्कुल सही बात दर्शाने की कोशिश की है कि मां बाप कहीं नहीं जाते. वे आपके साथ होते हैं. अगर आप उन्हें अपने साथ रखना चाहें तो. फिर चाहे वह किसी भी रूप में हों

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