कोलकाता. हिंदी फिल्मों के निर्देशकों ने हमेशा इस शहर को अपना नजरिया दिया है. किसी के लिए यह शहर खुद कभी किरदार बन जाता है तो कभी उनके किरदार इस शहर में रम जाते हैं. कभी यहां का माहौल कहानी को बयां करता है, तो कभी यहां की संस्कृति. आज भी कोलकाता व बांग्ला प्रांत में वह रुमानियत है जो प्राचीन होकर भी नवीन है और शायद यही वजह है कि फिल्मकारों को यह शहर व यहां की संस्कृति बार बार अपनी तरफ खींचे लिये आती है. फिलवक्त आधे दर्जन हिंदी फिल्मों की कहानी यही के बैकड्रॉप पर आधारित है.
फिल्म कहानी का कोलकाता पर आधारित गीत में कोलकाता का वर्णन बखूबी किया गया है. सुजोय घोष फिल्म कहानी में कोलकाता को एक शहर नहीं, बल्कि एक किरदार के रूप में दर्शाते हैं. उनकी फिल्म कहानी में विद्या बागची अपने पति की तलाश में कोलकाता शहर आती है. और फिर दर्शक विद्या के साथ साथ कोलकाता की हर गलियों की सैर करने लग जाते हैं. फिर वह शहर कुछ अपना सा लगने लगता है. फिल्म बर्फी में अनुराग बसु अपने मुख्य किरदार झिलमिल और बर्फी को बंगाल की सैर कराते हुए कोलकाता लाते हैं. झिलमिल की इच्छा होती है कि जब वह शादी करे तो बांग्ला अंदाज में ही करे. फिल्म में बर्फी का कोई सरनेम नहीं और न ही दर्शकों का ध्यान उनके सरनेम पर जाता है.
जिससे यह अनुमान लगाया जाये कि बर्फी बांग्ला संस्कृति से संबंध रखता था या नहीं, लेकिन जिस तरह बर्फी ने दार्जलिंग की वादियों में, फिर बंगाल के अंदुरनी इलाकों से अपनी दोस्ती निभायी है. वह शहर बर्फी के माध्यम से अपना लगने लगता है. दरअसल, कोलकाता की अपनी खासियत यही है कि यहां प्राचीनता में भी नवीनता है. आप जितनी बार इसे फिल्मी परदे पर देखें , यह नया लगता है. हिंदी फिल्मों में अब तक न जाने कितनी बार हावड़ा ब्रिज को दर्शाया जाता रहा है. लेकिन आज भी इसका रोमांच खत्म नहीं होता. यह हर बार नया सा लगता है. यही इस शहर की खूबी है कि यह जितना पुराना है. उतना अपना सा है. ओल्ड इज गोल्ड के तर्ज पर चलनेवाले एकमात्र इसी शहर को ग्लैमर ने अपने आगोश में नहीं लिया है. यहां ग्लैमर का मतलब अपनी संस्कृति , अपने त्योहार से प्यार है. यह शहर चूंकि अपनी पुरानी शैली पर चला आ रहा है. इसका यह कतई मतलब नहीं कि यहां बुद्धिजीवी लोगों की कमी है. गौर करें तो फिल्म विकी डोनर में नायिका के पिता उसके खुल कर बातें करते हैं. वे उसे समझाते हैं कि अपने जीवनसाथी के चुनाव में उसे क्या क्या सर्तकता रखनी चाहिए. आमतौर पर अन्य राज्य या प्रांत में पिता अपनी बेटी से इस कदर खुल कर बातें नहीं रख पाते. स्पष्ट है कि हिंदी फिल्मों के माध्यम से ही सही लेकिन कोलकाता की खूबसूरत छवि को परदे पर हमेशा सही तरीके से प्रस्तुत किया जाता रहा है. शायद यही वजह है कि हिंदी फिल्मों में अब तक फिल्मों में किसी शहर को सबसे ज्यादा प्रस्तुत किया जाता रहा है तो वह कोलकाता ही है.
रोमांटिक शहर
इम्तियाज अली की फिल्म लव आज कल में ऋषि कपूर का किरदार भी अपनी माशूका की तलाश में कोलकाता आ पहुंचता है. यहां निश्चित तौर पर इम्तियाज ने कोलकाता के बैकड्रॉप इसलिए लिया है, चूंकि उन्हें कहानी फ्लैशबैक में दिखानी थी और पुराने जमाने के क्लासिकल प्यार को दर्शाने के लिए कोलकाता से बेहतरीन रोमांटिक शहर और कौन सा हो सकता था. दरअसल, हकीकत यही है कि कोलकाता ने भले ही अपने नाम में तब्दीली कर ली हो. लेकिन यहां की संस्कृति , रहन सहन और लोग आज भी वैसे ही हैं. आज भी कोलकाता में ब्रिटिश जमाने की सारी इमारतें जस की तस उसी रूप में नजर आयेंगी. आज भी हावड़ा ब्रिज पर अपने फिल्मों के दृश्य फिल्माना फिल्मकारों को रोमांचित कर देता है. तभी तो शुरुआती दौर से अब तक हिंदी फिल्मों के बड़े फिल्मकार इस शहर को अपने कैमरे में कैद करने आ पहुंचते हैं. विशेष कर वे फिल्म मेकर जिन्हें अपनी फिल्म में विंटेज चीजें दिखानी है. उनके लिए विजुअली कोलकाता से बेहतरीन शहर और कोई भी नहीं होता. यही वजह है कि हाल के दिनों के भी कई फिल्मकार यहां फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. यशराज की फिल्म गुंडे की शूटिंग कोलकाता में हुई है. तिग्मांशु धूलिया की बुलेट राजा के कुछ हिस्से यहां फिल्माये गये हैं. विक्रमादित्य मोटवाने तो पूरी फिल्म का बैकड्रॉप ही बांग्ला संस्कृित पर आधारित रखा है. फिल्म की शूटिंग कोलकाता समेत कोलकाता से कुछ दूरी पर स्थित पुर्लिया में भी की गयी है. सुजोय घोष अपनी फिल्मों में हमेशा कोलकाता को दर्शाते रहेंगे. सुजोय मानते हैं कि कोलकाता का मतलब केवल यहां का लोकप्रिय रसगुल्ला नहीं. बल्कि काफी कुछ है. कोलकाता यहां की मिठाईयों की तरह ही मीठा शहर है, जहां हर गली में मिठास घूली हुई है.
जहां चारों तरफ घुली है भावुकता : अली अब्बास, निर्देशक गुंडे
कोलकाता शहर सिनेमेटिक दृष्टिकोण से बेहद खूबसूरत शहर है, कोलकाता भारत का एकमात्र ऐसा शहर है. जहां चारों तरफ भावुकता है. लोग भावुक हैं. वहां की गलियां सबकुछ से आपको भावनात्मक जुड़ाव हो जायेगा. कोलकाता हमेशा भारत का सांस्कृतिक कैपिटल रहेगा. चूंकि इसी शहर से हर तरफ संस्कृति का जुड़ाव होता है. मेरी फिल्म गुंडे में जो मेरे किरदार हैं, उन्हें कुछ ऐेसे ही शहर की मिट्टी चाहिए थी. सो, इससे बेहतर शहर और कोई भी नहीं होता. मेरी फिल्म गुंडे में मैं कोलकाता को और भी खूबसूरत नजरिये से दर्शाने की कोशिश कर रहा हूं. मैं जब कोलकाता बचपन में जाया करता था. हावड़ा ब्रिज के नीचे घाट पर लोगों को स्रान करते देखना और दुर्गा विसर्जन देखना कभी नहीं भूल सकता. यह सब अदभुत नजारा है कोलकाता का जो कभी धुमिल नहीं होगा और इसलिए यह शहर मेरे लिए खास है.
भावुक किरदारों को दर्शाने के लिए इससे बेहतर शहर और कौन सा होता : अनुराग बसु
मैंने न सिर्फ कोलकाता बल्कि पूरी बांग्ला संस्कृि का बैगड्रॉप ही फिल्म बर्फी के लिए चुना. चूंकि मेरी कहानी पूरी तरह से इमोशनल लव स्टोरी थी और ऐसी कहानियों को दर्शाने के लिए जो सीन चाहिए, प्रॉप्स चाहिए, कॉस्टयूम और जो इमोशन चाहिए वह इससे बेहतर और कहीं नहीं मिलता. आगे भी मैं अपनी फिल्मों में कोलकाता दर्शाता रहूंगा. यह शहर प्राचीन होते हुए भी मॉर्डनिटी के साथ चलता है और यह बात मुझे सबसे अधिक आकर्षित करती है.
क्लासिक व प्राचीन चीजों को दर्शाने के लिए अदभुत प्रांत : विक्रमादित्य मोटवाने
लूटेरा प्रेम कहानी है और हमें जिस रोमांटिक शहर की जरूरत थी, वह हमें कोलकाता व आसपास के इलाकों से मिली. सो, हमने इसे ही अपनी कहानी का बैकड्रॉप रखा है. सोनाक्षी सिन्हा जितनी खूबसूरत भारतीय परिधानों में इस प्रांत के अंदाज में नजर आ रही हैं. वह कैमरे पर काफी अपीलिंग हैं. फिल्म में कई पुराने दौर की चीजें दिखाई गयी हैं, सो अगर मैं किसी और जगह का चुनाव करता तो वह आॅथेटिंक नहीं बनावटी लगता. सो, हमने यहीं का चुनाव किया है और मुझे लगता है हमारा निर्णय बिल्कुल सही है.
ेंसोनाक्षी सिन्हा : मैं खुशनसीब हूं कि मेरी दो फिल्में बुलेट राजा और लूटेरा दोनों की शूटिंग के सिलसिले में मुझे इतने खूबसूरत शहरर का हिस्सा बनने का मौका मिला. मैं कोलकाता से बेहद प्यार करने लगी हूं. खासतौर से वहां के रिक् शे से. फिल्म बुलेट राजा में आप मुझे ट्रैम और हैंड पुल रिक् शे की सैर करते देखेंगे. यहां के लोग, यहां का खानपान सबकुछ आकर्षित करता है.
विद्या बालन : विद्या बालन कभी विद्या बागची का किरदार शानदार तरीके से नहीं निभा पाती. अगर उसे कोलकाता जैसा शहर नहीं मिलता. कोलकाता अपने आप में एक किरदार है और इस शहर में इतनी गहराई है. इससे जितना भी निकालो यह और अमीर होता जाता है. मेरी जिंदगी के अहम शहरों में से एक है कोलकाता. खासतौर से यहां की पुराने दौर की टैक्सी, यहां के इमारत और यहां की भाषा मुझे बार बार इस शहर की तरफ खींच लाती है.
किसी दौर में बिमल रॉय और पीसी बरुआ ने फिल्मों में बांग्ला संस्कृति को काफी उजागर किया है. फिल्म परिणीता, देवदास में इस प्रांत की खूबसूरती को दिखाया जाता रहा है.
फिल्म कहानी में कोलकाता का वर्णन
ंकोलकाता दिल का बाजार है. थोड़ा बिजार है
कोलकाता ख्वाहिशों अरमानों का आचार है
जितने भी दूर जाओ, दिल से न फार है
कोलकाता देखो तो बाकी दुनिया बेकार है
स्ट्रॉग है पॉवरफुल फिर भी लाचार है
बिल्कुल नया है फिर भी बीते कल में गिरफ्तार है....
बेहतरीन और शानदार जिस तरह से कोलकाता का पहलू आपने दिखाया वो लाजवाब रहा.. वाकई आपने सही कहा कि कोलकाता से सिनेमा का अहम जुड़ाव है. और सिनेमा में कोलकाता की महत्ता किसी से भी छिपी भी नहीं है..
ReplyDeleteचाहे दौर नया हो या पुराना कोलकाता का वजूद हमेशा रहेगा और निर्देशक यहां अपनी फिल्मोंं की शू़टिंग के लिए आते रहेंगे..