20130903

महोत्सव और गीत


1963 में बनी ब्लफमास्टर का गीत गोविंदा आला रे जिसे लीजेंडरी अभिनेता र्स्वगीय शम्मी कपूर पर फिल्माया गया था. आज इस फिल्म के कई साल बीतने के बावजूद कृष्माष्टमी में इसी गाने की गूंज मुंबई समेत पूरे भारत में सुनाई देती है. मुंबई के गिरगांव के खेतवाड़ी इलाके में जहां इस गाने की शूटिंग हुई थी. वहां आज भी इस महोत्सव को खास तरीके से मनाया जाता है. चूंकि इस गाने के बाद इस इलाके की भी लोकप्रियता बढ़ी. दरअसल, हिंदी सिनेमा ने वाकई वैसे कई इलाकों को लोकप्रिय किया है, जिनके बारे में हम प्राय: अवगत भी नहीं थे. हिंदी फिल्मों को प्राय: इस बात के लिए कोसा जाता रहा है कि वे महोत्सव के गानों को अब उस प्राथमिकता या दिलचस्पी से नहीं फिल्माता , जैसे पहले फिल्माया जाता था. लेकिन हकीकत यह भी है कि हिंदी फिल्मों के कुछ गाने जो लीजेंडरी बन चुके हैं. उनकी जगह चाह कर भी नये गाने नहीं ले पाते. हिंदी फिल्मों में होली के महोत्सव आज भी कटी पतंग, शोले, और सिलसिला का लोकप्रिय गाना ही सुना सुनाया जाता है. कृष्माष्टमी में भी शम्मी कपूर का यह लोकप्रिय गीत आज भी सदाबहार है. दरअसल, हकीकत यही है कि कुछ चीजें जो एक बार बन कर अपनी छवि और छाप छोड़ जाते हैं. हम चाह कर भी उन्हें बार बार बदल नहीं सकते और न ही किसी और को वह स्थान मिल सकता है. फिल्म स्टूडेंट आॅफ द ईयर का गीत राधा आॅन द डांस फ्लोर भी बेहतरीन गीत है. लेकिन आज भी अगर उसके सामने गोविंदा आला रे के बोल बजे तो लोग उस गाने पर ज्यादा झूमेंगे. चूंकि लोगों के जेहन में उन गीतों के धुन जिंदा है. दूसरी बात है हमें वही चीजें अच्छी लगती हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं. हमने चूंकि ये बात बिठा ली है कि आज के गानों में वह मिजाज नहीं. शायद इसलिए हम उन गीतों को सम्मान नहीं दे पाते.

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