कंगना रनौट ने अपनी पिछली फिल्म क्वीन से साबित कर दिया है कि वे चौंकानेवाली अभिनेत्रियों में से एक हैं. रिवॉल्वर रानी में जो उनका अवतार है. वह हिंदी सिनेमा की आम अभिनेत्री तो नहीं दिखतीं. कंगना अपने किरदारों के साथ किस तरह प्रयोग कर रही हैं. उसकी साफ तसवीर फिल्म रिवॉल्वर रानी में उनके बर्ताव को देख कर स्पष्ट होती है. हां, यह सही है कि फिल्म की कहानी थोड़ी ऊबाऊ है. लेकिन कंगना के अभिनय पर कोई भी उंगली नहीं उठाई जा सकती. वे जिस तरह परदे पर नजर आयी हैं. वर्तमान में कोई अभिनेत्री ऐसे किरदार निभाने की हिम्मत या जुरर्रत करती नजर नहीं आती हैं, यह कंगना का प्रयोग ही है, जो उनसे इस तरह के कई बेहतरीन प्रयोग करा रहा है. कंगना इस फिल्म से साबित करती हैं कि आप उनको लेकर कोई विचार हरगिज न रखें. और न ही उनकी छवि बनायें. वे मिडिल क्लास परिवार की एक तरफ रानी बनती हैं तो दूसरी तरफ चंबल की अलका सिंह बन कर लोगों को हरकाने की भी जुरर्रत रखती हैं. वह एक मां का दिल भी रखती है तो धोखा देनेवाले लोगों से नफरत भी करती है. वह सनकी है. लेकिन अंदर से कोमल है. फिल्म के नायक उन्हें प्यार से कोकोआ बुलाते हैं, क्योंकि वह नारियल की तरह अंदर से सख्त और अंदर से नर्म है. फिल्म में कंगना ने अपने पोशाकों के चुनाव से लेकर जिस अंदाज में चंबल की भाषा पर अपनी कमांड दिखाई है. वह साबित करता है कि कंगना संपूर्ण अभिनेत्री बनने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं.
रिवॉल्वर रानी एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसने बचपन में अपनी मां के साथ हुए अत्याचार की वजह से हाथों में बंदूक उठायी. फिल्म के एक दृश्य में एक औरत अपनी बेटी को आशीर्वाद लेने के लिए अपनी बेटी को लेकर अलका सिंह यानी रिवॉल्वर रानी के पास लेकर आती है. अलका सिंह उसकी मां से कहती है कि वक्त आने पर हाथ में बंदूक धरा देना. अपने क्षेत्र में शान से जियेगी...अलका के ये संवाद बताते हैं कि वह जिस समुदाय और समाज का हिस्सा है. वहां महिलाएं तभी सुरक्षित हैं और शान से जी सकती हैं. जब तक वह खुद मजबूत न हों. अलका सिंह अपने मामाजी के ईशारों पर चलती है. वह पूरी दुनिया से लड़ लेती है. लेकिन घर में ही वह बकरी बन जाती हैं. बली यानी मामाजी के हाथों वह बकरी बन जाती हैं. यानी बली की बकरी. हर साम्राज्य में एक सकूनी मामा होते ही हैं. इस फिल्म में भी बली वह सकूनी मामा हैं जो अपनी भांजी अलका सिंह का नाम इस्तेमाल करे. उसे कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर खुद उस साम्राज्य पर राज करना चाहते हैं. और अंतत: घर का भेदी लंका ढाये ही होता है. वही दूसरी तरफ अलका सिंह जो गोलियों से ढाय ढाय करने में जरा भी देर नहीं लगाती. उसके अंदर इस बात का आक्रोश है कि लोग उसे बांझ करते हैं. लेकिन अचानक उसे पता चलता है कि वह मां बननेवाली है. वह कहती है कि शोर मत मचाओ. बेबी को स्ट्रेच हो रहा है. मसलन उस सनकी के दिल में भी मां का प्यार है. ममता है. वह प्यार में पागल है. प्यार की भूखी है. और इसी अंधकार में वह एक मतलबी इंसान को अपना सबकूछ समझ बैठती है. यहां भी चुनावी माहौल है और कुर्सी की लड़ाई है. इस कुर्सी की लड़ाई में मीडिया, विचौलिये, नेता, और चुनावी दांव पेंच की कहानी को बखूबी दर्शाया गया है. लेकिन फिल्म की कुछ कमजोर कड़ियां हैं. जैसे चंबल में ही जाकर फिल्म की शूटिंग यानी वास्तविक लोकेशन में फिल्म की शूटिंग की क्या अनिवार्यता थी. फिल्म में वास्तविक लोकेशन का चुनाव सार्थक नजर नहीं आता. फिल्म में एक और नजरिये को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है कि महिलाएं भले ही हाथों में बंदूक थाम ले.लेकिन फिर भी उसकी कमान कहीं न कहीं किसी पुरुष के हाथों में ही होती है. मतलब महिलाएं किसी न किसी रूप में हैं कमजोर ही. साथ ही फिल्म में अंत में सीक्वल बनने के आसार नजर आ रहे हैं. रिवॉल्वर रानी जितनी मजबूत दबंग महिला के रूप में उन्हें दर्शाया. अन्ंत में भी उसकी वह दबंगई जारी रखनी चाहिए थी. बहरहाल महिलाओं को केंद्र में रख कर एक अच्छी कोशिश है यह फिल्म.
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