हां, यह अमोल गुप्ते का सिनेमा है. किसी दौर में हम बातें किया करते थे कि यह गुरुदत्त का सिनेमा है. यह सत्यजीत रे का सिनेमा है. कुछ इसी तरह हम शान से कह सकते कि हमारे पास अमोल गुप्ते का सिनेमा है. जिस शिद्दत से अमोल फिल्में बना रहे हैं. यह उनके सिनेमा की खासियत है. वर्तमान समय में अमोल गुप्ते की फिल्मों की जरूरत है. उनकी फिल्मों में क्राफ्ट है. फिल्म की शुरुआत में अमोल गुप्ते ने अपने फिल्मी प्रोडक् शन के लोगो में ही यह कहानी बयां कर दी है कि वह सिनेमा के माध्यम से क्या कहानी कहने की कोशिश कर रहे हैं. अमोल की फिल्मों में वही भावना, वही संवेदना नजर आती है. जो कभी राजकपूर व सत्यजीत रे व उस दौर के निर्देशकों में नजर आती है. अमोल ने तारे जमीं पर की पटकथा में जो संवेदना दिखाई है. अपनी तीसरी फिल्म में भी उन्होंने उस मासूमियत को बरकरार रखा है. अमोल की फिल्मों की खासियत है कि उसमें संदेश है. अमोल बच्चे को बच्चों की तरह नहीं लेते. वे मानते हैं कि सिनेमा बच्चों का खेल नहीं और इसलिए बच्चों के लिए भी गंभीर फिल्में बनानी चाहिए. और वे अपने इस उद्देश्य को पूरा भी कर रहे हैं.
हवा हवाई उनके सोच, उनकी विचार, उनकी मासूमियत का एक्सटेंशन है. अमोल ने एक साथ बाल शोषण, किसान आत्महत्या जैसे मुद्दे को भी पूरी जिम्मेदारी से दिखाया है. हवा हवाई एक साथ कई कहानियां कह जाती है. इसमें अर्जुन वाघमारे की कहानी है, जो कि अपने पिता से बेहद प्यार करता है और उनके मूल्यों को लेकर चलता है. जिसके घर में प्रार्थना की खास जगह है. वही दूसरी तरफ लकी सर की कहानी है. जिसे स्कैटिंग के माध्यम से उन सपनों को साकार करना है, जिसे कभी उनके माता पिता ने देखा है और तीसरी कहानी अर्जुन के दोस्तों की कहानी है. जो झोपड़पट्टी के हैं. जो छोटी उम्र में किसी गैरेज में काम करते हैं, जो कोई कचरा बिनता है. तो कोई गजरा बेच कर अपनी रोजी रोटी इकट्ठा कर रहा. अमोल ने मुख्य किरदार का नाम यूं ही अर्जुन नहीं रखा है. बल्कि इसकी सार्थकता को भी बयां किया है. अर्जुन के दोस्त उसे क्यों एकलव्य बुलाते हैं. इसे भी चरितार्थ किया है. किस तरह एक छोटा बच्चा घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए छोटी उम्र में काम करना शुरू करता है. किस तरह एक चाय दुकान पर काम करनेवाला हर लड़का राजू बन जाता है. और अपने बचपन की तरह अपना वास्तविक नाम भी खो देता है. फिल्म में जिंदगी की कई बारीकियां हैं. जो आपको प्रभावित करती हैं. किस तरह अपनी जिंदगी से कठिन समय में भी सकारात्मकता की तलाश की जा सकती है. यह अर्जुन के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गयी है.
इस कहानी एक और खासियत यह हंै कि फिल्म में शुरू से ही बच्चे को स्कैटिंग की दुनिया के सपने नहीं दिखाये जाते. अर्जुन वह दुनिया देखता है और फिर उसकी उसमें रुचि जगती है. मसलन आप बचपन से या पेट से ही किसी विधा में पारंगत नहीं होते. आप देखते हैं. फिर धीरे धीरे रुचि जगती है और फिर आप उस रुचि को अपने अनुसार रचने और खुद को उसमें रमने की कोशिश करते हैं. अमोल गुप्ते के बेटे हैं पार्थो. पार्थो वर्तमान दौर के पारंगत बाल कलाकारों में से एक हैं. भविष्य में वे गंभीर फिल्मों के लिए उपयुक्त अभिनेता साबित होंगे. फिल्म में सह कलाकारों ने भी बेहतरीन योगदान दिया है.
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