हाल ही में मोरक्को के एक अभिनेता ने मुंबई में आयोजित एक फिल्मोत्सव में भाग लिया तो उन्होंने बताया कि बॉलीवुड की एक हस्ती कुछ दिनों पहले जब मोरक्को पहुंची थी, तो वहां के लोगों की नजर केवल एक शख्सीयत पर जा टिकी थी. मोरक्को ने उस अभिनेता को टाइगर की उपाधि दी. उन्होंने कहा कि वह टाइगर की तरह शान से चलते हैं. ये शख्सीयत कोई और नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा के शंहशाह अमिताभ बच्चन थे. जी हां, यह हकीकत है कि अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के असल टाइगर हैं. चूंकि 71 वें बसंत में प्रवेश करने क ेबावजूद वे जिस तन्मयता और जिस जिंदादिली से आज भी काम करने के लिए तत्पर रहते हैं. वह हर किसी के वश की बात नहीं. अमिताभ बच्चन ने एक लंबा सफर तय किया है. और हर शख्स की जिंदगी में उनके संघर्ष, उनकी कामयाबी में उनका शहर, उनके दोस्त, उनका परिवार साथ साथ चलता है. तो आखिर अमिताभ को अमिताभ हकीकत में किसने बनाया. अमिताभ की जिंदगी के ऐसे कुछ चुनिंदा लोगों, शहरों व पड़ावों पर
खास शहर
अमिताभ बच्चन का जन्म इलाहाबाद में हुआ. उन्होंने वहां अपना बचपन बिताया. अपने बाबूजी हरिवंशराय बच्चन की परवरिश में उन्होंने पूरी दुनिया देखी. अमिताभ आज खुद को साहित्यिक रूप से इतना समृद्ध इसलिए मानते हैं, क्योंकि अमिताभ की जिंदगी में उनके पिता हरिवंशराय बच्चन व माता तेजी बच्चन का अत्यधिक प्रभाव रहा. चूंकि बचपन से ही अमिताभ अपने बाबूजी के साथ कविता समारोह व कई साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. और यही वजह थी कि वे इलाहाबाद से आज भी जुड़े रहे हैं. अमिताभ वहां अपने बाबूजी के साथ साइकिल पर बैठ कर स्कूल जाया करते थे. अमिताभ की जिंदगी में इलाहाबाद के साथ साथ दिल्ली शहर की भी खास अहमियत रही. चूंकि दिल्ली शहर में उन्होंने किरोड़ीमल कॉलेज से अपने आगे की पढ़ाई पूरी की. किरोड़ीमल कॉलेज में ही उनका अभिनय की तरफ रुझान बढ़ा. कॉलेज में उन्होंने कई नाटकों में हिस्सा लिया. दिल्ली में उनका अपना पुस्तैनी मकान भी है, जिसका नाम सोपान है. आज भी अमिताभ दिल्ली जाते हैं तो अपने घर में वक्त बिताना पसंद करते हैं. अमिताभ की जिंदगी में कोलकाता भी अहम शहर रहा. जहां उन्होंने शॉ और वैलेंस नामक शिपिंग फर्म में काम करना शुरू किया था और उन्हें वहां 500 रुपये मिले थे. जो उनकी पहली सैलरी थी. उन्होंने कोलकाता में ही अपनी जिंदगी की पहली कार ली थी और वह कार सेकेंड हैंड फियेट कार थी. कोलकाता के बाद उन्होंने मुंबई की तरफ रुख किया. और आज मुंबई ही उनकी कर्मभूमि है. अमिताभ ने मुंबई में आकर एक लंबा संघर्ष का दौर देखा. धीरे धीरे हिंंदी फिल्म इंडस्ट्री को उनकी प्रतिभा का ज्ञान हुआ और मुंबई शहर ने ही उन्हें शंहशाह का ताज पहना दिया. आज मुंबई के जूहू इलाके में स्थित जलसा, प्रतिक्षा अमिताभ की सफलता का पर्याय है. आज जूहू इलाका अमिताभ के बंगले की वजह से सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल बन चुका है.
खास लोग
अमिताभ को अमिताभ बच्चन बनाने का श्रेय कई लोगों को जाता है. अमिताभ इस लिहाज से काफी भाग्यशाली रहे, कि उन्हें हमेशा अच्छे दोस्तों का साथ मिला. अमिताभ के भाई अजिताभ बच्चन ही वह पहले शख्स थे, जिन्होंने अमिताभ की तसवीर ख्वाजा अहमद अब्बास तक पहुंचायी थी. अमिताभ ने जब अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की, तो उन्हें पहला मौका ख्वाजा अहमद अब्बास ने दिया. लेकिन फिल्म को असफलता मिली. इसकी वजह से उन्हें आगे फिल्में मिलनी बंद हो गयी. फिर उन्हें उस वक्त महमूद का साथ मिला. महमूद ने अपनी फिल्म बांबे टू गोवा में न सिर्फ उन्हें मौका दिया. बल्कि उन्हें मुंबई में हर तरह से मदद भी मुहैया करायी. दरअसल महमूद के भाई अनवर अली और अमिताभ काफी अच्छे दोस्त बन गये थे और अनवर के कहने पर ही उन्हें महमूद ने मौका दिया. एक दौर में अमिताभ शीर्ष सितारा बने. लेकिन फिर उन्हें लगातार नाकामयाबी मिलने लगी थी. उस वक्त उन्हें टीनू आनंद ने भी काफी सहारा दिया. अमिताभ को मिली कामयाबी का श्रेय उनकी पत् नी जया बच्चन को भी जाता है, जिन्होंने अमिताभ का साथ उस वक्त भी दिया. जब वह कामयाब नहीं थे. जया बच्चन के कहने पर ही अमिताभ को ऋषिकेश मुखर्जी की कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. बाद में उन्हें जंजीर जैसी फिल्म भी मिली, जो उनके लिए मिल का पत्थर साबित हुई. अमिताभ जब आर्थिक रूप से काफी बुरी स्थिति में थे. उस वक्त उनका साथ अमर सिंह ने निभाया. अमिताभ मानते हैं कि उन्हें उनके माता और पिता की वजह से कई गुण हासिल हुए. उन्होंने जिंदगी के नैतिक मूल्यों की सोच और आज उनकी जो भी सोच विकसित हो पायी वह माता और पिता की वैचारिक सोच की वजह से ही आयी. चूंकि मां तेजी बच्चन भी स्वतंत्रता सेनानी रहीं. अमिताभ में देशभक्ति की भावना जागृत हुई. सांस्कारिक रूप से खुद को समृद्ध बनाने का सारा श्रेय वे अपने माता पिता को ही देते हैं.
खास नाम
अमिताभ की फिल्मी सफर में वास्तविक जिंदगी में भी नामों को लेकर काफी दिलचस्प बातें रहीं. अमिताभ का नाम पहले इनकलाब रखा गया था. चूंकि उस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था. और मां तेजी बच्चन गर्भवती होने के बावजूद उसमें भागीदारी कर रही थीं तो उनके दोस्तों के सुझाव पर उनका नाम अमिताभ रख दिया गया था. लेकिन बाद में उनका नाम बदल कर अमिताभ रखा गया. फिल्मों में उनका विजय नाम से काफी सरोकार रहा. दीवार, जंजीर व अग्निपथ जैसी फिल्मों में वे विजय नाम से लोकप्रिय हो गये. बॉलीवुड में लोग उन्हें बिग बी, शंहशाह, सदी का महानायक के रूप में संबोधित करते हैं.
खास निर्देशक और फिल्म
ख्वाजा अहमद अब्बास ने अमिताभ को पहला मौका फिल्म सात हिंदुस्तानी से दिया. बाद में उन्हें असली पहचान प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म अभिमान, चुपके चुपके, आनंद से मिली. यश चोपड़ा की फिल्म दीवार से अमिताभ की अलग पहचान स्थापित हुई. मनमोहन देसाई की फिल्म अमर अकबर एंथनी, कूली समेत कई फिल्मों ने उन्हें अलग पहचान दी. बाद में दौर में आर बाल्की की फिल्म पा ने उन्हें एक अदभुत किरदार में चरितार्थ किया.
बॉक्स में :
अमिताभ बच्चन के पिता का सरनेम दरअसल श्रीवास्तव था. लेकिन हरिवंशराय बच्चन ने बच्चन सरनेम का इस्तेमाल दरअसल पेन नेम के रूप में किया था. बच्चन का मतलब होता है बच्चों की तरह और हरिवंशराय बच्चन को यह सरनेम काफी पसंद था. लेकिन बाद में उन्होंने अपने बच्चों को भी यही सरनेम दिया.
अमिताभ शुरुआती दौर में इंजीनियर बनना चाहते थे और एयरफोर्स ज्वाइन करना चाहते थे.
फिल्म सात हिंदुस्तानी में अमिताभ बच्चन ने जो किरदार निभाया है, वह किरदार फिल्म में रांची शहर का रहने वाला होता है.
अमिताभ ने सबसे पहले फिल्म से जुड़ाव मृणाल सेन की फिल्म भुवन शोम में वॉयस नैरेटर के रूप में किया था.
सत्यजीत रे ने फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में अमिताभ की आवाज का इस्तेमाल किया था.
अमिताभ ने लगातार 12 फ्लॉप फिल्में दी. बाद में जंजीर से उन्हें स्टारडम का स्वाद चखने का मौका मिला,
खास शहर
अमिताभ बच्चन का जन्म इलाहाबाद में हुआ. उन्होंने वहां अपना बचपन बिताया. अपने बाबूजी हरिवंशराय बच्चन की परवरिश में उन्होंने पूरी दुनिया देखी. अमिताभ आज खुद को साहित्यिक रूप से इतना समृद्ध इसलिए मानते हैं, क्योंकि अमिताभ की जिंदगी में उनके पिता हरिवंशराय बच्चन व माता तेजी बच्चन का अत्यधिक प्रभाव रहा. चूंकि बचपन से ही अमिताभ अपने बाबूजी के साथ कविता समारोह व कई साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. और यही वजह थी कि वे इलाहाबाद से आज भी जुड़े रहे हैं. अमिताभ वहां अपने बाबूजी के साथ साइकिल पर बैठ कर स्कूल जाया करते थे. अमिताभ की जिंदगी में इलाहाबाद के साथ साथ दिल्ली शहर की भी खास अहमियत रही. चूंकि दिल्ली शहर में उन्होंने किरोड़ीमल कॉलेज से अपने आगे की पढ़ाई पूरी की. किरोड़ीमल कॉलेज में ही उनका अभिनय की तरफ रुझान बढ़ा. कॉलेज में उन्होंने कई नाटकों में हिस्सा लिया. दिल्ली में उनका अपना पुस्तैनी मकान भी है, जिसका नाम सोपान है. आज भी अमिताभ दिल्ली जाते हैं तो अपने घर में वक्त बिताना पसंद करते हैं. अमिताभ की जिंदगी में कोलकाता भी अहम शहर रहा. जहां उन्होंने शॉ और वैलेंस नामक शिपिंग फर्म में काम करना शुरू किया था और उन्हें वहां 500 रुपये मिले थे. जो उनकी पहली सैलरी थी. उन्होंने कोलकाता में ही अपनी जिंदगी की पहली कार ली थी और वह कार सेकेंड हैंड फियेट कार थी. कोलकाता के बाद उन्होंने मुंबई की तरफ रुख किया. और आज मुंबई ही उनकी कर्मभूमि है. अमिताभ ने मुंबई में आकर एक लंबा संघर्ष का दौर देखा. धीरे धीरे हिंंदी फिल्म इंडस्ट्री को उनकी प्रतिभा का ज्ञान हुआ और मुंबई शहर ने ही उन्हें शंहशाह का ताज पहना दिया. आज मुंबई के जूहू इलाके में स्थित जलसा, प्रतिक्षा अमिताभ की सफलता का पर्याय है. आज जूहू इलाका अमिताभ के बंगले की वजह से सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल बन चुका है.
खास लोग
अमिताभ को अमिताभ बच्चन बनाने का श्रेय कई लोगों को जाता है. अमिताभ इस लिहाज से काफी भाग्यशाली रहे, कि उन्हें हमेशा अच्छे दोस्तों का साथ मिला. अमिताभ के भाई अजिताभ बच्चन ही वह पहले शख्स थे, जिन्होंने अमिताभ की तसवीर ख्वाजा अहमद अब्बास तक पहुंचायी थी. अमिताभ ने जब अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की, तो उन्हें पहला मौका ख्वाजा अहमद अब्बास ने दिया. लेकिन फिल्म को असफलता मिली. इसकी वजह से उन्हें आगे फिल्में मिलनी बंद हो गयी. फिर उन्हें उस वक्त महमूद का साथ मिला. महमूद ने अपनी फिल्म बांबे टू गोवा में न सिर्फ उन्हें मौका दिया. बल्कि उन्हें मुंबई में हर तरह से मदद भी मुहैया करायी. दरअसल महमूद के भाई अनवर अली और अमिताभ काफी अच्छे दोस्त बन गये थे और अनवर के कहने पर ही उन्हें महमूद ने मौका दिया. एक दौर में अमिताभ शीर्ष सितारा बने. लेकिन फिर उन्हें लगातार नाकामयाबी मिलने लगी थी. उस वक्त उन्हें टीनू आनंद ने भी काफी सहारा दिया. अमिताभ को मिली कामयाबी का श्रेय उनकी पत् नी जया बच्चन को भी जाता है, जिन्होंने अमिताभ का साथ उस वक्त भी दिया. जब वह कामयाब नहीं थे. जया बच्चन के कहने पर ही अमिताभ को ऋषिकेश मुखर्जी की कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. बाद में उन्हें जंजीर जैसी फिल्म भी मिली, जो उनके लिए मिल का पत्थर साबित हुई. अमिताभ जब आर्थिक रूप से काफी बुरी स्थिति में थे. उस वक्त उनका साथ अमर सिंह ने निभाया. अमिताभ मानते हैं कि उन्हें उनके माता और पिता की वजह से कई गुण हासिल हुए. उन्होंने जिंदगी के नैतिक मूल्यों की सोच और आज उनकी जो भी सोच विकसित हो पायी वह माता और पिता की वैचारिक सोच की वजह से ही आयी. चूंकि मां तेजी बच्चन भी स्वतंत्रता सेनानी रहीं. अमिताभ में देशभक्ति की भावना जागृत हुई. सांस्कारिक रूप से खुद को समृद्ध बनाने का सारा श्रेय वे अपने माता पिता को ही देते हैं.
खास नाम
अमिताभ की फिल्मी सफर में वास्तविक जिंदगी में भी नामों को लेकर काफी दिलचस्प बातें रहीं. अमिताभ का नाम पहले इनकलाब रखा गया था. चूंकि उस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था. और मां तेजी बच्चन गर्भवती होने के बावजूद उसमें भागीदारी कर रही थीं तो उनके दोस्तों के सुझाव पर उनका नाम अमिताभ रख दिया गया था. लेकिन बाद में उनका नाम बदल कर अमिताभ रखा गया. फिल्मों में उनका विजय नाम से काफी सरोकार रहा. दीवार, जंजीर व अग्निपथ जैसी फिल्मों में वे विजय नाम से लोकप्रिय हो गये. बॉलीवुड में लोग उन्हें बिग बी, शंहशाह, सदी का महानायक के रूप में संबोधित करते हैं.
खास निर्देशक और फिल्म
ख्वाजा अहमद अब्बास ने अमिताभ को पहला मौका फिल्म सात हिंदुस्तानी से दिया. बाद में उन्हें असली पहचान प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म अभिमान, चुपके चुपके, आनंद से मिली. यश चोपड़ा की फिल्म दीवार से अमिताभ की अलग पहचान स्थापित हुई. मनमोहन देसाई की फिल्म अमर अकबर एंथनी, कूली समेत कई फिल्मों ने उन्हें अलग पहचान दी. बाद में दौर में आर बाल्की की फिल्म पा ने उन्हें एक अदभुत किरदार में चरितार्थ किया.
बॉक्स में :
अमिताभ बच्चन के पिता का सरनेम दरअसल श्रीवास्तव था. लेकिन हरिवंशराय बच्चन ने बच्चन सरनेम का इस्तेमाल दरअसल पेन नेम के रूप में किया था. बच्चन का मतलब होता है बच्चों की तरह और हरिवंशराय बच्चन को यह सरनेम काफी पसंद था. लेकिन बाद में उन्होंने अपने बच्चों को भी यही सरनेम दिया.
अमिताभ शुरुआती दौर में इंजीनियर बनना चाहते थे और एयरफोर्स ज्वाइन करना चाहते थे.
फिल्म सात हिंदुस्तानी में अमिताभ बच्चन ने जो किरदार निभाया है, वह किरदार फिल्म में रांची शहर का रहने वाला होता है.
अमिताभ ने सबसे पहले फिल्म से जुड़ाव मृणाल सेन की फिल्म भुवन शोम में वॉयस नैरेटर के रूप में किया था.
सत्यजीत रे ने फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में अमिताभ की आवाज का इस्तेमाल किया था.
अमिताभ ने लगातार 12 फ्लॉप फिल्में दी. बाद में जंजीर से उन्हें स्टारडम का स्वाद चखने का मौका मिला,
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