20140425

थियेटर ने ही दिया यह मुकाम : राजश्री ठाकुर


राजश्री ठाकुर फिलवक्त सोनी टीवी के धारावाहिक महाराणा प्रताप में मुख्य किरदार  निभा रही हैं. लेकिन राजश्री ने शुरुआत थियेटर से ही किया था और आज भी थियेटर से जुड़ी हैं. राजश्री मानती हैं कि अगर उन्हें अपने गुरु विश्वास सोहनी का साथ न मिला होता तो वह कभी यहां नहीं पहुंच पातीं. उनके लिए उनके गुरु ही स्प्रीचुअल गुरु हैं. 

आपके स्प्रीचुअल गुरु कौन हैं?
मैं अपने जीवन में यही मानती आयी हूं कि आपका आत्मविश्वास ही आपका अपना गुरु हैं. ऐसे मैं यहां यह जरूर बताना चाहंूगी कि मैं अपने थियेटर के पहले गुरु विश्वास विश्वास सोहनी  को ही अपना गुरु मानती हूं. इसकी वजह यही है कि उनकी वजह से ही मेरा थियेटर से लगाव शुरू हुआ.

थियेटर से आपकी शुरुआत कैसे हुई?
तब मैं सिर्फ 11 साल की थी. तब से मैं थियेटर कर रही हूं. हालांकि जब मैं थियेटर करना शुरू कर रही थी तो मुझे लगता था कि जैसे  मुझे सब आता है. लेकिन जब पहली बार काम किया. तो समझ आया कि कितनी चीजें सीखनी बाकी हैं. मेरा पहला प्ले था 1994 की लव स्टोरी. उससे पहले मैं बैक स्टेज के लिए काम करती थी. हमारे गु्रप में हमारे गुरु ने कहा था कि हमें पहले बैक स्टेज काम ही सीखना है. तभी आपको मुख्य किरदार मिलता था. वे बारीकियों को सिखाने में विश्वास रखते थे.  हमारा गु्रप भी हुआ करता था. रसिक नाम था. वहां हम लोग बहुत रिहर्सल करते थे और मुझे उस पूरी प्रक्रिया से प्यार हो गया था.

उनकी किन बातों ने आपको प्रभावित किया?
मुझे खासतौर से उनकी यह बातें अच्छी लगती थीं कि वे काफी अनुशासित थे और अपने छात्रों से भी ऐसा ही करने को कहते थे. हमें वह काफी डांटते भी थे. पहले उन पर काफी गुस्सा भी आता था कि क्यों हम पर इतना चिल्लाते हैं क्यों हमें डांटते हैं. लेकिन अब जब काम कर रही हूं तो लगता है कि मेरे अभिनय में वह निखार इसलिए आ पाया. चूंकि मैं थियेटर से जुड़ी रही हूं. हम लोग पहले उनकी बातों को सीरियस नहीं लेते थे. मजाक में उड़ा देते थे. लेकिन आज मेरी जिंदगी में उनकी कही बातों पर ही हम अमल कर रहे हैं और मुझे संतुष्टि मिलती है कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा

 आपके किस प्ले ने आपकी जिंदगी बदल दी?
मैंने उस वक्त सतराहवर्षम करके एक प्ले किया था. यह एक लव स्टोरी थी कि 17 साल में कैसे एक लड़की को प्यार होता है और उसकी जिंदगी में क्या क्या बदलाव आते हैं. इस प्ले को काफी पसंद किया गया था. इसके अलावा मैंने एक और प्ले किया था. जिसमें मैंने प्रोस्टीटयूट की भूमिका निभायी थी. वह प्ले बांबे यूनिवर्सिटी के लिए था. उस वक्त लोगों ने काफी तारीफ की थी मेरी. खूब तालियां बजी थी.वह जब मैंने प्ले कर लिया था. तब मुझमें पूरा आत्मविश्वास आ गया कि मैंने जो क्षेत्र चुना है. वह बिल्कुल सही है और मैं अच्छी एक्ट्रेस बन सकती हूं.
आप स्प्रीचुअलेटी और थियेटर को किस तरह देखती हैं.  क्या आपको लगता है कि दोनों में कोई कनेक् शन है?
हां, बिल्कुल मुझे लगता है कि आप जब खुश होते हैं और अपनी अंर्तरात्मा की तलाश करते हैं तो वही स्प्रीचुअलेटी होती है. और थियेटर करने से अगर आपको खुशी मिलती है. जैसे मुझे मिलती है. मैं अभिनय को एंजॉय करती हूं तो मैं मानती हूं कि मेरे लिए यही स्प्रीचुअलैटी है. मेरे लिए मेरा अभिनय ही साधना है और अभिनय मुझे थियेटर से ही मिली है. यह थियेटर की ही देन है कि आज मैं इस मुकाम पर हूं.

आपके गुरु की कौन कौन सी बातों को आज भी आप अमल में लाती हैं?
कि थियेटर को आसान बात न समझें. अनुशासन थियेटर की पहली डिमांड है. आपका फोकस, आपकी चाहत. और हर छोटी छोटी बारीकियां. सर हमेशा कहते थे कि थियेटर में सबकुछ लाइव होता है. जो दिखता है. वही दिखता है. वहां एडिटिंग के आॅप् शन नहीं रह जाते. सो. अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए. साथ ही आप जब स्टेज पर हैं तो पूरी दिन दुनिया को भूल जाइये. आप सिर्फ वही हैं जो आप स्टेज पर किरदार निभा रहे. और आज भी जब मैं शॉट देती हूं. इस बात का पूरा ख्याल रखती हूं. जब कैमरा आॅन होता है तो निजी जिंदगी भूल कर आॅन स्क्रीन किरदार में ढल जाती हूं. एक कलाकार की यही खूबी है कि आप अपने दुख दर्द को भूल कर वही करें तो किरदार की डिमांड है. तभी आज असली कलाकार हैं. 

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