20140401

कास्टिंग निर्देशन का क्षेत्र


सलीम खान और जावेद अख्तर ने हाल ही में राजीव मसंद को दिये एक इंटरव्यू में इस बात पर चर्चा की कि किस तरह उस दौर में सलीम जावेद ही अपनी फिल्मों के लिए किरदारों का चयन करते थे. किस तरह उन्हें वह लिबर्टी मिलती थी और अधिकार भी. फिल्म शोले में किस तरह उन्होंने बिना किसी दृश्य के बदलाव के पूरी फिल्म का निर्देशन किया. फिल्म शोले की पूरी कास्टिंग सलीम जावेद ने की थी. उस दौर में कास्टिंग डायरेक्टर जैसे शब्द या काम प्रचलित ही नहीं थे. सलीम जावेद ने स्वीकारा कि हां, उस दौर में लेखकों को भले ही अच्छा मेहनताना नहीं मिलता था. लेकिन उन्होंने वह छूट मिलती थी कि वे निर्देशक की बातों को भी काट कर खुद कलाकारों का चयन करें.और यही वजह थी कि लेखक फिल्म की शुरुआत से लेकर अंत तक पूरी प्रक्रिया में शामिल रहता था. लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है. अब फिल्मों के निर्देशक नहीं, लेखक नहीं बल्कि निर्माता और कास्टिंग निर्देशक तय करते हैं कि फिल्मों में किन किन कलाकारों का चयन किया जाये. निर्देशक भले ही लीड किरदारों का चयन करे. शेष कैरेक्टर आर्टिस्ट के चुनाव की सारी जिम्मेदारी कास्टिंग डायरेक्टर पर होती है. एक लिहाज से फिल्मी दुनिया में करियर के लिए कास्टिंग डायरेक्टर का क्षेत्र एक बेहतरीन क्षेत्र है.लेकिन दूसरी ही तरफ कई बार ऐसा होता है कि कास्टिंग निर्देशक इसका गलत फायदा भी उठाते हैं. हालांकि मुकेश छाबड़ा और शन्नो शर्मा जैसे कास्टिंग निर्देशक ने कास्टिंग के क्षेत्र में एक नयी पहचान बना ली है. आदित्य चोपड़ा आंख मूंध कर शन्नो पर विश्वास करते हैं. रणवीर सिंह और अर्जुन को आदित्य तक शन्नो की पारखी नजर ने ही पहुंचाया. अनुराग की पसंद मुकेश हैं. फिल्मों की कामयाबी से निर्देशकों का विश्वास अपने अपने कास्टिंग निर्देशकों की तरफ और बढ़ा है. 

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