20150630

मेरे अंदर सिनेमा रचा बसा है: संजय मिश्रा


हिंदी सिनेमा में अपने नौ साल के लंबे संघर्ष के बाद अभिनेता संजय मिश्रा ने आखिरकार फिल्म आंखों देखी से अपनी पुख्ता पहचान  बना ही ली. इन दिनों वे हर निर्देशक की विश लिस्ट में हैं. वह लोगों से घिरे हुए हैं. वह इस फेज को इंज्वॉय कर रहे हैं. उनके अभिनय का घोड़ा तेजी से दौड रहा है.  उनकी हालिया रिलीज फिल्म मिस तनकपुर में वह फिर से एक अलहदा किरदार में नजर आ रहे हैं.

इस फिल्म का आपको आॅफर कैसे मिला और जुड़ने की क्या वजह थी.  
मेरे भाई आज तक में है. उन्होंने मुझे कहा कि कुछ लोग आपको काफी खोज रहे हैं.उनमे से एक  इंडिया टीवी के है. मुझे लगा  पॉलिटिकल प्रोग्राम करना होगा जैसा मैंने कई चैनलों पर किया था. सोचा मिलते के साथ ही मना कर दूंगा कि भाई मेरे बिल्कुल समय नहीं है लेकिन उन्होंने फिल्म की बात की तो मैं चकित रह गया. इससे पहले मैं एक और जर्नालिस्ट सुभाष कपूर की फिल्म फंस गए रे ओबामा में काम किया था. जिससे जर्नालिस्टों पर थोड़ा विश्वास था ही. सोचा कहानी सुन लेता हूं.  जब विनोद ने कहानी सुनायी तो मुझे भा गयी. यह एक देहाती कहानी है. इंडिया की नहीं भारत की कहानी है. मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता से अलग जो भारत है. मूलत हम सभी वही के हैं अपनी अपनी धरती के फिर चाहे दिल्ली बस जाएं या मुंबई. कहानी के अलावा इस फिल्म की कास्टिंग जबरदस्त है. ओमपुरी, अन्नू कपूर जैसे मेरे सीनियर कलाकार है. रवि किशन भी है. इन सभी कारणों से मैंने इस फिल्म को हां कहा.
फिल्म मिस तनकपुर हाजिर हो में आपका किरदार क्या है. 
मैं छोटा सा  तांत्रिक हूं. पेट ठीक करवाने से लेकर निजी समस्या तक सबकुछ का उपाय देता हूं. किरदार पर होमवर्क करने की जहां तक बात है तो मैंने कुछ होमवर्क तो नहीं किया था. हां सेट पर एक लाल किताब रखी थी. यही जोग टोक वाली. पढ़ा तो माथा चकरा गया. औरत को वश में करने के २१७ उपाय. कौवे का गला काटकर नीबूं सुपारी कील उसके घर के पास रख दीजिए . दुश्मन का सर्वनाश करना है तो काले कुत्ते की दाए पैर की हड्Þडी, बंदर के नाखून और दुश्मन की टट्टी. (हंसते हुए) हां टट्टी साला गांव देहात में तो ठीक है. मुंबई में तो फ्लश हो जाएगा पता भी नहीं चलेगा कि कौन किया कौन नहीं.  कुलमिलाकर इस फिल्म में मेरा चरित्र इसी दुनिया वाला है.

जर्नालिस्ट और निर्देशन क्या कभी लगा कि फिल्म के साथ ठीक से न्याय हो पाएगा या नहं. 
 सच कहूं तो शुरु में मैं डरा हुआ था. पूछा भी भई न्यूज एडीटर से तो फिल्म एडिट नहीं करवाओगे ना.  विनोद ने कहा कि सब अच्छा करेगे. इलेक्ट्रानिक मीडिया का है तो जानता टेक्निकल प्वाइंट सब है लेकिन सिनेमा सिनेमा होता है लेकिन कुछ दिनों में ही समझ आ गया कि सक्षम फिल्मकार है. छोटे भाई जैसा है इसलिए हम अपनी राय भी दे देते थे.  अच्छा बैकग्राऊड लेना. डीओपी लेना. एडिटिंग  बहुत अहम है. फिल्म की कॉमेडी तो हंसाहंसाकर लोट पोट कर देने वाली है. मुझे किसी फिल्म की डबिंग के लिए दो घंटे लगते हैं लेकिन इस फिल्म के लिए मैंने चार घंटे का समय लिया क्योकि डबिंग के दौरान हंस हंसकर पागल हो गाय था.

 क्या कभी हम आपको निर्देशक के तौर पर भी देखेंगे. 
देखिए मैं सिर्फ एक्टर नहीं हूं. नौ साल तक मुंबई में था. कोई काम नहीं मिला था इसलिए सबकुछ किया था.  आर्ट डायरेक्शन से लेकर स्पॉटब्वॉय. हर छोटा मोटा काम किया. जब आम एक्टिंग करते हैं तो सिर्फ एक्टिंग नहीं करते हैं बल्कि आपका ध्यान लाइटिंग पर भी होता है. कॉस्ट्यूम पर भी होता है. डायरेक्शन पर भी गौर कर रहे होते हैं. सबपर ध्यान देते हैं. मैं अपने आप को सिर्फ कलाकार नहीं मानता हूं. मेरे अंदर सिनेमा रचा बसा है और निर्देशन सिनेमा का ही हिस्सा है. भविष्य में जरुर निर्देशन करूंगा लेकिन अभी मेरे एक्टिंग का घोड़ा बहुत तेज दौड़ रहा है इसलिए उस पर ही ध्यान है.

अपने अब तक की जर्नी को किस तरह से देखते हैं. 
 जिंदगी सिर्फ कैरियर नहीं है. जिंदगी में ४० परसेट कैरियर है. बाकी का साठ प्रतिशत परिवार दोस्त यार है. मैं ज्यादा सोचता नहीं हूं. आज में जीता हूं. आज के डेट में आपलोगों के साथ बैठा हूं. अपनी बातचीत से आपको जितना मजा दिला सकूं. वही मेरे लिए बहुत होगा. मैं पांच मिनट के किरदार के लिए भी उतनी ही मेहनत करता हूं जितना कि एक घंटे के लिए. संघर्ष यही है. जब आपको मौका मिले चौका मार दो.आप स्टेशन पर सोते हैं या ताज होटल में वडा पाव खाते हैं या चिकन इससे मतलब नहीं है. मतलब है कि जब आपको जिंदगी मौका दे आपको चौका मार देना है. मैंने नौ साल का लंबा इंतजार किया. बोरीवली से बांद्रा पैदल आता था. पैसे नहीं थे आने जाने के. एनएसडी से आता तो शायद आंखों देखी एक दो महीने में ही मिल जाती थी लेकिन यह जर्नी इतनी यादगार नहीं होती थी. मैंने ९ साल को पूरी तरह से इंज्वाय किया. आज जहां भी हूं. वह नौ साल के उसी संघर्ष के वजह से हूं.

इस संघर्ष के दौर में आपका साथ किसने दिया. 
संगीत ने मेरा साथ दिया. आज मेरे पास  सिवाए सोने और टॉयलेट जाने के अलावा एक मिनट भी ऐसा नहीं होता है. जब मैं लोगों के बीच घिरा नहीं होता हूं. वैसे मुझे लगता है कि हर कलाकार को हर दिन कुछ पल जरुर अकेले अपने साथ बिताना चाहिए. जिससे वह अपनी क्षमता को जान पाएगा और संघर्ष करना आसान हो जाएगा. वैसे मेरे संघर्ष के दिनों में मेरे पिता ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. कई बार मैंने उनसे पूछा कि मैं सही कर रहा हूं ना. उन्होंने कहा कि जितना मैं सोचता हूं. तुम अभिनय के लिए ही बने हो. आज मेरा एक मुकाम है लेकिन पापाजी नहीं है.

अपने फ्यूचर को किस तरह से देखते हैं.
अच्छे फिल्में करूंगा और ६० -६५ का जब हो जाऊंगा तब फिल्मों से रिटायर हो जाऊंगा. म्यूजिक बजाऊंगा. दोस्तों के नाम पर पेड़ ऊंगाऊंगा. खाना बनाऊंगा. यह सबमुझे पसंद है. यही करूंगा. अपने बच्चों पल और लम्हा के साथ समय बिताऊंगा. जो कुछ संघर्ष के दिनों में नहीं कर पाया वो सब करूंगा.

आपको खाना बनाना पसंद है, ओमपुरी भी अच्छा खाना बनाते हैं ऐसे में मिस तनकपुर की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा. 
हां बनवाया था. मैं अपनी हर फिल्म के सेट पर खाना बनाना पसंद करता हूं. अरे भाई ४५० रुपये में चूल्हा आ गया सौ रुपये का तेल और दस रुपए किलो भिंडी थी तो क्यों न बनाऊं. मुंबई में तो १२०० रुपये दो लोगों के खाने पर ही चले जाते हैं वैसे मैं अपनी हर फिल्म के सेट पर खाना बनाता हूं और आते वक्त चूल्हा किसी को दे आता हूं. वो कहावत है न कि जिस गली से निकलूं लोग अब्बाजान बोलते हैं. मैं हर गली में चूल्हा देकर आता हूं.

 आप रोहित शेट्टी की फिल्मों में भी नजर आते हैं और आंखो देखी जैसी सेंसिबल फिल्म में भी निजी तौर पर आप किसको इंजवॉय करते हैं. 
दोनों को. मेरे दोनों सिनेमा के प्रंशसक हैं बतौर अभिनेता मैं टष्ट्वेंटी टष्ट्वेंटी और टेस्ट दोनों खेल सकता हूं और मैंने साबित भी किया है. मैं देशी कलाकार हूं. यह सब विदेशी कलाकारों के नकल करने वाले यहां के कलाकारों की चोंचलेबाजी है कि उन्हें इस तरह की फिल्म पसंद है. इस तरह की नहीं. इस किरदार के लिए २० दिन पागलखाने रहा था. वो अलग बात है कि वहां जाकर खुद २० लोगों को अपने जैसा बना दिया होगा. मैं डायरेक्टर एक्टर हूं. जिसने स्क्रिप्ट लिखने में तीन से चार साल का समय लिया.उसे १५ मिनट में समझने का जो दावा करते हैं अभिनेता. उनका दिमाग खराब है. मैंने एक बार चाणक्य की स्क्रिप्ट रट ली थी. सेट पर पहुंचा तो अपना ही दिमाग चले. फिर उसी दिन कान पकड़ लिया कि जो निर्देशक करेगा भाई वही करूंगा. 

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