20150630

एक बार फिर से लेखक रिटर्न्स


एक बार फिर से दर्शकों ने साबित कर दिया है कि फिल्मों की साज सज्जा, गाने चाहे कितने भी ग्लैमरस हों लेकिन फिल्म तो वही कामयाब है, जिसकी कहानी से दर्शकों का राबतां कायम हो सके. सो, एक बार फिर से बॉलीवुड में लेखकों और अच्छी कहानियों का दौर शुरू हो चुका है. गौर करें तो बॉलीवुड को फिर से हिमांशु, जूही जैसे लीक से हट कर लिखने वाले लेखकों के रूप में सलीम जावेद जैसे लेखक मिल रहे हैं. इन दिनों कुछ ही फिल्में ऐसी बनती हंै, जिनमें दर्शक अंत में तालियां बजा कर फिल्म की तारीफ करें. ऐसी कुछ फिल्में बन रही हैं. यह बॉलीवुड के लिए सकारात्मक संकेत हैं. 
हिमांशु शर्मा( तनु वेड्स मनु रिटर्न्स)
लेखक हिमांशु शर्मा और निर्देशक आनंद एल राय की जोड़ी लगातार कमाल कर रही हैं. उस दौर में जब कंगना को सारे ट्रेजेडी वाले किरदार मिल रहे थे. उस दौर में आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा ने तनु वेड्स मनु में कंगना को एक नया रूप दिया और दर्शकों ने कहानी की वजह से फिल्म को बेइतहां प्यार मिला. इसी प्यार का नतीजा था कि फिल्म रांझणा में जब प्यार के अलग अवतार दिखाये गये. तब भी लेखक हिमांशु शर्मा ने अपनी कहानी से दर्शकों का दिल जीता. रांझणा के संवाद अब भी दर्शकों को मुंहजुबानी याद हैं. कुंदन का किरदार अगर आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा है तो इसकी वजह भी फिल्म के लेखक हिमांशु ही हैं. हिमांशु आमतौर पर लो प्रोफाइल रहना ही पसंद करते हैं. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनका काम लगातार बोल रहा है. और एक बार फिर से वे तनु वेड्स मनु रिटर्न्स में अपना तेवर दिखा रहे हैं. फिल्म के प्रोमोज काफी पसंद किये गये हैं और रिलीज से पहले ही फिल्म के कई संवाद हिट हो चुके हैं. उम्मीदन यह फिल्म भी हिमांशु जैसे लेखक की एक और जीत होगी. हिमांशु की लेखनी की यह खूबी है कि वे पृष्ठभूमि, किरदार सबको उस दौर, उस स्थान को ध्यान में रख कर रचते हैं और संवाद देते हैं. वे फिल्मी संवाद होते भी वास्तविक से लगते हैं.
जूही चतुर्वेदी ( पीकू)
फिल्म विक्की डोनर में शूजीत सरकार के निर्देशन में जूही चतुर्वेदी ने एक ऐसे विषय पर कहानी रच डाली, जो बॉलीवुड के लिए बिल्कुल नया विषय था. फिल्म को लेकर लोगों के मन में पहले बहुत सारी आशंकाएं थीं. लेकिन फिल्म के विषय ने दर्शकों को छुआ चूंकि इसकी लेखनी लाजवाब थी और दर्शक वाकई में कुछ नया देख रहे थे. इस फिल्म से पहली बार जूही और शूजीत सरकार की जोड़ी कामयाब हुई और उस वक्त से यह दौर चलता रहा. फिर दोनों ने साथ साथ फिल्म मद्रास कैफे जैसे महत्वपूर्ण व गंभीर मुद्दों पर आधारित फिल्म दर्शकों को दी. और इसके बाद दर्शकों को तोहफे में इस वर्ष इतनी बेहतरीन फिल्म पीकू के रूप में दी कि दर्शक फिल्म को देख कर हैरान रह गये. फिल्म की कहानी पिता और बेटी के रिश्ते पर है. मगर सिर्फ पिता और बेटी के रिश्ते पर ही नहीं है. जूही और शूजीत ने कांस्टीपेशन के मुद्दे को डर्टी कॉमेडी या पॉटी जोक्स के रूप में नहीं बल्कि एक बैकड्रॉप के रूप में चुना, फिल्म का कैचलाइन है मोशन से इमोशन...इन चंद शब्दों में जूही बहुत कुछ कह जाती हैं. फिल्म के अंतिम दृश्य में अमिताभ जब परहेज छोड़ कर अपने मन की चीजें खाते हैं तो उन्हें सुकून आता है और वे चैन की मौत मरते हैं. यहां लेखक ने दर्शकों को यह बात समझाने की कोशिश की है कि आप सुकून तभी हासिल करेंगे जब जिंदगी में सबकुछ करेंगे बिना परहेज के. यह फिल्म एक बेटी के समर्पण कीकहानी है. एक पिता के अपने बेटी को अलग नजरिये से देखने की कहानी है. औरतों के हक में बोलने वाले एक व्यक्ति की कहानी है. एक साथ यह फिल्म काफी कुछ कह जाती है. और इसे जिस खूबसूरती से पेश किया गया है. वह लेखक और निर्देशक का ही कमाल है. जूही व शूजीत से अब और अधिक अपेक्षाएं बढ़ गयी हैं. वे आगे भी यूं ही हमें चौंकाते रहें. हम उम्मीद करते हैं. जूही की यह खूबी है कि वे ऐसे विषयों का चुनाव करती हैं जो हमारी जिंदगी में शामिल हैं, लेकिन हम उनके बारे में बातचीत नहीं करते. आम जिंदगी की खास कहानी कहना जूही की खूबी है. खास
शरत कटारिया( दम लगाके हईसा)
इस वर्ष जिस फिल्म को सबसे कम प्रोमोट किया गया वह थी दम लगाके हईसा. लेकिन यह फिल्म बिना किसी प्रोमोशन के भी बहुत कामयाब हुई और इसकी वजह यही थी कि फिल्म की कहानी बेहतरीन थी. लीक से वाकई हट कर थी. इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इस फिल्म की नायिका इस बात  से खुद में शर्म महसूस नहीं करती थी कि वह मोटी है और न ही अपने पति और ससुराल वालों के ताने सुन कर वह अपना मोटापा कम करने की कोशिश करती थी. वह पढ़ी लिखी थी और मेटाबॉलिज्म की बातें करती हैं. वह अपने अनपढ़ पति से प्यार करती है. लेकिन अन्याय सिर्फ इसलिए सहने को तैयार नहीं होती कि वह एक लड़की है. इस फिल्म की खासियत फिल्म के सह कलाकार थे. फिल्म हरिद्वार की पृष्ठभूमि थी. फिल्म की मुख्य नायिका भूमि जो कि एक मुंबईकर हैं और पहली बार अभिनय कर रही थीं. लेकिन उन्होंने खुद को बिल्कुल वहां की लड़की के तौर तरीकों रहन सहन में ढाल दिया था. फिल्म के संवाद, कहानी सब दिल को छूते हैं. इस वर्ष की बेहतरीन फिल्मों में से एक है दम लगाके हईसा. निश्चित तौर पर इस वर्ष शरत कटारिया कई अवार्ड के हकदार हैं.
चैतन्य तमाने( कोर्ट)
चैतन्य तमाने की फिल्म कोर्ट इस वर्ष की अदभुत फिल्मों में से एक है. एक कोर्ट पर इससे वास्तविक फिल्म और कोई भी नहीं बन सकती थी. किस तरह एक क्रांतिकारी लेखक और कवि बेवजह कोर्ट के झमेलों में फंसता जाता है और किस तरह भारत की न्याय प्रणाली काम करती थी. इस पर एक उम्दा और वास्तविक फिल्म है कोर्ट. इस फिल्म में बिना किसी लाग लपेट और ग्लैमर के स्थिति, हालात को एक साथ प्रस्तुत किया गया है. यह इस फिल्म की खासियत है. इस फिल्म को कई अंतरराष्टÑीय समारोह में पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है.
नीरज  (मसान)
नीरज द्वारा लिखी और निर्देशित फिल्म मसान का चयन इस वर्ष कान फिल्मोत्सव की प्रतियोगी सेक् शन में किया गया. यह भारतीय सिनेमा के लिए गर्व की बात है. इस फिल्म में बनारस व छोटे शहरों की कहानी को अलग तरीके से प्रस्तुत किया गया है. ेमनीष मुंद्रा अपने प्रोडक् शन हाउस दृष्यम फिल्म्स के माध्यम से हिंदी सिनेमा को अच्छी कहानियां देने और प्रोमोट करने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले वर्ष आंखों देखी इसी प्रोडक् शन हाउस की देन थी.
किला( अविनाश अरुण)
अविनाश अरुण की फिल्म किला भी एक बेहतरीन कहानी भी फिल्म है. हालांकि फिल्म अब तक रिलीज नहीं हुई है. लेकिन इस वर्ष फिल्म के रिलीज होने की संभावना है. फिल्म मुंबई फिल्मोत्सव में दिखाई गयी थी और दर्शकों ने इसकी काफी सराहना की थी.

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