शॉटकर्ट्स के माध्यम से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने का एक बड़ा जरिया कास्टिंग क्षेत्र का भी है... लेकिन हकीकत यह है कि कुछ ही कंपनियां सही तरीके से कास्टिंग के माध्यम से आपको मौके दिलवाती हैं. शेष फर्जी ही होते हैं और वे सिर्फ धोखे से आपको नुकसान ही पहुंचाते हैं. किस तरह कास्टिंग के मायाजाल के शॉट्कर्ट्स के माध्यम से एक्टिंग की दुनिया में दाखिले लेने की करते हैं कोशिश युवा. पूरी हकीकत इस आलेख में...
2.लाखों की डिमांड कर दिलवाते हैं जूनियर या भीड़ में काम
3.लाखों की फीस देकर मिलता है केवल 500 से 2000 तक वाले रोल
4.कास्टिंग के नाम ठगे जाते हैं नये चेहरे
5.गलतफहमियों में भी चुनते हैं एक्टिंग का रास्ता, जल्दबाजी में होते हैं गलत फैसले
6.पोर्टफोलियो शूट्स में ऐठते हैं पैसे, स्ट्रगलर व मेकअपमैन भी होते हैं ऐसे ठगी के हिस्से.
7.टूटी फूटी व सुनसान या बंद पड़े अपार्टमेंट्स में होते हैं फेक आॅडिशन.
एक सामान्य से पोर्टफोलियो के लिए होने वाले खर्च का ब्योरा
मेकअप मैन : 1 दिन का 6-8 हजार
कॉस्टयूम एक ड्रेस का एक दिन का किराया : 2000 से शुरू
फोटोग्राफर : 10 हजार से शुरू (तसवीरों की संख्या पर बढ़ती जाती है रकम)
ेंहेयरस्टाइलिस्ट : चार हजार एक दिन का
महेश भट्ट, फिल्मकार
मुझे कुछ दोस्तों ने बताया कि सोशल साइट्स पर मेरे फेक इमेल आइडी से काफी लोगों को गुमराह किया जा रहा है कि हम कास्टिंग के लिए नये लोगों को ढूंढ रहे. कई लोगों ने हमारे नाम पर पैसे ऐंठे हैं और यह खबरें लगातार आती है. हद तो तब हुई थी जब एक महिला हमारे आॅफिस आयीं और उन्होंने कहा कि उन्होंने हमारे किसी एजेंट को काफी भारी रकम दिये हैं, और उन्होंने उसे हमारे आॅफिस का नाम बताया है. उस वक्त मैंने इसके खिलाफ एक् शन लिया तो मैं नये लोगों को नयी राय देना चाहूंगा कि ऐसी फर्जीवाड़े कास्टिंग निर्देशकों से बचें और सही तरीके से इस क्षेत्र में आयें. मैंने सुना है कि सिर्फ मेरा ही नहीं कई नामचीन निर्देशकों के नाम पर भी ऐसे फर्जी निर्देशक लोगों से पैसे ऐंठ रहे हैं. सो, सावधान होने की जरूरत है.
रणवीर सिंह, अभिनेता
मैं खुद इस बात का भुक्तभोगी हूं. मेरे फेक आइडी से किसी ने यह पूरी हरकत की थी. मुझे इस बात की जानकारी तब मिली जब मेरे किसी फैन ने मुझे इससे अवगत कराया कि मेरे नाम का इस्तेमाल कर कुछ लड़कियों को ठगा जा रहा है. फिर मैंने इसके खिलाफ गंभीरता से आवाज उठायी. यह दुखद है कि नये लोग गलत कारणों से अपना पैसा और वक्त दोनों ऐसे लोगों के साथ बर्बाद कर देते हैं.
रांची शहर से अंगरेजी विषय में एमए कर चुकीं रोहिणी(बदला हुआ नाम) को उनके शहर में ही कुछ साथियों ने तारीफों के पुल बांधते हुए यह कह दिया कि तुम एक्टिंग में ट्राइ क्यों नहीं करती. तुम तो बेहद खूबसूरत हो. और रोहिणी ने इस तारीफ को इस कदर गंभीरता से लिया कि उन्होंने बिना सोचे समझे निर्णय ले लिया कि अभिनय के ककहरे पढ़ने या किसी प्रशिक्षित कलाकार से बातचीत करना भी गैरजरूरी समझा और फौरन मुंबई आ पहुंचीं. मुंबई आने पर भी उन्होंने इस बात पर अपना दिमाग नहीं खटाया कि आॅडिशन के सही तरीके क्या होते हैं.रोहिणी मुंबई पहुंचते ही इंटरनेट के माध्यम से एक फेक नाम वाले कास्टिंग कंपनी को संपर्क करती हैं. कास्टिंग निर्देशक उन्हें मुंबई के ऐसे इलाके में बुलाता है, जहां टूटी फूटी इमारते हैं और अपार्टमेंट्स हैं. वह जगह भी सुनसान है. रोहिणी वहां पहुंच कर भी यह समझ नहीं पाती कि वह गलत दिशा में रुख कर रही है. रोहिणी निर्देशक के पास पहुंचती है. निर्देशक उसे नये प्रोजेक्ट वाली फिल्म में शामिल करने का झांसा देता है. उस निर्देशक के पास टेलीविजन व फिल्मी दुनिया के तमाम निर्देशकों के बारे में जानकारी हैं और वह दावें करता है कि उसकी अच्छी जान पहचान है. वह रोहिणी को अपने पुराने प्रोजेक्ट्स जो दरअसल, उसके है ही नहीं. वह भी दिखाता है. रोहिणी प्रभावित होती है. और आॅडिशन देने को तैयार हो जाती है. रोहिणी फिर भी नहीं चौंकती जब वह कास्टिंग निर्देशक उसे कुछ ऐसे एंगल के पोज देने को कहता जो स्वाभाविक नहीं. हद तो तब होती है जब इन तमाम कारनामों के बाद कास्टिंग निर्देशक उससे एक लाख रुपये की मांग करता है. और दावा करता है कि वह उसे आनेवाले एक हफ्ते में एक नये टेलीविजन शो का हिस्सा बना देगा. रोहिणी के पास उस वक्त केवल 25 हजार रुपये हैं और रोहिणी यह कर उसे निर्देशक को वह पैसे सौंप भी देती है कि कुछ दिनों में वह बाकी पैसों का भी इंतजाम कर लेगी. रोहिणी को किसी भी तरह अपने घर में भी यह साबित करना था कि एक्टिंग के लिए काबिल है और वह जल्द से जल्द सबकुछ साबित कर देना चाहती थी. लेकिन अफसोस जब रोहिणी उनसे दोबारा संपर्क करने की कोशिश करती है तब तक देरहो चुकी होती है. यह गिरोह किसी और रोहिणी का तलाश में तब तक निकल चुका होता है और रोहिणी के पास अफसोस के सिवा और कोई उपाय नहीं होते. दरअसल, यह पूरा वाकया किसी क्राइम शो का ब्योरा नहीं है,बल्कि आपबीती है, जो रोहिणी ने खुद बयां की है. रोहिणी वह पहली और आखिरी लड़की नहीं है जो कास्टिंग के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी का हिस्सा बनी हो. हकीकत यही है कि एक्टिंग की चाहत में छोटे शहरों से आये नये युवा ऐसी कई धोखाधड़ियों में फंसते हैं और सिर्फ अंत में हाथ मलते रह जाते हैं. आये दिन जब संघर्ष कर रहीं किसी लड़की की आत्महत्या की खबर सुर्खियों में बनती हैं तो उसके पीछे का कड़वा सच यही होता है कि वे जिस सपने को लेकर मुंबई शहर आती हैं. ऐसे फर्जी धोखेबाजों की वजह से वे न सिर्फ अपना वक्त बल्कि पैसे भी गंवा चुकी होती हैं. मुंबई में सबसे अधिक इस क्षेत्र में अगर कहीं धोखाधड़ी होती है तो वह कास्टिंग क्षेत्र ही है. मुंबई के कई ऐसे छोटे छोटे मॉल, जो बाहर से दिखने में मॉल से ही हैं. लेकिन वहां स्थित छोटे छोटे आॅफिस में होते हैं ये कारनामे. ये फर्जी कंपनियां इन बातों का भी ख्याल रखती हैं कि भले ही उनका आॅफिस किसी कोने में क्यों न हो. लेकिन शहर के नामचीन इलाके जो कि फिल्मी दुनिया व फिल्मी कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं. वे वैसे स्थानों का ही चुनाव करें. जैसे वर्सोवा, मलाड, अंधेरी, गोरेगांव ताकि नये लोग आसानी से उन पर विश्वास कर लें. अगर आप कभी ऐसे इलाकों में भूले भटके भी चले गये तो वहां की सड़कों, वहां की दुकाने आपको इस बात की गवाही दे देंगे. अफसोसजनक बात यह है कि ये कास्टिंग कंपनियां इस चालाकी से सारे करतूत करती हैं, कि चाह कर भी उन पर नये लोग कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते. और इन दिनों तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से कई नामचीन निर्देशकों का गलत नाम इस्तेमाल कर लोगों को ठगा जा रहा है. चूंकि वहां सर्वाधिक कास्टिंग कंपनियां हैं. लेकिन उनमें से कुछेक ही होंगी जो वाकई किसी शो की कास्टिंग में मददगार साबित होती हैं. शेष कास्टिंग कंपनियां लड़के लड़कियों को उसी मॉल में स्थित में पोटोफॉलियो मेकर्स के पास भेजते हैं, जो कि भारी रकम लेकर उनका पोर्टफोलियो तैयार करने को तैयार होते हैं. और युवा लड़के लड़कियां आसानी से उनके भी झांसे में आ जाते हैं. धोखाधड़ी का सिलसिला यही नहीं रुकता. पोर्टफोलियो तैयार करवाते वक्त भी वे लगभग 10 हजार से लेकर लाखों रुपये की डिमांड तो करते ही, वे युवा जिन्हें अभी मुंबई में कदम रखे दो दिन नहीं गुजरे. उन्हें सेलिब्रिटिज की तरह के ड्रेस भाड़े पर लाने को कहते. दरअसल, हकीकत यह है कि ऐसी फर्जी कास्टिंग कंपनियां मिली जुली सहमती से ही चलती हैं, जिनमें फोटोग्राफर, मेकअपमैन, और कॉस्टयूम डिजाइनर, हेयरस्टाइलिस्ट सभी शामिल होते हैं और सभी आपस में शेयर बांटते हैं. और इसके बावजूद आप इस भ्रम में नहीं रह सकते कि आपने जितनी तसवीरें खिंचवायी हैं आपको वे सभी मिल जायेंगी. फोटोग्राफर उनमें से कुछ प्रतियां आपको देता है और बाकी तसवीरों की डम्मी दिखा कर वे आपको सिर्फ ललचायेगा ताकि आप उन तसवीरों के बदले भी और पैसे कुर्बान करें और निराशजनक बात यह है कि युवा पैसे न्योछावर कर भी देते हैं. अंत में जब तक वे पूरे खेल को समझ पाते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है और वे अपना बैंक बैलेंस खत्म कर चुके होते हैं. निर्देशक अनुराग बसु का मानना है कि किसी भी शहर से आये युवा जो इस क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले इस शहर में कुछ वक्त बिताना चाहिए. कुछ थियेटर्स करना चाहिए. पृथ्वी थियेटर जैसे स्थानों में अच्छे लोग मिलते हैं. वे आपको सही राय दे सकते हैं. कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसे जानकार लोगों से संपर्क बनाया जाये. किसी से बात करते वक्त उन्हें यह न कहें कि मैं एक्टिंग करना चाहती हूं मुझे मेरी फिल्म में ले लीजिए या शो में ले लीजिए, उनसे इस क्षेत्र को समझने की कोशिश कीजिए. धीरे धीरे आप खुद सही कास्टिंग निर्देशकों की संपर्क में आ जायेंगे और वे आपको पूरे तरीके बता देंगे. अगर वाकई आपमें टैलेंट हैं तो मौके मिल ही जाते हैं. लेकिन जल्दबाजी में किये गये फैसले इस क्षेत्र में आपको सिर्फ तनाव ही देंगे. इससे शेष कुछ नहीं, सो बेहतर है पहले से अलर्ट हो जायें. मगर हकीकत यह है कि तमाम बातों और हकीकत जानने के बावजूद युवा लड़के लड़की जल्द से जल्द शोहरत नाम कमाने के लिए शॉटकर्ट्स अपनाते हैं. दरअसल, मुमकिन है कि मजरूह सुल्तानपुरी ने इसी दुनिया को ध्यान में रख कर फिल्म आर पार का गीत हां, बड़े धोखे हैं...इस राह में...बाबूजी धीरे चलना...की रचना की होगी.
2.लाखों की डिमांड कर दिलवाते हैं जूनियर या भीड़ में काम
3.लाखों की फीस देकर मिलता है केवल 500 से 2000 तक वाले रोल
4.कास्टिंग के नाम ठगे जाते हैं नये चेहरे
5.गलतफहमियों में भी चुनते हैं एक्टिंग का रास्ता, जल्दबाजी में होते हैं गलत फैसले
6.पोर्टफोलियो शूट्स में ऐठते हैं पैसे, स्ट्रगलर व मेकअपमैन भी होते हैं ऐसे ठगी के हिस्से.
7.टूटी फूटी व सुनसान या बंद पड़े अपार्टमेंट्स में होते हैं फेक आॅडिशन.
एक सामान्य से पोर्टफोलियो के लिए होने वाले खर्च का ब्योरा
मेकअप मैन : 1 दिन का 6-8 हजार
कॉस्टयूम एक ड्रेस का एक दिन का किराया : 2000 से शुरू
फोटोग्राफर : 10 हजार से शुरू (तसवीरों की संख्या पर बढ़ती जाती है रकम)
ेंहेयरस्टाइलिस्ट : चार हजार एक दिन का
महेश भट्ट, फिल्मकार
मुझे कुछ दोस्तों ने बताया कि सोशल साइट्स पर मेरे फेक इमेल आइडी से काफी लोगों को गुमराह किया जा रहा है कि हम कास्टिंग के लिए नये लोगों को ढूंढ रहे. कई लोगों ने हमारे नाम पर पैसे ऐंठे हैं और यह खबरें लगातार आती है. हद तो तब हुई थी जब एक महिला हमारे आॅफिस आयीं और उन्होंने कहा कि उन्होंने हमारे किसी एजेंट को काफी भारी रकम दिये हैं, और उन्होंने उसे हमारे आॅफिस का नाम बताया है. उस वक्त मैंने इसके खिलाफ एक् शन लिया तो मैं नये लोगों को नयी राय देना चाहूंगा कि ऐसी फर्जीवाड़े कास्टिंग निर्देशकों से बचें और सही तरीके से इस क्षेत्र में आयें. मैंने सुना है कि सिर्फ मेरा ही नहीं कई नामचीन निर्देशकों के नाम पर भी ऐसे फर्जी निर्देशक लोगों से पैसे ऐंठ रहे हैं. सो, सावधान होने की जरूरत है.
रणवीर सिंह, अभिनेता
मैं खुद इस बात का भुक्तभोगी हूं. मेरे फेक आइडी से किसी ने यह पूरी हरकत की थी. मुझे इस बात की जानकारी तब मिली जब मेरे किसी फैन ने मुझे इससे अवगत कराया कि मेरे नाम का इस्तेमाल कर कुछ लड़कियों को ठगा जा रहा है. फिर मैंने इसके खिलाफ गंभीरता से आवाज उठायी. यह दुखद है कि नये लोग गलत कारणों से अपना पैसा और वक्त दोनों ऐसे लोगों के साथ बर्बाद कर देते हैं.
रांची शहर से अंगरेजी विषय में एमए कर चुकीं रोहिणी(बदला हुआ नाम) को उनके शहर में ही कुछ साथियों ने तारीफों के पुल बांधते हुए यह कह दिया कि तुम एक्टिंग में ट्राइ क्यों नहीं करती. तुम तो बेहद खूबसूरत हो. और रोहिणी ने इस तारीफ को इस कदर गंभीरता से लिया कि उन्होंने बिना सोचे समझे निर्णय ले लिया कि अभिनय के ककहरे पढ़ने या किसी प्रशिक्षित कलाकार से बातचीत करना भी गैरजरूरी समझा और फौरन मुंबई आ पहुंचीं. मुंबई आने पर भी उन्होंने इस बात पर अपना दिमाग नहीं खटाया कि आॅडिशन के सही तरीके क्या होते हैं.रोहिणी मुंबई पहुंचते ही इंटरनेट के माध्यम से एक फेक नाम वाले कास्टिंग कंपनी को संपर्क करती हैं. कास्टिंग निर्देशक उन्हें मुंबई के ऐसे इलाके में बुलाता है, जहां टूटी फूटी इमारते हैं और अपार्टमेंट्स हैं. वह जगह भी सुनसान है. रोहिणी वहां पहुंच कर भी यह समझ नहीं पाती कि वह गलत दिशा में रुख कर रही है. रोहिणी निर्देशक के पास पहुंचती है. निर्देशक उसे नये प्रोजेक्ट वाली फिल्म में शामिल करने का झांसा देता है. उस निर्देशक के पास टेलीविजन व फिल्मी दुनिया के तमाम निर्देशकों के बारे में जानकारी हैं और वह दावें करता है कि उसकी अच्छी जान पहचान है. वह रोहिणी को अपने पुराने प्रोजेक्ट्स जो दरअसल, उसके है ही नहीं. वह भी दिखाता है. रोहिणी प्रभावित होती है. और आॅडिशन देने को तैयार हो जाती है. रोहिणी फिर भी नहीं चौंकती जब वह कास्टिंग निर्देशक उसे कुछ ऐसे एंगल के पोज देने को कहता जो स्वाभाविक नहीं. हद तो तब होती है जब इन तमाम कारनामों के बाद कास्टिंग निर्देशक उससे एक लाख रुपये की मांग करता है. और दावा करता है कि वह उसे आनेवाले एक हफ्ते में एक नये टेलीविजन शो का हिस्सा बना देगा. रोहिणी के पास उस वक्त केवल 25 हजार रुपये हैं और रोहिणी यह कर उसे निर्देशक को वह पैसे सौंप भी देती है कि कुछ दिनों में वह बाकी पैसों का भी इंतजाम कर लेगी. रोहिणी को किसी भी तरह अपने घर में भी यह साबित करना था कि एक्टिंग के लिए काबिल है और वह जल्द से जल्द सबकुछ साबित कर देना चाहती थी. लेकिन अफसोस जब रोहिणी उनसे दोबारा संपर्क करने की कोशिश करती है तब तक देरहो चुकी होती है. यह गिरोह किसी और रोहिणी का तलाश में तब तक निकल चुका होता है और रोहिणी के पास अफसोस के सिवा और कोई उपाय नहीं होते. दरअसल, यह पूरा वाकया किसी क्राइम शो का ब्योरा नहीं है,बल्कि आपबीती है, जो रोहिणी ने खुद बयां की है. रोहिणी वह पहली और आखिरी लड़की नहीं है जो कास्टिंग के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी का हिस्सा बनी हो. हकीकत यही है कि एक्टिंग की चाहत में छोटे शहरों से आये नये युवा ऐसी कई धोखाधड़ियों में फंसते हैं और सिर्फ अंत में हाथ मलते रह जाते हैं. आये दिन जब संघर्ष कर रहीं किसी लड़की की आत्महत्या की खबर सुर्खियों में बनती हैं तो उसके पीछे का कड़वा सच यही होता है कि वे जिस सपने को लेकर मुंबई शहर आती हैं. ऐसे फर्जी धोखेबाजों की वजह से वे न सिर्फ अपना वक्त बल्कि पैसे भी गंवा चुकी होती हैं. मुंबई में सबसे अधिक इस क्षेत्र में अगर कहीं धोखाधड़ी होती है तो वह कास्टिंग क्षेत्र ही है. मुंबई के कई ऐसे छोटे छोटे मॉल, जो बाहर से दिखने में मॉल से ही हैं. लेकिन वहां स्थित छोटे छोटे आॅफिस में होते हैं ये कारनामे. ये फर्जी कंपनियां इन बातों का भी ख्याल रखती हैं कि भले ही उनका आॅफिस किसी कोने में क्यों न हो. लेकिन शहर के नामचीन इलाके जो कि फिल्मी दुनिया व फिल्मी कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं. वे वैसे स्थानों का ही चुनाव करें. जैसे वर्सोवा, मलाड, अंधेरी, गोरेगांव ताकि नये लोग आसानी से उन पर विश्वास कर लें. अगर आप कभी ऐसे इलाकों में भूले भटके भी चले गये तो वहां की सड़कों, वहां की दुकाने आपको इस बात की गवाही दे देंगे. अफसोसजनक बात यह है कि ये कास्टिंग कंपनियां इस चालाकी से सारे करतूत करती हैं, कि चाह कर भी उन पर नये लोग कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते. और इन दिनों तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से कई नामचीन निर्देशकों का गलत नाम इस्तेमाल कर लोगों को ठगा जा रहा है. चूंकि वहां सर्वाधिक कास्टिंग कंपनियां हैं. लेकिन उनमें से कुछेक ही होंगी जो वाकई किसी शो की कास्टिंग में मददगार साबित होती हैं. शेष कास्टिंग कंपनियां लड़के लड़कियों को उसी मॉल में स्थित में पोटोफॉलियो मेकर्स के पास भेजते हैं, जो कि भारी रकम लेकर उनका पोर्टफोलियो तैयार करने को तैयार होते हैं. और युवा लड़के लड़कियां आसानी से उनके भी झांसे में आ जाते हैं. धोखाधड़ी का सिलसिला यही नहीं रुकता. पोर्टफोलियो तैयार करवाते वक्त भी वे लगभग 10 हजार से लेकर लाखों रुपये की डिमांड तो करते ही, वे युवा जिन्हें अभी मुंबई में कदम रखे दो दिन नहीं गुजरे. उन्हें सेलिब्रिटिज की तरह के ड्रेस भाड़े पर लाने को कहते. दरअसल, हकीकत यह है कि ऐसी फर्जी कास्टिंग कंपनियां मिली जुली सहमती से ही चलती हैं, जिनमें फोटोग्राफर, मेकअपमैन, और कॉस्टयूम डिजाइनर, हेयरस्टाइलिस्ट सभी शामिल होते हैं और सभी आपस में शेयर बांटते हैं. और इसके बावजूद आप इस भ्रम में नहीं रह सकते कि आपने जितनी तसवीरें खिंचवायी हैं आपको वे सभी मिल जायेंगी. फोटोग्राफर उनमें से कुछ प्रतियां आपको देता है और बाकी तसवीरों की डम्मी दिखा कर वे आपको सिर्फ ललचायेगा ताकि आप उन तसवीरों के बदले भी और पैसे कुर्बान करें और निराशजनक बात यह है कि युवा पैसे न्योछावर कर भी देते हैं. अंत में जब तक वे पूरे खेल को समझ पाते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है और वे अपना बैंक बैलेंस खत्म कर चुके होते हैं. निर्देशक अनुराग बसु का मानना है कि किसी भी शहर से आये युवा जो इस क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले इस शहर में कुछ वक्त बिताना चाहिए. कुछ थियेटर्स करना चाहिए. पृथ्वी थियेटर जैसे स्थानों में अच्छे लोग मिलते हैं. वे आपको सही राय दे सकते हैं. कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसे जानकार लोगों से संपर्क बनाया जाये. किसी से बात करते वक्त उन्हें यह न कहें कि मैं एक्टिंग करना चाहती हूं मुझे मेरी फिल्म में ले लीजिए या शो में ले लीजिए, उनसे इस क्षेत्र को समझने की कोशिश कीजिए. धीरे धीरे आप खुद सही कास्टिंग निर्देशकों की संपर्क में आ जायेंगे और वे आपको पूरे तरीके बता देंगे. अगर वाकई आपमें टैलेंट हैं तो मौके मिल ही जाते हैं. लेकिन जल्दबाजी में किये गये फैसले इस क्षेत्र में आपको सिर्फ तनाव ही देंगे. इससे शेष कुछ नहीं, सो बेहतर है पहले से अलर्ट हो जायें. मगर हकीकत यह है कि तमाम बातों और हकीकत जानने के बावजूद युवा लड़के लड़की जल्द से जल्द शोहरत नाम कमाने के लिए शॉटकर्ट्स अपनाते हैं. दरअसल, मुमकिन है कि मजरूह सुल्तानपुरी ने इसी दुनिया को ध्यान में रख कर फिल्म आर पार का गीत हां, बड़े धोखे हैं...इस राह में...बाबूजी धीरे चलना...की रचना की होगी.
No comments:
Post a Comment