20150630

एक्ंिटग है चाहत और शॉटकर्ट्स हैं रास्ते? ( चकाचौंध के पीछे -1)

शोहरत किसे नहीं पसंद, किसे नहीं पसंद कि वे दुनिया पर राज करें और दुनिया उनकी मुरीद हो, लेकिन दुनिया को दीवाना बनाने के गफलत में बिना किसी प्रशिक्षण, बिना किसी तैयारी के लाखों करोड़ों युवा अभिनय की दुनिया में चमक हासिल कर लेना चाहते. इसके लिए वे कई शॉटकर्ट्स अपनाते हैं और मान बैठते हैं कि यही शॉटकर्ट्स उन्हें सफलता की ऊंचाईयों पर ले जायेगी. लेकिन जब हकीकत से सामना होता है तो सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है. जो अंतत: उन्हें अपनों से दूर, डिप्रेशन, आत्महत्या के नजदीक ले जाती है. आखिर क्या हैं वे शॉटकर्ट्स और क्यों चुनते हैं नये युवा ये रास्ता. इसकी तफ्तीश करता यह आलेख

1,कृत्रिम खूबसूरती निखारने पर करते हैं पैसे बर्बाद
2.एक्टिंग वर्कशॉप में नहीं होती दिलचस्पी
3.अपने शहर के कनेक् शन तलाशने में गुजारते हैं वक्त

शाहरुख खान
मुझे नहीं लगता कि जो चीजों को प्लान करते हैं वह एक्टर बनते हैं. मेरा मानना है कि अगर आपको वाकई एक्टर बनना है तो अपने कपड़ों और मेकअप पर फोकस मत करो. अपनी एक्टिंग पर करो. लेकिन दुख की बात यह है कि अधिकतर नये युवा जो इस क्षेत्र में आते हैं. इसी बात को भूल जाते हैं.
निरंजन नांबियार, लेखक, गीतकार : मैं जिस जिम में जाया करता था. वहां कई स्ट्रगलिंग एक्टर्स भी आया करते थे. और वे बार बार इसी बात पर जोर देते हैं कि उन्होंने अच्छी बॉडी बना ली है. मैं एक बार उनका बायोडाटा देख लूं. वे शॉटकर्ट्स चुनना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि चूंकि मेरा उठना बैठना इंडस्ट्री के बड़े लोगों से है सो उन्हें आसानी से काम मिल जायेगा.
आर माधवन, एक्टर
मैं बस यही कहना चाहता हूं कि नयी प्रतिभाओं में यह समस्या है कि वह सभी सिर्फ शाहरुख और सलमान बनना चाहते. मुझे लगता है कि यहां आइए तो सलमान शाहरुख आमिर बनने के लिए नहीं बल्कि एक अभिनेता बनने के लिए, और यह सोच कर भी हरगिज मत आइए कि वह एक्टर मेरे शहर से है तो वह मेरी मदद जरूर करेगा...यह वास्तविक दुनिया की हकीकत नहीं है. आपको यहां अपने दम पर ही खड़ा होना पड़ेगा.
कंगना रनौट : मैं भी छोटे शहर से हूं और मैं मानती हूं कि हां हमारे साथ यहां भेदभाव होता है. मुझे मेरे कपड़े, मेरी अंगरेजी मेरे बाल हर बात के लिए ताने मिलते थे. लेकिन मैंने किसी एक चीज पर फोकस किया तो वह मेरा अभिनय है. और मैं नये लोगों से सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि किसी गफलत में न रहें. हकीकत का सामना करें. अगर आपमें वाकई बात है तो मौके मिलेंगे.लेकिन अगर वाकई मौके नहीं मिलते. तो खुद को समझना जरूरी है. ताउम्र इसमें लगा देना सही नहीं. यह कठिन क्षेत्र है. यहां आपको खुद से तय करना होगा और समझना होगा कि आपने सही क्षेत्र चुना है या नहीं. मैं जब एक्टिंग के क्षेत्र में आयी उससे पहले मैंने अरविंद गौर के साथ लंबे समय तक ली थी ट्रेनिंग .


 लाइफ ओके के शो ड्रीम गर्ल में लक्ष्मी माथुर छोटे से शहर जोधपुर से एक बड़ी अभिनेत्री का ख्वाब लेकर मुंबई आती है. और उसे मुंबई के सबसे बड़े स्टूडियो नवरंग में एंट्री भी मिल जाती है. वह भी मुसीबतों का सामना करती है. लेकिन उसकी प्रतिभा को नवरंग में अहमियत भी मिलती है और वह इस सपनों के शहर में अपना ख्वाब पूरा कर ड्रीम गर्ल भी बन जाती हैं...लेकिन वास्तविक जिंदगी में अगर वाकई छोटे शहरों से अभिनय की दुनिया में किस्मत आजमा रहे लोगों से बातचीत की जाये तो वे इसे फिल्मी बातें ही करार देते हैं. दरअसल, हकीकत भी यही है कि न जाने कितने सालों से कितने सालों तक लगातार कई लक्ष्मी, कई सुरेश मुंबई बड़ा ख्वाब लेकर आते हैं. लेकिन कई सालों की लगातार कोशिशों के बावजूद वे नाकामयाबी ही हासिल करते हैं. तो कई ऐसे लोग भी  हैं जो शमिताभ जैसी फिल्मों के तर्ज पर भाग्य चमकने की बातों पर विश्वास करते हैं. फिल्म शमिताभ में भी दानिश जो बचपन से अभिनेता ही बनना चाहता था. वह मुंबई आता है. और एक फिल्म स्टूडियो जा पहुंचता है. कई महीनों तक वह एक स्टार के वैनिटी में ही वक्त गुजारता है. और अचानक एक अस्टिेंट निर्देशक की नजर दानिश पर पड़ती  है. और उसके भाग्य के सितारे खुल जाते हैं. फिल्मों में दिखाये जा रहीं यह कहानियां जाहिर है कहीं न कहीं उन्हें प्रभावित करती हैं और उन्हें भी दानिश की तरह इस क्षेत्र में आने के लिए आकर्षित करती हैं. लेकिन वे अभिनय की दुनिया को केवल ग्लैमर के चश्मे से ही देखना चाहते हैं. वे अभिनय की चुनौतियों को समझने और उनसे सामना करने की बजाय सिर्फ एक आसान तरीका अपनाना चाहते. नतीजन वे कई सालों के इंतजार के बाद भी अपनी मंजिल हासिल नहीं कर पाते. नीरज खुद बताते हैं कि उन्होंने कई सालों तक धैर्य से काम किया है. और अब जाकर उन्हें पहचान मिल रही हैं. नवाजुद्दीन सिद्दिकी, इरफान खान ऐसे नाम हैं, जिन्हें कई सालों के बाद पहचान मिली है.
जिम में घंटों समय, साइज जीरो पर जोर
वे अभिनय के लिए किसी वर्कशॉप में तैयारी करने की बजाय जिम में घंटों वक्त गुजारते. बॉलीवुड के लोकप्रिय और प्रतिष्ठित कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा का कहना है कि उनके पास ऐसी तसवीरों की भरमार होती है. जहां अभिनेता बनने की चाह रखनेवाले युवा इस बात का दावा करते नहीं थकते कि वे किस तरह सिक्स पैक्स एब्स बना रहे. वे किस तरह अपने लुक्स पर काम कर रहे. लड़कियां प्राय: अन्य अभिनेत्रियों के तर्ज पर साइज जीरो पर जोर देती हैं. लेकिन ऐसे बायोडाटा बहुत कम होते, जहां किसी लड़के या लड़की ने अपने एक्टिंग वर्कशॉप के बारे में चर्चा की हो. ब्योमकेश बक् शी और शिप आॅफ थिशियस जैसी फिल्मों में लोकप्रिय किरदार निभा चुके अभिनेता नीरज काबी कई सालों से लगातार एक्टिंग वर्कशॉप आयोजित करते हैं. खुद नीरज का मानना है कि नये कलाकारों में धैर्य की कमी है, वे जल्दी से जल्दी सबकुछ अर्जित करना चाहते. वह पहली फिल्म से ही सुपरस्टार बन जाने का ख्वाब देखते हैं. लेकिन वे सिर्फ अपने लुक्स पर ही अटके रहते हंै. अभिनय की बारीकियों को सीखने समझने पर तो उनका ध्यान ही नहीं जाता.
तरह तरह के उपचार
धारावाहिक लाइफ ओके में ही लक्ष्मी एक स्थापित अभिनेत्री की बात सुन कर कुछ ऐसे टैबलेट्स खा लेती है. जिससे उसके होंठ बिगड़ जाते हैं. दरअसल, हकीकत भी यही है कि मुंबई में आये ऐसे कई युवा न सिर्फ लड़कियां बल्कि लड़के भी अपने वास्तविक शारीरिक बनावट से खुश नहीं होते. वे कामयाब अभिनेता व अभिनेत्रियों को देख कर उनके तर्ज पर चेहरे की बनावट को बदलना चाहते. मुंबई की लोकप्रिय डर्मटोलोजिस्ट उषा नहाटा बताती हैं कि उनके पास ऐसे कई युवा जो अभिनय की दुनिया में भाग्य आजमाना चाहते, और वे न सिर्फ कृत्रिम फेशियल की बात करते, बल्कि वे अपने हेयरलाइन, चिनलाइन को भी दुरुस्त करने की बात करते. यही नहीं वे अपने आइब्रोज को भी लड़कियों की तरह खूबसूरत बनाने की बात करते. इससे यह साफ जाहिर होता है कि सिर्फ लड़कियां नहीं लड़कों के मन में भी ऐसे विचार पनपते हैं. उषा बताती हैं कि इन दिनों ऐसे कई उपचार हैं, जिससे लड़कियां या लड़के न सिर्फ अपने बेडौल शरीर को ठीक कर सकते, बल्कि लीप, चर्बी हटाने के लिए भी लड़कियां आतुर होती हैं. आश्चर्यजनक बात यह है कि यह सारे उपचार काफी महंगे होते हैं. सो, नये लोग ज्यादातर उसके विकल्प में कोई मामूली और सस्ते सेंटर तलाशते. और इसी सस्ते चुनाव में वे धोखा खाते. वे अपनी बनावट भी बिगाड़ते और पैसे भी गंवाते. उषा मानती हैं कि सेलिब्रिटीज यह उपचार या उससे होने वाले नुकसान को झेल सकते. लेकिन आम युवाओं के लिए यह न सिर्फ घाटे का सौदा होता, बल्कि वे अपने वास्तविक शारीरिक खूबसूरती को भी खो देते हैं. उषा बताती हैं कि वे अपनी तरफ से ऐसे युवाओं को इसके सारे साइड इफेक्ट्स से वाकिफ करा देती हैं. लेकिन उन पर यों धून सवार होता कि वे उनकी बातों को नजरअंदाज ही करते हैं. उषा बताती हैं कि कई बच्चे अपने अभिभावकों की एफडी तक तोड़ कर इसी रकम चुकाने को तैयार होते.
अपने शहर के कनेक् शन
एक्टिंग के क्षेत्र में भाग्य आजमाने वाले युवा इस गफलत में भी छोटे शहरों व गांवों से मुंबई शहर की तरफ रवाना हो जाते. चूंकि उन्हें लगता कि उनके अपने शहर का कोई लड़का अगर अभिनेता बन सकता तो वे भी बन सकते. वे मुंबई शहर आते और इस सोच के साथ आते कि चूंकि वह उस शहर से हैं जिस शहर से वह अभिनेता या अभिनेत्री भी संबंध रखती तो वे उनकी मदद जरूर करेंगे. अभिनेता राजीव खंडेलवाल बताते हैं कि उन्हें आये दिन अपनी बिल्डिंग के बाहर ऐसे कई युवा मिलते हैं जो यह दावा करते चूंकि वह उनके शहर से हैं तो राजीव को उनकी मदद करनी हा चाहिए. अभिनेता आर माधवन इस पर अपनी राय देते हैं कि वे अपने शहर जमशेदपुर से आये युवाओं की सिर्फ इतनी मदद कर सकते कि उन्हें बस सलाह दे सकते. मगर कहीं काम नहीं दिला सकते. चूंकि यही इस शहर और इंडस्ट्री की व्यवहारिकता है. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कई प्रतिभाशाली ुयवाओं की कई बार मदद की है. 

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