अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने देसवा का निर्माण किया था. फिल्म को काफी लोकप्रियता मिली. राष्टÑीय व अंतरराष्टÑीय स्तर पर पहचान भी मिली. देसवा भोजपुरी में बनाई गयी थी. क्षेत्रीय भाषा में ऐसी फिल्म बनाना कोई जुनूनी निर्देशक ही कर सकता है. नीतिन चंद्रा कुछ ऐसा ही जुनून लेकर चले हैं. एक बार फिर से वह बिहार के गांवों में हैं. इस बार उनकी भाषा मैथिली है. और खास बात यह है कि वे वास्तविक लोकेशन पर फिल्में शूट कर रहे हैं. मिथिला मखान प्राइवेट लिमिटेड नामक इस फिल्म के निर्माण की शुरुआत का समय उन्होंने इस वक्त इसलिए किया चूंकि मैथिली सिनेमा के भी 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं और अपनी प्रोडक् शन कंपनी चंपारण टॉकीज की तरफ से वे मैथिली सिनेमा को आदरांजलि दे रहे हैं.वर्ष 1965 में पहली मैथिली फिल्म कन्यादान रिलीज हुई थी. इस फिल्म की शूटिंग न सिर्फ बिहार में हो रही है, बल्कि कनाडा में भी फिल्म की शूटिंग की गयी है. निर्देशक की पूरी कोशिश है कि इस फिल्म को तकनीकी रूप से सर्वश्रेष्ठ तरीके से प्रस्तुत किया जाये. इस फिल्म में सिनेमेटोग्राफर के रूप में जस्टीन जे चैंबर्स जैसे दक्ष तकनीशियन को भी शामिल किया गया है. दरअसल, बिहार समेत उन सभी राज्यों के लिए जहां सिनेमा की गुंजाईश है. उन्हें अवश्य यह सोच लेकर आगे बढ़ना चाहिए कि वे अपनी माटी, अपनी भाषा में भी फिल्में बनाये. इससे ही क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिल सकता है. आज जो पहचान मराठी सिनेमा ने बनाई है. वही पहचान अगर बिहार झारखंड की फिल्मों को भी मिले तो वाकई एक नयी सभ्यता विकसित होगी. लेकिन यह तभी संभव है, जब निर्देशकों को भी बिहार झारखंड में अनुकूल वातावरण मिले. झारखंड के नामचीन फिल्मकार मेघनाथ भी लगातार अपने स्तर से क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देने की कोशिश अपनी वृतचित्रों के माध्यम से करते रहे हैं.
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