कल्की कोचलिन को उनकी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म मारगरिटा विथ द स्ट्रॉ के लिए काफी सराहना मिल रही है. इस फिल्म को कई पुरस्कार समारोह का हिस्सा बनने का भी मौका मिला है.
कल्की, इस फिल्म को हां कहने के पीछे सबसे बड़ी वजह क्या रही?
मैं खुद इस तरह के विषयों में यकीन करती हूं. यह कहानी लैला नामक एक लड़की के इर्द गिर्द घूमती है. जो कि सेरेबल पाल्सी से ग्रसित है. इस फिल्म में लैला के सफर को दिखाया गया है. मैं खुद अडेप्ट( संस्थान जो ऐसे लोगों के लिए काम कर रही है) से कई सालों से जुड़ी हूं. इसके मारेथन में हिस्सा लेती हूं. वर्कशॉप का हिस्सा हूं. तो मेरे लिए तो यह खुशनसीबी की बात थी कि मुझे इस फिल्म में कास्ट किया गया. मैं पर्सनली भी मालिनी को जानती हूं, जो कि निर्देशिका शोनाली बोस की कजिन हैं, जो इस बीमारी से ग्रसित हैं. वह किस तरह अपनी जिंदगी को जीती हैं. वह हर किसी के प्रेरणा है.
क्या आपको लगता है कि ऐसी फिल्में कुछ संदेश पायेंगी?
जी मुझे लगता है कि किसी फिल्म का मकसद, खासतौर से जब ऐसे विषय पर फिल्म बन रही है तो संदेश से अधिक मकसद यह होना चाहिए कि ऐसी खबरें दर्शकों के सामने आयें कि आखिर ये लोग जिन्हें डिस्काउंट दे दिया जाता है. बेचारगी दिखाई जाती है. वह कैसे सामान्य सी जिंदगी जी सकते हैं. आपको वह समझना होगा. आपको यह भी समझना होगा कि हमारे देश में इन्हें हीन भावना से सिर्फ इसलिए देखते क्योंकि उनके किसी एक अंग में परेशानी है. हमारे देश में तो वैसी सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. अलग तरह की लिफ्ट, ट्रेन, बस, स्कूल कुछ भी नहीं.विदेशों में ऐसे लोगों के लिए सबकुछ है. वहां सबके साथ सामान्य व्यवहार होता है और वही इस फिल्म में भी दर्शाया जायेगा.
आप मानती हैं कि ऐसे विषय के साथ जब एक सेलिब्रिटी जुड़ते हैं तो प्रभाव अधिक पड़ता है?
हां, मुझे लगता है कि हमारी फिल्म को आमिर खान ने काफी सपोर्ट किया है और इसका प्रभाव पड़ भी रहा है. मुझे इस तरह के काम में मजा आता है. यह मेरे लिए सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है. मैं थियेटर को जिस तरह एंजॉय करती हूं. इन कामों को भी करती हूं. मुझे अगर दो दिनों की छुट्टी मिल जाये तो मैं सिर्फ काम करूंगी और कुछ नहीं.
आपको हमेशा से पढ़ने लिखने का शौक रहा है, यही वजह रही कि आप थियेटर से जुड़ीं?
हां, बिल्कुल यह वजह रही. मुझे लगता है कि थियेटर में कोई दिखावा या छल कपट नहीं है. आप जो हैं सामने हैं. मैं बचपन में इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ा करती थी तो जब मैं गरमी की छुट्टियों में घर जाया करती थी. उस वक्त सारे बच्चे स्कूल में होते थे तो मैं उस वक्त पढ़ती बहुत थी. लिखती बहुत थी. मेरी मां ने अब तक वह सारी डायरियां रखी हैं और यही वजह है कि मेरा पढ़ने की तरफ झुकाव हुआ और मैंने अपने साथ अधिक से अधिक वक्त गुजारा तो मुझे अब अकेले रहने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है.
यह फिल्म एक कलाकार के रूप में शारीरिक रूप से भी कितनी कठिन थी?
काफी कठिन थी. मुझे लगता है मेरा अब तक का सबसे कठिन किरदार है. मैं तीन महीनों तक हमेशा ज्यादा समय व्हील चेयर पर होती थी. मैंने मालिनी को देखा. किताब पढ़ी. अडाप्ट जाती थी. वहां देखती थी लोगों को. बोलने का ढंग़, रहने का ढंग मैंने इस किरदार के लिए काफी महसूस किया है. तब जी पायी इस किरदार को.मैंने लगभग छह महीनों तक इस किरदार के लिए मेहनत की है. उस वक्त मैं ये जवानी है दीवानी की शूटिंग भी कर रही थी. लेकिन मैं अपना ध्यान इस किरदार पर पूरी तरह से रखती थी. मेरी कोशिश होती थी कि मैं लैला की तरह बर्ताव करूं. मैं उसी तरह नाश्ता करूं. ब्रश साफ करूं. उसकी तरह फोन पर बातें करूं. यही वजह थी कि मैं फिल्म में अपने किरदार को बखूबी निभा पायी.
क्या आपको लगता है कि आप जितनी प्रतिभाशाली हैं. वैसे किरदार आपको आॅफर हुए हैं अबतक?
नहीं मुझे नहीं लगता. इंडस्ट्री बहुत डबल स्टैंडर्ड हैं. मुझे तो समझ ही नहीं आता कि इंडिया में भी कितने इंडिया है. हर जगह लोग अलग तरह की बातें करते हैं और कहेंगे हम एक हैं. मुझसे भी कई लोगों ने ऐसे सवाल पूछे हैं और पूछते ही हैं कि मैं अंगरेज हूं क्या या मेरे माता पिता वहां के हैं क्या? लेकिन वही दूसरी तरफ उन्हें लीड में खूबसूरत लड़की चाहिए वह भी गोरी चिट्टी. तो मैं इन बातों पर गौर नहीं करती. हां, जो करना चाहती हूं कर रही हूं और मैं खुश हूं.
अनुराग कश्यप से संबंधित सवाल आपसे लगातार पूछे जाते हैं तो कहीं इस बात से परेशानी होती है?
हां, मुझे इस बात से बहुत परेशानी होती है कि लोग लगातार यही सवाल पूछते हैं.यहां तक कि मुझे यहां घर मिलने में भी परेशानी हो रही है. सिर्फ इस वजह से क्योंकि मैं सिंगल हो चुकी हूं. आज से छह साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. तो मुझे लगता है कि इन छह सालों में हम अपनी सोच को पीछ ेलेकर जा रहे हैं या आगे की सोच रहे हैं.
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