सलमान खान सूरज बड़जात्या के साथ लंबे अरसे के बाद परदे पर लौटे थे. दोनों ने साथ में तीन सुपरहिट फिल्में ही नहीं, यादगार फिल्में भी दी हैं. लेकिन इस बार जब वह साथ आये हैं, दर्शकों के लिए यह बड़जात्या परिवार की तरफ से हरगिज प्रेम रत् न नहीं है. बड़जात्या अपनी फिल्मों की कहानियों में रामायण को आधार मानते रहे हैं. लेकिन यह उनके फिल्मों की खूबी रही है कि हम जिस मामा, काका के बारे में या किसी सगे संबंधी के बारे में बुरी बातें ही सोचते हैं. बड़जात्या उसे निराधार साबित करते आये हैं. उनकी फिल्मों की सादगी ही उनकी फिल्मों की खासियत रही है. फिर न जाने क्यों इस बार बड़जात्या अन्य निर्देशकों की नकल करने की कोशिश में अपनी सादगी को भूल बैठे हैं. सलमान का यह निर्णय और बड़जात्या का उन्हें साथ लेकर आना दर्शाता है कि दोनों ने काफी मंथन किया होगा. ेलेकिन इस मंथन से एक सामान्य सी कहानी ही क्यों परदे पर आयी. दरअसल, हकीकत यह है कि जिस तरह बॉक्स आॅफिस के आंकड़े फिल्मों के किरदारों व कहानियों से अधिक मायने रखने लगे हैं.सूरज बड़जात्या भी उस रंग में रंगते दिखने लगे हैं. यह कमी सूरज की नहीं, वर्तमान दौर में बॉलीवुड की बदलती छवि की है. बड़जात्या की फिल्मों में अभिनेत्रियों की सादगी, उनकी संस्कृति दिल को मोहती आयी है. लेकिन सोनम कपूर ने सिर्फ अपने कपड़ों पर ही काम किया है. वे शायद बड़जात्या की फिल्मों की अभिनेत्री की शालीनता को समझ ही नहीं पायी हैं. अमृता राव ने फिल्म विवाह में जिस तरह एक गांव की लड़की का किरदार निभाया है और उसके पारिवारिक मूल्यों को परदे पर उजागर किया है. उस पूनम के किरदार में हर कोई अपनी बेटी तलाशने की कोशिश करेगा, यह बड़जात्या की ही सोच थी कि एक आग में झूलसी लड़की से भी नायक शादी करने को तैयार है.फिर वह दौर इस बार नजर क्यों नहीं आया. यह अफसोस रहेगा
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